Monday, November 22, 2021

ख्यालों में घुमक्कड़ी ( #यात्रा)

ख्यालों में गंगटोक - दर्जिलिंग यात्रा

मन ने कहा "जाओ कहीं घूम आओ"
मैं आज फिर अपने मनपसंद शगल में मशगूल होना चाहता हूँ, शायद मेरे सिवा भी कई और लोगो का भी यह एक पसंदीदा शगल हैं - यात्रा की रूप रेखा तैय्यार करना यानि हवाई किले बनाना । हमारे लिए २०१८ घूम - घुमक्कड़ी के ख्याल से बहुत बढ़िया साल था । फरवरी में हज़ारीबाग़ -रजरप्पा , मार्च में अंगराबारी, पटना और उत्तर पूर्व इंडिया (असम, मेघालय, अरुणांचल ) , मई में काठमांडू - चंद्रगिरि , जुलाई में मधुबनी - मंगरौनी - उच्चैठ , सेप्टेंबर में शिरडी - सप्तश्रृंगी , अक्टूबर में जमुई , लछुआर , नेतुला भवानी, दिसंबर में उदयपुर-कुम्भलगढ़ , चित्तौरगढ़। उसके बाद medical कारणों से कुछ ऐसे मशगूल हुए की पास की जगहें घूमने का सोच भी नहीं सके । और फिर २०२० के मई तक फारिग तो हो गए पर तब तक कोरोना का प्रकोप शुरू हो गया । २०२० का पूरा साल और २०२१ के शुरुआती महीने कोरोना के भेंट चढ़ गए । २०२१ में आखिरकार दिल्ली से रांची आ गए और अप्रैल में बच्चों (यानि पोता और पोती ) के साथ पतरातू घाटी और डैम घूमने गए जो करीब २ साल बाद किया जाने वाला पहला घुमक्कड़ी था । आगाज़ अच्छा था क्योंकि फिर अक्टूबर में करीब १५० KM दूर स्थित ऐतहासिक -धार्मिक स्थल इटखोरी भी घूमने गए । लेकिन ये जो सफ़र का अनुराग (wanderlust) हैं वह उकसा रहा हैं की कहीं और जाओ या न जाओ प्रोग्राम तो बना ही सकते हो । ऐसा प्रोग्राम जिसे कभी भी अमल में लाया जा सकता हैं । पिछली बार के उत्तर पूर्व भारत की यात्रा के अंत में भूटान के अंदर पांव रखने का मौका मिला था जब हम सीमा से सटे एक प्रसिद्द मंदिर में दर्शन सिर्फ एक बोर्ड पर मंदिर का नाम देख कर चले गए थे इसलिए भूटान तो हमारे बकेट लिस्ट में था ही, पर कोरोना में बॉर्डर खुला न हो तो क्या होगा ? मैंने इसलिए एक दूसरे प्रोग्राम पर काम करना शुरू कर दिया वह है दार्जीलिंग और गंगटोक की यात्रा। जानता था की ट्रेन से यह यात्रा NJP या न्यू जलपाईगुड़ी से और हवाई जहाज से जाने पर बागडोगरा या पक्योंग (सिक्किम) एयर पोर्ट से शुरू करनी होगी । और मै प्लानिंग में लग गया।

सफर के साथी कौन ?
मैं यह सोच कर चल रहा हूँ की एक टीम यानि हम दोनों पति पत्नि रांची से चलेंगे और एक टीम दिल्ली और पटना से ज्वाइन करेगी। क्योंकि दिल्ली से आने वाली टीम बड़ी होगी और दिल्ली - बागडोगरा या दिल्ली - पक्योंग की हवाई यात्रा बजट हिला देगी इसलिए मैंने ट्रेन की यात्रा को ही चुना है। रांची से एक साप्ताहिक ट्रैन चलती हैं कामाख्या एक्सप्रेस जो न्यू जलपाईगुड़ी गुरुवार दोपहर को पहुँचती हैं और मंगल दोपहर को वापस रांची जाती हैं यानि ४ पूरे दिन और दो आधे दिन में सभी जगह घूम लेना होगा । दिल्ली या पटना / पाटलिपुत्र से डिब्रूगढ़ राजधानी भी दोपहर तक न्यू जलपाईगुड़ी पहुंच जाती है और रांची या दिल्ली से जाने वाली टीम की timings मैच करती हैं इस तरह तो 6 दिन 5 रात (6D 5N) का प्रोग्राम बनाना ठीक रहेगा ।



Photo credit Rediff.com

रूट की समय सीमा :
गुरुवार - 12 से 1 बजे के बीच दिन में न्यू जलपाईगुड़ी आगमन - मंगलवार को न्यू जलपाईगुड़ी से प्रस्थान के बीच ही यात्रा का प्रोग्राम बनाना पड़ेगा।
ट्रिप एक फुल टाइम टैक्सी से ही करेंगे यह मैने सोच रखा हैं, क्योंकि खासकर जब बच्चे साथ तो यह एक सुविधाजनक विकल्प हैं । ऐसे कोई और परिवहन के साधन लेने पर बहुत समय बर्बाद होगा और जगह जगह रूक कर फोटोग्राफी करने कि सुविधा भी तभी हैं जब आपकी अपनी गाड़ी हो या फिर फुल टाइम टैक्सी । हमारा पिछले बार का उत्तर पूर्व का अनुभव भी फुल टाइम टैक्सी की ओर ही इशारा करता है। सिक्किम नंबर वाली टैक्सी लेने से उत्तर सिक्किम जाना आसान होता है।



गंगटोक और दार्जीलिंग Photo wkimedia- Google search

मुख्य गंतव्य दो हैं - दार्जीलिंग और गंगटोक । इस कारण दूसरा प्रश्न मन में यह उठा कि पहले कहाँ जाया जाय। गंगटोक जाने में ४-५ घंटे लगेंगे और रास्ते में जाम मिलने की संभावना बनी रहती हैं । दार्जीलिंग से समय कम लगता हैं और जाम भी कम मिलते है । मैं पहले गंगटोक जाने की सलाह दूंगा क्योंकि अंतिम दिन वापसी की ट्रैन पकड़ने के लिए समय पर पहुंचना जरूरी होगा और कम समय और जाम रहित रास्ता ही अंतिम दिन ठीक रहेंगा ।

