Tuesday, December 26, 2023

पटना - राजगीर नवंबर २०२३ भाग -३ (नालंदा )

पढ़िए मेरा पिछला ब्लॉग राजगीर नवंबर २०२३


1) नालंदा महाविहार में हमलोग 2) घोरा कटोरा लेक , राजगीर (फोटो विकिपीडिया से साभार )

हम राजगीर में दो जगहें - घोरा कटोरा और जरासंध का अखाडा इसलिए नहीं गए तांकि हमारे पास नालंदा और हो सके तो पावापुरी जाने के लिए समय बचा रहे। खैर राजगीर से हम नालंदा की और चल पड़े। रास्ते में सिलाव आया जहां के खाजा मिठाई को GI TAG मिल चुका है। वहां खाजा खरीदने के लिए रुक गए । जिस दूकान पर रुके वह था काली साह की दुकान , और गजब तो अगल बगल में कई दुकाने इसी नाम से थी। हमने एक दूकान के बोर्ड में एक तस्वीर किसी बुजुर्ग की देखी और उसे ही असली काली साह समझ आधे किलो खाजा खरीद लिया। खाजा इतना हल्का होता है कि आधे किलो में ही एक छोटा कार्टन भर गया। जब मैंने बगल वाले दुकानदार जिसके बोर्ड पर भी काली साह लिखा था से पूछा असली काली साह कि दूकान कौन है तो उसका कहना था "हम भी असली है और यह भी असली है - सभी असली है"। हमें एकदम बासुकीनाथ के रास्ते घोरमारा के पेड़ा दुकान की याद आ गई। वहां सभी पेड़ा दुकान "सुखारी मंडल पेड़ा दुकान " के नाम से मिलेंगे। वहीँ नवादा (बिहार) के नजदीक पकरीबरावां का बारा (खस्ता बालूशाही ) दुकानों में दुलीचंद का नाम जरूर दिख जायेगा। कोलकाता में भी गंगूराम , गंगूराम ब्रदर्स , गंगूराम संस , गंगूराम एंड ग्रांडसंस इत्यादि नामों से मिठाई दूकान मिल जाएगी। यह सब परिवार की परंपरा को बनाये बचाये रखने कि चेष्टा है पर लोग असली स्वाद ढूंढ ही लेते है। बिहार के प्रसिद्द मिठाइयों में मनेर के लड्डू , सिलाव का खाजा और गया का तिलकुट , अनरसा और पकरीबरावां के बारा का स्थान प्रमुख है। ।

1. रांची का एक खाजा दूकान, 2. नालंदा महाविहार की इन्ही गलियों में कभी देवानंद और हेमा मालिनी ने गाना गया था।

सिलाव से हम थोड़ी देर में ही नालंदा पहुंच गए। शाम हो चली थी पर टिकट काउंटर खुला था और हम टिकट ले कर अंदर गए। एक गाइड कर लिया जिसने हमे अच्छी तरह घुमा - दिया , इतिहास भी बताया और हमलोगों के बहुत सारे फोटो भी खींच दिया। बाद में मैंने पाया की जबकि मैं फोटो में बैक ग्राउंड को महत्त्व देता हूँ इसने तो हमारी ऐसी फोटो खींच दे जैसे हम मधुचंदा पर आये हो।
गाइड ने बहुत कुछ बातें इतिहास की बताई और मैं उसको रिकॉर्ड करता गया उसके कहे बातों पर ही आगे लिख रहा हूँ। नालंदा को नालंदा महाविहार कहा जाता था। नालंदा का पाली में अर्थ होता है ज्ञान का दान। यह वो विश्वविद्यालय है जहाँ शिक्षा मुफ्त दी जाती थी। रहना भी मुफ्त था। जबकि तक्षशिला और अन्य विश्वविद्यालयों में शिक्षा मुफ्त नहीं दी जाती थी शुल्क या donation देना पड़ता था। यह तभी संभव था जब राज्य से आर्थिक सहयोग मिले और वह मिलता था गुप्त , वर्धन और पाल राजवंशो द्वारा । प्रवेश एक परीक्षा के बाद मिलता था। यहाँ पाली और संस्कृत में पढाई होती थी। यहाँ सारे विश्व से छात्र आते थे यूरोप , चीन , जापान , इंडोनेशिया , कोरिया इत्यादि से। ASI द्वारा इसको संरक्षित करने के अथक प्रयास किया गया है। पुराना जो भी निर्माण दिखता है उसमें BINDING मटेरियल में गुड़ का उपयोग हुआ था। खुदाई से निकले हुए निर्माण में से ७० प्रतिशत ओरिजिनल है और ३०% RECONSTRUCTED है जहां नए ईंटे और RCC दिखता है वह नया है। कई मंदिर और ध्यान के लिए प्लेटफार्म भी देखे । वह classic खंडहर भी देखा जो हम नालंदा के लिए देखते आये है। प्रवेश द्वार और चलने के लिए रास्ते आधुनिक काल में बनाये गए है।

