Sunday, February 20, 2022

मेरा शहर (विशाखापतनम)


मैने कई शहरों में अपने बेहतरीन साल और महीने बिताए है। इनमें राँची, जमुई, सेलम और डुसेलडॉर्फ के बारे में मैने कभी न कभी किसी न किसी ब्लॉग में लिखा है । पटना के बारे में थोड़ा थोड़ा बहुत सारे ब्लॉग में कुछ न कुछ लिखा है। पर कई शहर अब भी है जहाँ मै रहा हूँ, कई बार गया हूँ, जिससे मोहब्बत सी हो गई है और उस पर बारी बारी से लिखने का मै सोच रहा हूँ। इस बावत मुझे जिन शहरों की याद आ रही है वे है बोकारो, विशाखापत्तनम, सुलुरपेट (श्रीहरिकोटा),बेगुसराय, प्रीटोरिया और पेरिस। पटना के बारे में जो मैने कई पोस्ट मे लिखा उसे भी एक ब्लॉग मे लाने की ईच्छा है मेरी। बोकारो पर एक ब्लॉग लिखा भी है मैने पर शहर के बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखा है। आज  मेरा यह ब्लॉग  विशाखापतनम् को समर्पित है।
विशाखापतनम् जिसे हम और हमारे जैसे कई लोग प्यार से वाइज़ाग भी कहा करते है। मैंने  कुछ साल और मेरे परिवार ने भी कुछ समय बिताये हैं । पूर्वी भारत से दक्षिण भारत के हर यात्रा में आने वाला एक स्टेशन सभी को याद होगा जिसे पहले वाल्टेयर (अभी भी पेदा वाल्टेयर और चिन्ना वाल्टेयर यहाँ के दो मोहल्लो का नाम है।) कहा जाता था और अब कहते हैं विशाखापत्तनम। HOWRAH से चेन्नई सेंट्रल (जिसे भी पहले मद्रास सेंट्रल कहते थे) जाने वाला हर एक ट्रेन यहाँ कम से कम आधा घंटा तो अवश्य रुकती हैं क्योंकि ट्रेन का DIRECTION यहाँ बदल जाता हैं और ट्रेन इंजन को आगे से हटा कर पीछे लगाया जाता हैं । मैंने भी इस स्टेशन को चेन्नई, सालेम, बैंगलोर या फिर दक्षिण भारत की यात्राओं में कई बार CROSS किया हैं । १९८० में तो सालेम से कार से लौटते समय अन्नावाराम, जो वाइज़ाग से १६ की मि पर है, में रात भी गुजारी । फिर १९८२-१९८३ में विशाखापतनम स्टील प्लांट, जिसका शिलान्यास १९७१ में ही हो गया, के दो मिलों के लिए मेरी कंपनी ने आर्डर लेने का प्रयास शुरू किया और मैं भी इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बन गया और फिर हुआ मेरे वाइज़ाग में आने जाने और रहने का सिलसिला । मैंने करीब ३ साल बिताये यहाँ और १९९३ तक समय बिताया । २००१ में अंतिम बार इस जगह पत्नी के साथ कुछ जगहे घूमे और पुरानी यादें ताज़ा कर आये । मैं अपने अनुभव को साँझा कर रहा हूँ यहाँ मै नए प्रोजेक्ट के काम से 2007 से 2010 के बीच भी कई बार गया पर कहीं घूमने का मौका तब नहीं मिला। ।

चेन्नई यात्रा में वाल्टेयर एक प्रमुख जंक्शन स्टेशन होता था। यहाँ ट्रेन नाश्ता या खाना का समय तक पहुँचती और हम इसका इंतज़ार कर रहे होते । ऐसे तो प्लेटफार्म पर ही सही अच्छा खाना जो अक्सर गरमा गरम भी होता था मिल जाता था फिर भी कभी कभी हमारे साथी स्टेशन के बाहर मिलने वाले बिरयानी लाने के लिए निकल जाते क्योंकि ट्रेन का स्टॉप अक्सर ४० मिनट का होता था । वाल्टेयर के बाद आने वाले जिस स्टेशनों की प्रतीक्षा रहती थी वह होती विजयवाड़ा और राजमुंद्री। इन स्टेशन पर हम खाने के लिए ही उतरते । १९८६ में वाल्टेयर स्टेशन का ही नाम बदल कर हो गया विशाखापत्तनम ।

