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Tuesday, January 14, 2025
मानस के कुछ भावुक क्षण भाग १० राम भारत मिलाप
मैं पिछले नौ ब्लॉग में राम चरित मानस के भावुक क्षणों को मानस की चौपाइयों से संकलित करने की छोटी चेष्टा कर रहा हूँ । मैं पिछले ब्लॉगों का लिंक यहाँ दे रहा हूँ तांकि आपने यदि नहीं पढ़ा तो निरंतरता के लिए पढ़ सकते है। कृपया लिंक पर क्लिक करें।
- राम चरित मानस से कुछ भावुक क्षण भाग-१ (बाल लीला )
- राम चरित मानस से कुछ भावुक क्षण भाग-२ ( विवाह )
- मानस के कुछ भावुक क्षण - भाग-३ (वन गमन १)
- मानस के कुछ भावुक क्षण भाग - ४ (राम वन गमन २)
- मानस के कुछ भावुक क्षण-भाग-५ (राम वनगमन-३.१)
- मानस के कुछ भावुक क्षण - भाग- ६ (वन गमन ३-२)
- मानस के कुछ भावुक क्षण भाग-७
- मानस के कुछ भावुक क्षण भाग -८
- मानस के कुछ भावुक क्षण भाग ९

चित्रकूट में यहीं हुआ था राम भरत मिलाप (फोटो इंटरनेट से )
भरतजी का मन्दाकिनी स्नान, चित्रकूट में पहुँचना
लखन राम सियँ सुनि सुर बानी। अति सुखु लहेउ न जाइ बखानी॥
इहाँ भरतु सब सहित सहाए। मंदाकिनीं पुनीत नहाए॥
सरित समीप राखि सब लोगा। मागि मातु गुर सचिव नियोगा॥
चले भरतु जहँ सिय रघुराई। साथ निषादनाथु लघु भाई॥
मुझि मातु करतब सकुचाहीं। करत कुतरक कोटि मन माहीं॥
रामु लखनु सिय सुनि मम नाऊँ। उठि जनि अनत जाहिं तजि ठाऊँ॥
देववाणी सुनकर श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी विभोर ही गए और सुख पाए। इसी बीच भरत जी सभी समाज के साथ चित्रकूट पहुँच कर मन्दाकिनी में स्नान करते है। फिर सभी को मन्दाकिनी तट पर रुकने कह कर और गुरु और माता की आज्ञा मांग कर उस स्थान के लिए प्रस्थान करते है जहाँ माता सीता और श्री रघुनाथ जी है।
मन्दाकिनी नदी - विकिपीडिया से सौजन्य से
भरत अपनी माता कैकयी के कृत्यों के विषय में सोच कर में पेशोपेश में है। कहीं माता का नाम सुन कर श्री राम , माता सीता और लक्ष्मण उठ कर कहीं और नहीं चले जाये। वे मुझे माता के मत से सम्मत मान कर जो भी करे थोड़ा होगा , पर शायद वे मेरी भक्ति और सम्बन्ध को देख मुझे मेरे सभी पापों और अवगुणों के लिए क्षमा कर देंगे । चाहे मलिन मन जानकर मुझे त्याग दें, चाहे अपना सेवक मानकर मेरा स्थान दे, मेरे लिए तो श्री रामचंद्रजी की चरण की पादुका में ही शरण हैं। श्री रामचंद्रजी तो अच्छे स्वामी हैं, दोष तो सब दास का ही है। उस समय भरत की दशा कैसी है? भरतजी का सोच और प्रेम देखकर उस समय निषाद देह की सुध-बुध भूल गया।
लगे होन मंगल सगुन सुनि गुनि कहत निषादु।
मिटिहि सोचु होइहि हरषु पुनि परिनाम बिषादु॥
सेवक बचन सत्य सब जाने। आश्रम निकट जाइ निअराने॥
भरत दीख बन सैल समाजू। मुदित छुधित जनु पाइ सुनाजू॥
ईति भीति जनु प्रजा दुखारी। त्रिबिध ताप पीड़ित ग्रह मारी॥
जाइ सुराज सुदेस सुखारी। होहिं भरत गति तेहि अनुहारी॥
मंगल सगुन होने लगा तो निषाद राज विचार करने लगे - पहले हर्ष होगा फिर अंत में दुःख होगा। गुह के वचन को सत्य जान भरत जी आश्रम के निकट जा पहुंचे। जैसे इति (प्रकितिक आपदा) से दुखी और तीनो तापों से पीड़ित प्रजा किसी उत्तम राज्य में जा कर सुखी हो जाये भरत की की अवस्था ठीक वैसी ही थी। राम जी के निकट होने के भाव मात्र से भरत अत्यंत सुख पा रहे है। श्री रामचंद्रजी के चरणों के आश्रित रहने से उनके चित्त में आनंद और उत्साह है ।
