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जैसा मेरे साथ होता रहा है कहीं घूम आने को जब जब मेरी इच्छा हुई है कोई न कोई बहाना हमें मिल ही गया है और यदि प्लान पहले से बना कर रखा तो पंगा भी हो गया है। 2013 में हम अपने युरोप के 5 देश घूमने के प्लान को postpone कर रहे थे ताकि इसे ऑफिसियल पेरिस ट्रिप के साथ Club कर सके। पर हमारा tourist Visa खत्म होने को आया पर ऑफिसियल ट्रिप का दिन ही तय नही हुआ और हम फ्रांस के बिना 5 देश घूम आए। इसके बाद मैं तीन बार पेरिस ऑफिसियल ट्रिप पर अकेले हो आया था। लगभग हर महिने मे एक टूर। श्रीमती जी बोर हो चुकीं थी और उन्होंने मांग की "चलो कही घूम आते हैं" । जो वाजिब था। हम कुछ प्लान करते उसके पहले ही मेरे छोटे बहनोई कमलेश जी का फोन आया "भैया मुन्नार घूमने चलना है? दिव्या के सिंगापुर की दोस्त सरण्या की शादी गुरूवायूर में है और आप लोग भी आमंत्रित है।" अन्धे के हाथ मानो बटेर लग गई। लेकिन एक समस्या थी। मेरे साले अनिल जी के अमेरिका में रहने वाले सुपुत्र आशीष के शादी की reception पार्टी इस महीने (जुलाई) में ही थी। मै प्लान करने में जुट गया। दोनो आयोजनों के बीच 10 दिनों को gap था और केरल से ही काठमाण्डू चले जाने से समस्या हल हो जाती थी।श्रीमती जी ने कहा थोड़ा सामान जरूर बढ़ जाएगा पर मैनेज कर लेगे। हमनेे निर्णय ले कर कमलेश जी को हामी भर दी। काठमाण्डू शादी के रिसेप्सन पार्टी में जाने से पहले गुरूवायूर, मुन्नार और कोची की 7-8 दिन की यात्रा सम्भव थी । मेरी छोटी बहन दीपा, कमलेश जी, भांजी दिव्या, भांजा अनिमेष और हम दोनो। यानि 6 लोगों का Ideal size वाला ग्रुप बन गया। एकदम एक SUV के लायक। हम टूर के लिए तैयार थे। टूर पैकेज बुक कर कमलेश जी ने बताया कब चेन्नैई पहुंचना है और हम राँची से उसी अनुसार रवाना हो गए। लीजिये टूर पर लेट से ही सही ब्लॉग हाज़िर हैं। कुछ वीडियो यूट्यूब पर डाला हैं उसके लिंक दे रक्खी है ज़रूर देखें।
यात्रा का रुट
गुरवायूर : हम लोग चेन्नई से एलेप्पी Express से केरल के एक मंदिर वाले शहर (Temple town) गुरवायूर के लिए चले और सुबह त्रिसूर पहुचें। दूसरे ट्रेन से हम लोग ९ बजे तक गुरवायूर पहुंच गए। रास्ते में पड़ने वाले दृश्य बहुत मनोरम थे। थोड़ा प्रतिक्षा और एक एक कप कॉफी के बाद हमारे साथ इस टूर में पूरे समय साथ रहने वाली टैक्सी (SUV) आ गई और हमें टूर पैकेज में Included हॉटल नंदनम ले गई। यह एक आरामदायक होटल था। इसके रेस्टोरेंट में पानी में आयुर्वेदिक दवा (Rosewood bark powder) डाल कर लाल रंग का शरबत नुमा गुनगुना पानी ही पीने को देते। पूछने पर पता चला यह सर्दी और अन्य रोगो से बचाता है। केरल में हर जगह ऐसा