Wednesday, November 17, 2021

खाने के अजीब अजीब तहजीब, अजब अजब रिवाज़ !

प्रस्तावना
बीते दिनों हमारी कॉलनी में दिवाली get together था । स्टार्टर खाते खाते मै अपने एक पड़ोसी के साथ बातें करने लगा और धीरे धीरे हम भारत के अलग अलग राज्यों में उत्सव समारोह में होने वालो भोज भात में खाना खाने खिलाने की क्या तहजीब है । कौन सा व्यंजन पहले परोसा जाएगा और किस व्यंजन के परोसने का मतलब है Party is over ! आज का ब्लॉग इसी टॉपिक पर है।


मानक (Standard) भारतीय भोजन
आपको आमतौर पर मानक भारतीय भोजन परोसा जाएगा, जिसमें नान, चपाती, रोटी या पराठा, पूरी, दाल, करी, रायता, चावल, अचार और कुछ मिठाइयाँ शामिल हैं। यदि आप पंजाब, गुजरात, बंगाल, उत्तर-पूर्व भारत या दक्षिण भारत जैसे देश के विभिन्न क्षेत्रों में जाते हैं तो परोसा जाने वाला भोजन भिन्न हो सकता है।

थाली,प्लेट का उपयोग

पारम्परिक भोज भात में (Buffet छोड़ कर) अक्सर पत्तल या केले के पत्ते पर खाना परोसा जाता है या फिर आज कल पेपर प्लेट का उपयोग होता है। पहले लोगों को जमीन पर बिछे दरी पर पंगत लगा कर बैठाया जाता था पर आज कल टेबल का प्रयोग ज्यादा होता है। पंगत में खाना खाने खिलाने में आदर और प्यार झलकता है, जब पूछ पूछ कर खिलाया गया हो।


कटलरी का उपयोग
भारतीय आमतौर पर खाना खाने के लिए कटलरी का इस्तेमाल नहीं करते हैं और कटलरी का प्रयोग रेस्तरां मे ही किया जाता है, लोग अपनी उंगलियों से खाना पसंद करते है। एसे चम्मच का प्रयोग बफेट में जरूर होता है।
एक मज़ाक यह भी है कि जब उंगलियों से खाया जाता है,तो भोजन का स्वाद बहुत अच्छा होता है। उंगलियों से भोजन बड़े करीने से खाया जाता है ऐसा न लगे खाना ढूंसा जा रहा है। जो भारतीय कटलरी का प्रयोग करते है वे भी चाकू को कटलरी के रूप में इस्तेमाल नहीं करते हैं क्योंकि यहां तैयार भोजन को आम तौर पर काटने की आवश्यकता नहीं होती है। फ्लैटब्रेड, फिर से, केवल हाथों से खाए जाते हैं। उंगलियों से एक छोटा सा टुकड़ा फाड़ा जाता है और नाव जैसी आकृति बनाई जाती है; फिर करी को स्कूप किया जाता है और मुंह में डाला जाता है। या फिर करी में डुबो कर खाया जाता है।


दाहिने हाथ का प्रयोग
भारतीय लोग भोजन करते समय हमेशा अपने दाहिने हाथ का प्रयोग करते है । भले ही आप लेफ्टी हों, आपको खाने के लिए अपने दाहिने हाथ का उपयोग करना चाहिए। भारतीय बाएं हाथ के इस्तेमाल को अशुद्ध और आपत्तिजनक मानते हैं। तो बायां हाथ सूखा रहता है और इसका उपयोग केवल पानी पीने या बर्तन पास करने के लिए किया जाता है। मुझे एक बुरा अनुभव बिहार में पंगत में खाना परोसने के समय हुआ। मै,लेफ्टी हूँ और मैने पूरियाँ बायें हाथ से परोस डाली। ऊम्रदराज महिलाओं ने बहुत आपत्ती जताई और कुछ ने पुरी को अपने पत्तल से हटा भी दिया।