चित्रकूट के सौम्य प्राकृतिक वातावरण , मुनियों की कुटियों, पक्षियों और जीव जंतुओं को देख कर भरत जी अत्यंत सुख पा रहे है। पानी के झरने झर झर कर रहे हैं और मतवाले हाथी चिंघाड़ रहे हैं। मानो वहाँ अनेकों प्रकार के नगाड़े बज रहे हैं। चकवा, चकोर, पपीहा, तोता तथा कोयलों के समूह और सुंदर हंस प्रसन्न मन से कूज रहे है।
हरषहिं निरखि राम पद अंका। मानहुँ पारसु पायउ रंका॥
रज सिर धरि हियँ नयनन्हि लावहिं। रघुबर मिलन सरिस सुख पावहिं॥
खि भरत गति अकथ अतीवा। प्रेम मगन मृग खग जड़ जीवा॥
सखहि सनेह बिबस मग भूला। कहि सुपंथ सुर बरषहिं फूला॥
रामचन्द्रजी के चरणचिह्न देखकर दोनों भाई ऐसे हर्षित होते हैं, मानो दरिद्र को खजाना मिल गया हो। वहाँ की धूल को मस्तक पर रखकर हृदय में और नेत्रों में लगाते हैं और श्री रघुनाथजी के मिलने के समान सुख पाते हैं। भरत जी की यह दशा देख पशु , पंक्षी प्रेम मग्न हो गए। अति प्रेममय वातावरण में निषाद राज भी रास्ता - दिशा भूल जाते है। तब देवता गण फूल वर्षाकार रास्ता बताते है।
पंचमूःख़ी हनुमान धारा में स्थित मंदिर - चित्रकूट
करत प्रबेस मिटे दुख दावा। जनु जोगीं परमारथु पावा॥
देखे भरत लखन प्रभु आगे। पूँछे बचन कहत अनुरागे ॥
स जटा कटि मुनि पट बाँधें। तून कसें कर सरु धनु काँधें॥
बेदी पर मुनि साधु समाजू। सीय सहित राजत रघुराजू॥
लकल बसन जटिल तनु स्यामा। जनु मुनिबेष कीन्ह रति कामा॥
कर कमलनि धनु सायकु फेरत। जिय की जरनि हरत हँसि हेरत॥
आश्रम में प्रवेश करते ही भरतजी का सारा दुःख और तपन मिट गया, मानो योगी को परमार्थ की प्राप्ति हो गई हो। भरतजी ने देखा कि लक्ष्मणजी प्रभु के आगे खड़े हैं । सिर पर जटा है, कमर में वल्कल वस्त्र बाँधे हैं और उसी में तरकस कसे हैं। हाथ में बाण तथा कंधे पर धनुष है, वेदी पर मुनि तथा साधुओं का समुदाय बैठा है और सीताजी सहित श्री रघुनाथजी विराजमान हैं। श्री रामजी के वल्कल वस्त्र हैं, जटा धारण किए हैं, श्याम शरीर है। श्री रामजी अपने करकमलों से धनुष-बाण फेर रहे हैं और हँसकर देखते ही जी की जलन हर लेते हैं , जिसके ओर भी देखते हैं उसी को परम आनंद और शांति मिल जाती है। छोटे भाई शत्रुघ्न और सखा निषादराज समेत भरतजी का मन प्रेम में मग्न हो रहा है। हर्ष-शोक, सुख-दुःख आदि सब भूल गए। हे नाथ! रक्षा कीजिए ऐसा कहकर वे पृथ्वी पर दण्ड की तरह गिर पड़।
बचन सप्रेम लखन पहिचाने। करत प्रनामु भरत जियँ जाने॥
बंधु सनेह सरस एहि ओरा। उत साहिब सेवा बस जोरा॥
मिलि न जाइ नहिं गुदरत बनई। सुकबि लखन मन की गति भनई॥
रहे राखि सेवा पर भारू। चढ़ी चंग जनु खैंच खेलारू॥
कहत सप्रेम नाइ महि माथा। भरत प्रनाम करत रघुनाथा॥
उठे रामु सुनि पेम अधीरा। कहुँ पट कहुँ निषंग धनु तीरा॥
अत्यंत भावुक क्षण था। लक्ष्मण जी श्री राम के और मुख कर खड़े थे और भरत जी के और उनका पीठ था पर फिर भी भरत जी के मन के भाव उन तक पहुँच रहे है। उन्होंने जान लिया कुछ न कहते हुए भी भरत जी प्रणाम कर रहे है। सेवा में लगे लक्ष्मण जी को क्षण भर भी सेवा को छोड़ भरत जी से मिलते नहीं बनता है और न ही उपेक्षा करते ही बनता है। लक्ष्मणजी के चित्त की इस दुविधा का वर्णन कोई श्रेस्ठ कवि ही कर सकता है। वे सेवा को ही विशेष महत्वपूर्ण समझकर उसी में लगे रहे। फिर भी लक्ष्मणजी ने प्रेम सहित पृथ्वी पर मस्तक नवाकर कहा- हे रघुनाथजी भरतजी प्रणाम कर रहे हैं। यह सुनते ही श्री रघुनाथजी प्रेम में अधीर होकर उठे। कहीं वस्त्र गिरा, कहीं तरकस, कहीं धनुष और कहीं बाण ।
श्री राम से पादुका लेते भरत जी
