ग्रेटर नॉएडा , देव प्रयाग
उत्तराखंड यात्रा
विवाह के ५० वें वर्षगांठ को मानाने को हमने पहले सोचा एक पार्टी कर ले - जैसी परम्परा है , पर तीन जगहों पे बिखरे परिवार में यह पार्टी कहाँ की जाय। किसीको यदि आमंत्रित करना भूल जाये तो उनकी उलाहना भी सुननी पड़ सकती थी। आखिर हमने तीर्थ यात्रा पर जाने का निर्णय लिया। पूरे परिवार - बच्चों सहित। कहाँ जाये ? केदारनाथ ट्रेक हम सिनियर से संभव न होता। पत्नी तो घोड़े पर भी चढ नहीं सकती । अतः केदारनाथ हमारे लिस्ट से बाहर हो गया, कभी बाद में सिर्फ हम दोनों हेलीकाप्टर से जाएंगे सोच कर अपना लक्ष्य त्रियुगीनारायण रखा - आखिर यहीं शिव और पार्वती का विवाह जो हुआ था । और दो एक कार और एस यू वी रिज़र्व कर १६ जून हम ९ लोग Noida Extension से निकले और हरिद्वार की तरफ रूख किया। पहला स्टॉप था मुज़फ्फर नगर के पास शिवा ढाबा। आश्चर्य था बहुत सारे ढ़ाबो का नाम यही था। एक और प्रसिद्ध ढ़ाबा चेन था जैन सिकंजी। आशा थी यहाँ से ग्रीन परमिट मिल जायेगा जो पहाड़ो में जाने के लिए जरूरी थे। अफ़सोस यहाँ परमिट नहीं बन सका और परांठे और भी कुछ चीजें खाई। सर्विस धीमा था। अगला स्टॉप रूड़की का सब RTO ऑफिस था। खैर खोजते और दो घंटे बर्बाद करने के बाद एक परमिट मिला हिल में गाड़ी चलाने का।
हरिद्वार पहुँचते पहुंचते दोपहर हो गई। CNG का आखिरी पंप यही था। दोनों गाड़ियों में सीएनजी भरवां कर हम निकल पड़े । हम सोच रहे थे ऋषिकेश मैन रोड - लक्मण झूला होते आगे जाना है पर हम एक barrage - राजाजी नेशनल फारेस्ट- जिसे न जाने क्यों चिला रोड कहते हैं- हो कर गए। रिशिकेश से आगे एक ढ़ाबे में चावल, रोटी और मैगी का लंच किया , ढाबे के हिसाब से खाना महंगा था । मनोरम दृश्यों का आनन्द लेते आगे बढ़े। अगला स्टाप था। देवप्रयाग। भागीरथी का नीले जल और अलकनंदा का मटमैला पानी मिलाकर यहीं से गंगा बन कर बढ़ती है। हमने ऊपर से ही देखा। श्रीनगर के धारी देवी मंदिर पहुंचते-पहुंचते संध्या हो चली थी मंदिर में विराजमान धारी देवी चारधाम और तीर्थयात्रियों की रक्षा करती है। मंदिर के डूबने पर नया मंदिर थोड़ा ऊचा कर बनाया गया है। रोड से मंदिर तक जाने के लिए बहुत सारी सीढिया है। हमें वहीं एक दुकान से चिप्स ख़रीदे और चाय भी पी। अँधेरा हो गया था और आगे सभी कैमरे बंद हो गए।
1. धारी देवी , 2. फाटा से सोनप्रयाग के बीच
धारी देवी से आगे हम सुर्यास्त के बाद रूद्र प्रयाग (जिला मुख्यालय और बड़ा शहर) अगस्त्य मुनि (रहने के काफी विकल्प) और गुप्त काशी (क्षतिग्रस्त सड़के) होते फाटा पहुंचे। मैंने यहीं होटल विजय में तीन कमरे पहले ही बुक कर लिये थे। होटल से त्रियुगीनारायण एक डेढ़ घंटे की दूरी पर था। मंशा थी सुबह सुबह मंदिर पहुंच कर दर्शन करेंगे। होटल सड़क पर ही हो ऐसा भी देख लिया