जिस पहली वाकये का मैं जिक्र करना चाहता हूँ वह है जब मैं १९८० में सालेम मैं अपनी पहली कार खरीदी और मैं उसीसे रांची लौट रहा था । राजमुंद्री से जब पास कर रहा था तो रात में कहा रुके यही सोच रहा था । मन में सोचा था वाइज़ाग में ही रुकेंगे पर अन्नावरम पहुंचते पहुंचते अँधेरा हो गया और चूंकि मुझे रात में गाड़ी चलने में बहुत दिक्कत होती है । यहीं रात बिताने का फैसला किया।अन्नावरम में एक पहाड़ी पर श्री सत्यनारायण स्वामी का एक बहुत ख़ूबसूरत मंदिर हैं और उसीको देखा और हम वही रुक गए । रात का समय था कहां जाते ? पहाड़ी के नीचे स्थित एक धर्मशाला में मैंने चटाई पर सो कर रात गुज़ार दी ।


Annavaram photo curtsey wikipedia

सुबह सुबह नहा कर, पहाड़ी के नीचे बने मंदिर में पूजा की और फिर आगे निकल लिए। गजुवाका पहुंच कर इडली का नाश्ता कर आगे बढ़ गए भुबनेश्वर के लिए । इस तरह मै वाइज़ाग को छू कर निकल गया ।

१९८२ आते आते मेरा सालेम प्रोजेक्ट का काम पूरा हो गया और मैं विशाखापत्तनम में बनने वाले सबसे लम्बे LIGHT AND MEDIUM MERCHANT MILL प्रोजेक्ट से जुड़ गया और वाइज़ाग की कई यात्राएं की । हम लोग यह प्रोजेक्ट जर्मन लोगों के साथ कर रहे थे और उनके साथ साथ रहने के लिए हमें भी हवाई यात्रा से ही वाइज़ाग जाने का ऑर्डर आया और हम - रांची-कलकत्ता- वाइज़ाग हवाई मार्ग के यात्री बन गए । जब तक प्लांट डिज़ाइन का काम चल रहा था वहां के एक बहुत अच्छे होटल रामोजी फिल्म सिटी वालो के "डॉलफिन" में ही हम रुकते । और वहीं से प्लांट के प्रोजेक्ट ऑफिस जाते थे । हमारा एक ऑफिस बस स्टैंड के पास भी था जहाँ कभी कभी जाना पड़ता था । कई बार बस स्टैन्ड में आरकू वैली की बस देखता और जाने का प्लान बनाता पर जा न सका अभी भी मेरे bucket list मे अरकू है। डॉल्फिन होटल में तब दो रेस्टोरेंट और एक कॉफ़ी शॉप हुआ करता था पर बाद में ७ वे तल्ले पर होराइजन रेस्टोरेंट खुला और कॉफ़ी शॉप बंद हो गया । वसुंधरा जो एक शाकाहारी रेस्टोरेंट था हमारे बीच लोकप्रिय था लेकिन रविवार हम होराइजन में ही LIVE म्यूजिक के साथ रात का खाना खाते । रांची में टीवी की शुरुआत १९८३ के अंत तक शुरू हुयी थे पर इस होटल में रूम में टीवी और केबल पर प्रोग्राम चलता रहता । जब डिज़ाइन का काम ख़त्म हो गया और प्रोजेक्ट को बनाने और चलाने के लिए हमारी पोस्टिंग शायद १९८८ या ८९ में वाइज़ाग हो गयी । शुरुआत में मैंने स्कुल के छुटियों में परिवार को भी वाइज़ाग लाने का प्लान किया। हमने अपने एक दोस्त को MVP कॉलोनी में एक घर किराये पर ले देने का पैगाम दे दिया। अपनी गाड़ी भी लानी जरूरी थी क्योंकि कार अलाउंस जो लेनी थी । मेरे पास एक स्टैण्डर्ड १० सफारी मॉडल कार थी । मैंने ड्राइवर के बजाय एक मेकानिक को ले जाना उचित समझा पर हमारा मैकेनिक गाड़ी चलाना नहीं जनता था । और पूरे १००० किलोमीटर मुझे ही गाड़ी चलानी पड़ी । अंतिम रात मैंने ट्रक ड्राइवर्स के स्टॉप पर बिताई थी और लगातार ट्रक के आने जाने के कारण रात भर जगे ही रह गए थे । अंतिम दिन करीब ४०० Km की गाड़ी चला कर आया था और शाम तक वाइज़ाग पंहुचा था थक कर चूर था मै । बिस्तर पर गिरते ही सो जाने की हालत में था । मैंने मैकेनिक को MVP बीच के पास के दुकान से डोसा ले आने को कह कर मैं बिस्तर ठीक करने लगा । इसी समय BELL बजी और वैद्यनाथन मिलने आया हुआ था कैसे कब करते करते आधा घंटा हुआ होगा की फिर एक एक कर दूसरे दोस्त आते गए और दो तीन घंटे बीत गए । हर जन के जाने के बाद मैं सोचता सो जाऊँ, पर तभी कोई और आ जाता । मेरे पागल होने के पहले लोगों का आना जाना बंद हुआ और मैं सो सका । अगले तीन बार हम कम्पनी के गेस्ट हाऊस, उक्कू नगरम हाऊस, और ऊक्कूनगरम सेक्टर 8 मे रहा। मेरे कंपनी को २००७ में एक और प्रोजेक्ट का ऑफर मिला वाइज़ाग स्टील प्लांट से और मुझे कुछ समय और वाइज़ाग में बिताने को मिला ।

