Wednesday, July 21, 2021

पोर्टब्लेयर 1985 ( #यात्रा)

करीब साल भर पहले मैने अपनी इस यात्रा पर एक ब्लॉग लिखा था पर भाषा थी अंग्रेजी । क्या करता तब देवनागरी में आसान तरीके से टाईप करना सीख ही रहा था। मुझे किसी भाषा से कोई दुराव नहीं है मैने तो बंगला में भी ब्लॉग लिखे है पर मैं वह "Feel" अंग्रेजी में नहीं दे पाता जो शायद हिंदी मे दे पाता हूँ। मुझे तो ऐसा ही लगता है। Wordsworth की एक प्रसिद्ध कविता स्कूल में पढ़ाई जाती थी ।

"My heart leaps up when I behold
A rainbow in the sky:
So was it when my life began;
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The Child is father of the Man;
And I could wish my days to be
Bound each to each by natural piety"

बहुत अच्छी कविता है, पर दिनकर जी के रश्मिरथी भी हमारे कोर्स में पढ़ाई जाती थी और उससे ज्यादा connect कर पाता हूँ।
"याचना नहीं, अब रण होगा ,
जीवन जय या की मरण होगा ।"
लीजिये हाज़िर हैं हमारे १९८५ में की गयी यात्रा पर ये ब्लॉग हिंदी में।

सबसे पहले एक यू ट्यूब वीडियो इसी ट्रिप पर


१९८५ में मैंने LTC ले कर पोर्टब्लेयर जाने प्रोग्रम बनाया । बहुत कम पर्यटक वहाँ जाते थे पर जबसे सरकारी कंपनी के अधिकारियों को LTC लेकर हवाई से जाना संभव हुआ था पर्यटको की संख्या बढने लगी थी। तब कलकत्ते से हफ्ते में ३ फ्लाइट पोर्टब्लेयर जाती थी और हमारे ३ दोस्त परिवार के साथ पोर्टब्लेयर जा ही रहे थे हमने भी अगले दिन की फ्लाइट की टिकट खरीद ली । तब पोर्टब्लेयर में दो पांच तारा होटल थे और लोग सरकारी मेहमान खानों (गेस्ट हाउस) या यदि जगह न मिले तब वहां के लोकप्रिय सरकारी रिसोर्ट मेगापोड नेस्ट में ही रुकते थे । मेरे एक दोस्त का एक पहचान वाला या दूर के रिश्तेदार पोर्टब्लेयर में रहते थे । उसने उन्हें फ़ोन पर अपने ग्रुप के लिए गेस्ट हाउस बुक करने के लिए कह रखा था । मैंने भी अपने दोस्तों को REQUEST किया की वहां पहुँच कर हमारे लिए भी गेस्ट हाउस बुक कर दें । तब कोई इंटरनेट या ऑनलाइन होटल बुकिंग तो थी नहीं । हम निश्चिंत हो कर रांची से निकले । पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था । कलकत्ता दो दिन रुकने घूमने का कार्यक्रम था और हम दो दिन बाद पोर्टब्लेयर पहुंचे । दोस्तों ने एक लोकल फोन नंबर दे रखा था और मैं पोर्टब्लेयर एयरपोर्ट के आगमन कक्ष में फोन बूथ देखते ही उन्हें फोन मिलाने लगा पर कई बार कोशिश करने पर भी बात नहीं हो पायी । कहाँ जाऊँ ? खैर जैसा पहले से सोच रखा था हम टैक्सी ले कर मेगापोड नेस्ट चले गए रास्ते में टैक्सी वाले ने बताया की वकीलों का कोई राष्ट्रीय सम्मलेन होनेवाला है और रूम शायद न भी मिले । मैं फिर भी लाइन में लग गया । ड्राइवर बहुत ही भला आदमी था और उसने कहा आप देख लो रूम मिले न मिले मैं इंतज़ार करूँगा । कही न कही रूम जरूर मिलेंगा । जब मैं लाइन में लगा था अचानक एक फोन दिखा । जो शायद यात्रियों के उपयोग के लिए ही था। मैं लाइन छोड़ फोन करने की एक और कोशिश करने लगा । दूसरे तरफ से जवाब मिलने पर मैं अति प्रसन्न हुआ । मेरे दोस्त के पहचान वालों के नौकर ने फोन उठाया और बताया की हमारा रूम नंबर एक है और गेस्ट हाउस नंबर एक में बुक है ।