1) स्तूप की तरह लगते है यह और 2) यह गढ्ढे नहीं है विहार के छात्रावास के कमरे है।

ह्वेन्सांग जो भारत हर्षवर्धन काल (७वीं शताब्दी ) में आया था। उसके डायरी के अनुसार यह विश्वविद्यालय १० KM X ५ KM के क्षेत्रफल में था। और अभी पूरा विश्वविद्यालय खुदाई में निकला भी नहीं। सिर्फ १० प्रतिशत ही हम देख पातें है। इसमें ही ११ बौद्ध विहार है। पूरे नालंदा में कभी १०८ विहार है। २० गाँव में अभी भी अवशेष मिलते है। इसी २०२३ जनवरी में बुद्ध की दो मूर्ति गांव में मिले है। छात्रों के लिए है छात्रालय भी देखे। जहां एक छात्र एक कमरा और एक विषय एक छत्रावास थे। इस विश्वविद्यालय की स्थापना कुमारगुप्त (४वीं शताब्दी) ने की थी और इसका पोषण हर्ष वर्धन और देव पाल ने किया। १२वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी बिहार पर आक्रमण किया और उसने इस विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया। कहते है इसके पुस्तकालय में इतने किताब थी कि ६ महीने तक वे जलते रहे। चीनी यात्री और छात्र ह्वेन्सांग नालंदा से संस्कृत के करीब ६०० और उसके बाद आये ऑय तिंग ४०० संस्कृत किताबे अपने साथ चीन ले गए। ये किताबे महायान और वज्रयान बुद्धिज़्म के विकास का एक श्रोत बने।

१) काले ईंट जले हुए है और ASI द्वारा सरक्षण के डालें गए नए ईंट लाल है आरसीसी लिंटल भी ASI ने लगाए है। २) हमलोग विहार संख्या १ के आँगन में।

नालंदा में ही जॉनी मेरा नाम के एक प्रसिद्द गाने की शूटिंग हुई जिसमे देवानंद और हेमा मालिनी मुख्य कलाकार थे। हमें बहुत भूख लगी थी पर मैं रोड पकडने की ड्राइवर के ज़िद के कारण कई अच्छे रेस्टोरेंट छोड़ हम एक बेकार से ढाबे पर अंडा रोल खा कर पटना लौट आये। जितना देख लेना चाहते थे वो नहीं हुआ। कई जिज्ञासा बानी रह गयी। फिर आऊंगा के सोच के साथ हम पटना और फिर रांची लौट आये।
मेरा अगला ब्लॉग जल्द ही आएगा , आशा है अवश्य पढ़ेंगे !

Thursday, December 21, 2023

राजगीर का भूगोल और इतिहास से इसका सम्बन्ध


पढ़िए मेरा ब्लॉग राजगीर नवंबर २०२३

किले क्या और क्यों है ? और जहां है वहीँ क्यों है ? सभी किले सैन्य चौकी है पर कुछ किले राजपरिवार के रहने का स्थान भी है। राजतन्त्र में राजा का हार जाने, मारे जाने या पकडे जाने का मतलब होता है युद्ध हार जाना। इसलिए किले दुर्गम सुरक्षित स्थानों में बनाये जाते थे। जैसे कुम्भलगढ़ और कई मराठा किले। लेकिन दूसरी महत्वपूर्ण जरूरत है पानी। पुराना राजगीर जो दो सामानांतर पर्वत श्रंखला के बीच है इसलिए दुर्गम और सुरक्षित जरूर रहा होगा पर पानी ? उत्तर मिला पंचाने नदी में। यह नदी पांच नदियों (खुरी , तिलैया , धनराजे , धांधर और मंगुरा ) का संगम बनती है और प्राकृतिक घोरा कटोरा झील भी इसके करीब ही है। इन दो मुख्य जरूरते पुरे होने से यह जगह बनी राजगृह - राजाओं का घर ।

मैं कई बार राजगीर के पास के नेशनल हाईवे से गुजरा हूँ पर कभी राजगीर के प्रसिद्द ऐतहासिक स्थल नहीं दिखे। इसबार जब राजगीर गया तो जो बात हमने यह जानने की चेष्टा की की ऐसे क्या है इस स्थान के भूगोल में की महाभारत काल , बुद्ध काल , मौर्य काल , गुप्त काल , वर्धन काल और पाल काल तक के कुछ न कुछ अवशेष इस स्थान और इसके आस पास मिले है। बिम्बिसार और उसके पुत्र अजात शत्रु के बारे में पढ़े थे और पढ़ी थी मगध के शक्तिशाली साम्राज्य की वैशाली पर एक स्त्री (आम्रपाली ) के कारण की गयी चढ़ाई। पर राजगीर ही क्यों ? मैंने थोड़ी कोशिश की है इसे समझने के लिए।