जाने आने के समय कहाँ कहाँ रुका जाय ? मेरे मन में दो तीन जगहे हैं - कलिम्पोंग, मिरिक, खर्सियांग । मिरिक और खर्सियांग के बीच एक जगह चुननी पड़ेगी क्योंकि दोनों अलग अलग रूट पर हैं । मिरिक अपने आप में एक हिल स्टेशन हैं जो कम भीड़भाँड़ वाली जगह हैं जबकि खर्सियांग उसी रूट पर जिसपर टॉय ट्रैन चलती हैं । ऐसे सुना हैं टॉय ट्रैन अभी दार्जीलिंग से घूम तक ही चलती हैं । मैंने मिरिक चुना हैं यदि निर्धारित समय - सीमा में वहाँ जा सकें । इस सीमा मे रह कर जो रूट बनता है वह नीचे दे रहा हूँ ।



गुरुवार - न्यू जलपाईगुड़ी - गंगटोक - ११८ km ४:१५ hrs
गुरुवार / शुक्रवार - गंगटोक- रात्रि विश्राम (2N)
शनिवार - गंगटोक- कलिम्पोंग - ७६ km २:४८ hrs
शनिवार - कलिम्पोंग २-३ Hrs site seeing
शनिवार - कलिम्पोंग - दार्जीलिंग ५२ km २:१० hrs
शनिवार/रविवार दार्जीलिंग रात्रि विश्राम (2N)
सोमवार - दार्जीलिंग - मिरिक - ४० km १:५० hrs
सोमवार - मिरिक रात्रि विश्राम (1N)
मंगलवार- मिरिक - न्यू जलपाईगुड़ी ५६ km १:५० hrs

Day-1 गंगटोक ! क्या देखे क्या छोड़े ?
गंगटोक पहुंचने पर यदि हो सके तो महात्मा गाँधी रोड के किसी होटल में रुकना सही रहेगा तांकि पहले दिन जब शाम तक पहुंचे तो पास कहीं शॉपिंग या अनोखे नेपाली / सिक्किमी /तिब्बती खाना खा सके । ऐसे बढ़िया होम स्टे में भी रूक सकते हैं । मेरा पिछला होम स्टे का अनुभव ५०-५० था बोमडिला में बहुत अच्छा से शिलॉन्ग में उतना अच्छा नहीं और चेरापुंजी में बीच बीच का । अतः फूंक फूंक कर पांव रखना ठीक रहेगा । कहाँ कहाँ घूमेंगे मैंने यह भी सोच रखा हैं । गंगटोक से ४०-५० KM की दूरी पर स्थित चोंगो लेक, बाबा हरभजन सिंह यानि बाबा मंदिर और नाथुला पास पूरे एक दिन का समय लेता है और इन्हें मैंने अभी अपनी यात्रा कार्यक्रम से निकाल रखा हैं क्योंकि हम दोनों वरिष्ठ नागरिक हैं शायद ऊँची जगहों में होने वाली ऑक्सीजन की कमी वर्दाश्त नहीं कर पाए और नाथुला पास के लिए तो विशेष परमिट भी लेना पड़ता हैं । इस तरह गंगटोक में दूसरे दिन देखने लायक जगह होगी :



Day-2
1. राष्ट्रीय तिब्बत विज्ञान संस्थान, डू ड्रुल चोर्टेन
2. एंचेय मोनेस्ट्री
3. गणेश टोक
4. हनुमान टोक
5. बकथांग फाल्स
6. ताशी व्यू पॉइंट
7. बन झाकरी फॉल
8. रांका मोनेस्ट्री
9. रुमटेक मोनेस्ट्री
10. रोपवे
इस थकाने वाले excursion के अंत मे होने वाला रोप वे ride थकान दूर कर देगा।

Day-3 कलिम्पोंग
रात्री विश्राम के बाद तीसरे दिन हमारा अगला "स्टॉप ओवर" है कलिम्पोंग जहाँ नाश्ते के बाद शायद हम १० बजे तक पहुंचे पर यदि गंगटोक में रोप वे का ट्रिप छूट गया हो तो आज उस ट्रिप को पूरा कर सकते हैं क्योंकि रोप वे ९:३०-५ बजे तक ही चालू रहता हैं यदि ऐसा हुआ तो तीन घंटे के ड्राइव के बाद हम १ -२ बजे दिन तक कलिम्पोंग पहुंच सकते हैं । जितनीं देर से पहुंचेंगे उतना कम समय हमे कलिम्पोंग में घूमने को मिलेगा क्योकिं वहां रात में रुकने का कार्यक्रम नहीं हैं ।
कलिम्पोंग में क्या देखे क्या छोड़े ?
उपलब्ध समय के हिसाब से सिर्फ तीन जगह घूमना ही सही रहेगा कलिम्पोंग में :
दुर्पीन दरा मोनास्टरी
डॉ ग्रैहम'स होम
पाइन व्यू नर्सरी
यह सभी जगहे आस पास हैं और ज्यादा समय नहीं लेगी । और दो या ढाई घंटे के ड्राइव के बाद ५-७ बजे शाम तक दार्जीलिंग अपने होटल में पहुंच जायेंगे और शायद ही कहीं और घूमने निकल पाय ।

Day -3 दार्जीलिंग : रात्रि विश्राम ।
Day -4 दार्जीलिंग : घूमने की जगहें ।
चौथे दिन दार्जीलिंग में बहुत सुबह ४ बजे ही जगना पड़ेगा और जाना पड़ेगा टाइगर हिल - सूर्योदय देखने । क्योंकि हिमालय के उसपार से उगते सूरज का अद्भुत दृश्य कौन नहीं देखना चाहेगा ? टाइगर हिल के बाद 'घूम' मोनास्टरी और बतासिया लूप देखने के बाद वापस होटल जाना होगा नाश्ते के लिए । 'घूम' जाने के लिए टॉय ट्रैन का मज़ा भी ले सकते हैं । नाश्ते के बाद जाऐगें अन्य जगहें यानि :
जापानी पीस पैगोडा
चिड़िया खाना (रेड पांडा और अन्य ऐसे जानवर यहीं मिलेगा )
पर्वतारोही संस्थान
रोप वे
तेनज़िंग नोर्गे रॉक
तिबत हेंडीक्राफ्ट सेण्टर (रिफ्यूजी सेण्टर)
होटल वापस

