स्वाद यात्रा, पेय पदार्थों की
स्वाद यात्रा के अंत में ड्रिंक्स या पेय पदार्थ के बारे में कुछ पंक्तियाँ, कुछ पैराग्राफ । दूध, लस्सी. मट्ठा और शरबत तो माँ भी पिलाती थी पर जब बाजार में कुछ खरीद कर पीने का मौका आया तो सबसे पहले जो पिया वह था गोल्ड स्पॉट । वह एक ऑरेंज ड्रिंक हुआ करता था , सोडा जिसके बोतल को गोली से बंद करते थे और जिसे खोलने पर फुट की आवाज़ आती थी वह था मेरा अगला पेय ।
ठंडा पेय, Cold Drinks
धीरे धीरे कई और शीतल पेय से परिचय होता गया लिम्का, फैंटा, स्प्राइट । पर जो सबसे लोकप्रिय था वह था कोकाकोला । ठंढा या cold drink का मतलब ही होता था कोकोकोला । कोका कोला की बोतल ने तो सुन्दर कमर की तारीफ करने का एक मुहावरा भी दे दिया "कोकोकोला सी कमर" । १९७७ में जब कोकाकोला बैन किया गया तब आया कैम्पाकोला, ७७, थम्स अप लेकिन कोकाकोला को जगह ये सब नहीं ले सका, हाँ थम्पस अप ने अपनी एक अलग जगह बनाई । जब बैन हटी तो पहले आई पेप्सी और फिर आई कोकाकोला - फिर से । । अब तो कई और ड्रिंक्स हैं जैसे माउंटेन डिउ जिसे मैंने अभी तक नहीं पिया है । पर बच्चो में जो सबसे लोकप्रिय है वो है फ्रूटी, माज़ा और स्लाइस । यह सब मुझे भी पसंद हैं । इंस्टेंट कोल्ड ड्रिंक पाउडर की शुरुआत हुई रसना से और तुरंत इसने सबका मन मोह लिया । दूरदर्शन पर रसना का cute ad सबको याद होगा "I love you रसना"। अब तो tang भी है । फ्रूट जूस और नारियल पानी की बात मैंने लिखी नहीं पर नारियल पानी पर एक बात याद आ रही है । निकोबार के नारियल का पानी पीने का मौका पोर्टब्लेयर में मिला था और इतना बड़ा नारियल था की हममें से कोई पूरा पानी पी नहीं पाया था ।
Alcoholic Drinks
मैं २०१५ के बाद कोई हार्ड ड्रिंक्स नहीं लेता हूँ न ही इसके लिए किसी को प्रेरित करना चाहता हूँ फिर भी मेरी स्वाद यात्रा अल्कोहलिक पेय का स्वाद बातए बिना पूरी नहीं होगी । ऐसे हार्ड ड्रिंक्स का स्वाद पहले पेग में ही लिया जा सकता हैं बाद के पेग का स्वाद से कोई फर्क नहीं पड़ता। और वाइन का तो महक भी लेते हैं लोग । फिर पीना शरू करने के पहले गिलास टकराते हुए कहते है चियर्स । कभी पढ़ा था की ऐसा बुरी आत्माओं को भगाने के लिए करते हैं । पर असल में चार पेग के बाद वे खुद लड़खड़ाने, हकलाने वाले भूत बनने वाले है ।
खैर शुरू करता हूँ अलकोहलिक पेय में मेरी स्वाद यात्रा । जैसी परंपरा थी व्हिस्की, रम और जिन हमने कॉलेज (1965-70) के थर्ड year में ही चख लिया था । बियर पीना महंगा पड़ता था क्योंकि जैसा नशा तब चाहिए था उतने बोतल बियर उतने पैसे में आ नहीं सकता था जितने हमारे पास होते थे । ब्रांडी के नाम से दवाई की फीलिंग आती थी और वाइन तब पटना में मिलती नहीं थी। एक निप (१८० ml ) के बोतल को दो लोग शेयर करते और पैसे बचाते । पर तब जो दिक्कत थी वो था खरीदने कौन जाये । हिचक होती थी । अब कंडोम पर ऐड देखने को मिलता हैं की कैसे कंडोम की जगह लोग चूरन, साबुन खरीद लाते है वही हाल हमलोगों का तब होता था जब रम या व्हिस्की खरीदने निकलते । पटना में अपना बाजार खुला था बिहार में अपनी तरह का पहला डिपार्टमेंटल स्टोर । जहाँ आप अपने पसंद की वस्तु खुद लेकर शॉपिंग बैग में डाल ले और सिर्फ काउंटर पर पैसे देते वक़्त ही निकालना पड़ता था । इस तरह आप मुंह खोल कर शराब की बोतल मांगने की हिचक से बस सकते थे । किसीने कहाँ वहां व्हिस्की, रम भी मिलता हैं । बस क्या था मैं और रामविलास जी (जो अपनी छात्रवृत्ति इस पावन कार्य पर खुशी खुशी खर्च करने वाले थे) वहां जा पहुंचे । यह देख कर परेशान हो गए की अल्कोहलिक पेय के अलग काउंटर बना रखा था जहा काउंटर वाले मांगने पर बोतल निकाल कर अख़बार में लपेट कर देते और पेमेंट वही करना होता । दो तीन बार चक्कर लगाने के बाद मैंने ही हिम्मत की "एक निप व्हिस्की का चाहिए" "कौन सी ?" "कोई कम दाम वाला" । उसने CAREWS ब्रांड का एक बोतल थमा दिया । हिचक मिटने पर यह शॉप फेवौरिट हो गया । कभी कभी थ्री एक्स रम भी पिया करते। शायद महीने में एक बार जब सबके घर से पैसे आते तब बनता था यह प्रोग्राम फोर्थ ईयर और फिफ्थ ईयर में भी चला यह कार्यक्रम। तब सिर्फ एक बार जिन पी गई थी क्योंकि लोगों ने कहा यह तो लेडीज ड्रिंक हैं पर आज की कोई फिल्म देख ले महिलाये यहाँ तक की बड़ी उम्र वाली दादियों को भी व्हिस्की पीते दिखा देते है ये फिल्म वाले । महिलाएं ऐसे अब हार्ड ड्रिंक्स पीने भी लगी है । आखिर हार्ड ड्रिंक लेने में कौन सी मर्दानगी ?
| |
१) मार्फा ब्रांडी पहले कैन में आती थी फ्री में, अब बोतल में मिलती हैं Mustang Agro के फेसबुक पेज से २) नेपाल डिस्टिलरी का खुखरी रम
नेपाल का पीना पिलाना
एक कहावत हैं सूर्य अस्त नेपाल मस्त । अब नेपाल में ड्रिंक ले कर गाड़ी चलाने पर पर कम से कम रात भर थाने में बैठा देती हैं पुलिस और कोई पैरवी काम नहीं आती ।
शादी के बाद नेपाल में किसी भी या हर दुकान में व्हिस्की और दूसरे ड्रिंक बिकते देख कर शुरू शुरू में अजीब लगा । पार्टियों में अल्कोहलिक ड्रिंक परोसा जाना एक आम बात थी और थोड़ा बहुत पी लेना भी चलता था । मेरे बड़े साले साहब जब डॉक्टरी पास कर आ गए तो बाबूजी से छिप छिप कर कभी कभी ड्रिंक्स का प्रोग्राम बनने लगा। जब मेरे एक और साले साहब भी वकालत पास करने के बाद एक जापानी कंपनी में अफसर लग गए और तब तक नया घर और ऑफिस बन कर तैयार हो गया था । देर शाम ऑफिस रूम एक निरापद जगह होती थी इन सब क्रिया कलाप के लिए । बाबूजी (मेरे ससुर जी) के सामने हम ड्रिंक्स, सिगरेट नहीं पीते थे पर उन्हें शायद अंदाजा था की हम लोग शनिवार के शाम में ऑफिस में