ही पानी पीने को मिला। हम नाश्ता करके 11 बजे तक शादी में जाने को तैयार हो गए। जैसा मैने पहले बताया कि ऐसे तो हम तो घुमक्कड़ी करने निकले थे पर बहाना था भांजी दिव्या की सहपाठी सारण्या का विवाह । दक्षिण भारतीय विवाह मैंने दो बार पहले देखा था इसमें और उत्तर भारतीयों के शादी के कस्टम एक जैसे ही है। वहाँ दूल्हा कमर के चारों ओर बंधी पतली किनारे वाली एक सफेद सूती या रेशम की धोती पहनता है। वह इसे साथ एक रेशमी दुपट्टा और एक पगड़ी भी पहनता हैं। दुल्हन कांच की चूड़ियाँ, सोने के हार और मांग टीका के साथ एक रंगीन नवारी साड़ी पहनती है। यहाँ भी हल्दी कूटने लगाने का रिवाज़ हैं उसे कहते हैं Pendlikoothuru. काशी यात्रा, मंडप पूजा, वर पूजा, जयमाला, सप्तपदी, धारेधेरु (कन्यादान), विदाई और गृह प्रवेश, के बाद देव कार्य यानी नज़दीक के मदिरों में जा कर भगवान का आशिर्बाद भी लेते है। 'ओखली' में वर वधु और उनके परिवारों के बीच मजेदार खेल खिलवाया जाता है। ये सभी आप उत्तर भारतीय विवाह में भी देख सकते है। सारा समय नाद स्वरम बजता है।सारण्या की शादी का आयोजन करीब 3 कि०मी० दूर सोपनम होटल में था और शादी के बाद गुरुवायूर कृष्णा मंदिर में भी आयोजन था। होटल सोपनम एक अच्छा होटल था। एक छोटे से हाल में सारा कार्यक्रम था। होटल में हाथियों के झुंड और कथकली नर्तक की सुन्दर मूर्तियाँ बनी हैं। रात का खाना डाइनिंग हाल में था। कई व्यंजनों वाला ज़ायके़दार खाना।हमने शादी बहुत एन्जॉय किया। नाद स्वरम अच्छा लगा। यह बहुत तेज आवाज़ वाला शुभ वाद्य हैं। पुरोहित ने नए युगल को कई मजेदार खेल भी खिलवाये। रात का खाना सोपनम में खाने के बाद हम अपने होटल वापस आ गए।
गुरवायुर में विवाह समारोह होटल नन्दनम में
गुरूवायूर का बहुत धार्मिक महत्व है । पैराणिक कथाओं में कहा गया है कि जब द्वारका नगर नष्ट हो रहा था भगवान कृष्ण ने दो साधुओं को द्वारका में अपने मंदिर से मूर्ति ले जा कर केरल में स्थापित करने को कहा । भगवान कृष्ण की मूर्ति वायु देव और ब्रहस्पति द्वारा लाई गई थी और उन्हें गुरुवायुर में रखा गया था। "गुरुवायूर" नाम उनके दोनों नामों ("गुरु" ब्रहस्पति और "वायु" देव) का एक विलय है। इस मंदिर में करवाया विवाह बहुत शुभ माना जाता है और काफ़ी लोग इस कार्य के लिए यहाँ आते हैं। दूसरे दिन मंदिर दर्शन के बाद मुन्नार के लिए रवाना होने का प्रोग्राम था। पता चला काफ़ी मजेदार रास्ता है। रास्ते में कई फॉल पड़ने वाले थे। मंदिर में कैमरा और मोबाइल ले जाना मना है इससे हम मंदिर का फोटो नहीं ले पाए। मंदिर की हाथीशाला भी समयाभाव के कारण जा नहीं पाए। 