Sunday, August 9, 2020

कुआलालम्पुर #यात्रा - दक्षिण अफ्रीका जाते आते (१९९६)

1996 मई की बात है। मेकॉन से चार इंजीनियरों की एक टीम मेरे नेतृत्व में दक्षिण अफ्रीका जा रही थी। वहाँ 4-6 महीने प्रिटोरिया में रुकना था। ग्राहक Balaji Steel के भी दो इंजीनियर और उनके बॉस साथ थे।  अभी अफ्रीका में रंग भेद ख़त्म हुए दो साल से भी काम समय हुआ था हम आशंकित भी थे। सुना था प्रीटोरिया में सिर्फ़ गोरों को ही रुकने दिया जाता है। हमें वहीं जाना था। ISCOR जो अब लक्ष्मी मित्तल का स्टील प्लांट है से एक पूरी तरह बंद वायर रोड मिल dismantle   कर भारत लाना था और उसे ठीक ठाक कर के चलना भी था।
 हमें मलेशियन एयर लाइन्स से चेन्नई से जोहानसबर्ग जाना था और कुआला लम्पुर हो कर जाना था। दोनों तरफ के टिकट था। और लौटना भी कुआला लम्पुर हो कर ही था। हम सभी काफी उत्साहित थे। चेन्नई से कुआला लम्पुर  का सफर चार घंटे का था। उस समय मलेशियन एयर लाइन्स को top का रैंक मिला था। हम लोग भी उनके सर्विस से काफी प्रभावित थे। कुआला लम्पुर का इंटरनेशनल एयरपोर्ट काफी मनमोहक और आधुनिक था। हमे Kualalumpur में एक दिन रुकना था। Kuala Lumpur एयरपोर्ट पर ही  Visa On Arrival लेना था। हमलोग विंडो शॉपिंग करते हुए वीसा ऑफिस पहुँच गए। मलेशियन एयर लाइन्स का ले ओवर वाला होटल नज़दीक था पर पैदल जाने लायक दूरी नहीं थी  सामान भी था इसलिए एयरलाइन्स की बस से ही जाना तय था। हम जल्दी में थे। ताकि आज भी कुछ घूम सके।

सात लोगों का फॉर्म भरते-भरते काफ़ी समय लग गया। हमारे पास सिर्फ़ दो पेन थे। फॉर्म छोटा ही था पर पासपोर्ट खोलना उसका डिटेल्स लिखना कहाँ रुकेंगे क्यों आये हैं वैगेरह भरने में समय तो लगता ही है। फॉर्म भर कर एक-एक कर जमाकर किया गया और पासपोर्ट पर वीसा स्टाम्प लगा कर जब जाने को हुए तभी छह लोग जो वहाँ हमसे पहले से प्रतीक्षा कर रहे थे ने हमे रोक लिया। वह बांग्ला में कुछ कह रहे थे। रूक कर पूछा तो वह फॉर्म भरने में हमारी मदद चाहते थे। अब समझ आया कि हमलोगों को देख कर उनके चेहरों पर मुस्कराहट क्यों आयी थी। हम फॉर्म में कहाँ क्या भरना हैं कह कर चलने को उद्यत हुए तो उन्होंने बांग्ला में कुछ कहा जो मेरे पल्ले नहीं पड़ा। वे बंगलादेशी थे और अलग ही तरह का बांग्ला बोल रहे थे। मैं और हमारे सहकर्मी श्री अधिकारी ही बंगाला बोल समझ लेते थे। अधिकारी ने बताया कि वे लोग लिख पढ़ नहीं सकते सिर्फ़ दस्तखत ही करना जानते है, यानी वे चाह रहे थे कि हम ही उनका सारा फॉर्म भर दे। उनकी हालत देख हमारे सभी साथी राजी हो गए। हम और अधिकारी उनसे पूछ-पूछ कर फॉर्म भरने लगे। उनकी कुछ कुछ बातें ही मुझे या अधिकारी को समझ आ रही थी। अधिकारी ने बताया ये सभी चिटगांव से हैं और चितगावंली बोलते है। मुश्किल-मुश्किल से उनका फॉर्म भर सके। मुझे अनायास उस समय एक वाकया याद आ गया जब एक यात्री ने मुझसे अमेरिका जाते वक़्त disembarkation  फॉर्म भर देने को कहा था। किसी आमिर परिवार का वह आदमी जिसने मुफ्त की शराब काफी पी रखी थी, अपने बेटे के पास जा रहा था। ज़ाहिर था वे भी पढ़ना लिखना नहीं जानते थे पर काम कैसे निकलना है ज़रूर जानते थे। उतरने के बाद उन्हें आपसे कोई मतलब नहीं होता और धन्यवाद की तो आशा ही मत करो। पर ये लोग कृतार्थ थे और बार-बार धन्यवाद कह रहे थे।