डे ५ दार्जीलिंग - मिरिक
मिरिक
मिरिक पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग ज़िले में स्थित एक मनोरम हिल स्टेशन है। हिमालय की वादियों में बसा छोटा सा पहाड़ी क़स्बा मिरिक पिछले कुछ वर्षों में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन गया है। इसके पीछे कई कारण हैं। एक तो यह कि पश्चिम बंगाल में यह सबसे ज़्यादा आसानी से पहुंचने वाला स्थान है, दूसरा यहां रूटीन हिल स्टेशन जैसी भीड़ भाड़ नहीं है। इस जगह के बारे में अभी बहुत लोग नहीं जानते हैं इसलिए भी यहां की प्राकृतिक सुंदरता बरक़रार है। मिरिक में कई नारंगी के बाग हैं और चाय बागान तो हैं ही ।अन्य देखने लायक जगहे
१. मिरिक लेक
२. पशुपतिनगर (नेपाल बॉर्डर)
३. बोकर मोनेस्ट्री
४. मिरिक चाय बागान
५. मिरिक चर्च
६. रमीते धारा व्यू पॉइंट
रात्री विश्राम
पशुपतिनगर - ककरभीट्टा हो कर पूर्वी नेपाल का ईलाम जिला भी घूमा जा सकता है और यदि समय हो तो पाथिभरा भवानी और काठमांडू भी जाया जा सकता है। एक नया अनुभव के लिए।

Day 6 मिरिक से नई जलपाईगुड़ी यह टूर का आखिरी दिन होगा और हमारी यात्रा न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन पहुंच कर ट्रेन पकड़ने के साथ ख़त्म हो जाएगी ।

बजट


६ लोगों का जिसमे २ बच्चे हैं उनका बजट यूँ होगा
१. ट्रैन : ६ लोगों का टिकट - Rs २४०००.०० जो इस यात्रा खर्च का भाग नहीं है
२. ६ दिनों की टैक्सी ......- Rs १८०००.००
३. लंच और डिनर (6x6x2 ) Rs १२०००.००
४. पार्किंग वैगेरह.......... Rs २०००.००
कुल.................... Rs ४४०००.००
per person ........... Rs ७३३३.००
इंटरनेट के हिसाब से यह खर्च आता हैं रु १२००० - १४००० प्रति व्यक्ति । ऐसे शेयर टैक्सी या बस का उपयोग कर और बचत की जा सकती है।

जिस ट्रेवल एजेंट से २०१८ में नार्थ ईस्ट के लिए टाटा सुमो किराये पर लिए थे उनका इ मेल था "aprup@myvoyage.co.in and arpana@myvoyage.co.in or packages@myvoyage.co.in" और फोन न० था +91 96780 71669 (Mr Aprup Saikia)

क्यो चलना है ?

Friday, November 19, 2021

लफ़्फ़ाज़ी

क्या प्लास्टिक पैकिंग जरूरी हैं

कल मैं दूध के पैकेट लेने गया तो मैंने दुकानदार को एक ग्राहक से बहस करते देखा । उस मोहतरमा ने दूध के दो पैकेट और ब्रेड ख़रीदा था और प्लास्टिक की थैली या कैरी बैग मांग रही थी और दुकानदार कह रहा थे सख्त आर्डर हैं प्लास्टिक पूरी तरह बंद हैं । जब ग्राहक ने कहा मैं सामान कैसे ले जाऊ तब दुकानदार उसे बताने लगा कैसे एक हाथ से दोनों दूध का पैकेट कोने से पकड़ सकते हैं और दूसरे हाथ से ब्रेड पकड़ सकते हैं । खैर मैं हमेशा थैली ले कर ही बाजार निकलता हूँ और हमें कोई परेशानी नहीं हुई । मैं सोचने लगा गवर्नमेंट और नगर निगम कभी अचानक सख्त हो जाती हैं तो कभी ढील दे देती हैं । खैर मैं धीरे धीरे टहलने लगा । जबसे मैंने मोतियाबंद का ऑपरेशन करवाया मैं नज़रे नीचे करके ही चलता हूँ और मुझे कई चीज़े रास्ते में दिखने लगे जैसे पान मसाले के ५ से १५ ग्राम के छोटे छोटे सैकड़ो पाउच , कुरकुरे, चिप्स के २५-५० ग्राम के दसियों पाउच, (नालियां तो इन छोटे प्लास्टिक से भी बंद हो जाती हैं ।) १ लीटर के पानी के बोतल , बिस्कुट के प्लास्टिक के पैकिंग वैगेरह। मैं सोचे बिना नहीं रह सका की कैरी बैग पर रोक तो सिर्फ ऊंट के मुँह में जीरे के सामान है । फिर दिखे शराब के छोटे शीशी के बोतल जिसे किसीने रास्ते में ही फोड़ डाले थे । सोचने लगा क्या प्लास्टिक बोतल ही शराब के लिए एक सुरक्षित पैकिंग हैं। मुझे अपने बचपन का याद हो आई जब मंघाराम की बिस्कुट टीन के डब्बे में आते थे और उसके छोटे छोटे पैकेट वैक्स पेपर के होते थे शायद वह हमारे इन्वॉयरन्मेंट के लिए सबसे अच्छी पैकिंग होती। पंसारी चावल, दाल, आटा अख़बार से बने ठोंगे में पैक कर देते । घी, तेल के लिए डब्बे, बोतल हम घर से लेकर जाते थे। क्या ही दिन थे वे जब प्लास्टिक का इज़ाद नहीं हुआ था ।

नारी सशक्तिकरण

नारी सशक्तिकरण आज का Buzz Word हैं और मैं इसमें विश्वास भी रखता हूँ पर कैसे करना हैं यह सब ? मै अक्सर एक देशी शराब दुकान का जिक्र करता हूँ और मैं रोज़ वहां आने जाने वाले को देखता हूँ । देशी हड़िया (home brewed rice beer ) बेचने वाली एक महिला हैं और कई पीने वाली भी महिलाये भी आती हैं । क्या पीना पिलाना भी नारी सशक्तिकरण हैं ? माध्यम वर्ग में शायद नहीं । कभी कभार रेड वाइन पी लेना एक बात हैं और कोई हार्ड ड्रिंक ले कर बहक जाना दूसरी बात हैं । शायद इसलिए पुरानी फिल्मों में पीने वाली महिलाये बुरी औरते ही होती थी मैं कई नई फिल्मों और टीवी सेरिअल्स में देखता हूँ आजकल महिलाए भी पार्टियों में जम कर पीती हैं । मैं कल एक प्रसिद्द टीवी सीरियल में देख रहा था की करवा चौथ में व्रत खोलने के बाद औरत और मर्द दारू पानी की तरह पी रहे थे क्या यही हमारे संस्कार हैं क्या यह कोई गलत सन्देश नहीं दे रहा समाज को ?

