Friday, January 24, 2025

महिला कुली हटिया स्टेशन‌ पर

हम लोग करीब महीने भर से अपने चेन्नई और और जगहों की यात्रा का प्लान बना रहे थे। चैन्नई में मेरी सबसे छोटी बहन रहती है और मेरा नाती भी पढ़ता है। हम उत्सुक थे। पता नहीं क्या था कि हमारे प्रिय धनबाद अलैप्पी एक्सप्रेस में टिकट मिला ही नहीं। आश्चर्यजनक रूप से एक स्पेशल साप्ताहिक ट्रेन हमारे प्लान में फिट बैठ रहा था। स्टापैज भी कम था। सिर्फ एक कमी थी इसमें हमारे आवश्यकता अनुसार सेकेंड एसी नहीं था। खैर इसके थर्ड एसी में टिकट बुक कर लिया।


राजमुंदरी के पास का एक दृश्य

आगे क्या होने वाला है क्या पता। क्योंकि रांची में बन रहे ससपेंसन ओवर ब्रिज के कारण कई ट्रेनें रद्द हो रही थी मैंने गांड़ी के प्रारंभिक स्टेशन बरौनी से खुलने की स्थित रात में ही चेक कर रहा था और यह क्या खुली ही डेढ़ घंटे देर से और एक स्टाप तक में ही ढ़ाई घंटे लेट हो गई। मैंने flight टिकट देख डाले। चलने के के दो दिन और पहुंचने के एक दिन बाद का टिकट दिखा। एक तो सिर्फ एक ही फ्लाइट थी वह भी रात का था और पत्नी जी घर को हमारे अनुपस्थिति के लिए तैयार करते करते (सभी समानों को समेटना, ढ़कना, गमलों में पानी डालने की व्यवस्था करना इत्यादि) परेशान थी । उनका जवाब था "दो दिन और का टेंशन नहीं ले सकते !!"



हमारे पास समान थोड़ा ज्यादा था। पर हमने कुछ भी हो जाय इसी ट्रेन से ही जाएंगे का निश्चय कर मैं ट्रेन के स्टेटस को लगातार चेक करने लगा। जब ट्रेन तीन घंटे से ज्यादा लेट चल रही थी तब हम ओला ले कर हटिया स्टेशन पहुंच गए। सामान हम अकेले ट्रेन तक ले जाने को स्थिति में नहीं थे । कुली मिलेगा या नहीं की चिंता थी तभी एक महिला कुली आई। मुझे अब यह बताने में शर्म आ रही है कि मैंने उससे कहा सामान थोड़ा ज्यादा है (मेरा मतलब था महिला हो कर इतना सामान कैसे ले जाओगी ?) । उसने मुझे आश्वस्त किया और बताया उसके पास लगेज ट्राली भी है। मेहनताना भी reasonable मांग रही थी। उसका आत्मविश्वास देख कर मैंने पुरूष कुली जो आ गए थे उसे वापस भेज दिया पर उससे पूछ बैठा हमारी ट्रेन किस प्लेटफार्म पर आएंगी? जवाब आया "अपने कुली से ही पूछिए।"


भारतीय रेल में महिला कुली Photo shared from internet

महिला ने बड़ी आसानी से सारा सामान ले लिया। हमने महिला का बोझ कम करने की गरज से एक एक छोटा समान लेना चाहा लेकिन उसने हमें कुछ ले चलने नहीं दिया। हमने रांची के बजाय हटिया स्टेशन से टिकट ली थी तांकि ट्रेन प्लेटफार्म नं० 1 पर आए और हमें सुविधा हो। लेकिन ट्रेन शायद 2 पर आने वाली थी। हमारी कुली महोदया ने इसी कारण हमें लिफ्ट के पास बिठाया और फिर अपने मोबाइल पर चेक कर बताया कि ट्रेन प्दोलेटफार्म नं० 2 पर आएंगी लेकिन बाद में प्लेटफार्म न० बदल भी सकता है । यानि वह एक Hi tech कुली भी थी। अन्ततः ट्रेन 3 No. पर आई। और हम लिफ्ट से गए। ऐसे तो हमारी बोगी ट्रेन के बीच में थी और मैंने सोच रखा था कि गेट के आसपास आएगा पर लिफ्ट प्लेटफार्म के दूसरे ओर था और हमें काफी चलना पड़ा और कुली को तो समान सहित। हमारी या किसीके मदद बिना कुली महोदया ने सारा सामान ट्रेन में चढ़ा कर हमारे बताऐं सीट न० के नीचे ठीक ठाक लगा दिया।

