Saturday, September 3, 2022

बच्चे मन के सच्चे -1

सभी चारो एक फ्रेम में

मेरी बेटी और बेटा अपने परिवार सहित दिल्ली NCR में रहते है और हम लोग उनसे मिलने रांची से वहां आते जाते रहते हैं । हमारा रूटीन रहा हैं की दोनों नाती और पोता पोती के जन्म दिन में वहां अवश्य रहू । इस बार २०१९ का पूरा साल चल रहे इलाज के कारण वहीँ बीता, फिर COVID का दौर आ गया और हम दिल्ली में 2021 के मार्च तक वहीं रहे। COVID के पहले दौर के बाद हम रांची आ गए फिर २०२२ जनवरी में गए थे CHECK UP के लिए तब दोनों बड़े बच्चों के जन्म दिना मन आये । अभी पिछले हफ्ते (27 जुलाई 2022) मेरे छोटे नाती का जन्म दिन था और हम दोनों इस बार COVID के OMICRON वाले अवतार के चपेट में आ गए । ५-७ दिन में हम ठीक तो हो गये पर काफी कमजोरी तो हो गई। यानि हम लोग नाती के जन्म दिन में नहीं जा पाए । एक अपराध बोध सा घर कर गया है मन में। सोचा एक ब्लॉग ही लिख कर अपने जज़्बात जाहिर कर दू । तो ब्लॉग हाजिर है ।


उमंग


नाना/दादा के सबसे प्यारे दोस्त होते है उनके नाती, नातिन और पोते पोतियां , और मै कोई अपवाद नहीं । इसका अहसास मुझे तब हुआ जब मेरा बड़ा नाती और मेरी बिटिया 2007 में US से राँची मेरे पास आ गए। उनका प्लान हमेशा के लिए भारत वापस आ जाने का था। हम अपने नाती के जन्म की पार्टी रखने में व्यस्त हो गए और राँची के बाद दादा दादी ने बोकारो में पार्टी रखी। पार्टियों का दौर खत्म हुआ तो मेरी नाती - उमंग के साथ मेरे बॉन्डिंग का दौर शुरू हुआ। हम इस हसमुँख बच्चे के अदाओं में खो गए। मै उसे रोज सुबह नजदीक के नर्सरी पार्क ले जाता एक बेबी CARRIER में सामने सीने पर बांध कर, और पत्ते, फूल, चिड़िया से उसका परिचय करता गया। और वह भी इस मॉर्निंग वाक के लिए तत्पर और प्रतीक्षा रत रहता । बगल मे एक ताड़ का पेड़ था और उसके पत्ते के हवा में हिलते देख उमंग को निश्छल हँसी बेबस उठ जाती या नानी को चावल फटकते देख उसको बेबस झनकती हँसी उठ जाती, और हम लोग प्रफुल्लित हो जाते । मेरे आफिस से लौटने का उसको इंतेजार रहता जो उसकी आँखो से जाहिर हो जाता। घंटी बजते ही वह दरवाजे के तरफ घुटने के बल चलता चला आता और मैं झट उसे गोद में उठा लेता । इस खुशगवार क्षणों के कुछ ही महिने बीते कि मेरे दामाद जी ने खबर दी की USA उनका एक जॉब इंटरव्यू था जिसे AVOID नहीं किया जा सकता था और उन्होने वेतन सहित कुछ ऐसी शर्त रखी की जॉब के लिए वे रिजेक्ट हो जाय, ताकि वे परिवार के पास इंडिया लौट सके । पर कंपनी ने उनके शर्त को मान लिया और अब उन्हें वहां कुछ साल और रहना पड़ेगा और वो आ रहे है सबको US ले जाने । अब मेरा आत्म मंथन शुरू हो गया। क्या मै इस बच्चे के बिना रह सकूंगा, कैसे रहूंग़ा ? "मै नहीं रह सकता " ऐसा मेरा conclusion था। आखिरकर मेरे दामाद आ पहुंचे और जब वे लोग वापस USA जाने लगे उस दिन मुझे लगा कि वह मेरा सब कुछ ले जा रहे हैं । जाने के दिन हम लोग उन्हें छोड़ने हवाई अड्डे तक गए। मुझे रोना आ रहा था और खुद को समझा रहा था, कुछ ही साल की बात है, आ जाएगा उमंग। पहली बार बिटिया के बजाय नाती के जाने का ज्यादा दु:ख हो रहा था। जब सिक्यूरिटी के लाईन में वे लोग लग गए मै उन्हें देखता रहा। जब दिखना बंद हो गए तो सीढ़ी पर चढ़ कर देखने लगे। और जब बोर्डिंग में लाईन में लगे और ओझल हो गए तब पहली बार मेरी आँखों में एक छोटे बच्चे के जाने के कारण मेरी आँखों में आंसू थे। तीन साल बाद जब हम लोग दूसरे नाती के जन्म के समय US गए यहीं बच्चा इतनी तेजी से दौड़ता था कि हम पकड़ नहीं पाते थे । उसको एक ऐसी ट्राई सायकल पर ही घुमाने ले जाते जिसे पीछे के रॉड से उठा सकते थे ताकि वह सायकल से उतर न सके। एक बिल्ली के पीछे ऐसा भागा कि नानी के पकड़ से दूर पेड़ों के जंगल को पार कर गुम हो गया। शुक्र है कि उस पार एक पार्क था जिसका रास्ता उसे मालूम था और वो वही रुक गया और नानी के जान में जान आई। कई यादें उमंग के उस मासूम उम्र की जुड़ी है।