दावत में क्या उम्मीद करें
मैंने इंडियन और विदेशी खाने पर कई ब्लॉग लिखे हैं, लेकिन इस ब्लॉग का विषय मैंने कुछ अलग चुना हैं । यदि आप भारत में हो तो दावत में क्या होगा कैसे होगा ? खाने के समय भारतीय तहजीब क्या है । ऐसे परम्पराएं हर जगह टूट रही हैं और एक एकरूपता धीरे धीरे आ रही है जैसे Buffet dinner ने परोसकर खिलाने की परम्परा को तोड़ ही डाली है। फिर भी कुछ फर्क जगह जगह में आ जाता हैं, और कई जगह अभी भी पुरानी परंपरा अभी भी ज़िंदा हैं और मैं परम्परिक भोज भात की ही बात करूँगा । भारत एक विविधता भरा देश हैं खाने के कई प्रकार हैं और खिलने के भी कई तरीके हैं । हर प्रदेश की कुछ अलग । कुछ प्रदेशों और देश के कुछ हिस्सों में परोसे जाने वाले क्रम (बुफे छोड़ कर ) के बारे में मैं नीचे दे रहा हूँ ।


भोजन का क्रम
ट्रेडिशनल पश्चिमी खाने में ३-४-५ कोर्स डिनर होता है और खाना का एक क्रम होता हैं । पहले सूप परोसा जाता हैं और अंत में डेजर्ट / काफी आती है । कहते हैं पश्चिमी संस्कृति के विपरीत, जब भारत में भोजन परोसने की बात आती है तो कोई 'क्रम' नहीं होता है। लेकिन यह सरासर गलत सोच है। सारा खाना एक बार में परोसा जाता है ऐसा बिल्कुल नहीं है। हालाँकि, आपको देश की क्षेत्रीय संस्कृतियों और विभिन्न व्यंजनों के आधार पर अलग-अलग सर्विंग स्टाइल देखने को मिल सकते हैं। साथ ही, अलग-अलग हिस्सों के अलग अलग व्यंजन कुछ और क्रम में परोसे जाएंगे ।



पश्चिम बंगाल
मैं बंगाल से शुरू करता हूँ क्योंकि अब शायद ही ऐसी परंपरा सामान्य रूप से मानी जाती हैं , मैंने भी सिर्फ दो अवसर पर पारम्परिक ढंग से परोसे गए बंगाली भोज खाया हैं जबकि मेरे बहुत सारे बंगाली मित्र हैं ।
आम तौर पर एक बंगाली पारम्परिक भोजन की शुरुआत 'शुक्तो' (एक कड़वा व्यंजन ) से होती है, उसके बाद ' पूरी/ लुची और चना दाल (दालें), शाक' (पत्तेदार सब्जियां),इसके बाद परोसा जाता है MAIN डिश जैसे पुलाव, विभिन्न प्रकार की सब्जियां, मछली/मटन/चिकन/अंडे की करी, और फिर आती है मिठाई , दही और अन्य पारंपरिक मिठाइयों जैसे संदेश या रसगुल्ला और चटनी (मीठी-खट्टी चटनी वाली वस्तु) ) के साथ समाप्त होता है। एक बार में एक ही सब्जी या नॉन वेज आइटम परोसा जाता हैं इस तरह हर आइटम का स्वाद सही सही लिया जा सकता हैं । और व्यंजन और सब्जिया एक दूसरे में गड्ड मड्ड भी नहीं होता । यदि आप किसी बंगाली के यहाँ भोज भात में आमंत्रित हैं और वो एक पारम्परिक आयोजन हैं तो शुरू शुरू के परोसे आइटम से पेट न भर लें क्योंकि ज्यादा स्वादिष्ट व्यंजन बाद में आते हैं ।



यु पी, बिहार और मारवाड़ी भोज
यु पी, बिहार के भोज भात में पंगत में या टेबल पर लोग बैठते है और पहले पानी परोसा जाता हैं क्योंकि पत्तल को लोग पानी के छीटों से शुद्ध करते हैं । फिर नमक मिर्च परसे जाते हैं । फिर, पूरी, चावल (या पुलाव), दाल, सब्जियां, नॉन वेज, अचार, पापड़ इसी क्रम में परोसे जाते हैं । भोज का अंत दही, चीनी या मिठाई के साथ होती हैं । यदि दही परोसा गया तो पंगत से उठने का समय आ गया। यदि आप उत्तर बिहार में किसी भोज भात में गए और चूड़ा-दही का खिलाया जा रहा है तो चूड़ा सिर्फ एक बार परोसा जाता है और सिर्फ दही या मिठाइयां ही परसन में ले सकते है । ऐसे प्रसिद्धि बिहारी खाना लिट्टी चोख कई उत्तरी राज्य में भी आजकल must हैं । जबकि बिहारी भोज भात में अक्सर लिट्टी शामिल नहीं होता । यहां मैं याद दिला दूँ की यदि आप मारवाड़ी के यहाँ भोज खाने गए है तो पापड़ परोसे जाने के बाद भोज ख़त्म माने । मारवाड़ी भोजन में खाना निरामिष होता है और सामिष खाने की कोई उम्मीद न रक्खे । मैं एक बिरला की फैक्ट्री के गेस्ट हाउस में रुक चूका हूँ । वहां अंडे तक नहीं मिलते थे । मुझे एक मारवाड़ी बारात में जाने का मौका मिला था और विवाह संस्कार के पहले कोई नमकीन व्यंजन नहीं परोसे गए, और सब्जी तक मीठी थी ।