बरबस लिए उठाइ उर लाए कृपानिधान।
भरत राम की मिलनि लखि बिसरे सबहि अपान॥
मिलनि प्रीति किमि जाइ बखानी। कबिकुल अगम करम मन बानी॥
परम प्रेम पूरन दोउ भाई। मन बुधि चित अहमिति बिसराई॥
कहहु सुपेम प्रगट को करई। केहि छाया कबि मति अनुसरई॥
कबिहि अरथ आखर बलु साँचा। अनुहरि ताल गतिहि नटु नाचा॥
कृपा निधान श्री रामचन्द्रजी ने उनको (भरत जी को) जबरदस्ती उठाकर हृदय से लगा लिया! भरतजी और श्री रामजी के मिलन की रीति को देखकर सभी अपनी सुध भूल गये । मिलन की प्रीति का बखान कैसे की जाए? वह तो कवि के लिए कर्म, मन, वाणी तीनों से अगम है। दोनों भाई भरतजी और श्री रामजी मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार को भुलाकर परम प्रेम से पूर्ण हो रहे हैं। कहिए, उस श्रेष्ठ प्रेम को कौन प्रकट करे? कवि की बुद्धि किसकी छाया का अनुसरण करे? कवि को तो अक्षर और अर्थ का ही सच्चा बल है। नट ताल की गति के अनुसार ही नाचता है! श्री तुलसी दास भी इस अवसर पर भाव के अधिकता के कारण शब्दों के ढूढ़ते प्रतीत होते है। इस प्रसंग के वर्णन पर श्रोता , पाठक की आंखे भी अश्रुपूर्ण हो जाती है।
बस आज इतना भर ही। अगले ब्लॉग में राम भारत संवाद और भारत का चरण पादुका मांगना।
Sunday, January 12, 2025
मानस के कुछ भावुक क्षण - भाग- ९
मैं पिछले आठ ब्लॉग में राम चरित मानस के भावुक क्षणों को मानस की चौपाइयों से संकलित करने की छोटी चेष्टा कर रहा हूँ । मैं पिछले ब्लॉगों का लिंक यहाँ दे रहा हूँ तांकि आपने यदि नहीं पढ़ा तो निरंतरता के लिए पढ़ सकते है। कृपया लिंक पर क्लिक करें।
- राम चरित मानस से कुछ भावुक क्षण भाग-१ (बाल लीला )
- राम चरित मानस से कुछ भावुक क्षण भाग-२ ( विवाह )
- मानस के कुछ भावुक क्षण - भाग-३ (वन गमन १)
- मानस के कुछ भावुक क्षण भाग - ४ (राम वन गमन २)
- मानस के कुछ भावुक क्षण-भाग-५ (राम वनगमन-३.१)
- मानस के कुछ भावुक क्षण - भाग- ६ (वन गमन ३-२)
- मानस के कुछ भावुक क्षण भाग-७
- मानस के कुछ भावुक क्षण भाग -८
सनातन धर्म अवतारों , मूर्तियों, प्रतीक , प्रकृति के वंदन पूजन की इजाजत देता है। निरंकार से सकार की भक्ति सरल है। ऐसा इसलिए क्योंकि आम भारतवासी सरल व्यक्तित्व का स्वामी होता है। इतना सरल की राम का ध्यान करने पर श्री अरुण गोविल जी का सौम्य रूप और लक्ष्मण का स्मरण करने पर सुनील लाहिरी जी का क्रोधित रूप याद जाता है। भारत के रूप में संजय जोग का योगी रूप और सीता के माता स्वरुप रूप में दीपिका चिकलिया जी बरबस याद आ जाती है मानों उनमे ही तुलसीकृत रामायण के सभी पात्र सम्माहित हो। इन्ही पात्रो पर समर्पित मेरे ब्लॉग का यह भाग।
सीताजी का स्वप्न, श्री रामजी को कोल-किरातों द्वारा भरतजी के आगमन की सूचना, रामजी का शोक, लक्ष्मणजी का क्रोध और राम जी का समझाना
उहाँ रामु रजनी अवसेषा।
जागे सीयँ सपन अस देखा ॥
सिहत समाज भरत जनु आए।
नाथ बियोग ताप तन ताए ॥
राम रात शेष रहते ही जाग गए और सीता जी उन्हें अपने सपने के बारे में बताने लगी। वे बताने लगी कि सपने में कि अयोध्या वासियों के साथ भरत आए हैं और प्रभु वियोग में उनका शरीर संतप्त है। सभी लोग उदास दीन दुखी है। सभी माताएं भिन्न वेश में है। सीता जी का स्वप्न सुनकर राम चंद्र जी के नेत्र भर आए। और प्रभु स्वयं की लीला के वश में हो गए। वे लक्ष्मण को बोले "सीता कि स्वप्न किसी अशुभ को इंगित करता है।
सनमािन सुर मुनि बंंदि बैठे उतर दिस देखत भए।
नभ धुरि खग मगृ भुरि भागे बिकल प्रभु आश्रम गए ॥
