Wednesday, August 30, 2023

बिहार और झारखण्ड के कुछ स्थानीय धर्म स्थान - भाग -२

इस भाग में बिहार

२०१८ हमारे भटक वासना (wander lust) के लिए बहुत अच्छा साल था। फरवरी में हज़ारीबाग़ -रजरप्पा , मार्च में अंगराबारी, पटना और उत्तर पूर्व इंडिया , मई में काठमांडू - चंद्रगिरि , जुलाई में मधुबनी - मंगरौनी - उच्चैठ , सेप्टेंबर में शिरडी - सप्तश्रृंगी , अक्टूबर में जमुई , लछुआर , नेतुला भवानी, दिसंबर में उदयपुर-कुम्भलगढ़ , चित्तौरगढ़। इस पोस्ट में इन जगहों में से उन धार्मिक जगहों के बारे में लिख रहा हूँ जो स्थानीय लोगों में लोकप्रिय और प्रसिद्द है पर बाहर वालों को कम ही पता हैं । जैसे अमरेश्वर धाम (अंगराबारी) - खूंटी , रजरप्पा- रामगढ , नेतुला भवानी- कुमार गावं -जमुई और मंगरौनी-कपिलेश्वर- उच्चैठ- मधुबनी ।

प्रथम भाग में झारखंड के कुछ स्थानीय प्रसिद्ध धर्म स्थान के बारे में लिखा था। इस बार बिहार के Locally revered धर्म स्थलों के बारे में बताऊंगा। सबसे पहले मैं बताना चाहूंगा नेतुला भवानी मंदिर के बारे में।

नेतुला भवानी मन्दिर को उतनी प्रसिद्धि प्राप्त नहीं है जितनी अन्य शक्ति पीठो को प्राप्त है पर स्थानीय लोगों के बीच इनका काफी महत्त्व हैं और यहाँ काफी प्रसिद्ध भी है। कहते हैं जिनकी आंखें खराब है देवी के कृपा से उनकी आंखों में भी रोशनी आ जाती है। हम इस मंदिर में पूजा अर्चना २०१८ में की थी। यह मंदिर जमुई से २५ कि०मि० की दूरी पर है जमुई नवादा मार्ग पर । हम दुर्गा पूजा में गए थे  भीड़ भाड़ स्वभाविक था। वैसे तो मां नेतुला मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। इस मंदिर का 26 सौ साल पुराना इतिहास का रिकार्ड है। 6 सौ ई.पू. में भगवान महावीर, जिनका जन्म स्थान भी नजदीक के लछुआर ग्राम में है, गृह त्याग कर जब ज्ञान प्राप्त करने निकले थे, तब उन्होंने प्रथम दिन कुमार गांव में ही नेतुला मां की मंदिर परिसर स्थित वटवृक्ष के नीचे रात्रि विश्राम किया था और इसी स्थान पर अपना वस्त्र त्याग कर दिया था। इसका उल्लेख जैन धर्म के प्रसिद्ध ग्रंथ कल्पसूत्र में वर्णित है। नेतुला मां को चन्द्रघंटा का भी रूप बताया गया है। मन्यता है देवी सती की पीठ यही  गिरी थी। मन्दिर भव्य है पर पुन:निर्मित लगती है जबकि मुर्तियाँ पुरातन है।



नेतुला मंदिर कुमार, जमुई

मंगरौनी, मधुबनी
हमलोग २०१८ में ही यहां भी गए थे। हमारा starting point था मधुबनी शहर। सबसे पहले हम मंगरौनी गए। यह हमारे ससुराल परिवार का गुरु स्थान है। यहां पहले भी आ चुके थे। यह एक तांत्रिक स्थान है और एकादश शिवलिंग के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां कांचीपीठ के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती, जगरनाथ पीठाधीश्वर शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती भी पहुंच चुके हैं।

भुवनेश्वरी मंदिर, मंगरौनी

कपिलेश्वर महादेव हमारा अगला stop था। यह मधुबनी से ९ कि०मी० की दूरी पर स्थित महादेव का एक प्रसिद्ध मंदिर है। दरभंगा जयनगर मार्ग में रहिका के पास स्थित यह मंदिर मिथिला के बैद्यनाथ धाम की तरह प्रसिद्ध है। कहते है कि राजा जनक रोज जल अर्पण करने रोज यहां आते थे। कपिल मुनि द्वारा स्थापित इस शिवलिंग की बहुत मान्यता है।
इस मंदिर से जुडी एक बहुत पुरानी कहानी है जो बहुत से लोगों को मालूम भी नहीं होगी। हजारो साल पहले यहां पर एक ऋषि रहा करते थे। वो ऋषि भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। उस ऋषि का नाम कर्दम ऋषि था। वह ऋषि भगवान शिव की कड़ी तपस्या करते थे और ध्यान किया करते थे लेकिन उसके लिया उन्हें जल नहीं मिल रहा था। तभी वहां पर चमत्कार हुआ, वरुण देव प्रकट हुए और उन्होंने ख़ुद एक तालाब निर्माण किया। वो तालाब आज भी वहा मौजूद है।


कपीलेश्वर मंदिर, मधुबनी

हमारा अगला पड़ाव था बेनीपट्टी के पास स्थित ऊच्चैठ भगवती मंदिर। एक बड़े क्षेत्र में यह मंदिर स्थित है। अनेकों देव देवियों की झांकी मंदिर से सजा है मंदिर कैंपस। थोड़ी विशेष भीड़ भी थी।

ऊच्चैठ भगवती मंदिर

इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व है, यहीं महान कवि कालिदास को माता काली ने वरदान दिया था और मूर्ख कालिदास मां का आशीर्वाद पाकर ही महान कवि के रूप में विख्यात हुए।
प्राचीन मान्यता है कि इसके पूर्व दिशा में एक संस्कृत पाठशाला थी और मंदिर तथा पाठशाला के बीच एक विशाल नदी थी। महामूर्ख कालिदास अपनी विदुषी पत्नी विद्दोतमा से तिरस्कृत होकर माँ भगवती के शरण में उच्चैठ आ गए थे और उस विद्यालय के आवासीय छात्रों के लिए खाना बनाने का कार्य करने लगे।
एक बार भयंकर बाढ़ आई और नदी का बहाव इतना ज्यादा था की मंदिर में संध्या दीप जलाने का कार्य जो कि छात्र किया करते थे , वो सब जाने में असमर्थ हो गए , कालिदास को महामूर्ख जान उसे आदेश दिया गया कि आज शाम वो दीप जला कर आये और साथ ही मंदिर की कोई निशानी लगा कर आये ताकि ये तथ्य हो सके कि वो मंदिर में पंहुचा था।
इतना सुनना था कि कालिदास झट से नदी में कूद पड़े और किसी तरह तैरते-डूबते मंदिर पहुंच कर दीपक जलाया और पूजा अर्चना की। अब मंदिर का कुछ निशान लगाने की बारी थी ताकि यह सिद्ध किया जा सके कि उन्होंने दीप जलाया। कालिदास को कुछ नहीं दिखा तो उन्होंने जले दीप के कालिख को ही हाथ पर लगा लिया। निशान की तौर पर भगवती के शुभ्र मुखमंडल पर कालिख पोत दी।
तभी माता प्रकट हुई और बोली रे मूर्ख कालिदास तुम्हे इतने बड़े मंदिर में कोई और जगह नहीं मिली और इस बाढ़ और घनघोर बारिश में जीवन जोखिम में डाल कर तुम दीप जलाने आ गए हो।
ये मूर्खता हो या भक्ति लेकिन मैं तुम्हे एक वरदान देना चाहती हूँ। कालिदास ने अपनी आपबीती सुनाई कि कैसे उनकी मूर्खता के कारण पत्नी ने तिरस्कृत कर भगा दिया। इतना सुनकर देवी ने वरदान किया कि आज सारी रात तुम जो भी पुस्तक स्पर्श करोगे तुम्हे कंठस्थ हो जाएगा। कलीदास ने सभी छात्रों की पुस्तकों को उस रात छू डाला और सभी उन्हें कंठस्थ हो गया। कालांतर में मुर्ख कालीदास एक महाकवि की तरह उभरे और कई महाकाव्य की रचना की।
अगली कहानी अगले भाग में। आप खुश रहे, स्वस्थ्य रहे।

Saturday, August 26, 2023

येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: ओणम केरल का राज्य पर्व

सेवानिवृत्त के पहले मैं एक केंद्रीय उपक्रम में कार्यरत था तब कई केरलवासी भी सहकर्मी थे। मध्यपूर्व के आकर्षण के पहले केरलवासी उत्तर भारत में हर क्षेत्र में कार्यरत दिख जाते थे - नर्स, क्लर्क से लेकर चेयरमैन तक। पहले एक कहावत बहुत प्रसिद्ध थी कि जब नील आर्मस्ट्रांग चांद पर उतरा तो एक मलयाली होटल वाले ने काफी के साथ उसका स्वागत किया । आशा है हमारा विक्रम लैंडर भी वहां किसी मलयाली को खोज निकाले। आखिर साईकल से पहुंचा हमारा पहला राकेट केरल के ही थंबा से छोड़ा गया था। खैर अपने केरलवासी सहकर्मियों को दो पर्व धूमधाम से मनाते देखा था। अयप्पा पूजा और ओणम। ये ब्लॉग ओणम पर है जो इस वर्ष २० अगस्त २०२३ से ३१ अगस्त तक मनाया जा रहा है।



