मैं पिछले आठ ब्लॉग में राम चरित मानस के भावुक क्षणों को मानस की चौपाइयों से संकलित करने की छोटी चेष्टा कर रहा हूँ । मैं पिछले ब्लॉगों का लिंक यहाँ दे रहा हूँ तांकि आपने यदि नहीं पढ़ा तो निरंतरता के लिए पढ़ सकते है। कृपया लिंक पर क्लिक करें।
- राम चरित मानस से कुछ भावुक क्षण भाग-१ (बाल लीला )
- राम चरित मानस से कुछ भावुक क्षण भाग-२ ( विवाह )
- मानस के कुछ भावुक क्षण - भाग-३ (वन गमन १)
- मानस के कुछ भावुक क्षण भाग - ४ (राम वन गमन २)
- मानस के कुछ भावुक क्षण-भाग-५ (राम वनगमन-३.१)
- मानस के कुछ भावुक क्षण - भाग- ६ (वन गमन ३-२)
- मानस के कुछ भावुक क्षण भाग-७
- मानस के कुछ भावुक क्षण भाग -८
सनातन धर्म अवतारों , मूर्तियों, प्रतीक , प्रकृति के वंदन पूजन की इजाजत देता है। निरंकार से सकार की भक्ति सरल है। ऐसा इसलिए क्योंकि आम भारतवासी सरल व्यक्तित्व का स्वामी होता है। इतना सरल की राम का ध्यान करने पर श्री अरुण गोविल जी का सौम्य रूप और लक्ष्मण का स्मरण करने पर सुनील लाहिरी जी का क्रोधित रूप याद जाता है। भारत के रूप में संजय जोग का योगी रूप और सीता के माता स्वरुप रूप में दीपिका चिकलिया जी बरबस याद आ जाती है मानों उनमे ही तुलसीकृत रामायण के सभी पात्र सम्माहित हो। इन्ही पात्रो पर समर्पित मेरे ब्लॉग का यह भाग।
सीताजी का स्वप्न, श्री रामजी को कोल-किरातों द्वारा भरतजी के आगमन की सूचना, रामजी का शोक, लक्ष्मणजी का क्रोध और राम जी का समझाना
उहाँ रामु रजनी अवसेषा।
जागे सीयँ सपन अस देखा ॥
सिहत समाज भरत जनु आए।
नाथ बियोग ताप तन ताए ॥
राम रात शेष रहते ही जाग गए और सीता जी उन्हें अपने सपने के बारे में बताने लगी। वे बताने लगी कि सपने में कि अयोध्या वासियों के साथ भरत आए हैं और प्रभु वियोग में उनका शरीर संतप्त है। सभी लोग उदास दीन दुखी है। सभी माताएं भिन्न वेश में है। सीता जी का स्वप्न सुनकर राम चंद्र जी के नेत्र भर आए। और प्रभु स्वयं की लीला के वश में हो गए। वे लक्ष्मण को बोले "सीता कि स्वप्न किसी अशुभ को इंगित करता है।
सनमािन सुर मुनि बंंदि बैठे उतर दिस देखत भए।
नभ धुरि खग मगृ भुरि भागे बिकल प्रभु आश्रम गए ॥
तुलसी उठे अविलोक कारनु काह चित सचिकत रहे।
सब समाचार किरात कोलिन्ह आइ तेिह अवसर कहे ॥
स्नान ध्यान कर , देवताओं, मुनियों का सम्मान, वंदना कर प्रभु बैठ गए और उत्तर दिशा की ओर देखने लगे। आसमान में धुल उड़ रही है और बैचेन पक्षी, मृग प्रभु आश्रम की तरफ भाग रहे हैं। श्री राम यह सब देख कारण के लिए सशंकित हो उठे, तब ही कोल किरातों ने शुभ समाचार (भरत जी के आने का) दिया। प्रभु पुलकित हो उठे। भरत के साथ चतुरंगिणी सेना है है जानकर श्रीराम कुछ सोच में पड़ गए, एक ओर पिता का वचन और दुसरी ओर भरत का संकोची स्वभाव। भरत के आने के कारण का अनुमान लगाते राम जी चिंता में डूब गए।