कई बार मेरी टेम्पररी पोस्टिंग वाइज़ाग हुई पर सिर्फ पहली बार ही मैंने गर्मी छुट्टी में परिवार को वाइज़ाग बुलाया । हम उनके साथ कई जगह घूमने गए । जिसमे ऋषिकोंडा बीच, MVP बीच, डियर सफारी और ज़ू हम गए जो हमारी MVP कॉलोनी से उत्तर की तरफ था यानि जब मैं वाइज़ाग आ रहा था तब ही मैंने इन सब जगहों को देख लिया था और सोच भी लिया था की इन सब जगहों पर फिर आऊंगा अपने परिवार के साथ । कुछ ही दिनों में मेरा एक कलीग रांची से परिवार सहित घूमने आये और इस बीच हमारे एक कॉमन दोस्त भी मिल गया जिनके साथ हम कई जगह घूमे । हमारा स्टैण्डर्ड सफारी मॉडल कार घूमने में बहुत काम आया । रास्ते में बच्चों द्वारा कहे शब्द अच्छा लगता "पुराना मॉडल का मारुती हैं "। पर सबसे पहले मैं MVP कॉलोनी के बारे में कुछ बताना चाहूंगा । MVP का पूरा नाम हैं मुव्व वाणी पालम यानि पायल की स्वर वाला मोहल्ला । जितने चाय की दुकान नहीं हैं यहाँ उससे ज्यादा शराब की दुकाने थी । पर उनमें कोई भी रेस्ट्रा या बार नहीं था । उनके पास बार का लइसेंस था ही नहीं । पर वे शराब को अपने दुकान में लोगों को बैठा कर पिला नहीं सकते थे। उन्हें सिर्फ पूरी बोतल ही बेचना पड़ता। ज्यादातर ग्राहक पूरा बोतल नहीं खरीदना चाहते। इस problem से निपटने के लिए दुकानदार ने सैंपल बेचा करते यानि करीब ९० ml एक गिलास में ढाल के एक घूंट में खड़े खड़े पीना होता था । दूसरा था होम लाइब्रेरी जो हर ४-५ घरों में से एक में मिल ही जाता था । एक security deposit जमा करने के बाद प्रति किताब 20-25 पैसे देकर किताब इस्यू कर सकते थे।  MVP सागरतट एक बढ़िया beach था पर मछुवारों के बस्ती नज़दीक थी और यह बीच उनके लिए open स्काई टॉयलेट ही तो था । यानि यह एक गन्दा सागरतट था ।
एक कहानी याद आ रही है। तेलगू में एक शब्द है 'लेदू' जिसका हिन्दी मे अर्थ है 'नहीं'। एक बार मेरा टीनएज बेटा पड़ोस के दुकान से दूध लाने गया पर दूध मांगने पर दूकान वाली ने कहा लेदू, दो लेना है समझ कर मेरा बेटे ने दो पैकट उठा लिए। दुकान वाली ने जब मना किया तो झुंझला कर वापस आ गया "पहले कहती है 'ले दू' और उठाने पर मना करती है। हम हँस पड़े थे।
हम लोग अपनी अपनी कार से ऋषिकोंडा बीच गए और पिकनिक मनाई नज़दीक ही एक डियर सफारी पार्क था तब वह भी गया । दूसरा बीच जहाँ गए थे वह था गंगावरम बीच


जिसका रास्ता हमारे वाइज़ाग स्टील प्लांट के बीच हो कर जाता था वहां जाने के लिए पास लेकर जाना पड़ा । अब तो बाहर से भी रास्ता हैं । इसी जगह एक दूजे फिल्म के कुछ गानों की शूटिंग भी हुई थी । बच्चों को बड़ा मजा आया । अपने बोकारो के मित्र बिनय और उदय सिंह के परिवार साथ ही वहां गए थे ।


सिम्हाचलम मंदिर Photo Curtsey Wikipedia

उसी ट्रिप में हम नरसिंह मंदिर देखने सिम्हाचलम गए थे जो NAD कोथा रोड जक्शन से सिर्फ ६ km दूरी पर था । मंदिर एक पहाड़ी पर है। यहाँ दो बार गए थे । नीचे गाड़ी पार्क कर बस से ऊपर गए थे । पहली बार लम्बी लाइन में लगाना पड़ा जबकि दूसरी बार आसानी से दर्शन हो गया था । जब तक बच्चे साथ थे हम RK बीच भी गए थे जहाँ मरीन ड्राइव और जुहू चौपाटी का मजा एक साथ आता था ।