ओणम एक दान वीर भक्तवत्सल राजा बलि के धरती पर पुनः आगमन की खुशी में मनाया जाता है। महर्षि कश्यप सभी प्राणियों के पुर्वज माने जाते हैं। उनकी पत्नियां दिती और अदिति दक्ष प्रजापति की पुत्रियां थी। दिति दैत्यों की माता थी अदिति देवों की। दिति के दो पुत्र थे हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप। हिरण्याक्ष को श्रीविष्णु के वाराह अवतार और हिरण्यकश्यप को नरसिंह अवतार ने मारा। हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद विष्णु के भक्त थे। इन्हीं प्रह्लाद के पौत्र थे राजा बालि । तीनों लोक के स्वामी राजा बलि बहुत पराक्रमी थे और प्रजा वत्सल भी। इंद्र के प्रर्थना और देवों को देवलोक वापस दिलाने के लिए श्री विष्णु ५२ अंगुल के बौने वामन का रूप धर राजा बलि ९९ वें यज्ञ में पहुचें। इस यज्ञ के बाद बलि का इंद्र होना निश्चित था। वामन ने दानवीर बलि से तीन पग धरती के दान की कामना की। वामन के छोटे पैरों को देख तीन पग धरती का दान बलि को अपने यश के अनुरूप नहीं लगा और उन्होंने बहुत सारी गाएं और धरती के साथ धन का दान का प्रस्ताव रखा पर वामन ब्राह्मण अपनी तीन पग वाली बात पर अडिग रहे। बलि ने गंगा जल हाथ में लेकर तीन पग धरती दान कर दिए। तब श्री विष्णु अपने विशाल रूप में प्रकट हुए और दो पग में स्वर्ग और धरती दोनों नाप लिए। तीसरे पग के लिए बलि ने अपना सर प्रस्तुत कर दिया। विष्णु ने उसे सदा के लिए उसे पाताल भेज दिया जहां वह अब भी राज करता है। बलि सात चिरंजीवियों में से एक है। विष्णु ने बलि को वर्ष में एक बार अपने राज्य की प्रिय प्रजा के बीच वापस धरती पर आने का वरदान दिया। राजा बलि दस दिनों के लिए अपनी प्रिय प्रजा के बीच हर साल वापस आते हैं और केरल और आसपास इन्हीं दस दिनों को ओणम पर्व के रूप में मनाया जाता है। कल २७ अगस्त २०२३, यानि श्रावण की एकादशी से पूर्णिमा तक यह त्योहार बड़े धूम-धाम से मनाया जाएगा। सजे हाथी की शोभा यात्रा और नौका दौड़ इस पर्व की विशेषता है। सभी को ये कहानी तो पता है, प्रायः सब को। अब मैं कुछ बताना चाहता हूं जो शायद आपको पता न हो।

बलि ने सबकुछ दान कर दिया था जीता हुआ स्वर्ग भी, अत: भगवान विष्णु ने उससे वरदान मांगने को कहा जिस पर राजा बलि ने भगवान को अपने साथ पाताल लोक में वास करने का वरदान मांगा। वरदान से बंधे भगवान विष्णु राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए। परंतु इससे देवी लक्ष्मी को समस्या हुई , यदि भगवान विष्णु पाताल लोक में वास करेंगे तो बैकुंठ धाम जो उनका स्थान है वह तो रिक्त रहेगा, वो स्वयं भी अकेली रह जाएंगी। देवी लक्ष्मी अकेले नहीं रहना चाहती थीं और इसलिए वो भगवान विष्णु को लौटा लाने के लिए पाताल लोक पहुंची लेकिन अपने दिए हुए वरदान में बंधे भगवान विष्णु को पाताल लोक से लौटा लाना इतना भी आसान नहीं था।

देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को उन्हें लौटा देने के लिए राजा बलि से बहुत अनुनय विनय किया लेकिन राजा बलि नहीं माने। अतः एक रास्ता निकाला गया, राजा बलि के हाथ में देवी लक्ष्मी ने रक्षा सूत्र (राखी) बांधते हुए मंत्रोच्चारण किया ‘येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल:’।
इस रक्षा सूत्र के माध्यम से देवी लक्ष्मी और राजा बलि दोनों भाई-बहन हो गए और देवी लक्ष्मी ने उपहार के रूप में राजा बलि से भगवान विष्णु को मांग लिया। अब राजा बलि के सामने नहीं कहने का कोई रास्ता ही नहीं था, उन्होंने बहन बन चुकीं देवी लक्ष्मी को उपहार स्वरूप भगवान विष्णु को उन्हें लौटा दिया। इस पूरे घटनाक्रम के बाद देवी लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु अपने बैकुंठ धाम लौट आए।
रक्षा बंधन के दिन पुरोहित या ब्रह्मण आपके हाथ में धागा बांधते यहीं सूत्र " येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल:" दोहराते हैं जो देवी लक्ष्मी राजा बलि को राखी बांधते हुए कहती हैं और आपको राजा बलि की तरह चिरंजीवी होने की कामना करते हैं।
HappyOnam!

English Translation:

Many Malyali were our co-workers when I was working as Engineer in a Central Govt undertaking. Before the charm of the Middle East, Malyalis were omnipresent in India in all walks of life - from nurses, clerks even Chairmen of large companies. Earlier a saying was very famous that when Neil Armstrong landed on the moon, a Malayali tea shop owner welcomed him with coffee. Hope our Vikram Lander also finds a Malayali there. After all, our first rocket that carried on carts and cycle was launched from Thumba in Kerala itself. Well, I had seen my Malyali colleagues celebrating two festivals with great pomp. Ayyappa Puja and Onam. This blog is on Onam which will be is being celebrated this year from 20th August 2023 to 31st August.
Onam is celebrated to celebrate the return of the heroic Bhaktavatsala King Bali to earth. Maharishi Kashyap is considered the progenitor of all living beings. His wives were Diti and Aditi who were daughters of Daksha Prajapati. Diti was the mother of demons and Aditi was the mother of gods. Diti had two sons Hiranyaksha and Hiranyakashyap. Hiranyaksha was killed by the Varaha avatar of Sri Vishnu and Hiranyakshyap was killed by the Narasimha avatar. Prahlad, the son of Hiranyakashyap, was a devotee of Vishnu. King Bali was grandson of this bhakt Prahlad. King Bali, the master of all the three worlds, was very mighty and was loved by his subjects . During 99th yagya being performed by king bali, Vishnu appeared in the form of a dwarf Vamana Brahmin just 52 fingers tall. After this Yagya, the King Bali was sure to be Indra. Vaman asked for three steps of land from Danveer Bali as Daan. Seeing the small feet of Vamana, the Daan of just three steps of land did not match Bali's fame and he proposed a donation of many cows and money along with the land, but Vamana Brahmin remained firm on his three steps. Bali donated three steps of earth by taking Ganga water in his hand. Then Shri Vishnu appeared in his real majestic form and measured both heaven and earth in two steps. For the third step, Bali presented his head. Vishnu banished him forever to Patala where he still reigns. Bali is one of the seven Chiranjeevis. Vishnu granted Bali the boon of coming back to earth once a year among the beloved subjects of his kingdom. King Bali returns every year to his beloved subjects for ten days and these ten days are celebrated as Onam festival in and around Kerala.
Bali had donated everything, so Lord Vishnu asked him to ask for a boon. King Bali asked God for a boon to reside with him in the patal lok. Bound by the boon, Lord Vishnu accompanied King Bali to Patal Lok. But this caused a problem to Goddess Lakshmi (wife of Sri Vishnu), if Lord Vishnu resides in Patal Lok then Baikunth Dham which is his place will remain vacant, she herself will also be left alone. Goddess Lakshmi did not want to be alone and so she reached Patal Lok to bring back Sri Vishnu but it was not so easy to bring Sri Vishnu back from Patal Lok bound by the boon given by him.
Goddess Lakshmi pleaded a lot with King Bali to return Lord Vishnu to her but King Bali did not agree. So a way was found, Goddess Lakshmi tied Raksha Sutra (Rakhi) in the hand of King Bali and chanted 'येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल:’
Through this Raksha Sutra both Goddess Lakshmi and King Bali became brother and sister and Goddess Lakshmi demanded Lord Vishnu from King Bali as a gift. Now there was no way to say no in front of King Bali, he returned Lord Vishnu as a gift to Goddess Lakshmi who had become his sister. After this whole incident, Lord Vishnu along with Goddess Lakshmi returned to his Baikuntha Dham.
Remember on the day of Raksha Bandhan while tying thread on your hand, the priest or Brahmin repeats the mantra "येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल:" which Goddess Lakshmi says while tying Rakhi to King Bali and wishes you to live long life King Bali.