दक्षिण भारत, तमिलनाडु
जबकि दक्षिण के चारो राज्यों के खाने में थोड़ा बहुत अंतर हैं खिलने का तरीक़ा करीब करीब एक ही होता है । भोज केले के पत्ते पर खिलाते हैं । पत्ते का तिकोना अग्र भाग खाना के लिए और पीछे वाला वर्गाकार कटा पत्ता टिफ़िन के लिए उपयोग में लाते हैं । ऐसे आज कल थाली / प्लेट के ऊपर गोल कटा केले का पत्ता का उपयोग भी किया जाता हैं । केले के पत्ते की लम्बाई हर वर्ग में अलग अलग होता हैं । कहते है केले का पत्ता एक परिचय पत्र की तरह हैं जिसे देख कर पता लग जाता हैं की खिलने वाले किस जगह और किस वर्ग से हैं ।
सबसे पहले बून्द भर पायसम को पत्ते पर खाने वाले के दायीं ओर परोसी जाती है । तत्पश्चात् भोजन को पत्ते पर परोसा जाता है : रायता, दूधी पचड़ी जो ऊपरी दाएं कोने पर परोसा जाता है।इसके बाद करी अवियल और फिर अचार अदरक पचड़ी, पत्ती के शीर्ष के साथ। बाईं ओर वड़ा दाल वड़ा, मिठाई अनानास शीरा, मिश्रित चावल जैसे लेमन राइस कोकोनट राइस आदि। फिर, मुख्य व्यंजनों को परोसा जाता हैं ।दाल केरला पारिपू, चावल और घी, सांभर और रसम के साथ। और फिर पायसम मूंग दाल पायसम को सूखे केले के पत्तों से बने कप में परोसा जाता है या कभी कभी मुख्य पत्ते पर ही, अंत में दही चावल और छाछ। खाना खत्म करने के बाद, रिश्तेदार और दोस्त आम तौर पर बाहर इकट्ठा होते हैं और थोड़ा पाचन-सहायक स्नैक पर चैट करे खाते हैं जैसे केले और पान या बीड़ा ।
आंध्र प्रदेश
मेरी बेटी काफी समय हैदराबाद में रही है और उसका कमेंट मैं add कर रहा हूँ ।श्वेता के शब्दों में "आंध्र प्रदेश में तीन कोर्स में खाना परोसा जाता है। मेरे पास इसके बारे में ज्ञान की कमी के कारण बहुत ही मजेदार अनुभव हुआ। पहली बात यह थी कि मेजबान मेरे खाना शुरू करने का इंतजार करता रहा और मैं बात करने में व्यस्त थी , इसलिए खाना तुरंत शुरू नहीं किया । मुझे यह समझने में थोड़ा समय लगा कि हर कोई इंतजार क्यों कर रहा है। परोसने वाली पहली वस्तु सांभर के साथ चावल थी। मुझे लगा कि यह पूरा डिनर है, इसलिए पर्याप्त चावल ले लिया , लेकिन सांभर काम पड़ने लगा । , मैंने सांभर खत्म किया और सांभर का परसन मांगा... पर आया चावल और रसम (मैं निराश हो गई क्योंकि कोई सांभर नहीं आया । सांभर वास्तव में स्वादिष्ट था और मैं और अधिक खाना चाहता थी )। वैसे भी रसम भी उतना ही स्वादिष्ट था और जब दही-चावल दिखने लगे तब तक मेरा पेट भर गया था। काश, मुझे पता होता कि इतनी तरह खाना का प्रबंध था, तो मैं निश्चित रूप से पहले कम चावल लेती । भोजन सरल था, लेकिन संतोषजनक था। बेशक खाने के साथ अचार और चटनी भी थी । अंत में हमें कस्टर्ड परोसा गया ... और हमें बताया गया कि कस्टर्ड हमारे लिए विशेष रूप से पकाया गया है (क्योंकि हम उत्तर भारतीय हैं और हमें अंत में कुछ मीठा खाना पसंद है)। थोड़ी चीनी भी पत्ते के बाहर परोसी गई,ताकि चीटियाँ वही busy रहे। शायद तमिलनाडू में इसी कारणवश बूंद भर पायसम पत्ते के किनारे परोसते है। "



