ऐसे तो ब्लॉग का शीर्षक में "खट्टा मीठा" लिखा है पर मेरा अनुभव पढ़ने के बाद आप पूछेंगे इसमें मीठा क्या है ? तो मैं कहूंगा अनजान लोगों से मिले मदद और उनका प्यार जो हर खराब अनुभव को भी मीठा बना देता है और हम कह उठते है । धन्यवाद। मेरी कहानियां तब की है जब ट्रेनें कम थी , शताब्दी , वन्दे भारत , जन शताब्दी , हम सफर और अन्य आरामदायक ट्रैन का चलना शुरू नहीं हुआ था। उस वक्त बिहार में सरकारी बसें एक जगह से दूसरे जगह जाने का प्रमुख साधन हुआ करती थी। प्राइवेट बसों का चलन शुरू हो चुका था। प्राईवेट बस उन्हीं रूटों पर चलती जिन पर सरकारी बसों की सेवा न हो। वॉल्वो मर्सडीज जैसे बसों का तो किसीने नाम भी नहीं सुना था। मैं कुछ तीन बस यात्राओं का वर्णन करूंगा । दो तीन ब्लॉग में।
रांची का बस अड्डा और BSTC की एक बस
पहली यात्रा जिसका वर्णन मैं इस ब्लॉग में करूंगा वह मैंने १९९० के आस पास किया था। मुझे अकेले रांची से जमुई (मेरा पुश्तैनी घर) जाना था। सरकारी बस रांची से मुंगेर जाती थी पर जमुई हो कर नहीं चलती पर एक प्राइवेट बस तब जमुई तक रात में चलने लगी थी। 3x 2 बसें होती थी। ढंड का समय था मैंने इसी बस की एक टिकट ले ली। आगे की दो सीट महिलाओं के लिए होती थी। मैं तीसरी सीट के Aisle के तरफ बैठ गया। रात की बस थी हाजारीबाग पहुंचते पहुंचते लगभग सभी यात्री सो चुके थे। स्टाफ के आपसी बात व्यवहार से लग रहा था ड्राइवर इस रूट पर पहली बार गाड़ी चला रहा था। कहां रूकना है कितनी देर रूकना है खलासी कंडक्टर ही बता रहे थे। रात के दो बजे हमारी बस खाना खाने के लिए रजौली रूकी। पहले की गई यात्राओं से मैं जानता था कि बस यहां डेढ़ घंटे रूकेगी , और यहां न रूकी तो नवादा में तो अवश्य रूकेगी। नवादा से सिकंदरा के बीच तब रात में गाड़ियां नहीं चला करती या फिर कारवां बना कर दो तीन बस को पुलिस escort कर चंद्रदीप पोलिस पोस्ट तक पार करा देती। रजौली के इस प्रसिद्ध ढ़ाबे में मैंने भी तड़का रोटी और तस्मय (एक प्रकार का खीर) खाई और बस में बैठ गया। आश्चर्य हुआ जब बस तुरंत चल पड़ी और नवादा में भी सवारी उतार कर बिना रुके आगे बढ़ गई। कंडक्टर, खलासी ने ड्राइवर को न रोका न खतरे से आगाह किया। गाड़ी का सेल्फ खराब था और ड्राइवर इंजन चालू रख रहा था या फिर गांड़ी ढ़लान पर पार्क कर रहा था।
गाड़ी ठीक ठाक चल रही थी पर कादिरगंज से कुछ ही कि० मी० आगे जाने पर ड्राइवर को दिख गया कि रास्ते को पेड़ काट कर जाम कर दिया गया है। उसने स्पीड तेज कर पेड़ के दाएं से गाड़ी उछलाते कुदाते बस निकालानी चाही पर लूटेरों ने ड्राइवर पर गोली चला दी। शीशा को छेद कर गोली अंदर आ गई पर ड्राइवर बाल बाल बच गया और और तुरंत बुद्धि लगा कर बस की सारी लाईट बंद कर यात्रियों के बीच बैठ गया। लूटेरे के पास शायद सिर्फ एक ही