Sunday, January 19, 2025

हमारी उत्तर पुर्व यात्रा (2018) भाग 5

बोमडिला -धिरिंग-भुटान-गोहाटी

बोमडिला 22-24 April 2018
हमारे उत्तर पूर्व के टूर में अरुणांचल आने का प्रोग्राम था ही नहीं, न ही हमारे पास समय था। पर मैंने फेसबुक पर मित्रों का पोस्ट देखा था तवांग पर। तवांग बहुत लोकप्रिय पर्यटक स्थल में धीरे धीरे तब्दील हो रहा था तब। अब तो बहुतों की मंज़िल तवांग होती है। हमलोग पूरी तरह इतनी ठंडी जगह जाने के लिए तैयारी करके नहीं आए थे, और समय भी कम था। कमसे कम एक दिन और चाहिए था वहां जाने के लिए। कालेज के टूर का प्रोग्राम याद आ गया जब हम दो ट्रेन के बीच के समय मिलते ही कोई एक शहर घुम लेते और कभी बोगी को BG या MG में बदलने के कारण बोरिंग जगहों में ज़्यादा दिन रूकने पड़ते। ऐसे में मैंने दो रात किसी हिल स्टेशन में रूकने की गरज से बोमडिला (8000 फीट) को अपने टूर प्रोग्राम में सामिल कर लिया। 22 April 2018 के देर शाम हम अपने होमस्टे पहुंच गए‌ थे । होमस्टे के तीनों कमरों को हमने बुक किया हुआ था। सभी में अटैच बाथरूम थे। रात में लजीज और simple लोकल खाना खा कर आरामदेह बिस्तर पर मोटे लिहाफ, कंबल के दो लेयर ओढ़ कर हम सो गए।


बोमडिला में हमारा होमस्टे, होमस्टे से एक दृश्य

ट्रैवल एजेंट से धिरांग तक जाने की बात तय हुई थी। पर जब हम अगले दिन कहां जा सकते हैं पर गाड़ी में चर्चा कर रहे थे ड्राइवर ने शे-ला पास जा सकते हैं का सुझाव दिया था। मेरे मन में यह बात घर कर गई थी। अगले दिन 23 April 2018 को सुबह ही नींद खुल गई। अरूणाचल में सुर्योदय जो सबसे पहले होता है। दृश्य कैसे होगा की जिज्ञासा थी। सुबह सुबह ही हम सभी खुले टेरेस पर आ गए। जहां प्राकृतिक दृश्य ने हमारा मन मोह लिया वहीं ठंडक ने हमारा बुरा हाल कर दिया। होमस्टे के किचन गार्डन का टूर किया गया और कई नेपाल में मिलने वाले वनस्पति भी देखें पहचाने गए। अपने होस्ट की मेहमाननवाजी का लुत्फ उठा कर चाय नाश्ता के बाद हम निकल पड़े।


होमस्टे के परिवार के साथ सबह की चाय ,बोमडिला का मध्य गोम्पा होम स्टे से

मध्य गोंपा होमस्टे से ही दिखता था इसलिए हम उपर गोंपा देखने चल पड़े। गाड़ी के पार्किंग स्थल से काफी ऊंचाई तक पैदल ही जाना पड़ता इसलिए सर्वसम्मति से हम दूर से ही गोंपा को देख निकल पड़े धिरांग या दिरांग की ओर। करीब तीस km का रास्ता था उतराई वाला । रास्ते का आनंद उठाते चल‌ पड़े और घंटे भर में एक छोटे गोंपा के पास खड़े थे। स्थानीय बच्चे हमारे ओर आकर्षित हो गए और हम उनसे बात करने लगे। प्यारा सा मोनास्ट्री था। फिर हम दिरांग नदी के किनारे गए । दिरांग कामेंग नदी कि एक सहायक नदी है। हमने बहुत मजे किए। नदी में भींगना, पैर भींगाना मुझे अच्छा नहीं लगता। मेरे सिवा सभी ने नदी के ठंडे पानी में पैर भिंगाया फिर पैर में लगे बालू को साफ करने में काफी मशक्कत भी की। ड्राइवर यहीं से वापस जाना चाहता था और मैं शे-ला पास जाने की जिद कर रहा था।


दिरांग नदी में मजा , एक स्तूप

खैर वो हमें दो अति सुन्दर मोनास्ट्री ले गया जो करीब दस km दूर थे। दोनों मोनास्ट्री Thupsung Dhargye Ling Buddhist Monastery और LDL monastry बहुत ही सुन्दर थे। शे-ला पास न सही हम वहां से आठ दस km की लांग ड्राइव पर जाना चाहते थे। ड्राइवर यह कह कर टाल गया कुछ देखने को नहीं है सिर्फ टेढ़े-मेढ़े रास्ते है। सेला पास करीब 14000 फीट ऊंचाई पर था और अच्छा हुआ हम सिनियर नहीं गए। खैर ड्राइवर हमें एक Hot Spring ले गया। सिर्फ हाथ धोने के सिवा और कुछ नहीं किया । थोड़ी गंदगी भी थी। थोड़ा समय बिता कर वहां से हम लौट कर सीधे बोमडिला के बाजार गए, कुछ खरीदारी करनी थी और खाना भी खाना था । साबुत (खोल सहित) अखरोट काफी सस्ते थे। यहीं Lower Gompa भी थी हम वहां भी गए और दिया जलाया । शाम हो चली थी। हम होम स्टे लौट आए। सभी उपर नीचे चढ़ते उतरते थक गए थे। नींद अच्छी आई।