मेगापोड नेस्ट रिसोर्टमेगापोड नेस्ट रिसोर्ट

हम तुरंत मेगापोड नेस्ट की लाइन छोड़ टैक्सी में बैठ गए । सामान टैक्सी में था ही । टैक्सी वाले ने हमें गेस्ट हाउस नंबर एक जो करीब ही था तुरंत पहुंचा दिया लेकिन वह रुका रहा । मैं ऑफिस रूम में गया तो नेम प्लेट दिखा Er. Mukherjee । एक इंडियन एयरलाइन्स का कर्मचारी (जिससे वह सबको पाला पड़ता रहता था) भी वहां किसी रिश्तेदार को रूम दिलाने की कोशिश कर रहा था । मैं अपने रूम बुकिंग के बारे में पूरी तरह आश्वस्त था और अपनी बारी आने पर मैंने उन्हें बताया की मेरे दोस्तों ने गेस्ट हाउस नंबर एक में रूम बुक किया है । पर जब उन्हने बताया मेरा बुकिंग उस गेस्ट हाउस में नहीं हैं और कोई रूम भी खाली नहीं है तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ। मैनें उन्हें फिर चेक करने को कहा और यह बताना नहीं भूला की मैं भी इंजीनियर हूँ एक सरकारी कंपनी में । मुख़र्जी बाबू ने तब कहा की एक और गेस्ट हाउस हैं जिसे भी गेस्ट हाउस नंबर एक ही कहते हैं तो कुछ आशा बंधी । उन्होंने टैक्सी वाले को रास्ता भी समझा दिया । उन्हें धन्यवाद कह कर हम चल पड़े । जगह बहुत दूर थी और हमे शक भी होने लगा पर ड्राइवर ने कहा घबराइए मत कोई एक्स्ट्रा पैसा नहीं मांगूगा । खैर चलते चलते हम एक सुन्दर बीच के पास पहुंच गए ड्राइवर ने बताया यह कोर्बिन कोव बीच हैं । हमारा गेस्ट हाउस (जिसे अब हार्नबिल नेस्ट रिसोर्ट कहते हैं ) भी आ गया । हमलोग गेस्ट हॉउस का गार्डन देख कर ही बहुत खुश थे । रिसेप्शन एरिया तो बहुत सुंदर था । आने वाले दिनों की कल्पना में हम डूब रहे थे । अटेंडेंट ने सामान उतारा और रूम का ताला खोलते खोलते बताया की यह रूम तो काफी बड़े अफसरों के लिए रिज़र्व रखा जाता हैं और फिर कुछ सोच कर उसने मुझसे बुकिंग का लेटर माँगा और बोला या सिर्फ फोन पर बात ही करवा दे । मानो एक सपना टूट गया क्योंकि मेरे पास तो कोई लेटर नहीं था। और हम अब निराश होने लगे । तब ड्राइवर ने अश्वस्थ किया जब तक जगह नहीं मिलती मैं भी साथ हूँ । उसने तो यहाँ तक कह डाला की अगर रूम नहीं मिला आप मेरे यहाँ ही रूक लेना । हमारी उम्मीद फिर लौट आयी ।

