Sunday, April 30, 2023

तुम हो

एक कविता
तुम हो
तसव्वुर में तुम हो
चांद तारों में तुम हो
ख़्वाबों में तुम हो
ख्यालों में तुम हो
सफर भी तुम हो
मंजिल भी तुम हो
कश्ती भी तुम हो
किनारा भी तुम हो
मौजमस्ती भी तुम हो
मटरगस्ती भी तुम हो
जेठ की तपिश हो
तब फागुन भी तुम हो
मेरे लफ्ज़ तुम हो
मेरे शेर तुम हो
किस्सा-कहानी तुम हो
और ग़ज़ल तुम हो
शब भी तुम हो
और सहर तुम हो
हम कहां जाए बता मेरे मौला
कि दर्द भी तुम हो
और दवा तुम हो
आफ़त भी तुम हो
और राहत भी तुम हो

स्वरचित
अमिताभ कुमार सिन्हा

Saturday, April 29, 2023

चाय को चाय ही रहने दो पार्ट -२

अपने पुराना ब्लॉग "चाय को चाय ही रहने दो" पार्ट-१ में मैंने चाय बनाने की रेसिपी दी है पर आज मैं कबूल करता हूं चाय की कोई रेसीपी नहीं होती।‌‌ या तो क्लास होता है या अहसास होता है। मेरी बात अटपटी लगती हो तो मैं एक दो कहानियां सुनना चाहता हूँ .

IISCO GUEST HOUSE
IISCO बर्नपुर - आसनसोल स्तिथ एक सरकारी कंपनी है . पर यह तब की कहानी है जब यह एक पहले एक प्राइवेट ब्रिटिश ग्रुप मार्टिन बर्न का हिस्सा थी जिसका २००६ में इसका विलय SAIL में हो गया. तब मुझे एक तकनिकी पेपर IISCO में प्रस्तुत करना था . ३ लोगों की एक टीम हमारे सरकारी कंपनी द्वारा वह भेजा गया था . मुझे अपने कंपनी के गेस्ट हाउस में रूम शेयर करने की आदत थी और जब हम तीनो को अलग अलग रूम में रखा गया तो मुझे सुखद आश्चर्य हुआ . रात अधिक हो गई थी हम लोग तुरंत सो गए . जब सुबह सुबह दरवाजे पर नॉक करने की आवाज़ आई तो मैंने उठ कर दरवाज़ा खोला शायद कमरा साफ़ करनेवाला होगा, लेकिन मेरे सामने सफेद ड्रेस में पगड़ी के साथ खड़ा था एक खानसामा एक हाथ में अखबार दूसरे में एक ट्रे . Good Morning Sir , Your Bed Tea . बना दूँ ? दूध ? चीनी कितने चम्मच ? खलिश दार्जीलिंग टी की महक और यह अंदाज़ .उसके ट्रे में थी बोन चाइना के कप और केतली . दूध , चीनी के पात्र और चम्मच चाँदी के थे . अभिजात्य वर्ग का चाय पीने का यह है रेसिपी . हर तरफ सिर्फ क्लास ! खैर जब जब अगली बार IISCO गया हमें ये मेहमान नवाज़ी नहीं मिली . वही मिली जो एक आम भारतीय IISCO अफसर को मिलती थी .