ट्रेन में चढ़ने के बाद जो बात मन में आई वह थी जो खाना दोपहर के लिए आर्डर किया उसका क्या होगा। ट्रेन चार घंटे लेट जो हो गई थी। आगे क्या हुआ अगले ब्लॉग में।
क्रमशः

Sunday, January 19, 2025

हमारी उत्तर पुर्व यात्रा (2018) भाग 5

बोमडिला -धिरिंग-भुटान-गोहाटी

बोमडिला 22-24 April 2018
हमारे उत्तर पूर्व के टूर में अरुणांचल आने का प्रोग्राम था ही नहीं, न ही हमारे पास समय था। पर मैंने फेसबुक पर मित्रों का पोस्ट देखा था तवांग पर। तवांग बहुत लोकप्रिय पर्यटक स्थल में धीरे धीरे तब्दील हो रहा था तब। अब तो बहुतों की मंज़िल तवांग होती है। हमलोग पूरी तरह इतनी ठंडी जगह जाने के लिए तैयारी करके नहीं आए थे, और समय भी कम था। कमसे कम एक दिन और चाहिए था वहां जाने के लिए। कालेज के टूर का प्रोग्राम याद आ गया जब हम दो ट्रेन के बीच के समय मिलते ही कोई एक शहर घुम लेते और कभी बोगी को BG या MG में बदलने के कारण बोरिंग जगहों में ज़्यादा दिन रूकने पड़ते। ऐसे में मैंने दो रात किसी हिल स्टेशन में रूकने की गरज से बोमडिला (8000 फीट) को अपने टूर प्रोग्राम में सामिल कर लिया। 22 April 2018 के देर शाम हम अपने होमस्टे पहुंच गए‌ थे । होमस्टे के तीनों कमरों को हमने बुक किया हुआ था। सभी में अटैच बाथरूम थे। रात में लजीज और simple लोकल खाना खा कर आरामदेह बिस्तर पर मोटे लिहाफ, कंबल के दो लेयर ओढ़ कर हम सो गए।


बोमडिला में हमारा होमस्टे, होमस्टे से एक दृश्य

ट्रैवल एजेंट से धिरांग तक जाने की बात तय हुई थी। पर जब हम अगले दिन कहां जा सकते हैं पर गाड़ी में चर्चा कर रहे थे ड्राइवर ने शे-ला पास जा सकते हैं का सुझाव दिया था। मेरे मन में यह बात घर कर गई थी। अगले दिन 23 April 2018 को सुबह ही नींद खुल गई। अरूणाचल में सुर्योदय जो सबसे पहले होता है। दृश्य कैसे होगा की जिज्ञासा थी। सुबह सुबह ही हम सभी खुले टेरेस पर आ गए। जहां प्राकृतिक दृश्य ने हमारा मन मोह लिया वहीं ठंडक ने हमारा बुरा हाल कर दिया। होमस्टे के किचन गार्डन का टूर किया गया और कई नेपाल में मिलने वाले वनस्पति भी देखें पहचाने गए। अपने होस्ट की मेहमाननवाजी का लुत्फ उठा कर चाय नाश्ता के बाद हम निकल पड़े।


होमस्टे के परिवार के साथ सबह की चाय ,बोमडिला का मध्य गोम्पा होम स्टे से, होम स्टे से एक और दृश्य

मध्य गोंपा होमस्टे से ही दिखता था इसलिए हम उपर गोंपा देखने चल पड़े। गाड़ी के पार्किंग स्थल से काफी ऊंचाई तक पैदल ही जाना पड़ता इसलिए सर्वसम्मति से हम दूर से ही गोंपा को देख निकल पड़े धिरांग या दिरांग की ओर। करीब तीस km का रास्ता था उतराई वाला । रास्ते का आनंद उठाते चल‌ पड़े और घंटे भर में एक छोटे गोंपा के पास खड़े थे। स्थानीय बच्चे हमारे ओर आकर्षित हो गए और हम उनसे बात करने लगे। प्यारा सा मोनास्ट्री था। फिर हम दिरांग नदी के किनारे गए । दिरांग कामेंग नदी कि एक सहायक नदी है। हमने बहुत मजे किए। नदी में भींगना, पैर भींगाना मुझे अच्छा नहीं लगता। मेरे सिवा सभी ने नदी के ठंडे पानी में पैर भिंगाया फिर पैर में लगे बालू को साफ करने में काफी मशक्कत भी की। ड्राइवर यहीं से वापस जाना चाहता था और मैं शे-ला पास जाने की जिद कर रहा था।