कुछ मिनटों में हमलोग सामा सामा एक्सप्रेस होटल पहुचें। काफी भूख लगी थी। रूम में जानें के पहले सबकी इच्छा नाश्ता करने की हुई। डाईनिंग हॉल में snacks के लिए buffet सजा था पर समझ नहीं आ रहा था कि कौन निरामिष खाना है। स्वादिष्ट खाने की बात तो गौण  हो गई थी। बालाजी स्टील (हमारा ग्राहक) के दक्षिण भारतीय वरीय अधिकारी जो साथ ही यात्रा कर रहे थे और vegetarian भी थे वो पहले भी आ चुके थे,  उन्हीं का चुना हुआ कुछ खा कर होटल के shuttle service से हम एक मुख्य चौरहे तक के ड्राप पॉइंट तक निकल पड़े फिर टैक्सी ले ली. । रास्ते में  काफी ज्यादा traffic था। आश्चर्य जनक बात थी two wheeler के लिए अलग लेन। पता चला दो पहिया वाहन जाम लगाने में प्रथम स्थान पर था। अच्छा लगा। एक मलेशियन कार भी दिखी। मलेशिया एक मुस्लिम देश है अब का पता नहीं पर  तब काफी tolerant था। पर्दा का चलन भी कम था। मलय उनकी मुख्य भाषा है पर जान कर अच्छा लगा कि तमिल भी एक आधिकारिक भाषा थी। मंगोल चेहरो के साथ हमारे जैसे दिखने वाले लोग भी थे।अब कुआला लम्पुर में मोनोरेल मेट्रो जैसे सार्वजानिक यातायात के साधन है तब ऐसे नहीं था। बस के विशेष लेन थे। हमलोग करीब 40-50 मिनट में लिटिल इंडिया मार्किट पहुँच गए. दुकानों के नाम अशोका, बालाजी, कुमार, मुरुगन जैसे देख कर बहुत अच्छा लगा। कुछ मोमेंटो खरीद कर हम फल देखने लगे। सभी तरह के भारतीय फल थे। लीची भी। वह भी मुजफ्फरपुर का। पर दाम सुन कर होश उड़ गए. हम रात के खाने के पहले होटल लौट आये। दूसरे दिन का आधा दिन का टूर का प्लान किया खाना खाया और सो गए। टीवी पर एक तमिल फ़िल्म देखने की कोशिश की पर थक कर कब सो गए पता नहीं चला।
Near Little IndiaLittle India

दूसरे दिन हम लोग का फ्लाइट रात का था. हम लोगों ने बाटु गुफा - मुरुगन मंदिर सहित एक टूर ले लिया. कुछ प्राइवेट इन्सेक्ट एंड बटरफ्लाई और हस्तशिल्प म्यूजियम देखे, Petronas ट्विन टावर(तब दुनिया की सबसे ऊँची ईमारत) तो हर जगह से दिख ही रहा था. 
Insect-butterfly museumInsect-butterfly museum