तुलसी उठे अविलोक कारनु काह चित सचिकत रहे।
सब समाचार किरात कोलिन्ह आइ तेिह अवसर कहे ॥
स्नान ध्यान कर , देवताओं, मुनियों का सम्मान, वंदना कर प्रभु बैठ गए और उत्तर दिशा की ओर देखने लगे। आसमान में धुल उड़ रही है और बैचेन पक्षी, मृग प्रभु आश्रम की तरफ भाग रहे हैं। श्री राम यह सब देख कारण के लिए सशंकित हो उठे, तब ही कोल किरातों ने शुभ समाचार (भरत जी के आने का) दिया। प्रभु पुलकित हो उठे। भरत के साथ चतुरंगिणी सेना है है जानकर श्रीराम कुछ सोच में पड़ गए, एक ओर पिता का वचन और दुसरी ओर भरत का संकोची स्वभाव। भरत के आने के कारण का अनुमान लगाते राम जी चिंता में डूब गए।
राम जी को चिंतित देख, लक्ष्मण ने कहा आपकी आज्ञा के बिना मैं कुछ कहना चाहता हूं। क्योंकि कुछ अवसरों पर सेवक की ठिठाई निती सम्मत है। यद्यपि
भरत का आपके प्रति प्रेम , विश्वास और आदर सर्वविदित है। पर प्रभुत्व और राज्य पा कर इंद्र तक धर्म से विमुख हो जाते हैं। राजमद में सहस्र बाहु, इंद्र, त्रिशंकु और नहुष तक मतवाला हो गए थे। ऋण और शत्रु शेष नहीं रहने चाहिए, इसलिए भैया भरत और छोटा भाई शत्रुघ्न आपको असहाय जान सेना सहित आ रहे हैं। लक्ष्मण को निती की बातें करते करते क्रोध आ गया और वे अपने धनुष बाण लेकर तैयार हो गए। सारे लोकपाल उनका क्रोध देख भयभीत हो कर भाग गए। तब प्रभु ने समझाया।
अनुचित उचित काजु किछु होऊ।
समुझि किरअ भल कह सबु कोऊ ॥
सहसा करि पाछैं पछिताहीं।
कहिहं बेद बुध ते बुध नाहीं ॥
देव वाणी हुयी कोई भी काम हो, उसे अनुचित-उचित खूब समझ-बूझकर किया जाए तो सब कोई अच्छा कहते हैं। वेद और विद्वान कहते हैं कि जो बिना विचारे जल्दी में किसी काम को करके पीछे पछताते हैं, वे बुद्धिमान् नहीं हैं। देववाणी सुन लक्ष्मण सकुचा गए। श्री राम और माता सीता ने उनका आदर किया और समझाया। सच है की राज मद में संभलना सच में कठिन है।
भरतहि होइ न राजमदु बिधि हरि हर पद पाइ।
कबहुँ कि काँजी सीकरनि छीरसिंधु बिनसाइ॥
तिमिरु तरुन तरनिहि मकु गिलई। गगनु मगन मकु मेघहिं मिलई॥
गोपद जल बूड़हिं घटजोनी। सहज छमा बरु छाड़ै छोनी॥
पर उनके लिए कठिन है जिन्होंने साधुओं का सत्संग नहीं किया वे ही राजा राजमद रूपी मदिरा पीते है और मतवाले हो जाते हैं। हे लक्ष्मण! सुनो, भरत सरीखा उत्तम पुरुष ब्रह्मा की सृष्टि में न तो कहीं सुना गया है, न देखा ही गया हैं।
अयोध्या का राज्य तो क्या है , ब्रह्मा , विष्णु और महादेव पद पा कर भी भारत को राज मद नहीं हो सकता । अंधकार इतना हो जिसमे मध्यान्ह का सूर्य छिप जाये , गाय के खुर जैसे जल में चाहे अगस्त्य जी डूब जाये , पृत्वी अपनी सहन शीलता छोड़ दे , मच्छर के फूक से चाहे सुमेरु पर्वत उड़ जाये भारत में राजमद हो ही नहीं सकता। हे तात मैं तुम्हारी और पिताजी के सौगंध खा कर कहता हूँ की भारत के सामान पवित्र और उत्तम भाई संसार में नहीं है।
सुनि रघुबर बानी बिबुध देखि भरत पर हेतु।
सकल सराहत राम सो प्रभु को कृपानिकेतु॥
जौं न होत जग जनम भरत को।
सकल धरम धुर धरनि धरत को॥
कबि कुल अगम भरत गुन गाथा।
को जानइ तुम्ह बिनु रघुनाथा॥
राम जी की वाणी और भारत के लिए उनका प्रेम विश्वास देख समस्त देवता उनकी सराहना करने लगे, और कहने लगे की प्रभु राम के सिवा करुणा के सागर और कौन है ? यदि जगत् में भरत का जन्म न होता, तो पृथ्वी पर संपूर्ण धर्मों की धुरी को कौन धारण करता? कवि कल्पना से भी परे भरतजी के गुणों की कथा आपके सिवा और कौन जान सकता है?