दिरांग नदी में मजा , एक स्तूप

खैर वो हमें दो अति सुन्दर मोनास्ट्री ले गया जो करीब दस km दूर थे। दोनों मोनास्ट्री Thupsung Dhargye Ling Buddhist Monastery और LDL monastry बहुत ही सुन्दर थे। शे-ला पास न सही हम वहां से आठ दस km की लांग ड्राइव पर जाना चाहते थे। ड्राइवर यह कह कर टाल गया कुछ देखने को नहीं है सिर्फ टेढ़े-मेढ़े रास्ते है। सेला पास करीब 14000 फीट ऊंचाई पर था और अच्छा हुआ हम सिनियर नहीं गए। खैर ड्राइवर हमें एक Hot Spring ले गया। सिर्फ हाथ धोने के सिवा और कुछ नहीं किया । थोड़ी गंदगी भी थी। थोड़ा समय बिता कर वहां से हम लौट कर सीधे बोमडिला के बाजार गए, कुछ खरीदारी करनी थी और खाना भी खाना था । साबुत (खोल सहित) अखरोट काफी सस्ते थे। यहीं Lower Gompa भी थी हम वहां भी गए और दिया जलाया । शाम हो चली थी। हम होम स्टे लौट आए। सभी उपर नीचे चढ़ते उतरते थक गए थे। नींद अच्छी आई।


LDL Monastery and Thupsung Dhargye Ling Buddhist Monastery

अगले दिन 24 April 2018 को करीब 8 बजे हम गोहाटी के लिए निकल पड़े। लंबी यात्रा थी पर इस बार उतराई थी समय कम लगने वाला था और हम मस्ती में चले जा रहे थे। हमें दो स्थान मिले मुन्ना और रूपा। हम हंस पड़े क्योंकि ये मेरे एक साला और एक साली का भी नाम है।


LDL मोनास्ट्री के अंदर और रोड क्रॉस करता एक किंग कोबरा

हम बातों में मशगूल थे कि एक काफी लम्बा सा काला सांप रास्ता पार करता दिखा। ड्राइवर उसे बचाने की कोशिश करने लगा। वह सांप पूरा खड़ा हो गया एकदम खिड़की जो बंद थे के लेवल तक। ड्राइवर बहुत डर गया फिर भी गाड़ी रोक दी। मेरी जरूरत से ज्यादा साहसी पत्नी और मेरे छोटे बहनोई मना करने पर भी गाड़ी से उतर कर मुआयना करने चल दिए। सांप तो झाड़ियों मे गायब हो चुका था। मुझे लगा किंग कोबरा था जो अक्सर दक्षिण भारत में मिलता है। गुगल से पता लगा इन जंगलों में भी किंग कोबरा मिलता है।


स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया - रूपा और मुन्ना कैंप गॉव का एक ढाबा

गोहाटी से आते हमे रास्ते में भैरब कुंड का दिशा पट्ट मिला था । लौटते में जाएंगे एसा सोचा था। वहां पहुंचने पर पता चला मंदिर भुटान के अंदर है। ड्राइवर सांप के व्यवहार से डरा था देवों के कुपित होने का डर ! और उसकी मंदिर जाने की प्रबल इच्छा थी। पता चला भुटान के अंदर कुछ दुरी तक हम जा सकते है। हम गए भी दर्शन भी किया और लंच भी। बहनोई द्वय भी सस्ते रम के सेवन से अपने रोक नहीं पाए। यहाँ भूटान से निकलने वाली जम्पनी नदी और भैरबी नदी मिलकर धनसिरी नदी बनाती हैं जो एक प्रमुख सहायक नदी है ब्रह्मपुत्र का। मंदिर को भुटान के एकमात्र शक्ति पीठ का दर्जा प्राप्त है। असम अरुणाचल और भुटान यहां अपनी सीमा भी बनाते हैं। अति सुन्दर स्थान। पिकनिक बाजों में प्रसिद्ध।

भूटान का प्रवेश द्वार , भैरब कुंड मंदिर का साइन बोर्ड

हम मंदिर में पूजा कर नदी की तरफ गए। भैरब कुंड के पहले एक छोटे मार्किट मैं हम लोग कई ढाबा नुमा रेस्टोरेंट देख चुके थे और देख रखे थे वाइन शॉप। मंदिर से लौटते समय हमनें एक होटल में रुक कर खाने खाया और बहनोई लोग ने भूटान में बने रम को चखा।