LDL Monastery and Thupsung Dhargye Ling Buddhist Monastery

अगले दिन 24 April 2018 को करीब 8 बजे हम गोहाटी के लिए निकल पड़े। लंबी यात्रा थी पर इस बार उतराई थी समय कम लगने वाला था और हम मस्ती में चले जा रहे थे। हमें दो स्थान मिले मुन्ना और रूपा। हम हंस पड़े क्योंकि ये मेरे एक साला और एक साली का भी नाम है।


LDL मोनास्ट्री के अंदर और रोड क्रॉस करता एक किंग कोबरा

हम बातों में मशगूल थे कि एक काफी लम्बा सा काला सांप रास्ता पार करता दिखा। ड्राइवर उसे बचाने की कोशिश करने लगा। वह सांप पूरा खड़ा हो गया एकदम खिड़की जो बंद थे के लेवल तक। ड्राइवर बहुत डर गया फिर भी गाड़ी रोक दी। मेरी जरूरत से ज्यादा साहसी पत्नी और मेरे छोटे बहनोई मना करने पर भी गाड़ी से उतर कर मुआयना करने चल दिए। सांप तो झाड़ियों मे गायब हो चुका था। मुझे लगा किंग कोबरा था जो अक्सर दक्षिण भारत में मिलता है। गुगल से पता लगा इन जंगलों में भी किंग कोबरा मिलता है।


स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया - रूपा और मुन्ना कैंप गॉव का एक ढाबा

गोहाटी से आते हमे रास्ते में भैरब कुंड का दिशा पट्ट मिला था । लौटते में जाएंगे एसा सोचा था। वहां पहुंचने पर पता चला मंदिर भुटान के अंदर है। ड्राइवर सांप के व्यवहार से डरा था देवों के कुपित होने का डर ! और उसकी मंदिर जाने की प्रबल इच्छा थी। पता चला भुटान के अंदर कुछ दुरी तक हम जा सकते है। हम गए भी दर्शन भी किया और लंच भी। बहनोई द्वय भी सस्ते रम के सेवन से अपने रोक नहीं पाए। यहाँ भूटान से निकलने वाली जम्पनी नदी और भैरबी नदी मिलकर धनसिरी नदी बनाती हैं जो एक प्रमुख सहायक नदी है ब्रह्मपुत्र का। मंदिर को भुटान के एकमात्र शक्ति पीठ का दर्जा प्राप्त है। असम अरुणाचल और भुटान यहां अपनी सीमा भी बनाते हैं। अति सुन्दर स्थान। पिकनिक बाजों में प्रसिद्ध।

भूटान का प्रवेश द्वार , भैरब कुंड मंदिर का साइन बोर्ड

हम मंदिर में पूजा कर नदी की तरफ गए। भैरब कुंड के पहले एक छोटे मार्किट मैं हम लोग कई ढाबा नुमा रेस्टोरेंट देख चुके थे और देख रखे थे वाइन शॉप। मंदिर से लौटते समय हमनें एक होटल में रुक कर खाने खाया और बहनोई लोग ने भूटान में बने रम को चखा।


भैरब कुंड मंदिर और होटल जहाँ हमने दोपहर का खाना खाया

हमलोग शाम तक रीवर व्यु गेस्ट हाउस , दिसपुर (गोहाटी) पहुंच गए। हम पिछली बार यहीं रूके थे और अपने लिए अग्रिम बुकिंग कर गए थे। हमें गेस्ट हाउस छोड़ने पर टैक्सी का अनुबंध समाप्त हो गया और हमने उसका बकाया पेमेंट कर दिया। हमने सुन रखा था कामाख्या दर्शन के बाद उमानंद दर्शन आवश्यक है पर संतोष जी ने बताया भुवनेश्वरी मंदिर के दर्शन बिना कामाख्या दर्शन अधूरा है। अगले दिन 25 अप्रैल के सुबह दीपा कमलेश जी की फ्लाइट थी और हमलोग की ट्रेन दोपहर में थी। इसलिए सुबह चेक आउट के बाद भुवनेश्वरी मंदिर होते हुए स्टेशन जाने का प्रोग्राम बन गया। टैक्सी वाले को हमने Extra पेमेंट पर सुबह आने को कहा । उसने जितना बताया वह अधिक था पर हम उसीके शर्त पर जाने को तैयार हो गए। भुवनेश्वरी मंदिर तांत्रिको का केंद्र है। मधुबानी के पास मंगरौनी में भी भुबनेश्वरी मंदिर है और यहां के स्व गुरु महाराज ने इसी मंदिर में तपस्या की और सिद्धि प्राप्त की थी।


रिवर व्यू लॉज से ब्रह्मपुत्र का दृश्य और भुवनेश्वरी मंदिर

भुवनेश्वरी माता का दर्शन बड़ी आसानी से हो गया। कुछ सीढियाँ चढ़ने के सिवा और कोई मेहनत नहीं करनी पड़ी। मंदिर से निकल कर हम स्टेशन की और चल पड़े। हमारा सामान गाड़ी में ही था। अगले दिन यानि २६ अप्रैल को हम पटना पहुंच गए। इस तरह हमारी उत्तर पूर्व की यात्रा बहुत सारी अच्छी यादों के साथ संपन्न हो गया।


भुवनेष्वरी मंदिर की सीढ़ियों पर और भुवनेश्वरी मंदिर पहाड़ी से एक दृश्य

बस इस ब्लॉग में इतना ही। कुछ और यादों के साथ जल्द ही हाज़िर होऊंगा।

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