Sunday, December 17, 2023

पटना - राजगीर नवंबर २०२३ भाग -१ (पटना )


इस यात्रा के बारे में लिखू उससे पहले मैं मन की एक बात शेयर करना चाहता हूँ। मेरे मोहल्ले से निकलते ही मैं रोड के कार्नर में नाले के पास एक भिखारी करीब करीब रोज़ एक या दो घंटे सबह बैठता है। इसका एक पैर नहीं है और किसीने नकली पैर बनवा दिया है । मैं अक्सर घर से कुछ सिक्के इसी के लिए ले कर सुबह के वाक पर निकलता हूँ। इसमें कोई खास बात नहीं, पर डिजिटल पेमेंट के इस युग में इसकी आमदनी बहुत कम हुई है। कभी कभी इसी कारण मेरे पास इसको देने लायक सिक्के नहीं होते। अब गरीबों को मिलने वाली सरकार की मदद के लिए भी एक अदद बैंक अकाउंट और आधार कार्ड होने चाहिए। ऐसे दीन हीनों के लिए कुछ योजना सरकार को बनाना चाहिए।
अब अपने ब्लॉग की असली टॉपिक पर आना चाहता हूँ। पहले ही एक ब्लॉग से मैंने रांची से पटना के बीच चलने वाले वन्दे भारत एक्सप्रेस पर लिख चूका हूँ। यहां लिंक दे रहा हूँ जो नहीं पढ़े है अब पढ़ सकते है। हम लोग रात दस बजे के लगभग पटना जंक्शन से प्लेटफार्म संख्या ८ पर उतर गए । स्टेशन पर सीढ़ी , स्लोप और चलंत सीढ़ी भी है। चलंत सीढ़ी सिर्फ चढ़ने के लिए है। हम लोग स्लोप से प्लेटफ़ॉर्म न० १० पर गए। बता दूँ स्लोप पर चढ़ने से ज्यादा उतरना दिक्कत का काम है क्योंकि आपको स्ट्रॉली बैग ठकेलता रहता है। अपने बहन के यहाँ पहुंच तो एक घंटे गप सप कर सो गए । खाना ट्रेन में खा लिए थे। पता चला अगले दिन डिनर के लिए कहीं और जाना है। अब मेरी पत्नी की एक शिकायत हमेशा से रही है की पटना कई बार गुजरे पर मैंने उन्हें कहीं घुमाया नहीं जबकि मेरा छात्र जीवन यहीं बीता। मैं क्या बताऊँ अब का पटना तब के पटना से एकदम अलग है।
तब एक ही FLYOVER था चिड़ैयांटांड पुल । अब पूरा पटना FLYOVERS से पटा पड़ा है और इस पहले मंज़िल की रोड दुनिया में मैं तो खो जाता हूँ। पहले पटना पटनासिटी से शुरू हो कर गर्दनीबाग में ख़त्म होता था। बोरिंग रोड भी लगता पटना से बाहर की जगह हो। कुरजी अस्पताल तो हमेशा हमने पटना से बाहर की जगह ही माना जाता था। अब तो पटना फतुआ से दानापुर और दीघा घाट तक फ़ैल गया है। हमारे छात्र जीवन में अशोक राजपथ स्थित पटना मार्किट भी एक दर्शनीय स्थान था और गोलघर , गांधीमैदान घूम आये तो पटना घूम लिया कह सकते थे । बहुत से बहुत हरमंदिर साहेब और पटनदेई मंदिर घूम लो।

गोलघर और पटना साहेब विकिपीडिया के सौजन्य से (हम यहाँ नहीं जा पाए )

अब घूमना कि कई जगह है। इतनी की ३-४ दिन लगे घूमने में। संजय गाँधी पार्क , ECO पार्क , बुद्ध स्मृति पार्क , तारा मंडल , पटना हनुमान मंदिर, पटना म्यूजियम भी अब पुराने हो गए है क्योंकि अब इनके अलावा है बिहार म्यूजियम , मरीन ड्राइव , गंगा आरती , गाँधी घाट। अब हमारा सिर्फ ३ दिन का प्रोग्राम था और था शादी का सीजन। यहाँ हमें एक गृह प्रवेश , एक सगाई, एक शादी और अपने ससुराली लोगों से मिलना भी इसी ३ दिनों में करना था। पहले दिन हमने बिहार म्यूजियम और मरीन ड्राइव को रात्रि में होने वाले गृह प्रवेश के साथ समायोजित (ADJUST ) कर लिया। बिहार म्यूजियम एक आधुनिक म्यूजियम है इसमें बिहार की पुरातन काल के कई पुरातन कला कृति - पाषाण काल से मुग़ल काल तक की प्रदर्षित है। हमने वहीं स्थित POTBELLY रेस्टारेंट में खाना खाया यहां सिर्फ authentic बिहारी व्यंजन ही उपलब्ध थे ।

बिहार म्यूजियम में यक्षी और डांसिंग गर्ल (मौर्य कालीन ये मूर्तियां गजब है )

मरीन ड्राइव गंगा के किनारे एक लम्बे STRIP पर खाने पीने के सामान , खिलोने , बच्चो के लिए बैटरी कार RIDE वैगेरह उपलब्ध है। हमने पटना के मैरीन ड्राइव में एक फिल्मी चाय वाले को जिसके स्टाल में ऋतिक के पोस्टर के लगे होते है को ढूढ़ रहे थे । पता चला था इस टपरी को चलाने वाले ने सुपर ३० फिल्म में एक रोल निभाया था। जब यह स्टाल नहीं मिला तो हमने किसी भी चाय के स्टाल में तंदूरी चाय पीने का निर्णय लिया।

बिहार म्यूजियम में आधुनिक कला कृति - BEST FROM WASTE

हमें समय जो कम था। तंदूरी चाय के लिए मिट्टी के कई कुल्हड़ चूल्हे में गर्म करने डाल रखते है और लाल होने तक गर्म करते है। चाय बनाने के बाद उसमें लाल गर्म कुल्हड़ डाल देते है इससे चाय में एक सोंधा पन आ जाता है और फिर एक ठंढे कुल्हड़ में चाय डाल कर ग्राहक को पेश कर देते है। ऐसे बनता है तंदूरी चाय । हमने कुछ फोटोग्राफी की। गंगा जी काफी दूर चली गयी है और अँधेरा भी था हम लोगों ने गंगा किनारे जाने का कोई कोशिश नहीं की। आज रात जहाँ गृह प्रवेश में जाना था वो एक नई नई बनी कोलोनी थी और कुछ दिक्कत और गूगल मैप के भटकने के बावजूद पहुंच ही गए।

पटना मरीन ड्राइव के कुछ दृश्य

दूसरे दिन बहुत जगहों से निमंत्रण था। एक जगह विवाह पूर्व की पूजा और लंच - एक जगह विवाह पूर्व मुलाक़ात सुबह के नाश्ता के साथ और अपने साले साहेब के यहाँ रात्रि भोज था यानि कहीं और घूमने जाने की कोई गुंजाइश नहीं थी हमारे पास। मेरे बहनोई साहेब हमें गंगा आरती और नौकायन के लिए ले जाना चाहते थे पर अब यह संभव नहीं था यह। अगले दिन का कोई प्रोग्राम बनता उससे पहले मैंने राजगीर नालंदा का एक दिन का टैक्सी ट्रिप बुक कर लिया। राजगीर - नालंदा अगले भाग में।

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