राजगीर का एक पुराना सरकारी मैप कृतज्ञता सहित

भारतीय राज्य बिहार के दक्षिण मध्य क्षेत्र में राजगीर शहर। यह रत्नागिरि, विपुलाचल, वैभवगिरि, सोनगिरि और उदयगिरि नामक पांच पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यह एक महत्वपूर्ण बौद्ध, हिंदू और जैन तीर्थ स्थल है।राजगीर बिहार राज्य का छोटा पृथक पहाड़ी क्षेत्र है । विशाल पत्थरों से बनी यह संरचना दक्षिण बिहार के मैदानों से तेजी से बढ़ती ढलान है जो पांच पहाड़ियों में तब्दील हो जाती है । पहाड़ियाँ उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम में लगभग 65 किमी तक दो लगभग समानांतर पर्वतमालाओं जैसी हैं जो उत्तर-पूर्व में एक संकीर्ण घाटी को घेरती हैं जो धीरे-धीरे दक्षिण-पश्चिम की ओर खुलती है। उनके शिखर समतल, बड़े पैमाने पर सुविधाविहीन छोटे वनों जैसे हैं। सबसे ऊँची चोटी समुद्र तल से 1,272 फीट (388 मीटर) की ऊँचाई पर है लेकिन, सामान्य तौर पर, वे शायद ही कभी 1,000 फीट (300 मीटर) से अधिक हो।
इस नक़्शे से यह पता चलता है यह कितनी सुरक्षा का अहसास दिलाती होगी उन राजाओं को जिसका गृह था राजगृह या राजगीर। चारो तरफ के पहाड़ राजगीर को छिपा कर कर भी रख सकते थे। उस पर २५०० साल या उससे भी पहले अनगढ़ पत्थडों से बने CYCLOPEAN दीवार भी तो थी। इसे CYCLOPEAN इसलिए कहते क्योंकि बड़े बड़े पत्थर को CYCLOPS यानि दैत्यों द्वारा ही बनाये जा सकते थे। पत्थरो के बीच कील के तरह छोटे छोटे पत्थरो को ठोका गया हो ऐसा लगता है। ४० - ४५ KM लम्बी यह दीवार भारत की सबसे लम्बी दीवार भी है। ऐसे थोड़ी सी दीवार ही सबूत बची है। थोड़ी थोड़ी दूर पर चबूतरे बने है सैनिको और शस्त्रों के लिए। साढ़े सत्रह फ़ीट चौड़ी यह दीवार ३-४ मीटर ऊँची है। ऐसे जहाँ ३०० मीटर ऊँची पहाड़िया हो वहां ऐसी दीवार की जरूरत हो ऐसा तो नहीं लगता। अंदर में एक आंतरिक दीवार भी हुआ करती होगी। Cyclopean दीवार दो जगह "NH (NATIONAL HIGHWAY) 120" से कट भी जाती है और गाइड आपको इसी जगह यह दीवार को दिखने ले जाते है।


राजगीर गुगल मैप की नजर में

क्योंकि यह स्थान दो समानांतर पर्वतमालाओं द्वारा संरक्षित था, अजातशत्रु ने इसे 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में पूर्वी भारतीय साम्राज्य मगध की राजधानी बनाया और इसका नाम राजगृह रखा। अजातशत्रु ने अपने पिता राजा बिम्बिसार को कैद करके सिंहासन पर कब्ज़ा कर लिया। और अभी भी एक जगह बिम्बिसार की जेल के नाम से जाना जाता है। बिम्बिसार, जिसे स्वयं बुद्ध ने बौद्ध धर्म में परिवर्तित किया था, ने अनुरोध किया कि उसकी जेल एक छोटी पहाड़ी के पास बनाई जाए ताकि वह सुबह और शाम को बुद्ध को गुजरते हुए देख सके।