भैरब कुंड मंदिर और होटल जहाँ हमने दोपहर का खाना खाया

हमलोग शाम तक रीवर व्यु गेस्ट हाउस , दिसपुर (गोहाटी) पहुंच गए। हम पिछली बार यहीं रूके थे और अपने लिए अग्रिम बुकिंग कर गए थे। हमें गेस्ट हाउस छोड़ने पर टैक्सी का अनुबंध समाप्त हो गया और हमने उसका बकाया पेमेंट कर दिया। हमने सुन रखा था कामाख्या दर्शन के बाद उमानंद दर्शन आवश्यक है पर संतोष जी ने बताया भुवनेश्वरी मंदिर के दर्शन बिना कामाख्या दर्शन अधूरा है। अगले दिन 25 अप्रैल के सुबह दीपा कमलेश जी की फ्लाइट थी और हमलोग की ट्रेन दोपहर में थी। इसलिए सुबह चेक आउट के बाद भुवनेश्वरी मंदिर होते हुए स्टेशन जाने का प्रोग्राम बन गया। टैक्सी वाले को हमने Extra पेमेंट पर सुबह आने को कहा । उसने जितना बताया वह अधिक था पर हम उसीके शर्त पर जाने को तैयार हो गए। भुवनेश्वरी मंदिर तांत्रिको का केंद्र है। मधुबानी के पास मंगरौनी में भी भुबनेश्वरी मंदिर है और यहां के स्व गुरु महाराज ने इसी मंदिर में तपस्या की और सिद्धि प्राप्त की थी।


रिवर व्यू लॉज से ब्रह्मपुत्र का दृश्य और भुवनेश्वरी मंदिर

भुवनेश्वरी माता का दर्शन बड़ी आसानी से हो गया। कुछ सीढियाँ चढ़ने के सिवा और कोई मेहनत नहीं करनी पड़ी। मंदिर से निकल कर हम स्टेशन की और चल पड़े। हमारा सामान गाड़ी में ही था। अगले दिन यानि २६ अप्रैल को हम पटना पहुंच गए। इस तरह हमारी उत्तर पूर्व की यात्रा बहुत सारी अच्छी यादों के साथ संपन्न हो गया।


भुवनेष्वरी मंदिर की सीढ़ियों पर और भुवनेश्वरी मंदिर पहाड़ी से एक दृश्य

बस इस ब्लॉग में इतना ही। कुछ और यादों के साथ जल्द ही हाज़िर होऊंगा।

Saturday, January 18, 2025

photo

Rajgir

LDL Monastery

Thupsung Dargey Ling Monastry

Diring River

thipsay diring inside

scene from homestay

Our home stay

Stupa

Gyuto Manastery

Tuesday, January 14, 2025

मानस के कुछ भावुक क्षण भाग १० राम भारत मिलाप

मैं पिछले नौ ब्लॉग में राम चरित मानस के भावुक क्षणों को मानस की चौपाइयों से संकलित करने की छोटी चेष्टा कर रहा हूँ । मैं पिछले ब्लॉगों का लिंक यहाँ दे रहा हूँ तांकि आपने यदि नहीं पढ़ा तो निरंतरता के लिए पढ़ सकते है। कृपया लिंक पर क्लिक करें।

राम मंदिर में श्री राम प्रभु के आगमन के एक वर्ष हो गए । इस उपलक्ष में मेरे पुराने ब्लॉग का अगला भाग।


चित्रकूट में यहीं हुआ था राम भरत मिलाप (फोटो इंटरनेट से )

भरतजी का मन्दाकिनी स्नान, चित्रकूट में पहुँचना

लखन राम सियँ सुनि सुर बानी। अति सुखु लहेउ न जाइ बखानी॥
इहाँ भरतु सब सहित सहाए। मंदाकिनीं पुनीत नहाए॥
सरित समीप राखि सब लोगा। मागि मातु गुर सचिव नियोगा॥
चले भरतु जहँ सिय रघुराई। साथ निषादनाथु लघु भाई॥
मुझि मातु करतब सकुचाहीं। करत कुतरक कोटि मन माहीं॥
रामु लखनु सिय सुनि मम नाऊँ। उठि जनि अनत जाहिं तजि ठाऊँ॥