Wednesday, November 17, 2021

खाने के अजीब अजीब तहजीब, अजब अजब रिवाज़ !

प्रस्तावना
बीते दिनों हमारी कॉलनी में दिवाली get together था । स्टार्टर खाते खाते मै अपने एक पड़ोसी के साथ बातें करने लगा और धीरे धीरे हम भारत के अलग अलग राज्यों में उत्सव समारोह में होने वालो भोज भात में खाना खाने खिलाने की क्या तहजीब है । कौन सा व्यंजन पहले परोसा जाएगा और किस व्यंजन के परोसने का मतलब है Party is over ! आज का ब्लॉग इसी टॉपिक पर है।


मानक (Standard) भारतीय भोजन
आपको आमतौर पर मानक भारतीय भोजन परोसा जाएगा, जिसमें नान, चपाती, रोटी या पराठा, पूरी, दाल, करी, रायता, चावल, अचार और कुछ मिठाइयाँ शामिल हैं। यदि आप पंजाब, गुजरात, बंगाल, उत्तर-पूर्व भारत या दक्षिण भारत जैसे देश के विभिन्न क्षेत्रों में जाते हैं तो परोसा जाने वाला भोजन भिन्न हो सकता है।

थाली,प्लेट का उपयोग

पारम्परिक भोज भात में (Buffet छोड़ कर) अक्सर पत्तल या केले के पत्ते पर खाना परोसा जाता है या फिर आज कल पेपर प्लेट का उपयोग होता है। पहले लोगों को जमीन पर बिछे दरी पर पंगत लगा कर बैठाया जाता था पर आज कल टेबल का प्रयोग ज्यादा होता है। पंगत में खाना खाने खिलाने में आदर और प्यार झलकता है, जब पूछ पूछ कर खिलाया गया हो।


कटलरी का उपयोग
भारतीय आमतौर पर खाना खाने के लिए कटलरी का इस्तेमाल नहीं करते हैं और कटलरी का प्रयोग रेस्तरां मे ही किया जाता है, लोग अपनी उंगलियों से खाना पसंद करते है। एसे चम्मच का प्रयोग बफेट में जरूर होता है।
एक मज़ाक यह भी है कि जब उंगलियों से खाया जाता है,तो भोजन का स्वाद बहुत अच्छा होता है। उंगलियों से भोजन बड़े करीने से खाया जाता है ऐसा न लगे खाना ढूंसा जा रहा है। जो भारतीय कटलरी का प्रयोग करते है वे भी चाकू को कटलरी के रूप में इस्तेमाल नहीं करते हैं क्योंकि यहां तैयार भोजन को आम तौर पर काटने की आवश्यकता नहीं होती है। फ्लैटब्रेड, फिर से, केवल हाथों से खाए जाते हैं। उंगलियों से एक छोटा सा टुकड़ा फाड़ा जाता है और नाव जैसी आकृति बनाई जाती है; फिर करी को स्कूप किया जाता है और मुंह में डाला जाता है। या फिर करी में डुबो कर खाया जाता है।


दाहिने हाथ का प्रयोग
भारतीय लोग भोजन करते समय हमेशा अपने दाहिने हाथ का प्रयोग करते है । भले ही आप लेफ्टी हों, आपको खाने के लिए अपने दाहिने हाथ का उपयोग करना चाहिए। भारतीय बाएं हाथ के इस्तेमाल को अशुद्ध और आपत्तिजनक मानते हैं। तो बायां हाथ सूखा रहता है और इसका उपयोग केवल पानी पीने या बर्तन पास करने के लिए किया जाता है। मुझे एक बुरा अनुभव बिहार में पंगत में खाना परोसने के समय हुआ। मै,लेफ्टी हूँ और मैने पूरियाँ बायें हाथ से परोस डाली। ऊम्रदराज महिलाओं ने बहुत आपत्ती जताई और कुछ ने पुरी को अपने पत्तल से हटा भी दिया।


दावत में क्या उम्मीद करें
मैंने इंडियन और विदेशी खाने पर कई ब्लॉग लिखे हैं, लेकिन इस ब्लॉग का विषय मैंने कुछ अलग चुना हैं । यदि आप भारत में हो तो दावत में क्या होगा कैसे होगा ? खाने के समय भारतीय तहजीब क्या है । ऐसे परम्पराएं हर जगह टूट रही हैं और एक एकरूपता धीरे धीरे आ रही है जैसे Buffet dinner ने परोसकर खिलाने की परम्परा को तोड़ ही डाली है। फिर भी कुछ फर्क जगह जगह में आ जाता हैं, और कई जगह अभी भी पुरानी परंपरा अभी भी ज़िंदा हैं और मैं परम्परिक भोज भात की ही बात करूँगा । भारत एक विविधता भरा देश हैं खाने के कई प्रकार हैं और खिलने के भी कई तरीके हैं । हर प्रदेश की कुछ अलग । कुछ प्रदेशों और देश के कुछ हिस्सों में परोसे जाने वाले क्रम (बुफे छोड़ कर ) के बारे में मैं नीचे दे रहा हूँ ।


भोजन का क्रम
ट्रेडिशनल पश्चिमी खाने में ३-४-५ कोर्स डिनर होता है और खाना का एक क्रम होता हैं । पहले सूप परोसा जाता हैं और अंत में डेजर्ट / काफी आती है । कहते हैं पश्चिमी संस्कृति के विपरीत, जब भारत में भोजन परोसने की बात आती है तो कोई 'क्रम' नहीं होता है। लेकिन यह सरासर गलत सोच है। सारा खाना एक बार में परोसा जाता है ऐसा बिल्कुल नहीं है। हालाँकि, आपको देश की क्षेत्रीय संस्कृतियों और विभिन्न व्यंजनों के आधार पर अलग-अलग सर्विंग स्टाइल देखने को मिल सकते हैं। साथ ही, अलग-अलग हिस्सों के अलग अलग व्यंजन कुछ और क्रम में परोसे जाएंगे ।



