यात्रा का पहला भाग यानि श्री लंका के ब्लॉग के लिए यहाँ क्लिक करें
श्री लंका से लौटने पर हम लोग पहले से तय प्रोग्राम के अनुसार थिरुअनंतपुरम, कन्याकुमारी, रामेश्वरम, मदुरै की यात्रा पर निकल पड़े। उसीका वर्णन नीचे दे रहा हूँ।
चैन्नै में एक रात रुक कर ३१ अक्टूबर के दो बजे दिन में हम हवाई जहाज से त्रिवेन्द्रम के लिए रवाना हो गए और १६:२० तक वहाँ पहुंच भी गए । हमारा हवाई जहाज कई मिनटों तक चक्कर लगाता रहा। हम कोवालम बीच के उपर से कई बार गुजरे । यह बताना उचित होगा कि त्रिवेन्द्रम या थिरूअनन्तपुरम केरल की राजधानी होने साथ साथ कोवलम बीच के लिए भी प्रसिद्ध है। पिछली बार त्रिवेन्द्रम कॉलेज टूर में संभवतः 1969 में आया था। तब मध्य पूर्व की नौकरी मे कमाए पैसे केरल आने शुरू नहीं हुए थे। आलीशान मकानों और मॉल, होटल से केरल की जमीन पटी नहीं थी। तब केरल में हर तरफ हरियाली, साफ सुथरे गांव शहर, हर गांव में स्कूल, library ट्रेन से ही दिख जाते थे। केरल ने हमारा मन मोह लिया था तब। अब तो केरल के शहर भी कंक्रीट जंगल में बदल गए है। फिर भी केरल प्राकृतिक सौन्दर्य में अब भी किसीसे कम नहीं हैं। पश्चिमी घाट/ मुन्नार के पहाड़ झरने, चाय बगान, वन्य जीवन और अलेप्पी के हाउसबोट रिसोर्ट मन को मोहने के लिए काफी है। पिछली बार बहुत बड़े लाल केले खाए थे। इस बार कम ही दिखे।
हमारा रिसॉर्ट मुन्नार में २०१३ के ट्रिप में | दो कमरो वाले , हाउस बोट, अलेप्पी |
त्रिवेन्द्रम में होटल STAY क्लियर ट्रिप (CLEAR TRIP) से कॉम्प्लिमेंटरी था। क्लियर ट्रिप से मैंने बहुत सारे टिकट काठमांडू, दिल्ली और इस ट्रिप के लिए टिकट ख़रीदे थे। टैक्सी से हॉटल पहुंचे तो होटल रूम में छोटा किचन देख कर समझ गया लम्बे समय तक रुकने वाले मुसाफिरों के लिए हॉटल या होम स्टे है। शायद कोई और टुरिस्ट अभी ठहरा हुआ भी नहीं था। कमरे अच्छे थे बड़े थे, अलग से बैठक भी थी हर रूम में, पर रेस्टॉरेन्ट नहीं था। सिर्फ चाय और टोस्ट और आमलेट मिलते थे। हॉटल की अच्छी बात यह थी की बीच से 5 मिनट के दूरी पर था और बुरी बात यह थी की ऑटो - टैक्सी मुश्किल से मिलता था।
हमारा त्रिवेंद्रम में होटल बेकर्स रिसोर्ट | पद्मनाभ स्वामी मंदिर |
कमलेश जी ने हवाई अड्डे वाले टैक्सी ड्राईवर से अगले दिन के लिए कन्याकुमारी तक जाने आने के लिए बात पक्की कर ली थी। आज के टाईम में ओला,उबर हमारी टैक्सी की हर जरूरत पूरा कर देता है और अलग से चिंता करने की जरूरत नहीं पड़ती। कोवालम बीच नजदीक था और हम शाम को FRESH हो कर कोवलम घूमने चल दिए। बहुत सुन्दर लम्बा साफ सुथरा बीच था। पैदल चलते चलते हम थक भी गए। हम लोग एक हॉटल के बाहर लगे BEACH FACING कुर्सियों पर बैठ गए और डिनर का ऑर्डर कर प्रतिक्षा करने लगे। जब तक ऑर्डर बन कर तैय्यार होता हम और बीरू जी बगल के एक दो हॉटल देख आए। आश्चर्य जनक रूप से बीच पर ही कई अच्छे होटल में अच्छे रूम खाली मिले वे बहुत किफायति भी थे। हम क्लियर ट्रिप के FREE HOTEL STAY किसी अगले ट्रिप के लिए बचाने का सोचते तो कम पैंसे में ही अच्छे रूम/ होटल और बीच पर रुकने का आनंद ले पाते । रेस्टॉरेन्ट की कमी भी नहीं थी बीच पर। "अब पछताएँ होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत" कहावत चरितार्थ हो रही थी।
अटकुल भगवती मंदिर | कनककुन्नू पैलेस |
अगले दिन यानि १ नवंम्बर को हम कन्याकुमारी के लिए निकले। कन्या कुमारी की यात्रा पर निकलने से पहले हम त्रिवेन्द्रम में ही दो प्रसिद्ध मन्दिर देख आये। पहला मंदिर था अटकुल भगवती मंदिर। यह मंदिर महिलाओं में ज़्यादा लोकप्रिय हैं। महिलाओं का सबरीमाला भी कहते हैं इसे। ड्रेस कोड या पोशाक की कुछ समस्या हुई पर फिर दीपा अपनी भाभी के साथ अंदर चली गयी और हम पुरुष परिसर के अन्य मंदिरों में दर्शन अर्चना करने लगे। वहाँ से हम प्रसिद्ध पद्मनाभस्वामी मंदिर गए। पद्मनाभस्वामी मंदिर केरल राज्य के तिरुअनन्तपुरम में स्थित भगवान विष्णु का प्रसिद्ध मंदिर है। भारत के प्रमुख वैष्णव मंदिरों में शामिल यह ऐतिहासिक मंदिर तिरुअनंतपुरम के अनेक पर्यटन स्थलों में से एक है। पद्मनाभ स्वामी मंदिर विष्णु-भक्तों की महत्वपूर्ण आराधना-स्थली है। मंदिर की संरचना में सुधार होते रहते हैं। उदाहरणार्थ 1733 ई. में इस मंदिर का पुनर्निर्माण त्रावनकोर के महाराजा मार्तडं वर्मा ने करवाया था। पद्मनाभ स्वामी मंदिर के साथ एक पौराणिक कथा जुडी है। मान्यता है कि सबसे पहले इस स्थान से विष्णु की प्रतिमा प्राप्त हुई थी जिसके बाद उसी स्थान पर इस मंदिर का निर्माण किया गया है। तिरुअनन्तपुरम का नाम अनन्त पद्मनाभ स्वामी के कई नामों में से एक पर आधारित है। इस सुन्दर आकर्षक मंदिर के अंदर जाने के लिए पुरुषों के लिए ड्रेस कोड धोती (ऊपर का भाग निर्वस्त्र) और महिलाओं के लिए साड़ी था। ड्रेस कोड का पालन भी कड़ाई से हो रहा था। चूँकि धोती वैगेरह किराये पर मिल रहा था और कपडे बदलने की जगह भी थी। हम ड्रेस बदल कर दर्शन के लिए अंदर गए। दर्शन भी तुरंत ही हो गया। प्रसाद भी अच्छा स्वादिष्ट मिला। मन्दिर परिसर के अन्य मंदिरों का दर्शन कर और आँगन में बैठ कर प्रसाद खा कर हम सभी घंटे भर के भीतर बाहर आ गए और कपडे़ बदल कर कन्या कुमारी के लिए प्रस्थान कर गए ।