क्या करते है और वो शाम के पहले अपने फाइल अपने कमरे में मंगवा लेते और जरुरत पड़ने पड़ वही काम निपटा लेते । फिर एक दिन ५ लीटर कैन में आया "मार्फा" । मार्फा नेपाल के सुदूर पश्चिम में जोमसोम- मुक्तिनाथ के पास एक जिला हैं जहाँ सेव बहुतायत में होता हैं पर उसे कही भेजने के साधन तब कम थे । वहां के लोग इसी सेव से एक उम्दा ब्रांडी बनाते हैं जिसे भी मार्फा ही कहते है । हमारे एक रिश्तेदार हेमंत, जिनका HAL के हेलीकॉप्टर की agency थी वहां और इस कारण नेपाल एयर फाॅर्स में जान पहचान थी ५ लीटर के कैन में "मार्फा" हवाई मार्ग से मंगवा लेते । गजब का ड्रिंक था कोई दुर्गन्ध नहीं , एक दम पानी की तरह पारदर्शी । यदि गिलास में लेकर पी रहे हो तो लोग समझते पानी पी रहा हैं । हमारा काम आसान हो गया हम डिनर के टेबल पर ही बाबूजी के आने के पहले ही अपना अपना मार्फा का गिलास लेकर बैठ जाते । यह एक गजब का स्ट्रांग ड्रिंक है और अब बोतलबंद भी मिलता है। खैर आगे बढ़ते हैं । एक दिन बाबूजी ने इंडियन एम्बेसी के एक अधिकारी को खाने पर बुला रखा था जो मेरे एक सहकर्मी का छोटा भाई था और उन्होंने मुझे ही से उसका साथ देने भेज दिया । पीना पिलाना भी था। अब मैं आधिकारिक रूप में बाबूजी के सामने भी हार्ड ड्रिंक्स ले सकता था । बिमल के साथ हर तरह का ड्रिंक्स वोदका, व्हिस्की,ब्रांडी ,कॉन्यैक, बियर, वाइन, आयरिश कॉफी कभी न कभी पिया ही हैं पर व्हिस्की ज्यादा बार पीया। जीजाजी को पिला कर डाउन करना हैं ये मेरे सालों का एक लक्ष्य होता था ।
जर्मनी 1) बियर का लिटरवला गिलास (सभी को कम से कम दो गिलास पीना था) और ऑरेंज जूस 2) डुसेलडॉर्फ हमारा फ्लैट : टेबल के नीचे रक्खे बियर बोतल
यूरोप और विदेश के अन्य देश में पीना पिलाना
१९८३ में पहली बार विदेश गया तो पीना लाज़मी था । शैम्पेन और लाल, उजली वाइन तो प्लेन में ही चख ली थी । जब जर्मनी पहुंचा तो हम ड्रिंक्स पर एक्सपेरिमेंट करने लगे । बियर और वाइन तो रोज़ के डिनर का हिस्सा होने लगा बियर के बोतल छोटे थे ३३० मिली लीटर या ५०० मिली लीटर और एक बोतल बियर या १ गिलास वाइन रोज़ का कोटा था । बियर तो घर के सामने वाले सिगरेट शॉप या गुमटी में ही मिल जाती 1 ड्यूओस मार्क (DM) या उससे कम में ही आ जाता जबकि ७५० मिली लीटर का वाइन बोतल ३-४ DM में आ जाती । लाल, गुलाबी और वाइट तीनो तरह के वाइन हमने पी लिया । जर्मनी, साउथ अफ्रीका लम्बे ट्रिप थे और ड्रिंक्स के हर तरह की वैरायटी हमने try किया लेकिन अमेरिका, फ्रांस के ट्रिप में ब्रांड्स का ध्यान रखा ।
