तब की बात अलग थी
हम फुसफुसाहट भी
साफ साफ सुन समझ लेते थे।
अब तो वो बोलते है कुछ
मै सुनता कुछ और हूं
समझ कुछ और लेता हूं।
और तो और मैं बोलता कुछ हूं।
वो जो भी सुनते है पहले उसमें
व्याकरण की गलतियां निकालते हैं
फिर मैं बताई गलतियां सुधारता हूं
तो वो फिर गलतियां निकालने लग जाती है
और हमारी बातचीत यूं ही
आधी अधूरी चलती ही रहती है।
उन्हें शिकायत है मैं बात नहीं करता
मुझे शिकायत है आप सुनती कब है?
उन्हें भी शिकायत है आप सुनते कब हो ?
मैं जानता हूं यह सब उम्र का तकाजा है
पर जब तक शिकायत है तबतक प्यार है
अहसास है, फिक्र है, मुहब्बत है।
अमिताभ कुमार सिन्हा, रांची
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