ऐसी मान्यता है की विद्या और कला की देवी का जन्म या अवतरण वसंत पंचमी के दिन हुआ था और इसलिए सरस्वती पूजा इसी दिन मनाई जाती है। बचपन में यह एक उमंगो वाला त्यौहार था और कई यादें भी जुडी है इससे। हमारे मोहल्ले में एक सरस्वती पूजा का आयोजन एक वकील साहेब के खाली पड़े मकान में हर साल मनाया जाता। इस माकन में दोनों तरफ आधे अष्टकोण के आकर के कमरे दोनों तरफ बने थे और पूजा हम इन दोनों कमरे ने बीच के बरामदे में करते थे। वे लोग पापा से एक मोटी रकम चंदे में ले जाते (और सिर्फ यही एक बाद मुझे पसंद नहीं थी )। हम तीन दोस्त थे तब मै मेरा दोस्त भोला और एक और जिसका नाम भूल रहा हूँ वह भी भोला के बगल में ही रहता था। हम लोग सरस्वती पूजा से दो दिन पहले से प्रायः पूरे समय पूजा स्थान में ही रहते। रंगीन कागज को तिकोने काटना। उसे लम्बी मूज़ के पतली रस्सी पर लेई से चिपकते। और बड़े लोग उसे पुरे आहाते में बांधते । अहाते का पर तोरण बांधे जाते तब एक ब एक माहौल खुशनुमा, उत्साह , उमंग और आनंद से भर जाता। पूजा के एक दिन पहले लाउड स्पीकर आ जाता जो बैटरी से चलता था। एक बार मुझे प्रसाद को दोने में भरने और बांटने का भी काम मिला था। प्रसाद वितरण का काम मिलना तब एक उपलब्धि थी। रात में तब पेट्रोमैक्स रखा जाता सरस्वती माता के मूर्ति के पास। घर की औरते शाम के बाद ही निकलती दर्शन करने के लिए।
एक बार हम बच्चों ने सरस्वती पूजा को खुद से भोला के बरामदे में करने का प्रोग्राम बनाया । रसीद तो अजंता प्रेस वालों ने यू ही छाप कर दे दी बिना किसी पैसे लिए। उस पर क्या नाम लिखवाया याद नहीं या शायद किसी और पूजा समिति वाला रसीद दे दिया होगा। पर बहुत कम लोगों ने चंदा दिया । पापा ने हमलोगों की हिम्मत देख कुछ ज्यादा ही दिया , पर जब चंदा बहुत कम जमा हुआ तो हमने वो पैसे भी मोहल्ले वाले पूजा समीति को दे दिया।
ज्ञान सरस्वती मंदिर , बसर , गोदावरी नदी , तेलंगाना
सभी पूजा समिति वाले अपना अपना पंडाल खूब सजाते , मोहल्ले से बेहतर सजे हुए कई पंडाल हम देख भी आते। जमुई पुरानी बाजार का पंडाल अक्सर सबसे अच्छा सजता। जब १९५७ में बिजली आ गयी तब मोटर लगा कर हंस के पंख उठने गिरने वाले लगा देते। देवी माँ के पीछे पंखा लगा कर चक्र या प्रभा मंडल बनाया जाता। चुन्नू मुन्नू बल्ब लगाए जाते। स्कूल में भी पूजा होती। हर पंडाल में जा कर प्रसाद ले कार आना भी जरूरी काम होता।
फिर हम पटना चले गए। यहाँ भी पंडाल बनते , एक तो हमारे टुइशन वाले स्कूल में भी पर वह उत्साह , उमंग तब कहाँ ? पीला वसंत का प्रतीकात्मक रंग है। पीला रंग जो प्रकाश , ऊर्जा , शांति और आशा का प्रतीक है , शायद इसीलिए लोग, खास कर स्त्रियाँ , बच्चियां इस दिन पीले वस्त्र पहनती है ।
कुछ फल सरवती पूजा के बाद ही खाने का भी रिवाज़ है जैसे बेर , मिश्री कंद !
आज बस इतना ही। सरस्वती पूजा की सबको शुभकामना।
Really good description of travel in to time lines of childhood.
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