पश्चिम बंगाल
मैं बंगाल से शुरू करता हूँ क्योंकि अब शायद ही ऐसी परंपरा सामान्य रूप से मानी जाती हैं , मैंने भी सिर्फ दो अवसर पर पारम्परिक ढंग से परोसे गए बंगाली भोज खाया हैं जबकि मेरे बहुत सारे बंगाली मित्र हैं ।
आम तौर पर एक बंगाली पारम्परिक भोजन की शुरुआत 'शुक्तो' (एक कड़वा व्यंजन ) से होती है, उसके बाद ' पूरी/ लुची और चना दाल (दालें), शाक' (पत्तेदार सब्जियां),इसके बाद परोसा जाता है MAIN डिश जैसे पुलाव, विभिन्न प्रकार की सब्जियां, मछली/मटन/चिकन/अंडे की करी, और फिर आती है मिठाई , दही और अन्य पारंपरिक मिठाइयों जैसे संदेश या रसगुल्ला और चटनी (मीठी-खट्टी चटनी वाली वस्तु) ) के साथ समाप्त होता है। एक बार में एक ही सब्जी या नॉन वेज आइटम परोसा जाता हैं इस तरह हर आइटम का स्वाद सही सही लिया जा सकता हैं । और व्यंजन और सब्जिया एक दूसरे में गड्ड मड्ड भी नहीं होता । यदि आप किसी बंगाली के यहाँ भोज भात में आमंत्रित हैं और वो एक पारम्परिक आयोजन हैं तो शुरू शुरू के परोसे आइटम से पेट न भर लें क्योंकि ज्यादा स्वादिष्ट व्यंजन बाद में आते हैं ।



यु पी, बिहार और मारवाड़ी भोज
यु पी, बिहार के भोज भात में पंगत में या टेबल पर लोग बैठते है और पहले पानी परोसा जाता हैं क्योंकि पत्तल को लोग पानी के छीटों से शुद्ध करते हैं । फिर नमक मिर्च परसे जाते हैं । फिर, पूरी, चावल (या पुलाव), दाल, सब्जियां, नॉन वेज, अचार, पापड़ इसी क्रम में परोसे जाते हैं । भोज का अंत दही, चीनी या मिठाई के साथ होती हैं । यदि दही परोसा गया तो पंगत से उठने का समय आ गया। यदि आप उत्तर बिहार में किसी भोज भात में गए और चूड़ा-दही का खिलाया जा रहा है तो चूड़ा सिर्फ एक बार परोसा जाता है और सिर्फ दही या मिठाइयां ही परसन में ले सकते है । ऐसे प्रसिद्धि बिहारी खाना लिट्टी चोख कई उत्तरी राज्य में भी आजकल must हैं । जबकि बिहारी भोज भात में अक्सर लिट्टी शामिल नहीं होता । यहां मैं याद दिला दूँ की यदि आप मारवाड़ी के यहाँ भोज खाने गए है तो पापड़ परोसे जाने के बाद भोज ख़त्म माने । मारवाड़ी भोजन में खाना निरामिष होता है और सामिष खाने की कोई उम्मीद न रक्खे । मैं एक बिरला की फैक्ट्री के गेस्ट हाउस में रुक चूका हूँ । वहां अंडे तक नहीं मिलते थे । मुझे एक मारवाड़ी बारात में जाने का मौका मिला था और विवाह संस्कार के पहले कोई नमकीन व्यंजन नहीं परोसे गए, और सब्जी तक मीठी थी ।



दक्षिण भारत, तमिलनाडु
जबकि दक्षिण के चारो राज्यों के खाने में थोड़ा बहुत अंतर हैं खिलने का तरीक़ा करीब करीब एक ही होता है । भोज केले के पत्ते पर खिलाते हैं । पत्ते का तिकोना अग्र भाग खाना के लिए और पीछे वाला वर्गाकार कटा पत्ता टिफ़िन के लिए उपयोग में लाते हैं । ऐसे आज कल थाली / प्लेट के ऊपर गोल कटा केले का पत्ता का उपयोग भी किया जाता हैं । केले के पत्ते की लम्बाई हर वर्ग में अलग अलग होता हैं । कहते है केले का पत्ता एक परिचय पत्र की तरह हैं जिसे देख कर पता लग जाता हैं की खिलने वाले किस जगह और किस वर्ग से हैं ।
सबसे पहले बून्द भर पायसम को पत्ते पर खाने वाले के दायीं ओर परोसी जाती है । तत्पश्चात् भोजन को पत्ते पर परोसा जाता है : रायता, दूधी पचड़ी जो ऊपरी दाएं कोने पर परोसा जाता है।इसके बाद करी अवियल और फिर अचार अदरक पचड़ी, पत्ती के शीर्ष के साथ। बाईं ओर वड़ा दाल वड़ा, मिठाई अनानास शीरा, मिश्रित चावल जैसे लेमन राइस कोकोनट राइस आदि। फिर, मुख्य व्यंजनों को परोसा जाता हैं ।दाल केरला पारिपू, चावल और घी, सांभर और रसम के साथ। और फिर पायसम मूंग दाल पायसम को सूखे केले के पत्तों से बने कप में परोसा जाता है या कभी कभी मुख्य पत्ते पर ही, अंत में दही चावल और छाछ। खाना खत्म करने के बाद, रिश्तेदार और दोस्त आम तौर पर बाहर इकट्ठा होते हैं और थोड़ा पाचन-सहायक स्नैक पर चैट करे खाते हैं जैसे केले और पान या बीड़ा ।
आंध्र प्रदेश
मेरी बेटी काफी समय हैदराबाद में रही है और उसका कमेंट मैं add कर रहा हूँ ।श्वेता के शब्दों में "आंध्र प्रदेश में तीन कोर्स में खाना परोसा जाता है। मेरे पास इसके बारे में ज्ञान की कमी के कारण बहुत ही मजेदार अनुभव हुआ। पहली बात यह थी कि मेजबान मेरे खाना शुरू करने का इंतजार करता रहा और मैं बात करने में व्यस्त थी , इसलिए खाना तुरंत शुरू नहीं किया । मुझे यह समझने में थोड़ा समय लगा कि हर कोई इंतजार क्यों कर रहा है। परोसने वाली पहली वस्तु सांभर के साथ चावल थी। मुझे लगा कि यह पूरा डिनर है, इसलिए पर्याप्त चावल ले लिया , लेकिन सांभर काम पड़ने लगा । , मैंने सांभर खत्म किया और सांभर का परसन मांगा... पर आया चावल और रसम (मैं निराश हो गई क्योंकि कोई सांभर नहीं आया । सांभर वास्तव में स्वादिष्ट था और मैं और अधिक खाना चाहता थी )। वैसे भी रसम भी उतना ही स्वादिष्ट था और जब दही-चावल दिखने लगे तब तक मेरा पेट भर गया था। काश, मुझे पता होता कि इतनी तरह खाना का प्रबंध था, तो मैं निश्चित रूप से पहले कम चावल लेती । भोजन सरल था, लेकिन संतोषजनक था। बेशक खाने के साथ अचार और चटनी भी थी । अंत में हमें कस्टर्ड परोसा गया ... और हमें बताया गया कि कस्टर्ड हमारे लिए विशेष रूप से पकाया गया है (क्योंकि हम उत्तर भारतीय हैं और हमें अंत में कुछ मीठा खाना पसंद है)। थोड़ी चीनी भी पत्ते के बाहर परोसी गई,ताकि चीटियाँ वही busy रहे। शायद तमिलनाडू में इसी कारणवश बूंद भर पायसम पत्ते के किनारे परोसते है। "