Happy Onam !

Thursday, August 24, 2023

झारखण्ड और बिहार के कुछ स्थानीय धर्म स्थान - भाग -१

इस भाग में झारखण्ड

२०१८ हमारे भटक वासना (wander lust) के लिए बहुत अच्छा साल था। फरवरी में हज़ारीबाग़ -रजरप्पा , मार्च में अंगराबारी, पटना और उत्तर पूर्व इंडिया , मई में काठमांडू - चंद्रगिरि , जुलाई में मधुबनी - मंगरौनी - उच्चैठ , सेप्टेंबर में शिरडी । सप्तश्रृंगी , अक्टूबर में जमुई , लछुआर , नेतुला भवानी, दिसंबर में उदयपुर-कुम्भलगढ़ , चित्तौरगढ़ । मैं इन जगहों में से उन धार्मिक जगहों के बारे में लिख रहा हूँ जो स्थानीय लोगों में लोकप्रिय और प्रसिद्द है पर बाहर वालों को कम ही पता हैं । जैसे अमरेश्वर धाम (अंगराबारी) - खूंटी , रजरप्पा- रामगढ , नेतुला भवानी- कुमार गावं -जमुई और उच्चैठ- मधुबनी । ऐसे ही एक धर्मस्थान अशोक धाम - लखीसराय (बिहार) पर मैं एक ब्लॉग पहले ही लिख चुका हूँ और उसका लिंक मैं नीचे दे रहा हूँ :
अशोक धाम - लखीसराय (बिहार)




आम के पेड़ को घेरकर उसके नीचे श्यंभू अमरेश्वर शिव लिंग और मंदिर, अन्य मंदिर



अमरेश्वर धाम
हम रांची - खूंटी के रास्ते में पड़ने वाले अमरेश्वर धाम दो बार गए। पहली बार सबसे छोटी बहन बहनोई के साथ और दूसरी बार मेरी दूसरी बहन बहनोई के साथ। पहली बार हम वहां से लापुंग स्थित साई मंदिर भी गए थे और पांच छह मोटर साइकिल पर काले कपड़े में शायद आतंकवादियों ने कुछ दूर हमारे जीप / SUV का पीछा भी किया। २०१८ में बहन बहनोई के साथ अचानक प्रोग्राम बन गया और हम एक टैक्सी ठीक कर चल दिए। हमारे निवास से ५० KM पर स्थित अमरेश्वर धाम हम २ घंटे से भी काम समय में पहुंच गए।

अंगराबाड़ी या अमरेश्वर धाम, झारखंड के खूंटी के पास स्थित, एक मंदिरों का समूह है जो शिव जी को समर्पित है। मंदिर का निर्माण और रखरखाव अमरेश्वर धाम प्रबंध समिति द्वारा किया जाता है। ऋषि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा इसका नाम बदलकर अमरेश्वर धाम कर दिया गया। एक मान्यता है कि यह शिवलिंग आम के पेड़ के नीचे अवस्थित है, इसलिए इसका नाम आमरेश्वर धाम पड़ा। रांची से खूंटी रोड या खूंटी-तोरपा रोड NH-20 होकर यहाँ पंहुचा जा सकता है। झारखंड की राजधानी रांची से लगभग ४५-५० किमी दूरी पर यह स्थित है।

इस मंदिर के पीछे एक कहानी छुपी है। रांची से सिमडेगा जाना एक ज़माने में जीवट का काम थे । कई जगह पूल नहीं थे। गाड़ियों को नदी नालों पर बने डायवर्सन होकर जाना पड़ता था। एक ही बस चलती था । और कितना समय लगता होगा इसका अनुमान आप लगा सकते है। यदि बस ख़राब हो गयी तो भागवान बचाये। कहानी है कि एक बार बस ख़राब हो गय। बस मालिक को रात में लघु शंका लगी तो वह पास के कुछ झाड़ियों में चले गए। उस रात उसे सपना आया कि उन झाड़ियों को साफ़ करवाओ। जब झाड़ियां साफ करवाई गयी तो आम के पेड़ के नीचे एक श्यंभू शिव लिंग दिखा। बस मालिक ने वहां पूजा अर्चना की । उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब बस स्टार्ट हो गयी। इसके बाद बस समय पर पहुंचने भी लगा। लोगों की आस्था जगी और एक मंदिर बन गयी। आम को पेड़ को कोई हानि नहीं पहुचाई गयी। इसे चारो तरफ से घेर दिया गया।
कालांन्तर में मंदिर स्थल में गणेश, राम, सीता और हनुमान सहित कई अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां और मंदिर भी स्थापित हो गयी । सावन के महीने में बड़ी संख्या में कावरियों यहाँ जल अर्पित करने आते है। महा शिवरात्रि के दिन भी यहां शिव भक्तों की भारी भीड़ होती है।

रजरप्पा रजरप्पा के पास भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर मां छिन्नमस्तिका का मंदिर स्थित है।इस मंदिर को 'प्रचंडचंडिके' के रूप से भी जाना जाता है। मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे एक शिलाखंड पर दक्षिण की ओर रुख किए माता छिन्नमस्तिके का दिव्य रूप अंकित है।पुराणों में रजरप्पा मंदिर का उल्लेख सिद्धपीठ के रूप में मिलता है। मंदिर के निर्माण काल के बारे में पुरातात्विक विशेषज्ञों में मतभेद है। कई विशेषज्ञ का कहना है कि इस मंदिर को महाभारतकालीन हैं। यहाँ कई मंदिर हैं जिनमें 'अष्टामंत्रिका' और 'दक्षिण काली' प्रमुख हैं। यहां आने से तंत्र साधना का अहसास होता है। यही कारण है कि असम का कामाख्या मंदिर और रजरप्पा के छिन्नमस्तिका मंदिर में समानता दिखाई देती है।मंगलवार और शनिवार को रजरप्पा मंदिर में विशेष पूजा होती है।

मुख्य मंदिर


मंदिर , दामोदर नदी का एक दृश्य , मंदिर में स्थित बहूत बड़ा शिव लिंग

क्यों काट लिया भगवती ने अपना सर ? एक बार मां पार्वती अपनी दो सहचरियों के साथ भ्रमण पर निकलीं. इस दौरान माता पार्वती की रास्ते में मंदाकिनी नदी में स्नान करने की इच्छा हुई. मां पार्वती ने अपनी सहचारियों से भी स्नान करने को कहा, परंतु दोनों ने स्नान करने से इनकार कर दिया और कहा कि उनको भूख लग रही है.इस पर माता पार्वती ने उनको कुछ देर आराम करने को कहा और स्नान करने चली गईं. मां काफी देर तक स्नान करती रहीं, इसी बीच दोनों सहचरी कहती रही कि उनको भूख लग रही है. लेकिन माता ने दोनों की बात को अनसुना कर दिया.इस पर दोनों सहचरियों ने माता से कहा कि मां तो अपने शिशु का पेट भरने के लिए अपना रक्त तक पिला देती है. परंतु आप हमारी भूख के लिए कुछ भी नहीं कर रही हैं. यह बात सुनकर मां पार्वती को क्रोध आ जाता है और नदी से बाहर आकर खड्ग का आह्वान करके अपने सिर को काट देती हैं, जिससे उनके धड़ से रक्त की तीन धाराएं निकलती हैं. दो धाराएं दोनों सहचरों के मुख में और एक भगवती ने अपने मुख में डाल लिया। बाद में भगवान शिव कबंध का रूप धारण कर देवी के प्रचंड रूप को शांत करते हैं. तब से मां पार्वती के इस रूप को छिन्नमस्ता माता कहा जाने लगा।
हम लोग कई बार रजरप्पा जा चुके है। पिछली बार २०१८ में गए था और एक VIP साथ थे इसलिए मंदिर पूरा खाली कर के पूजा करने का अवसर भी मिला। सबसे पहले १९६६ में गया था । मेरी स्व बड़ी दीदी का ससुराल नज़दीक के शहर गोला में है। मै और मेरे बड़े फुफुरे भाई मुन्ना भैया शादी के बाद पुछारी (पगफेरे) के लिए गोला गए थे। दीदी के ससुर जी अपने समय के पुलिस इंस्पेक्टर थे और काफी रौब उनका उस क्षेत्र में था। उन्होंने छिन्मस्तिका के दर्शन पूजा और पाठा (बकरी के बच्चा ) की बलि के लिए चलने को कहा। हम स्टेट ट्रांसपोर्ट के बस से गए थे , एक बस जाती थी और शाम तक लौट जाती थे। गोला के तरफ से जाने पर भैरवी (भेरा) नदी के उस पार तक ही तब जा पाए और नदी को पार कर मंदिर तक गए।


छिन्नमस्तिका मंदिर ६० के दशक में

तब रजरप्पा प्रजेक्ट बना नहीं थे इसलिए भैरवी के पार यानि चितरपर के तरफ से कोई रास्ता ही नहीं था। अब रजरप्पा जाने का रास्ता चितरपुर हो कार ही है और इस एक ट्रिप को छोड़ हम चितरपर हो कर ही गए है। कोई मेहमान आने से यह सबसे नज़दीक और सुविधा जानका आउटिंग होता है। रांची से सिर्फ ७०-८० किलोमीटर पार है रजरप्पा। मेरी पोती का मुंडन भी रजरप्पा में ही हुआ।
बिहार के धर्मस्थान अगले भाग में
क्रमशः

