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Monday, May 1, 2023

चाय को चाय ही रहने दो - पार्ट-3

मेरे पुराना ब्लॉग "चाय को चाय ही रहने दो" पार्ट-१ "में मैंने बताया था कि ऐसा वक्त आ गया है कि हम फूलों के काढ़े, या आयुर्वेदिक काढ़े को भी चाय कहने लगे है , चाय के इतिहास के बारे में भी चर्चा की थी मैंने ।
अपने पिछले ब्लॉग "चाय को चाय ही रहने दो पार्ट-२ " में मैंने चाय के स्वाद और अंदाज़ / स्वैग की बात की थी। अब इस बार ब्लॉग में चाय बेचने के तरीके के बारे में बात करेंगे , तरीके जो देश भर में प्रयोग में लाये जा रहे है ।

रात का समय आप ट्रेन में अपने बर्थ पर सो रहे हों तभी चाय, चाय गरम की आवाज डिब्बे में गूजंती है और कई मुसाफिर चाय पीने भी लगते है पर आप सोना चाहते है और चादर खींच कर सोने की कोशिश करते हैं। यह scene है 80's में स्लीपर क्लास डब्बे की। तब कम ट्रेनों में ऐo सीo बोगी होती थी। और चाय वाले स्लीपर में ऐसे चढ़ते थे मानों यह उनका जन्म सिद्ध अधिकार हो। कभी कभी जगा भी देते थे "दादा धोनबाद एसे गेछे चा खाबेन ?" ! जिस जिस ने चाय पी होती है वह भी शिकायत कर रहा होता है, कि बस गरम पानी में चीनी डालकर पिला गया। ट्रेन में चाय वाले से रात गए fresh चाय की उम्मीद नहीं की जा सकती है। शाम में बने चाय को ही बीच बीच में पानी डाल गरम कर लेते है, जब एक दम पानी ही बचता है तब ही बेच बाच कर घर जाएगा। इन लोगों के कारण ही छुछुर चाय को कहते है ट्रेन वाली चाय। खैर दिन के समय चायवाले खटकते नहीं है। तरह तरह की चाय तरह तरह से बेचते है ये । और तरह तरह से लोगों को लुभाते है । अपनी चाय बेचने के लिए कई तरीके इस्तेमाल में लाते है ये चाय वाले। कोई नमक वाली निम्बू चाय सुबह सुबह ले कर आता और जब आपने तुरंत ही नाश्ता किया हो तभी पता नहीं कहाँ से आ जाते है यह चाय गरम वाले कुल्हड़ या पेपर कप में दे जाते है "ट्रेन की चाय"। कोई दूध पानी चीनी का गरम घोल और चाय की डिप वाला पैकेट दे जाएगा पर काफी मांगने पर बना कर देगा।

सबसे ख़राब चाय

एक बार 70 's में पटना से हावड़ा के बीच शायद मधुपुर में जब एक चायवाले ने पुकार लगाई सबसे ख़राब चाय तब मैं चौंक गया। सुन रखा था "अपने दही को कोई खट्टा नहीं कहता " और ये बेवकूफ अपने चाय को सबसे ख़राब कह रहा हैं। लेकिन कई मुसाफिर इसी चायवाले का इंतज़ार कर रहे थे और उसने बहुत लोगों को चाय पिलाई। किसी ने कहा अच्छी चाय बेचता है ये और मैंने भी एक चाय पी और सच में चाय बहुत अच्छी थी। चाय बेचने के लिए ऐसे अपने सामान को ख़राब कहने का गजब असर होता है । इसे । कहते है Negative Reverse selling । जब आप अपने सामान को ख़राब कहते है तो लोग उत्सुक हो जाते हैं की आप अपने चाय को ख़राब क्यों कह रहा हैं और आप उसकी चाय पी लेते है और क्योंकि चाय अच्छी होती है आप अगली बार भी "खराब" चाय पी लेते है। अब तो "ख़राब चाय" या "सबसे खराब चाय" की कई चाय दुकान कई शहरों में (Ex बोकारो , रायपुर, इंदौर ) खुल गई है।


