अपने पुराना ब्लॉग "चाय को चाय ही रहने दो" पार्ट-१ में मैंने चाय बनाने की रेसिपी दी है पर आज मैं कबूल करता हूं चाय की कोई रेसीपी नहीं होती। या तो क्लास होता है या अहसास होता है। मेरी बात अटपटी लगती हो तो मैं एक दो कहानियां सुनना चाहता हूँ .
IISCO GUEST HOUSE
IISCO बर्नपुर - आसनसोल स्तिथ एक सरकारी कंपनी है . पर यह तब की कहानी है जब यह एक पहले एक प्राइवेट ब्रिटिश ग्रुप मार्टिन बर्न का हिस्सा थी जिसका २००६ में इसका विलय SAIL में हो गया. तब मुझे एक तकनिकी पेपर IISCO में प्रस्तुत करना था . ३ लोगों की एक टीम हमारे सरकारी कंपनी द्वारा वह भेजा गया था . मुझे अपने कंपनी के गेस्ट हाउस में रूम शेयर करने की आदत थी और जब हम तीनो को अलग अलग रूम में रखा गया तो मुझे सुखद आश्चर्य हुआ . रात अधिक हो गई थी हम लोग तुरंत सो गए . जब सुबह सुबह दरवाजे पर नॉक करने की आवाज़ आई तो मैंने उठ कर दरवाज़ा खोला शायद कमरा साफ़ करनेवाला होगा, लेकिन मेरे सामने सफेद ड्रेस में पगड़ी के साथ खड़ा था एक खानसामा एक हाथ में अखबार दूसरे में एक ट्रे . Good Morning Sir , Your Bed Tea . बना दूँ ? दूध ? चीनी कितने चम्मच ? खलिश दार्जीलिंग टी की महक और यह अंदाज़ .उसके ट्रे में थी बोन चाइना के कप और केतली . दूध , चीनी के पात्र और चम्मच चाँदी के थे . अभिजात्य वर्ग का चाय पीने का यह है रेसिपी . हर तरफ सिर्फ क्लास ! खैर जब जब अगली बार IISCO गया हमें ये मेहमान नवाज़ी नहीं मिली . वही मिली जो एक आम भारतीय IISCO अफसर को मिलती थी .
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टी टेस्टर चाय फैक्ट्री श्री लंका
हमारी पहली टी फैक्ट्री भ्रमण १९७८ में नील गिरी पहाड़ो में बसी कूनूर में हुआ और हमने देखा कैसे चाय बनती है . फिर २००९ में हमलोग श्री लंका गए और एक टी फैक्ट्री गए यह चाय बनते देखा. देखा कैसे उनकी ग्रेडिंग होती है और चाय भी पी. टी टेस्टिंग के बारे में भी जानकारी मिली . फिर एक यु ट्युब वीडियो में देखा कैसे चाय टी टेस्टर अलग अलग चाय जैसे सफ़ेद (जी हाँ सफ़ेद), पीले , गोल्डन, लाल और काली चाय को टेस्ट करते हैं . सभी चाय में से एक छोटी घूँट मुंह में लेते है थोड़ी देर रखते है , स्वाद , महक का अनुभव करते है और फिर थूक देते है . क्या अंदाज क्या स्वैग. पता चला हम जो रोज रोज चाय पीते है वह सबसे सस्ती वाली या उससे जस्ट एक ग्रेड ऊपर वाली है . सबसे बढ़िया चाय तो सभी विदेशो में चले जाते है . तो यह है रेसिपी क्लास का . मुन्नार (२०१३) में टाटा टी के चाय बगान देखे पर टी फैक्ट्री फिर से देखने के लिए कोई राजी नहीं था, आस पास खूबसूरती बिखेरती प्रकृति में ज्यादा आनन्ददायक था।
अब आता हूँ अहसास पर।
यह गज़ब की रेसिपी है और जो इसमें स्वाद है वो कही नहीं है . आप ने सुना होगा माँ के हाथ का खाना . क्या सबकी की माँ मास्टर शेफ जीत कर आयी है ? तो क्यों वो सबसे यहाँ तक की पत्नियों से भी स्वादिष्ट खाना बना लेती है . यह है अहसास उसके प्यार और परवाह का . उनके खिलाने के अंदाज़ का है . खाते आप हो महसूस वह करती है . आपके चेहरे के सुकून से उसे पता चल जाता है खाना कैसा बना . "खाना कैसा बना ?" ऐसा वह कभी नहीं पूछती . उसे तारीफ नहीं चाहिए .
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चाय पीने का अहसास - हमारा अंदाज़ रेसिपी
चाय रिलैक्स करने का एक गजब का साधन है थके हो और दोस्तों ने कहा चलो चाय पीते है, किसी चाय की टपड़ी पर चाय पी ली और बस सब थकान गायब . एक बार मेरी पत्नी ने ठीक कहा था खुद से चाय बना कर पिया तो क्या मज़ा चाय पीने का मज़ा तो तब है जब कोई चाय बना कर पिलाये . सच में कोई भी रेसिपी भी हो मज़ा तब ही आता है. ऐसे हमारी रेसिपी में चाय, दूध , चीनी का कोई भी अनुपात हो बस अहसास मिला हो उसमे .
गजब का स्वाद है . जब मैंने बनाया तो मुझे स्वादिष्ट तो नहीं लगा पर पत्नी जी के मुंह से हमेशा निकला "वाह". जब उन्होंने बनाया तो ? तो क्या वह तो स्वादिष्ट बनती ही है . पर ख़राब चाय यदा कदा कहीं न कहीं पीने को मिल ही जाती है और हम अकेले में कह उठते हैं कैसी रद्दी चाय थी एकदम BM ! BM हमारा कोड वर्ड है - बकरी का मूत . जैसे किसी ने यह पेय भी पिया हो. खैर ज्यादातर हम कह उठाते है एकदम ट्रैन वाली चाय . यानि चाय में सिर्फ पानी और चीनी ही है लेकिन ट्रैन और स्टेशन पर मिलने वाली चाय भी कभी कभी आश्चर्यजनक रूप से स्वादिष्ट होती है .आगे पढ़िए ट्रैन में मिलने वाले "सबसे ख़राब चाय " या "रामप्यारी चाय" - मेरा अगला ब्लॉग !
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