गुजराती थाली
हल्की और बहुत विशिष्ट है, लेकिन निस्संदेह अच्छी है। चार सब्जियां, फरसान, रोटियां और एक छोटी भाकरी मीठी दाल, चावल या खिचड़ी, कटा हुआ सलाद, चटनी, अचार और कुछ विशेष रूप से ताज़ा छाछ (छाछ) के साथ आती है। मिठाई में गुलाब जामुन, रसगुल्ला, या आम रस जैसा कुछ मौसमी होता है। दाल सब्जियों में थोड़ा मीठापन होता हैं और नाश्ते में खाने वाले कुछ चीजें भी खाने की थाली में होती हैं । एक बार Baroda के एक होटल में गुजरती थाली खाई थी उसमे थे चार सब्जियां, फरसान, रोटियां और एक छोटी भाकरी मीठी दाल,कढ़ी, दही वडा, चावल और खिचड़ी, कटा हुआ सलाद, चटनी, अचार और ताज़ा छाछ । मिठाई में गुलाब जामुन, और कुछ मौसमी रस होता है जैसे आमरस । मजेदार था खाना लेकिन क्योंकि पूरी थाली परोस कर लाई गई थे इसलिए परोसने का क्रम पता नहीं चल सका ।पर अंत में पापड़ ही परोसा गया ।

अन्य जगहों के खाने

मैंने दक्षिण भारत जब भी गया मुंबई थाली मंगाई एक उत्तर भारतीय के स्वाद से एक दम मिलता जुलता हैं यह पर कभी भोज नहीं खाया मुंबई में । दिल्ली पंजाब में हमेशा बुफे खाना ही खाया है और जबकि मुझे छोला भटूरा और छोले चावल बहुत पसंद हैं । बटर चिकन और तंदूरी रोटी भी पसंद हैं पर परोस कर किसीने भोज नहीं खिलाया इन जगहों में कभी। मौके की तलाश में हूँ जब भी ऐसा मौका लगा जरूर इस ब्लॉग में add कर दूँगा ।

खाना खत्म करना
आपको अपनी थाली / पत्तल पर कुछ भी बचा हुआ नहीं छोड़ना चाहिए। ऐसे कहीं कहीं अपनी थाली में खाना छोड़ना status के लिए जरूरी माना जाता है। परोसे जाने वाले प्रत्येक व्यंजन का स्वाद लेना आवश्यक नहीं है, लेकिन आप अपनी थाली में जो कुछ भी रखते हैं वह समाप्त होना चाहिए। खाना मध्यम गति से खाना चाहिए ताकि पंगत मे बैठे अन्य लोगो के साथ ही आपका खाना खत्म हो । परोसने वाले को क्रम से खाना परोसने देना चाहिए। किसको कौन सा व्यंजन और चाहिए वह परोसने वाला देख कर लगाता है या मानक क्रम के अनुसार परसता है, उसे ऐसा करने दे।


बधाई देना
अपना भोजन समाप्त करने के बाद, आपको भोजन के लिए अपने मेजबान की सकारात्मक प्रशंसा करनी चाहिए। चूँकि भोजन बड़ी मेहनत और सावधानी से तैयार किया जाता है, इसलिए अपनी प्रशंसा व्यक्त करने से मेज़बान खुश हो जाएगा।


टेबल छोड़कर
यदि आपने अपना भोजन जल्दी समाप्त कर लिया है, तो आपको तब तक बैठे रहना चाहिए जब तक मेज़बान या मेज पर सबसे बड़ा व्यक्ति अपना भोजन समाप्त नहीं कर लेता। मेज से उठना जब बाकी सब लोग अभी भी खा रहे हों तो इसे खराब व्यवहार माना जाता है।

Monday, November 15, 2021

झारखंड के स्थापना दिवस पर जोहर !

झारखण्ड आज अपनी २१वीं स्थापना दिवस और बिरसा जयंती मना रहा है । तब पल खुद में ठहर सा गया है. वह मुड़कर पीछे देख रहा है. इतिहास को निहार रहा है. इसमें दिख रही हैं शहीदों की चिताएं, बलिदानियों का बलिदान, परंपराएं, रीति-रिवाज, धर्म और राजनीति का इतिहास भी. कोई इमारत ऐसी, जहां अंग्रेजों की गोलियों के निशान अब भी हैं, तो कोई मंदिर ऐसा जो सदियों से पुराणों की कथाएं समेटे हुए है. इस अवसर पर मैं रांची के तीन ऐतहासिक स्थलों के बारे में कुछ लिखना चाह रहा हूँ ।



रांची का जग्गनाथ मंदिर
जगन्नाथ मंदिर रांची का निर्माण सन 1691 ईस्वी में किया गया था। इस मंदिर का निर्माण बरकागढ़ के महान राजा ठाकुर अनीश नाथ शाहदेव द्वारा किया था। मंदिर का और गर्भगृह का निर्माण सम्पूर्ण रूप से संगमरमर के पत्थर से किया गया है, जिसमे मंदिर के संस्थापक और स्थापना वर्ष के बारे में बताया गया है। इस मंदिर की नींव वैष्णववाद और इसके संस्थापक चैतन्य महाप्रभु ने रखी थी। ऐसा मान्यता है कि जब 17 वीं शताब्दी के आस पास बहुत सारे लोगों ने हिंदू धर्म को छोड़ना प्रारम्भ कर दिया था, हिंदू धर्म के धर्म गुरुओं ने हिंदू धर्म की पहचान बनाए रखने के लिए जगन्नाथ मंदिर जैसे कई अन्य प्राचीन मंदिरों का निर्माण शुरू कर दिया था। तब यहाँ पर जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कर हिंदू धर्म में आदिवासियों की आस्था और विश्वास को पुनर्जीवित करने के लिए किया था। सन 1990 ईस्वी में इस मंदिर का कुछ भाग ढह गया था। पर मंदिर का अब जीर्णोद्धार किया जा चूका हैं और जिस कारण इस मंदिर ने अपना खोया हुआ गौरव वापस पा लिया है। मूल मंदिर का निर्माण एक किले के रूप में किया गया था ।