आईये कुछ समाचार पत्रों की कटिंग देखें
बोकारो। झारखंड के बोकारो जिले के चास के पास नेशनल हाईवे-23 पर तेलेडीह मोड़ के पास ‘बोकारो की सबसे खराब चाय’ मिलती है। फिर भी चाय के प्रेमी बड़े चाव से यहां चाय पीने आते हैं। दरअसल, यहां चाय बहुत अच्छी बनाई जाती है, लेकिन इस दुकान का नाम ‘बोकारो की सबसे खराब चाय’ है। यह दुकान अपने नाम की वजह से तेजी से चर्चा में आ रही है। हाईवे से गुजरने वाले लोग चाय की दुकान का नाम देखकर रूक जाते हैं और चाय का स्वाद लेने के बाद ही जाते हैं। - HINDI NEWS 18
रिपोर्ट : अभिलाष मिश्रा
इंदौर. आज तक आपने प्रोडक्ट बेचने के लिए दुकानदारों को अपना सामान अच्छा, बढ़िया, बेहतरीन कहते सुना होगा। लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि दुकानदार अपने हर प्रोडक्ट को खराब बताए। जी हां, ऐसी ही एक दुकान इन दिनों इंदौर में बहुत मशहूर हुई है. वह दावा करती है कि उसके यहां खराब चाय, खराब कचौरी, खराब नमकीन के साथ-साथ सारे सामान खराब मिलेंगे। इस दुकान के कर्मचारी कैलाश भी कोई चीज सर्व करने के पहले अपने यहां के प्रोडक्ट की ‘तारीफ’ ऐसे ही करते हैं. बता दूं कि खराब चाय के नाम से मशहूर हुई यह दुकान राजमोहल्ला चौक में खालसा कॉलेज के पास है। HINDI NEWS 18 .



कानपुर और कलकत्ते की रामप्यारी चाय दुकान
रामप्यारी चाय

फिर एक बार धनबाद से गया होकर पटना जाने के क्रम में एक चायवाला अपनी चाय बेच रहा था "रामप्यारी चाय" यह तरीक़ा भी खराब चाय की तरह लोकप्रिय हो गया। अब तो बहुत सारी शहरों में रामप्यारी चाय की दुकान खुल गयी हैं। इस मार्केटिंग टेक्निक को कहते हैं WARM CALLING ! कई रामप्यारी चाय की भी कई दुकाने हिंदुस्तान के कई शहरों में खुल गई है। शायद यह नाम लोगों को अपनी प्यारी या घरवाली के हाथ की चाय की याद दिलाती है ।

आईए कुछ और चाय दुकानों की बात करे। कई चायवाले बहुत प्रसिद्द हो गए है जैसे चायोस , चाय ब्रेक , MBA चायवाला , टी पॉइंट वैगेरह पर ये चाय को स्टाइल के साथ मिक्स करते है और मॉल, मल्टीप्लेक्स या एयरपोर्ट पर ही मिलते है । चाय के साथ स्माल स्नैक्स और चाय के कई जाने अनजाने मेनू आइटम इनके USP हैं, पर आपको जेब ढ़ीली करनी पड़ेगी । पर मैं बात करना चाहता हूँ रोड / स्ट्रीट, गली मोहल्ले में मिलने वाले चाय की।