इस ब्लॉग में इतना ही। अगले भाग में राम भारत मिलाप !
क्रमशः
Saturday, January 4, 2025
हमारी उत्तर पुर्व यात्रा (2018) भाग 4
चेरापुंजी -गोहाटी - बोमडिला 21-22 अप्रैल 2018



अहोम मेमोरियल - असम , लिविंग रूट ब्रिज -मेघालय, दिरांग थुपसिंग दार्घे मोनास्ट्री-अरूणांचल
भाग -1 के लिए यहां क्लिक करें
भाग 2 के लिए यहां क्लिक करें
भाग 3 के लिए यहां क्लिक करें
गतांक से आगे..
चेरापुंजी में मुसलाधार बारिश
चेरापुंजी के JMS Retreat में डिनर के बाद क्या अच्छी नींद आई। गहरी नींद में थे कि बारिश के थपेड़ो की आवाज आने लगी। चेरापुंजी में है -यह तो होना ही था सोच कर फिर से सोने की कोशिश
कर रहा था कि कुछ बूंदे रोशनदान से अंदर आने लगी। उठ कर कुछ जुगाड़ कर रोशनदान अच्छी तरह बंद कर लेट गया। ऐसे मुसलाधार बारिश को ही अंग्रेजी में Raining Cats and dogs कहते होंगे। लगा नहीं रूकेगी ये बारिश। सुबह नींद टूटी तो सोचा चाय मंगाऊ। बाहर आया तो रिसार्ट में मैनेजर वेटर कोई नहीं दिखा। इन छोटे रिसार्ट के मालिक दिन भर मैनेजर की कुर्सी संभालते है शाम को कैश लेकर सुबह चेक आउट होने वाले अतिथियों के बिल बनाकर घर चले जाते हैं और जिनके भरोसे होटल छोड़ जाते हैं वे किसी ऐसे कमरे में या किसी कोने में दुबक कर सो जाते हैं कि आवश्यकता होने पर ढ़ूंढे नहीं मिलते।
चेरापुंजी में घना कोहरा, संतोष बाबु सुबह-सुबह तैयार, JMS का बोर्ड
हम चाय वाले को ढ़ूढंते, उसके पहले हमें मेरे बहनोई संतोष बाबु मिल गए। नहा कर तैयार। पता चला रौशनदान बंद नहीं कर पाए और बिस्तर पर ही पानी आने के कारण दोनों व्यक्ति सो भी नहीं पाए। सामान भींग गया सो अलग। बारिश तो रुक गई थी पर बाहर बहुत ही घना कोहरा छाया था। 10-15 फीट दूर के पेड़ पौधे भी दिखाई नहीं दे रहा था। खैर एक - दो घंटे में सभी चाय पी कर तैयार हो गए। करीब 40 km दूर फाल तक जाने का प्लान था और हमारे दो अति उत्साही सदस्य तो डबल डेकर रूट ब्रिज भी जाना चाहते थे। ऐसे मौसम में नहीं जा सकते ऐसा हमें पता था फिर भी ड्राइवर से पूछ ही लिया। उसने कहा जा तो सकते है पर कुछ देख नहीं पाएंगे और slippery रास्ते और घने कोहरे में कुछ हुआ तो हम जिम्मेदार नहीं होंगे। अब किसकी हिम्मत। यहां से सेवन सिस्टर्स फाल या डबल डेकर रूट ब्रिज जा सकते है सबने इस बात को भुलने में ही खैर समझा। मेघालय में कुत्ते street dog नहीं दिखे। Beef भी रास्ते में बिकते दिख जाते थे।
आज ही कामाख्या मंदिर जाना था इसलिए हम तुरंत बिना नाश्ते का इंतजार किए निकल पड़े। मै आगे पैसेंजर सीट पर बैठा। कोहरा इतना कि रास्ता बिल्कुल भी दिखाई नहीं दे रहा था। मेरी नजर जहां रास्ता होने की उम्मीद थी इस तरह टिकी थी। मानों मेरी नजर हटी और दुर्घटना घटी।
ड्राइवर पता नहीं किस सुपर पावर के सहारे गाड़ी चला रहा था। फिर तेज बारिश शुरु हो गई और गाड़ी की गति कम हो गई। आगे हम एक जगह जब बारिश कम हुई रुक गए और नाश्ता किया और चाय पी कर चल पड़े। शिलांग को क्रोस कर गोहाटी दोपहर तक पहुंच गए।
चेरापुंजी और शिलांग के बीच के स्टाप
कामाख्या दर्शन