था। पर यात्रा में जैसा सोचो होता कहां है ? होटल के entrance में छोटी चढ़ाई सी थी। हम SENIORS के लिए कठिन, खास कर अंधेरे में। मैं चढ़ गया, फिर सोचा सामने के शिवाय होटल में कमरे देख लेता हूं। लेकिन तब तक पत्नी भी सहारा लेकर चढ़ ही गई। अब होटल बदलने का कोई प्रयोजन नहीं था। खाने में परांठे थे। होटल से थोड़े निराश थे पर सुबह उपर के तल्ले से केदारनाथ रेंज के हिमाच्छादित पहाड़ों के दृश्य ने सारी निराशा दूर कर दी। हमने नाश्ता नहीं किया, पूजा के बाद करेंगे ऐसा निश्चय किया। बच्चे साथ थे निकलने में थोड़ी देर हो गई। निकलने के थोड़ी देर बाद ही एक तरफ और कहीं कहीं दोनों तरफ पार्क की गई गाड़ियों के कारण और लौटती बसों के कारण आगे बढ़ना मुश्किल हो गया। घोड़ों के हूजूम भी दिखने लगे। हमें क्या पता था कि आगे जाने ही नहीं देंगे, सोनप्रयाग तक भी नहीं। शायद हम समय नष्ट किये बिना लौट ही जाते। कई घंटों बाद हम लौट पाए और हमने एक अच्छी जगह "देवघर" पर ब्रंच लिया। इस जगह अच्छे रुम भी थे, यहीं क्यों नहीं रूके का अफसोस होने लगा । हमने यहां से उखीमठ जाने का निश्चय किया। जहां त्रियुगीनारायण में स्वयं शिव पार्वती का विवाह हुआ, वहीं उखीमठ में श्री कृष्ण के प्रपौत्र अनिरूद्ध और उषा का विवाह हुआ है। यहीं बाबा केदारनाथ और दूसरे केदार मदमहेश्वर का winter abode है। बहुत सुन्दर मंदिर। रंग, साज सज्जा नेपाली मंदिरो की याद दिला गया। उखीमठ के पास रांसी गांव से मदमहेश्वर जी का १८ कि०मी० लंबा कठिन पैदल मार्ग भी है। हमने पहले ही सोच रखा था कि देवरिया ताल के रास्ते ३००-४०० मि० दूर स्थित ओंकार रत्नेश्वर मंदिर तक का ट्रेक कर पाऊंगा क्योंकि हमारे रोज के walk में इतनी चढ़ाई होती ही है। हम इसलिए चोप्ता के पहले 'सारी' गांव गए और ये वाला ट्रेक करने बढ़े तो सामने के दुकान वाले ने लाठियां पकड़ा दी। वास्तव में इतनी सी चढ़ाई भी कठिन है क्योंकि मुझे थकान से ज्यादा डर लग रहा था।
1. उखीमठ , 2.देवरिया ताल गेट , 3. ओंकार रत्नेश्वर मंदिर - देवरिया ताल
सारी गांव से हम चोप्ता के तरफ वापस मुड़ लिए। मैंने सोचा था चोप्ता (9400 ft above MSL) की दूरी ५-६ कि०मि० होगी पर यह तो २१-२२ कि०मि० की निकली। रास्ते में हम मनोरम दृश्य और होटल , कैम्प, होम स्टे देखते आए। कई खूबसूरत बुग्यालों में थे।कुछ सड़क से सटे (बंकर हाउस) कुछ दूर नीचे (Sun and Snow, Magpie Jungle camp et al). खैर घंटे भर की drive के बाद हम वहां पहुंचे जहां से बाबा तुंगनाथ की ४ कि०मि० की चढ़ाई शुरू होती है। देवरिया ताल की तरह यहां भी एक स्वागत द्वार बना था। शाम हो चली थी। हमारे सात सहयात्री कल यह ट्रेक करेंगें। हम अपने होम स्टे वाले से जो करीब २.