सावन में शिव के धाम पर एक सिरिज लिख रहा हूं। कई और शिव मंदिर के विषय में लिखने का मेरी इच्छा है। आज मैं इटखोरी के सहस्त्र शिवलिंग के विषय में लिख रहा हूं।
इटखोरी रांची से १५० किलोमीटर दूर इटखोरी चतरा जिले का एक ऐतिहासिक पर्यटन स्थल होने के साथ-साथ प्रसिद्ध बौद्ध केंद्र भी है, जो अपने प्राचीन मंदिरों और पुरातात्विक स्थलों के लिए जाना जाता है। 200 ईसा पूर्व और 9वीं शताब्दी के बीच के बुद्ध, जैन और सनातन धर्म से जुड़े विभिन्न अवशेष यहां पाए गए हैं। पवित्र महाने एवं बक्सा नदी के संगम पर अवस्थित हैं इटखोरी का भद्रकाली मंदिर । मंदिर के पास महाने नदी एक यू शेप में है । कहा जाता हैं की कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ घर संसार त्याग कर सबसे पहले यही आये थे । उनकी छोटी माँ (मौसी) उन्हें मानाने यहीं आयी पर सिद्धार्थ वापस जाने को तैय्यार नहीं हुए तब उन्होंने कहा इत खोई यानि "I lost him here "
हम कोरोना काल खत्म होने पर था तब गए थे वहां। इटखोरी मुख्यतः भद्रकाली मंदिर के लिए प्रसिद्ध है पर यहां सहस्र शिवलिंग और सहस्र बुद्ध के लिए भी प्रसिद्ध है।
सहस्र शिव लिंग और सहस्र बोधिसत्व (स्तूप)
सहस्त्र शिवलिंग मैंने पहली बार देखा था। मुख्य भद्रकाली मंदिर की पूजा के बाद हम शनि मंदिर, पंच मुखी हनुमान मंदिर और शिव मंदिर में पूजा करने गए । शिव लिंग करीब ४ फ़ीट ऊँचा है और उस पर १००८ शिव लिंग उकेरे हुए हैं । राँची वापस जाते समय पद्मा के पास एक बहुत अच्छी चाय पी थी और लौटते समय पद्मा गेट (रामगढ राजा के महल का गेट जो अब पुलिस ट्रेनिंग केन्द्र है) के पास चाय पी और जब पता चला बहुत अच्छा कम चीनी वाला पेड़ा मिलता हैं तो खरीद भी लाया ।
इटखोरी में श्रावण मेला, जिसे भदुली मेला भी कहा जाता है, एक धार्मिक आयोजन है जो मां भद्रकाली मंदिर में आयोजित होता है। यह मेला श्रावण (सावन) के महीने में लगता है, जो हिंदू कैलेंडर का एक पवित्र महीना है, और भगवान शिव और देवी काली को समर्पित है।
Tuesday, July 29, 2025
इटखोरी सावन में शिवधाम भाग 6
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