शहीद स्मारक
राजधानी के शहीद चौक के समीप और जिला स्कूल परिसर में स्थित शहीद स्मारक कई मायनों में ऐतिहासिक और आजादी के लिए कुर्बानी देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों का प्रतीक है. जो हर वक्त अपने देश के वीर सेनानियों की याद दिलाती है. यहां ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव और पांडे गणपत राय को अंग्रेजों ने फांसी दी थी. जानकार तो यह भी कहते हैं कि यहां और भी कई स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी गई थी. इसी परिसर में स्थित एक कुएं में उनका शव डाल दिया जाता था, जो आज भी मौजूद है. यह स्थान 1857-58 के जंग-ए-आजादी के शहीदों को स्मरण कराता है।

रांची शहर का खास पहाड़ी मंदिर
पहाड़ी मंदिर रांची शहर के एक खास मंदिर हैं और इसकी पहचान भी हैं । यह एक शिव मंदिर कई पुरानी कथाये हैं और हैं लोगों की मान्यताएं। लेकिन इसके साथ ही इस मंदिर की खासियत है कि यह देव भक्ति के साथ देशभक्ति का भी प्रतीक है। इसके दीवारों और दरारों में वंदे मातरम की गूंज हैं । कहते है भगवान शिव का यह मंदिर आजादी के पहले अंग्रेजों के कब्जें में था। इस मंदिर की दीवारें अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान आज भी सुनाती हैं। अंग्रेजों ने यहाँ क्रांतिकारियों को फांसी के फंदे में जकड़ दिया करते थे।यहां तकरीबन सैकड़ों क्रांतिकारियों को फांसी दी जा चुकी हैं ।
क्रमशः

Thursday, November 11, 2021

आज का सुबहनामा

कोरोना के बाद कम होता छठ का उत्साह

व्रत त्योहारों का सिलसिला आज के उगते सूरज के अर्ध्य के साथ समाप्त हो गया । इस बार खरना प्रसाद तो अपने एक पड़ोसी के यहाँ खा आए पर शाम सुबह का अर्ध्य देने कहीं नहीं गए। कुछ आलस कुछ इस कारण से की हमारा सूप उठा देने वाली लक्ष्मी छठ इसबार अपने गाँव गई हुई है । खैर सुबह ठेकुआ प्रसाद तो अभी तक नहीं खाया पर कही न कहीं से आ ही जाएगा पर और सालों के अपेक्षा इस बार घाट से लौटते कम छठ व्रती सड़क पर दिखे। सिर्फ एक वैन दिखा जिस पर ईख वैगेरह लदे थे। कोरोना ने सबको घर में ही हौदा बना कर छठ कर लेने का रास्ता दिखा दिया है और नदी पोखरों पर जुटने वाली भीड़, रौनक कहीं गायब हो गई है।


बेवजह मजा़क

घर से निकल कर नुक्कड़ तक ही गया था तो देखा एक लड़की जो शायद माँ को पीछे बिठा कर स्कूटर चला रही थी गाड़ी उबड़ खाबड़ रास्ते पर रोक कर पार्क करने की कोशिश कर रही थी कि अपना कार्टन रखते रखते एक दुकानदार ने कह दिया चक्के में हवा कम है। वह मजाक कर रहा था पर स्कूटर से उतरने का उपक्रम करती लड़की का ध्यान चक्के के टायर पर चला गया और वो बैलेंस नहीं रख पाई और गिर पड़ी। मै करीब था मदद करता उसके पहले उस लड़की ने उठ कर स्कूटर पार्क कर लिया पर मजाक करने वाला दूकानदार जो शायद लड़की को जानता था हंस रहा था। ऐेसे situation में किया बेवजह मजा़क कभी खतरनाक भी हो सकता है। मुझे अच्छा न लगा पर उस दुकानदार से मेरी थोड़ी misunderstanding पहले से है इसलिए मैने उसे कुछ नहीं कहा और आगे बढ़ गया ।


कुत्ते का बॉडीगार्ड

रास्ते मे एक कुत्ता मेरे साथ चलने लगा। थोड़ा आगे निकलने पर वह रुक जाता मानो मेरी प्रतीक्षा कर रहा हो। रास्ते के सभी पोल, हर पार्क किए कार के टायर पर श्रद्धांजलि चढ़ाता ओवर ब्रिज तक मेरे आगे पीछे वह चलता रहा। मुझे आश्चर्य हो रहा था आखिर श्रद्धांजलि का उसका storage capacity इतना अधिक कैसे है ? जब रास्ते मे एक बड़ा सा कुत्ता दिखा तब मुझे समझ आया कि दूसरे कुत्ते के teritory को cross करने के लिए मेरे साथ का protection ले रहा था। अक्सर कुत्ते मालिक की रखवाली करते है पर इस छोटे कुत्ते ने मुझसे ही body guard की ड्यूटी करवा ली।



केबल का जंजाल

रास्ते मे मैने नटिस किया कि सभी बिजली, लाइट पोल और पेड़ो पर अनेको optical fibre केबल लटके, बंधे हुए है। ऐसा मैंने विदेशो में नहीं देखा क्योंकि वह अंडरग्राउंड केबलिंग हैं । यहाँ तो एक ही एरिया में ४-६ फाइबर ऑप्टिक वाली कंपनियों का केबलिंग है। क्यों नहीं एक एरिया में एक ही सुपर नेटवर्क हो ? क्यों नहीं अंडरग्राउंड tunnel हो जिसमे अलग अलग कंपनी द्वारा केबलिंग लीज पर किया जा सके ? जब DTH ब्रॉड कास्ट हैं तो केबल टीवी को क्यों नहीं ओब्सोलेटे घोषित कर दिया जाय ?


