Thursday, November 4, 2021

कुकुर और कौआ पुजा नेपाल में पांच दिवसीय दिवाली यानि तिहार

तिहार

हमारे पडोसी देश नेपाल में दिवाली ५ दिनों में मनाया जाता है जिसे वहां के लोग प्यार से कहते हैं तिहार जो त्यौहार का ही अपभ्रंश हैं । ऐसे दीपावली या दिवाली भी नेपाली लोग समझते हैं । इस पांच दिनों के त्यौहार को कहते हैं यमपंचक । नेवरी लोग इसे स्वांति कहते हैं । नेपाल और भारतीय राज्य सिक्किम और पश्चिम बंगाल के पहाड़ी भागों (विशेष रूप से दार्जिलिंग और कलिम्पोंग के शहर) में भी दिवाली ५ दिनों के "तिहार" के रूप में मनाया जाता हैं । तिहार भारत में मनाये त्योहार दिवाली यानि रोशनी के त्योहार के समान है, लेकिन बहुत सारे महत्वपूर्ण अंतरों हैं और यह बहुत रंग और मस्ती भरा हैं । दसईं यानि दुर्गापूजा के बाद यह नेपाल का दूसरा प्रमुख उत्सव हैं।


यम से जुड़े चार प्राणियों का उत्सव

दिवाली की तरह, तिहार में घर के अंदर और बाहर दीया जलाया जाता हैं, लेकिन भारतीय दीपावली के विपरीत, तिहार के पांच दिनों में मृत्यु के हिंदू देवता यम से जुड़े चार प्राणियों का उत्सव और पूजा शामिल है, अंतिम दिन लोगों के लिए आरक्षित है। तिहार के उत्सव के बारे में विभिन्न कहानियां हैं। तिहार के उत्सव के पीछे प्रसिद्ध कहानियों में से एक मृत्यु के देवता यम और उनकी बहन यमुना से संबंधित है। यम लंबे समय से अपनी बहन से दूर रह रहे थे। उसकी बहन उससे मिलना चाहती थी इसलिए उसने विभिन्न तरीके से उससे मिलने के लिए संदेश भिजवाए । उसने कौवा (धनतेरस के दिन) , कुत्ता (नरक चतुर्दशी के दिन) और गाय (दिवाली - कार्तिक अमावस्या के दिन ) को भेजा और अंत में वह अपने भाई को देखने के लिए खुद (भाई दूज के दिन) चली गई।


कौवा, कुकुर और गाय पूजा


उसने टीका और फूलों से उसकी पूजा की, उसने उसे पांच रंग का टीका लगाया। यमुना ने सरसों के तेल, दुबो (डूब घास) से एक घेरा बनाया और रुई से बनी मखमली माला लगाई और यमराज को तेल, दूबो घास और फूल सूखने तक न जाने को कहा। इसलिए हर बहन अपने भाई को सरसों के तेल के घेरे में रखकर, मखमली फूल की माला और दूबो घास डालकर उसकी पूजा करती है। नेपाल में भाई को टीका लगाया जाता हैं जबकि तराई और बिहार में बजरी कूटी जाती है ।



कौवा, कुकुर गाय पूजा

ऐसी पूजा शायद नेपाली समाज में ही होती है । धनतेरस के दिन कौआ के लिए कुछ खाना छत या खुली जगह पर छोड़ा जाता है जबकि कुकुर पूजा में कुत्ते को माला पहना कर पूजा की जाती है । गाय की पूजा तो हर जगह की जाती है और सभी कोई जनता है कैसे की जाती गाय पूजा । दिवाली के अगले दिन स्वयं की पूजा की जाती हैं और उसके अगले दिन भाई की पूजा होती है और भाई दूज से सभी वाक़िफ़ हैं ।


भैलो और देऊशी

एक और परम्परा नेपाल के तिहार से सम्बंधित हैं वो हैं भैलो और देऊशी । भैलो और देउसी पारंपरिक गीत हैं जो नेपाल, दार्जिलिंग पहाड़ियों, सिक्किम तिहार के त्योहार के दौरान गाए जाते हैं। बच्चे और किशोर इन गीतों को गाते हैं और नृत्य करते हैं जब वे अपने समुदाय के विभिन्न घरों में जाते हैं, धन, मिठाई और भोजन इकट्ठा करते हैं और समृद्धि के लिए आशीर्वाद देते हैं। भाईलो आमतौर पर लड़कियों द्वारा गाय पूजा के दिन गाया जाता है, जबकि देउसी लड़कों द्वारा अगले दिन यानि गोवर्धन पूजा के दिन गया जाता है। इन गीतों के अंत में घर की महिला भोजन परोसती है और इन देउसी/भाईलो गायकों और नर्तकियों को पैसे देती है। बदले में, देउसी/भाईलो टीम उच्च आय और समृद्धि के लिए आशीर्वाद देती है। विष्णु और राजा बलि की एक कथा यम पंचक से सम्बंधित हैं पर भैलो और देऊशी गाने की शुरुआत कब हुई यह नहीं पता । कैसा होता है भैलो-देउशी ? बस यह समझ ले होली में जोगीरा गा कर लोगो को मनोरंजन करने वालों की टोली जैसा। बचपन में देखा था ढ़ोलक के साथ जोगीरा गाने वाले अबीर से पुते लोगों की एक शालीन टोली । पैसे आनाज मिठाई का इंतजाम संपन्न घरों में पहले से किया होता था और दान दक्षिणा मिलने पर टोली यह गाते चली जाती "सदा आनंद रहे यही द्वारे मोहन खेले होरी हो" । लाख मै शब्दो से खेल लू बिना देखे सुने भैलो देउशी की कल्पना थोड़ी मुश्किल है। मै अक्सर नेपाली भैलो और दोहरी (बाद मे कभी दोहरी पर लिखूंगा) गीत यू ट्यूब पर सुनता हूँ और आनंदित हो जाता हूँ। आप भी सुने। एक लिंक दे रहा हूँ यहाँ। जरूर देखे ।


भैलो और देऊशी - एक यूट्यूब वीडियो

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