देववाणी सुनकर श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी विभोर ही गए और सुख पाए। इसी बीच भरत जी सभी समाज के साथ चित्रकूट पहुँच कर मन्दाकिनी में स्नान करते है। फिर सभी को मन्दाकिनी तट पर रुकने कह कर और गुरु और माता की आज्ञा मांग कर उस स्थान के लिए प्रस्थान करते है जहाँ माता सीता और श्री रघुनाथ जी है।

मन्दाकिनी नदी - विकिपीडिया से सौजन्य से

भरत अपनी माता कैकयी के कृत्यों के विषय में सोच कर में पेशोपेश में है। कहीं माता का नाम सुन कर श्री राम , माता सीता और लक्ष्मण उठ कर कहीं और नहीं चले जाये। वे मुझे माता के मत से सम्मत मान कर जो भी करे थोड़ा होगा , पर शायद वे मेरी भक्ति और सम्बन्ध को देख मुझे मेरे सभी पापों और अवगुणों के लिए क्षमा कर देंगे । चाहे मलिन मन जानकर मुझे त्याग दें, चाहे अपना सेवक मानकर मेरा स्थान दे, मेरे लिए तो श्री रामचंद्रजी की चरण की पादुका में ही शरण हैं। श्री रामचंद्रजी तो अच्छे स्वामी हैं, दोष तो सब दास का ही है। उस समय भरत की दशा कैसी है? भरतजी का सोच और प्रेम देखकर उस समय निषाद देह की सुध-बुध भूल गया।

लगे होन मंगल सगुन सुनि गुनि कहत निषादु।
मिटिहि सोचु होइहि हरषु पुनि परिनाम बिषादु॥
सेवक बचन सत्य सब जाने। आश्रम निकट जाइ निअराने॥
भरत दीख बन सैल समाजू। मुदित छुधित जनु पाइ सुनाजू॥
ईति भीति जनु प्रजा दुखारी। त्रिबिध ताप पीड़ित ग्रह मारी॥
जाइ सुराज सुदेस सुखारी। होहिं भरत गति तेहि अनुहारी॥


मंगल सगुन होने लगा तो निषाद राज विचार करने लगे - पहले हर्ष होगा फिर अंत में दुःख होगा। गुह के वचन को सत्य जान भरत जी आश्रम के निकट जा पहुंचे। जैसे इति (प्रकितिक आपदा) से दुखी और तीनो तापों से पीड़ित प्रजा किसी उत्तम राज्य में जा कर सुखी हो जाये भरत की की अवस्था ठीक वैसी ही थी। राम जी के निकट होने के भाव मात्र से भरत अत्यंत सुख पा रहे है। श्री रामचंद्रजी के चरणों के आश्रित रहने से उनके चित्त में आनंद और उत्साह है । चित्रकूट के सौम्य प्राकृतिक वातावरण , मुनियों की कुटियों, पक्षियों और जीव जंतुओं को देख कर भरत जी अत्यंत सुख पा रहे है। पानी के झरने झर झर कर रहे हैं और मतवाले हाथी चिंघाड़ रहे हैं। मानो वहाँ अनेकों प्रकार के नगाड़े बज रहे हैं। चकवा, चकोर, पपीहा, तोता तथा कोयलों के समूह और सुंदर हंस प्रसन्न मन से कूज रहे है।

हरषहिं निरखि राम पद अंका। मानहुँ पारसु पायउ रंका॥
रज सिर धरि हियँ नयनन्हि लावहिं। रघुबर मिलन सरिस सुख पावहिं॥
खि भरत गति अकथ अतीवा। प्रेम मगन मृग खग जड़ जीवा॥
सखहि सनेह बिबस मग भूला। कहि सुपंथ सुर बरषहिं फूला॥


रामचन्द्रजी के चरणचिह्न देखकर दोनों भाई ऐसे हर्षित होते हैं, मानो दरिद्र को खजाना मिल गया हो। वहाँ की धूल को मस्तक पर रखकर हृदय में और नेत्रों में लगाते हैं और श्री रघुनाथजी के मिलने के समान सुख पाते हैं। भरत जी की यह दशा देख पशु , पंक्षी प्रेम मग्न हो गए। अति प्रेममय वातावरण में निषाद राज भी रास्ता - दिशा भूल जाते है। तब देवता गण फूल वर्षाकार रास्ता बताते है।