थोटलकोण्डा बुद्धिस्ट स्तूप Photo Curtsey Wikipedia

ऐसे तो ऑफिस के काम से कई बार वाइज़ाग गया पर एक बार  पत्नी के साथ २००१ में भी वाइज़ाग गया था । उस बार एक शादी में रांची से कुछ कुक को लेकर हैदराबाद गया था और लौटते हमें वाइज़ाग में गाड़ी चेंज करना थे । काफी वक़्त मिल गया वह और हम कुछ नयी जगहे जैसे सबमरीन म्यूजियम, थोटलकोण्डा बुद्धिस्ट साइट और शिपयार्ड /पोर्ट स्थित टेम्पल वैगरह भी घूमे ।


Submarine Museum

इन सभी जगहों में जो जगह अनोखी लगी वह था हिंदुस्तान शिपयार्ड और वाइज़ाग पोर्ट । तीन पहाड़ियों पर यहाँ तीन धर्म के पूजा स्थल हैं । जहाँ हम सबसे पहले श्रृंगमणी पहाड़ी पर स्थित वेंकटेश्वर मंदिर मे गए जहाँ प्रसाद खाने के बाद आगे सीढियाँ चढ़ी फिर जैसे जैसे समुद्र तट की ओर बढ़े दरगा कोंडा पर स्थित मदनी वाले बाबा की दरगाह दिखा और फिर दिखा रोस हिल पर स्थित चर्च ।


एक डॉल्फिन जैसी दिखने वाला पहाड़ी जिस पर लाइट हाउस भी था वह भी दिखने लगा । लोगों ने बताया जब कोई जहाज इस Natural पोर्ट की तरफ बढ़ता तब नाविकों को ये पुजा स्थल एक सीध में दिखता है और उसकी उम्मीदें बंध जाती है की मंज़िल आ गयी ।

Saturday, February 19, 2022

ब्रैन्ड का असर


कल परसों मै अपने मोहल्ले के एक दुकान पर कुछ खरीदने गया था तभी एक 12-13 साल का लड़का आया और उसने कैसे खरीदारी की वह देखिए ।
ऐगो बीस रूपया वाला घड़ी निरमा दिजिए।
और एगो रिन दिजिए पतंजली।
हो गया त एगो 10 रुपया वाला कॉलगेट दिजिए पतंजली।
इसी तरह उसने एक दो और चीजें खरीदी। सभी समानों के दाम बताया ब्रैंड बताया। पर सामान के नाम के जगह पर उस वस्तु के उस ब्रैंड का नाम लिया जो वास्तव मे उस वस्तु का पर्याय बन चुका है। मुझे भी बचपन से ले कर आज तक के कई ऐसे ब्रैंड के नाम याद आने लगे । कुछ नाम प्रस्तिुत है। कुछ यदि आपको भी कुछ याद आए तो कमेंट मे बताएं।
=

जब वनस्पति घी बनने लगा तो सबसे पहले आया 'डालडा ' ही वनस्पति का पर्याय बन गया चाहे किसी ब्रांड का हो। लोग दुकानों पर रथ का डालडा मांगते। और ओरिजनल डालडा खरीदना हो तो खजूर छाप डालडा मांगना पड़ता।
इसी तरह के ब्रैंड थे
कपड़ा धोने का साबुन सनलैट (Sunlight), 501

सिगरेट : चारमिनार, सिजर्स

हिन्दी अखबार : आर्यावर्त
मेडिकेडेट साबुन : लाइफब्याय
सर्फ भी कुछ समय तक वाशिंग पाउडर का पर्याय था या है ।
चाय पत्ती : लिप्टन
स्नो क्रीम : अफगन स्नो

आज के समय के ऐसी ही कुछ वस्तुए हैं
पोस्टमैन तेल के बहुत दिनों तक खाने वाले रिफाइंड तेल के पर्याय रहे थे


एक और ऐसा नाम है स्कूटी। याद होगा की बिना गियर वाले टू व्हीलर को पहले VICKY कहा जाता था जो एक मोपेड (MOTORISED PEDAL ) था । बाद में कई गियरलेस छोटी २ व्हीलर्स आई और बाद में जब बजाज की sunny आई तब सभी मॉडल के गैरलेस बाइक को Sunny कहा जाने लगा पर अब जिस पॉपुलर नाम गैरलेस २ व्हीलर से जुड़ा हैं वह है स्कूटी यानि TVS की scooty का नाम ऐसे गैरलेस २ व्हीलर का पर्याय बन गया गया ।
ज़ेरॉक्स भी एक ऐसी ही मशीन है , किसी भी make के फोटोकॉपी मशीन से कॉपी कराये कहलाता वोह ज़ेरॉक्स कॉपी ही हैं ।
कुछ और ऐसी चीज़े जो लोगों ने बताई वह है गोदरेज का आलमीरा, फेविकोल , बिसलेरी , कैडबरी वैगेरह ।