सिद्धान्त

दूसरा grand child जो हमारी जिंदगी में आया वह है मेरा पोता सिद्धांत या सिड। जब वह साल भर का था तब हमलोग दिल्ली आए थे। उसका जन्मदिन धूमधाम से मना। तब मेरा बेटा और बहू दोनो नौकरी कर रहे थे और सुबह सुबह ऑफिस निकल जाते । सिद्धांत के मामा, मामी भी तब साथ ही रहते थे। सभी के आफिस जाने के बाद सिड के साथ सिर्फ हम दोनो और उसकी मामी रह जाती थी। अभी सिड का डे केयर जाना शुरू नहीं हुआ था। हमसे काफी घुलमिल गया था। मै उसे रोज पास के एक पार्क में ले जाता और उसका समय दादू और दादी के साथ मजे में कट रहा था। तभी वह दिन भी आ गया जब हमें वापस लौटना था (तब मै रिटायर नहीं हुआ था) । स्टेशन जाने के लिए टैक्सी बुला रखी थी। सबके ऑफिस जाने के बाद दोपहर के बाद हमारी टैक्सी आ गई। सब समान नीचे भिजवा कर हम लोग भी नीचे उतरे सिद्धांत दादी के गोद में था। पहले मै बैठा फिर उसे मामी के गोद में दे कर दादी भी टैक्सी में बैठ गई। फिर जैसे ही टैक्सी का दरवाजा बंद हुआ उसका चेहरा ठिसुआ सा गया। बच्चे ने शायद सोचा होगा वह दादा, दादी के साथ टैक्सी में जाने वाला है। उसके चहरे का भाव था "YOU CHEAT" या फिर "मुझे भी जाना है, या बस "ना जाओ"। उसके मन में चल रहे इन विचारो ने हमें चुप करा दिया, एक दूसरे से कुछ न बोल पा रहे थे हम। यदि बोल लेते तो जरूर ट्रेन छोड़ देते। ट्रेन में एक घंटे बीतने के बाद ही हम धीरे धीरे सामान्य हो पाए।

एक दूसरी भी घटना याद आ रही है। सिद्धांत शायद दो ढ़ाई साल का था जब वह राँची आया था। राँची में उसकी तबियत खराब हो गई। डाक्टर नें तीन दिन के लिए एक इंजेक्शन लिख दिया। एक कम्पाऊंडर को ठीक कर दिए कि रोज घर आकर सुई लगा दें। पहले बार उसे शायद आईडिया नहीं था और बिना कुछ नखरा किए वह सुई लगवाने बैठ गया। जब सुई लगा तो थोड़ा रोया। दूसरे दिन वह बहुत खुश था और जॉनी जॉनी राइम सुना रहा था। जॉनी जॉ...तक ही बोल पाया था, उसका मुंह खुला ही था कि उसे घर मे आते कंपाउंडर साहब दिख गए, उसका मुंह कुछ पलो के लिए खुला ही रह गया, मुझे दया और हंसी दोनो आ रहे थे पर उसने बिना रोए सुई लगवा भी लिए।

क्रमश: