Monday, November 24, 2025

श्री धर्मेंद्र देओल -श्रद्धांजली

श्री धर्मेन्द्र सिंह देओल का आज 24 नवंबर 2025 को 90 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने 1961 से बोलीवुड में कदम रखा था। ये वो समय था जब मैं टीन एज की ओर अग्रसर था और फिल्म देखने का शौक होना शुरू हुआ था। पर मुझे फिल्म देखने की थोड़ी आजादी 14 की उम्र में यानि 1964 में मिली जब महीने में एक फिल्म देखने को मिलता पर जब 15 की उम्र में, हास्टल में रहने गया तो फिल्में देखना एक आवश्यक कार्य के सामान हो गया। नई फिल्म का लगना, पुरानी प्रसिद्ध फिल्म का लगना, एक टिकट में दो खेल का लगना या Exam के बाद या यदि गणित का हो तो पहले (धारना थी कि गणित के दिन रात मे जग कर नहीं पढ़ना चाहिए) यह सब बहाने होते थे। फिल्म देखने के। तब जमाना था राजकपूर, दिलिप कुमार और देवानंद का। राजेश खन्ना का प्रादुर्भाव नहीं हुआ था। तब उनकी एक फिल्म देखी बंदिनी और बहुत पसंद आई थी फिल्म। अन्य प्रमुख अभिनेताओ से काफी युवा, सक्षम धर्मेंद्र जी से तुरंत connect कर पाया फिर देखी काजल जिसमें राजकुमार जैसे सक्षम अभिनेता के सामने भी इस जवान अभिनेता ने बहुत impress किया। फिर देखी अनुपमा। एक upcoming कवि के कठिन भूमिका बहुत खूब निभाई थी। हकीकत के हकीकत से तो सभी वाकिफ हैं। आंखें - शायद पहली जासूसी फिल्म जिसमें हास्य भी था। उनकी कई फिल्म शिकार, आया सावन झूम के, आए दिन बहार के, नीला आकाश इत्यादि पूरी तरह मनोरंजन के लिए थी। पर बहारें फिर भी आएंगी, नया जमाना, जीवन मृत्यु, फागुन, सत्यकाम कुछ हट के थी तो सीता गीता, चुपके चुपके में उनका अलग कामिक अंदाज दिखा। मेरा नाम जोकर,शिकार, मेरा गांव मेरा देश, शोले में दिखा उनका 'ही मैन' वाला रूप। हर तरह का रूप, अभिनय के हर आयाम में महिर यह शख्स, आज अपने करोड़ों प्रशंसकों को छोड़ उस लोक में चला गया जिसके बारे में कहा या पूछा गया है "कि दुनिया से जाने वाले जाने चले जाते हैं कहां"। उन्हें भगवद् चरण में जगह मिले‌ ओम शांति। हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।


स्केच श्री दीपक वर्मा के फेसबुक पोस्ट से, धन्यवाद सहित

मैंने कुछ फिल्मों का जिक्र उपर किया है। धर्मेंद्र जी की कुछ और फिल्में जो मैंने देखी है, बड़े पर्दे पर या छोटे पर्दे पर वो है शोला और शबनम, बंदिनी, काजल, आकाशदीप, हकीकत, ममता, आए दिन बहार के, फूल और पत्थर, अनुपमा, देवर, आंखें, शिकार, मेरे हमदम मेरे दोस्त, मंझली दीदी, आया सावन झूम के, सत्यकाम, मेरा नाम जोकर, जीवन मृत्यु, मेरा गांव मेरा देश,नया जमाना, गुड्डी, दो चोर , समाधि, राजा जानी, सीता और गीता, जुगनू, फागुन, यादों की बारात, चुपके चुपके, शोले, बारूद,चरस, स्वामी, ड्रीम गर्ल,चाचा भतीजा, धरम वीर, शालीमार, दिल्लगी, बर्निग ट्रेन, नसीब, मै इंतकाम लूंगी, रजिया सुल्तान, नौकर बीबी का, जागीर, सल्तनत, ओम शांति ओम। मैंने कई फिल्मे और भी देखी होगी पर याद नहीं आ रहा है।

Friday, November 21, 2025

हेलेन

हेलेन

हेलन का जन्म 1938 में बर्मा में एक एंग्लो-इंडियन पिता और बर्मी माँ के घर हुआ था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उनके पिता की मृत्यु हो गई, जिसके बाद उनका परिवार 1943 में भारत आ गया और मुंबई में बस गया। परिवार की आर्थिक तंगी के कारण उन्होंने 13 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़ दी और परिवार की मदद करने के लिए कोरस डांसर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की।

हेलेन जी को फिल्मो में कक्कू ही ले कर आयी और हेलेन ने  कैबरे को फिल्मो में एक अलग ही  स्थान दिलाया १९३८ में   एंग्लो इंडियन  पिता  और बर्मी  माता  के परिवार में जन्मी हेलेन जी ने अपने पिता को द्वितीय विश्व युद्ध में  खो दिया . तब वह माँ के साथ मुंबई आ गई . कक्कु ने उन्हें कोरस डांसर का काम १९५१ में दिलवाया फिल्म थी शबिस्तां और आवारा.



सुन्दरता और मादकता की  पर्याय थी 'हेलन जी'। उनकी खूबसूरती और नृत्य का खुमार सिनेप्रेमियों के जेहन में आज भी कायम है।

  • 'अलिफ लैला' (1953) में वह पहली बार बतौर सोलो डांसर नजर आईं।
  • इसके बाद 'हूर-ए-अरब' (1955),
  • 'नीलोफर' (1957),
  • 'खजांची' (1958),
  • 'सिंदबाद', 'अलीबाबा', 'अलादीन' (1965) जैसी फिल्मों में वह नजर आईं।
  • 1958 में आई फिल्म 'हावड़ा ब्रिज' के गाना "मेरा नाम चिन चि न चू' से हेलेन का जादू चलने लगा।
  • 'ये रात फिर न आएंगी "हुज़ूरेवाला गर हो इजा़जत
  • गुमनाम'इस दूनिया में जीना है तो
  • 'तीसरी मंजिल' का 'ओ हसीना जुल्फों वाली,कारवां' पिया तू अब तो आजा
  • 'जीवन साथी' का 'आओ ना गले लगा लो ना'
  • 'डॉन' का 'ये मेरा दिल प्यार का दीवाना
  • 'इंतकाम' का ‌ 'आ जाने जा
  • 'शोले' का 'महबूबा ओ महबूबा
  • आया तूफान हम प्यार किये जायेंगे
  • फिल्म जंगली का सुक्कु सुक्कु
  • ईनकार फिल्म में मुंगडा मै गुड़ की डली

    कितना गिनाऊ अनगिनत गानों पर उनके पॉपुलर डांस है। हेलेन के ज्यादातर गाने गीता दत्त और आशा भोंसले ने गाए हैं।उन्हें दो फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिल चुका है। गुमनाम के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस के लिए नामित भी की गयी। २००९ में पद्म श्री से सम्मानित हेलेन जी 700 ‌से ज़्यादा फ़ि्ल्में कर चुकीं हैं

  • Sunday, November 16, 2025

    वो आठ दिन

    सबने या काफी लोगों ने वो सात दिन फिल्म देखी होगी, एक सुन्दर सुखान्त फिल्म थी। पर मेरे लिए वो आठ दिन एक कैद जैसी थी। मैंने वो आठ दिन बिताये थे अस्पताल के क्रिटिकल केयर यूनिट या CCU में। ICU और CCU अस्पताल का कैदखाना होता है। आप न कही जा सकते है न आपके चाहने वाले आपके पास रुक सकते है। सिर्फ दो या तीन लोग 24 घंटे में सिर्फ दो बार आधे घंटे के लिए बारी बारी से मिल सकते है यानि एक के साथ सिर्फ दस मिनट। उसमें भी आप अपने कम उम्र नाती-पोता-पोती से भी नहीं मिल पाते चाहे उनमे आपका प्राण बसता हों। और वही तो चिंता होती है, CCU में रखा है, प्राण बचे न बचे। प्राण बचे तो ठीक यदि नहीं बचे तो ? सबको बिना देखे और बिना मिले निकल लेना पड़ेगा। प्राण जाने और वैराग्य का अनुभव भी कही लिखूंगा। अभी अपने आठ दिनों के कारावास पर ही कुछ लिखूंगा।

    ऐसे जब जो भी शुभचिंतक मेरा ब्लॉग पढ़ेंगे उनको यह बता दू, यह घटना दो महीने पुरानी है और अब मैं स्वस्थ्य हूं, चिंता की कोई बात बिल्कुल नहीं है।


    एक ICU का दृश्य, विकीपीडिया के सौजन्य से

    अच्छा भला चला था काठमांडू से दिल्ली के लिए। पर दिल्ली एयरपोर्ट चलने में थकान हो रही थी। पेट में गैस की शिकायत तो काफी दिनों से थी ही। दिल्ली में मैं पहले एक पेट के डाक्टर के पास गया, ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड में कुछ खास पता नहीं चलने पर नजदीक के अस्पताल में भर्ती हो गया। वहां ICU में में ले गए। आक्सीजन और ड्रिप से मैं शाम तक लगभग ठीक हो गया। मेरा माथा तब ठनका जब घर ले जाने के वजाय हमें ambulance में सुला कर आक्सीजन लगा ले जाने लगे। तब मुझे पता चला कि मैं बड़े अस्पताल Max Vaishali ले जाया जा रहा हूं और दिल की कुछ बीमारी है मुझे। इमरजेंसी में admit कर दिया ‌ इतना भी समय नहीं दिया कि मैं अपने पत्नी या बिटिया को बता सकूं कि मेरा insurance में दिल की बीमारी excluded है और मेरा आयुष्मान कार्ड के हिसाब से, एप्रुव्ड अस्पताल ही ले जाना था। बाद में जब बताया तो Max वालों आयुष्मान कार्ड से ईलाज करने से मना कर दिया जबकि बाद में देखा pmjay अस्पताल के लिस्ट में था उनका नाम।

    CCU में मुझे अजीब अजीब अनुभव हुआ। तीन shift में चलता है अस्पताल का काम पर विशेष यह है कि मौर्निंग और इवनिंग सिफ्ट 6 घंटे का होता है रात का सिफ्ट 12 घंटे का। सभी को महीने में 10 रोज रात्रि की पाली करनी ही पड़ती है। रात में मुख्य डाक्टर भी नहीं होते और सिस्टर लोगों के उपर ही होती है सारी जिम्मेदारी। सिफ्ट बदलने पर दृश्य कुछ देर chaotic होती है। किसी एक नर्स की ड्युटी रोटेशन से एक घंटे अधिक होती है ताकि वह जाने वाली नर्स से सभी बेड के मरीजों का लेकर आने वाली नर्स को समझा सके। टेक ओवर और हैंड ओवर की तरह। नई आई हर नर्स तीन बेड के मरीजों की देख भाल करती है, पर उन्हें एक बड़े से sheet पर कुछ भरना पड़ता फिर वे लैपटॉप पर कुछ डाटा डालती। उनके लिए ये काम शायद मरीजों के देखभाल से ज्यादा आवश्यक होगा, मैंने लैपटॉप पर काम करती नर्स से पानी मांग कर देख लिया था, अव्वल तो वे किसी और को कहेगी या झुंझला कर पानी देगी यह कहते हुए कि आपको ज्यादा पानी पीना मना है। यानि सिस्टम तो ठीक ही बनाया, पर मरीजों के देखभाल को कम अहमियत दी गई है, शायद कुछ और लोगों की जरूरत है जो डेटा इंट्री का ही काम करे। रात में आने वाली नर्स ज्यादातर ज्यादा धैर्यहीन और झुंझलाहट भरी होती थी, खास कर जो पिछले आठ दस रातों से नहीं सो पाई हो। शायद नर्स की संख्या बढ़ाने की जरूरत है ताकि कुछ नर्स बीच के एक दो रात की ड्यूटी करें ताकि 10 रातों की थकाने वाले सिड्युल से एक दो रातों का राहत मिलता। 8-8 घंटों का 6-2,2-10, 10-6 का सिफ्ट शायद सही होता पर तब सुबह सवेरे आना और रात देर से लौटना महिलाओं के लिए यहां सेफ नहीं होता होगा।