Monday, August 21, 2023

चंडीगढ़ , शिमला, कुफरी #यात्रा २०१४

शिमला : हिल स्टेशन कहते ही जो पहला नाम ज़ेहन में अता है वो है शिमला। हिमांचल प्रदेश की राजधानी। दिल्ली के बाहार अकेली जगह जहां राष्ट्रपति भवन है। पहली बार मैं १९६८ में गया था कॉलेज ट्रिप में । रिटायर होने के पहले चंडीगढ़ जाने का मौका ऑफिस के काम से मिल जाता था पर इतना टाइम नहीं होता था की शिमला जा सके। २०१४ में चंडीगढ़ में मेरी छोटी बहन संगीता का गृहप्रवेश था तो हम दोनों अपने ६ साल के पोते सिद्धांत या सिड के साथ चल पड़े। पोते को बर्फबारी देखनी थी इसलिए शिमला और कुफरी भी चला गया। सबसे पहले 1968 में चडीगढ़ - शिमला आया था कॉलेज ट्रिप में। हमारे सिविल इंजीनियर मित्र कश्मीर भी गए थे, तब नहीं गए तो अब तक कश्मीर नहीं जा पाए है । तब (१९६८) के चंडीगढ़ के बारे में मैंने एक ब्लॉग में लिखा था "हमारा अगला स्टॉप था चंडीगढ़ । पंजाब में जब एक जगह ट्रेन रुकी तो हम लस्सी पीने से अपने तो नहीं रोक पाए। हाथ भर लम्बे गिलास को तो हम देखते रह गए । चडीगढ़ के बारे में पढ़ रखा था । यह भारत के पहला पूरी तरह प्लान्ड शहर था । इसके आर्किटेक्ट थे Le Carbusier । चंडीगढ़ भारत का एक अद्भुत शहर है। यह शहर किसी भी राज्य का हिस्सा नहीं माना जाता। यह शहर भारत का केंद्र शासित प्रदेश है। इस शहर का नियंत्रण भारत सरकार के हाथों में है। इस शहर पर किसी भी राज्य का अधिकार नहीं। इस शहर की खास बात यह है की यह शहर पंजाब और हरियाणा दोनों राज्य की राजधानी है पर किसी भी राज्य का हिस्सा नहीं है । हम सुखना लेक रॉक गार्डन और रोज गार्डन देखने गाये । विधान सभा भवन देखा और एक फिल्म भी देखी ।"
पिछली बार चंडीगढ़ २००९ में आया था। दिल्ली से शताब्दी एक्सप्रेस से । एक छोटी लड़की शायद दो साल की होगी को मुझमे अपने नाना जैसा क्या दिखा मुझे नाना कह कर बुलाने लगी ।

ट्रेन में मिली नातिन , हमारा पोता और सहयात्री सिद्धांत

तब भी चंडीगढ़ के प्रमुख दर्शनीय जगहे देख ली थ। एक होटल में रुके थे - किस सेक्टर में याद नहीं। मुझे मंडी गोविंदगढ़ जाना था एक पेपर प्रेजेंट करना थ। लौटने पर स्टेशन पर कबूतरों का कब्ज़ा देखा। रेलवे ने प्लेटफार्म के ऊपर नेट लगा रखा था वे रुकने वाले नहीं थे। कब आपके सर पर टपका दे -- सभी बचने के कोशिश में थे।
२०१४ में हम अपने ६ वर्षीया पोता के साथ चंडीगढ़ शिमला घूमने निकले थे। हमने पुरे दिन के लिए एक टैक्सी कर ली जिसने हमें करीब करीब सारी जगहे दिखा दी। रॉक गार्डन में सिद्धांत को बहुत मजा आया। सबसे कम मजा उसे रोज गार्डन में आया। यह गार्डन श्री श्री नेक चंद नेमी द्वारा बनवाया गया। छोटे स्तर पर बनाया गया यह गार्डन अब ४० एकड़ में फैला है। यह गार्डन कोई फूल पौधों का उद्यान नहीं है, यह "best from waste " के सिद्धांत पर बना उद्यान है। कूड़े कचरे जैसे बोतल , प्लास्टिक , टूटे फूटे बिडलिंग मटेरियल जैसे टूटे टाइल्स इत्यादि चीज़ो से बना है। मुर्तिया झरने और बहुत कुछ। अविस्मरणीय जगह थी।

रॉक गार्डन , चंडीगढ़,सुखना लेक

हम सुखना लेक , म्यूजियम और रोज गार्डन भी गए।



UNESCO सिवालिक एक्सप्रेस - कालका शिमला हिल रेलवे, शिमला प्रसिद्द चर्च

दो दिन चंडीगढ़ घूमने के बाद हमलोग कालका शिमला हेरिटेज रेलवे से शिमला के लिए रवाना हो गए। चेयर कार से । कुर्सी अलग अलग घुमने वाली थी। आप ट्रेन के डायरेक्शन या उसके विपरीत कुर्सी कर सकते थे। ट्रेन लगभग खाली थी। हम एक एक विन्डो सीट ले कर चल पड़े। दोनों तरफ पहाड़ की खूबसूरती देखते देखते सफर करने लगे। फोटो भी खींचे। एक स्टेशन आया बरोग। पता चला स्टेशन के बाद आने वाला टनेल न० ३३ को बनाने के लिए खुदाई दोनों तरफ से की गई पर टनेल मैच नहीं हुई। टनेल बनाने वाले अंग्रेज इंजीनियर बरोग ने शर्मिंदगी में खुदकुशी कर ली पर अपना नाम इस स्टेशन और जगह को दे गये। यह इस मार्गका सबसे लंबा टनेल है १ की०मी० से भी ज्यादा।
शिमला पहुंच कर हम लक्करबाज़ार होते एक होटल पहुंच गए या टैक्सी वाले ने पंहुचा दिया। होटल पसंद आ गया इसलिए हम रुक गए। मार्च का महीना था पर ठंढ बहुत थी । बेड सर्कुलर था। हम मॉल रोड तक पहुंच गए कई सीढिया चढ़ कर और रोड पर चल कर। थक गए। किसी खाने की जगह खोजने लगे । ऐसी जगह जहां बैठा जा सके और खाना ज्यादा तीखा न हो। आखिर ऐसी जगह मिल गई। सभी के पसंद का खाना आर्डर किया। अगले दिन हम घूमने निकले कुफरी। सिद्धांत की बर्फ देखना था। पता चला बर्फ तो है , कुछ दिनों काफी पड़ी थी। हम चल पड़े। एक जगह बहुत अच्छा व्यू था कुछ देर रुक कर जब आगे बढ़े याक के साथ फोटो खींचाते लोग दिखे। सिद्धांत को एक पर बैठ कर फोटो खींचना चाह रहा था। उसे डर लग रहा था। उसको मना नहीं पाए तो एक के साथ उसका फोटो लिया बाद में इस पर हमने एक बाल गीत भी लिखा था ।



याक देखने पहुंचा कुफ्री सिद्धि दादा-दादी संग।
याक बड़ा था सजा धजा था, देख रह गया दंग।
मान नहीं सकता हूँ मैं कि यह है एक गाय।
इतने सारे बाल है इसके, काया भीमकाय।
दादू ने कहा दादी से, करके कुछ उपाय।
पीते है याक दूध की एक दो कप चाय।
रुकिए पहले ले ले फोटो सिद्धि को
याक के ऊपर देते है चढ़ाय ।
डरते क्यों हो यह हैं बस एक गाय।
कुछ न करेगा इसीको कहते चंवरी गाय ।
डर गया सिद्धि तब छोटा था।
फिर फोटो लिया यूँ ही खिचाय।


कुफरी में पिछली बार एक स्कीइंग क्लब तक गए थे। स्की ट्रैक पर फिसले थे । बर्फ कोट के में चले गए और जब क्लब में खाना लगे तब जेब से पानी टपकने लगा। इस बार घोड़े वालों ने घेर लिया। पता नहीं कहा ले कर जाते। बहुत मुश्किल से पीछा छुड़ाया क्योंकि सिड और उसकी दादी घोड़े पर बैठना नही चाहते थे।


शिमला होटल के पास कुली के साथ १९६८ , कुफ्री की वादियां १९६८ - BW photo coloured by me using special colour and brush

हम लोग स्नो पर चल कर एक ज़ू गया जहाँ कुछ हिमालयन जानवर रखे गए थे। बर्फ देखने का सिद्धांत का सपना पूरा हो गया। दादी पोता के बीच स्नो फेकने का गेम शुरू हो गया। हमारी टैक्सी ललित रेस्टोरेंट तक आई। हमने रेस्टोरेंट में कुछ स्नैक्स लिया और चाय भी पी । फिर हम लौट गए और जाखू गए।