Monday, February 7, 2022

सरस्वतीपुत्री, स्वर कोकिला लता मंगेशकर 1929-2022 - श्रद्धांजलि


6 Feb 2022 !

आज सुबह उठा तो मन अशांत सा था । किसीसे बात तक करने की इच्छा नहीं थी। मै चुपचाप हीटर के पास बैठा था। रोज सुबह टी वी पर गाने सुनना मेरी रोज का रूटीन है पर आज मैने टी वी भी आॉन नहीं किया यू ही बैठा था कि अचानक रेडियो मे प्रसारित एक खबर ने मेरा ध्यान खींच लिया "स्वर कोकिला, भारत रत्न लता मंगेशकर का सुबह 8 बजे ..." दिल धक से रह गया । अभी परसो ही उनका वेंटिलेटर निकाला गया था पर कल उनकी हालत बिगड़ने लगी थी और करोड़ो भारत के या विदेश के लोगों की दुआ प्रर्थना शायद उनकी 28 दिनों की बीमारी में खर्च हो गए। एक दुखद समाचार था आज - लता मंगेशकर, हमारी लता दीदी की 92 वर्ष की आयु में मुंबई में निधन हो गया, एक भारतीय सांस्कृतिक प्रतीक और राष्ट्रीय खजाना अचानक खो गया । कैसा संयोग है की आज सरस्वती पूजा का मूर्ति विसर्जन का दिन है और आज ही सरस्वती पुत्री भी हमें छोड़ गयी । लता जी का गया "ए मेरे वतन के लोगों " दिल को छू जीने वाला गीत है, और यह भी संयोग हैं की कवि प्रदीप जिन्होंने यह गीत लिखा उनका जन्म दिन भी आज ही है । भगवान लता दीदी की आत्मा को शांति दे और भगवद् चरणों में स्थान दे ।
बचपन से उनके गाने सुनता आ रहा हूँ , तब से जब मुझमें आवाज पहचानने की कोई काबिलियत नहीं थी और अक्सर मै लता जी और आशा जी के आवाज में फर्क नहीं कर पाता था । धीरे धीरे उनके गानों की मधुरता, उनके द्वारा किसी भी भाषा का सही सही उच्चारण - तलप्फुस और स्वर के साथ रिदम में उनकी प्रवीणता मेरे मन को मोहती चली गई।
पिता स्व दीनानाथ मंगेशकर नाटकों थियटरों में गाते थे और अभिनय करते थे और हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के गायक थे। दीनानाथ जी का जन्म मंगेशी गांव (गोवा) में हुआ था उनके पिता मंगेश मंदिर के पुजारी थे जबकि उनकी माता गोमांतक मराठा समाज (देवदासी) से थी । उनके नाम में हार्डिकर या अभिषेकी उप नाम लगता था पर दीनानाथ जी ने अपने गांव के नाम को ही अपना उपनाम बना लिया यानी मंगेशकर6 । कालांतर में दीनानाथ जी इंदौर आ गए । उन्होंने पहली शादी एक गुजरती से किया और उनकी पहली संतान थी लतिका पर वह जल्द ही दुनिया छोड़ गयी और उनकी पत्नी भी कुछ समय बाद । दीनानाथ जी ने दूसरी शादी अपनी पहली पत्नी के छोटी बहन से ही की और उनकी पहली संतान का नाम था हेमा लेकिन दीनानाथ उसे अपनी पहली संतान के नाम से ही बुलाते और हेमा बन गयी लता यानि लता मंगेशकर । ५ साल के उम्र में लता जी ने अपने पिता के संगीत नाटक में काम करना शुरू किया ।
पिता की मृत्यु के समय लता दीदी सिर्फ १३ वर्ष की थी । अपने ४ छोटे भाई बहनो की जिम्मेदारी लता जी के कंधे पर आ गयी । और इसी struggle ने हमें दे दिया एक अजूबा जो आगे जा कर कई ३६ भाषाओं में अपनी गायकी की छाप छोड़ने वालीं थी । कई छोटी भूमिकाएं भी की थी लता जी ने । पर उनके गाए ३०००० से भी ज्यादा solo , duet या कोरस गानों से उनका नाम गिनेस बुक दर्ज़ हो गया । भारत सरकार ने भी सबसे ऊँचे अवार्ड भारत रत्न से सम्मानित किया । वो दादा फालके सम्मान से भी सम्मानित थीं।