Cylopean दीवार curtsey wikipedia

आधुनिक समय में, आगंतुक बौद्ध तीर्थ विश्व शांति स्तूप जहां के निकट माना जाता है कि बुद्ध ने का उपदेश दिया था, की यात्रा के लिए पहाड़ी की चोटी तक रोपवे का अनुसरण कर सकते हैं। भारत का सबसे पुराना रोपवे यहीं है। नीचे उतरने पर, दर्शक गिद्ध की चोटी (ग्रिधकुटा) देख सकते हैं, जहां कहा जाता है कि बुद्ध ने दिन के उपदेश के बाद विश्राम किया था।
जरासंध की कहानी
जरासंध के जन्म की कहानी भी अजीब है राजा बृहद्रथ की दो रानियां थी पर उन्हें कोई संतान नहीं थी। राजा ने एक मुनि चन्द्रकौशिका से प्रार्थना की तो उन्होंने एक आम का फल उन्हें दिया। अब राजा ने आम के दो टुकड़े किये और उसे दोनों रानियों को खिला दिया। अब ऐसा करना तो था नहीं और दोनों रानियां आधे आधे बच्चे को जन्म दिया। रानियों ने बच्चे के लोथड़ों को त्याग करने का निश्चय दिया। जरा एक राक्षसी थी और उसे यह लोथड़े मिले तो उसने उन्हें एक साथ कर मिला कर ले जाना चाहा। लेकिन मिलाते ही दोनों लोथड़े जुड़ गए और ज़िंदा हो गए। बच्चे का शरीर हीरे की तरह कठोर था और वो शेर की तरह गरज रहा था। जरा ने बच्चा राजा बृहद्रथ को दे दिया। इसी जरा का एक मंदिर भी है राजगीर में।
जरासंध के दामाद कंस को कृष्णा ने मारा था और यहीं कारण था की जरासंध और कृष्ण की दुश्मनी का। जरासंध ने कई बार मथुरा पर चढ़ाई की हर बार कृष्ण उसकी पूरी सेना को मर देते पर जासंध को जाने देते। महाभारत की लड़ाई के बाद जब युधिष्ठिर राज सूय यज्ञ यज्ञ करने वाले थे तो कृष्ण को जरूरी लगा की पहले जरासंध को खत्म करना जरूरी है। कृष्ण भीम और अर्जुन जब जरासंध के पास गए तो कृष्ण ने जरासंध से कहा की हम तीनों में से किसी एक से युद्ध कर ले। जरासंध ने भीम को चुना। १८ दिन तक मल्ल युद्ध हुआ। अंत में कृष्ण के इशारा करने पर भीम ने जरासंध को दोनों पैरों को अलग करने के लिए खींचा। जरासंध दो भाग में पैदा हुए थे इस लिए आसानी से दो भाग में बंट गया। लेकिंन फिर तुरंत जुड़ भी गया। अंत में कृष्ण ने एक तृण को तोड़ कर उलटी तरफ फेंक कर इशारा किया तब भीम ने जरासंध के दोनों भाग उलटे तरफ फेंके और इस बार वे जुट न सके।
आम्रपाली और अजातशत्रु :
आम्रपाली को वैशाली गणराज्य में नगर वधु का ओहदा प्राप्त था पर कहते हैं कि बिंबिसार का पुत्र अजातशत्रु उसे हासिल करना चाहता था। जब यह बात वैशाली के गण सभा को पता चला तो तो उन्होंने आम्रपाली को जेल में डाल दिया गया। अजातशत्रु को यह पता चला तो उसने वैशाली पर आक्रमण कर कई लोगों की जान ले ली। लेकिन इससे कुछ हासिल नहीं हुआ। बुद्ध विहारों में तब स्त्रियों का प्रवेश वर्जित था पर बुद्ध के कहने पर आम्रपाली पहली बौद्ध भिक्षुणी बानी और संघ के शरण में आई।

Tuesday, December 19, 2023

पटना - राजगीर नवंबर २०२३ भाग -२ (राजगीर )


पढ़िए मेरा ब्लॉग राजगीर का भूगोल और इतिहास से इसका सम्बन्

राजगीर या राजगृह महाभारत कालीन नगर है। माना जाता है जरासंध और भीम का मल्लयुद्ध हुआ और जरासंध का अखाड़ा यहीं है। बुद्ध कालीन बिम्बिसार का जेल और स्वर्ण भंडार भी है यहां। मौर्य काल से पाल काल तक के चिन्ह मौजूद है यहां। अपने छात्र जीवन के कई साल पटना बिताने के बावजूद मै कभी राजगीर - नालंदा नहीं गए। भाग्य का खेल की परिवार के लोग तो राजगीर गए पर मै नहीं गया। कालेज जीवन में तो हर साल शैक्षणिक भ्रमण पर जाना पड़ता था तो नज़दीक की जगहे छूट जाती है। घर की मुर्गी दाल बराबर जो हो जाती है। बिहार के हर दर्शनीय स्थल पटना छूटने के बाद ही गए।

ज़ू सफारी और एक शेरनी

राजगीर नालंदा वाली टैक्सी सुबह सुबह आने वाली थी। जितनी जल्दी गए उतनी ज्यादा जगह देख पाएंगे , करीब साढ़े सात बजे टैक्सी आ गयी। हम तुरंत चल पड़े कुछ नाश्ता भी साथ में रख लिया । थोड़ी दूर चले ही थे कि ड्राइवर ने पूछा "क्या हमने ऑनलाइन ज़ू सफारी और नेचर सफारी बुक किया है ?" नेचर सफारी में ही ग्लास ब्रिज और झूला पुल है और ज़ू सफारी में क्या हो सकता है सबको पता है। हमें तो पता ही नहीं था की ADVANCE में बुक करना पड़ता है। ड्राइवर ने किसी को फ़ोन कर टिकट के इंतेज़ाम करने के लिए कहा। हम करीब ९:३० तक राजगीर सफारी पार्क पहुंच गए। ज़ू सफारी के टिकट तो मिल गया लेकिन नेचर सफारी का नहीं मिला। प्रवेश के लिए १०० और ज़ू सफारी के लिए १५० रुपये देने पड़े। प्रवेश करते ही बड़ी अच्छी बिल्डिंग मिली। बिल्डिंग और पार्क शानदार था हम फोटोग्राफी करते अंदर पहुंच गए। सभी सुविधाएँ vishwastar की लगी साफ सुथारी। एक छोटी सी प्रदर्शनी भी था और प्रतीक्षा कक्ष में स्क्रीन पर कोई फिल्म / वीडियो चलायी जा रही थी , खाने पीने का सामान भी बिक रहा था। पर हद तो तब हो गयी जब मैं साफ सुथरे आधुनिक वाश रूम में गया कुछ लोग वहां भी फोटो वीडियोग्राफी कर रहे थे। पागल लोग । लाइन में लगने पर हमें एक नंबर दिया गया। AC बस जिसमे सारी खिड़किया बंद थी से जाना था। मुश्किल यह था जब भी कोई जानवर दिखता सभी एक साथ खड़े हो जाते। सफारी में पांच बाड़े है हिरण, भालू , तेंदुआ, बाघ और सिंह (शेर) । हमने सभी जानवर दिखे पर शेरनी का डबल गेट पर इस तरह खड़े होना की जब गेट खुले और वो बाहर जा सके बड़ा मनोरंजक लगा। मज़ा बहुत आया । वापस आने पर हमने पार्क में बैठ कर लाया हुआ पराठा भुंजिया खाया और बाहर आ गए। अच्छा था की नेचर सफारी नहीं गए नहीं तो कहीं और नहीं जा पाते पूरा दिन यहीं निकल जाता। मेरा सुझाव है की यदि राजगीर - नालंदा आएं तो कम से कम दो दिन और हो सके तो तीन दिन का प्रोग्राम बनाये। मैं शायद फिर आऊं।