    विदेश का एक अस्पताल, विकीपीडिया के सौजन्य से

    पहले दिन मेरी देखभाल को आई नर्स ने अपना परिचय दिया, मेरा नाम प्रिया है और कोई जरूरत होने पर आप बुला लेना। मै चलने में तब असमर्थ था, ऐसे भी कैनुला ड्रिप लगा मरीज कैसे उठ कर जा सकता हैं। मेरी आवाज़ मे ताकत भी कम थी, और प्रिया, ड्रिप लगाने, दवाई खिलाने और खून निकलने तो आई पर बुलाने पर कभी नहीं। एक और प्रकार के सेवक होते हैं यहां जीडी भैया और दीदी- यह कर के ही बुलाते हैं उन्हें, चाहे वे बच्चे ही क्यों न हो। यह सारे वो काम करते जिसको करने के लिए कोई खास ट्रेनिंग नहीं चाहिए, जैसे ब्लड सैंपल लैब में ले जाना, मरीजों को वाश रूम ले जाना, पोर्टेबल टायलट ला देना, खाना खिलाना, पानी पिलाना इत्यादि। क्योंकि पूरे वार्ड में सिर्फ एक होते, आप अक्सर सिस्टर्स का चिल्लाना सुनेंगे "जीडी भैया" या "जीडी दीदी"। और वे सारे समय इधर उधर भागते नजर आएंगे। कभी जब लैब जाते या कोई इक्युपमेंट लाने लौटाने जाते तब दूसरी नर्सें इनके लिए चिल्लाती रहती। मुझे तीन जीडी याद रह गए एक प्रौढ़ मर्द जो शादीशुदा और दो पुत्रों के पिता थे और रात के शिफ्ट में थे। क्योंकि इन्हें दिन में सोने का मौका कम मिलता होगा ये कभी कभी मेरे क्युबिकल में बने बेंच पर छिपकर सोने आ जाया करते। और दो जो सुबह की शिफ्ट में आते और जिनका मैं इंतजार भी करता वे थे, मोहित जो B.A. की पढ़ाई के लिए ये नौकरी कर रहे हैं और दुसरी थी सना जिसके अब्बा दर्जी है तीन बहनों में बड़ी सना यह नौकरी अपने परिवार के लिए कर रही थी। बारहवीं की पढ़ाई के बाद सना ट्रेन्ड नर्स बनना चाहती है। दोनों 19-20 वर्ष के थे और उनकी यह पहली नौकरी थी। सना को मैंने अपने काम और वरदी पर गर्व करने वाला पाया। दोनों मेरे काम बड़ी प्यार से करते और आने जाने पर हाय या बाय करना न भुलते। मै भी उनके परिवार के बारे में पूछता और अपना आशीर्वाद भी देता रहता। जब मैं कमरे वाले वार्ड में शिफ्ट हो रहा था, सना मुझे wheel chair से खुद ले जाना चाहती थीं पर नर्स दीदी ने कुछ काम दे कर उसे रोक लिया। भगवान इनकी इच्छा पूरी करे। मेरे देख भाल में आई हर नर्स का मै नाम अवश्य पूछता। और कुछ के नाम याद रह गए, रश्मी, साधना और वंदना। जब साधना को मैंने बताया कि साधना मेरी फेवरिट हिरोइन थी तो पहले वो क्षेप गई पर बाद में इसका मजा भी लेने लग गई। जब मेरी पत्नी मुझसे मिल कर गई तब उसने पूछा अपनी मिसेज को अपने मेरे बारे में बताया, और मैंने उससे कहा "मैंने उसे बताया कि मैंने आज साधना के हाथ से खाना खाया"। इस पर वह हंस पड़ी। बता दूं मैं 76 वर्ष का हूं और सभी नर्स मेरी बेटियों समान थी‌

    भारत का एक सरकारी जिला अस्पताल

    एक दिन का वाकया मै बताना चाहूंगा। मेरे बगल वाले क्युबिकल में एक मरीज आए जिनको पेस मेकर लगा था। वे बार बार अपनी पोती का नाम लेकर पुकार या चिल्ला रहे थे। उन्हें एक हाथ और पैर नहीं हिलाना था। वे बार बार मना करने पर भी हाथ खींच रहे थे। एक बार कैनुला निकाल फेंका। एक रात किसी तरह संभाला पर अगली रात उन्हें कंट्रोल करना मुश्किल हो गया। उठ कर भाग जाने की कोशिश करने लगे। वंदना जिसके रात के शिफ्ट का दसवां दिन था वो थी उस रात। आज वो धैर्यहीन और खराब मूड में थी, उस पर ऐसा मरीज। कैनुला निकाल फेंकने पर में वो मरीज को धमका बैठी "आपको पता नहीं हम कहां कहां कैनूला लगा सकते हैं।" अब मरींज हत्थे से बाहर हो गया। उठ कर भागने की कोशिश करने लगा, दिल्ली वाली गालियां देने लगा और चैलेंज करने लगा "बहन.. (बहन‌ की गाली) ममता (जबकि नाम वंदना था) आ जा देखे कौन कैनुला लगाता है"। सभी चुप हो गए। पुरूष नर्स बुलाए गए, रात वाले डाक्टर, जो सो रहे होंगे, भी बे मन से आए। किसी तरह उन्हें कुछ दवा दे कर सुलाया गया। फिर सुबह में वरिष्ठ डाक्टर आए और उसे उठा कर उसे दिन है कि रात का प्रश्न करने लगे। दो रात मै सो ही नहीं पाया। खैर सुबह एक सिनियर मलयाली नर्स आई शीला मैडम। उसने बड़ी चतुराई से उसे संभाला। पहले भगवान की कसम दी हाथ नहीं हिलाने की फिर रूल के विरुद्ध जा कर इस मत ख़ब्त आदमी के पत्नी को बुला लाई और उसको बैठा कर यह देखने का जिम्मा सौंपा कि देखिए दायां हाथ हिलाने पर इनके जान पर बन आएगी‌ । इसके बाद वह नहीं चिल्लाया । हाथ हिलाने पर उसे ही डांट मिलने लगी ।
    अब यदि आप जानना चाहे अस्पताल का बिल कैसे प्रतिदिन का 30-50 हजार हो जाते हैं तो यह देखिए:

    ० हर खाने के पहले सुगर टेस्ट करते हैं जबकि आपको डाईबेटीज था ही नहीं, उस पर चाहे सुगर कुछ भी आए, खाना वहीं आएगा। बेस्वाद।

    ० सुबह शाम ब्लड टेस्ट करते करते आपका हाथ काला कर देंगे जैसे हर दिन खिलाए दवा का असर देखना चाहते हो। आप एक गिनी पिग बन जाते हो।

    ० आपको वार्ड में जगह नहीं मिल रही हो या शायद मिल भी रही तो भी CCU -ICU में एडमिट कर देना जहा छोटे-छोटे क्युबिकल का अधिक किराया वसूल सकें।

    ० आठ दिनों में मेरा तीन बार चेस्ट एक्स रे हुआ (जिसका फिल्म रिपोर्ट भी नहीं देते। )

    ० ECG-ECHO बार बार करना

    ० फार्मेसी बिल MRP पर लेना जबकि सभी दुकानों में आसानी से कुछ रिबेट अवश्य देते हैं।

    ० जो डाक्टर आपका इलाज नहीं कर रहा वह भी देख जाएंगे। उनके visit का भी चार्ज आपके बिल में होगा
    इत्यादि इत्यादि।
    बस आज का ब्लॉग थोड़ा बड़ा हो गया। क्षमा करें।

    Saturday, November 1, 2025

    रूठे रब को मनाना आसान है!

    वो है नाराज़ मैं हूं बेबस
    हो गई जिंदगी पूरी नीरस
    रातों में नींद न दिन में चैन
    जिंदगी बोझल पत्थर समान

    वो पुरब को तकते रहते
    मै पश्चिम को तकता रहता
    नैनों से जो कहीं मिल जाय नैन
    मोबाइल पर फिर झुक जाते नैन

    मै हू बीमार मै हूं पंगु
    चलता भी हूं मै ठुम्मक ठू
    उनको डर है कहीं गिर न पड़ू
    हूं उनकी नजर में गिरा पड़ा
    मुझको चिंता अब कैसे उंठू
    माफी मांगू चरणो मे गिरूं ?

    मुझसे गलती हो गई प्रिए
    कुछ जान बुझ कर नहीं किए
    कलापानी से बड़ी सजा ?
    है तुमने दिए हां तुमने दिए

    कुछ न्याय करो कुछ रहम करो
    इससे तो अच्छा होता अगर
    सौ सौ कोड़े लगवाती
    मुंह काला कर सर मुंडवा कर
    मुझे सारे शहर में घुमवाती
    मुझको मुर्गा बनवाती
    उठक बैठक करवाती

    हर क्षण में खामोशी है खलती,
    मन में बस यादें है पलती
    हर कोशिश में आँसू मिलते
    हर दिन महिनों से लगते

    हो माता तुल्य, है फिक्र तुम्हें
    कहीं खो न जाउं
    कहीं गिर न पडूं
    मै तो हूं वृद्ध मैं बालक हूं

    अब बहुत हुआ कर दो भी क्षमा
    बाकी की सजा देते रहना

    वो है नाराज़ मैं हूं बेबस
    जीवन है अनकहा सा बस।

    Monday, October 20, 2025

    राजा बलि और नेपाल का तिहार

    हमने दिवाली को राम के अयोध्या लौटने और यमुना को भाई यम को भोजनहमने दिवाली को राम के अयोध्या लौटने और यमुना को भाई यम को भोजन खिलाने से संबंधित कथा तो सुनी है, अब एक और कथा‌।
    महर्षि कश्यप सभी प्राणियों के पुर्वज माने जाते हैं। उनकी पत्नियां दिती और अदिति दक्ष प्रजापति की पुत्रियां थी। दिति दैत्यों की माता थी अदिति देवों की। दिति के दो पुत्र थे हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप। हिरण्याक्ष को अवतार और हिरण्यकश्यप को नरसिंह अवतार ने मारा। हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद विष्णु के भक्त थे। इन्हीं प्रह्लाद के पौत्र थे राजा बालि । तीनों लोक के स्वामी राजा बलि बहुत पराक्रमी थे और प्रजा वत्सल भी। इंद्र के प्रर्थना और देवों को देवलोक वापस दिलाने के लिए श्री विष्णु ५२ अंगुल के बौने वामन का रूप धर राजा बलि ९९ वें यज्ञ में पहुचें। इस यज्ञ के बाद बलि का इंद्र होना निश्चित था।

    तिहार के दूसरे दिन कुकुर पुजा
    वामन ने दानवीर बलि से तीन पग धरती के दान की कामना की। वामन के छोटे पैरों को देख तीन पग धरती का दान बलि को अपने यश के अनुरूप नहीं लगा और उन्होंने बहुत सारी गाएं और धरती के साथ धन का दान का प्रस्ताव रखा पर वामन ब्राह्मण अपनी तीन पग वाली बात पर अडिग रहे। बलि ने गंगा जल हाथ में लेकर तीन पग धरती दान कर दिए। तब श्री विष्णु अपने विशाल रूप में प्रकट हुए और दो पग में स्वर्ग और धरती दोनों नाप लिए। तीसरे पग के लिए बलि ने अपना सर प्रस्तुत कर दिया। विष्णु ने उसे सदा के लिए उसे पाताल भेज दिया जहां वह अब भी राज करता है।


    बलि सात चिरंजीवियों में से एक है। विष्णु ने बलि को वर्ष में एक बार अपने राज्य की प्रिय प्रजा के बीच वापस धरती पर आने का वरदान दिया। नेपाल में माना जाता है कि राजा बलि यमपंचक यानि तिहार (दिवाली) में धरती पर पांच दिनों के लिए आते हैं। उनके आने की खुशी में त्योहार मनाया जाता है और पारंपरिक गीत देवशी में राजा बलि से संबंधित लाइने भी होती है।