Hornbill Nest ResortYouth Hostel (Ripple resor

अब शुरू हुआ हमारा रूम खोजो अभियान । सबसे पहले हम इस एरिया यानि कोर्बिन कौव में नज़दीक स्थित युथ हॉस्टल (जिसे अब रिप्पल रिसोर्ट कहते है ) गए पर वहां सिर्फ डोरमेटरी थी । परिवार के साथ डोरमेट्री में रुकना मुश्किल था । वहां से हम बंगाली क्लब गए । यहाँ यह बताना ठीक रहेगा की अंडमान या पोर्टब्लेयर को मिनी इंडिया भी बोलते हैं । ऐसा इसलिए की भारत के सभी राज्यों के लोग यहाँ पूरी भाईचारे के साथ बसें हैं और एक दूसरे की मदद करना यहाँ के लोगों की आदत में शामिल था - शायद अब भी होगा । भाषा यहां कोई मुद्दा नहीं है। सभी हिंदी जानते बोलते हैं । अपने राज्यों के कला संस्कृति को भी जिन्दा रखने के लिए सभी लोगों के क्लब हैं जिसमे बंगाली क्लब प्रमुख हैं । हम उम्मीद ले कर वहां गए । वो ईंडियन एयरलाईन वाले सज्जन भी यहां दिखे और उनकी निश्चितंता बता रही थी कि उनके दोस्तों को यहाँ जगह मिल गई है। कुछ देर की प्रतिक्षा के बाद क्लब के हाउस कीपर साहब मिले मैंने बांग्ला में पूछा रूम मिलेगा ? उनका जवाब था রুমটি খালি নয়, আপনি আজ লাইব্রেরিতে থাকুন, আগামীকাল রুমটি যদি খালি হয় তবে আমি আপনাকে দেব। यानि रूम तो खाली नहीं हैं आप लाइब्रेरी में आज रुक लीजिये कल room खाली हुआ तो आपको दे देंगे ।

Bengali Club Chowk YMCA

यह आश्वासन बहुत था उस समय, पर हम दूसरे क्लब और गेस्ट हाउस में भी रूम देख लेना चाहते थे । बच्चे कहने भी लगे थे पापा रांची लौट जाते है । परिवार को बंगाली क्लब के बरामदे में छोड़ मैं और मेरे मददगार ड्राइवर सबसे पहले YMCA गए जो बंगाली क्लब के पास ही था । पर उनके रूल के हिसाब से औरतें वहां नहीं रुक सकती थी । हम म्युनिसिपल गेस्ट हाउस गए चार्ट में सभी रूम के आगे कोई न कोई नाम लिखा था और किसी के आगे vacant नहीं लिखा था। यानि सभी 12 कमरे फुल थे । तब हम रांची क्लब (रांची से १९वीं शताब्दी में अंग्रेज़ो द्वारा लाये गए क्रिश्चियन मजदूर जो यहीं बस गए और "राँची" कहलाऐ) या छोटानागपुर भवन गए वहां के ऑफिस में रुकने की जगह मिल रही थी पर हॉल में सुबह सुबह लोग कसरत करने आते थे । वहां से हम गए तमिल क्लब जहाँ एक सज्जन जो पोर्ट ब्लेयर अकेले बिजिनेस के सिलसिले में आए थे ने अपने तरफ से ऑफर किया की वे हॉल में शिफ्ट करके अपना कमरा हमारे लिए खाली कर देंगे ।