59 हाथी अभी भी इस मंदिर के पास है। अगले दिन मंदिर में जाने केलिए हमे धोती-सिर्फ़ धोती पहननी थी। महिलाएँ को साड़ी ब्लाउज पहन कर ही दर्शण करना था कोई और परिधान मान्य नहीं था । हम लोग धोती में Bare chest अधनंगे होटल से ही तैयार हो कर दर्शन के लिए मंदिर गए । दर्शन में करीब एक घंटा लग गया। कमलेश जी अनिमेेेेष आपकी ऐसी तस्वीर का उपयोग करने के लिए मुझे क्षमा करें।मन्दिर से वापस आने पर हमने सबसे पहले कपड़े पहने। समय बचाने के लिए नाश्ता रूम में ही मंगा लिया। हमने जल्दी जल्दी अपने सामान पैक किया और आगे की यात्रा के लिए निकल पड़े।
गुरुवायुर मंदिर में हम लोग - गुरुवायुर में हमारा लॉज़
मुन्नार भारत के केरल राज्य में पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला में स्थित एक शहर है एक अनजाना Hill Station। यह ब्रिटिश राज के अभिजात वर्ग के लिए एक हिल स्टेशन और रिसॉर्ट था। 19 वीं शताब्दी के अंत में स्थापित चाय बागानों के साथ ऊंची पहाड़ियों से घिरा हुआ है यह। एराविकुलम नेशनल पार्क, लुप्तप्राय Mountain Goat नीलगिरी तहर का निवास स्थान, लक्कम और अन्य झरने, लंबी पैदल यात्रा के Trails और 2,695 मीटर ऊंची अनमुदी चोटी (हिमालय के दक्षिण मैं स्थित सबसे ऊंची) का क्षेत्र है यह। मुन्नार लोग ज्यादातर कोची से ही जाते है और गुरूवायूर हो कर कम ही टुरिस्ट जाते है। खैर हम लोग अपने प्रोग्राम के अनुसार गुरूवायूर से मुन्नार की यात्रा पर निकल पड़े। करीब 1 या 2 घन्टे चलने के बाद ईदुक्की जिले में एक बोर्ड पर लिखा दिखा Way to Athirapally falls, Niagra of India. हमारा कौतुहल बढ़ गया। हमे थोड़ा अपने रास्ते से हट कर जाना था ड्राईवर ने कहा 2 घन्टे लग जाएंगे। पर हम सभी जोश से भरे थे और हमने उस निर्देश पट्ट से करीब 30 कि०मी० दूर पड़ने वाले इदुक्की नदी के इस फॉल के लिए गाड़ी मोड़ दी।
अथिरापल्ली फाल्स, इड्डुक्की , केरल
जब हम ऐथिरापल्ली झरने के पास पहुँचे तो पता ही नहीं चला फॉल किधर है। टिकट भी लेना पड़ा था अतः फॉल तो अवश्य होगा। हम रास्ता ढ़ूढने लगे । जंगल ही जंगल था हमने एक हिरण को भी देखा। एक कैंटीन दिखा तो सबने काफ़ी और बिस्किट लिया । झरने की तेज आवाज़ आ रही थी। तब एक बोर्ड पर लिखा दिखा फॉल तक जाने का रास्ता (way to falls) और हमने पाया की सीढ़ियों से नीचे जाना था। मैंने जाने का निश्चय किया और हम दोने नीचे फॉल के लिए चल पड़े। मेरे बहनोई कमलेश जी और भांजा अनिमेष भी साथ हो लिए। कुछ सीढ़ियों के बाद सीढ़ियाँ गायब हो गई Sloping पगडंडी से जाना था । मुझे आगे जाना खतरे से खाली नहीं दिखा और मै वापस मुड़ गया। पर पत्नीजी चल पड़ी नीचे। मुझे भी उनके साथ जाना पड़ा। नीचे पहुँचने पर जो दृश्य दिखा वह मोहित करने वाला आश्चर्य जनक था। एकदम मिनी निआग्रा फॉल। धुन्ध था और पानी के छीटें हमें भिंगोने लगे । हम सब फोटो वीडियो शूट करने में जूट गए। यह फॉल हमेशा ऐसा नहीं रहता है। यह जुलाई था और वर्षा ठीक ठाक हो रही थी और फॉल में काफ़ी पानी था। नहीं जाते तो अफ़सोस रह जाता।