    Saturday, October 18, 2025

    फागुन का शोर

    आज फ़िजा में इतना शोर क्यों है?
    तमन्नाएं चीख पुकार कर रही
    मन शोर सुनने को तैयार क्यों है?
    फागुन के आने का सबब लगता है
    फागुन में इतना चमत्कार क्यों है?
    भवनाओं के ववंडर में फंस गया हूं
    पर इसमें फंसने का मलाल क्यों हूं‌?
    अमिताभ कुमार सिन्हा, रांची

    Friday, October 17, 2025

    कार के साथ बुरे फंसे

    एक घटना जिस पर मैंने अभी तक कोई ब्लॉग नहीं लिखा, AI से पापा के पहले कार का चित्र बनाने से याद हो आया। तब मैं शायद कालेज के दूसरे साल में था।
    यानि 1966 की बात है। पापा ने एक कार खरीदी पापा की या हमारे परिवार की पहली कार थी Austin of England, A40 । उस समय जो भी हमारे संयुक्त परिवार के सदस्य थे, यानि जिनका जन्म तब तक हो गया था, ने कभी न कभी इससे यात्रा जरूर की है। हमारे बड़े मौसेरे बच्चन भैया जो हमसे 14 वर्ष बड़े थे उनकी बारात भी इसी कार से लगी थी।


    मेरा वाकया तब का है जब मंडल जी धनबाद में कोलियरी की नौकरी छोड़ कर जमुई आ गए थे और हमारे यहां ड्राइवर लग गए थे। हम परिवार सहित किसी शादी में जा रहे थे । मां के साथ दीदी को छोड़ हम पांच भाई बहन, छोटी मां और संगीता, मंझली फुआ, नौकर गुलटेनवा और मंडल जी यानि कुल 11 जन यानि पांच बच्चे और अन्य बड़े थे। सामान में शायद तीन टिन के बक्स उपर बांधे गए थे और अन्य न जाने कितने सामान डिकी में थे। छोटी बहन मुकुल शायद तब तेरह बर्ष की थी और उसे भी मैंने बड़ो में ही गिना है। तीन लोग आगे और 8 पीछे की सीट पर। जाहिर है सभी बच्चे गोद में बैठे। सभी कष्ट के बावजूद कार की यात्रा तब की रेलयात्रा से आरामदेह था।
    किस्सा तब शुरू हुआ जब मैं कुछ देर ड्राइवर सीट पर बैठा । मैं शायद 16 या 17 का था और बेसिक गियर क्लच एक्सलेटर का सिन्क्रोनाइजेशन करना सीख चुका था। सिर्फ स्टेयरिंग पर कच्चा था। ठीक ठाक तो मुझे कभी नहीं आया। मैं कुछ दूर जाने के बाद ड्राइवर सीट पर बैठ गया। लेकिन गढ्ढे से भरे रोड पर कार चलाना बच्चों का काम नहीं है यह सबित होने लगा । जिस गढ्ढे से बचना चाहता था अक्सर चक्का उसी में चला जाता। सिर्फ एक बात मेरे हक में था कि रोड पर ट्रैफिक बहुत कम था। तब छोटे शहरो को ट्रेफिक कम ही होते थे।
    खैर कुछ दूर चलने के बाद कार टेढ़ी मेढ़ी चलने लगी। मैंने कार तुंरत रोक दी। मंडल जी ने चेक किया तो पता चला पिछले बांया चक्के के नट welded थे और जर्क के कारण weld टूट गए थे। हम किसी बस्ती के बजाय बहियार यानि सुनसान जगह पर थे दोनों तरफ खेत थे दूर कहीं कहीं खलिहान दिख रहे थे। तब खेतों की सिंचाई के लिए पंप का चलन नहीं था ओर खेतों में पंप के रक्षा के लिए रात में रूकने की जरूरत नहीं थी और रात और सुनसान हो जाती थी । मुझे छोड़ सिर्फ मंडल जी मर्द के श्रेणी में थे। हमने निर्णय लिया कि सभी महिलाओं और बच्चों को बस से वापस भेज दिया जाय। मंडल जी भी चक्का और नट बोल्ट खोल कर साथ ही चले गए ताकि घंटे डेढ़ घंटे में ठीक करा कर आ जाएं । अब सामान से लदी कार के पास 17 वर्ष का मैं और 11-12 वर्ष का गुलटेनवा ही रह गए।
    अब शुरू हुई हमारी असली आजमाइश । हम लगातार आने वाले रास्ते की ओर नजर गड़ाए थे जब भी कोई गाड़ी, मोटर साइकिल या बस जाती तो आस जग जाती कि मंडल जी शायद इसमें में हों। सभी गाड़ी वाले हमें अजीब सी नज़रों से देखते हुए निकल जाते । आखिर एक मोटर साइकिल वाला रुक कर यह बता गया कि मंडल जी जल्द आएंगे। एक घंटे बाद एक कार वाला हमें नाश्ता दे कर चला गया। फिर ऐसा ही चलता रहा और कोई गाड़ी रुकी नहीं। करीब चार बजे एक मोटर साइकिल वाला एक टिफिन दे गया जिसमें हमारा लंच था। हमारा धीरज जवाब देने लगा। और मंडल जी पर बहुत गुस्सा आने लगा। इतनी देरी लगनी थी तो बता देते, उपर लदे बक्से भी बस से भेज देते। डर भी लगने लगा । हमारी गाड़ी में लदे सामान सबको दिख रहे थे।
    धीरे धीरे शाम होने लगी।‌ करीब पांच बजे दो लंबे चौड़े आदमी लाठी लिए हमारे पास आए। अंदर से हम डर रहे थे और बाहर से हिम्मत दिखा रहे थे। उन्होंने कहा "एतना शाम हो गेलों ह अब तक गेल्हो नय"।
    कोई और समय होता तो मैं कहता तुमको मतलब? लेकिन मैं शांत रहा और बोला "चकवा पेंचर हो गेले हल। ड्राइवर साहब ले के गेले हथी अब आइबे करता "
    "रात होले जाल हो तोहरा सब के चल जाय के चाही दिन दुनिया ठीक नय हो। आगे बहुत छीना झपटी होय ह , जल्दीए इहा से चल जाहो" और उन्होंने एक नज़र कार के उपर लदे बक्सो पर और एक नजर हम पर डाला और वे चले गए।
    अब मैं उन्हें क्या बताता कि भाई साहब मुझे तो आप ही डाकू लग रहे हो। तुमने सामान देख लिया रक्षा करते सिपाहियों को भी परख लिया, क्या जाने दो चार धंटे बाद‌ तुम लोग फिर से आ जाओ।
    अंधेरा होने लगा था। चांद भी नहीं निकला था। हमने ग्लोव कम्पार्टमेन्ट से दो मोमबत्तियां निकाली और कार के आगे पीछे जला कर चिपका दी ताकि घर से कोई आता हो तो अंधेरे में भी कार दिख जाए। मैं मन ही अपनी स्ट्रेटजी बनाने लगा। हमें अब तक समझ आ गया था हम कार पर लदे सामानों की रक्षा नहीं कर सकते। कार का एक पहिया नहीं था कार वे ले नहीं जा सकते। बैट्री, टायर की चोरी तब शुरू नहीं हुई थी। अब मैं हिसाब लगाता हूं तो तीन बक्सों में रखे थे दुल्हे को देने के लिए 3 अंगूठीयां और तीन महिलाओं के जेवर । कम से कम 60 ग्राम सोना और बनारसी साड़ियां और नए पुराने कपड़े। आज के हिसाब से कम से कम 10 लाख के सामान थे‌। यानि रात तक कोई न आया तो हमें अपनी सुरक्षा की सोचनी थी। कार में सोना खतरे से खाली न था। क्यों न हम दूर उस पेड़ के नीचे रात बिताए दूर से गाड़ी पर नजर रखेंगे । मन ही मन चोर चोर चिल्लाने का अभ्यास करने लगा। चिल्लाने में गुलटेनवा माहिर था। फिर रात में सियार के आने का खतरा था। आग जलाने के लकड़ी कहा मिलती । मैंने कार में ही सोने का फैसला किया। डाकु आए तो उन्हें सब ले जाने दूंगा और अपनी घड़ी पर्स भी दे दूंगा।
    यह सब सोच ही रहा था कि एक कार की लाइट दिखाई दी। हमारी आशा जगी ही थी कि, "घबरहिओ नय भोला बाबु (मेरे छोटा बाबु यानि छोटे चाचा) आवों हथुन" कह कर ड्राइवर आगे निकल गया। अब जाकर चैन आया। थोड़ी देर में अपने एक सहकर्मी के मोटर साइकिल से छोटा बाबु आ गए। अब मैं पुर्णत: निश्चिंत हो गया। दर असल मंडल को चक्के के साथ दो मैकेनिक को भी लाना था। इसलिए कार की जरूरत थी। हमारे पड़ोसी डा० मुखर्जी अपनी कार देने में आनाकानी कर रहे थे। पापा भी घर पर नहीं थे।

    डा० मुखर्जी की गाड़ी ऐसी थी
    अंत में डा० साहब के दायां हाथ यानि ड्राइवर, कम्पाउन्डर और सहयोगी नीलू बाबू के उन्हें छोड़ कर चले जाने की धमकी ने असर दिखाया और उन्होंने कार दे दी। एक तो रिपेयर में देर लगी फिर हवा भरने के लिए बिजली आने का इंतजार करना पड़ा फिर कार मिलने का यह टंटा। कुछ देर के इंतजार के बाद कार आ गई, मैं मंडल जी पर बिगड़ पड़ा कि जब तक रिपेयर हो रहा था आप यहां आ जाते। खैर करीब आधे घंटे लगे और अपनी कार चल पड़ी । आधे घंटे बाद मुझे देख मां के आखों में आंसू आ गए। घर में सभी ने चैन की सांस ली। और अब हमने भी राहत की सांस ली ‌।

    अब यह न पूछना अगले दिन गए कि नहीं? वो किस्सा फिर कभी।

    Tuesday, October 14, 2025

    Poetry in motion

    ट्रक के पीछे लिखे स्लोगन सच में मजदार तो होते है ड्राइवर के दुखी जीवन के बावजूद उसके हसमुख होने का प्रूफ भी है। सभी यात्रियों ने सड़क पर पढ़ा हैं मैंने COMPILE किया देखे :
    Poetry in motion .. slogans behind trucks.
    "मालिक की गाड़ी, ड्राइवर का पसीना
    चलती है सड़क पर बन कर हसीना !!"

    "मालिक की ज़िंदगी बिस्कुट और केक पर
    ड्राइवर की ज़िंदगी एक्सिलेरेटर और ब्रेक पर!!"

    "पत्ता हूँ ताश का जोकर न समझना,
    आशिक हूँ तेरे प्यार का नौकर न समझना!!"

    "या खुदा क्यों बनाया मोटर बनाने वाले को,
    घर से बेघर किया मोटर चलाने वाले को!!"

    "ड्राईवर की ज़िन्दगी में लाखों इलज़ाम होते हैं,
    निगाहें साफ़ होती हैं फिर भी बदनाम होते हैं!!"

    "चलती है गाड़ी उड़ती है धूल
    जलते हैं दुश्मन खिलते हैं फूल!!"

    "दिल के अरमाँ आँसुओं में बह गये
    वो उतर कर चल दिये हम गियर बदलते रह गये !!"

    "कभी साइड से आती हो, कभी पीछे से आती हो
    मेरी जाँ हार्न दे देकर, मुझे तुम क्यों सताती हो!!"

    "रूप की रानी चोरों का राजा,
    मिलना है तो सोनिया विहार आ जा!!"

    "कीचड़ में पैर रखोगी तो धोना पड़ेगा
    गोरी ड्राइवर से शादी करोगी तो रोना पड़ेगा!!"

    "लिखा परदेस क़िस्मत में, वतन की याद क्या करना
    जहाँ बेदर्द हाकिम हों, वहां फ़रियादक्या करना!!"

    "पानी गिरता है पहाड़ से, दीवार से नहीं
    दोस्ती है हमसे, हमारे रोज़गार से नही!!"