समय कम था हम सीधे कामाख्या मंदिर चले गए। वी आई पी दर्शन के टिकट काउंटर पर लाईन लगा कर बैठ गए। जब तय समय बीतने के घंटे भर बाद तक काउंटर नहीं खुला तो हम दूसरे काउंटर पर गए इस तरह करते कराते हम टिकट लेने में कामयाब हो गए और करीब एक घंटे में दर्शन कर फारिग हो गए। मंदिर में माता की पिंडी जिस स्थान पर है वहां घुप अंधेरा था। सिर्फ एक दिया टिमटिमा रहा था। वहां कहां पैर रखना है पता नहीं चल रहा था।
कामाख्या मंदिर के बाहर, मंदिर प्रांगण में, कामाख्या पहाड़ी से दृश्य
मंदिर से निकल कर खोजते हुए रिवर व्यू गेस्ट हाउस पहुंच गए जहां हमारा बुकिंग थी। एकदम ब्रह्मपुत्र के किनारे। रिवर साईड का सिर्फ दो रुम मिला जिसमें एक ग्राउंड फ्लोर पर था जहां से ब्रह्मपुत्र का किनारा भी नहीं दिखाई दे रहा था। आज हमें शम्मी और किशोर जी के यहां जाना था डिनर के लिए। हमारे साले के साली और साढ़ू भाई से मिलना जरूरी था क्योंकि इन्होंने हमें कीमती सलाह suggestion दिया था ट्रेवल एजेंट श्री सैकिया से भी मिलाया था। सैकिया की बिटिया शम्मी के स्कूल में पढ़ती जो थी। हमारा ड्राइवर घर चला गया इसलिए हम दो ओला कर शाम को चल पड़े।
पुजा के बाद विश्राम, भव्य मंदिर, सुर्यास्त मंदिर से
हमारा पारम्परिक असमिया स्वागत
थोड़ी खराब कीचड़ भरे रास्ते होते हुए हम पहुंच गए उनके फ्लैट में। खूबसूरत फ्लैट था। हम उनके द्वारा किए असमिया पारंपरिक स्वागत से भाव विभोर हो गए। सभी को खादा और झापी पहना कर स्वागत किया गया। चाय, स्टार्टर, डिनर और स्वीट डिश गजब था। छोटी आलू जो मटर के जैसा दिख रहा था हमने कभी खाया न था। रात में वापस लौटते समय ओला बुक करने पर ड्राइवर आता न था बस हर बार कैंसल कर रहा था या पहुंच नहीं पा रहा था। हम direction भी बता नहीं पा रहे थे। खैर जब किशोर जी ने direction बताया तब कैब आई और हम अपने GH लौट पाए।
शम्मी के घर पर खादा झापी से भव्य स्वागत
अगले दिन हमें सुबह सुबह अरूणाचल के लिए निकलना था। हम सो गए। सुबह सामने एक पार्क दिखा और थोड़ी दूर पर एक जेट्टी थी जहां से उमानंद द्वीप जा सकते थे पर समय था नहीं अपने पास। वापसी के लिए हमने इसी गेस्ट हाउस को बुक कर लिया। थोड़ी देर बाद नाश्ता कर हम निकल पड़े। अहोम स्मारक और भुपेन हजारिका चौक के बाद एक प्रसिद्ध दुकान पर रसगुल्ले खाने के लिए हम रुके फिर आगे चल पड़े।
हमारे गेस्ट हाउस के सामने का दृश्य
अरुणांचल चले हम
हम तेजपुर -भालूपोंग हो कर नहीं जा रहे थे जैसा पहले सोच रखे थे। हम सिपाझार मंगलदोई होकर जा रहे थे। ड्राइवर आने जाने वाले से कौन सा रास्ता बंद है या जिस पर काम चल रहा है इसकी खबर ले रहे थे। हम थोड़ी देर बाद खरूपेटिया पहुंचे जहां चौक पर शिवलिंग shape के एक मंदिर था। हम थोड़ी देर यहां रूके चाय के लिए । बाद में एक जगह भैरबकुंड का बोर्ड दिखा । इसका जिक्र अगले ब्लॉग में फिर आएगा।
खरूपेटिया का मंदिर,टेढ़े मेढ़े रास्ते और मंज़िल अपनी दूर
हमारे मोबाइल का समय आगे दिखाने लगा। गजब तो तब हुआ जब दीपा का कुछ पैसा कटने का मैसेज भी आ गया। दर असल हमारा मोबाइल भुटान का मोबाइल सिग्नल पकड़ रहा था और दीपा ने कुछ इंटरनेट डाटा खर्च किया होगा जिसका चार्ज एयरटेल के एकाउंट से लग गया। थोड़ी दूर बाद एक रूपा नामक शहर मिला जो अरूणाचल में है। एक बहुत खूबसूरत मोंनास्ट्री भी था यहां।
Ex Armyman's रेस्तरां, रास्ते में मिला एक झरना