Bengali ClubRanchi Association

वहाँ से हम एबरडीन बाजार होते बंगाली क्लब लौट आये । एबरडीन बाजार के एक निर्माणाधीन होटल में एक कमरा भी अगले दिन से बुक कर लिया । हम सोच कर आये थे की सामान सहित तमिल क्लब शिफ्ट करेंगे पर एक सुखद आश्चर्य मेरा इंतज़ार कर रहा था, बंगाली क्लब में एक रूम मिल गया था और पत्नी और बच्चे वहां शिफ्ट भी कर चुके थे । दिन भर की दौड़ भाग में हम खाना खाना भूल ही गए थे और अब सभी को जोरों की भूख लग रही थी । हम नज़दीक के एक होटल में दोसा खाने गए किसीने भी तीखी सांभर चटनी की कोई शिकायत नहीं की । सबसे स्वादिष्ट होती है भूख यह सिद्ध हो गया । खा कर जब हम बंगाली क्लब लौट रहे थे तब एक सज्जन दिखे जो स्कूटर पर थे हमे घूरे जा रहे थे और अंततः वे रुके और हमसे पूछ ही बैठे "क्या आप रांची के अमिताभ सिन्हा हैं ?" कोई मुझे यहाँ पोर्टब्लेयर में भी जनता हैं ? मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। मैं सोच में ही था की मेरी पत्नी ने गेस्ट हॉउस-1 वाले मुख़र्जी बाबू को पहचान लिया । उन्होंने बताया की हमारा बुकिंग म्युनिसिपल गेस्ट हाऊस के रूम नंबर १ में है । हमारे दोस्तों ने उन्हें यह बता रखा था पर वे सुबह बता नहीं पाए । बच्चे थक गए थे और अब कहीं और नहीं जाना चाहते थे । मुख़र्जी बाबू स्कूटर से मुझे म्युनिसिपल गेस्ट हॉउस ले गए ताकि रूम लॉक कर सके । वहां पाया जिस लिस्ट में फुल लिखा देख लौट आये थे उसके रूम नंबर १ के सामने मेरा ही नाम लिखा था । किसी भी लिस्ट में कॉलेज का एडमिशन या examination result लिस्ट हो या रेलवे रिजर्वेशन या प्रमोशन लिस्ट मै आदतन दूसरों के नाम भी पढ़ता हूँ। इस लिस्ट में निराशा के कारण शायद नाम पढ़ना भूल गया। काश पढ़ा होता। मुख़र्जी बाबू ने अगले दिन से एक दूसरे गेस्ट हॉउस में एक बहुत अच्छा डबल बेड attached बाथ रूम वाला कमरा दिलवा दिया ।

Our route for accommodation search

हम सभी लोगों के समर्थन और मदद के रवैये से अभिभूत था, टैक्सी ड्राइवर का दिल से शुक्रिया करना चाहता हूँ जिन्होंने न केवल अपना पूरा दिन मेरे साथ बिताया एक भाई की तरह मेरा मार्गदर्शन किया और हिम्मत दिलाई । अंदमान को उपयुक्त रूप से एक मिनी इंडिया कहा जाता है जहां सभी राज्यों के लोग आपस में हिंदी में बोलते हैं जो बोल चाल की आम भाषा हैं। भाषा का problem सिर्फ मेन लैंड में है। गेस्ट हॉउस २ के एक दो यादें अभी भी ताज़ा है । वहां एक सफाई करने वाले एक अंकल से मुलाकात हुई जो गाँधी टोपी पहनते थे और UP से थे । उन्होंने बताया की वे आज़ादी के पहले से यहाँ है कालापानी की सजा काट रहे थे शायद आज़ादी की लड़ाई की सजा काट रहे होंगे पर बताने में संकोच कर रहे थे । उन्होंने ही अंदमान के लोगों की बहुत तारीफ करते हुए बताया की यदि आप अपनी पेटी (Box) रोड पर रख कर भूल जाये तो महीने भर बाद भी वहीँ मिलेगा । इस गेस्ट हाउस में शायद हमारे अलावा कोई भी पर्यटक नहीं था क्योंकि या तो केंद्रीय विद्यालय के शिक्षक रहते थे या डेपुटेशन पर आये सरकारी कर्मचारी । बहुत सारे बंगाली परिवार भी थे जिनसे जान पहचान हो गई थी। उनमे से एक महिला ने एक दिन समुद्री मछली भी खिलाया । गेस्ट हॉउस के रसोइये भी बहुत स्वादिष्ट घर जैसा खाना बनाते और हम रात का खाना और नास्ता (जो ज्यादातर टोस्ट बटर ऑमलेट होता) यहीं करते ।

Guest House No2 where we stayed Dining room of GH-2 with friends
Route from GH to Chetham/Haddo
Cute View from our room of GH2