    "बुरी नज़र वालों की तीन दवाई,
    जूता, चप्पल और पिटाई!!"

    सौ में नब्बे बेईमान फिर भी मेरा भारत महान ।

    काला कुरता, काला चश्मा, काला रंग कढाई का,
    एक तो तेरी याद सताए, दूजा सोच कमाई का

    दुल्हन वही जो पिया मन भाये,
    गाड़ी वही जो नोट कमाए

    अपनो ने मुझे लूटा गैरो में कहाँ दम था
    मेरी कश्ती वहॉ डूबी जहाँ पानी कम था

    टाटा में मै पैदा हुई हावड़ा में श्रृन्गार हुआ
    दिन रात सगं रहते रहते ड्राइवर से मुझको प्यार हुआ

    जगह मिलने पर पास मिलेगा

    हिम्मत हैं तो पास कर वर्ना बरदाश्त कर


    अनारकली, लद के चली।

    कुछ नए

    बुरी नजर वाले । तू सेल्फी ले ले

    2G 3G 4G जहाँ मिले बात कर लो जी

    जहाँ जहाँ हम है वहाँ वहाँ दम है।

    बुरी नजर वाले तेरे बच्चे जिए।
    जब तक जिए तेरा खून पिए।

    कमा के खा। नजर न लगा।

    धीरे चलोगे बार बार मिलेंगें
    वर्ना हरिद्वार मिलेंगें।

    दो गज की दूरी है बहुत जरूरी।

    प्रेम रंग

    प्रेम रंग
    प्रेम इक अहसास है इसे अहसास ही रहने दो यारों
    रंगों छंदों में इसे बांधने की जिद न करो
    किसी के आने से जब मन में खनक जग जाए
    किसी के जाने से जब मन में कसक जग जाए
    जब आंखों को पढ़ने का शउर आ जाए
    जब तारीफ सुन अपने पे गुरूर आ जाए
    जब किसी के आंसू तूम्हें बरबस तड़पा जाए
    जब किसी की बेरूखी न हो काब़िले बर्दास्त
    यही इश्क है यही इश्क है यही इश्क है जनाब
    जब भयानक ठंड हो और दे दो अपनी कंबल
    हो बारिश और तुम दे‌ दो जब अपना छाता
    जब ग़मगीन हो रोने को दे दो अपना कांधा
    समझो कि तुम्हें प्यार हुआ प्यार हुआ है प्यारे
    इसे मर्ज-ए मुहब्बत प्रेम या प्यार कह लो
    कौन सा रंग है यह, ये तो बताना मुश्किल है
    चाहो तो इसे प्रेम रंग कह लो यारो
    बिच्छोह का अलग मिलन‌ का अलग रंग होता है।
    कोई भी रंग हो यही तो प्रेम रंग होता है।
    अमिताभ, रांची

    तीज पर

    तीज का आशीर्वाद
    हर बोझ नारियों पर डाला
    हे राम ! तूने क्या कर डाला
    पति का जीवन अछुन्न रहे
    इसका व्रत भी करना उसको
    पुत्र की आयु अनंत बढ़े
    इसका व्रत भी रखना उसको
    उनके जीवन के खातिर भी
    क्यों कोई व्रत है नहीं बना
    पति भी किसी दिन निर्जल सोए
    क्यों ऐसा व्रत है नहीं बना
    नौ महीने अपने अंदर पाले
    पैदा करने का कष्ट सहे
    पाले पोसे, वाणी भी दे
    डगमग पग को रवानी भी दे
    जब नारी पत्नी बन जाय कभी
    आशीष भी पति जीवन का मिले !
    सौभाग्यवती रहो!
    क्या उसका जीवन कुछ भी नहीं?
    गर पति है पत्नी का सुहाग
    पत्नी भी है पति का सुभाग
    किसी एक बिन जग है अंधियारा
    संग दोनों चले तो है उजियारा
    प्रभु बना रखे दोनों का साथ
    यह है इस वृद्ध का‌ आशीर्वाद!
    अमिताभ सिन्हा, रांची

    Sunday, September 28, 2025

    चोभार

    काठमांडू के पाटन से आधा किलोमीटर दक्षिण किर्तिपुर के पास बागमती नदी पर प्रसिद्ध चोभर Gorge है, जो अब एक विश्व धरोहर स्थल है । हम हाल ही में वहां गए थे। झुला पुल से बागमती के उस पार गए और घर लौटने के पहले चाय पी। आइए इसके बारे में कुछ जाने ‌।

    काठमांडू घाटी प्राचीन काल में एक झील था। वैज्ञानिकों ने नाम दिया पैलियो-काठमांडू झील, जबकि स्वयंभू पुराण के अनुसार, यह झील नागों (पौराणिक सर्पों) और दिव्य प्राणियों का निवास स्थान थी। मंजुश्री द्वारा घाटी काटकर इस झील का पानी सुखाया गया, जिससे रहने योग्य भूमि का निर्माण हुआ और तौदहा झील जैसी अन्य झीलों का निर्माण हुआ।


    भूवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य :
    भूवैज्ञानिकों का मानना है कि यह घाटी एक झील थी । चोभर घाटी के पीछे का रहस्य यह है कि इसका निर्माण लम्बे समय तक प्राकृतिक कटाव से हुआ, जो संभवतः एक भूकंप के कारण शुरू हुआ, जिसने धीरे-धीरे प्राचीन पैलियो काठमांडू झील को सुखा दिया, जिससे घाटी और Gorge का निर्माण हुआ, जो जल निकास बिंदु बन गए।

    चोभार की पौराणिक कथा
    चोभर घाटी की पौराणिक कथा बोधिसत्व मंजुश्री पर केंद्रित है, जिन्होंने अपनी ज्वलन्त तलवार या वज्र से पहाड़ की ढलान को काटा, एक प्राचीन झील को सुखाया और घाटी को काटकर काठमांडू घाटी का निर्माण किया। बौद्ध और हिंदू दोनों परंपराओं में वर्णित इस घटना ने घाटी को रहने योग्य बना दिया और झील पर तैरते एक सुंदर कमल की पूजा करने के लिए ऐसा किया गया था। यह घाटी ऐतिहासिक, भूवैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व का एक महत्वपूर्ण स्थल है, जो काठमांडू की नींव से जुड़ा है।


    मंजु श्री श्यंभु महाचैत्य में
    कौन है मंजु श्री
    मंजुश्री महायान बौद्ध धर्म में ज्ञान के एक पूजनीय बोधिसत्व थे। श्यंभु महाचैत्य में है मंजु श्री की प्रतिमा जिसके एक हाथ में क्षान स्वरूप पुस्तक है और दूसरे हाथ में अज्ञान काटने वाला अग्नि युक्त तलवार या वज्र। हिन्दू मान्यतानुसार चोभार का निर्माण विष्णु जी ने अपने चक्र से किया।

    Thursday, August 21, 2025

    चालक रहित (Driverless) वाहन

    फ़र्ज़ करें आप रास्ते पर चले जा रहे हो और अचानक एक कार आपके सामने से गुजर जाती है और आप देख कर हैरान हो जाते हैं कि कार में ड्राइवर ही नहीं है। आप क्या सोचेगे? खुद से चलने वाली कार बाजार में आ गई हैं या डर जाएंगे कि कोई भूत चला रहा है?

    ड्राइवरलेस कार या autonomous कार का प्रयोगिक चलन कई अमेरिकन शहर जैसे फिनिक्स, लास एंजेलिस, सेन फ्रांसिस्को में जारी है । कई शहरों में ऐसी कार का उपयोग टैक्सी के रूप में शुरु भी हो गया है।
    आम लोगों के लिए ऐसी कार एक भुतहा कार लग सकती है। एक स्टडी के अनुसार ड्राइवरलेस टैक्सी में सफर करना थोड़ा परेशान करने वाला अनुभव हो सकता है, कई लोगों के लिए शुरुआत में थोड़ा डर और अनिश्चितता हो सकती है, लेकिन यह यात्रा करने का एक सुरक्षित और कुशल तरीका भी हो सकता है। कुछ लोगों को यह अनुभव वाकई डरावना लगता है, खासकर इसकी नवीनता। वहीं कुछ लोग इसे ज़्यादा पसंद करते हैं और पारंपरिक टैक्सियों की तुलना में इसे बेहतर भी पाते हैं।

    अमेरिका के फिनिक्स और औस्टिन शहर में उबर ने Baidu और Waymo जैसी कंपनियों के साथ साझेदारी का उपयोग करते हुए, चालक रहित कारों को बतौर टैक्सी तैनात भी कर दिया है । इन चालक रहित वाहनों को Uber की राइड-हेलिंग सेवा में एकीकृत किया जा रहा है, जिससे ग्राहकों को स्वचालित टैक्सी बुलाने का विकल्प मिलेगा । ऊबर वाले अन्य शहरों में भी भविष्य में इन चालक रहित टैक्सियों को लॉन्च करने की तैयारी कर रहे हैं। एक समाचार के अनुसार लोग 20-20 चालक सहित टैक्सी को decline कर रहे हैं ताकि उन्हें चालक रहित टैक्सी में सफर का अनुभव मिल सके।


    Waymo Taxi San Francisco, फोटो Wiki के सौजन्य से

    कैसे चलता है चालकरहित कार
    मैं स्टील रोलिंग मिल के कंट्रोल से वाकिफ हूं। इसमें एक mode होता है optimisation ! इस मोड में कंट्रोल सिस्टम में प्रयोग होने वाले फार्मुला हर बार थोड़ा update होता है और एक समय ऐसा आता है सिस्टम इतना perfect हो जाता है कि सही सही product बनने लगता है। यानि हर बार सिस्टम कुछ सीखता है और याद रख लेता है। यही learning process कृत्रिम बुद्घिमत्ता या arficial intelligence का आधार है। जब हम कार चलाते हैं तो हम रोड के दूसरे उपयोग कर्ता के action को predict कर लेते है और तो और रोड के गड्ढे भी हमें याद हो जाते है। Three C का गुरू मंत्र हमें corner, child and cattle से सावधान रहना अवचेतन अवस्था में भी सिखा देता है। मानव मष्तिस्क का यह optimisation ही चालक रहित वाहन में उपयोग होने वाले artificial intelligence के जड़ में है। आखिर सीखने के बाद कई जानवर भी सरकस में सायकल चला लेता है तो on board computer क्यों नहीं ? चालक रहित कार में हर तरह के सेंसर लगाने पड़ते हैं, आखिर मानव चालक कार में आंख, कान से देख सुन कर रोड के अवरोध, अन्य वाहन की स्थिति, सिग्नल के रंग, रोड पर के लेन मार्किंग, स्पीड लिमिट, वाहनों के हार्न, एम्बुलेंस के सायरन इत्यादि के अनुसार कार चलाते है। इन inputs को अपने अनुभव (यानि learning prpcess या मस्तिष्क के optimisation-जिसमें अन्य चालको के क्रिया प्रतिक्रिया का पुर्वानुमान भी सामिल है) के अनुसार analyze कर एक्सलेटर ब्रेक या स्टेयरिंग को दबाता या घुमाता है। कहना न होगा कि औटोमेटिक गियर वाली या एलेक्ट्रिक वाहन से क्लच पहले ही हट चुका है। लब्बो-लुआब यह है सब function तो चालक रहित कार में भी आवश्यक है। जिसमें सेंसर inputs को analyze करने और कार चलाने या कृयान्वित करने की जिम्मेदारी कार के optimized AI चलित ओन बोर्ड कंप्यूटर की होगी‌ आगे इस पर और चालक रहित कार के औटोमेशन लेवल पर भी चर्चा करेंगे।

    Robo racing car, फोटो Wikipedia के सौजन्य से

    चालक रहित कारों में सेंसर:
    ** कैमरे: लेन में बने रहने, ट्रैफ़िक संकेतों की पहचान और वस्तुओं का पता लगाने के लिए दृश्य जानकारी प्रदान करते हैं।

    ** रडार: वस्तुओं की दूरी और गति मापते हैं, विशेष रूप से प्रतिकूल मौसम की स्थिति में उपयोगी। धुंध में जब मानव की आंखें देख नहीं सकती, वैसे मौसम में भी इसके भरोसे चालक रहित कार चल सकती हैं।