आगे पहाड़ी रास्ता शूरु हो गया। हरियाली, नदी, पहाड़ और झरने के मनमोहक दृश्यों में हम खो गए ठंड भी बढ़ गई। एक अंत्यंत खूबसूरत मोनास्ट्री दिखी ओर हमने रूक कर फोटो लिया। एक Ex Armyman के रेस्तरां में रूक कर हमने चाउमिन खाया चाय पी और आगे चल पड़े।
ग्युटो मोनास्ट्री तेनजिंगगांव, बोमडिला होम स्टे से एक दृश्य
ताशी होमस्टे में ताशी परिवार की मेहमाननवाज़ी
आज 9-10 घंटे का ड्राइव था। खैर प्रकृति और मौसम का आनंद लेते हम बोमडिला पहुंच गए। 8000 फीट पर बसे इस शहर में बहुत ठंड थी और हमें Airbnb से बुक किया अपना Tashi होम स्टे ढ़ूढना था। सर्किट हाउस से थोड़ी दूर था यह! रात के सात बज गए थे। होम स्टे के मालिक झीरिंग ताशी दिरखोपिया जी my dear आदमी थे पर Air bnb से किया पहला बुकिंग हमारा था। क्योंकि मैंने पूरा पेमेंट airbnb को किया था ताशी जी चिंतिंत थे कि उन्हें कब पैसे मिलेंगे। मैंने उनका विश्वास यह कह के जीता कि अगले दो दिन में Air bnb से confirmation नहीं आई तो मैं फिर से पेमेंट कर दूंगा। इस होम स्टे का हमारा अनुभव हमेशा यादगार रहेगा।
होम स्टे मालिक के आंगन में सभी के साथ चाय, लोअर गोंपा (बोमडिला बजार के पास)
लगा ही नहीं हम घर से बाहर किसी अनजान शहर में किसी अनजान व्यक्ति के घर में है। किचन में घुस कर क्या बन रहा है देखते चाय भी पी हमने। उनके portion के आंगन में उन दोनों के साथ पी गई सुबह की चाय यादगार रहेगा। ताशी जी एक रिटायर्ड सिविल इंजीनियर थे और उनका पुत्र किसी दूसरे शहर में काम करता था और उनका पहले तल्ले का पोर्सन जिसमें तीन रूम था हमारे उपयोग में था। सुबह हम जब उठ कर बालकोनी नुमा टेरेश पर आए तो ठंडी हवा सीधे शरीर में चुभ रहा था फिर भी नजारे तो गजब के थे।
हिम्मते गर्ल दा - मददे खुदा, ताशी होम स्टे के बालकनी से खींची गई एक फोटो
जाने कितने फोटो खींचे। पता नहीं चला यहां upper gompa, middle gompa और lower gompa के नाम से तीन मोनास्ट्री थे। हम कार से दो गोंपा गए । चढा़ई थी। लोअर गोंपा बाजार के पास था और हम वहां दूसरे दिन दोपहर के बाद गए। अगले दिन धीरांग गए, मोनास्ट्री गए और जहां गए अगले ब्लॉग में।
क्रमशः
Thursday, January 2, 2025
नया साल 2025
पतरातु पर पुराने ब्लॉग के लिए यहां क्लिक करें
आखिर नया साल आ ही गया। मैंने 31 दिसम्बर 12 बजे से कुछ देर ही पहले सबको Happy New Year का मेसेज भेज दिया। जब आतिशबाजी हुई और नया वर्ष का आगमन हो गया तब मैंने अपना मोबाइल चेक किया तो देखा मेरे मैसेज के आगे लिखा था yesterday 23:59 और जिन लोगों ने देर से मैसेज भेजे उनके आगे लिखा था today 00:08 ! ऐसा लगा जैसे मैंने ही देर से मैसेज भेजा।
रांची में नया साल मानाने के कई तरीके है।
झरने के आसपास पिकनिक
रांची के पास बहुत सारे फॉल है जिसमे कुछ के बारे में कोरोना काल में ही पता चला था। उस समय यू ट्यूबरस ने नयी नयी जगहें ढूंढ निकाली। रांची के आस पास प्रसिद्ध झरने है - हुंडरू , दसम, जोन्हा , हिरणी , पञ्चघाघ, सीता और रजरप्पा फॉल्स जहां नए साल में भीड़ की संभावना है । पर कई झरने रांची से के 150 km के परिधि में है जो काम प्रसिद्द है और थोड़ा दुर्गम भी जैसे भटिंडा, बघमुंडा और पेरवा घाघ। सबसे ऊँचा लोध फाल्स जो करीब 200 km दूर है उसे रांची के पास का नहीं माना जा सकता। पर जाने वाले जाते ही है। खास कर बंगाल के लोग जिनका wanderlust प्रसिद्ध है।