ठौर ठिकाना मिलने के बाद हम घूमने निकले और अगले दिन फीनिक्स जेटी से रॉस द्वीप (जहाँ हम समुद्र की खराब स्थिति के कारण उतर नहीं सके) वाईपर द्वीप देखने के लिए फेरी से गए । सेलुलर जेल, सावरकर पार्क, मरीन म्यूजियम देखने गए पुरे ग्रुप के साथ। ट्राइबल या ऐंथ्रोपोलॉजिकल म्यूजियम के पास हमने निकोबार के नारियल का पानी पीने लगे तो पता चला इतने बड़े नारियल का पानी पीना एक आदमी के पीने के बस की बात नहीं है । हममे से कोई अपना नारियल का सारा पानी पी नहीं पाए । केला हमने केरल के बाहर पहली बार तौल कर ख़रीदा । इतना बड़ा केला की एक खाने से ही पेट भर जाय । अगले दिन हम दोस्त के जान पहचान वाले के यहाँ डिनर लेने जंगली घाट के उनके घर पर गए थे । अगले दिन हमारे दोस्त परिवार सहित रांची लौट गए और बांकी जगहे सिर्फ हम चारों घूमने गए । उनमे एक था सिप्पीघाट स्थित बोटैनिकल गार्डेन जो थोड़ा दूर था और हम बस से गए थे। वहां से नज़दीक स्थित वंडूर बीच भी गए । सिप्पीघाट बॉटनिकल गार्डन और फार्म में मसालों की खेती देखने को मिला । काली मिर्च के climber भी पहली बार ही देखा ।

Ferry to Ross Is Viper Island
Sippighat Botanical Garden Wandoor Beach
Botanical Garden Black Paper Climber Plant

शुरू के दिनों में दोस्तों के परिवार के साथ कई जगह घूमने गये। उन जगहों में से एक था सेल्लुलर जेल और आस पास के पार्क म्यूजियम। सेलुलर जेल जिसे कालापानी भी कहते है और जो अब एक राष्ट्रीय स्मारक है देखने गए तो मन भर आया । हमारे स्वतंत्रता सेनानियों पर ढाये गए अत्याचार का दृश्य सामने आ गए । बटुकेश्वर दत्त, योगेंद्र शुक्ल, वीर सावरकर यहीं कैद थे । फांसी घर देखा और देखा कैसे उन पर कहर डाले गए थे । सभी कैदी सेल में बंद थे एकदम अकेले । इमारत में सात wings थे, जिसके केंद्र में एक टावर चौराहे के रूप में कार्य करता था और गार्ड द्वारा कैदियों पर नजर रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। टॉवर से wings सीधी रेखाओं में निकलते हैं, बहुत कुछ साइकिल के पहिये की spokes की तरह। सभी सेल १४ गुना ८ फ़ीट के है जिसमे ऊपर की तरफ एक खिड़की इस तरह बनी है की एक विंग की खिड़की दूसरे से विंग की खिड़की के तरफ न खुले ताकि कोई बातचीत कैदी एक दूसरे से न कर सके । जेल के दो विंग द्वितीय विश्व युद्ध में Japan / सुभाष चंद्र बोस के जीत के बाद ध्वस्त कर दिए गए और दो आज़ादी के बाद । बाकि तीन विंग को 1979 में राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया । १९६३ में सेलुलर जेल के परिसर में एक अस्पताल खोला गया जिसे गोविन्द बल्लभ पंत अस्पताल कहते हैं और अब यह एक ५०० बिस्तर का अस्पताल । इस स्मारक के सामने वीर सावरकर पार्क में कई स्वतंत्रता सेनानियों के मूर्ति लगी है। हम मरीन म्यूजियम, हड्डों के पास मिनी ज़ू भी देख आये ।





View tower in cellular jail

Savarkar Park Cellular Jail
Andman Serpent Eagle Megapode Bird
Marine Museum Marine Museum