मैने अपने छात्र जीवन के बाद और नौकरी मिलने के बीच के अंतराल में हैरॉल्ड रॉबिन्स के कई उपन्यास पढ़ डाले थे और उसमें जहाँ भी High Society का दृश्य होता कोई न कोई ड्रिंक का नाम अवश्य आता जैसे "Vodka Martini , Martini & Extra Dry Vermouth, Sherry, Sherry with Ginger Ale, Irish Coffee, शिराज प्लम मार्टीनी , शीराज़ एंड जिम वैगेरह। और मै सभी आजमाना चाहता था। कॉकटेल तो बना नहीं पाया पर वोदका, मार्टिनी, वरमाउथ, शैरी, शीराज़ , आयरिश कॉफी (जो वास्तव में एक कॉकटेल ही है) और कुछ कॉकटेल को जरूर अवश्य कभी न कभी आजमाया। वोदका को छोड़ अन्य सभी में अलकोहॉल वाईन और व्हिस्की के बीच वाला होता है।
कॉकटेल की बात चली है तो ९५-९६ के बीच हिंडालको, रेणुकूट के गेस्ट हाउस का खाना याद आ गया । बिरला के इस गेस्ट हाउस में मांसाहारी खाना कभी नहीं बनता और हम हर ट्रिप में सिर्फ साग सब्जी खा कर बिताने को मजबूर थे। पर एक ट्रिप में में जब गया तो कुछ विदेशी मेहमान आये थे और एक शाम डिनर पार्टी भी थी । उस दिन चिकन और मछली भी बनी और ड्रिंक्स का भी इंतेज़ाम था । मैंने सोचा व्हिस्की बियर तो हर बार पीते ही हैं इस बार कोई कॉकटेल पे ले और मैंने दो टाइप के कॉकटेल पीये स्क्रू ड्राइवर और ब्लडी मेरी।
पता चला स्क्रू ड्राइवर और ब्लडी मेरी जो एक फ्रूट जूस जैसा था में वोदका भी था ।
German Beer
जर्मनी की बात चली हैं तो वहा के बियर की बात न करूँ तो बात पूरी नहीं होगी । हमें तो पता ही नहीं था इतने प्रकार के
बियर होता हैं । पहला पाला पड़ा लैगर बियर से । लैगर बियर को कम तापमान पर बनाया जाता है और लोकप्रिय पिल्सनर बियर भी एक पीला लैगर बियर जिसे पिल्सन शहर में बनाया जाता था । बर्लिनर बियर भी एक दो बार पीया गया । एक एक खट्टापन लिए लाइट गेहूं का बियर था और हमारे दोस्तों को बहुत पसंद नहीं आया और पिल्सनर हमारे बीच ज्यादा लोकप्रिय था । बताता चलूँ कि किंगफ़िशर भी एक लैगर बियर हैं । दूसरा प्रकार होता हैं । Ale बियर एक प्रकार का बीयर है जिसे गर्म FERMENTATION विधि का उपयोग करके बनाया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप एक मीठा, FULL BODIED और FRIUTY स्वाद वाला बियर तैयार होता है। डुसेलडॉर्फ के ओल्ड टाउन (Altstadt ) में मिलता है अल्ट्बियर जो एक Ale बियर हैं । म्यूनिक, जर्मनी में एक बियर फेस्टिवल होता हैं अक्टूबर में । जुलाई में एक छोटा सा बियर फेस्ट डुसेलडॉर्फ में भी होता हैं और कहते है लड़किया अपने पसंद के लड़कों की टाई काट लिया करती हैं । एक और प्रकार के बियर से पला पड़ा बंगलुरु के रेजीडेंसी रोड / ब्रिगेड रोड के एक पब में । गिलास, बोतल, कैन के बजाय एक बड़े जग में बियर ला कर टेबल पर रख दिया गया । यह एक Drought या ड्राफ्ट बियर था । ये बीयर बोतल या कैन के बजाय पीपा या केग से परोसा जाता है। प्रेशराइज्ड केग से परोसी जाने वाली ड्राफ्ट बियर को केग बियर के नाम से भी जाना जाता है।
Home made beer