होटल और माल्स
रांची में कई मॉल है जिनमे सिनेमा हॉल है , रेस्टोरेंट या फ़ूड कोर्ट है जैसे - ऑय लेक्स , स्प्रिंग सिटी -फन सिनेमा , संध्या टावर , न्यूक्लूयस मॉल, PJP मॉल , मॉल ऑफ़ रांची , JD स्ट्रीट मॉल, सुजाता या फिर अपना पुराना GEL काम्प्लेक्स। पिछले वर्ष पहले हम न्यूक्लियस माल PVR Cinema गए थे।
रेस्टोरेंट्स
कावेरी, रैडिसन , कैपिटल हिल , कैपिटल रेजीडेंसी , ग्रीन एकर्स , ग्रीन होराइजन , मोती महल ,BNR
रांची के करीब स्थित पर्यटक स्थल
इनके अलावा आप नए साल में 100 km के भीतर भी कही जा सकते है - रजरप्पा , सुर्य मंदिर बुंडू - देवरी मंदिर । नेतरहाट / बेतला को मैंने नहीं INCLUDE किया है। वहां जाने के लिए एक से ज्यादा दिनों का प्लान बनाना पड़ेगा। हमें इस बार नए साल पर फिर से पतरातू जाने का मौका मिला अपने साढ़ू और साली (विजय बाबू और डेज़ी ) के साथ। हम चारो सीनियर्स ने मिल कर वहां बोटिंग की लॉन / मचान रेस्टोरेंट में खाना खाया धमाल मचाया। घूमे फोटोबाज़ी की और लौट आये । दो साल में मेरा यह 4th पतरातू का ट्रिप था और दूसरी बार बोटिंग की। पहली बार पोते पोती के साथ - बच्चों के साथ उनके माता पिता और पितामह ने बहुत मजा किया। तब चप्पू बोट या शिकारा से बोटिंग की थी और करीब 40 मिनट लगे थे इस बार मोटर बोट थे थोड़ा स्पीड का मजा लिया और 20 मिनट में लौट आये। चिनिया बादाम और लज़ीज़ लंच का मजा लेते हमने करीब पांच घंटे बिताये और घर लौट आये। बोटिंग के तीन रूट / रेट थे - सेंट्रल द्वीप जाकर लौटना -₹ ७५०/- , द्वीप में रुकना खाना खा सकते है। ₹ १५०० /- लम्बा चक्कर डैम तक जा कर लौटना ₹२२०० /-। हमने ₹७५०/- का लिया था जो सही भी है यदि खाने का समय न हो तो सेन्ट्रल द्वीप में कुछ खास करने का नहीं है बोरिंग हो जाएगा और पैसे लगेंगे वो आलग । हमने island के लिए boat ली थी पर वास्तव में डैम तक जा कर ही लौटे।
JTDC और पर्यटन विभाग ने पतरातु डैम / लेक के आसपास अच्छी सुविधा उपलब्ध कराई है। और पतरातू वैली / लेक अब तो बहुत लोकप्रिय जगह बन गयी है। मैं सिर्फ छह बार ही पतरातू गया हूँ। दो बार जब जब फोर लेन रोड नहीं बना था - तब बहुत सारे U बेंड और तीखी चढ़ाई के साथ इस शार्ट ट्रिप का भय मिश्रित थ्रिल कुछ और है और अब सेफ रास्ते को देखने का आनंद कुछ और है। एक बार बस से और एक बार ड्राइव कर के। २०२२ के बाद से चार बार जा चुका हूं। लेक में पहले कोई सुविधा नहीं थे बोटिंग या कुछ और , पर अब सारी सुविधा है। लेकिन JTDC के होटल में कमरे बढ़ाने की जरूरत है । बोटिंग के लिए पांच छह जेटी है उसे थोड़ा और सुरक्षित बनाने की जरूरत है जैसा बोट क्लब का जेटी है वैसा सभी प्राइवेट जेट्टी होना चाहिए। बोट क्लब में रु १०० प्रति व्यक्ति का टिकट है पर प्राइवेट बोट वाले उनके टिकट घर तक आने के पहले ही पर्यटकों को आकर्षित कर लेते है इनको मार्केटिंग करने की जरूरत है जैसे बोट क्लब का काउंटर सरोवर विहार होटल में हो और एक काउंटर मुख्य प्रवेश के टिकट काउंटर के पास।
हमारा घूमना अच्छे से हो गया अब भी जाये और आनंदित हो कर आये। सभी को नव वर्ष की शुभकामना के साथ मै विदा लेता हूं, पढ़ते रहे मेरा ब्लॉग।