Wednesday, August 13, 2025

काठमांडू मनोरम मार्ग से

मैं या हम कब पिछली बार बीरगंज से सड़क मार्ग से काठमांडू आये थे अब याद भी नहीं। शायद १९९५-२००० के बीच में एक बार काठमंडू सड़क मार्ग से गए होंगे । जब से हमारे दोनों बच्चे दिल्ली- NCR मैं रहने लगे है हमेशा दिल्ली होकर ही नेपाल की हवाई यात्राी की है। पहले भी कलकत्ता से काठमांडू की फ्लाइट ले लेते थे । हाल में रक्षाबंधन के दिन पत्नी का प्रोग्राम बना। भतीजी US से आई हुई थी और उन्हें, भाईयों को राखी बांधने का अवसर भी मिल रहा था (बताता चलूँ मेरी श्रीमती का मायका काठमांडू में हैं ) हमारे विवाह के बाद पहली बार यानि ५२ वर्ष बाद । मैंने रांची से शताब्दी और आसनसोल से मिथिला एक्सप्रेस में रिजर्वेशन कर लिया। सावन में जसीडीह तक भीड़ होने की संभावना थी पर AC2 डिब्बे में कोई भीड़ नहीं हुई और हम आराम से रक्सौल पहुंच गए । रक्सौल भारत नेपाल सीमा पर भारत का एक busy शहर है । पहले नेपाल के बीरगंज से काठमांडू तक हवाई यात्रा की प्लानिंग थी पर मेरे साले साहब डॉ बिमल काठमांडू से गाड़ी लेकर बीरगंज आ गए थे और हमें लेने रक्सौल स्टेशन तक अपने बीरगंज के मित्र रमेश जी की गाड़ी लेकर आ गए। हमें तो बहुत ही सुविधा हो गयी लेकिन स्टेशन रोड से कस्टम के बीच के रेलवे क्रासिंग ने बहुत परेशान किया। करीब १ घंटे लग गए।


India rail info dot com के सौजन्य से

हम बीरगंज में थोड़ी देर रूक कर और रमेश जी के यहाँ लज़ीज़ नाश्ता कर काठमांडू के लिए निकल पड़े । पत्नी जी ने रमेश जी को राखी भी बांधी। हमारा पिछले अनुभव मुग्लिंग हो कर काठमांडू जाने का था जिसमे 290 KM का रास्ता तय करने में करीब १०-१२ घंटे में लगते थे पर बिमल जी ने बताया की इस बार हमें कुलेखनी - दक्षिण काली ही कर जाना है और 135 KM के रास्ता तय करने में ४-५ घंटे ही लगने वाले थे । बीरगंज से हम अमलेखगंज - हेटौंडा होकर भैसे पहुंचे । अमलेखगंज के रास्ते में हम वो ढाबा ढूंढने लगे जहाँ का वर्णन हमने अपने एक बस यात्रा वाले ब्लॉग में किया था । पर कहाँ १९९० की बात और कहाँ २०२५ का परिदृश्य। जंगल काट कर कई घर , मकान , दुकान और होटल बन गए है। लिंक पर यहाँ क्लिक कर वो पुराना अनुभव भी पढ़ सकते है।

भैसे से दो रास्ते अलग हो जाते है एक सिवभन्ज्याङ्ग - दमन - पालुंग -टीस्टुंग हो कर सबसे पुराना 'बाईरोड को बाटो' और दूसरा नया छोटा रास्ता। हम छोटे रास्ते के तरफ निकल लिए । ये रास्ता भीमफेदी हो कर जाता है । फ़ेदी का नेपाली शब्द है जिसका अर्थ है बेस जहां से पहाड़ शुरू होता है।


अभी के (२०२५) के यात्रा के कुछ दृश्य

मुझे काठमांडू यात्रा का अपना पहला अनुभव याद हो आया जब पता चला था की 'बाईरोड को बाटो' बनने के पहले यानि १९५० के पहले भीम फ़ेदी हो कर लोग पैदल काठमांडू जाए जाते थे और काठमांडू वैली की पहली कार भी इसी पैदल रास्ते से लोगों के कंधे पर गयी थी । मैं अपने पुराने ब्लॉग का लिंक यहाँ दे रहा हूँ। 1973 में की गई उस यात्रा ब्लॉग में मैंने लिखा था--