शुरूआत में कुछ ही फिल्मों में अभिनय भी किया लता ने पर उन्हें मेक अप, लाइटें पसंद नहीं थी और हद तो तब हो गई जब एक निर्देशक नें उन्हें भौवें काटने को कहा क्योंकी वह चौड़ी थी। पर शास्त्रीय रूप से प्रशिक्षित इस स्टार ने भारत के तेजी से बढ़ते फिल्म उद्योग में "पार्श्व गायिका" के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की, लगभग आधी सदी तक फैले करियर के दौरान बॉलीवुड के लिप-सिंकिंग फिल्म सितारों को गायन की आवाज प्रदान की। शुरू में लता जी ने नूरजहाँ के जैसा गया पर बाद में उनका अपना एक अंदाज़ उभर कर आया । मधुबाला से माधुरी दीक्षित सभी प्रसिद्ध या कम प्रसिद्ध सितारो को आवाज दी। भजन हो, देशभक्ति का गीत हो रोमांटिक गीत हो, शास्त्रिय हो या बौलीवुड कोई सभी तरह के गाने गाए है इन्होनें फिल्मों के लिए पहला गाना गाया था " नाचू या गड़े खेलू सारी मनी हौस भारी" जो 1942 के एक मराठी फिल्म के लिए था । उनका अंतिम रिकार्ड 2019 में गाया एक देशभक्ति गीत है "सौगंध मुझे इस मिट्टी की" । लता जी की किस्मत तब पलटी जब 1949 में बनी फिल्म महल के लिए प्रसिद्ध गाना गाया "आएगा आने वाला"।
लेकिन वह अपनी आवाज से कहीं ज्यादा थी। लता मंगेशकर क्रिकेट के दीवानी थी और मुंबई में होने वाली मैचों में BCCI उनके लिए दो सीट अवश्य रिजर्व रखती थी। अच्छी कारों का शौक था उन्हें और था वेगास की स्लॉट मशीनों के लिए प्यार। उन्होंने बॉलीवुड के कुछ सबसे चमकीले सितारों - और कम से कम एक बीटल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर भी काम किया।
वह कभी औपचारिक रूप से शिक्षित नहीं हुई। एक नौकरानी उसे मराठी वर्णमाला सिखाती थी, और एक स्थानीय पुजारी उसे संस्कृत पढ़ाता था, जबकि रिश्तेदार और शिक्षक उसे घर पर अन्य विषय पढ़ाते थे।
पहला फ़िल्मी गण उन्होंने १९४२ में गाए (पहला हिंदी गाना १९४३ में) अगले 6 दशकों में, उन्होंने पाकीज़ा, मजबूर, आवारा, मुगल ए आज़म, श्री 420, आराधना और दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, जैसी फिल्मों में यादगार और लोकप्रिय गाने गाए जब उन्होंने 1962 में चीन के साथ विनाशकारी युद्ध में मारे गए भारतीय सैनिकों के लिए एक भावपूर्ण श्रद्धांजलि ये मेरे वतन के लोग गाया, तो भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक जनसभा में आंसू बहाए। उन्होंने राज कपूर और गुरु दत्त से लेकर मणिरत्नम और करण जौहर तक, बॉलीवुड के हर प्रमुख निर्देशक के साथ काम किया। उन्होंने अपनी बहन के साथ - एक अन्य प्रमुख पार्श्व गायिका, आशा भोसले - के साथ भी प्रदर्शन किया, उनके समानांतर करियर के बावजूद भाई-बहन की प्रतिद्वंद्विता के किसी भी संकेत से परहेज किया। लता मंगेशकर मोहम्मद रफ़ी जैसे शीर्ष पुरुष गायकों को चुनौती देने के लिए पर्याप्त थी , जिन्होंने दावा किया था कि संख्या में अधिक गायन क्रेडिट हैं, और पहली महिला गायिका थीं जिन्होंने बेहतर वेतन और रॉयल्टी की मांग की थी।
उनके जूनून
उन्हें मोजार्ट, बीथोवेन, चोपिन, नेट किंग कोल, द बीटल्स, बारबरा स्ट्रीसंड और हैरी बेलाफोनेट को सुनने में मज़ा आता था । वह मार्लिन डिट्रिच को मंच पर गाते हुए देखने गई थीं और उन्हें इंग्रिड बर्गमैन का थिएटर पसंद था। उन्हें फिल्मों में जाना भी पसंद था - उनकी पसंदीदा हॉलीवुड फिल्म द किंग एंड आई थी, जिसके बारे में उन्होंने एक बार कहा कि उन्होंने कम से कम 15 बार देखा, और बारिश में गाना गाया। जेम्स बॉन्ड की फिल्में - या कम से कम सीन कॉनरी या रोजर मूर की विशेषता वाली फिल्में भी पसंदीदा थीं। कारों का भी जुनून था उन्हें । अपने जीवन के विभिन्न बिंदुओं पर उनके पास एक ग्रे हिलमैन और नीली शेवरलेट, क्रिसलर और एक मर्सिडीज थी। घर में उसके पास नौ कुत्ते थे। मंगेशकर एक उत्साही क्रिकेट प्रशंसक थी , अक्सर टेस्ट मैच देखने के लिए रिकॉर्डिंग से ब्रेक लेती थी, और डॉन ब्रैडमैन की एक हस्ताक्षरित तस्वीर के मालिक होेने पर गर्व भी करती थी । पूर्व भारतीय क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने 2014 में बॉलीवुड की दिग्गज पार्श्व गायिका लता मंगेशकर को एक ऑटोग्राफ वाली जर्सी भेंट की थी । ICC world cup semi final में हार के बाद जब धोनी के रिटायरमेंट का कयास लगाया जा रहा था तब दीदी ने धोनी को एक व्यक्तिगत ट्वीट कर ऐसा न करने की सलाह दी थी।
मैं कुछ गानों के लिस्ट दे रहा हूँ जो मुझे पसंद हैं
उनका चिरस्थायी संगीत निश्चित रूप से लाखों भारतीयों के लिए खुशी लेकर आया और उनके जीवन का "ध्वनि बन गया"। मैं कुछ गानों के लिस्ट दे रहा हूँ जो मुझे पसंद हैं