५ कि०मि० दूर था से बात करना चाहते थे पर नेटवर्क ना के बराबर था पर गुगल मैप चल रहा था। हम करीब १० मिनट में पहुंच गए। यहां कई होटल होम स्टे थे। हमारे वाले (Himrab Home stay) का बोर्ड भी लगा था पर किधर से जाना है पता न था। जब पता चला तो हमारी हवाई उड़ गई। करीब १०० मि० की बिना ट्रेक वाली उतराई थी। डरते सहारा लेते उतर ही गए यह सोचते कि कल इतना चढ़ना भी है। जब नीचे उतरे तब केयर टेकर ने बताया उपर भी रूम है जहां वह हम दोनों सीनियर को ठहराना चाह रहा था। काश फोन काम कर रहा होता। हम खाना खा कर ठंडे मौसम को इंजॉय करने लगे। पानी एकदम ठंडा था। तब हमें रनिंग होट वाटर का ख्याल आया। बताया गया पीने के लिए जग में और नहाने के लिए बाल्टी में रूम में पहुंचा दिए जाएंगे। फिल्म "कहानी" में विद्या बालन के होटल वाला दृश्य याद आ गया जहां एक बच्चा दौड़ कर गरम पानी ले आता (running hot water in room !) हमें दो बड़े रूम दिए गए।
रात खाना खा कर हम सो गए। तभी उपर रूम में रुके कुछ ७-८ पर्यटक हमारे कमरे के सामने लगे टेबल पर खाना खाने आए और जोर जोर से आपस में बातें , हसीं , ठिठोली करने लगे। हिन्दी मराठी, बंबइया के मिले जुले शब्द हमारे कानों में आने लगे। शायद उन्हें हमारे वहां होने का अंदाजा नहीं होगा, हम लोग नज़र अंदाज़ कर सोने की कोशिश करने लगे। थोड़ी देर बाद पुत्री उठी और उनसे शोर कम करने को कहा। उनमें से एक ने जवाब दिया "बरोबर"। पर जब फिर भी शोर कम न हुआ तब मैंने जाकर हलो कहा, जब दो तीन लोगों का attention मेरे तरफ हुआ तब मैंने उनसे धीमी आवाज में बात करने को कहा। इसका असर होता दिखा। आवाज कम हो गई और उनका खाना भी जल्द समाप्त हो गया। दूसरे दिन हमारे ग्रुप के बच्चों का तकिया कलाम या मजाक था "चलो हम भी रूम १०५ के पास हल्ला करते हैं" ।
1. तुंगनाथ जी के रास्ते, 2. 18June2023- चोप्ता में भयानक जाम
रात होटल (HIMRAB RESORT) में बीता। देवरिया ताल में की गई छोटी सी ट्रेक ने थोड़ा तो थका ही दिया था और इस कारण हमें नींद भी अच्छी आई। अगली सुबह १८ जून को नाश्ते के बाद हमारे ग्रुप के ७ सदस्य जिनमें ४ बच्चे भी थे तुंगनाथ की पैदल यात्रा के लिए निकल पड़े। उन्हें ५-६ घंटे लगने वाले थे। सबको सामान पैक कर ही जाने को कह दिया था। हमने पता किया कि नजदीक कहां मनोरम जगह है जहां हम दो सिनियर घूम आ सके। हम होटल से रोड तक की चढ़ाई सिर्फ एक बार ही करना चाह रहे थे। होटल के मैनेजर ने सलाह दी कि हम ११-१२ बजे तक निकले। हमने १० बजे तक सामान को उपर भेज दिया और मुश्किल से आधी दूर तक चढ़ा और ड्राइवर से इशारों में समान गाड़ी में रखवा लेने को कहा। आखिर जब हम उपर गाड़ी के पास पहुंचे तब दो सामान गाड़ी में दिखा ही नहीं। हमारे साथ आए होटल कर्मी से पूछने और खोजने पर वे समान वहां के एक ढ़ाबे में मिला। हम सामान गाड़ी में रखवा कर गोपेश्वर मार्ग के तरफ निकल