कुफ्री - सिद्धांत दादी के साथ बर्फीले रास्ते पर , जाखू हनुमान मंदिर

एक लाठी किराये पर ले कर ऊपर मंदिर तक गए। बंदरो का बहुत हुजूम यहाँ हमेशा रहता है। हमारे सामने एक टूरिस्ट का मोबाइल ले कर एक बन्दर पेड़ पर चढ़ गया। मंदिर के पुरोहित के मदद से ही बन्दर मोबाइल लौटा गया।
हम जाखू के बाद शिमला स्टेशन गए और हेरिटेज ट्रैन से कालका लौट आये और एक दिन चंडीगढ़ में रुके। संगीता के छोटा डौगी इतना पोजेसिव था की सिद्धांत को उसके पास देख कर भोकने लगा । सिद्धांत एकदम डर गया और तुरंत चलने की ज़िद करने लगा। खैर डौगी को दरबे में बंद किया गया तब की वह सो पाया। अगले दिन हम ट्रेन से दिल्ली लौट आये।

आप स्वस्थ्य रहे , सानंद रहे और यात्रायें करते रहे। कुछ और यात्रायें अगले ब्लॉग में।

Wednesday, August 16, 2023

१९९३ - अमेरिका - कनाडा - की पहली यात्रा

अमेरिका मैं आ रहा हूँ

यूँ तो मैंने १९८३ में एक यात्रा जर्मनी का कर चुका था पर USA की यह मेरी पहली यात्रा थी। USA जाना अब सुलभ लगता है वे १० वर्ष का वीसा भी दे देते है पर १९९३ में यह इतना भी आसान नहीं था। मुझे ४ बार USA जाने का मौका मिला है, और पहला मौका मिला था १९९३ में। तब वीसा सिर्फ १ महीने का मिला था और फॉरेन एक्सचेंज भी RBI रूल्स के अनुसार मिलता था। भारतीय रूपये भी दूसरे देश ले जाना मना था। डॉलर हम लोग ट्रैवलर चेक में ले गए थे । हमारी भूत पूर्व कंपनी एक टेक्निकल COSULTANT है - और इस्पात के कारखानों की कंसल्टेंसी करती है । पुराने मिल उपकरणों के मूल्यांकन और नवीनीकरण के साथ-साथ नई आपूर्ति के लिए विक्रेताओं का पता लगाने के लिए मार्च 1993 में संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा की यात्रा के लिए मेरी कंपनी और और COATED SHEET बनाने का कोशिश में पुणे की कंपनी की संयुक्त टीम का मैं भी हिस्सा था। और मझे (पूर्ववर्ती पूर्वी) जर्मन की एक कंपनी और मेरी कंपनी का संयुक्त उद्यम के लिए के मूल्यांकन के लिए स्वतंत्र रूप से बर्लिन जाने की भी आवश्यकता थी। कैमरा नहीं ले जा सकते थे कस्टम के डर से। उस बार एक यूज़ एंड थ्रो कैमरा ख़रीदा और उसीसे कुछ फोटो खींचे। एक मिनोल्टा या शायद चिनोन कैमरा ख़रीदा था लौटते वक्त।


World Trade Centre- Cuffe Parade, Mumbai - then our office, Hotel Citizen, Juhu

१९९३ मुंबई बम विस्फोट

हम मुंबई पहुंचे और १९९३ के कुख्यात बम विस्फोट के ठीक दो दिन बाद रविवार 14 मार्च को मुंबई पंहुचा। हम जुहू बीच के पास होटल सिटीजन में रूक गए । सोमवार 15 मार्च होटल सिटीजन से कफ परेड, मुंबई में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में हमारे कार्यालय तक यात्रा करते हुए हम माहिम और एयर इंडिया बिल्डिंग से गुजरे। और तबाही स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी। मुंबई बमब्लास्ट के सिर्फ दो दिन बाद अपने पैरों पर खड़ी थी और आगे बढ़ रही थी । यह उल्लेखनीय बात थी। हमने मेसर्स श्री प्रीकोटेड लिमिटेड के MD अजमेरा साहेब से उनके फोर्ट कार्यालय में मुलाकात की और अंततः औपचारिकताएं पूरी होने के बाद शनिवार 19-3-1993 को बैंक में आधे दिन काम करके विदेशी मुद्रा प्राप्त की - हमारी कंपनी वालों का बैंक वालों से अच्छी जान पहचान काम आई। अपनी कंपनी के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर आफिस दो दिन जाने के क्रम में एक बात समझ आ गयी मुंबई में शाम को लौटने की गजब की जल्दी रहती है ईन्हें । सब को जिस लोकल से लौटना है वह निश्चित है। छूट गई तो घर दो घंटे लेट पहुंचेंगे। खैर अगले दिन यूएसए के लिए रवाना हो गए। हम यूके, यूएसए, कनाडा और जर्मनी के लिए वीज़ा स्टांप के साथ बॉम्बे से निकले। हमारा टिकट डेल्टा एयरलाइन्स पर थे पर मुंबई से लंदन तक एयर इंडिया की फ्लाइट थी। पिछली बार क्लब क्लास / बिज़नेस क्लास से गया था लेकिन अब तक गवर्नमेंट का नियम बदल गया था और हमें इस बार इकॉनमी क्लास में ही जाना पड़ा। हम लोग पांच लोग थे और ग्राहक के दो लोग जिनमे एक अजमेरा के पुत्र थे। मेरे पास ब्रिटेन का वैध वीज़ा था लेकिन समय की कमी के कारण मैं हीथ्रो से बाहर नहीं जा सका।
अमेरिका पहुंच गया
लंदन से हम न्यूयोर्क गए और वहां फ्लाइट चेंज कर पिट्सबर्ग पहुच गए । पिट्सबर्ग हमारा फाइनल गंतव्य था। न्यूयोर्क में जब सिक्योरिटी से गुज़र रहा था तब पता चला US में सिक्योरिटी चेक कैसे होती है। मेटल डिटेक्टर पोस्ट से गुजरा हर बार मेटल डिटेक्टर की आवाज़ आ जाती। कोइन्स, चाभी, वॉलेट जूते सभी उतार दिया पर फिर भी मेटल डिटेक्टर से आवाज आती रही। अंत में जब एयरलाइन्स में दी गयी फॉयल में लिपटा चॉकलेट निकाल कर ट्रे में रख दिया तब मेटल डिटेक्टर से आवाज़ बंद हो गयी । पर सिक्योरिटी वालो ने कभी हाथ नहीं लगाया। हमनें अपने देश में बेसिक एयर पोर्ट ही देखें थे। यूरोप के भी तीन एयरपोर्ट १९९३ तक देख चुका था पर अमेरिका के एयरपोर्ट Ultimate थे। पहली बार पूरे एयरपोर्ट में मोटा कार्पेट बिछा देखा। यह एक बात युरोप से अलग दिखी। अब तो बहुत सारे एयरपोर्ट में कार्पेट बिछे हैं अपने T3 में भी, पर तब ऐसा नहीं था। हमें एक ट्रेन से जाना पड़ा एराईवल तक। हमारे होटल कम्फर्ट सूट्स की वान हमें लेने आई थी ओर। हम १०-१५ मि० में होटल पहुंच गये। होटल का नाम था कम्फर्ट सुइट्स । नज़दीक में एक माल था शायद K -MART था। इस बार ब्लॉग लिखने के पहले मैंने इसे गूगल मैप पर खोजना चाहा तो मिला नहीं। थोड़ा खोज बीन पर पता चला ३० साल पहले अमेरिका में २००० K -MART थे पर अब सिर्फ ३ ही K -MART चालू है। अभी जो २ मॉल हमारे होटल के नज़दीक था वो है मॉल at रॉबिंसन या वालमार्ट । हम इसी में से कोई एक जगह जाते रहे होंगे - कुछ खरीदने या खाने के लिए। हमारे होटल से इस मॉल और एयरपोर्ट के लिए शटल सर्विस थी। हम इसीसे मॉल चले जाते। लौटने पर हमने सभी को ड्राइवर को १-५ डॉलर का टिप देते देखा थ। फिर हमने भी टिप देना शुरू किया। हम लोगों में से कोई एक टिप करने लगे। हमारे होटल में कोई रेस्टॉरंरट नहीं था सिर्फ सुबह complementary ब्रेकफास्ट होटल के रिसेप्शन एरिया में बने एक काउंटर पर मिल जाता था। एक पिज़्ज़ा हट , एक डंकिन डोनट्स भी पास था। कुछ दुकाने पास वाले गैस स्टेशन के आस पास थे। लंच तो जहाँ भी ऑफिस के काम से जाते वही हो जाता। डिनर के लिए निकलना पड़ता। पहली बार पिज़्ज़ा तभी खाया था। सबसे के लिए एक एक माँगा लिया और फिर सभी से पूरा खाया न गया। एक बार हमारे एक सीनियर ने कहाँ सिन्हा खाना लेन जारहो हो तो डोनट्स मेरे लिए ले आना। मैंने डोनट्स के पैकेट्स खरीद लाया। उन्होंने खा भी लिया। तब देखा पैकेट पर उपयोग की गई सामग्री का लिस्ट था। उसमे एक था बीफ- चीज़ । पता नहीं यह क्या था। हमने अपने शाकाहारी सीनियर को यह नहीं बताया की इसमें बीफ चीज़ था। अजमेरा जी ने तो एक सूटकेस भर कर खाखरा और अन्य गुजरती खाना लाया था और उन्होंने कभी बाहर का खाना नहीं खाया। एक रात तो उन्होंने सभी को अपने साथ लाये खानों का डिनर करवाया।