कुछ अनाजों का उपयोग होता हैं बियर बनाने में जैसे माल्ट, चावल, rye , गेहूं । राइस बियर उत्तर पूर्व, झारखण्ड, नेपाल के घर में भी बनाया (Homebrew ) जाता हैं और मेरी जानकारी के अनुसार नेपाल में इसे जांड और झारखण्ड में इसे कहते हैं हंडिया । नेपाल और कुछ नार्थ ईस्टर्न इंडियन स्टेट्स में इसे छांग भी कहते हैं ।
Image from web site "https://www.tasteatlas.com/bordeaux"
Brands ..brands
अंत मैं कुछ पसंदीदा ब्रांड्स की बात करूँगा । जैसा मैंने एक पिछले एक ब्लॉग में लिखा था साउथ अफ्रीका में बियर ब्रांड्स में castle , carlsberg , Amstel, Vivo और हेनकेन बियर ही ज्यादा पसंद था । बियर कि बातें करने पर मुझे मेरे सहकर्मी उदयन, जो हाल ही में कोविड कि भेट चढ़ गया, की याद अचानक आने लगी हैं । जब भी रांची टाटा रोड ट्रिप में होते एक मोटेल पर रुक कर एक एक बोतल बियर पीना must होता यदि वह साथ होता । उसके साथ ही १९९७ में अमेरिका गया था और उसकी पसंदीदा बियर थी बडवाइज़र । व्हिस्की तो जॉनी वॉकर का रेड और ब्लैक लेबल ज्यादा बार पिया । लेकिन वाइन हर बार अपने मेजबान के चॉइस का ही पिया। आर्डर के बाद जब वेटर एक बोतल ले आता और खोल कर पेश करता और हमारे मेजबान (एक प्रवासी भारतीय सागरेन मूडली) उसे सूंघ कर ओके करते । मुझे वाइट वाइन ज्यादा पसंद था जबकि औरों को लाल वाली । हर बार स्वाद अलग होता कभी फ्रूटी मीठा सा और कभी खट तुरुस ।
१) म्यूनिख के सड़को पर बियर के साथ २) Cabernet Veneto इटालियन वाइन है जो हमने मिलान, इटली में पिया था ।
वाइन और विनयर्ड्स (अंगूर के बगीचे)
वाइन के प्रकार और स्वाद अंगूर के प्रकार और और अंगूर के बगीचे के जगहों पर बहुत ही निर्भर करते हैं ।वाइन मुख्य रूप से फ्रांस, इटली या आईबेरियन प्रायः द्वीप (स्पेन, पुर्तगाल) का ज्यादा प्रसिद्द हैं और जर्मनी प्रवास में कुछ ऐसे ही वाइन से पाला पड़ा था । ऐसे जर्मनी के बवारिया और राइन रूढ़ के रीजन में भी कई वाइनरी हैं । सैम्पैन, जो एक स्पार्कलिंग वाइन हैं, का तो नाम ही पड़ा हैं पेरिस से १५० की मी पूर्व स्थित एक जगह "सैम्पैन" के नाम पर पर कुछ वाइन के नाम याद आ रहे हैं जैसे bordeaux जो एक फ्रेंच वाइन हैं बरगंडी भी एक फ्रेंच वाइन ही है जबकि बरोलो एक इटालियन वाइन हैं । Cabernet Veneto इटालियन वाइन है जो हमने मिलान, इटली में पिया था और फोटो भी पोस्ट कर रहा हूँ । जर्मन राइन रीजन में रिज्लिंग एक वाइट अंगूर की खेती होती है और १९८३ में वही देखने हम गए थे बॉन के आस पास ।
इंडियन वाइन रेड, वाइट, स्पार्कलिंग
वाइन की बात चली है तो नाशिक इंडिया में बनने वाली सुला (SULA) वाइन की बात करना जरूरी है । मैंने पहली बार सुला तब पी थी जब २००८ में नाशिक गया था । पता चला रेड, वाइट वाइन यहाँ तक स्पार्कलिंग वाइन भी बनाते हैं सुला वाले । सुला वाले रेसलिंग (वाइट वाइन), शीराज़ और कैबेरनेट (रेड वाइन) अलग अलग वाइनरी में बनाते है ।