ज़ू सफारी जाने की बसें और POSE देती एक हिरण

हमारा अगला स्टॉप था विश्व शांति स्तूप जिसके लिए एक रज्जु पथ (ROPE WAY ) से जाना था। हमे सिर्फ एक रोप वे का पता था जिसमे एक कुर्सी रोप से लटकता रहता है और जिसे हमने जॉनी मेरा नाम फिल्म में देखा था और जिससे मेरी छोटी बहन की चप्पल गिर गई थी।इस रोपवे के कुर्सी पर उसके साथ दौड़ते हुए चढ़ा जाता है। लोग सहायता के लिए रहते है। यहाँ आने पर पता चला एक ८ सीटर केबिन वाला एक ROPE WAY और भी है। जब हम पहुंचे केबिन वाला रज्जु मार्ग लंच के लिए बंद था। मेरी पत्नी ने कहा क्योंकि हमे सिर्फ कुर्सी वाला ही पता था उसीसे जायेंगे। यह बहुत अच्छा हो गया क्योंकि समय भी बचा और शनिवार के बावजूद ऊपर स्तूप पर भी भीड़ नहीं थी। यह एकल सीट वाला कुर्सीनुमा रोपवे देश का सबसे पुराना रोपवे भी है।

एकल सीट वाला कुर्सीनीमा रोप वे और विश्व शांति स्तूप

विश्व शांति स्तूप के रज्जु मार्ग स्टेशन के पास से ही घोरा कटोरा के लिए इलेक्ट्रिक ऑटो / टमटम मिलते थे पर मैं जानता था की वहां सिर्फ एक प्राकृतिक लेक है और क्यूंकि हमें नौकायन नहीं करना था। हमने वहां नहीं जाने निर्णय लिया तांकि हम नालंदा भी देख पाएं। अक्सर जो लोग राजगीर में रात में रुक कर राजगीर को EXPLORE करते है उन्हें घूमने के लिए तांगा एक अच्छा विकल्प है। यह पर हेड के हिसाब से पैसे लेते है और १०-११ जगह दिखाते है। पूरा तांगा भी किया जा सकता है। हम स्वर्ण भंडार , ज़रा देवी मंदिर , ४०-४५ KM लम्बी बिना तराशे पत्थर की CYCLOPEAN दीवार को रोड पर से देख कर नालंदा के लिए चल पड़े। सोन भंडार गुफाएं (जिन्हें स्वर्ण भंडार गुफाएं भी कहा जाता है) दो मानव निर्मित गुफाएँ हैं जो राजगीर राज्य में वैभार पहाड़ियों की तलहटी में खुदी हुई हैं । बड़ी गुफा में पाए गए समर्पित शिलालेख के आधार पर - जो ४ थी शताब्दी ईस्वी की गुप्त लिपि का उपयोग करता है - गुफाएं आम तौर पर 3री शताब्दी की बताई जाती हैं या चौथी शताब्दी की, हालांकि कुछ लेखकों ने सुझाव दिया है कि गुफाएं वास्तव में मौर्य साम्राज्य के काल की हो सकती हैं, संभवतः 319 ईसा पूर्व की। यहाँ के पत्थर ग्रेनाइट तुलना में बहुत कम कठोर है, और इसलिए उसे उतने प्रयास और तकनीक की आवश्यकता नहीं है। गाइड ने बताया इन गुफाओं का निर्माण मौर्य साम्राज्य के शासनकाल के दौरान 319 से 180 ईसा पूर्व के दौरान किया गया था। चौमुखा (चतुर्भुज) मूर्ति गुफा के अंदर मिली इसका शीर्ष गुंबददार है और प्रत्येक तरफ का स्तंभ एक धर्मचक्र दर्शाता है। प्रत्येक तरफ जानवरों की नक्काशी है जो संबंधित जैन तीर्थंकर के प्रतीक का प्रतिनिधित्व करती है ।

स्वर्ण भंडार , राजगीर के टमटम/ एक्का

रास्ते में सिलाव में रूक कर वहां GI TAG प्राप्त खाजा खरीदते हुए हम नालंदा पहुंचे।