पूरे हिंदुस्तान में हर नुक्कड़ पर चाय के ठेले, टपरी या दूकान मिल ही जाती है । होटल रेस्ट्रॉन्ट में तो चाय काफी मिलती ही है। पर मैं वैसे जगहों की बात करेंगे जहाँ कुछ अभिनव प्रयोग किये गए नई नई रेसिपी या कुछ और तरीके से चाय पीने के अनुभव को स्पेशल बनाने के लिए। यूँ तो तरह तरह के चाय बहुत सी जगहों पर मिल ही जाती है, जो काफी लोकप्रिय है जैसे चालू चाय, मलाई मार के चाय, स्पेशल चाय, कटिंग चाय, अदरख इलायची या लेमन टी, डीप डीप चाय, मुंबई की ईरानी चाय। पर कुछ चाय वालों ने कुछ न कुछ अलग किया। नाम से चौकाने का तरीका तो मैंने ऊपर लिखा ही है अब कुछ और बताना चाहता हूँ। कुछ का अनुभव शायद औरों को भी हुआ हो।


धनबाद
१९७१-७८ के बीच मेरी पोस्टिंग बोकारो स्टील सिटी में थी । बहुत सी ट्रेने तब बोकारो के माराफारी स्टेशन हो कर नहीं चलती थी इसलिए हमें धनबाद होकर ही आना जाना पड़ता था। धनबाद स्टेशन के बाहार गेट के पास एक चाय की दुकान थी शायद गणेश चाय दुकान । उस दुकान के बाहर चका चक चमकते बहुत सारी केतली लटकी रहती। कोयले के चूल्हे के प्रयोग करने के बाबजूद केतली हमेशा साफ़ रखने ‌‌‌‌की परंपरा ही उसको औरों से अलग करता था । तब के समय में साफ़ सफाई का ध्यान अक्सर चाय वाले नहीं रखते थे। दूसरी बात जो याद रह गई, उसके यहाँ एक बड़े टोकने में दूध हमेशा उबलता रहता। चाय हमेशा फ्रेश बनता। जितना आर्डर मिला उससे से बस एक दो कप ज्यादा। दूध का सोंधापन उसकी चाय का USP था। यदि अपने कुल्हड में चाय ली तो सोंधापन और बढ़ जाता। लोग इस दुकान के चाय के आदी थे और स्टेशन आते जाते एक कप चाय पीना प्रायः सबकी आदत में सामिल था । लोग तो यहाँ तक कहते थे की शायद थोड़ी अफीम मिलता है लोगों को अपने चाय का आदी बनाने के लिए। ऐसे मैं ऐसा नहीं मनाता। ८० के दशक में एक कड़क DC की पोस्टिंग यहाँ हुई और उन्होंने स्टेशन के आस पास के सभी दुकान हटवा दिया क्योंकि ये सभी दुकानें सरकार की जमीन पर अतिक्रमण कर बनाये गये थे। अभी कई चाय के दुकान धनबाद में प्रसिद्ध है एक का नाम है राम चरित्र की दुकान है जहां तंदूरी चाय और चॉकलेट चाय मिलती है । एक है बेवफा तंदूरी चाय । एक ऐसी भी दुकान है जहां बिकती है काजू चाय। हमने पटना के मैरीन ड्राइव में एक फिल्मी चाय वाले का भी विडियो देखा ऋतिक के पोस्टर के साथ। पता चला इसने सुपर ३० फिल्म में एक रोल निभाया था। तंदूरी चाय के लिए मिट्टी के कई कुल्हड़ चूल्हे में गर्म करने डाल रखते है और लाल होने तक गर्म करते है। चाय बनाने के बाद उसमें लाल गर्म कुल्हड़ डाल देते है इससे चाय में एक सोंधापन आ जाता है और ऐसे बनता है तंदूरी चाय।