    ** LiDAR (लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग): पर्यावरण का एक 3D मानचित्र बनाता है, जो विशेष रूप से वस्तुओं का पता लगाने और मानचित्रण के लिए उपयोगी है।

    ** अल्ट्रासोनिक सेंसर: पार्किंग सहायता जैसे नज़दीकी दूरी के पता लगाने के लिए उपयोग किए जाते हैं।

    ** इनके सिवा वाहन के आंतरिक स्थिति जैसे कार की स्पीड, acceleration, तापक्रम इत्यादि के लिए भी सेंसर होते है।

    चालक रहित कारों के लेवल:
    कई औटोमेशन feature मानव चलित कार में आने बहुत पहले से आते हैं जैसे ओटोमेटिक गियर, क्रूश कंट्रोल, कैमरा और proximity sensor / alarm. पर कई feature आते गए जिससे कार में कई आटोमेशन लेवल हो गए।

    सोसाइटी ऑफ ऑटोमोटिव इंजीनियर्स (SAE) इंटरनेशनल द्वारा कम कारों को परिभाषित किया गया है, जो स्तर 0 (नो ड्राइविंग ऑटोमेशन) से लेकर, जहाँ चालक का पूर्ण नियंत्रण होता है, स्तर 5 (पूर्ण ड्राइविंग ऑटोमेशन) तक है, जहाँ वाहन बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के, किसी भी परिस्थिति में, कहीं भी स्वयं चल सकता है। ये स्तर प्रौद्योगिकी की प्रगति को दर्शाते हैं।

    ** जहाँ स्तर 1-2 के लिए चालक की निरंतर निगरानी आवश्यक है,

    ** स्तर 3 के लिए चालक को विशिष्ट परिस्थितियों में पर्यवेक्षक बनने की अनुमति है, और

    ** स्तर 4-5 के लिए चालक की न्यूनतम या शून्य भागीदारी के साथ उच्च या पूर्ण स्वचालन की आवश्यकता होती है। ऐसे मेरी राय यह है कि मशीन सब कुछ सीख ले पर मानव मन के छठी इंद्री के सोच को नहीं समझ सकता।


    लदा फदा ट्रोला

    भारत में यदि ऐसी कार आ जाए
    अब आप कल्पना कीजिए भारत में सब कंटीनेंट के शहरो में ऐसी कार लांच हो जाय । उन जगहों में जहां लेन ड्राइविंग ठीक ठाक follow की जाती है ऐसी कार तो आराम से चल लेगी पर जब फास्ट लेन में धीमी ट्रक चल रही हो या तीन लेन घेर कर लदी फदी ट्रोला आगे आगे चल रही या मोटर साइकिल लेन कटिंग कर रहे हो तो ऐसी कार कितनी गति से चल पाएगी यह कोई भी अनुमान लगा सकता है। ऐसे बाइकर्स द्वारा लेन कटिंग तो अमेरिका यूरोप में भी होता ही है आजकल।‌ भारत में तो उन एक्सप्रेस वे पर भी बाइकर्स घुस जाते हैं जहां 2 wheelers बैन है। रास्ते पर पानी भरा हो या भयंकर बर्फ पड़ रही हो तो क्या ऐसी कार चल सकेगी ? पता नहीं।

    ट्रैफिक सब कन्टीनेंट में

    आशा है अब आप जब कभी भी स्वचलित कार देखेंगे तो उसे भूत चलित समझ कर नहीं डरेंगे, happy undriving !

    Tuesday, August 19, 2025

    धराली और ग्लोबल वार्मिंग

    पिछले वर्ष नवंबर में उत्तराखंड के सिलक्यारा टनेल में हादसा हो गया और कई दिनों तक कई मजदूर फंसे रह गए। तब मैंने एक ब्लॉग लिखा था। क्लिक कर पढ़ें। इस बार भी उत्तराखंड और अन्य पहाड़ी राज्य कई आपदाओं से जूझ रहा है। क्यों होता है ऐसा ? और क्यों हम इसे रोक नहीं पाते इसे। आईए विचार करें।

    हाल के दिनों में भारत के पहाड़ी राज्यों में अतिवृष्टि और भूस्खलन से होने वाली त्रासदी की कई घटनाएं हुई। हिमाचल के कई जिले के रास्ते अभी तक कटे बहे पड़े हैं। उत्तराखंड के धरौली में हुई तबाही के बाद होने वाले rescue की खबर अभी TV पर चल ही रही थी कि जम्मू-कश्मीर के किस्तवार में बादल फटने की घटना में 46 तीर्थ यात्रियों (जो मचैल देवी की यात्रा पर थे) के मृत्यु और अनेकों के घायल होने की खबर आ गई। और कल की बात करे तो कठुआ (J and K ) में बदल फटने की घटना ने सात लोगों की जान लेली । इसमें अन्य नुकसान सामिल नहीं है।


    धराली ABP / किस्तवार DD News के सौजन्य से

    पड़ोसी देश की बात करे तो पाकिस्तान के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान में अचानक आई बाढ़ से कम से कम 337 लोगों की मौत हो गई है, जबकि हाल के दिनों में क्षेत्र में अचानक आई बाढ़ के कारण दर्जनों लोग लापता हैं। इसी प्रकार के समाचार यूरोप और अमेरिका से भी आ रहे है।

    पाकिस्तान में बाढ़ 2025 हिन्दुस्तान टाइम्स के सौजन्य से

    पिछले वर्ष (२०२४) यूरोप में करीब ४ लाख लोग बाढ़ से पीड़ित हो गए और इस वर्ष heat wave से पूरा यूरोप परेशान है । अब अमेरिका (USA ) की बात करते है CNN के अनुसार इस वर्ष जुलाई तक "कभी फुर्सत और राहत का पर्याय मानी जाने वाली गर्मी अब चिंता और उथल-पुथल का मौसम बन गई है। जीवाश्म ईंधन प्रदूषण और अन्य जटिल कारकों ने इन महीनों को बढ़ते ख़तरे के दौर में बदल दिया है, जिसमें लगातार गर्म लहरें, भीषण जंगल की आग और विनाशकारी बाढ़ शामिल हैं।"

    USA में बाढ़ 2025, CNN के सौजन्य से

    इन सभी आपदाओं का कारण क्या है ? इसका उत्तर है हमारे वैज्ञानिको के पास, बस सारी मानवता लाचार सी सब देख रही है और कई जगहों पर तो मानव ही इन आपदाओं का कारण बनता नज़र आता है। इनको समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं है। कार्बन डाई ऑक्साइड और ऑक्सीजन साइकिल के बारे में ज़्यदातर लोगों ने पढ़ा ही होगा । प्रकृति ने एक ऐसा बैलेंस बनाया जिसमे कार्बन डाई ऑक्साइड को हमारे दोस्त वनस्पति / जंगल ऑक्सीजन में बदल देते है। हम अपनी CO2 बनाते है चाहे साँस लेने में या आग इत्यादि जलने में और प्रकृति उसे फिर ऑक्सीजन में बदल देती है इस तरह की CO2 और Oxygen की मात्रा वायुमंडल में स्थिर बनी रहे। लेकिंन मानव एक तरफ ज्यादा आग जलाता कर CO2 और गर्मी पैदा कर रहा है - कल कारखानों में , मोटर कारों में , हवाई जहाजों में और युद्ध में और दूसरी और CO2 को बदल कर ऑक्सीजन देने वाले जंगलों पेड़ों भी हम काट रहे है । नतीजा CO2 - ऑक्सीजन का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। अब यही कार्बन डाई ऑक्साइड ऊपरी वायुमंडल में एक सतह बना कर धरती में पैदा होने वाली गर्मी को अंतरिक्ष में जाने से रोक देती है ।

    धरती को कितनी गर्मी मिलती है और कितनी गर्मी धरती के वायुमंडल से बाहर चली जाती है इससे तापमान का एक संतुलन बनता है और वैश्विक औद्योगीकरण (१८५०-१९००) काल के पहले के संतुलन को आधार माना गया है - सभी अंतरास्ट्रीय समझौतों और प्रयत्नों के लिए। पेरिस समझौते के तहत, देशों ने वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को काफी हद तक कम करने पर सहमति व्यक्त की, ताकि दीर्घकालिक वैश्विक औसत सतही तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखा जा सके और इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयास जारी रहें। हालाँकि ज़्यादातर देश पेरिस समझौते का हिस्सा हैं, लेकिन ईरान, लीबिया और यमन सहित कुछ देशों ने या तो इसकी पुष्टि नहीं की है या इससे बाहर निकल गए हैं। नए प्रशासन के तहत, संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी समझौते से हटने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इन सब कारणों के अलावा मूमध्यीय प्रशांत महा सागर के उष्ण धाराओं के कारण होने वाले "एल नीनो" या "ला नीना" के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन इन समझौता का हिस्सा नहीं है।

    भारत ने निम्नलिखित लक्ष्य इस दिशा में स्थापित किए है और बहुत कुछ हासिल भी किया है : " गैर-जीवाश्म ईंधन (renewable energy ) से स्थापित क्षमता का 40% प्राप्त करने का लक्ष्य। 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य। 2.5 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने के लिए वन क्षेत्र का विस्तार करने की योजना। शुल्क और सब्सिडी में कमी के माध्यम से जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करना। जुलाई 2025 तक भारत में सौर ऊर्जा की स्थापित क्षमता 119 गीगावाट थी। लेकिन जब तक विश्व के सभी अति विकसित देश इस दिशा में अपने अपने लक्ष्य न बनाये या सक्रिय रूप में इस दिशा में कार्य नहीं करते Global Warming कम नहीं की जा सकती।

    निश्चित रूप से कोई एक देश अकेले Global Warming पर लगाम नहीं लगा सकता। पर त्रासदी के होने पर जान माल की हानि कम करने का प्रयत्न अवश्य कर सकता है। कहना न होगा की पहाड़ी क्षेत्रों में पर्यावरण बहुत नाज़ुक होता है और विकास के लिए किया प्रत्येक प्रोजेक्ट कुछ न कुछ हानि पंहुचा ही जाता है। मुझे याद है ८०'s तक गंगोत्री से हमारे पंडा जी जब जाड़ों में हमारे घर आते तो बताते की ऋषिकेश से ऊपर बहुत कम ही रोड है और उन्हें प्रायः पूरी दूरी पैदल तय करनी पड़ती है और अब हम चारधाम के गंगोत्री और बद्रीनाथ तक बस से जा सकते है और केदारनाथ और यमुनोत्री के काफी करीब तक रोड चली जाती है। हमने भी 2023 जून के उत्तराखंड ट्रिप में बहुत जगहों पर लैंड स्लाइड देखी थी। रोड , टनेल और जल विद्युत परियोजना सभी पहाड़ के लोगों के लिए आवश्यक है। पर शायद इनके सभी के planning /execution में हमसे कुछ कमी रह जाती है। या फिर इन विकास परियोजनाओं से पहाड़ी राज्यों पर पर्यटकों के आगमन पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। जहां पर्यटन से निवासियों की आमदनी बढ़ती वहीं इससे अनियोजित होटल , मकान, दुकान, होम स्टे भी बन जाते हैं। पेड़ कट जाते हैं वो अलग। पर्यटक भी पर्यावरण का उचित ख्याल नहीं रखते।

