Friday, November 19, 2021

लफ़्फ़ाज़ी

क्या प्लास्टिक पैकिंग जरूरी हैं

कल मैं दूध के पैकेट लेने गया तो मैंने दुकानदार को एक ग्राहक से बहस करते देखा । उस मोहतरमा ने दूध के दो पैकेट और ब्रेड ख़रीदा था और प्लास्टिक की थैली या कैरी बैग मांग रही थी और दुकानदार कह रहा थे सख्त आर्डर हैं प्लास्टिक पूरी तरह बंद हैं । जब ग्राहक ने कहा मैं सामान कैसे ले जाऊ तब दुकानदार उसे बताने लगा कैसे एक हाथ से दोनों दूध का पैकेट कोने से पकड़ सकते हैं और दूसरे हाथ से ब्रेड पकड़ सकते हैं । खैर मैं हमेशा थैली ले कर ही बाजार निकलता हूँ और हमें कोई परेशानी नहीं हुई । मैं सोचने लगा गवर्नमेंट और नगर निगम कभी अचानक सख्त हो जाती हैं तो कभी ढील दे देती हैं । खैर मैं धीरे धीरे टहलने लगा । जबसे मैंने मोतियाबंद का ऑपरेशन करवाया मैं नज़रे नीचे करके ही चलता हूँ और मुझे कई चीज़े रास्ते में दिखने लगे जैसे पान मसाले के ५ से १५ ग्राम के छोटे छोटे सैकड़ो पाउच , कुरकुरे, चिप्स के २५-५० ग्राम के दसियों पाउच, (नालियां तो इन छोटे प्लास्टिक से भी बंद हो जाती हैं ।) १ लीटर के पानी के बोतल , बिस्कुट के प्लास्टिक के पैकिंग वैगेरह। मैं सोचे बिना नहीं रह सका की कैरी बैग पर रोक तो सिर्फ ऊंट के मुँह में जीरे के सामान है । फिर दिखे शराब के छोटे शीशी के बोतल जिसे किसीने रास्ते में ही फोड़ डाले थे । सोचने लगा क्या प्लास्टिक बोतल ही शराब के लिए एक सुरक्षित पैकिंग हैं। मुझे अपने बचपन का याद हो आई जब मंघाराम की बिस्कुट टीन के डब्बे में आते थे और उसके छोटे छोटे पैकेट वैक्स पेपर के होते थे शायद वह हमारे इन्वॉयरन्मेंट के लिए सबसे अच्छी पैकिंग होती। पंसारी चावल, दाल, आटा अख़बार से बने ठोंगे में पैक कर देते । घी, तेल के लिए डब्बे, बोतल हम घर से लेकर जाते थे। क्या ही दिन थे वे जब प्लास्टिक का इज़ाद नहीं हुआ था ।

नारी सशक्तिकरण

नारी सशक्तिकरण आज का Buzz Word हैं और मैं इसमें विश्वास भी रखता हूँ पर कैसे करना हैं यह सब ? मै अक्सर एक देशी शराब दुकान का जिक्र करता हूँ और मैं रोज़ वहां आने जाने वाले को देखता हूँ । देशी हड़िया (home brewed rice beer ) बेचने वाली एक महिला हैं और कई पीने वाली भी महिलाये भी आती हैं । क्या पीना पिलाना भी नारी सशक्तिकरण हैं ? माध्यम वर्ग में शायद नहीं । कभी कभार रेड वाइन पी लेना एक बात हैं और कोई हार्ड ड्रिंक ले कर बहक जाना दूसरी बात हैं । शायद इसलिए पुरानी फिल्मों में पीने वाली महिलाये बुरी औरते ही होती थी मैं कई नई फिल्मों और टीवी सेरिअल्स में देखता हूँ आजकल महिलाए भी पार्टियों में जम कर पीती हैं । मैं कल एक प्रसिद्द टीवी सीरियल में देख रहा था की करवा चौथ में व्रत खोलने के बाद औरत और मर्द दारू पानी की तरह पी रहे थे क्या यही हमारे संस्कार हैं क्या यह कोई गलत सन्देश नहीं दे रहा समाज को ?

2 comments:

  1. Well, if men can drink on diwali, why can't women drink on karwa chauth? I am neither condoning nor criticizing this act. However, often women bear the burden of carrying on so-called traditions. The point is both should be treated equal. If one gender gets an opportunity, both should. If we question one gender, question both for the same thing. Equality is the key.

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  2. मैंने अपनी कोई राय नहीं दी सिर्फ एक प्रश्न किया हैं, समय बदलने से मापदंड बदल जाते है । जो कभी सही नहीं थे वही बाद कभी एक रिवायत बन जाती हैं । कभी विदेश जा कर आने वाले (चाहे पुरुष ही थे) भी समाज में स्वीकार्य नहीं थे और आज ऐसे लोग अन्य लोगों के लिए एक मॉडल माने जाते हैं। मैं जनता हूँ मेरे इस प्रश्न के सबके पास अलग अलग उत्तर होगा ।

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