With NELCO-AEG persons, Downtown pittsburgh, Wean United Office

ओम शर्मा
पिट्सबर्ग में एक सज्जन थे ओम शर्मा - उन्होंने US में एक कंपनी खोल रखी थी शर्मन इंटरनेशन। उनसे हमारे कुछ टीममेट्स से पुरानी जानपहचान थी । एक दिन शायद शनिवार को वे हमसे मिलने आये। उन्होंने हमारे साथ होटल की लॉबी में नाश्ता किया और फिर हमलोग उनके साथ कुछ सप्लायर से भेंट करवाई और कुछ फैक्ट्री भी देखने गए। वह फिर आये शनिवार को और उनके साथ भव्य वेकटेश्वर मंदिर का दौरा किया। मुझे आज भी याद है इडली जिसे हमने मंदिर में प्रसाद के रूप में खाया था। ओम शर्मा एक बार रास्ता भटक गए थे और शाम हो गया था। तब गूगल मैप तो था नहीं एक बार में पूछ कर और रोड मैप के सहारे हम सही रास्ता ले पाए। ओम शर्मा के हाथ में हमने पहली बार एक ईंट की तरह का सेल्यूलर फ़ोन देखा - १९९३ में ! कुछ नई टेक्नोलॉजी हमें रोज़ देखने को मिल रही थी। कार्ड वाली चाभी जिससे होटल का रूम और पीछे वाला गेट खुलता था। सेटअप बॉक्स बॉक्स जैसा कुछ थे जो टीवी पर सिर्फ वही चैनल देखने देता जिसका पैसा भरा गया हो। उस समय हमारे देश में ऐसी व्यवस्था नहीं थी। एक और मुलाकात जो याद है वो है श्री स्वैन (पूर्व मेकोनिनन) और परिवार के साथ। वे हमारे श्री पीसी साहू से मिलने के लिए 600 किमी से अधिक की दूरी तय करके आए - वे चाहते थे कि हम अमेरिका में पैदा हुए उनके छोटे बेटे को भारत लौटने के लिए सहमत होने के लिए मनाएं। पता नहीं वह लौटा या वही है। बड़े बच्चे ने इंडिया देखा था और वापस जाने के लिए राजी था पर छोटे को इंडिया आना पसंद नहीं था।

ओम शर्मा हमारे होटल में , वेंकटेश्वर मंदिर पिट्सबर्ग

एक घटना जो याद है वह है डाउनटाउन पिट्सबर्ग की है। हमारे एक सीनियर मुंशी साहेब तब USA की किसी कंपनी में कार्यरत थे। उन्होंने अपना पता अमेरिका में हमारे सहयोगी कंपनी वीन यूनाइटेड में बता रखा था। जब हम वीन यूनाइटेड के ऑफिस गए तब बातों ही बातों मुंशी की बात चली और उनसे फ़ोन पर बात हो गयी। पता चला उनका अपार्टमेंट नजदीक ही है। बस हम पैदल ही चल पड़े। एक पुल क्रॉस करने के बाद हम ऐसे लोकैलिटी में आ गए जहां थोड़ा डर सा लगा। हम थोड़ा भटक गए थे। खैर हम खोजते खोजते मुंशी साहेब के अपार्टमेंट पहुंच गए। उनकी परमिशन पर दरवाज़ा खुला और हम उनके साथ चाय पी कर होटल वापस आ गाये।


ऑहियो ब्रिज - डाउनटाउन पिट्सबर्ग

टोरंटो
हमें मेटल रोलिंग मिल में प्रयोग आने वाले लोड सेल के लिए टोरंटो यानि कनाडा जाना था। हम जब जहाज़ से वहां जा रहे थे तब नीचे कुछ झील दिख रही थी। उसपर आइस के टुकड़े तैर रहे थे। बहुत ही अच्छा लगा। टोरंटो उतरने पर इमीग्रेशन वालों को पता नहीं क्या शक हुआ की उन्होंने केबिन में बुला कर बहुत पूछ ताछ की। टोरंटो में हम किसी पांच तारा होटल में रुके क्योंकि हम वहां केल्क कंपनी के गेस्ट थे। अगले दीं होटल से हमे उनके ऑफिस ले जाया गया जहाँ मीटिंग हुयी। फिर सिर्फ आधा दिन बचा था । निआग्रा जो सिर्फ ३० किलोमीटर दूर हम नहीं जा सके। हम डाउनटाउन और CNN टावर (तब का मनुष्य निर्मित सबसे ऊँचा स्ट्रक्चर) देख आये। लिफ्ट का ६० KMPH का स्पीड और ऊपरी तल्ले का हवा के झोकें से हिलना हमें हिला गया। अगले दिन हम पिट्सबर्ग लौट आए मुझे छोड़ बाकि टीम मुंबई/बॉम्बे लौट आई। मुझे तो एक अन्य कार्य के लिए लंदन और फ्रैंकफर्ट होते हुए बर्लिन की यात्रा करनी थी ।


CNN टावर का सबसे ऊपरी तल्ला , KELK ऑफिस

फ़्रंकफ़र्ट
हम लोग पिट्सबर्ग से न्यूयोर्क होते लंदन पहुंचे । वहां हमारी टीम इंडिया लौट आई और मैंने फ्रैंकफर्ट के लिए ब्रिटिश एयरवेज़ फ्लाइट पकड़ी। पर उड़ान लेते समय, एयरलाइन के कर्मचारियों ने मेरे हाथ के सामान को पंजीकृत बैग के रूप में रखने पर जोर दिया क्योंकि यह बहुत बड़ा था, और इसलिए मैं खाली हाथ फ्रैंकफर्ट पहुँच गया। समय बर्बाद करने के लिए मैं कुछ बार फ्रैंकफर्ट पर एक टर्मिनल से दूसरे टर्मिनल कई बार गया और विंडो शॉपिंग की मेरे इस तरह घूमने पर एक सुरक्षा अधिकारी का ध्यान गया, जिसे संदेह हुआ, इसलिए मेरे हाथ में कोई सामान नहीं था और मैं एक वास्तविक यात्री की तरह नहीं दिख रहा था। वह मेरी पहचान सुनिश्चित करने के लिए मुझे लुफ्थांसा काउंटर पर ले गया। जब उन्होंने कन्फर्म किया तभी उस सुरक्षा कर्मी ने मुझे जाने दिया।
बर्लिन की मजेदार घटनाएं
फ़्रंकफ़र्ट में कई घंटे गुजरने ओर लुफ्थांसा की मेहमाननवाज़ी के बाद हमने अपनी बर्लिन के फ्लाइट पकड़ी। एक और दिलचस्प घटना तब घटी जब मैं रात 10 बजे बर्लिन (Tegel) पहुंचा। योजना के अनुसार एल्प्रो एजी - जो भूतपूर्व पूर्वी जर्मनी की कंपनी है को बर्लिन हवाई अड्डे पर मुझे रिसीव करना था और मेरे लिए बुक किये गये होटल तक ले जाना था। फैक्स के अनुसार मुझे उनके यहां 10 बजे PM को पहुंचना था। एल्प्रो ने इसे सुबह 10 बजे AM के रूप में लिया और जो आया उसने इंतजार किया और सुबह चला गया। मुझे होटल का नाम और अन्य विवरण भी नहीं पता था। मैंने यात्रियों के लिए उपलब्ध सार्वजनिक संबोधन प्रणाली पर कई घोषणाएँ कीं। इसका कोई नतीजा नहीं निकला और फिर मैंने देखा वहां होटल बुकिंग के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड था , होटलों के नाम और रूम टैरिफ के साथ लाल हरी बत्ती से पता चलता था की रूम उपलब्ध हैं या नहीं। मैंने खुद होटल बुक किया और टैक्सी लेकर चला गया। होटल खुद बुक करने का मतलब था मेरे डॉलर खर्च हो गए।


मेरे होटल के आस पास - बर्लिन (पश्चिमी साइड), टीवी टावर - बर्लिन (पूर्वी साइड )

मेरा होटल पश्चिम बर्लिन में था। यह सेवानिवृत्त लोगों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए मोहल्ले में स्थित था। वहां के ग्रोसरी शॉप से एक बुजुर्ग महिला की किराने के सामान शॉपिंग ट्रॉली बहुत मुश्किल से ले जा रही थी मैंने मदद करना चाहा तो मुझे दरकिनार कर दिया गया। उनकी खुद्दारी देख अच्छा लगा। इस होटल में मेरा रूम एक दिन केलिए खाली था और अगले दिन थोड़ा महंगे रूम में शिफ्ट करना पड़ा।