    यही कुछ धराली त्रासदी में जान माल के अत्यधिक नुकसान का कारण बन गया। समाचारों से जो निश्कर्श निकाला जा सकता है वह मैं आगे लिख रहा हूं । क्षीर गंगा नदी या गाद भागीरथी में मिलने के पहले एक त्रिकोणीय डेल्टा सा बनाता है। गंगोत्री तक बस आ जाने से यात्रियों की भीड़ प्रत्येक वर्ष बढ़ती जा रही है और धराली उनके खाने ठहरने का सबसे उपयुक्त और लोकप्रिय जगह बन गई है। नतीजन क्षीर गंगा के किनारे और उसके त्रिकोणीय डेल्टा पर कई होटल दुकान बन गये थे। लोग निश्चितं थे कि ये छोटी नदी अपने इन किनारों के बीच ही सीमित रहेगी। लेकिन जब अचानक से बहुत सी बारिश हुई तो ये छोटी नदी अपने प्राकृतिक रास्ते पर बह निकली ढ़ेरों मिट्टी और पत्थर के साथ। जब तक लोग संभलते सौ से अधिक लोग मलबों में दफन हो गए। भयानक बारिश से दो स्थान पर रोड भी बह गए, धंस गए और सहायता पहुंचने में देर भी हो गई। कई काम किए जा सकते हैं। पहला तो पर्यटक और कारों की संख्या परमिट इत्यादि से सीमित करना पड़ेगा। रोड जाम की समस्या से निजात भी तो चाहिए।


    चोप्ता में जाम 2023, cantilever रोड

    दूसरा कोई निर्माण स्थिर स्थलों पर हो , भूस्खलन संभावित क्षेत्र या नदी नालों के प्राकृतिक बहाव पर न हो। टनल भूस्खलन से निजात दिला सकता है, यदि इसके निर्माण में पहाड़ो के संतुलन को क्षति न पहुंचाई जाय। स्विट्जरलैंड में भूस्खलन संभावि स्थान पर कैंटीलीवर रास्ते जिन पर छत भी हो दिख जाते हैं । मैं जानता हूं कि रोड और पर्यावरण विशेषज्ञ के पास अवश्य कई और बेहतर विकल्प होंगे। आज बस इतना ही।

    Wednesday, August 13, 2025

    काठमांडू मनोरम मार्ग से

    मैं या हम कब पिछली बार बीरगंज से सड़क मार्ग से काठमांडू आये थे अब याद भी नहीं। शायद १९९५-२००० के बीच में एक बार काठमंडू सड़क मार्ग से गए होंगे । जब से हमारे दोनों बच्चे दिल्ली- NCR मैं रहने लगे है हमेशा दिल्ली होकर ही नेपाल की हवाई यात्राी की है। पहले भी कलकत्ता से काठमांडू की फ्लाइट ले लेते थे । हाल में रक्षाबंधन के दिन पत्नी का प्रोग्राम बना। भतीजी US से आई हुई थी और उन्हें, भाईयों को राखी बांधने का अवसर भी मिल रहा था (बताता चलूँ मेरी श्रीमती का मायका काठमांडू में हैं ) हमारे विवाह के बाद पहली बार यानि ५२ वर्ष बाद । मैंने रांची से शताब्दी और आसनसोल से मिथिला एक्सप्रेस में रिजर्वेशन कर लिया। सावन में जसीडीह तक भीड़ होने की संभावना थी पर AC2 डिब्बे में कोई भीड़ नहीं हुई और हम आराम से रक्सौल पहुंच गए । रक्सौल भारत नेपाल सीमा पर भारत का एक busy शहर है । पहले नेपाल के बीरगंज से काठमांडू तक हवाई यात्रा की प्लानिंग थी पर मेरे साले साहब डॉ बिमल काठमांडू से गाड़ी लेकर बीरगंज आ गए थे और हमें लेने रक्सौल स्टेशन तक अपने बीरगंज के मित्र रमेश जी की गाड़ी लेकर आ गए। हमें तो बहुत ही सुविधा हो गयी लेकिन स्टेशन रोड से कस्टम के बीच के रेलवे क्रासिंग ने बहुत परेशान किया। करीब १ घंटे लग गए।


    India rail info dot com के सौजन्य से

    हम बीरगंज में थोड़ी देर रूक कर और रमेश जी के यहाँ लज़ीज़ नाश्ता कर काठमांडू के लिए निकल पड़े । पत्नी जी ने रमेश जी को राखी भी बांधी। हमारा पिछले अनुभव मुग्लिंग हो कर काठमांडू जाने का था जिसमे 290 KM का रास्ता तय करने में करीब १०-१२ घंटे में लगते थे पर बिमल जी ने बताया की इस बार हमें कुलेखनी - दक्षिण काली ही कर जाना है और 135 KM के रास्ता तय करने में ४-५ घंटे ही लगने वाले थे । बीरगंज से हम अमलेखगंज - हेटौंडा होकर भैसे पहुंचे । अमलेखगंज के रास्ते में हम वो ढाबा ढूंढने लगे जहाँ का वर्णन हमने अपने एक बस यात्रा वाले ब्लॉग में किया था । पर कहाँ १९९० की बात और कहाँ २०२५ का परिदृश्य। जंगल काट कर कई घर , मकान , दुकान और होटल बन गए है। लिंक पर यहाँ क्लिक कर वो पुराना अनुभव भी पढ़ सकते है।

    भैसे से दो रास्ते अलग हो जाते है एक सिवभन्ज्याङ्ग - दमन - पालुंग -टीस्टुंग हो कर सबसे पुराना 'बाईरोड को बाटो' और दूसरा नया छोटा रास्ता। हम छोटे रास्ते के तरफ निकल लिए । ये रास्ता भीमफेदी हो कर जाता है । फ़ेदी का नेपाली शब्द है जिसका अर्थ है बेस जहां से पहाड़ शुरू होता है।


    अभी के (२०२५) के यात्रा के कुछ दृश्य

    मुझे काठमांडू यात्रा का अपना पहला अनुभव याद हो आया जब पता चला था की 'बाईरोड को बाटो' बनने के पहले यानि १९५० के पहले भीम फ़ेदी हो कर लोग पैदल काठमांडू जाए जाते थे और काठमांडू वैली की पहली कार भी इसी पैदल रास्ते से लोगों के कंधे पर गयी थी । मैं अपने पुराने ब्लॉग का लिंक यहाँ दे रहा हूँ। 1973 में की गई उस यात्रा ब्लॉग में मैंने लिखा था--

    "अमलेखगंज
    हम एक घंटे में अमलेखगंज पहुंच गए। पता चला पहले रेल गाड़ी यहाँ तक आती थी। गूगल करने पर पता चला की नेपाल सरकार रेलवे (NGR) नेपाल का पहला रेलवे था। 1927 में स्थापित और 1965 में बंद हुआ। 47 किमी लंबी ये रेलवे लाइन नैरो गेज थी और भारत में सीमा पार रक्सौल से अमलेखगंज तक था। आगे जाने पर चुरिया माई  मन्दिर के पास सभी बसें रुक रही थी। पूजा करके ही बसें आगे बढ़ती थी । हमारी बस भी रुकी। पूजा कर खलासी ने सबको प्रसाद बाटें। जब बस आगे बढ़ी तो चुरिया माई का महात्म्य पता चला। अब बस चुरे या टूटते पहाड़ों (Land Sides prone) के ऋंखला से गुजर रही थी।   अगला स्टॉप हेटौंडा था। यह एक औद्योगिक शहर है। अब यहाँ लम्बे पर सहज रास्ते से यानि महेन्द्र राज मार्ग से नारायणघाट और होकर मुंग्लिंग होते हुए भी काठमांडू जाया जा सकते है। तब ऐसा नहीं था। अगले स्टॉप भैसे ( एक जगह का नाम ) में एक छोटे पुल के पार बस रुकी दिन के खाने के लिए। इसके बाद चढ़ाई वाला रास्ता था, सो डर डर कर ताजी मछली भात खाये। अभी तक पुर्वी राप्ती नदी के किनारे किनारे चले जा रहे थे। रोड पर जगह जगह झरने की तरह स्वच्छ पानी गिर रहा था। नेपाली में इसे धारा कहते है। लोग इसी पानी में बर्तन कपडे धोने नहाने से लेकर पीने पकाने का पानी तक ले रहे थे। पानी ठंडा शीतल था और आँखों को बहुत अच्छा लग रहा था।

    भैसे ब्रीज,, काठमाण्डु की पहली कार, कन्धों पर

    रास्ते के बारे में पत्नी जी बताती जा रहीं थी। उन्होंनें बताया कि पहले तराई से काठमाण्डू घाटी लोग भीमफेदी होकर पैदल ही जाते थे। घाटी में पहली कार भी लोगों के कन्धे पर इसी रास्ते ले जाया गया था। 28 किमी का यह पैदल रास्ता लोग तकरीबन तीन दिनों मे पूरा करते थे। यह सोच कर मुझे घबराहट होने लगी कि यदि हमें भी पैदल जाना पड़ा तो कई बार 3000 फीट से 7000-8000 फीट चढ़ाई उतराई (रास्ते का चित्र देखें)   चढाई करते क्या मै सही सलामत पहुंच भी पाता?"

    भीमफेदी..भीमफेदी होकर पैदल रास्ता ऊंचाई का उतर चढाव देखे (AH42=त्रिभुवन राजपथ)

    पैसा वसूल मार्ग / दृश्य

    मैंने सोचा था पालुंग टिस्टुंग वाले रास्ते से अधिक scenic ये रास्ता थोड़े ही होगा। पर भैंसें से आगे बढ़ते ही मेरा कैमरा निकल आया। ऐसी वैली और ऐसे पहाड़। हमें दो बार 6000 फीट तक चढ़ना था और फिर उतरना था।


    चितलांग का नाशपाती, नाशपाती बगान

    पहले सुना था रास्ता संकरा और खतरनाक है, पर अब रास्ता काफी चौड़ा है। फिर भी सुमो शेयर टैक्सी वाले बहुत गंदा चलाते हैं और सावधानी की जरूरत है। पहाड़ बादलों से ढका था और कही कही मार्ग में दृश्यता काफी कम थी। सबसे ऊँची जगह से तो बादल हमारे नीचे दिख रहे थे और हम बादल के ऊपर।


    हिल टॉप रेस्टोरेंट , एक झरना

    यहीं पर है कुलेखानी जल विद्युत परियोजना है। कुलेखनी नदी जो बागमती की एक सहायक नदी है पर बांध बना है। इससे जो लेक बना है उसे ईंद्र सरोवर कहते हैं और यहां एक पर्यटक स्थल चितलांग भी है। तीन पावर प्लांट एक के नीचे एक लगाया गया है जो‌ कुल ६० मेगावाट बिजली पैदा कर सकता है। हम जब नीचे जा रहे थे तब पिछले साल बांध के दो फाटक के अचानक खोलने से होने वाले बर्बादी देखे । कई स्थान‌ पर सड़क बह गई थी और डाइवर्सन बनाए गए थे। नीचे उतरने के बाद फिर एक बार ६००० फीट की उंचाई तक जाना पड़ा जहां एक रेस्टोरेंट था। हम चाय सेल रोटी खाकर आगे बढ़ गए। एक तरह का नाशपाती यहां बहुतायत से होता है और उससे wine भी बनाया जाता है। जगह जगह फल के स्टाल लगे थे । हम भी चार किलो नाशपाती खरीद कर आगे बढ़े। दक्षिण काली और फारफिंग होते हुए हम काठमांडू पहुंचे।

    Monday, August 4, 2025

    हमारे पास के 2 और शिवमंदिर सावन में शिवधाम भाग 7

    सावन में शिव के धाम सीरीज का यह अंतिम क़िस्त है। इस भाग में दो शिव धामों का वर्णन करेंगे। अशोक धाम - लखीसराय , हरिहर महादेव सोनपुर !

    कुछ वर्ष बीत गए समस्तीपुर से लौटते समय मैंने ड्राइवर से पूछा कि अशोक धाम कहाँ है। हम उस मंदिर तक जाने वाली सड़क के बहुत पास थे। ड्राइवर ने चुटकी लेते हुए कहा, "वहाँ जाना चाहेंगे ?" और मैं उसके दिए प्रलोभन का विरोध नहीं कर सका और तुरंत मान गया।मनो शिव जी ने हमें दर्शन के लिए बुलाया था। हम उसी समय अशोक धाम गए थे, जिसे अब श्री इंद्रदमनेश्वर महादेव कहा जाता है।
    लगभग 52 साल पहले, 1973 में, अशोक नाम का एक 9-10 साल का बच्चा खेत में खेल रहा था, तभी उसे लगभग 20 फुट ऊँचे टीले से पत्थर जैसी कोई चीज़ झाँकती हुई दिखाई दी। जब टीले को खोदा गया, तो एक विशाल प्राचीन शिवलिंग मिला। कई अन्य प्राचीन कलाकृतियाँ और मूर्तियाँ भी मिलीं। उस समय अखबारों में कई लेख लिखे गए थे जिनमें दावा किया गया था कि यह स्थान वास्तव में हरिहर क्षेत्र है (जिसके बारे में भी मै इसी ब्लॉग में लिखनेवाला हूँ ) क्योंकि पास से हरोहर नदी बहती है।


    अशोक धाम लखीसराय

    अब यह जगह एक भव्य मंदिर परिसर के रूप में विकसित हो चुकी है, जिसमें एक सुंदर धर्मशाला आदि भी है। यह जगह लखीसराय से लगभग 5-7 किमी दूर है। वहाँ ली गई कुछ तस्वीरें यहाँ साझा की गई हैं। दर्शन करने लायक जगह है यह!