काली शाह के खाजा दुकान सिलाव

एक गाइड ले कर घूमे हमारे पास करीब एक घंटे ही बचे थे पर गाइड के कारण बहुत अच्छी तरह देख पाए। गाइड की आवाज़ रिकॉर्ड कर लिए और वह जानकारी मैं अगले ब्लॉग में दूंगा।

Sunday, December 17, 2023

पटना - राजगीर नवंबर २०२३ भाग -१ (पटना )


इस यात्रा के बारे में लिखू उससे पहले मैं मन की एक बात शेयर करना चाहता हूँ। मेरे मोहल्ले से निकलते ही मैं रोड के कार्नर में नाले के पास एक भिखारी करीब करीब रोज़ एक या दो घंटे सबह बैठता है। इसका एक पैर नहीं है और किसीने नकली पैर बनवा दिया है । मैं अक्सर घर से कुछ सिक्के इसी के लिए ले कर सुबह के वाक पर निकलता हूँ। इसमें कोई खास बात नहीं, पर डिजिटल पेमेंट के इस युग में इसकी आमदनी बहुत कम हुई है। कभी कभी इसी कारण मेरे पास इसको देने लायक सिक्के नहीं होते। अब गरीबों को मिलने वाली सरकार की मदद के लिए भी एक अदद बैंक अकाउंट और आधार कार्ड होने चाहिए। ऐसे दीन हीनों के लिए कुछ योजना सरकार को बनाना चाहिए।
अब अपने ब्लॉग की असली टॉपिक पर आना चाहता हूँ। पहले ही एक ब्लॉग से मैंने रांची से पटना के बीच चलने वाले वन्दे भारत एक्सप्रेस पर लिख चूका हूँ। यहां लिंक दे रहा हूँ जो नहीं पढ़े है अब पढ़ सकते है। हम लोग रात दस बजे के लगभग पटना जंक्शन से प्लेटफार्म संख्या ८ पर उतर गए । स्टेशन पर सीढ़ी , स्लोप और चलंत सीढ़ी भी है। चलंत सीढ़ी सिर्फ चढ़ने के लिए है। हम लोग स्लोप से प्लेटफ़ॉर्म न० १० पर गए। बता दूँ स्लोप पर चढ़ने से ज्यादा उतरना दिक्कत का काम है क्योंकि आपको स्ट्रॉली बैग ठकेलता रहता है। अपने बहन के यहाँ पहुंच तो एक घंटे गप सप कर सो गए । खाना ट्रेन में खा लिए थे। पता चला अगले दिन डिनर के लिए कहीं और जाना है। अब मेरी पत्नी की एक शिकायत हमेशा से रही है की पटना कई बार गुजरे पर मैंने उन्हें कहीं घुमाया नहीं जबकि मेरा छात्र जीवन यहीं बीता। मैं क्या बताऊँ अब का पटना तब के पटना से एकदम अलग है।
तब एक ही FLYOVER था चिड़ैयांटांड पुल । अब पूरा पटना FLYOVERS से पटा पड़ा है और इस पहले मंज़िल की रोड दुनिया में मैं तो खो जाता हूँ। पहले पटना पटनासिटी से शुरू हो कर गर्दनीबाग में ख़त्म होता था। बोरिंग रोड भी लगता पटना से बाहर की जगह हो। कुरजी अस्पताल तो हमेशा हमने पटना से बाहर की जगह ही माना जाता था। अब तो पटना फतुआ से दानापुर और दीघा घाट तक फ़ैल गया है। हमारे छात्र जीवन में अशोक राजपथ स्थित पटना मार्किट भी एक दर्शनीय स्थान था और गोलघर , गांधीमैदान घूम आये तो पटना घूम लिया कह सकते थे । बहुत से बहुत हरमंदिर साहेब और पटनदेई मंदिर घूम लो।

गोलघर और पटना साहेब विकिपीडिया के सौजन्य से (हम यहाँ नहीं जा पाए )

अब घूमना कि कई जगह है। इतनी की ३-४ दिन लगे घूमने में। संजय गाँधी पार्क , ECO पार्क , बुद्ध स्मृति पार्क , तारा मंडल , पटना हनुमान मंदिर, पटना म्यूजियम भी अब पुराने हो गए है क्योंकि अब इनके अलावा है बिहार म्यूजियम , मरीन ड्राइव , गंगा आरती , गाँधी घाट। अब हमारा सिर्फ ३ दिन का प्रोग्राम था और था शादी का सीजन। यहाँ हमें एक गृह प्रवेश , एक सगाई, एक शादी और अपने ससुराली लोगों से मिलना भी इसी ३ दिनों में करना था। पहले दिन हमने बिहार म्यूजियम और मरीन ड्राइव को रात्रि में होने वाले गृह प्रवेश के साथ समायोजित (ADJUST ) कर लिया। बिहार म्यूजियम एक आधुनिक म्यूजियम है इसमें बिहार की पुरातन काल के कई पुरातन कला कृति - पाषाण काल से मुग़ल काल तक की प्रदर्षित है। हमने वहीं स्थित POTBELLY रेस्टारेंट में खाना खाया यहां सिर्फ authentic बिहारी व्यंजन ही उपलब्ध थे ।