ऐथिरापल्ली से हम मुन्नार के लिए चल पड़े। रास्ते में पड़ने वाले हरे भरे पहाड़ और बहुत सारे छोटे बड़े फॉल दिखने लगे कुछ दूर थे और कुछ रोड के नज़दीक। रास्ता काफ़ी लम्बा और घुमावदार था । फिर भी लुभावने दृश्यों ने सबको जगाए रखा । मुन्नार शाम तक पहुँचे । होम स्टे (Woodpecker होलीडे होम) को ढ़ूढते फोटो खींचते हम पहुँच ही गए अपने अज्ञात वास में। मोबाइल नेटवर्क यहाँ तक नहीं पहुँच रहा था और हम बिना व्यवधान के होम स्टे का मजा ले सकते थे। होम स्टे मनोरम जगह पर था और हमारे कॉटेज बहुत आरामदायक थे। होम स्टे मुख्या सड़क से काफी नीचे था। गाड़ी भी थोड़ी दूर ही पार्क करना पड़ा और कुछ १५-२० सीढिया उतर कर ही हम अपने कॉटेज तक पहुँच सकते थे। होम स्टे दो भागों में था पहला भाग तीन तल्लो का था। इसमें ऑफिस, कमरे रसोई और डाइनिंग रूम थे। दूसरा भाग एक तल्ला था और इसमें कॉटेज थे। हमने तीन कॉटेज ले रखे थे गीज़र थे जो गैस से चलते थे, देख कर शांति मिली की ठण्ढे पानी से नहाना धोना नहीं करना पड़ेगा। काटेज के सामने और पीछे पार्क सा बना था जिसमें खुले में बैठने का मंच बना था। ऊपर बालकनी थी जहाँ खुले में बैठ कर चाय पी सकते थे और सामने के चाय बागानो, पहाड़ो को देख सकते थे। सामने के एक जलाशय और उसमे शिकार करने वाले तैरने वाले पक्षी भी दिखते थे। जलाशय तक पगडण्डी बनी थी और हम एक दो बार वह गए भी। गाने वाली छोटी चिड़ियाँ जिसे whistling thrush कहते है को देखना और फोटो लेना टेड़ी खीर थी। आवाज़ देने पर यह हु बहु नक़ल कर सुना देती जो दूर से ही सुनाई पड़ जाती थी। हमनेे मोबाइल पर वीडियो बनाया पर उसमे भी काफी गौर करने पर ही इसे देख सके। मेढ़क भी गा कर वर्षा के आगमन का स्वागत कर रहे थे। होम स्टे के मैनेजर ने बताया कि मेढ़क की एक प्रजाति भारतीय वैज्ञानिको ने इसी जगह खोज निकली थी। होम स्टे में सिर्फ़ हमारा ग्रुप ही था और हम अपने पसंद का खाना बनवा लेते। सच में मज़ा आया। चूँकि हमने एक पैकेज ले रखा था तो जगह-जगह ट्रांसपोर्ट, होटल खोजने की ज़रूरत नहीं थी।
मुन्नार में हमारा होमस्टे और नज़दीक का एक और होम स्टे का बोर्ड
हम दो रात और तीन दिन रुके और घूमने वाली सभी जगह गए। Echo पॉइंट में कोई Echo न आई पर अच्छी वाली भुनी मुंगफली मिल गई। एराविकुलम नेशनल पार्क भी गए जहाँ Rare नीलगिरि ताहर मिलते है। नेशनल पार्क की बस से ही यहाँ तक जा सकते थे। यहाँ हम लोग काफ़ी ऊपर तक गए पर इस दुर्लभ प्राणी को नहीं देख पाए। दक्षिण भारत के सबसे ऊँची चोटी अनिमुदी भी देख आए। टी गार्डन तो हर तरफ़ थे। टाटा टी के बगान दिख जाते थे। एक टी फैक्ट्री में भी गए पर बारिश जोरों की होने लगी और हम देख नहीं पाए।