राम जी को चिंतित देख, लक्ष्मण ने कहा आपकी आज्ञा के बिना मैं कुछ कहना चाहता हूं। क्योंकि कुछ अवसरों पर सेवक की ठिठाई निती सम्मत है। यद्यपि
भरत का आपके प्रति प्रेम , विश्वास और आदर सर्वविदित है। पर प्रभुत्व और राज्य पा कर इंद्र तक धर्म से विमुख हो जाते हैं। राजमद में सहस्र बाहु, इंद्र, त्रिशंकु और नहुष तक मतवाला हो गए थे। ऋण और शत्रु शेष नहीं रहने चाहिए, इसलिए भैया भरत और छोटा भाई शत्रुघ्न आपको असहाय जान सेना सहित आ रहे हैं। लक्ष्मण को निती की बातें करते करते क्रोध आ गया और वे अपने धनुष बाण लेकर तैयार हो गए। सारे लोकपाल उनका क्रोध देख भयभीत हो कर भाग गए। तब प्रभु ने समझाया।
अनुचित उचित काजु किछु होऊ।
समुझि किरअ भल कह सबु कोऊ ॥
सहसा करि पाछैं पछिताहीं।
कहिहं बेद बुध ते बुध नाहीं ॥
देव वाणी हुयी कोई भी काम हो, उसे अनुचित-उचित खूब समझ-बूझकर किया जाए तो सब कोई अच्छा कहते हैं। वेद और विद्वान कहते हैं कि जो बिना विचारे जल्दी में किसी काम को करके पीछे पछताते हैं, वे बुद्धिमान् नहीं हैं। देववाणी सुन लक्ष्मण सकुचा गए। श्री राम और माता सीता ने उनका आदर किया और समझाया। सच है की राज मद में संभलना सच में कठिन है।
भरतहि होइ न राजमदु बिधि हरि हर पद पाइ।
कबहुँ कि काँजी सीकरनि छीरसिंधु बिनसाइ॥
तिमिरु तरुन तरनिहि मकु गिलई। गगनु मगन मकु मेघहिं मिलई॥
गोपद जल बूड़हिं घटजोनी। सहज छमा बरु छाड़ै छोनी॥
पर उनके लिए कठिन है जिन्होंने साधुओं का सत्संग नहीं किया वे ही राजा राजमद रूपी मदिरा पीते है और मतवाले हो जाते हैं। हे लक्ष्मण! सुनो, भरत सरीखा उत्तम पुरुष ब्रह्मा की सृष्टि में न तो कहीं सुना गया है, न देखा ही गया हैं।
अयोध्या का राज्य तो क्या है , ब्रह्मा , विष्णु और महादेव पद पा कर भी भारत को राज मद नहीं हो सकता । अंधकार इतना हो जिसमे मध्यान्ह का सूर्य छिप जाये , गाय के खुर जैसे जल में चाहे अगस्त्य जी डूब जाये , पृत्वी अपनी सहन शीलता छोड़ दे , मच्छर के फूक से चाहे सुमेरु पर्वत उड़ जाये भारत में राजमद हो ही नहीं सकता। हे तात मैं तुम्हारी और पिताजी के सौगंध खा कर कहता हूँ की भारत के सामान पवित्र और उत्तम भाई संसार में नहीं है।
सुनि रघुबर बानी बिबुध देखि भरत पर हेतु।
सकल सराहत राम सो प्रभु को कृपानिकेतु॥
जौं न होत जग जनम भरत को।
सकल धरम धुर धरनि धरत को॥
कबि कुल अगम भरत गुन गाथा।
को जानइ तुम्ह बिनु रघुनाथा॥
राम जी की वाणी और भारत के लिए उनका प्रेम विश्वास देख समस्त देवता उनकी सराहना करने लगे, और कहने लगे की प्रभु राम के सिवा करुणा के सागर और कौन है ? यदि जगत् में भरत का जन्म न होता, तो पृथ्वी पर संपूर्ण धर्मों की धुरी को कौन धारण करता? कवि कल्पना से भी परे भरतजी के गुणों की कथा आपके सिवा और कौन जान सकता है?
इस ब्लॉग में इतना ही। अगले भाग में राम भारत मिलाप !
क्रमशः
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