"अमलेखगंज
हम एक घंटे में अमलेखगंज पहुंच गए। पता चला पहले रेल गाड़ी यहाँ तक आती थी। गूगल करने पर पता चला की नेपाल सरकार रेलवे (NGR) नेपाल का पहला रेलवे था। 1927 में स्थापित और 1965 में बंद हुआ। 47 किमी लंबी ये रेलवे लाइन नैरो गेज थी और भारत में सीमा पार रक्सौल से अमलेखगंज तक था। आगे जाने पर चुरिया माई  मन्दिर के पास सभी बसें रुक रही थी। पूजा करके ही बसें आगे बढ़ती थी । हमारी बस भी रुकी। पूजा कर खलासी ने सबको प्रसाद बाटें। जब बस आगे बढ़ी तो चुरिया माई का महात्म्य पता चला। अब बस चुरे या टूटते पहाड़ों (Land Sides prone) के ऋंखला से गुजर रही थी।   अगला स्टॉप हेटौंडा था। यह एक औद्योगिक शहर है। अब यहाँ लम्बे पर सहज रास्ते से यानि महेन्द्र राज मार्ग से नारायणघाट और होकर मुंग्लिंग होते हुए भी काठमांडू जाया जा सकते है। तब ऐसा नहीं था। अगले स्टॉप भैसे ( एक जगह का नाम ) में एक छोटे पुल के पार बस रुकी दिन के खाने के लिए। इसके बाद चढ़ाई वाला रास्ता था, सो डर डर कर ताजी मछली भात खाये। अभी तक पुर्वी राप्ती नदी के किनारे किनारे चले जा रहे थे। रोड पर जगह जगह झरने की तरह स्वच्छ पानी गिर रहा था। नेपाली में इसे धारा कहते है। लोग इसी पानी में बर्तन कपडे धोने नहाने से लेकर पीने पकाने का पानी तक ले रहे थे। पानी ठंडा शीतल था और आँखों को बहुत अच्छा लग रहा था।

भैसे ब्रीज,, काठमाण्डु की पहली कार, कन्धों पर

रास्ते के बारे में पत्नी जी बताती जा रहीं थी। उन्होंनें बताया कि पहले तराई से काठमाण्डू घाटी लोग भीमफेदी होकर पैदल ही जाते थे। घाटी में पहली कार भी लोगों के कन्धे पर इसी रास्ते ले जाया गया था। 28 किमी का यह पैदल रास्ता लोग तकरीबन तीन दिनों मे पूरा करते थे। यह सोच कर मुझे घबराहट होने लगी कि यदि हमें भी पैदल जाना पड़ा तो कई बार 3000 फीट से 7000-8000 फीट चढ़ाई उतराई (रास्ते का चित्र देखें)   चढाई करते क्या मै सही सलामत पहुंच भी पाता?"

भीमफेदी..भीमफेदी होकर पैदल रास्ता ऊंचाई का उतर चढाव देखे (AH42=त्रिभुवन राजपथ)

पैसा वसूल मार्ग / दृश्य

मैंने सोचा था पालुंग टिस्टुंग वाले रास्ते से अधिक scenic ये रास्ता थोड़े ही होगा। पर भैंसें से आगे बढ़ते ही मेरा कैमरा निकल आया। ऐसी वैली और ऐसे पहाड़। हमें दो बार 6000 फीट तक चढ़ना था और फिर उतरना था।


चितलांग का नाशपाती, नाशपाती बगान

पहले सुना था रास्ता संकरा और खतरनाक है, पर अब रास्ता काफी चौड़ा है। फिर भी सुमो शेयर टैक्सी वाले बहुत गंदा चलाते हैं और सावधानी की जरूरत है। पहाड़ बादलों से ढका था और कही कही मार्ग में दृश्यता काफी कम थी। सबसे ऊँची जगह से तो बादल हमारे नीचे दिख रहे थे और हम बादल के ऊपर।


हिल टॉप रेस्टोरेंट , एक झरना

यहीं पर है कुलेखानी जल विद्युत परियोजना है। कुलेखनी नदी जो बागमती की एक सहायक नदी है पर बांध बना है। इससे जो लेक बना है उसे ईंद्र सरोवर कहते हैं और यहां एक पर्यटक स्थल चितलांग भी है। तीन पावर प्लांट एक के नीचे एक लगाया गया है जो‌ कुल ६० मेगावाट बिजली पैदा कर सकता है। हम जब नीचे जा रहे थे तब पिछले साल बांध के दो फाटक के अचानक खोलने से होने वाले बर्बादी देखे । कई स्थान‌ पर सड़क बह गई थी और डाइवर्सन बनाए गए थे। नीचे उतरने के बाद फिर एक बार ६००० फीट की उंचाई तक जाना पड़ा जहां एक रेस्टोरेंट था। हम चाय सेल रोटी खाकर आगे बढ़ गए। एक तरह का नाशपाती यहां बहुतायत से होता है और उससे wine भी बनाया जाता है। जगह जगह फल के स्टाल लगे थे । हम भी चार किलो नाशपाती खरीद कर आगे बढ़े। दक्षिण काली और फारफिंग होते हुए हम काठमांडू पहुंचे।

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