विछिप्त या पियक्कड़

मैं अपने सुबह यात्रा में रोज़ एक पकी दाढ़ी वाले बेतरतीब आदमी को देखा करता था । सोचता था की या तो वह विछिप्त है या भिखारी । पर आज उसे हड़िया (local rice beer ) के दुकान पर देख कर आश्चर्य हुआ । पीने के पैसे कहाँ से मिले इसे ? या दुकान वाली ने इसे मुफ्त में ही पीने को दिया ?

बस आज इतना ही कुछ बातें रह गई जो फिर लिखूंगा ।

Thursday, November 4, 2021

कुकुर और कौआ पुजा नेपाल में पांच दिवसीय दिवाली यानि तिहार

तिहार

हमारे पडोसी देश नेपाल में दिवाली ५ दिनों में मनाया जाता है जिसे वहां के लोग प्यार से कहते हैं तिहार जो त्यौहार का ही अपभ्रंश हैं । ऐसे दीपावली या दिवाली भी नेपाली लोग समझते हैं । इस पांच दिनों के त्यौहार को कहते हैं यमपंचक । नेवरी लोग इसे स्वांति कहते हैं । नेपाल और भारतीय राज्य सिक्किम और पश्चिम बंगाल के पहाड़ी भागों (विशेष रूप से दार्जिलिंग और कलिम्पोंग के शहर) में भी दिवाली ५ दिनों के "तिहार" के रूप में मनाया जाता हैं । तिहार भारत में मनाये त्योहार दिवाली यानि रोशनी के त्योहार के समान है, लेकिन बहुत सारे महत्वपूर्ण अंतरों हैं और यह बहुत रंग और मस्ती भरा हैं । दसईं यानि दुर्गापूजा के बाद यह नेपाल का दूसरा प्रमुख उत्सव हैं।


यम से जुड़े चार प्राणियों का उत्सव

दिवाली की तरह, तिहार में घर के अंदर और बाहर दीया जलाया जाता हैं, लेकिन भारतीय दीपावली के विपरीत, तिहार के पांच दिनों में मृत्यु के हिंदू देवता यम से जुड़े चार प्राणियों का उत्सव और पूजा शामिल है, अंतिम दिन लोगों के लिए आरक्षित है। तिहार के उत्सव के बारे में विभिन्न कहानियां हैं। तिहार के उत्सव के पीछे प्रसिद्ध कहानियों में से एक मृत्यु के देवता यम और उनकी बहन यमुना से संबंधित है। यम लंबे समय से अपनी बहन से दूर रह रहे थे। उसकी बहन उससे मिलना चाहती थी इसलिए उसने विभिन्न तरीके से उससे मिलने के लिए संदेश भिजवाए । उसने कौवा (धनतेरस के दिन) , कुत्ता (नरक चतुर्दशी के दिन) और गाय (दिवाली - कार्तिक अमावस्या के दिन ) को भेजा और अंत में वह अपने भाई को देखने के लिए खुद (भाई दूज के दिन) चली गई।


कौवा, कुकुर और गाय पूजा


उसने टीका और फूलों से उसकी पूजा की, उसने उसे पांच रंग का टीका लगाया। यमुना ने सरसों के तेल, दुबो (डूब घास) से एक घेरा बनाया और रुई से बनी मखमली माला लगाई और यमराज को तेल, दूबो घास और फूल सूखने तक न जाने को कहा। इसलिए हर बहन अपने भाई को सरसों के तेल के घेरे में रखकर, मखमली फूल की माला और दूबो घास डालकर उसकी पूजा करती है। नेपाल में भाई को टीका लगाया जाता हैं जबकि तराई और बिहार में बजरी कूटी जाती है ।



कौवा, कुकुर गाय पूजा

ऐसी पूजा शायद नेपाली समाज में ही होती है । धनतेरस के दिन कौआ के लिए कुछ खाना छत या खुली जगह पर छोड़ा जाता है जबकि कुकुर पूजा में कुत्ते को माला पहना कर पूजा की जाती है । गाय की पूजा तो हर जगह की जाती है और सभी कोई जनता है कैसे की जाती गाय पूजा । दिवाली के अगले दिन स्वयं की पूजा की जाती हैं और उसके अगले दिन भाई की पूजा होती है और भाई दूज से सभी वाक़िफ़ हैं ।


भैलो और देऊशी

एक और परम्परा नेपाल के तिहार से सम्बंधित हैं वो हैं भैलो और देऊशी । भैलो और देउसी पारंपरिक गीत हैं जो नेपाल, दार्जिलिंग पहाड़ियों, सिक्किम तिहार के त्योहार के दौरान गाए जाते हैं। बच्चे और किशोर इन गीतों को गाते हैं और नृत्य करते हैं जब वे अपने समुदाय के विभिन्न घरों में जाते हैं, धन, मिठाई और भोजन इकट्ठा करते हैं और समृद्धि के लिए आशीर्वाद देते हैं। भाईलो आमतौर पर लड़कियों द्वारा गाय पूजा के दिन गाया जाता है, जबकि देउसी लड़कों द्वारा अगले दिन यानि गोवर्धन पूजा के दिन गया जाता है। इन गीतों के अंत में घर की महिला भोजन परोसती है और इन देउसी/भाईलो गायकों और नर्तकियों को पैसे देती है। बदले में, देउसी/भाईलो टीम उच्च आय और समृद्धि के लिए आशीर्वाद देती है। विष्णु और राजा बलि की एक कथा यम पंचक से सम्बंधित हैं पर भैलो और देऊशी गाने की शुरुआत कब हुई यह नहीं पता । कैसा होता है भैलो-देउशी ? बस यह समझ ले होली में जोगीरा गा कर लोगो को मनोरंजन करने वालों की टोली जैसा। बचपन में देखा था ढ़ोलक के साथ जोगीरा गाने वाले अबीर से पुते लोगों की एक शालीन टोली । पैसे आनाज मिठाई का इंतजाम संपन्न घरों में पहले से किया होता था और दान दक्षिणा मिलने पर टोली यह गाते चली जाती "सदा आनंद रहे यही द्वारे मोहन खेले होरी हो" । लाख मै शब्दो से खेल लू बिना देखे सुने भैलो देउशी की कल्पना थोड़ी मुश्किल है। मै अक्सर नेपाली भैलो और दोहरी (बाद मे कभी दोहरी पर लिखूंगा) गीत यू ट्यूब पर सुनता हूँ और आनंदित हो जाता हूँ। आप भी सुने। एक लिंक दे रहा हूँ यहाँ। जरूर देखे ।


भैलो और देऊशी - एक यूट्यूब वीडियो