Sunday, May 18, 2025

वो कुछ नहीं कहते



उनको ये शिकायत है कि
हम कुछ नहीं कहते
कुछ कहता हूं तो कहते हैं
वो बात कहां है?
कुछ न कहूं तो कहते हैं
अल्फ़ाज़ कहां है?
कभी फुसफुसाहट भी
हम सुन लेते थे साफ साफ
अब वो कहें तो मैं कहूं
कुछ कह रहे हो क्या?
यह उम्र का तकाजा है
मुहब्बत फिर भी नहीं है कम
हर धर्म हर मजहब से
उपर है जज्बा-ए-मुहब्बत
कुछ न कहो फिर भी
समझ आता है मुहब्बत
वतन हो, दर हो, दरिया हो
हम हों, तुम हो, कायनात हो
बुत हो, देवता हो, दिल हो
या कोई अज़ीज़,‌ मुहब्बत है तो
सब है न हो तो शब भी नहीं,
सुबह भी नहीं।

अमिताभ कुमार सिन्हा, रांची

1 comment:

  1. बहुत खूब। कहने को बहुत कुछ था, जब आप कहने को आए...!

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