गुजराती थाली
हल्की और बहुत विशिष्ट है, लेकिन निस्संदेह अच्छी है। चार सब्जियां, फरसान, रोटियां और एक छोटी भाकरी मीठी दाल, चावल या खिचड़ी, कटा हुआ सलाद, चटनी, अचार और कुछ विशेष रूप से ताज़ा छाछ (छाछ) के साथ आती है। मिठाई में गुलाब जामुन, रसगुल्ला, या आम रस जैसा कुछ मौसमी होता है। दाल सब्जियों में थोड़ा मीठापन होता हैं और नाश्ते में खाने वाले कुछ चीजें भी खाने की थाली में होती हैं । एक बार Baroda के एक होटल में गुजरती थाली खाई थी उसमे थे चार सब्जियां, फरसान, रोटियां और एक छोटी भाकरी मीठी दाल,कढ़ी, दही वडा, चावल और खिचड़ी, कटा हुआ सलाद, चटनी, अचार और ताज़ा छाछ । मिठाई में गुलाब जामुन, और कुछ मौसमी रस होता है जैसे आमरस । मजेदार था खाना लेकिन क्योंकि पूरी थाली परोस कर लाई गई थे इसलिए परोसने का क्रम पता नहीं चल सका ।पर अंत में पापड़ ही परोसा गया ।

अन्य जगहों के खाने

मैंने दक्षिण भारत जब भी गया मुंबई थाली मंगाई एक उत्तर भारतीय के स्वाद से एक दम मिलता जुलता हैं यह पर कभी भोज नहीं खाया मुंबई में । दिल्ली पंजाब में हमेशा बुफे खाना ही खाया है और जबकि मुझे छोला भटूरा और छोले चावल बहुत पसंद हैं । बटर चिकन और तंदूरी रोटी भी पसंद हैं पर परोस कर किसीने भोज नहीं खिलाया इन जगहों में कभी। मौके की तलाश में हूँ जब भी ऐसा मौका लगा जरूर इस ब्लॉग में add कर दूँगा ।

खाना खत्म करना
आपको अपनी थाली / पत्तल पर कुछ भी बचा हुआ नहीं छोड़ना चाहिए। ऐसे कहीं कहीं अपनी थाली में खाना छोड़ना status के लिए जरूरी माना जाता है। परोसे जाने वाले प्रत्येक व्यंजन का स्वाद लेना आवश्यक नहीं है, लेकिन आप अपनी थाली में जो कुछ भी रखते हैं वह समाप्त होना चाहिए। खाना मध्यम गति से खाना चाहिए ताकि पंगत मे बैठे अन्य लोगो के साथ ही आपका खाना खत्म हो । परोसने वाले को क्रम से खाना परोसने देना चाहिए। किसको कौन सा व्यंजन और चाहिए वह परोसने वाला देख कर लगाता है या मानक क्रम के अनुसार परसता है, उसे ऐसा करने दे।


बधाई देना
अपना भोजन समाप्त करने के बाद, आपको भोजन के लिए अपने मेजबान की सकारात्मक प्रशंसा करनी चाहिए। चूँकि भोजन बड़ी मेहनत और सावधानी से तैयार किया जाता है, इसलिए अपनी प्रशंसा व्यक्त करने से मेज़बान खुश हो जाएगा।


टेबल छोड़कर
यदि आपने अपना भोजन जल्दी समाप्त कर लिया है, तो आपको तब तक बैठे रहना चाहिए जब तक मेज़बान या मेज पर सबसे बड़ा व्यक्ति अपना भोजन समाप्त नहीं कर लेता। मेज से उठना जब बाकी सब लोग अभी भी खा रहे हों तो इसे खराब व्यवहार माना जाता है।

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