Tuesday, December 19, 2023

पटना - राजगीर नवंबर २०२३ भाग -२ (राजगीर )


पढ़िए मेरा ब्लॉग राजगीर का भूगोल और इतिहास से इसका सम्बन्

राजगीर या राजगृह महाभारत कालीन नगर है। माना जाता है जरासंध और भीम का मल्लयुद्ध हुआ और जरासंध का अखाड़ा यहीं है। बुद्ध कालीन बिम्बिसार का जेल और स्वर्ण भंडार भी है यहां। मौर्य काल से पाल काल तक के चिन्ह मौजूद है यहां। अपने छात्र जीवन के कई साल पटना बिताने के बावजूद मै कभी राजगीर - नालंदा नहीं गए। भाग्य का खेल की परिवार के लोग तो राजगीर गए पर मै नहीं गया। कालेज जीवन में तो हर साल शैक्षणिक भ्रमण पर जाना पड़ता था तो नज़दीक की जगहे छूट जाती है। घर की मुर्गी दाल बराबर जो हो जाती है। बिहार के हर दर्शनीय स्थल पटना छूटने के बाद ही गए।

ज़ू सफारी और एक शेरनी

राजगीर नालंदा वाली टैक्सी सुबह सुबह आने वाली थी। जितनी जल्दी गए उतनी ज्यादा जगह देख पाएंगे , करीब साढ़े सात बजे टैक्सी आ गयी। हम तुरंत चल पड़े कुछ नाश्ता भी साथ में रख लिया । थोड़ी दूर चले ही थे कि ड्राइवर ने पूछा "क्या हमने ऑनलाइन ज़ू सफारी और नेचर सफारी बुक किया है ?" नेचर सफारी में ही ग्लास ब्रिज और झूला पुल है और ज़ू सफारी में क्या हो सकता है सबको पता है। हमें तो पता ही नहीं था की ADVANCE में बुक करना पड़ता है। ड्राइवर ने किसी को फ़ोन कर टिकट के इंतेज़ाम करने के लिए कहा। हम करीब ९:३० तक राजगीर सफारी पार्क पहुंच गए। ज़ू सफारी के टिकट तो मिल गया लेकिन नेचर सफारी का नहीं मिला। प्रवेश के लिए १०० और ज़ू सफारी के लिए १५० रुपये देने पड़े। प्रवेश करते ही बड़ी अच्छी बिल्डिंग मिली। बिल्डिंग और पार्क शानदार था हम फोटोग्राफी करते अंदर पहुंच गए। सभी सुविधाएँ vishwastar की लगी साफ सुथारी। एक छोटी सी प्रदर्शनी भी था और प्रतीक्षा कक्ष में स्क्रीन पर कोई फिल्म / वीडियो चलायी जा रही थी , खाने पीने का सामान भी बिक रहा था। पर हद तो तब हो गयी जब मैं साफ सुथरे आधुनिक वाश रूम में गया कुछ लोग वहां भी फोटो वीडियोग्राफी कर रहे थे। पागल लोग । लाइन में लगने पर हमें एक नंबर दिया गया। AC बस जिसमे सारी खिड़किया बंद थी से जाना था। मुश्किल यह था जब भी कोई जानवर दिखता सभी एक साथ खड़े हो जाते। सफारी में पांच बाड़े है हिरण, भालू , तेंदुआ, बाघ और सिंह (शेर) । हमने सभी जानवर दिखे पर शेरनी का डबल गेट पर इस तरह खड़े होना की जब गेट खुले और वो बाहर जा सके बड़ा मनोरंजक लगा। मज़ा बहुत आया । वापस आने पर हमने पार्क में बैठ कर लाया हुआ पराठा भुंजिया खाया और बाहर आ गए। अच्छा था की नेचर सफारी नहीं गए नहीं तो कहीं और नहीं जा पाते पूरा दिन यहीं निकल जाता। मेरा सुझाव है की यदि राजगीर - नालंदा आएं तो कम से कम दो दिन और हो सके तो तीन दिन का प्रोग्राम बनाये। मैं शायद फिर आऊं।