1949
आएगा आने वाला संगीत खेमचंद प्रकाश फिल्म महल १९४९
ऐ दिल तुझे कसम हैं संगीत नौशाद फिल्म दुलारी १९४९
लारे लप्पा लारे लप्पा लारे राख्दा, अजी टप्पा संगीत विनोद फिल्म एक थी लड़की १९४९
चले जाना नहीं संगीत हुस्नलाल भगतराम फिल्म बड़ी बहन १९४९
डर न मोहब्बत कर ले संगीत नौशाद फिल्म अंदाज़ १९४९
जिया बेक़रार हैं छाई बहार है संगीत शंकर जयकिशन फिल्म बरसात 1949
हवा में उड़ता जाये मेरा लाल दुपट्टा संगीत शंकर जयकिशन फिल्म बरसात 1949
1950's
तू गंगा की मौज़ मैं जमुना -संगीत नौशाद फिल्म बैजू बावरा १९५२
ऐ शाम की तन्हाईया ऐसे में तेरा गम संगीत शंकर जयकिशन फिल्म आह १९५३
राजा की आएगी बारात संगीत शंकर जयकिशन फिल्म आह १९५३
ऊँचे ऊँचे दुनिया की दीवारे सैयां तोड़ के संगीत हेमंत कुमार फिल्म नागिन १९५४
चमका चमका सुबह - संगीत C रामचंद्र फिल्म सुबह का तारा १९५५
जिसे तू कबूल कर ले वह अदा कहाँ से लाऊ संगीत सचिन देव बारमैन फिल्म देवदास १९५५
प्यार हुआ इक़रार हुआ , इचक दाना बीचक दाना संगीत शंकर जयकिशन फिल्म श्री ४२० १९५५
ऐ रात भींगी भींगी फिल्म संगीत शंकर जयकिशन फिल्म चोरी चोरी १९५६
कैसे आऊँ जमुना के तीर संगीत C रामचंद्र फिल्म देवता १९५६
बोल री कठपुतली डोरी संगीत शंकर जयकिशन फिल्म कठपुतली १९५७
औरत ने जनम दिया मर्दों को संगीत दत्ता नायक फिल्म साधना १९५८
आज रे परदेशी संगीत सलिल चौधरी फिल्म मधुमती १९५८
मेरे मन का बावरा पंछी संगीत C रामचंद्र फिल्म अमरदीप १९५८
जाना था हमसे दूर , उनको ये शिकायत हैं संगीत मदन मोहन फिल्म अदालत १९५८
1960's
अजीब दास्ताँ हैं यह संगीत शंकर जयकिशन फिल्म दिल अपना और प्रीत पराई १९६०
तेरी महफिल में, प्यार किया तो डरना क्या- संगीत नौशाद फिल्म मुगले आज़म 1960
ढूंढो ढूंढो रे सजना मोरे कान का बाला, घूँघरवा मोरा झनन झनन, दगाबाज़ रे, दो हंसों का जोड़ा - संगीत नौशाद फिल्म गंगा जमुना १९६१
अल्लाह तेरो नाम संगीत जयदेव फिल्म हमदोनो १९६१
तुझे जीवन के डोर से, लाख झुपाओं संगीत शंकर जयकिशन फिल्म असली नक़ली १९६२
आपकी नज़रो ने समझा संगीत मदन मोहन फिल्म अनपढ़ १९६२
मैं तो तुम संग नैन मिला के, चंदा जा संगीत मदन मोहन फिल्म मनमौजी १९६२
वो जब याद आये संगीत लक्ष्मीकांत प्यारेलाल फिल्म पारसमणि १९६३
जो वादा किया संगीत रोशन फिल्म ताजमहल १९६३
देखो रूठा न करो, तेरे घर के सामने, यह तन्हाई हाई संगीत SD बर्मन फिल्म तेरे घर के सामने १९६३
तेरे प्यार में दिलदार, अल्ला बचाये, मेरे मेहबूब तुझे - संगीत नौशाद फिल्म मेरे मेहबूब १९६३
आ जा आई बहार, नाच रे मन संगीत शंकर जयकिशन राजकुमार १९६४
हर दिल जो प्यार, ओ मेरे सनम, बुढ्ढा मिल गया संगीत शंकर जयकिशन फिल्म संगम १९६४