पंचमूःख़ी हनुमान धारा में स्थित मंदिर - चित्रकूट

करत प्रबेस मिटे दुख दावा। जनु जोगीं परमारथु पावा॥
देखे भरत लखन प्रभु आगे। पूँछे बचन कहत अनुरागे ॥
स जटा कटि मुनि पट बाँधें। तून कसें कर सरु धनु काँधें॥
बेदी पर मुनि साधु समाजू। सीय सहित राजत रघुराजू॥
लकल बसन जटिल तनु स्यामा। जनु मुनिबेष कीन्ह रति कामा॥
कर कमलनि धनु सायकु फेरत। जिय की जरनि हरत हँसि हेरत॥


आश्रम में प्रवेश करते ही भरतजी का सारा दुःख और तपन मिट गया, मानो योगी को परमार्थ की प्राप्ति हो गई हो। भरतजी ने देखा कि लक्ष्मणजी प्रभु के आगे खड़े हैं । सिर पर जटा है, कमर में वल्कल वस्त्र बाँधे हैं और उसी में तरकस कसे हैं। हाथ में बाण तथा कंधे पर धनुष है, वेदी पर मुनि तथा साधुओं का समुदाय बैठा है और सीताजी सहित श्री रघुनाथजी विराजमान हैं। श्री रामजी के वल्कल वस्त्र हैं, जटा धारण किए हैं, श्याम शरीर है। श्री रामजी अपने करकमलों से धनुष-बाण फेर रहे हैं और हँसकर देखते ही जी की जलन हर लेते हैं , जिसके ओर भी देखते हैं उसी को परम आनंद और शांति मिल जाती है। छोटे भाई शत्रुघ्न और सखा निषादराज समेत भरतजी का मन प्रेम में मग्न हो रहा है। हर्ष-शोक, सुख-दुःख आदि सब भूल गए। हे नाथ! रक्षा कीजिए ऐसा कहकर वे पृथ्वी पर दण्ड की तरह गिर पड़।

बचन सप्रेम लखन पहिचाने। करत प्रनामु भरत जियँ जाने॥
बंधु सनेह सरस एहि ओरा। उत साहिब सेवा बस जोरा॥
मिलि न जाइ नहिं गुदरत बनई। सुकबि लखन मन की गति भनई॥
रहे राखि सेवा पर भारू। चढ़ी चंग जनु खैंच खेलारू॥
कहत सप्रेम नाइ महि माथा। भरत प्रनाम करत रघुनाथा॥
उठे रामु सुनि पेम अधीरा। कहुँ पट कहुँ निषंग धनु तीरा॥


अत्यंत भावुक क्षण था। लक्ष्मण जी श्री राम के और मुख कर खड़े थे और भरत जी के और उनका पीठ था पर फिर भी भरत जी के मन के भाव उन तक पहुँच रहे है। उन्होंने जान लिया कुछ न कहते हुए भी भरत जी प्रणाम कर रहे है। सेवा में लगे लक्ष्मण जी को क्षण भर भी सेवा को छोड़ भरत जी से मिलते नहीं बनता है और न ही उपेक्षा करते ही बनता है। लक्ष्मणजी के चित्त की इस दुविधा का वर्णन कोई श्रेस्ठ कवि ही कर सकता है। वे सेवा को ही विशेष महत्वपूर्ण समझकर उसी में लगे रहे। फिर भी लक्ष्मणजी ने प्रेम सहित पृथ्वी पर मस्तक नवाकर कहा- हे रघुनाथजी भरतजी प्रणाम कर रहे हैं। यह सुनते ही श्री रघुनाथजी प्रेम में अधीर होकर उठे। कहीं वस्त्र गिरा, कहीं तरकस, कहीं धनुष और कहीं बाण ।

श्री राम से पादुका लेते भरत जी

बरबस लिए उठाइ उर लाए कृपानिधान।
भरत राम की मिलनि लखि बिसरे सबहि अपान॥
मिलनि प्रीति किमि जाइ बखानी। कबिकुल अगम करम मन बानी॥
परम प्रेम पूरन दोउ भाई। मन बुधि चित अहमिति बिसराई॥
कहहु सुपेम प्रगट को करई। केहि छाया कबि मति अनुसरई॥
कबिहि अरथ आखर बलु साँचा। अनुहरि ताल गतिहि नटु नाचा॥