कट्टा था पर यात्री सभी डर गए थे। उनके पास टार्च, माचिस कुछ नहीं था। तीन चार लूटेरे बस पर चढ़ गए और ड्राइवर को ढ़ूढने लगे और बाडी लाइट जलाने की कोशिश करने लगे। असफल होने पर वे सबसे अंधेरे में, या धुंधलके में ही रुपया, घड़ी मांगने लगे। मैंने अपने जेब में रखे पैसे में से आधा नीचे गिरा दिया और पैर से उसे आगे वाली सीट के नीचे खिसका दिया। सुन रखा था पैसे छिपाने या चालाकी दिखाने पर ये मार पीट पर उतर आते हैं।
सम्राट मोटल रजौली और इससे २७ KM दूर ककोलत झरना
अभी लुटेरे मेरे पास आते उसके पहले एक छोटी गाड़ी की लाइट दिखी और सारे लूटेरे पुलिस गाड़ी समझ कर बस से उतर कर कही छिप गए। क्योंकि बस को स्टार्ट करने के लिए धक्का देना होता ड्राइवर इस मौके का फायदा नहीं उठा सका। छोटी गाड़ी किसी और तरफ मुड़ गयी शायद उन्होंने रास्ता बंद देख कर माजरा समझ लिया होगा। खतरा टल जाने पर तीन चार लुटेरे दुबारा बस में चढ़ गए और पैसे घड़ी मांगने लगे। और तो और रोशनी करने के लिए पैसेंजर से मैच बॉक्स भी मांगने लगे और कोई बेवकूफ माचिस देने भी लगा था पर पास वाले पैसेंजर ने रोका । सभी के सामान जिसमे मेरा सूटकेस भी था लुटेरे उतार ले गए । मैंने बिना हील हुज्जत घड़ी और पर्स से पैसे निकल कर दे दिए। मैंने समझा सीट के नीचे फेंके पैसे बच गए पर लुटेरों को पैसेंजर की इस हरकत का पता था और उन्हें फेका हुआ पैसा दिख गया । मैंने भी उठा कर तुरंत देते हुए कहा मेरा नहीं है । धुंधलके में उन्हें मेरा ओवरकोट खाकी रंग का दिखा और उसने गाली देते पूछा किस थाना से हो और इसी शक में मेरा जेब को सर्विस रिवाल्वर के लिए टटोलने लगे। मैंने उससे कहाँ की मैं रांची में पढ़ाता हूँ। थोड़ी देर में सभी के सूटकेस वापस रख कर वे गायब हो गए।
नवादा जिला का एक गावं और जमुई जिला का चंद्रदीप थाना
बस के स्टाफ अब थोड़े उजाले की प्रतीक्षा करने लगे । जब कुछ गाड़ियां चलने लगी तब कंडक्टर किसी गाड़ी से लिफ्ट ले कर नज़दीकी थाने गया और रिपोर्ट लिखा आया। करीब घंटे भर बाद थाने की गाड़ी आई और सभी पैसेंजर का बयान लिया गया। मैंने भी रु ८००/- और घडी की रिपोर्ट लिखा दी। फॉर्मेलिटी पूरी होने पर धक्का देकर बस को स्टार्ट किया गया और थाने ले जाया गया और कुछ कागजी कार्यवाही के बाद हम अपने सफर पर निकल पड़े । शुक्र है मोबाइल नहीं होते थे नहीं तो कॉल करने और जवाब देने में सभी परेशान हो जाते और मोबाइल छिना जाता सो अलग। अब मैंने लूटेरों द्वारा वापस लाया अपना सूटकेस खोला। अच्छे कपड़े शर्ट पैंट को छोड़ एक शाल ले गए और पैंट के जेब में रखे रु ३०० /- बच गए। मैंने महसूस किया मेरे रुपये बचा देख कंडकर / खलासी थोड़े निराश हो गए। ऐसे मै जजमेंटल नहीं होना चाहता पर मुझे लगा ड्राइवर को छोड़ (जिस पर गोली चली थी) बाकि दोनों शायद इन लूट में