ईरवकुलाम नेशनल पार्क (मालाबार ताहिर का घर),पुल पर से एक दृश्य , चाय बागान
कल्लारु पट्टू (Kalaripayattu, Indian Martial Art) का एक प्रोग्राम भी देखने गए। जब दर्शकों के बीच से एक बच्ची को बुलाया को हमारी सांसे अटक गई। क्या इससे ये खतरनाक स्टन्ट करवाएगें? लेकिन बच्ची ने वो सब कर लिया जो उससे करवाया गया। मेरा भांजा अनिमेष ने भी कुछ करतब दिखाया।बहुत रोमांचक और कलेजा मुंह में आ जाय वैसी कलाबाजी या युद्ध कौशल देखने को मिला। कलारी एक पुरातन युद्ध कौशल है और कम से कम 3BC का है। मान्यता है यह कौशल परशुराम ने शिव से सीखा था।
बोटैनिकल गार्डन में कई नए तरह के फूल देखे और हर्बल गार्डन में कई प्रकार के मसाले जड़ी बुटियों के पौधे, पेड़ देखने को मिला। इलायची, लौन्ग, काली मिर्च, स्टार, सुपारी के पेड़ पौधे इन हर्बल गार्डन में मिल जाती है और प्राकृतिक अवस्था में मिलती हैं-बिना किसी रासायनिक प्रक्रिया के. इन मसालों की खुशबू, स्वाद बाज़ार में मिलने वाले मसलों से अलग ही होता है। बांस का चावल भी इन्हीं हर्बल गार्डन में मिलता है। कहते है कोलेस्ट्रोल कम करता है और जोड़ो के दर्द में बहुत फायदेमंद है।
कुछ खरीदारी भी की। मुन्नार चाय के लिए मशहूर है। आप अलग-अलग तरह के मसालों, चाय के साथ यहां घर पर बनी यानी होममेड चॉकलेट भी अपने साथ ले जा सकते हैं। इनके अलावा, जड़ी बूटियां, आयुर्वेदिक दवायें, सुगन्धित तेल, रंगे हुए पारम्परिक केरल के कपड़े की भी यहाँ से ले सकते हैं
कलारिपट्टू और मुन्नार बाजार
एक जगह हम गए जहाँ से सीढियाँ उतर कर आप केरल से तमिलनाडु जा सकते है। पता चला यह जगह शराब की तस्करी के लिए प्रसिद्द हैं । मैंने तो 800-900 सीढ़ियो हो कर जाना है वह भी मिटटी काट कर बनाई सीढ़ियों देख कर सुन कर ही जाने से मना कर दिया। पर मेरी श्रीमती थोड़ा एडवेंचर पसंद करती हैं वह चल पड़ी अकेले। मैं उनको अकेले कैसे छोड़ सकता था। बारिश कभी हो सकती हैं फिर सीढिया फिसलन भरी हो जाती। रेलिंग के नाम पर एक पतली रस्सी बाँध रखी थी (मानों गिरने पर उसे पकड़ कर बच सकते हैं!) वह पतली रस्सी भी 150-200 सीढिया उतरते-उतरते ख़त्म हो गयी। खैर करीब 500 सीढिया उतरने के बाद भी जब तमिलनाडु का कोई गाँव तक न दिखा तो हम लौट आये। बारिश भी तब तक शुरू हो गयी थी।
एक झरना और एक आयुर्वेदिक गार्डन
तमिलनाडु तक जाने वाली सीढियाँ और ईको पॉइंट
मुन्नार से हम तीसरे दिन कोच्चि (कोचीन) के लिए चल पड़े। कोचीन यानि कोच्चि की कथा अगले ब्लॉग में