नागपुर - डॉली की चाय दुकान स्वैग स्टाइल के लिए बहुत फेमस है , मेरा अपना कुछ अनुभव तो नहीं पर यू ट्यूब वीडियो देखने से दुकानदार का स्वैग दिखता है - चाय सर्व करने , चेंज वापस करने का अंदाज़ अनोखा है । लखनऊ की मिलती है गुलाबी चाय जो एक कश्मीरी रेसिपी पर आधारित है । कश्मीर का नमकीन मक्खन चाय या कहवा भी एक प्रसद्धि तरीक़ा है चाय पीने का.
पूरे हिंदुस्तान के चाय कल्चर को एक ब्लॉग में नहीं समेटा जा सकता । कोलकाता की छोटी छोटे कुल्हड़ में मिलने वाले चाय से लेकर पहाड़ो में मिलने वाले बड़े कप वाली चाय - ताकि कप से भी अपना हाथ गरम रख सके उजली, पिली, गुलाबी, कथ्थई, लाल हर रंग में मिलती है चाय - अब तो नीली फूल की चाय भी । चीनी - गुड़ - नमक तो डालते ही है, अदरक, इलाइची, दाल चीनी, तेज पत्ता इत्यादि कई प्रकार के मसाले भी डालते है इसमें
मैं अपने ब्लॉग को एक कहानी से खत्म करता हूँ । जब मैं दूसरी बार ससुराल गया तब मेरे सबसे छोटे साले स्व डॉ सुनील सिन्हा या गुड्डू (तब करीब १० साल ) ने बड़े प्यार से एक बार अपने जीजाजी के लिए चाय बना लाये । जितने मसाले उनको पता था सभी डाला गया करीब करीब शुद्ध दूध में बनी थी चाय और चीनी भी भरपूर। पर क्योंकि इसमें उनका भरपूर प्यार था मैंने पूरा पी लिया और तारीफ भी की । हम सबों को बहुत कम उम्र में छोड़ कर चले गए पर हमेशा याद आते है ।

फोटो के लिंक इंटरनेट - गूगल सर्च से आभार सहित प्रतुत किये गए ।

Saturday, April 29, 2023

चाय को चाय ही रहने दो पार्ट -२

अपने पुराना ब्लॉग "चाय को चाय ही रहने दो" पार्ट-१ में मैंने चाय बनाने की रेसिपी दी है पर आज मैं कबूल करता हूं चाय की कोई रेसीपी नहीं होती।‌‌ या तो क्लास होता है या अहसास होता है। मेरी बात अटपटी लगती हो तो मैं एक दो कहानियां सुनना चाहता हूँ .

IISCO GUEST HOUSE
IISCO बर्नपुर - आसनसोल स्तिथ एक सरकारी कंपनी है . पर यह तब की कहानी है जब यह एक पहले एक प्राइवेट ब्रिटिश ग्रुप मार्टिन बर्न का हिस्सा थी जिसका २००६ में इसका विलय SAIL में हो गया. तब मुझे एक तकनिकी पेपर IISCO में प्रस्तुत करना था . ३ लोगों की एक टीम हमारे सरकारी कंपनी द्वारा वह भेजा गया था . मुझे अपने कंपनी के गेस्ट हाउस में रूम शेयर करने की आदत थी और जब हम तीनो को अलग अलग रूम में रखा गया तो मुझे सुखद आश्चर्य हुआ . रात अधिक हो गई थी हम लोग तुरंत सो गए . जब सुबह सुबह दरवाजे पर नॉक करने की आवाज़ आई तो मैंने उठ कर दरवाज़ा खोला शायद कमरा साफ़ करनेवाला होगा, लेकिन मेरे सामने सफेद ड्रेस में पगड़ी के साथ खड़ा था एक खानसामा एक हाथ में अखबार दूसरे में एक ट्रे . Good Morning Sir , Your Bed Tea . बना दूँ ? दूध ? चीनी कितने चम्मच ? खलिश दार्जीलिंग टी की महक और यह अंदाज़ .उसके ट्रे में थी बोन चाइना के कप और केतली . दूध , चीनी के पात्र और चम्मच चाँदी के थे . अभिजात्य वर्ग का चाय पीने का यह है रेसिपी . हर तरफ सिर्फ क्लास ! खैर जब जब अगली बार IISCO गया हमें ये मेहमान नवाज़ी नहीं मिली . वही मिली जो एक आम भारतीय IISCO अफसर को मिलती थी .