टी टेस्टर चाय फैक्ट्री श्री लंका
हमारी पहली टी फैक्ट्री भ्रमण १९७८ में नील गिरी पहाड़ो में बसी कूनूर में हुआ और हमने देखा कैसे चाय बनती है . फिर २००९ में हमलोग श्री लंका गए और एक टी फैक्ट्री गए यह चाय बनते देखा. देखा कैसे उनकी ग्रेडिंग होती है और चाय भी पी. टी टेस्टिंग के बारे में भी जानकारी मिली . फिर एक यु ट्युब वीडियो में देखा कैसे चाय टी टेस्टर अलग अलग चाय जैसे सफ़ेद (जी हाँ सफ़ेद), पीले , गोल्डन, लाल और काली चाय को टेस्ट करते हैं . सभी चाय में से एक छोटी घूँट मुंह में लेते है थोड़ी देर रखते है , स्वाद , महक का अनुभव करते है और फिर थूक देते है . क्या अंदाज क्या स्वैग. पता चला हम जो रोज रोज चाय पीते है वह सबसे सस्ती वाली या उससे जस्ट एक ग्रेड ऊपर वाली है . सबसे बढ़िया चाय तो सभी विदेशो में चले जाते है . तो यह है रेसिपी क्लास का . मुन्नार (२०१३) में टाटा टी के चाय बगान देखे पर टी फैक्ट्री फिर से देखने के लिए कोई राजी नहीं था, आस पास खूबसूरती बिखेरती प्रकृति में ज्यादा आनन्ददायक था।

अब आता हूँ अहसास पर।
यह गज़ब की रेसिपी है और जो इसमें स्वाद है वो कही नहीं है . आप ने सुना होगा माँ के हाथ का खाना . क्या सबकी की माँ मास्टर शेफ जीत कर आयी है ? तो क्यों वो सबसे यहाँ तक की पत्नियों से भी स्वादिष्ट खाना बना लेती है . यह है अहसास उसके प्यार और परवाह का . उनके खिलाने के अंदाज़ का है . खाते आप हो महसूस वह करती है . आपके चेहरे के सुकून से उसे पता चल जाता है खाना कैसा बना . "खाना कैसा बना ?" ऐसा वह कभी नहीं पूछती . उसे तारीफ नहीं चाहिए .



चाय पीने का अहसास - हमारा अंदाज़ रेसिपी
चाय रिलैक्स करने का एक गजब का साधन है थके हो और दोस्तों ने कहा चलो चाय पीते है, किसी चाय की टपड़ी पर चाय पी ली और बस सब थकान गायब . एक बार मेरी पत्नी ने ठीक कहा था खुद से चाय बना कर पिया तो क्या मज़ा चाय पीने का मज़ा तो तब है जब कोई चाय बना कर पिलाये . सच में कोई भी रेसिपी भी हो मज़ा तब ही आता है. ऐसे हमारी रेसिपी में चाय, दूध , चीनी का कोई भी अनुपात हो बस अहसास मिला हो उसमे .
गजब का स्वाद है . जब मैंने बनाया तो मुझे स्वादिष्ट तो नहीं लगा पर पत्नी जी के मुंह से हमेशा निकला "वाह". जब उन्होंने बनाया तो ? तो क्या वह तो स्वादिष्ट बनती ही है . पर ख़राब चाय यदा कदा कहीं न कहीं पीने को मिल ही जाती है और हम अकेले में कह उठते हैं कैसी रद्दी चाय थी एकदम BM ! BM हमारा कोड वर्ड है - बकरी का मूत . जैसे किसी ने यह पेय भी पिया हो. खैर ज्यादातर हम कह उठाते है एकदम ट्रैन वाली चाय . यानि चाय में सिर्फ पानी और चीनी ही है लेकिन ट्रैन और स्टेशन पर मिलने वाली चाय भी कभी कभी आश्चर्यजनक रूप से स्वादिष्ट होती है .आगे पढ़िए ट्रैन में मिलने वाले "सबसे ख़राब चाय " या "रामप्यारी चाय" - मेरा अगला ब्लॉग !