कृपा निधान श्री रामचन्द्रजी ने उनको (भरत जी को) जबरदस्ती उठाकर हृदय से लगा लिया! भरतजी और श्री रामजी के मिलन की रीति को देखकर सभी अपनी सुध भूल गये । मिलन की प्रीति का बखान कैसे की जाए? वह तो कवि के लिए कर्म, मन, वाणी तीनों से अगम है। दोनों भाई भरतजी और श्री रामजी मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार को भुलाकर परम प्रेम से पूर्ण हो रहे हैं। कहिए, उस श्रेष्ठ प्रेम को कौन प्रकट करे? कवि की बुद्धि किसकी छाया का अनुसरण करे? कवि को तो अक्षर और अर्थ का ही सच्चा बल है। नट ताल की गति के अनुसार ही नाचता है! श्री तुलसी दास भी इस अवसर पर भाव के अधिकता के कारण शब्दों के ढूढ़ते प्रतीत होते है। इस प्रसंग के वर्णन पर श्रोता , पाठक की आंखे भी अश्रुपूर्ण हो जाती है।

बस आज इतना भर ही। अगले ब्लॉग में राम भारत संवाद और भारत का चरण पादुका मांगना।

Sunday, January 12, 2025

मानस के कुछ भावुक क्षण - भाग- ९

मैं पिछले आठ ब्लॉग में राम चरित मानस के भावुक क्षणों को मानस की चौपाइयों से संकलित करने की छोटी चेष्टा कर रहा हूँ । मैं पिछले ब्लॉगों का लिंक यहाँ दे रहा हूँ तांकि आपने यदि नहीं पढ़ा तो निरंतरता के लिए पढ़ सकते है। कृपया लिंक पर क्लिक करें।

राम मंदिर में श्री राम प्रभु के आगमन के एक वर्ष हो गए । इस उपलक्ष में मेरे पुराने ब्लॉग का अगला भाग।

सनातन धर्म अवतारों , मूर्तियों, प्रतीक , प्रकृति के वंदन पूजन की इजाजत देता है। निरंकार से सकार की भक्ति सरल है। ऐसा इसलिए क्योंकि आम भारतवासी सरल व्यक्तित्व का स्वामी होता है। इतना सरल की राम का ध्यान करने पर श्री अरुण गोविल जी का सौम्य रूप और लक्ष्मण का स्मरण करने पर सुनील लाहिरी जी का क्रोधित रूप याद जाता है। भारत के रूप में संजय जोग का योगी रूप और सीता के माता स्वरुप रूप में दीपिका चिकलिया जी बरबस याद आ जाती है मानों उनमे ही तुलसीकृत रामायण के सभी पात्र सम्माहित हो। इन्ही पात्रो पर समर्पित मेरे ब्लॉग का यह भाग।

सीताजी का स्वप्न, श्री रामजी को कोल-किरातों द्वारा भरतजी के आगमन की सूचना, रामजी का शोक, लक्ष्मणजी का क्रोध और राम जी का समझाना



उहाँ रामु रजनी अवसेषा।
जागे सीयँ सपन अस देखा ॥
सिहत समाज भरत जनु आए।
नाथ बियोग ताप तन ताए ॥


राम रात शेष रहते ही जाग गए और सीता जी उन्हें अपने सपने के बारे में बताने लगी। वे बताने लगी कि सपने में कि अयोध्या वासियों के साथ भरत आए हैं और प्रभु वियोग में उनका शरीर संतप्त है। सभी लोग उदास दीन दुखी है। सभी माताएं भिन्न वेश में है। सीता जी का स्वप्न सुनकर राम चंद्र जी के नेत्र भर आए। और प्रभु स्वयं की लीला के वश में हो गए। वे लक्ष्मण को बोले "सीता कि स्वप्न किसी अशुभ को इंगित करता है।

सनमािन सुर मुनि बंंदि बैठे उतर दिस देखत भए।
नभ धुरि खग मगृ भुरि भागे बिकल प्रभु आश्रम गए ॥
तुलसी उठे अविलोक कारनु काह चित सचिकत रहे।
सब समाचार किरात कोलिन्ह आइ तेिह अवसर कहे ॥


स्नान ध्यान कर , देवताओं, मुनियों का सम्मान, वंदना कर प्रभु बैठ गए और उत्तर दिशा की ओर देखने लगे। आसमान में धुल उड़ रही है और बैचेन पक्षी, मृग प्रभु आश्रम की तरफ भाग रहे हैं। श्री राम यह सब देख कारण के लिए सशंकित हो उठे, तब ही कोल किरातों ने शुभ समाचार (भरत जी के आने का) दिया। प्रभु पुलकित हो उठे। भरत के साथ चतुरंगिणी सेना है है जानकर श्रीराम कुछ सोच में पड़ गए, एक ओर पिता का वचन और दुसरी ओर भरत का संकोची स्वभाव। भरत के आने के कारण का अनुमान लगाते राम जी चिंता में डूब गए।