टी टेस्टर चाय फैक्ट्री श्री लंका
हमारी पहली टी फैक्ट्री भ्रमण १९७८ में नील गिरी पहाड़ो में बसी कूनूर में हुआ और हमने देखा कैसे चाय बनती है . फिर २००९ में हमलोग श्री लंका गए और एक टी फैक्ट्री गए यह चाय बनते देखा. देखा कैसे उनकी ग्रेडिंग होती है और चाय भी पी. टी टेस्टिंग के बारे में भी जानकारी मिली . फिर एक यु ट्युब वीडियो में देखा कैसे चाय टी टेस्टर अलग अलग चाय जैसे सफ़ेद (जी हाँ सफ़ेद), पीले , गोल्डन, लाल और काली चाय को टेस्ट करते हैं . सभी चाय में से एक छोटी घूँट मुंह में लेते है थोड़ी देर रखते है , स्वाद , महक का अनुभव करते है और फिर थूक देते है . क्या अंदाज क्या स्वैग. पता चला हम जो रोज रोज चाय पीते है वह सबसे सस्ती वाली या उससे जस्ट एक ग्रेड ऊपर वाली है . सबसे बढ़िया चाय तो सभी विदेशो में चले जाते है . तो यह है रेसिपी क्लास का . मुन्नार (२०१३) में टाटा टी के चाय बगान देखे पर टी फैक्ट्री फिर से देखने के लिए कोई राजी नहीं था, आस पास खूबसूरती बिखेरती प्रकृति में ज्यादा आनन्ददायक था।

अब आता हूँ अहसास पर।
यह गज़ब की रेसिपी है और जो इसमें स्वाद है वो कही नहीं है . आप ने सुना होगा माँ के हाथ का खाना . क्या सबकी की माँ मास्टर शेफ जीत कर आयी है ? तो क्यों वो सबसे यहाँ तक की पत्नियों से भी स्वादिष्ट खाना बना लेती है . यह है अहसास उसके प्यार और परवाह का . उनके खिलाने के अंदाज़ का है . खाते आप हो महसूस वह करती है . आपके चेहरे के सुकून से उसे पता चल जाता है खाना कैसा बना . "खाना कैसा बना ?" ऐसा वह कभी नहीं पूछती . उसे तारीफ नहीं चाहिए .



चाय पीने का अहसास - हमारा अंदाज़ रेसिपी
चाय रिलैक्स करने का एक गजब का साधन है थके हो और दोस्तों ने कहा चलो चाय पीते है, किसी चाय की टपड़ी पर चाय पी ली और बस सब थकान गायब . एक बार मेरी पत्नी ने ठीक कहा था खुद से चाय बना कर पिया तो क्या मज़ा चाय पीने का मज़ा तो तब है जब कोई चाय बना कर पिलाये . सच में कोई भी रेसिपी भी हो मज़ा तब ही आता है. ऐसे हमारी रेसिपी में चाय, दूध , चीनी का कोई भी अनुपात हो बस अहसास मिला हो उसमे .
गजब का स्वाद है . जब मैंने बनाया तो मुझे स्वादिष्ट तो नहीं लगा पर पत्नी जी के मुंह से हमेशा निकला "वाह". जब उन्होंने बनाया तो ? तो क्या वह तो स्वादिष्ट बनती ही है . पर ख़राब चाय यदा कदा कहीं न कहीं पीने को मिल ही जाती है और हम अकेले में कह उठते हैं कैसी रद्दी चाय थी एकदम BM ! BM हमारा कोड वर्ड है - बकरी का मूत . जैसे किसी ने यह पेय भी पिया हो. खैर ज्यादातर हम कह उठाते है एकदम ट्रैन वाली चाय . यानि चाय में सिर्फ पानी और चीनी ही है लेकिन ट्रैन और स्टेशन पर मिलने वाली चाय भी कभी कभी आश्चर्यजनक रूप से स्वादिष्ट होती है .आगे पढ़िए ट्रैन में मिलने वाले "सबसे ख़राब चाय " या "रामप्यारी चाय" - मेरा अगला ब्लॉग !