Friday, April 28, 2023

इंडियन आइडल - म्यूजिकल रियलिटी शो

कई बातें मन में घुमड़ रही है। किस पर आज लिखू यही सोच सोच कर कुछ भी नहीं लिख पाया हूँ। चलिए एक बेजान चीज़ के बारे में बताऊँ। मेरे घर में एक डिनर टेबल हैं पर हम सिर्फ लंच ही करते हैं उस पर नाश्ता और डिनर तो टीवी के सामने ही खाते हैं हम लोग । इसे तो लंच टेबल कहना चाहिए। चलो लिखना तो शुरू किया। पाया हूँ।



इंटरनेट फोटो आभार सहित

अब आगे मैं शायद सोनी टीवी पर हाल में संपन्न हुए इंडियन आइडल के बारे में सोच रहा था। और मैं उसी के बारे में अपने विचार इस ब्लॉग में प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह एक म्यूजिक रियलिटी शो है एक So called competetion! ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आज तक हुए १३ इंडियन आइडल में सिर्फ २ बार किसी लड़की ने फाइनल जीता है जिसमे एक बार जूनियर आइडल मे। ऐसा नहीं है लड़किया नहीं आती है। इसबार आधे से ज्यादा लड़किया थी कम्पटीशन में। जरुरत से ज्यादा सहानुभूति पाने वाले दृश्य इस प्रोग्राम के असली मकसद से इसे भटका देती है। उसके बाद आती है जनता के वोट वाला ड्रामा। लोग वोट करते है। मैंने भी पिछले दो तीन इंडियन आइडल में किया है और मैं हमेशा सारे वोट सिर्फ एक कॉम्पिटिटर को ही दिए थे। जाहिर है यह वोट पक्षपात पूर्ण होते है राज्य, भाषा , जाति, धर्म सभी का वोट पर असर पड़ता है लेकिन सबसे ज्यादा राज्यों का। अर्थात जिस राज्य से ज्यादा प्रतिभागी होंगे उनके वोट बट जायेंगे। बंगाल से ही संगीत के सबसे ज्यादा प्रतिभागी आते है और प्रतिभा शाली होने पर भी वे फाइनल्स से आगे नहीं जा पाते जैसे नीलांजना रे, अरुणिता कांजीलाल, देबस्मिता रे। (साफ कर दूं मैं बंगाली नहीं हूँ।) ऐसे जो जीते हैं वे भी कम प्रतिभाशाली नहीं है और बधाई के पात्र है। मैं सा रे गा मा पा और राइजिंग स्टार को ज्यादा निष्पक्ष और वैज्ञानिक मनाता हूँ। दूसरा कारण जो मुझे परेशान करता है वह है सभी रियलिटी शो सिर्फ फ़िल्मी गानों को प्राथमिकता देती है । दूसरे तरह के गाने गानेवालों को Not versetile कह कर पहले ही निकल देते है। हमारे शास्त्रीय या सुगम संगीत को तो पूरी तरह दर किनार कर देते है। ऐसे टेटेन्टेड कलाकार जिसने अपनी ही पद्धति में गया वे जल्दी ही बाहर हो जाते है जैसे अनुष्का पात्रा जो महिला और पुरुष दोनों की आवाज़ में गा सकती है या डूडल क्वीन शन्मुख प्रिया।

एक बात जो मुझे अच्छी नहीं लगी की पिछले दो सीजन से इस म्यूजिकल शो किन्ही दो लोगों को कपल की तरह प्रस्तुत करने की कोशिश की गई । शायद कई माँ बाप इस कारण भविष्य में अपने बच्चों को ऐसे प्रोग्राम में जाने ही नहीं दे। ये प्रतिभाशाली गायक गायिका फिल्मों में जाने के लिए ऐसे प्रतियोगिता में भाग लेते है। पर कितने इस में सफल होते है ? कई जो थोड़ा भी आगे न जा सके जैसे नेहा कक्कड़ जीतने वालों से कहीं ज्यादा सफल हुई। लेकिन संगीत के कार्यक्रमों में फाइनलिस्ट होने का फायदा जरूर मिल जाता है। म्यूजिक वीडियो में भी यह भाग्य आजमा लेते है पर कुछ ही साल में ये सितारे टिमटिमाते ही रह जाते है।