राम जी को चिंतित देख, लक्ष्मण ने कहा आपकी आज्ञा के बिना मैं कुछ कहना चाहता हूं।‌ क्योंकि कुछ अवसरों पर सेवक की ठिठाई निती सम्मत है। यद्यपि भरत का आपके प्रति प्रेम , विश्वास और आदर सर्वविदित है। पर प्रभुत्व और राज्य पा कर इंद्र तक धर्म से विमुख हो जाते हैं। राजमद में सहस्र बाहु, इंद्र, त्रिशंकु और नहुष तक मतवाला हो गए थे। ऋण और शत्रु शेष नहीं रहने चाहिए, इसलिए भैया भरत और छोटा भाई शत्रुघ्न आपको असहाय जान सेना सहित आ रहे हैं। लक्ष्मण को निती की बातें करते करते क्रोध आ गया और वे अपने धनुष बाण लेकर तैयार हो गए। सारे लोकपाल उनका क्रोध देख भयभीत हो कर भाग गए। तब प्रभु ने समझाया।

अनुचित उचित काजु किछु होऊ।
समुझि किरअ भल कह सबु कोऊ ॥
सहसा करि पाछैं पछिताहीं।
कहिहं बेद बुध ते बुध नाहीं ॥


देव वाणी हुयी कोई भी काम हो, उसे अनुचित-उचित खूब समझ-बूझकर किया जाए तो सब कोई अच्छा कहते हैं। वेद और विद्वान कहते हैं कि जो बिना विचारे जल्दी में किसी काम को करके पीछे पछताते हैं, वे बुद्धिमान्‌ नहीं हैं। देववाणी सुन लक्ष्मण सकुचा गए। श्री राम और माता सीता ने उनका आदर किया और समझाया। सच है की राज मद में संभलना सच में कठिन है।

भरतहि होइ न राजमदु बिधि हरि हर पद पाइ।
कबहुँ कि काँजी सीकरनि छीरसिंधु बिनसाइ॥
तिमिरु तरुन तरनिहि मकु गिलई। गगनु मगन मकु मेघहिं मिलई॥
गोपद जल बूड़हिं घटजोनी। सहज छमा बरु छाड़ै छोनी॥


पर उनके लिए कठिन है जिन्होंने साधुओं का सत्संग नहीं किया वे ही राजा राजमद रूपी मदिरा पीते है और मतवाले हो जाते हैं। हे लक्ष्मण! सुनो, भरत सरीखा उत्तम पुरुष ब्रह्मा की सृष्टि में न तो कहीं सुना गया है, न देखा ही गया हैं।


अयोध्या का राज्य तो क्या है , ब्रह्मा , विष्णु और महादेव पद पा कर भी भारत को राज मद नहीं हो सकता । अंधकार इतना हो जिसमे मध्यान्ह का सूर्य छिप जाये , गाय के खुर जैसे जल में चाहे अगस्त्य जी डूब जाये , पृत्वी अपनी सहन शीलता छोड़ दे , मच्छर के फूक से चाहे सुमेरु पर्वत उड़ जाये भारत में राजमद हो ही नहीं सकता। हे तात मैं तुम्हारी और पिताजी के सौगंध खा कर कहता हूँ की भारत के सामान पवित्र और उत्तम भाई संसार में नहीं है।

सुनि रघुबर बानी बिबुध देखि भरत पर हेतु।
सकल सराहत राम सो प्रभु को कृपानिकेतु॥
जौं न होत जग जनम भरत को।
सकल धरम धुर धरनि धरत को॥
कबि कुल अगम भरत गुन गाथा।
को जानइ तुम्ह बिनु रघुनाथा॥


राम जी की वाणी और भारत के लिए उनका प्रेम विश्वास देख समस्त देवता उनकी सराहना करने लगे, और कहने लगे की प्रभु राम के सिवा करुणा के सागर और कौन है ? यदि जगत्‌ में भरत का जन्म न होता, तो पृथ्वी पर संपूर्ण धर्मों की धुरी को कौन धारण करता? कवि कल्पना से भी परे भरतजी के गुणों की कथा आपके सिवा और कौन जान सकता है?

इस ब्लॉग में इतना ही। अगले भाग में राम भारत मिलाप !

क्रमशः