ज़ू सफारी जाने की बसें और POSE देती एक हिरण

हमारा अगला स्टॉप था विश्व शांति स्तूप जिसके लिए एक रज्जु पथ (ROPE WAY ) से जाना था। हमे सिर्फ एक रोप वे का पता था जिसमे एक कुर्सी रोप से लटकता रहता है और जिसे हमने जॉनी मेरा नाम फिल्म में देखा था और जिससे मेरी छोटी बहन की चप्पल गिर गई थी।इस रोपवे के कुर्सी पर उसके साथ दौड़ते हुए चढ़ा जाता है। लोग सहायता के लिए रहते है। यहाँ आने पर पता चला एक ८ सीटर केबिन वाला एक ROPE WAY और भी है। जब हम पहुंचे केबिन वाला रज्जु मार्ग लंच के लिए बंद था। मेरी पत्नी ने कहा क्योंकि हमे सिर्फ कुर्सी वाला ही पता था उसीसे जायेंगे। यह बहुत अच्छा हो गया क्योंकि समय भी बचा और शनिवार के बावजूद ऊपर स्तूप पर भी भीड़ नहीं थी। यह एकल सीट वाला कुर्सीनुमा रोपवे देश का सबसे पुराना रोपवे भी है।

एकल सीट वाला कुर्सीनीमा रोप वे और विश्व शांति स्तूप

विश्व शांति स्तूप के रज्जु मार्ग स्टेशन के पास से ही घोरा कटोरा के लिए इलेक्ट्रिक ऑटो / टमटम मिलते थे पर मैं जानता था की वहां सिर्फ एक प्राकृतिक लेक है और क्यूंकि हमें नौकायन नहीं करना था। हमने वहां नहीं जाने निर्णय लिया तांकि हम नालंदा भी देख पाएं। अक्सर जो लोग राजगीर में रात में रुक कर राजगीर को EXPLORE करते है उन्हें घूमने के लिए तांगा एक अच्छा विकल्प है। यह पर हेड के हिसाब से पैसे लेते है और १०-११ जगह दिखाते है। पूरा तांगा भी किया जा सकता है। हम स्वर्ण भंडार , ज़रा देवी मंदिर , ४०-४५ KM लम्बी बिना तराशे पत्थर की CYCLOPEAN दीवार को रोड पर से देख कर नालंदा के लिए चल पड़े। सोन भंडार गुफाएं (जिन्हें स्वर्ण भंडार गुफाएं भी कहा जाता है) दो मानव निर्मित गुफाएँ हैं जो राजगीर राज्य में वैभार पहाड़ियों की तलहटी में खुदी हुई हैं । बड़ी गुफा में पाए गए समर्पित शिलालेख के आधार पर - जो ४ थी शताब्दी ईस्वी की गुप्त लिपि का उपयोग करता है - गुफाएं आम तौर पर 3री शताब्दी की बताई जाती हैं या चौथी शताब्दी की, हालांकि कुछ लेखकों ने सुझाव दिया है कि गुफाएं वास्तव में मौर्य साम्राज्य के काल की हो सकती हैं, संभवतः 319 ईसा पूर्व की। यहाँ के पत्थर ग्रेनाइट तुलना में बहुत कम कठोर है, और इसलिए उसे उतने प्रयास और तकनीक की आवश्यकता नहीं है। गाइड ने बताया इन गुफाओं का निर्माण मौर्य साम्राज्य के शासनकाल के दौरान 319 से 180 ईसा पूर्व के दौरान किया गया था। चौमुखा (चतुर्भुज) मूर्ति गुफा के अंदर मिली इसका शीर्ष गुंबददार है और प्रत्येक तरफ का स्तंभ एक धर्मचक्र दर्शाता है। प्रत्येक तरफ जानवरों की नक्काशी है जो संबंधित जैन तीर्थंकर के प्रतीक का प्रतिनिधित्व करती है ।

स्वर्ण भंडार , राजगीर के टमटम/ एक्का

रास्ते में सिलाव में रूक कर वहां GI TAG प्राप्त खाजा खरीदते हुए हम नालंदा पहुंचे।


काली शाह के खाजा दुकान सिलाव

एक गाइड ले कर घूमे हमारे पास करीब एक घंटे ही बचे थे पर गाइड के कारण बहुत अच्छी तरह देख पाए। गाइड की आवाज़ रिकॉर्ड कर लिए और वह जानकारी मैं अगले ब्लॉग में दूंगा।

No comments:

Post a Comment