पड़े। यहीं मार्ग आगे जाने पर कर्ण प्रयाग होते बद्रीनाथ को जाता है। केदारनाथ से बद्रीनाथ का सबसे छोटा मार्ग। करीब २० कि० मि० पर कस्तूरी मृगों का एक उद्यान भी है। मिला नीचे घाटी से बादल उपर उठता दिखा, अत्यंत सुंदर दृश्य था। रास्ते में सुंदर झरने और हरी भरी घाटियां और बुग्याल मनोरम था। ठंड थी। गरम कपड़े पहनने पड़े। हम २-३ km दूर एक व्यू टावर तक गए। टावर पर बंदर और लंगूरों का डेरा था। सुन रखा था ये दोनों प्रजातियां साथ नहीं रहती, अतः आश्चर्य भी हुआ। थोड़ी देर दृश्यों का आनन्द लिया फोटो खींचे और लौट पड़े। अभी १ ही बजे थे और बच्चों को तुंगनाथ से आते आते ४-५ तो बजने ही थे। पर यहां पर भी क्या करते। अपने होटल के पास ही रुके। लंच लिया, ड्राइवरों ने भी खाना खाया और हम आगे बढ़ चले। एक जगह दोनों तरफ गाड़ियां खड़ी थी। हम बीच से निकले जा रहे थे। तभी सामने से एक नहीं कई बस आती दिखी। दस से ज्यादा कार को बैक करना पड़ रहा था। पार्क किए कार वालों ने बताया आगे भयंकर जाम है यहीं पार्क कर लें। आगे पीछे कर किसी तरह दोनों गाड़ियां सीमित स्थान में पार्क हुई । एक बैक करती कार खराब भी हो गई। खैर जाम ख़त्म होने की कोई संभावना नहीं दिख रही थी। उधर तुंगनाथ वाली पार्टी भी नीचे उतर आई थी। फोन पर टूटी फूटी आवाज ही आ रही थी। किसी तरह उन्हें कार की तरफ पैदल आने को कहा और करीब ५००-६०० मीटर चल कर सभी जल्द ही आ गए। और हमारी गाड़ियां भी खरामा खरामा चल पड़ी। चारो बच्चे एक ही गाड़ी में साथ बैठना चाहते थे पर जिस गाड़ी पर आसानी से चढ़ सकते थे चढ़ लिए। रास्ते में हम होटल या पेट्रोल पंप खोज रहे थे कुछ लोगों को बाथरूम की जरूरत थी, इसी कारण दो तीन जगह रूके। हम उखीमठ के रास्ते में मदमहेश्वर के पैदल मार्ग के कुछ आगे एक ढ़ाबे पर रूके, कुछ नाश्ता, चाय के लिए। यहां भांग के बीज और अन्य हर्ब की बड़ी स्वादिष्ट लोकल चटनी खाई जो बहुत पसंद आई। हमने अपना रात का ठिकाना हरिद्वार सोच रखा था, पर डिनर का सर्वमान्य स्थान रूद्र प्रयाग से काफी आगे आकर मिला।
1. ऋषिकेश में हमारे होटल के पास एक मंदिर, 2. नील कंठ महादेव चौक
अब हमने देवप्रयाग में रूकने का निर्णय लिया। कुछ होटल देखें भी। पर या तो वे साफ सुथरे नहीं थे या फिर बहुत सारी सीढियां उतरनी थी। फिर हम आगे बढ़ लिए और आखिर कर ऋषिकेश के ग्रैंड हवेली होटल में रुके। एसी रूम था। नौकरी पेशा ३ लोग थे साथ में। उन्होंने उस दिन की भी छुट्टी कर ली। हम आराम से निकले। हरिद्वार के CNG पंप के पास के शिवा ढ़ाबा में हमने लंच किया। खतौली में एक जगह और रुके और शाम तक घर पहुंच गए। तीन लोगों को food poisoning हो गई थी। मुझे भी दो दिन बाद डायरिया जैसा हुआ, पर दवा से सभी स्वस्थ हो गए। ।
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