बर्लिन को पूर्वी और पश्चिमी भाग में बांटने वाली बदनाम दीवार, एलप्रो AG बर्लिन की फैक्ट्री

पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी 3-4 साल पहले एक हो गया था लेकिन पूर्वी और पश्चिमी बर्लिन के बीच अंतर अभी भी दिखाई दे रहा था। पश्चिम की ओर बर्लिन में समृद्धि और पूर्व की ओर बर्लिन में लंबे समय तक कम्युनिस्ट सरकार का प्रभाव स्पष्ट था। बर्लिन की दीवार यानी बर्लिनर माउर आज भी पर्यटकों के आकर्षण के रूप में मौजूद था । Brandenburg Gate गेट भी। दो दिन वहां रुके और दोनों दिन जर्मनों ने हमें पिज़्ज़ा या कोई वेस्टर्न खाना ही खिलाया। फिर मुझे एक हिंदुस्तानी उस कमपनी में मिला हमने प्रोग्राम बनाया की हम उन्हें एक दिन हिंदुस्तानी खाना खिलाएंगे। उसे पता था की भारतियों के एक स्ट्रीट ही है जिसमे शेरे पंजाब और दिल्ली दरबार जैसे रेस्टोरेंट थे। हमने जर्मनों को लज़ीज़ हिन्दोस्तानी खाना खिलाया।
फ्रैंकफर्ट होते हुए मेरी वापसी यात्रा के साथ दो सप्ताह समाप्त हो गए। अतिरिक्त सामान का कुछ मुद्दा था क्योंकि अमेरिका में फ्री BAGAGE था 65 किलोग्राम था और यूरोप से यह 20 किलोग्राम था। हालाँकि जर्मन भाषी एल्प्रो लोगों ने मेरी मदद की और हमें कोई समस्या नहीं हुई ।ट्रिप में आखिरी अड़चन के तौर पर जर्मनी में खरीदी गई वीसीपी के लिए मुंबई में कस्टम ड्यूटी चुकानी पड़ी।

दो को छोड़ सभी फोटो पुराने कैमरा से खींचे गए फोटो को स्कैन करके डाला गया है अतः क्वालिटी अच्छी नहीं है।

Monday, August 14, 2023

उत्तराखंड यात्रा जून २०२३


ग्रेटर नॉएडा , देव प्रयाग

उत्तराखंड यात्रा
विवाह के ५० वें वर्षगांठ को मानाने को हमने पहले सोचा एक पार्टी कर ले - जैसी परम्परा है , पर तीन जगहों पे बिखरे परिवार में यह पार्टी कहाँ की जाय। किसीको यदि आमंत्रित करना भूल जाये तो उनकी उलाहना भी सुननी पड़ सकती थी। आखिर हमने तीर्थ यात्रा पर जाने का निर्णय लिया। पूरे परिवार - बच्चों सहित। कहाँ जाये ? केदारनाथ ट्रेक हम सिनियर से संभव न होता। पत्नी तो घोड़े पर भी चढ नहीं सकती । अतः केदारनाथ हमारे लिस्ट से बाहर हो गया, कभी बाद में सिर्फ हम दोनों हेलीकाप्टर से जाएंगे सोच कर अपना लक्ष्य त्रियुगीनारायण रखा - आखिर यहीं शिव और पार्वती का विवाह जो हुआ था । और दो एक कार और एस यू वी रिज़र्व कर १६ जून हम ९ लोग Noida Extension से निकले और हरिद्वार की तरफ रूख किया। पहला स्टॉप था मुज़फ्फर नगर के पास शिवा ढाबा। आश्चर्य था बहुत सारे ढ़ाबो का नाम यही था। एक और प्रसिद्ध ढ़ाबा चेन था जैन सिकंजी। आशा थी यहाँ से ग्रीन परमिट मिल जायेगा जो पहाड़ो में जाने के लिए जरूरी थे। अफ़सोस यहाँ परमिट नहीं बन सका और परांठे और भी कुछ चीजें खाई। सर्विस धीमा था। अगला स्टॉप रूड़की का सब RTO ऑफिस था। खैर खोजते और दो घंटे बर्बाद करने के बाद एक परमिट मिला हिल में गाड़ी चलाने का।

हरिद्वार पहुँचते पहुंचते दोपहर हो गई। CNG का आखिरी पंप यही था। दोनों गाड़ियों में सीएनजी भरवां कर हम निकल पड़े । हम सोच रहे थे ऋषिकेश मैन रोड - लक्मण झूला होते आगे जाना है पर हम एक barrage - राजाजी नेशनल फारेस्ट- जिसे न जाने क्यों चिला रोड कहते हैं- हो कर गए। रिशिकेश से आगे एक ढ़ाबे में चावल, रोटी और मैगी का लंच किया , ढाबे के हिसाब से खाना महंगा था । मनोरम दृश्यों का आनन्द लेते आगे बढ़े। अगला स्टाप था। देवप्रयाग। भागीरथी का नीले जल और अलकनंदा का मटमैला पानी मिलाकर यहीं से गंगा बन कर बढ़ती है। हमने ऊपर से ही देखा। श्रीनगर के धारी देवी मंदिर पहुंचते-पहुंचते संध्या हो चली थी मंदिर में विराजमान धारी देवी चारधाम और तीर्थयात्रियों की रक्षा करती है। मंदिर के डूबने पर नया मंदिर थोड़ा ऊचा कर बनाया गया है। रोड से मंदिर तक जाने के लिए बहुत सारी सीढिया है। हमें वहीं एक दुकान से चिप्स ख़रीदे और चाय भी पी। अँधेरा हो गया था और आगे सभी कैमरे बंद हो गए।


1. धारी देवी , 2. फाटा से सोनप्रयाग के बीच

धारी देवी से आगे हम सुर्यास्त के बाद रूद्र प्रयाग (जिला मुख्यालय और बड़ा शहर) अगस्त्य मुनि (रहने के काफी विकल्प) और गुप्त काशी (क्षतिग्रस्त सड़के) होते फाटा पहुंचे। मैंने यहीं होटल विजय में तीन कमरे पहले ही बुक कर लिये थे। होटल से त्रियुगीनारायण एक डेढ़ घंटे की दूरी पर था। मंशा थी सुबह सुबह मंदिर पहुंच कर दर्शन करेंगे। होटल सड़क पर ही हो ऐसा भी देख लिया था। पर यात्रा में जैसा सोचो होता कहां है ? होटल के entrance में छोटी चढ़ाई सी थी। हम SENIORS के लिए कठिन, खास कर अंधेरे में। मैं चढ़ गया, फिर सोचा सामने के शिवाय होटल में कमरे देख लेता हूं। लेकिन तब तक पत्नी भी सहारा लेकर चढ़ ही गई। अब होटल बदलने का कोई प्रयोजन नहीं था। खाने में परांठे थे। होटल से थोड़े निराश थे पर सुबह उपर के तल्ले से केदारनाथ रेंज के हिमाच्छादित पहाड़ों के दृश्य ने सारी निराशा दूर कर दी। हमने नाश्ता नहीं किया, पूजा के बाद करेंगे ऐसा निश्चय किया। बच्चे साथ थे निकलने में थोड़ी देर हो गई। निकलने के थोड़ी देर बाद ही एक तरफ और कहीं कहीं दोनों तरफ पार्क की गई गाड़ियों के कारण और लौटती बसों के कारण आगे बढ़ना मुश्किल हो गया। घोड़ों के हूजूम भी दिखने लगे। हमें क्या पता था कि आगे जाने ही नहीं देंगे, सोनप्रयाग तक भी नहीं। शायद हम समय नष्ट किये बिना लौट ही जाते। कई घंटों बाद हम लौट पाए और हमने एक अच्छी जगह "देवघर" पर ब्रंच लिया। इस जगह अच्छे रुम भी थे, यहीं क्यों नहीं रूके का अफसोस होने लगा । हमने यहां से उखीमठ जाने का निश्चय किया। जहां त्रियुगीनारायण में स्वयं शिव पार्वती का विवाह हुआ, वहीं उखीमठ में श्री कृष्ण के प्रपौत्र अनिरूद्ध और उषा का विवाह हुआ है। यहीं बाबा केदारनाथ और दूसरे केदार मदमहेश्वर का winter abode है। बहुत सुन्दर मंदिर। रंग, साज सज्जा नेपाली मंदिरो की याद दिला गया। उखीमठ के पास रांसी गांव से मदमहेश्वर जी का १८ कि०मी० लंबा कठिन पैदल मार्ग भी है। हमने पहले ही सोच रखा था कि देवरिया ताल के रास्ते ३००-४०० मि० दूर स्थित ओंकार रत्नेश्वर मंदिर तक का ट्रेक कर पाऊंगा क्योंकि हमारे रोज के walk में इतनी चढ़ाई होती ही है। हम इसलिए चोप्ता के पहले 'सारी' गांव गए और ये वाला ट्रेक करने बढ़े तो सामने के दुकान वाले ने लाठियां पकड़ा दी। वास्तव में इतनी सी चढ़ाई भी कठिन है क्योंकि मुझे थकान‌ से ज्यादा डर लग रहा था।

