Tuesday, February 13, 2024

विश्व रेडियो दिवस

मै पहले अपने एक पुराने ब्लॉग से एक पारा उद्धृत कर रहा हूँ। हमारे घर पर ५०'s में फूफा जी का एक वाल्व रेडियो था। तब हमारे शहर में बिजली नहीं आयी थी और तब यह रेडियो जो एक वाल्व वाला रेडियो था स्टैक बैटरी पर जो शायद ११० वाल्ट का था पर चलता था। छत पर एक ऐन्टेना लगाते थे जिसके पॉर्सेलेन के दो गोटिया या इंसुलेटर होता। इन गोटियों के टूट जाने पर हम चूड़ी को उपयोग में लाते और उनके बीच एक तार लगाते और तार में एक और तार जोड़ कर रेडियो के एंटेना वाले सॉकेट में डाल देते। मेरा पुराना ब्लॉग :-

First in my list is a valve radio which ran on a pile battery ( I think it was 110 V DC).The radio - probably a Murphy- was in a working condition, but many times needed battery replacement from Patna, only elders used to enjoy predominantly Sehgal songs. Later we got more modern radio working on electricity.


आज वर्ल्ड रेडियो दिवस है। गूगल पर पता चला की 13 फरवरी 1946 में संयुक्त राष्ट्र रेडियो की शुरुआत हुई थी. इस वजह से अंतरराष्‍ट्रीय रूप से रेडियो दिवस मनाने के लिए 13 फरवरी की तारीख को चुना गया. इसे संयुक्त राष्ट्र रेडियो की वर्षगांठ के तौर पर सेलिब्रेट किया जाता है. हर साल इस दिन की एक थीम निर्धारित होती है. साल 2024 की थीम है- 'Radio: A century of informing, entertaining and educating'.
ऐसे तो सबसे पहले जगदीश चंद्र बोस ने रेडियो तरंगो को ७५ फ़ीट तक भेजा (नवंबर 1895 में, बोस ने कलकत्ता के टाउन हॉल में एक सार्वजनिक प्रदर्शन प्रस्तुत किया, जहां उन्होंने 75 फीट तक एक विद्युत चुम्बकीय तरंग भेजी, जो दीवारों से होकर गुजरती हुई दूर से घंटी बजाती थी और कुछ बारूद विस्फोट करती थी) लेकिन उन्होंने इसके अविष्कार के प्रदर्शन में देर कर दी। गुग्लिल्मो मोरकोनी ने वर्ष 1896 को रेडियो का पेटेंट रिकॉर्ड लिया और इसक बाद उन्हें रेडियो का आधिकारिक अविष्कारक मान लिया गया। 24 दिसंबर 1906 को कैनेडा के वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेसेंडन ने रेडियो ब्रॉडकास्टिंग के द्धारा संदेश भेजकर रेडियो प्रसारण की शुरुआत की।
बिखरे हुए दर्शकों तक पहुंचने के उद्देश्य से संगीत और बातचीत का रेडियो प्रसारण प्रायोगिक तौर पर 1905-1906 के आसपास और व्यावसायिक रूप से 1920 से 1923 के आसपास शुरू हुआ। वीएचएफ स्टेशन 30 से 35 साल बाद शुरू हुए। शुरुआती दिनों में, रेडियो स्टेशन लॉन्गवेव, मीडियमवेव और शॉर्टवेव बैंड पर प्रसारण करते थे, और बाद में वीएचएफ और यूएचएफ पर प्रसारित होते थे। शुरुआत में रेडियो को वायरलेस टेलीग्राफी कहा जाता था. इसी से इसका नाम वायरलेस पड़ गया. वहीं रेडियो ट्रांसमिशन के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द 'ब्रॉडकास्टिंग' असल में कृषि से जुड़ा हुआ था जिसका मतलब था 'बीज को बिखेरना'.


  • भारत में रेडियो ब्रॉडकास्ट की शुरुआत 1923 में हुई. 1930 में 'इंडियन ब्रॉडकास्ट कंपनी' (IBC) दिवालिया हो गई और उसे बेचना पड़ा. इसके बाद 'इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस' को बनाया गया. 8 जून 1936 को 'इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस', 'ऑल इंडिया रेडियो' बन गया.
  • 1947 में आकाशवाणी के पास छह रेडियो स्टेशन थे और उसकी पहुंच 11 प्रतिशत लोगों तक ही थी. आज आकाशवाणी के पास 223 रेडियो स्टेशन हैं और उसकी पहुंच 99.1 फ़ीसदी भारतीयों तक है.
  • अगर आपने आकाशवाणी को सुना है, तो आप इसकी सिग्‍नेचर ट्यून से जरूर वाकिफ होंगे. इस अनूठी और असाधारण सिग्नेचर-ट्यून को चेकोस्लोवाकिया में जन्मे कंपोज़र वॉल्टर कॉफ़मैन ने बनाया था. तीस के दशक में वॉल्टर कॉफ़मैन मुम्बई आकाशवाणी के वेस्टर्न म्यूज़िक डिपार्टमेंट में कंपोज़र का काम कर रहे थे. उसी दौरान उन्होंने ये ट्यून बनाई थी. इस धुन में आपको तानपूरा, वायलिन और वायोला सुनाई देता है.
  • टेलीविज़न के आने के बाद शहरों में रेडियो के श्रोता कम होते गए, लेकिन एफएम रेडियो ने एक बार फिर से रेडियो जगत में क्रांति लाने का काम किया और आज एफएम रेडियो भी लोगों की लाइफ का अहम हिस्‍सा है.

    अमेच्योर रेडियो की शुरुआत रेडियो तरंगों के अविष्कार के साथ हो गयी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका में इसे प्रतिबंधित कर दिया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी को शंका थी की आमच्योर रेडियो को जासूसी के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है पर आमच्योर रेडियो के मानवीय कार्यो के लिए उपयोग उसके गलत उपयोग के भारी पड़ता है। आपमें से कुछ को याद होगा रेडियो और टीवी सेट के लिए पहले लाइसेंस लेना पड़ता था। अब भी लाइसेंस लेना पड़ता है आमच्योर रेडियो ऑपरेटर के लिए। भारत में 22,000 से अधिक लाइसेंस प्राप्त उपयोगकर्ताओं द्वारा एमेच्योर रेडियो या हैम रेडियो का अभ्यास किया जाता है। पहले शौकिया रेडियो ऑपरेटर को 1921 में लाइसेंस दिया गया था, और 1930 के दशक के मध्य तक, भारत में भी लगभग 20 शौकिया रेडियो ऑपरेटर थे। ये ऑपरेटर आपदाओं के समय बहुत ही उपयोगी सिद्ध होते रहे है।

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