बिहार म्यूजियम में यक्षी और डांसिंग गर्ल (मौर्य कालीन ये मूर्तियां गजब है )

मरीन ड्राइव गंगा के किनारे एक लम्बे STRIP पर खाने पीने के सामान , खिलोने , बच्चो के लिए बैटरी कार RIDE वैगेरह उपलब्ध है। हमने पटना के मैरीन ड्राइव में एक फिल्मी चाय वाले को जिसके स्टाल में ऋतिक के पोस्टर के लगे होते है को ढूढ़ रहे थे । पता चला था इस टपरी को चलाने वाले ने सुपर ३० फिल्म में एक रोल निभाया था। जब यह स्टाल नहीं मिला तो हमने किसी भी चाय के स्टाल में तंदूरी चाय पीने का निर्णय लिया।

बिहार म्यूजियम में आधुनिक कला कृति - BEST FROM WASTE

हमें समय जो कम था। तंदूरी चाय के लिए मिट्टी के कई कुल्हड़ चूल्हे में गर्म करने डाल रखते है और लाल होने तक गर्म करते है। चाय बनाने के बाद उसमें लाल गर्म कुल्हड़ डाल देते है इससे चाय में एक सोंधा पन आ जाता है और फिर एक ठंढे कुल्हड़ में चाय डाल कर ग्राहक को पेश कर देते है। ऐसे बनता है तंदूरी चाय । हमने कुछ फोटोग्राफी की। गंगा जी काफी दूर चली गयी है और अँधेरा भी था हम लोगों ने गंगा किनारे जाने का कोई कोशिश नहीं की। आज रात जहाँ गृह प्रवेश में जाना था वो एक नई नई बनी कोलोनी थी और कुछ दिक्कत और गूगल मैप के भटकने के बावजूद पहुंच ही गए।

पटना मरीन ड्राइव के कुछ दृश्य

दूसरे दिन बहुत जगहों से निमंत्रण था। एक जगह विवाह पूर्व की पूजा और लंच - एक जगह विवाह पूर्व मुलाक़ात सुबह के नाश्ता के साथ और अपने साले साहेब के यहाँ रात्रि भोज था यानि कहीं और घूमने जाने की कोई गुंजाइश नहीं थी हमारे पास। मेरे बहनोई साहेब हमें गंगा आरती और नौकायन के लिए ले जाना चाहते थे पर अब यह संभव नहीं था यह। अगले दिन का कोई प्रोग्राम बनता उससे पहले मैंने राजगीर नालंदा का एक दिन का टैक्सी ट्रिप बुक कर लिया। राजगीर - नालंदा अगले भाग में।

Sunday, December 10, 2023

दो कदम तुम चले दो कदम मैं चला


तुम हो

तसव्वुर में तुम हो
चांद तारों में तुम हो

ख़्वाबों में तुम हो
ख्यालों में तुम हो

मंजिल भी तुम हो
और राहें भी तुम हो

कश्ती भी तुम हो
और किनारा भी तुम हो

मौजमस्ती भी तुम हो
मटरगस्ती भी तुम हो

जेठ की तपिश हो
तो फागुन भी तुम हो

मेरे लफ्ज़ तुम हो
मेरे शेर तुम हो
किस्सा कहानी
और ग़ज़ल तुम हो

मेरे शब भी तुम हो
और सहर तुम हो

कहां हम जाए बता मेरे मौला
कि दर्द भी तुम हो
और दवा तुम हो
कि आफ़त भी तुम हो
और राहत भी तुम हो

एक और कविता
वसंत

जब हो मन में उमंग
समझो आ पहुंचा वसंत
डालों पर बैठे रति अनगं
मधु ले कर आ पहुँचा वसतं।
रंगो छन्दों में भरे प्राण
हे रितुराज तुमको प्रणाम।
बीता जाए शीतकाल
गृष्म ऋतु देता दस्तक।
पूछें कोयल कूक कूक
तुम आओगे अब कबतक।
मन तन है अब अलसाता
दूरी तो अब सहा न जाता ।
अब आओ सब छोड़ छाड़
तन्हां अब तो रहा न जाता।

होली

होली के रंग है
मन में उमंग है ।
पक्षियों के जोड़े भी
विचरते संग संग है ।
आ के छू जाओ मुझे
जब तन में तरंग है ।

अमिताभ कुमार सिन्हा
डिबडिह, रांची

Monday, December 4, 2023

उदयपुर सिटी ,उदयपुर यात्रा दिसंबर २०१८ भाग २


२३ दिसंबर २०१८ रविवार

अपने पिछले ब्लॉग में मैंने उदयपुर के आस पास में की गयी कुम्भलगढ़ की यात्रा के बारे में लिखा था। इस भाग में उदयपुर शहर में की गयी घुमक्कड़ी के बारे में कुछ बता रहा हूँ।