मेगापोड नेस्ट रिसोर्ट हमारे गेस्ट हॉउस के पास था और चैथम जेट्टी और विमको दिया सलाई कारखाना मेगपोड नेस्ट के करीब था । हम पैदल ही हो आते थे वहाँ। विमको फैक्ट्री में लकड़ी की काटने और तीली बनाने की मशीन देख कर बच्चे बहुत प्रसन्न हुए थे ।

Chetham Saw Mill View from Jetty

हम निकोबार या कोई और द्वीप जाना चाहते थे । यहाँ यह बताना चाहूंगा की अंदमान जहां पहाड़ी ऊँची नीची ज़मीन और समुद्र का संगम है निकोबार मूंगे पर बना आइलैंड है और एकदम सरपट प्लेन है । अंदमान के स्थानीय लोग जहाँ नीग्रोइड है निकोबार के लोग मंगोलॉयड है । अंदमान के स्थानीय लोग जहाँ शिकार और जंगल पर निर्भर है निकोबारी लोग का मुख्य पेशा कृषि और पशुपालन है ।
चाहते तो थे इंदिरा पॉइंट जाना पर पता चला कम से कम १ हफ्ते का समय चाहिए । तब फेरी के फ्रीक्वेंसी ज्यादा नहीं होती थी जाने वाले लोग भी कम होते थे । पता चला दो दिन में बारातांग द्वीप घूम कर लौट सकते है । समुद्र में जहाज का अनुभव लेने और जरवा लोगों को देखने के ख्याल से हमने वहीँ जाने का प्रोग्राम बनाया और चल पड़े । जारवा जनजाति 5 हजार साल से अंदमान में रहती आ रही है, हाल हाल तक बाहरी दुनिया के लोगों से इनका कोई सम्पर्क नहीं था। जनजाति अब भी तीर-धनुष से अपने लिए शिकार करती है। इनकी आबादी प्रतिवर्ष घटती देखी गई है, एक अनुमान के अनुसार वर्तमान में इनकी आबादी 250 से 400 के बीच है । जब हम गए थे इनके लिए रिजर्व्ड क्षेत्र में जाना वर्जित था । १९९० के बाद इनसे कुछ संपर्क किया जा सका लेकिन उन्हें ही कुछ उन रोगों का सामना करना पड़ा जिसकी कोई प्रतिरोधक क्षमता इनमे नहीं था । Measles से बहुत सारे जारवा लोग मारे भी गए । जरवा लोग बारातांग के सामने वाले द्वीप में रहते है और कभी कभी दिख भी जाते है ।

batarang Jetty Elephant used for log felling and transpotation
G. House at Baratang Guest House at Baratang

१९ वीं शताब्दी में छोटानागपुर में रांची और आस पास अंग्रेज़ो का विरोध हो रहा था और अंग्रेज़ो द्वारा स्थानीय लोग सताए जा रहे थे । इससे बचने के लिए लोगों ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया । अंग्रेज़ों ने इन लोगों को जो जंगल से जुड़े काम में अनुभवी थे, अंदमान के बारातांग द्वीप में बसा दिया । और इसलिए इस द्वीप को रांचीवाला द्वीप भी कहते है । क्रीक के दूसरे तरफ जारवा लोगों की बस्ती थी । उधर जाना मना था । कभी कभी सरकारी मदद के रूप में सामान वहां छोड़ आया जाता था । निर्माण कार्य भी करना मुश्किल था क्योंकि औज़ार या शस्त्र बनाने के लिए वे लोहा को ले जाते थे । Mud volcano और लाइम स्टोन गुफा तक जाने का साधन नहीं थे तब । एक रात आरामदेह फारेस्ट गेस्ट हाउस में बिता कर हम पोर्ट ब्लेयर लौट आये और फिर कलकत्ता होते हुए रांची लौटे । शायद अब जाए तो दो चार द्वीप तो घूम ही आएंगे ।