कई बातें मन में घुमड़ रही है। किस पर आज लिखू यही सोच सोच कर कुछ भी नहीं लिख पाया हूँ। चलिए एक बेजान चीज़ के बारे में बताऊँ। मेरे घर में एक डिनर टेबल हैं पर हम सिर्फ लंच ही करते हैं उस पर नाश्ता और डिनर तो टीवी के सामने ही खाते हैं हम लोग । इसे तो लंच टेबल कहना चाहिए। चलो लिखना तो शुरू किया। पाया हूँ।
इंटरनेट फोटो आभार सहित
अब आगे मैं शायद सोनी टीवी पर हाल में संपन्न हुए इंडियन आइडल के बारे में सोच रहा था। और मैं उसी के बारे में अपने विचार इस ब्लॉग में प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह एक म्यूजिक रियलिटी शो है एक So called competetion! ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आज तक हुए १३ इंडियन आइडल में सिर्फ २ बार किसी लड़की ने फाइनल जीता है जिसमे एक बार जूनियर आइडल मे। ऐसा नहीं है लड़किया नहीं आती है। इसबार आधे से ज्यादा लड़किया थी कम्पटीशन में। जरुरत से ज्यादा सहानुभूति पाने वाले दृश्य इस प्रोग्राम के असली मकसद से इसे भटका देती है। उसके बाद आती है जनता के वोट वाला ड्रामा। लोग वोट करते है। मैंने भी पिछले दो तीन इंडियन आइडल में किया है और मैं हमेशा सारे वोट सिर्फ एक कॉम्पिटिटर को ही दिए थे। जाहिर है यह वोट पक्षपात पूर्ण होते है राज्य, भाषा , जाति, धर्म सभी का वोट पर असर पड़ता है लेकिन सबसे ज्यादा राज्यों का। अर्थात जिस राज्य से ज्यादा प्रतिभागी होंगे उनके वोट बट जायेंगे। बंगाल से ही संगीत के सबसे ज्यादा प्रतिभागी आते है और प्रतिभा शाली होने पर भी वे फाइनल्स से आगे नहीं जा पाते जैसे नीलांजना रे, अरुणिता कांजीलाल, देबस्मिता रे। (साफ कर दूं मैं बंगाली नहीं हूँ।) ऐसे जो जीते हैं वे भी कम प्रतिभाशाली नहीं है और बधाई के पात्र है। मैं सा रे गा मा पा और राइजिंग स्टार को ज्यादा निष्पक्ष और वैज्ञानिक मनाता हूँ। दूसरा कारण जो मुझे परेशान करता है वह है सभी रियलिटी शो सिर्फ फ़िल्मी गानों को प्राथमिकता देती है । दूसरे तरह के गाने गानेवालों को Not versetile कह कर पहले ही निकल देते है। हमारे शास्त्रीय या सुगम संगीत को तो पूरी तरह दर किनार कर देते है। ऐसे टेटेन्टेड कलाकार जिसने अपनी ही पद्धति में गया वे जल्दी ही बाहर हो जाते है जैसे अनुष्का पात्रा जो महिला और पुरुष दोनों की आवाज़ में गा सकती है या डूडल क्वीन शन्मुख प्रिया।
एक बात जो मुझे अच्छी नहीं लगी की पिछले दो सीजन से इस म्यूजिकल शो किन्ही दो लोगों को कपल की तरह प्रस्तुत करने की कोशिश की गई । शायद कई माँ बाप इस कारण भविष्य में अपने बच्चों को ऐसे प्रोग्राम में जाने ही नहीं दे। ये प्रतिभाशाली गायक गायिका फिल्मों में जाने के लिए ऐसे प्रतियोगिता में भाग लेते है। पर कितने इस में सफल होते है ? कई जो थोड़ा भी आगे न जा सके जैसे नेहा कक्कड़ जीतने वालों से कहीं ज्यादा सफल हुई। लेकिन संगीत के कार्यक्रमों में फाइनलिस्ट होने का फायदा जरूर मिल जाता है। म्यूजिक वीडियो में भी यह भाग्य आजमा लेते है पर कुछ ही साल में ये सितारे टिमटिमाते ही रह जाते है।
Good morning, this is the reality.
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