बाटु गुफा मुरुगन मंदिर
रात के फ्लाइट से हम साउथ अफ्रीका चले गए। छह महीने बाद मेकन की टीम लौट आई.लौटते समय टिकट मिलने में दिक्कत हो रही थी। हमारे ज़ोर देने पर कस्टमर ने बिज़नेस क्लास से भेजा। फिर कुआलालम्पुर हो कर ही लौटे। इस लिए बार  KL में ज़्यादा समय मिला तो हम लोग फिर बाटु गुफा गए. पिछले बार पूजा नहीं किये थे इस बार बन्दर से बचते-बचते मुरुगन, शिव पार्वती सभी की पूजा भी किये। पिछली बार सारी सीढ़ियां नहीं चढ़ी थी. इस बार एक दम ऊपर तक गए. टैक्सी वाले के सुझाव पर  एक कांसा (ब्रोंज) और प्युटर फैक्ट्री और रबर प्लांटेशन भी देखने गए ।
इंडिया रबर या प्राकृतिक रबर का मलेशिया पांचवां मुख्य उत्पादक है और यहाँ रबर से बने वस्तुओं की खपत भी काफी ज्यादा है. प्राकृतिक रबर, रबर ट्री से निकला जाता है. मलेशिया में बहुत बड़े क्षेत्रफल में रबर ट्री उगाये जाते है. हमारे लिए भी यह कौतुहल का विषय था और हम रबर ट्री और लेटेक्स कैसे निकलते है देखने गए.

रबर प्लांटेशन के रास्ते में 
लेटेक्स निकलते हुए



Largest beer mug in the world View of Twin Tower
ब्रॉन्ज़ एक टीन और कॉपर का एक मिश्र धातु है. पिउटर टीन एंटीमनी और कॉपर का मिश्र धातु है. मलेशिया में टीन बहुतायत में मिलता है और यहाँ ब्रॉन्ज़ और पिउटर की कई कारखाने हैं. टैक्सी वाला हमें रॉयल सेलेनगर के कारखाने में ले गया. १८८५ में शुरू होने वाली यह फैक्ट्री उस समय तीसरी पीढ़ी चला रही थी. २४ साल पहले की बात है अब तक शायद एक दो पीढ़ी बाद के लोग  चला रहे हो. फॉउंडरी और ढलाई का मशीन देखी. तकनिकी बात पूछने लगे तो हमें कारखाने के हेड के पास ले गए. हमने अपना परिचय दिया कि हम भी मेटल उद्योग है और दोस्ती हो गयी. उन्होंने काफी भी पिलाई. दुनिया की सबसे बड़े पिउटर के बने बियर मग को यही देखा.
Random PhotoFrom top of Batu Cave
तब कैमरे में फिल्म लोड करना होता था. हम सोच समझ कर ही फोटो खींचते थे. कलर फिल्म का चलन शुरू हो गया था. मेरे पास एक यशिका कैमरा था सेमि-आटोमेटिक. उसे मैंने जर्मनी में ख़रीदा था. उसे कही दूसरे देश नहीं ले जाते क्योंकि लौटने पर कस्टम वाले परेशान करते थे. जहाँ गए एक सस्ता सा कैमरा या एक बार युज करने लायक कैमरा ही खरीदते. पर इस बार मैं एक तीन साल पुराना कैमरा ले कर गया था जिसे अमेरिका में ख़रीदा था. शायद Chinon कैमरा था। सारे फिल्म कैमरे अब किसी बक्से में बन्द पड़े है । खैर कैमरा साथ होना ही काफी नहीं था।  कभी रील ले जाना भूल  जाते, रील खतम हो जाता या बैटरी कम पड जाती. रील को दुबारा एक्सपोज़ करने से तो यह कैमरा बचा देता था पर समय पर रील आगे बढ़ा हुआ नहीं मिलता और अच्छे दृश्य निकल जाते. हमारे पास इस ट्रिप की कम ही फोटो हैं पर जितना था उसका उपयोग किया जितना याद था लिखा भी. अब आगे दक्षिण अफ्रीका की बाते अगले ब्लोग में।