1. उखीमठ , 2.देवरिया ताल गेट , 3. ओंकार रत्नेश्वर मंदिर - देवरिया ताल

सारी गांव से हम चोप्ता के तरफ वापस मुड़ लिए। मैंने सोचा था चोप्ता (9400 ft above MSL) की दूरी ५-६ कि०मि० होगी पर यह तो २१-२२ कि०मि० की निकली। रास्ते में हम मनोरम दृश्य और होटल , कैम्प, होम स्टे देखते आए। कई खूबसूरत बुग्यालों में थे।कुछ सड़क से सटे (बंकर हाउस) कुछ दूर नीचे (Sun and Snow, Magpie Jungle camp et al). खैर घंटे भर की drive के बाद हम वहां पहुंचे जहां से बाबा तुंगनाथ की ४ कि०मि० की चढ़ाई शुरू होती है। देवरिया ताल की तरह यहां भी एक स्वागत द्वार बना था। शाम हो चली थी। हमारे सात सहयात्री कल यह ट्रेक करेंगें। हम अपने होम स्टे वाले से जो करीब २.५ कि०मि० दूर था से बात करना चाहते थे पर नेटवर्क ना के बराबर था पर गुगल मैप चल रहा था। हम करीब १० मिनट में पहुंच गए। यहां कई होटल होम स्टे थे। हमारे वाले (Himrab Home stay) का बोर्ड भी लगा था पर किधर से जाना है पता न था। जब पता चला तो हमारी हवाई उड़ गई। करीब १०० मि० की बिना ट्रेक वाली उतराई थी। डरते सहारा लेते उतर ही गए यह सोचते कि कल इतना चढ़ना भी है। जब नीचे उतरे तब केयर टेकर ने बताया उपर भी रूम है जहां वह हम दोनों सीनियर को ठहराना चाह रहा था। काश फोन काम कर रहा होता। हम खाना खा कर ठंडे मौसम को इंजॉय करने लगे। पानी एकदम ठंडा था। तब हमें रनिंग होट वाटर का ख्याल आया। बताया गया पीने के लिए जग में और नहाने के लिए बाल्टी में रूम में पहुंचा दिए जाएंगे। फिल्म "कहानी" में विद्या बालन के होटल वाला दृश्य याद आ गया जहां एक बच्चा दौड़ कर गरम पानी ले आता (running hot water in room !) हमें दो बड़े रूम दिए गए।
रात खाना खा कर हम सो गए। तभी उपर रूम में रुके कुछ ७-८ पर्यटक हमारे कमरे के सामने लगे टेबल पर खाना खाने आए और जोर जोर से आपस में बातें , हसीं , ठिठोली करने लगे। हिन्दी मराठी, बंबइया के मिले जुले शब्द हमारे कानों में आने लगे। शायद उन्हें हमारे वहां होने का अंदाजा नहीं होगा, हम लोग नज़र अंदाज़ कर सोने की कोशिश करने लगे। थोड़ी देर बाद पुत्री उठी और उनसे शोर कम करने को कहा। उनमें से एक ने जवाब दिया "बरोबर"। पर जब फिर भी शोर कम न हुआ तब मैंने जाकर हलो कहा, जब दो तीन लोगों का attention मेरे तरफ हुआ तब मैंने उनसे धीमी आवाज में बात करने को कहा। इसका असर होता दिखा। आवाज कम हो गई और उनका खाना भी जल्द समाप्त हो गया। दूसरे दिन हमारे ग्रुप के बच्चों का तकिया कलाम या मजाक था "चलो हम भी रूम १०५ के पास हल्ला करते हैं" ।

1. तुंगनाथ जी के रास्ते, 2. 18June2023- चोप्ता में भयानक जाम

रात होटल (HIMRAB RESORT) में बीता। देवरिया ताल में की गई छोटी सी ट्रेक ने थोड़ा तो थका ही दिया था और इस कारण हमें नींद भी अच्छी आई। अगली सुबह १८ जून को नाश्ते के बाद हमारे ग्रुप के ७ सदस्य जिनमें ४ बच्चे भी थे तुंगनाथ की पैदल यात्रा के लिए निकल पड़े। उन्हें ५-६ घंटे लगने वाले थे। सबको सामान पैक कर ही जाने को कह दिया था। हमने पता किया कि नजदीक कहां मनोरम जगह है जहां हम दो सिनियर घूम आ सके। हम होटल से रोड तक की चढ़ाई सिर्फ एक बार ही करना चाह रहे थे। होटल के मैनेजर ने सलाह दी कि हम ११-१२ बजे तक निकले। हमने १० बजे तक सामान को उपर भेज दिया और मुश्किल से आधी दूर तक चढ़ा और ड्राइवर से इशारों में समान गाड़ी में रखवा लेने को कहा। आखिर जब हम उपर गाड़ी के पास पहुंचे तब दो सामान गाड़ी में दिखा ही नहीं। हमारे साथ आए होटल कर्मी से पूछने और खोजने पर वे समान वहां के एक ढ़ाबे में मिला। हम सामान गाड़ी में रखवा कर गोपेश्वर मार्ग के तरफ निकल पड़े। यहीं मार्ग आगे जाने पर कर्ण प्रयाग होते बद्रीनाथ को जाता है। केदारनाथ से बद्रीनाथ का सबसे छोटा मार्ग। करीब २० कि० मि० पर कस्तूरी मृगों का एक उद्यान भी है। मिला नीचे घाटी से बादल उपर उठता दिखा, अत्यंत सुंदर दृश्य था। रास्ते में सुंदर झरने और हरी भरी घाटियां और बुग्याल मनोरम था। ठंड थी। गरम कपड़े पहनने पड़े। हम २-३ km दूर एक व्यू टावर तक गए। टावर पर बंदर और लंगूरों का डेरा था। सुन रखा था ये दोनों प्रजातियां साथ नहीं रहती, अतः आश्चर्य भी हुआ। थोड़ी देर दृश्यों का आनन्द लिया फोटो खींचे और लौट पड़े। अभी १ ही बजे थे और बच्चों को तुंगनाथ से आते आते ४-५ तो बजने ही थे। पर यहां पर भी क्या करते। अपने होटल के पास ही रुके। लंच लिया, ड्राइवरों ने भी खाना खाया और हम आगे बढ़ चले। एक जगह दोनों तरफ गाड़ियां खड़ी थी। हम बीच से निकले जा रहे थे। तभी सामने से एक नहीं कई बस आती दिखी। दस से ज्यादा कार को बैक करना पड़ रहा था। पार्क किए कार वालों ने बताया आगे भयंकर जाम है यहीं पार्क कर लें। आगे पीछे कर किसी तरह दोनों गाड़ियां सीमित स्थान में पार्क हुई‌ । एक बैक करती कार खराब भी हो गई। खैर जाम ख़त्म होने की कोई संभावना नहीं दिख रही थी। उधर तुंगनाथ वाली पार्टी भी नीचे उतर आई थी। फोन पर टूटी फूटी आवाज ही आ रही थी। किसी तरह उन्हें कार की तरफ पैदल आने को कहा और करीब ५००-६०० मीटर चल कर सभी जल्द ही आ गए। और हमारी गाड़ियां भी खरामा खरामा चल पड़ी। चारो बच्चे एक ही गाड़ी में साथ बैठना चाहते थे पर जिस गाड़ी पर आसानी से चढ़ सकते थे चढ़ लिए। रास्ते में हम होटल या पेट्रोल पंप खोज रहे थे कुछ लोगों को बाथरूम की जरूरत थी, इसी कारण दो तीन जगह रूके। हम उखीमठ के रास्ते में मदमहेश्वर के पैदल मार्ग के कुछ आगे एक ढ़ाबे पर रूके, कुछ नाश्ता, चाय के लिए। यहां भांग के बीज और अन्य हर्ब की बड़ी स्वादिष्ट लोकल चटनी खाई जो बहुत पसंद आई। हमने अपना रात का ठिकाना हरिद्वार सोच रखा था, पर डिनर का सर्वमान्य स्थान रूद्र प्रयाग से काफी आगे आकर मिला।

1. ऋषिकेश में हमारे होटल के पास एक मंदिर, 2. नील कंठ महादेव चौक

अब हमने देवप्रयाग में रूकने का निर्णय लिया। कुछ होटल देखें भी। पर या तो वे साफ सुथरे नहीं थे या फिर बहुत सारी सीढियां उतरनी थी। फिर हम आगे बढ़ लिए और आखिर कर ऋषिकेश के ग्रैंड हवेली होटल में रुके। एसी रूम था। नौकरी पेशा ३ लोग थे साथ में। उन्होंने उस दिन की भी छुट्टी कर ली। हम आराम से निकले। हरिद्वार के CNG पंप के पास के शिवा ढ़ाबा में हमने लंच किया। खतौली में एक जगह और रुके और शाम तक घर पहुंच गए। तीन लोगों को food poisoning हो गई थी। मुझे भी दो दिन बाद डायरिया जैसा हुआ, पर दवा से सभी स्वस्थ हो गए। ।