    अशोक धाम लखीसराय , एक चित्र विकिपीडिया से ली गई है

    हरिहर महादेव
    हम हाजीपर में था एक पारिवारिक कार्यक्रम में गए थे । हमारे पास एक दिन था और हमने वैशाली घूम लेने का फैसला लिया । एक और फैसला लिया गया की हम सुबह सिर्फ चाय पी कर चलेंगे .. सबसे पहले प्रसिद्द हरिहरनाथ मंदिर , वह पूजा करेंगे नाश्ता करेंगे और फिर निकल चलेंगे वैशाली के भग्नावशेष देखने ।
    हम लोग चौरसिया चौक के पास कन्हेरी घाट रोड की तरफ से मुड़ गए और गूगल मैप के सहारे चल पड़े । रास्ते में एक संकरा पुल पड़ा जो गंडक नदी के उपर था । इतना संकरा की दो गाड़िया मुश्किल से ही निकले। दोनों तरफ साइकिल और मोटर साइकिल के लिए भी पुल बने थे पर सभी साइकिल वाले बीच से ही चलते । जैसे ही पुल पार हुआ वो चौक आ गया जहाँ गज ग्राह की खूबसरत सी प्रतिमा लगी थी । हमने गाड़ी रुकवाई और एक दो फोटो खींच लिए ।


    हरिहरनाथ मन्दिर, गन्डक गन्गा सन्गम गज ग्राह मुर्ति चौराहा , सोनपुर

    वहां से हरिहरनाथ मंदिर नज़दीक ही था । हम लोग गंडक के किनारे किनारे बढ़े ही जा रहे की पता चला मंदिर था गेट और रास्ता पीछे ही रह गया । हमे थोड़ा पीछे जाना पड़ा । छोटा सा बाजार था । मिठाईयों की दुकान , पूजा से सामानों की दूकान , खिलोने वैगेरह की दूकान थी , एक मिनी देवघर।
    हम लोग एक दूकान पर रुक कर पूजा की डलिया, फूल, नारियल, सिंदूर, धुप बत्ती लेकर मंदिर की और गए। यहाँ तरह तरह के पंडा मिलते है जो सालाना पूजा के नाम पर रकम मांगते है। हम कुछ दे दिला कर मंदिर से बाहर आ गए और प्रांगण में कुछ भी फोटोग्राफी की ।

    हरिहर नाथ का इतिहास
    हरिहर क्षेत्र के महत्व को लेकर ग्रंथों में भगवान विष्णु व भगवान शिव के जल क्रीड़ा का वर्णन किया गया है। इस ग्रंथ के अनुसार महर्षि गौतम के आश्रम में वाणासुर अपने कुल गुरु शुक्राचार्य, भक्त शिरोमणि प्रह्लाद एवं दैत्य राज वृषपर्वा के साथ पहुंचे और सामान्य अतिथि के रूप में रहने लगे।
    वृषपर्वा भगवान शंकर के पुजारी थे। एक दिन प्रात: काल में वृषपर्वा भगवान शंकर की पूजा कर रहे थे। इसी बीच गौतम मुनि के प्रिय शिष्य शंकरात्मा वृषपर्वा और भगवान शंकर की मूर्ति के बीच खड़े हो गये। और इससे वृषपर्वा क्रोधित हो गये। और उन्होंने तलवार से वार कर शंकरात्मा का सिर धर से अलग कर दिया। जब महर्षि गौतम को इसकी सूचना मिली वे अपने आपको संभाल नहीं सके और योग बल से अपना शरीर त्याग दिये। अतिथियों ने भी इस घटना को एक कलंक समझा। इस घटना से दुखित शुक्राचार्य ने भी अपना शरीर त्याग दिया। देखते-देखते महर्षि गौतम के आश्रम में शिव भक्तों के शव की ढे़र लग गयी। गौतम पत्नी अहिल्या विलाप कर भगवान शिव को पुकारने लगी। अहिल्या की पुकार पर भगवान शिव आश्रम में पहुंच गये। भगवान शंकर ने अपनी कृपा से महर्षि गौतम व अन्य सभी लोगों को जीवित कर दिया। सभी लोग भगवान शिव की अराधना करने लगे। इसी बीच आश्रम में मौजूद भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु की अराधना किये। भक्त की अराधना सुन भगवान विष्णु भी आश्रम में पहुंच गये। भगवान विष्णु और शिव को आश्रम में देख अहिल्या ने उन्हे अतिथ्य को स्वीकार कर प्रसाद ग्रहण करने की बात कही। यह कहकर अहिल्या प्रभु के लिए भोजन बनाने चलीं गयीं। भोजन में विलम्ब देख भगवान शिव व भगवान विष्णु सरयू नदी में स्नान करने गये सरयू नदी में जल क्रीड़ा करते हुए भगवान शिव और भगवान विष्णु नारायणी नदी(गंडक) में पहुंच गये। प्रभु की इस लीला के मनोहर दृश्य को देख ब्रह्मा भी वहां पहुंच गये और देखते-देखते अन्य देवता भी नारायणी नदी के तट पर पहुंचे। जल क्रीड़ा के दौरान ही भगवान शिव ने कहा कि भगवान विष्णु मुझे पार्वती से भी प्रिय हैं। यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित होकर वहां पहुंची। बाद में भगवान शिव ने अपनी बातों से माता के क्रोध को शांत किया। ग्रंथ के अनुसार यही कारण है कि नारायणी नदी के तट पर भगवान विष्णु व शिव के साथ-साथ माता पार्वती भी स्थापित है जिनकी पूजा अर्चना वहां की जाती है। इसी कारण सोनपुर का पूरा इलाका हरिहर क्षेत्र माना जाता है। चूंकि यहां भगवान विष्णु व शिव ने जलक्रीड़ा किया इसलिए यह क्षेत्र हरिहर क्षेत्र (हरि= श्री विष्णु, हर= शिव जी) के नाम से प्रसिद्ध है।
    इसीलिए यह इलाका शैव व वैष्णव संप्रदाय के लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इसी हरिहर क्षेत्र में कार्तिक पूर्णिमा से एक माह का मेला लगता है। पहले तो यह पशु मेला के रूप में विश्वविख्यात था। लेकिन अब इसे और आकर्षक बनाया गया है।

    गज ग्राह की कहानी तो आपको पता ही होगा । जब गज की पुकार पर हरि दौड़े आये ग्राह यानि मगरमच्छ से गज की जान बचाई । पुराणों के अनुसार, श्री विष्णु के दो भक्त जय और विजय शापित होकर हाथी ( गज ) व मगरमच्छ ( ग्राह ) के रूप में धरती पर उत्पन्न हुए थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार, गंडक नदी में एक दिन कोनहारा के तट पर जब गज पानी पीने आया तो ग्राह ने उसे पकड़ लिया। फिर गज ग्राह से छुटकारा पाने के लिए कई वर्षों तक लड़ता रहा। तब गज ने बड़े ही मार्मिक भाव से हरि यानी विष्णु को याद किया। जिन्होंने प्रकट हो कर मगरमच्छ से गज को बचाया ।


    Tuesday, July 29, 2025

    इटखोरी सावन में शिवधाम भाग 6

    सावन में शिव के धाम पर एक सिरिज लिख रहा हूं। कई और शिव मंदिर के विषय में लिखने का मेरी इच्छा है। आज मैं इटखोरी के सहस्त्र शिवलिंग के विषय में लिख रहा हूं।

    इटखोरी रांची से १५० किलोमीटर दूर इटखोरी चतरा जिले का एक ऐतिहासिक पर्यटन स्थल होने के साथ-साथ प्रसिद्ध बौद्ध केंद्र भी है, जो अपने प्राचीन मंदिरों और पुरातात्विक स्थलों के लिए जाना जाता है। 200 ईसा पूर्व और 9वीं शताब्दी के बीच के बुद्ध, जैन और सनातन धर्म से जुड़े विभिन्न अवशेष यहां पाए गए हैं। पवित्र महाने एवं बक्सा नदी के संगम पर अवस्थित हैं इटखोरी का भद्रकाली मंदिर । मंदिर के पास महाने नदी एक यू शेप में है । कहा जाता हैं की कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ घर संसार त्याग कर सबसे पहले यही आये थे । उनकी छोटी माँ (मौसी) उन्हें मानाने यहीं आयी पर सिद्धार्थ वापस जाने को तैय्यार नहीं हुए तब उन्होंने कहा इत खोई यानि "I lost him here "
    हम कोरोना काल खत्म होने पर था तब गए थे वहां। इटखोरी मुख्यतः भद्रकाली मंदिर के लिए प्रसिद्ध है पर यहां सहस्र शिवलिंग और सहस्र बुद्ध के लिए भी प्रसिद्ध है।

    सहस्र शिव लिंग और सहस्र बोधिसत्व (स्तूप) सहस्त्र शिवलिंग मैंने पहली बार देखा था। मुख्य भद्रकाली मंदिर की पूजा के बाद हम शनि मंदिर, पंच मुखी हनुमान मंदिर और शिव मंदिर में पूजा करने गए । शिव लिंग करीब ४ फ़ीट ऊँचा है और उस पर १००८ शिव लिंग उकेरे हुए हैं । राँची वापस जाते समय पद्मा के पास एक बहुत अच्छी चाय पी थी और लौटते समय पद्मा गेट (रामगढ राजा के महल का गेट जो अब पुलिस ट्रेनिंग केन्द्र है)  के पास चाय पी और जब पता चला बहुत अच्छा कम चीनी वाला पेड़ा मिलता हैं तो खरीद भी लाया ।

    इटखोरी में श्रावण मेला, जिसे भदुली मेला भी कहा जाता है, एक धार्मिक आयोजन है जो मां भद्रकाली मंदिर में आयोजित होता है। यह मेला श्रावण (सावन) के महीने में लगता है, जो हिंदू कैलेंडर का एक पवित्र महीना है, और भगवान शिव और देवी काली को समर्पित है।

    Monday, July 28, 2025

    जमुई कोर्ट मंदिर सावन में शिव के धाम भाग -5

    सावन में शिव के धाम पर एक सिरिज लिख रहा हूं। कई और शिव मंदिर के विषय में लिखने का मेरी इच्छा है। पर मैं उस शिव मंदिर को कैसे भूल सकता हूं जिससे मेरे बचपन की अनेकों यादें जुड़ी हैं। जमुई कोर्ट में स्थित है 100 वर्ष से भी प्राचीन मंदिर। हमारे पुश्तैनी मकान से कुछ ही दूर स्थित जमुई सिविल कोर्ट परिसर में तब कोई बाउंड्री नहीं थी। हम बच्चों का खेल का मैदान । जमुई स्टेशन से घर आते वक्त हमारा टमटम इसी परिसर हो कर गुजरता था। हम जमुई के हाई स्कूल भी इसी परिसर होकर जाते छठ में हम लोग कियूल नदी घाट भी इधर हो कर ही जाते। हमारा रास्ता तो बंद हो गया है, और अन्य रास्तों पर लगे हमेशा के अवरोध कोई नहीं हटाता।

    इस शिव मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित है। कुछ मुर्तियां ताखों पर स्थापित है। एक पुराना हनुमान मंदिर भी है जहां ध्वजा भी स्थापित है। बरामदा चारों तरफ है और पहले उत्तर के तरफ एक चबूतरा बना था। अब कुछ और मुर्तियां भी स्थापित की गई है।



    इस परिसर में ही हम लट्टू, गुल्ली डंडा, गोली (कंचे) खेलते। इस परिसर में एक पेड़ भी था। जिस पर अंधेरा होने पर भूत होने का वहम हम बच्चों को था और शाम होने पर हम दौड़ कर जाते हैं। और तो और कैंची हो कर सायकल चलाना भी मैंने यही सीखी। इसी परिसर में हैं एक बहुत प्राचीन शिव मन्दिर। बचपन में इस मंदिर में मोहल्ले के भजन कीर्तन होते रहते थे और मैं हमेशा झाल बजाने चला जाता था। परिवार के हर तरह के पुजा पाठ, विवाह के बाद गोर लगाई इत्यादि इसी मंदिर में होती आई है और अब भी होती है। मंदिर के बाउंड्री के पार मां लोग बरगद के नीचे वर पूजा के लिए जाती थीं‌। किसी बात पर गुस्सा होने पर और कभी कभी सुई के डर से छिपने की जगह भी थी यह। अब कई नए मंदिर पास में ही बन गया है पर इस मंदिर की बात अलग है। अब इस मंदिर की बाउंड्री गेट बन गई है और एक देवी मंदिर और यज्ञशाला भी बन गया है ‌। इस मंदिर के फर्श पर पहले जहांगीर लिखा होता था। हमारे ननिहाल कमला, बेगुसराय के कोई जहांगीर बाबा थे। शायद पुलिस में थे और उन्होंने ही इस मंदिर को बनवाया था। अब उनका नाम टाईल्स के नीचे दब गया है।

    मैं अतीत की सुखद स्मृति में खो गया हूं। आइए हम वर्तमान में वापस चले। कुछ अन्य मंदिरों के बारे में कुछ और ब्लॉग ले कर फिर हाज़िर होऊंगा।

    Thursday, July 24, 2025

    महादेव सिमरिया सावन में शिव के धाम भाग -4

    सावन के महीने में शिव दर्शन के लिए यात्राओं और आस पड़ोस की मंदिरों पर समर्पित है मेरा यह ब्लॉग सीरीज ।
    अब मैं उन शिव धामों के बारे में लिख रहा हूं जो हमारे नजदीक है और मैं वहां जा चुका हूं। इस ब्लॉग मे महादेव सिमरिया

    महादेव सिमरिया मेरे पुश्तैनी शहर जमुई (बिहार) से 12 km दूर है यह मंदिर। इस मन्दिर का इतिहास भी काफी रोचक है।
    जमुई। सिकन्दरा-जमुई मुख्यमार्ग पर अवस्थित बाबा धनेश्वर नाथ मंदिर आज भी लोगों के बीच आस्था का केंद्र बना हुआ है। जहा लोग सच्चे मन से जो भी कामना करते हैं उसकी कामना की पूर्ति बाबा धनेश्वरनाथ की कृपा से अवश्य पूरी हो जाती है। बाबा धनेश्वर नाथ शिव मंदिर स्वयंभू शिवलिंग है। इसे बाबा वैद्यनाथ के उपलिंग के रूप में जाना जाता है। प्राचीन मान्यता के अनुसार यह शिवमंदिर प्राचीन काल से है। जहां बिहार ही नहीं वरन दूसरे राच्य जैसे झारखंड, पश्चिम बंगाल आदि से श्रद्धालु नर-नारी पहुंचते हैं। पूरे वर्ष इस मंदिर में पूजन दर्शन, उपनयन, मुंडन आदि अनुष्ठान करने के लिए श्रद्धालुओं का ताता लगा रहता है।


    मंदिर परिसर, और परिसर स्थित एक भग्न मुर्ती

    मंदिर की सरंचना एवं स्थापना
    इस मंदिर के चारों और शिवगंगा बनी हुई है। मंदिर का मुख्य द्वार पूरब दिशा की ओर है। मंदिर परिसर में सात मंदिर है जिसमें भगवान शंकर मंदिर के गर्भगृह में अवस्थित शिवलिंग की स्थापना को लेकर मान्यता है कि पुरातन समय में धनवे गाव निवासी धनेश्वर नाम कुम्हार जाति का व्यक्ति मिट्टी का बर्तन बनाने हेतु प्रत्येक दिन की भाति मिट्टी लाया करता था। एक दिन मिट्टी लाने के क्रम में उसके कुदाल से एक पत्थर टकराया। उस पर कुदाल का निशान पड़ गया। उसने उस पत्थर को निकालकर बाहर कर दिया। अगले दिन पुन: मिट्टी लेने के क्रम में वह पत्थर उसी स्थान पर मिला। बार-बार पत्थर निकलने से तंग आकर धनेश्वर ने उसे दक्षिण दिशा में कुछ दूर जाकर गडढे कर उसे मिट्टी से ढक दिया। उसी दिन मानें तो जैसे रात्रि महाशिवरात्रि सा लग रहा था। कालांतर में वहां एक मंदिर स्थापित किया गया


    महादेव सिमरिया में श्रावणी मेला

    गिद्धौर के महाराजा ने की मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा
    ऐसी मान्यता है कि १६ वीं शताब्दी में गिद्धौर (यानि चंदेल वंश) के तत्कालीन महाराजा पूरनमल सिंह हर दिन देवघर जाकर शिवलिंग पर जल चढ़ाने के उपरांत ही भोजन किया करते थे। एक बार जब वे सिकन्दरा, लछुआड़ में थे तब रास्ते में पड़ने वाली किउल नदी में बाढ़ आने के बाद वे कई दिन नदी पार कर देवघर नहीं जा पाए। रात्रि में स्वप्न आया कि मैं तुम्हारे राज्य में प्रकट होउंगा। सिकन्दरा से देवघर जाने के दौरान सुबह सबेरे महादेव सिमरिया के शिवडीह में लोगों की भीड़ देखकर राजा वहां पहुंचे तो स्वत: प्रकट शिवलिंग पाया। जैसा उन्हें देवघर के भगवान शंकर ने स्वप्न में बताया था। राजा ने वहां एक भव्य मंदिर बनाया और स्वप्न के अनुसार देवघर में पूजा का जो फल प्राप्त होता है वहीं महादेव सिमरिया की पूजा से प्राप्त है। चुकि कुंभकार की मिट्टी खुदाई के दौरान यह शिवलिंग प्रकट हुआ था। इस कारण महादेव सिमरिया में ब्राह्माणों की जगह आज भी कुंभकार ही पंडित का कार्य करते हैं।

    हम 2018 में वहां गए थे और पूजा अर्चना की थी। महादेव सिमरिया शिव मंदिर जमुई -सिकंदरा मार्ग पर मुख्य सड़क से कुछ 300 मीटर पर स्थित है और जमुई और सिकंदरा दोनों से करीब है। जमुई हावड़ा - पटना रेल मार्ग का एक स्टेशन है और सिकंदरा का भी करीबी रेल स्टेशन है। सिकंदरा नवादा या लक्खीसराय से भी सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है।

    Tuesday, July 22, 2025

    वैद्यनाथ धाम सावन में शिव के धाम भाग -3

    सावन के महीने में शिव दर्शन के लिए यात्राओं और आस पड़ोस की मंदिरों पर समर्पित है मेरा यह ब्लॉग सीरीज ।
    अब मैं उन शिव धामों के बारे में लिख रहा हूं जो हमारे नजदीक है और मैं वहां जा चुका हूं।
    बैद्यनाथ धाम, देवघर आज मैं देवघर,झारखण्ड स्थित बैद्यनाथ धाम की बात करूंगा मेरे Home Town जमुई से मात्र 100 KM पर स्थित है यह देव स्थान। हम बचपन से जाते रहे है। हमारे परिवार के सारे शुभ कार्य मुन्डन वैगेरह यही होते रहे है। जाने का सबसे सुलभ तरीका है रेल से जाना। पटना हो कर हावड़ा से दिल्ली रेल रथ पर स्थित जसीडिह ज० से देवघर 8 KM की दूरी पर है और जसिडीह से लोकल ट्रेन या औटो से देवघर जाया जा सकता है। हम कई बार ट्रेन, कार या बस से देवघर जा चुके है पर कांवर ले कर सुल्तानगंज से जल ले कर पैदल - नंगे पांव बाबा दर्शन को जाना रोचक और रोमांचक दोनो था ।


    हमारी कांवर यात्रा के कुछ दृश्य

    मैंने पांच बार प्रयास किया है। मै एक ग्रुप के साथ 4 बार 100-105 KM कि०मी० यह यात्रा पूरी कर चुका हूँ सावन के महिने में प्ररम्भ में या अंत में। पहली बार मै अकेले ही निकल पड़ा था लेकिन पक्की सड़क और धूप को avoid करना चाहिए यह ज्ञान न होने के कारण और गैर जरूरी जोश के कारण 20 कि०मी० की यात्रा के बाद ही पांव में आए फफोलो ने मेरी हिम्मत तोड़ दी और साथ साथ चलने वाले कांवरियों के लाख हिम्मत दिलाने पर भी आगे नहीं जा सका और रास्ते में पड़ने वाले एक शिवालय में ही बाबा को जल अर्पण कर लौट आया। बिन गुरू होत न ज्ञान रे मनवां। कावंर यात्रा में मेरे गुरू बने मेरे छोटे बहनोई सन्नू जी और उनके छोटे भाई। उन्हें परिवार सहित कांवर में जाने का 14-15 साल का अनुभव था और मैने बहुत कुछ कांवर के बारे में उनसे हीं सीखा। जब मैं बच्चा था तो उमर गर (senior citizen) बबा जी मामू को कांवर पर हर वर्ष जाते देखता था। गांव से ही कांवर ले कर चलते सिमरिया घाट पर ही जल भर कर वे नंगे पांव चल पड़ते थे यानि 50 सांठ मील की अतिरिक्त यात्रा। पहले सरकार के तरफ से कुछ प्रंबध नहीं होता और यात्री भी कम होते थे अतः राशन साथ ही ले चलना पड़ता होगा। जगह जगह रूक कर खाना पकाना खाना नहाना। कंकड़ पत्थर पर चलना खास कर सुईयां पहाड़ पर, या लुट जाने का खतरा झेलते यात्रा करनी पड़ती थी। अब सावन में रोड के किनारे मिट्टी डाला जाता है और, जगह जगह खाने पीने की दुकानें भी सज जाती है। कई संगठनों द्वारा सहायता शिविर, प्रथम उपचार केन्द्र, मुफ्त चाय, नाश्ता, पैर सेकने को गरम पानी और मेले सा माहौल से ये यात्रा काफी सुगम हो गई है। जगह जगह धर्मशालाएं है। लेकिन अब भी यदि अषाढ़, सावन, भादों को छोड़ दिया जाय तो अन्य दिनों में ये यात्रा बहुत सुगम नहीं हैं। मैने गजियाबाद के प्रवास के दौरान कावड़ यात्रियों को देखा है,जो ज्यादा लम्बी यत्राएं करते हैं पर जो बात देवघर कांवर यात्रा को कठिन बनाती है वह है नंगे पांव चलने का हठयोग। मै इस यात्रा का रूट नीचे दे रहा हूँ।


    कांवर यात्रा का रूट
    बाबा मंदिर के कुछ दृश्य:


    बासुकीनाथ और बाबा बैद्यनाथ मंदिर

    बैद्यनाथ के दर्शन को आने वाले भक्त बासुकीनाथ जाना नहीं भूलते। एक कहावत प्रचलित है बैद्यनाथ यदि सिविल कोर्ट है तो बासुकीनाथ फौजदारी कोर्ट है जहां न्याय जल्दी मिलता है। लोग यहां का प्रसिद्ध पेड़ा (बाबा मंदिर के पास) या बासुकीनाथ के रास्ते में पड़ने वाले घोरमारा गांव से भक्त खरीद कर प्रसाद के रूप में घर ले जाते हैं।

    इस सीरीज के अगले ब्लॉग में कुछ और मंदिरों के बारे में।