लग जा गले, नैना बरसे, जी हमने दास्ताँ संगीत मदन मोहन फिल्म वो कौन थी १९६४
अजी रूठ कर, बेदर्दी बलमा संगीत शंकर जयकिशन फिल्म आरज़ू १९६५
दिल जो न कह सका संगीत रोशन फिल्म भींगी रात १९६५
परदेशियों से, ऐ समां समां हैं प्यार का संगीत कल्याण जी आनंद जी फिल्म - जब जब फूल खिले १९६५
तू जहाँ जहाँ चलेगा , नैनो वाली ने, नैनों में बदरा छाये संगीत मदन मोहन फिल्म मेरा साया १९६६
सावन का महीना, हम तुम युग युग से, बोल गोरी बोल संगीत लक्ष्मी प्यारे फिल्म - मिलन १९६७
दिल विल प्यार व्यार, कान्हा आन परो, रुक जा ऐ हवा, वो हैं ज़रा संगीत लक्ष्मी प्यारे फिल्म शागिर्द 1967
सात समंदर पर से - संगीत LP फिल्म तक़दीर १९६७
दिल की गिरह खोल दे , रात और दिन, संगीत शंकर जयकिशन फिल्म रात और दिन १९६७
चन्दन सा बदन, मैं तो भूल चली, फूल तुम्हें भेजा हैं संगीत कल्याणजी आनंदजी फिल्म सरस्वती चंद्र १९६८
कैसे रहू चुप - संगीत लक्ष्मी प्यारे फिल्म इन्तेक़ाम १९६९
बिंदिया चमकेगी, छुप गए सारे नज़ारे- संगीत लक्ष्मी प्यारे फिल्म दो रास्ते १९६९
1970's
मोसे मेरा श्याम रूठा, बबूल प्यारे संगीत कल्याणजी आनंदजी फिल्म जॉनी मेरा नाम १९७०
सुन जा ऐ ठंडी, दिलवर जानी चली हवा मस्तानी - संगीत लक्ष्मी प्यारे फिल्म हाथी मेरे साथी १९७१
बीती न बिताये रैना संगीत RD बर्मन फिल्म परिचय १९७२
चलते चलते, इन्ही लोगों ने, ठाड़े रहियो संगीत गुलाम मोहम्मद फिल्म - पाकीज़ा १९७२
रूठे रूठे पिया संगीत सलिल चैधरी फिल्म - कोरा कागज़ १९७४
करवटें बदलते रहे संगीत RD बर्मन फिल्म आपकी कसम १९७४
ये रातें नयी पुरानी राजेश रोशन फिल्म जूली १९७५
सलामे इश्क़ संगीत कल्याणजी आनंद जी फिल्म - मुकद्दर का सिकंदर १९७८
मोहब्बत बड़े काम की चीज़ है, आपकी महकी हुई ज़ुल्फ़- संगीत खैय्याम फिल्म तृसूल १९७८
1980-90s
मैं सोलह बरस की संगीत LP फिल्म क़र्ज़ १९८०
ज़िन्दगी का न टूटे लड़ी संगीत LP फिल्म क्रांति १०८०
मेरे नसीब में -संगीत LP फिल्म नसीब १९८१
तूने ओ रंगीले कैसा जादू किया संगीत RD बर्मन फिल्म कुदरत १९८१
फिर छिड़ी रात संगीत खैय्याम फिल्म बाजार १९८२
यशोदा का नंदलाला संगीत LP फिल्म संजोग १९८५
कागज़ कलम दवात ला संगीत LP फिल्म हम १९९२
दुश्मन न करे दोस्त संगीत राजेश रोशन फिल्म आखिर क्यों १९८५
ज़िन्दगी हर कदम संगीत LP फिल्म मेरी जंग १९८५
सागर किनारे संगीत RD बर्मन फिल्म सागर १९८५
यारा सिली सिली संगीत भूपेन हज़ारिका फिल्म रुदाली १९९३
सुन साहिबा सुन संगीत रविंद्र जैन फिल्म राम तेरी गंगा मैली १९८५
ज़िहाले मस्ती मकुन बराबजीश संगीत LP फिल्म ग़ुलामी १९८५
दिल दीवाना बिन सजाना के संगीत राम लक्ष्मण फिल्म मैंने प्यार किया १९८९

कुछ और गाने याद आए तो add करता रहूंगा