Monday, November 15, 2021

झारखंड के स्थापना दिवस पर जोहर !

झारखण्ड आज अपनी २१वीं स्थापना दिवस और बिरसा जयंती मना रहा है । तब पल खुद में ठहर सा गया है. वह मुड़कर पीछे देख रहा है. इतिहास को निहार रहा है. इसमें दिख रही हैं शहीदों की चिताएं, बलिदानियों का बलिदान, परंपराएं, रीति-रिवाज, धर्म और राजनीति का इतिहास भी. कोई इमारत ऐसी, जहां अंग्रेजों की गोलियों के निशान अब भी हैं, तो कोई मंदिर ऐसा जो सदियों से पुराणों की कथाएं समेटे हुए है. इस अवसर पर मैं रांची के तीन ऐतहासिक स्थलों के बारे में कुछ लिखना चाह रहा हूँ ।



रांची का जग्गनाथ मंदिर
जगन्नाथ मंदिर रांची का निर्माण सन 1691 ईस्वी में किया गया था। इस मंदिर का निर्माण बरकागढ़ के महान राजा ठाकुर अनीश नाथ शाहदेव द्वारा किया था। मंदिर का और गर्भगृह का निर्माण सम्पूर्ण रूप से संगमरमर के पत्थर से किया गया है, जिसमे मंदिर के संस्थापक और स्थापना वर्ष के बारे में बताया गया है। इस मंदिर की नींव वैष्णववाद और इसके संस्थापक चैतन्य महाप्रभु ने रखी थी। ऐसा मान्यता है कि जब 17 वीं शताब्दी के आस पास बहुत सारे लोगों ने हिंदू धर्म को छोड़ना प्रारम्भ कर दिया था, हिंदू धर्म के धर्म गुरुओं ने हिंदू धर्म की पहचान बनाए रखने के लिए जगन्नाथ मंदिर जैसे कई अन्य प्राचीन मंदिरों का निर्माण शुरू कर दिया था। तब यहाँ पर जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कर हिंदू धर्म में आदिवासियों की आस्था और विश्वास को पुनर्जीवित करने के लिए किया था। सन 1990 ईस्वी में इस मंदिर का कुछ भाग ढह गया था। पर मंदिर का अब जीर्णोद्धार किया जा चूका हैं और जिस कारण इस मंदिर ने अपना खोया हुआ गौरव वापस पा लिया है। मूल मंदिर का निर्माण एक किले के रूप में किया गया था ।

शहीद स्मारक
राजधानी के शहीद चौक के समीप और जिला स्कूल परिसर में स्थित शहीद स्मारक कई मायनों में ऐतिहासिक और आजादी के लिए कुर्बानी देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों का प्रतीक है. जो हर वक्त अपने देश के वीर सेनानियों की याद दिलाती है. यहां ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव और पांडे गणपत राय को अंग्रेजों ने फांसी दी थी. जानकार तो यह भी कहते हैं कि यहां और भी कई स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी गई थी. इसी परिसर में स्थित एक कुएं में उनका शव डाल दिया जाता था, जो आज भी मौजूद है. यह स्थान 1857-58 के जंग-ए-आजादी के शहीदों को स्मरण कराता है।

रांची शहर का खास पहाड़ी मंदिर
पहाड़ी मंदिर रांची शहर के एक खास मंदिर हैं और इसकी पहचान भी हैं । यह एक शिव मंदिर कई पुरानी कथाये हैं और हैं लोगों की मान्यताएं। लेकिन इसके साथ ही इस मंदिर की खासियत है कि यह देव भक्ति के साथ देशभक्ति का भी प्रतीक है। इसके दीवारों और दरारों में वंदे मातरम की गूंज हैं । कहते है भगवान शिव का यह मंदिर आजादी के पहले अंग्रेजों के कब्जें में था। इस मंदिर की दीवारें अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान आज भी सुनाती हैं। अंग्रेजों ने यहाँ क्रांतिकारियों को फांसी के फंदे में जकड़ दिया करते थे।यहां तकरीबन सैकड़ों क्रांतिकारियों को फांसी दी जा चुकी हैं ।
क्रमशः

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