आज का प्लान था सिटी पैलेस , करनी माता मंदिर (रोप वे ), और बोटिंग। पर जितने की उम्मीद कर रखी थी उतनी घुमक्कड़ी नहीं हो पाई। सबसे पहले हम लोगों से निर्णय लिया उदयपुर का सिटी पैलेस जायेंगे। टैक्सी वाले ने टिकट खिड़की तक पंहुचा कर गाड़ी पार्क कर हमे रास्ता दिखने आ गया । यह पैलेस उदयपुर के सबसे सुन्दर लेक यानि लेक पिछोला के किनारे ही है और यह सिटी पैलेस भी बहुत ही खूबसूरत है। लेक के अंदर एक होटल (शायद सेवन स्टार ) ताज लेक पैलेस है। यह होटल जग निवास पैलेस था जिसे मेवाड़ के महाराणा भगत सिंह ने १९६३ में एक होटल में बदल डाला।

सिटी पैलेस का पूरा व्यू (विकिपीडिया के सौजन्य से )

सिटी पैलेस (राज महल), उदयपुर शहर में स्थित एक महल परिसर है। इसे मेवाड़ राजवंश के कई शासकों के योगदान से लगभग 400 वर्षों की अवधि में बनाया गया था। इसका निर्माण 1553 में शुरू हुआ, जिसे सिसौदिया राजपूत परिवार के महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने शुरू किया था, जब उन्होंने अपनी राजधानी को तत्कालीन चित्तौड़ से नए शहर उदयपुर में स्थानांतरित कर दिया था। यह महल पिछोला झील के पूर्वी तट पर स्थित है और इसके परिसर में कई महल बने हैं।

महल की और जाते हुए और पिछोला लेक का अचंभित करने वाला दृश्य

हम लोग लेक के किनारे बने वाक वे पर टहलते नावों को देखते महल के तरफ चल पड़े । पता किया तो नाव का रेट ज्यादा था और होटल वाले द्वीप पर उतरना संभव नहीं होता। हमारे ड्राइवर ने बताया बोटिंग हम किसी और लेक में कर सकते है और फिर हम महल की और जल्दी जल्दी बढ़ चले। हमारा टिकट चेक हुआ और हम एक सकरे से सीढ़ियों से अंदर दाखिल हो गए। मुश्किल यह था की रविवार और क्रिसमस वाला हफ्ता होने के कारण भीड़ बहुत यानि सच में बहुत थी । पुरे महल में आप बिना किसी से टकराये आगे बढ़ ही नहीं सकते थे । इस कारण हम सभी को क्रिसमस वाले सप्ताह में उदयपुर सिटी पैलेस न जाने की सलाह देते है।

महाराणा प्रताप के चेतक की एक कलाकृति और महल का एक आंगन शिव विलास बीथी

परिसर के भीतर के महल कई चौकों या चतुष्कोणों के माध्यम से टेढ़े-मेढ़े गलियारों से जुड़े हुए हैं, जो दुश्मनों के अचानक हमलों से बचने के लिए इस तरह से योजनाबद्ध हैं। मुख्य त्रिपोलिया द्वार से प्रवेश करने के बाद, परिसर में सूरज गोखड़ा , मोर-चौक (मयूर प्रांगण), दिलखुश महल , सूर्य चौपड़, शीश महल हैं। (कांच और दर्पण का महल), मोती महल , कृष्ण विलास, शंभू निवास (अब शाही निवास), भीम विलास, अमर विलास - एक उभरे हुए बगीचे के साथ बड़ी महल , फतेप्रकाश महल और शिव निवास महल। यह परिसर एक डाकघर, बैंक, ट्रैवल एजेंसी, कई शिल्प दुकानों और विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) से संबंधित एक भारतीय बुटीक की सुविधाओं से सुसज्जित है। संपूर्ण परिसर मेवाड़ शाही परिवार की संपत्ति है और विभिन्न ट्रस्ट इसकी संरचनाओं की देखभाल करते हैं।

क्रिसमस के हफ्ते का रविवार और भीड़


सिटी पैलेस से उदयपुर शहर का एक विहंगम दृश्य और चौमुखा पवैलियन

भीड़ के कारण हमे पैलेस को देखने में काफी समय लग गया। दोपहर तक ही निकल पाए और हमारे पुरे ग्रुप में किसी ने कुछ देखा तो किसी ने कुछ। हमारे ग्रुप में सभी कुछ देखने वाले एक ही व्यक्ति था। यह व्यक्ति टूर के फोटो देखने पर अब भी बताता है की "अपने तो यह देखा ही नहीं - भीड़ से डर कर"। जब निकले तो हम रोपवे ले कर करनी माता जाना चाहते थे पर ड्राइवर ने बताया मंदिर बंद मिलेगा। हमारे प्रोग्राम में सिर्फ कहीं नौका यान करना बाकि था और इसके लिए हमें किसी बढ़िया लेक पर जाना था। पता चला लेक पिछोला के तरह फ़तेह सागर लेक भी मानव निर्मित है और हम सभी वही जा रहे थे।

फतेहसागर लेक में नौका यान और लेक के किनारे भीड़ भाड़ वाले रेस्टोरेंट में लंच

बोट का टिकट ज्यादा नहीं था। हमने नाव से लेक के उस पार स्थित लोगों से भरे एक रेस्टोरेंट जा पहुंचे। सभी भूखे थे और यहाँ से लेक की बड़ी अच्छी व्यू आ रही थी। सभी से पेट भर खाया और हम अपने होटल लौट पड़े।