स्कॉच- सिंगल माल्ट व्हिस्की
विदेशों में या ड्यूटी फ्री से कभी कभी व्हिस्की वैगरह खरीदने का सिलसिला भी चलता रहा और कंस्ट्रक्शन साइट पर कभी कभी पार्टिया भी देनी पड़ती । धीरे धीरे ब्रांड के बारे में हम सजग होते गए । सबसे पहला ब्रांड के वैल्यू का अनुभव है जब ९० के दशक में एक रिटायर्ड चेयरमैन को एक मीटिंग के लिए विशाखापट्नम बुलाया गया था। वे कुछ महीनो पहले ही रिटायर हुए थे और उसी होटल में रुके जहा मैं ठहरा हुआ था । उन्होने बहुत शालीनता से मुझे कहा क्या तुम आखिरी बार मेरा एक काम कर दोंगे ? मैं चिंतित होता उससे पहले उन्होंने कुछ पैसे मुझे दे कर आग्रह किया की नज़दीक के किसी दूकान से एक व्हिस्की बोतल ले आओं। मैं जाने को हुआ तो ताकीद किया की रॉयल स्टैग ही लाना । फिर जब साइट की पार्टी हुई तो आई १०० पाईपर्स । फिर किसीने बताया सिवास रीगल ही पीना चाहिए । धीरे धीरे सिग्नेचर, टीचर्स, OC , RC , No1 , ब्लेंडर्स प्राइड वैगेरह चख कर देख लिया । स्कॉच में रेड लेबल ( जॉनी वाकर) कई बार पिया । जॉनी वॉकर के अलग अलग लेबल होते हैं जो व्हिस्की के age के हिसाब से होता हैं
1.Photo of brands taken from internet 2. VAT-69 tried in a Tatanagar hotel in 2014
रेड लेबल यानि ६-१० साल, काला यानि कम से कम 12 वर्ष ग्रीन यानि कम से काम १५ साल और गोल्ड का मतलब 18 साल । सबसे ज्यादा age किया और सबसे महंगा है ब्लू लेबल जिसकी आयु कम से कम २०-24 वर्ष है । सिवास रीगल भी कइयों का प्रिय हैं और यह १२ साल age किया होता है । मैंने श्री लंका से २००९ में ग्रीन लेबल के २ बोतल लिए थे क्योंकि श्री लंका के करेंसी को वही खर्च कर देना था । २ साल पहले ही यह ख़त्म हुआ क्योंकि जब भी मेरे साले साहब या मेरे कोई बहनोई आते तभी बोतल खुलती है । पेरिस से लाये हुए Ballantine स्कॉच का एक बोतल अभी भी रक्खा पीने वाले का इंतज़ार कर रहा हैं । JB का एक बोतल भी लाया था । Glenfiddich भी कभी न कभी पिया था और तो और VAT -69 भी जापानियों ने टाटा में एक मीटिंग के बाद पिलाई थी । यह एक फ़िल्मी ब्रांड है जो ६०-७० के दशक में कई फिल्मों में दिखाई गयी थी ।
और अंत में एक कहानी । जर्मनी में एक भारतीय मित्र थे कुमार साहेब जो पद्मसंशेर राणा जिन्हे कुछ कारणों से नेपाल छोड़ रांची आना पड़ा था, के डॉक्टर के पुत्र थे । उन्होंने एक जर्मन से शादी कर शादी कर रखी थी और दो बच्चे थे उनके । करीब करीब हर वीकेंड वह खाने पर बुलाते । एक बार खाने के बाद उन्होंने एक छोटे गिलास में कुछ ढाला और बताया इसे एक घूँट में पी जाये । बाद में पता चला यह टकीला था । टकीला कई बार और पीया था जब साउथ अफ्रीका गए थे । एक हिंदी गाना भी टकीला पर है, बताए कौन सा ?