हिस्सेदार थे और इसलिए ड्राइवर को बस का रजौली / नवादा में डेढ़ दो घंटे रुकने का रूटीन नहीं बताया। लूटने वाले अत्यंत गरीब और नव सिखुआ लुटेरे लगे। इसलिए सिर्फ शाल ले कर गए और उनके व्यवहार में भी कठोरता नहीं थी और वे घोर अपराधी नहीं लग रहे थे। मेरे साथ घटित यह अकेला बस डकैती की घटना थी , इसके सिवा सिर्फ एक बार चोरों ने ट्रेन में चेन काट कर मेरा ब्रीफ केस उतरा था।
ऐसा ही था मेरा ब्रिफकेस , पाटलिपुत्र एक्सप्रेस
1990 की ही बात है। ् पाटलिपुत्र एक्सप्रेस जो पहले धनबाद से पटना के बीच चलती थी और जमुई में रुकती थी, हटिया से खुलने लगी थी, खुलने का समय रात दस बजे । रिजर्वेशन के नाम पर सिर्फ तीन स्लीपर कोच लगा करते थे। मैं इसी ट्रेन से अकेले जमुई जा रहा था । ट्रेन प्रायः खाली थी। उपर की बर्थ पर एक सज्जन जसीडीह जो उनका ससुराल था जा रहे थे। बातुनी शख्स थे। ससुराल में होने वाली शादी समारोह से लेकर पत्नी के साथ अनबन सहित अनेक व्यक्तिगत बातें मुझे बता गए। कुछ बातें फुसफुसाते हुए भी। मै सामने नीचे की बर्थ पर था और लांग सर्विस अवार्ड के तौर पर मिले वि० आई० पी० के ब्रीफकेस को सीट के नीचे चेन से लॉक कर थोड़ी देर बाद सो गया। धनबाद में चाय वालों ने इतना हल्ला मचाया कि नींद टूट गई। चाय पी कर फिर लेट गए। उपर वाले ने कहा अब क्या सोना 4-5 स्टेशन के बाद जसीडीह आ ही जाएगा। पर हम कब सो गए पता न चला। नींद खुली कुल्टी में। बोगी में हल्ला गुल्ला कन्ना पिट्टी मची थी। आगे के बर्थ पर से कईयों के सामान चोरों ने उतार लिया था। उपर वाले भी जग गए, उन्होंने अपना माथा पीट लिया, सर के नीचे से ब्रीफ केश चोर ले उड़े और उनकी नींद न खुली। वो 10000/-रूपए ससुराल में होने वाली शादी के लिए ले जा रहे थे और बिटीया के लिए कपड़े और पायल । वे अब आगे जाना ही नहीं चाह रहे थे। मैंने उन्हें दिलासा दिला कर किसी तरह शांत किया और बाॅगी में अन्य लोगों की चोरी के बारे में जानने को चला गया। सभी आश्चर्यचकित थे कि बाॅगी में सभी इतनी गहरी नींद में कैसे सो गए कि किसीकी नींद नहीं खुली। मैंने तो चेन लगाई थी और निश्चिंत था। मैं अपने बर्थ पर आ कर बैठा और अपना सामान देखने की गरज से चेन का ताला खोलने लगा। जी धक से रह गया जब टूटा चेन और ताला हाथ में आ गया, ब्रिफकेस के बिना। खैर कुछ खास तो था नहीं पर एक तो ब्रिफकेस महंगा वाला था और दूसरे मेरा लांग सर्विस अवार्ड भी था। टीटी आया तो मेरे साथ और पीड़ितों ने FIR लिखने की बात की। इधर उधर की बात और कानून सिखा कर वो चलता बना, काश तब रेल मदद जैसा कुछ होता । अभी बस इतना ही। अगले ब्लॉग में एक और बस यात्रा के साथ हाजिर होऊंगा ।
क्रमशः।
Wednesday, May 21, 2025
बस #यात्रा ओं का खट्टा मीठा अनुभव
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