बहुत दिनों बाद लिखने बैठा हूँ । क्षमा करें । Pet parenting का एक अलग ही जज्बा होता है, और मेरा मकसद उन पर कटाक्ष करने का नहीं हैं। पर मै शुरू करता हूँ आज सुबह के मॉर्निंग वाक के दौरान देखे गए एक दृश्य से। मै जब कार्मेला इन्क्लेव (डिबडीह रांची) के पास से गुजर रहा था तब मैने देखा एक आदमी एक पूंछ कटे लम्बे थूथन वाले कुत्ते को (Breed हमें पता नहीं Dachshund जैसा ही लग रहा था) को गेट से बाहर लाने पर उसके Leash को खींच कर उसे दूर ले जाना चाहता था पर शायद उसे कुछ जल्दी थी और उस कुत्ते ने अपने मालिक के इच्छा के विरुद्ध गेट के पास ही मल त्याग कर दिया ।
Dachshund image curtsey wikipedia
मै समझ सकता हूँ , मै क्या हर मनुष्य समझ सकता है कि जब लगी हो और आसपास शौचालय न हो तो कैसी स्थिति होती है। जिन लोगो ने भारत में लम्बी दूरी के बस में यात्राएं की है वे तो अवश्य वाकिफ होगे और मुझसे जरूर इत्तेफा़क रखते होंगे। दूसरी बात कि पालतू कुत्ते की खुराक भी काफी ज्यादा और गरिष्ठ होती है, मालिक चाहे खुद शाकाहारी हो कुत्ते को नन वेज डॉग फुड जरूर खिलाता है। अब उन्हें इतना खाने के बाद दिन में सिर्फ एक या दो बार मल-मूत्र त्याग करने का अवसर मिलता हैं शायद यह एक प्रकार की क्रूरता ही हैं । खैर मैं सोचने लगा क्या उन लोगो के तरह जिन्हे कब्ज रहता है या जो मसालेदार गरिष्ठ खाना कहते हैं अक्सर बबासीर से पीड़ित हो जाते हैं, तो क्या पालतू कुत्तों में भी यह बीमारी होती हैं ?
मैंने भी एक बार PET PARENTING की है । और उसीका विवरण मैं नीचे दे रहा हूँ । १२ साल पहले का आज का दिन याद आ गया । दो-तीन महीने पहले मेरी पत्नी एक बिल्ली के बच्चे को जिसको उसकी माँ ने हमारे निर्माणाधीन घर के खुदे नींव में छोड़ दिया था, घर ले आई थी । दो -तीन दिन तक वह बच्चा असहाय पड़ा रहा था और उन दो दिनो तक उसका जिन्दा रह जाना एक miracle ही था । अक्सर बिल्ले ऐसे बच्चे को मार डालते हैं । बिल्ली के बच्चे को घर ले आना मुझे एकदम पसंद नहीं आया और मैंने अपनी राय बता भी दी पर एकदम से तो मैँ भी मना भी नहीं कर पाया । बिल्ली का वह बच्चा हमारे यहाँ पलने लगा । पहले दूध बूँद बूँद पिलाया गया फिर बोतल से और वो मरियल सा बच्चा ठीक ठाक लगने लगा । घर के पुराने सामने जैसे डब्बों के साथ खेलने लगा और लोगों का अटेंशन भी खोजने लगा । उसका म्याऊ म्याऊ घर में गूंजने लग गया और सभी के साथ मैं भी उस से जुड़ने लगा गया। घर में अंडा का आमलेट बनने पर वह पागल सी हो जाती और म्याऊ म्याऊ करते करते मेरी पत्नी के चारों तरफ घूम घूम कर ऑमलेट मांगती और जब तक न मिले ऐसा ही करती । हम सब उसके मोह में पड़ गए थे । तभी मेरी पत्नी को USA जाना पड़ा मेरे छोटे नाती के जनम के समय और बिल्ली का यह बच्चा जिसे हमने नाम दिया था "CATRINA " मेरे और मेरे भतीजे के साथ अकेला रह गया और मैं उससे और अटैच हो गया ।जून में मैं रिटायर हो चुका था और अब सारे समय CATRINA के साथ खेलते बीतता । कभी कभी उसे नहा देता, शैम्पू कर देता था तो वह मस्त सो जाती ऐसे पेट सहलाने पर भी अक्सर सो जाती । धीरे धीरे वह फैमिली का हिस्सा कब बन गई पता भी नहीं चला ।
फिर जुलाई (२०१०) आ गया और हमें गोआ जाना था भतीजे के एडमिशन के लिए जिसके तुरंत बाद मुझे भी USA जाना था । इस नन्ही जान को किसके भरोसे छोड़ जाऊ ? इस प्रश्न का उत्तर नहीं था हमारे पास । मैंने NOTICE किया था की किराने के दुकान वाले बिल्लिया पालते हैं ताकि वे चूहे मार सके । आईडिया अच्छा लगा और आस पास की सभी दुकान वालों से पूछ लिया । कोई रखने को तैयार न हुआ । मैंने फिर PET CARE सेंटर का पता लगाया । रांची में कम ही थे पर गूगल कर एक PET CARE CENTRE खोज निकला । उससे फोन पर बात की तो पता चला करीब 15 हज़ार महीने का लगेगा । यानि मेरे लौटने तक करीब ७५-८० हज़ार । यह मेरे जैसे अवकाश प्राप्त व्यक्ति के औकात से बाहर था । फिर से पंसारी - किराना दुकानों के चक्कर लगाने लगा ।शायद कुछ दे ले कर मामला सेट हो जाय। काम तो नहीं बना पर एक दुकानदार के सुझाव दिया कि इसे तपोवन मंदिर के पार्क में छोड़ दे ।
हमारी कैटरीना और जिस बिल्ली को मंदिर में देख कर हम उसे अपनी CATRINA समझने लगे
नीचे दिए लिंक पर क्लिक कर विडियो देखे।
एक यू टूयब विडिओ हमारी कटरीना in Happier days
वहां कई बिल्लिया रहती हैं पल जाएगी । मुझे अच्छा नहीं लगा क्योंकि एक दिन जब गलती से यह घर से बाहर निकल गई थी तब एक बिल्ले ने इसे घायल कर दिया था । मैँ समय पर पहुंच गया नहीं तो शायद मार ही डालता । पर मेरे पास कोई ऑप्शन नहीं था इस लिए हम उसे एक बैग में डाल कर मंदिर ले गए । पार्क में बैग से निकाल पार्क में रख दिया । नए माहौल में उसका ध्यान हम पर से थोड़ी देर हटा और हम वहां से जल्दी जल्दी कार के तरफ जाने लगे । उसके म्याऊ म्याऊ तुरंत शुरू हो गया जैसे हमे खोज रहा हो या बुला रहा हो । मेरे कदम रुक गए पर मेरे भतीजे ने मुझे वापस जाने से रोका । अपने जज़्बात पर मैंने किसी तरह काबू पाया । हम लोग उसे मंदिर में छोड़ कर आ गए । मन में कई विचार उभर रहे थे । क्या खा रहा होगा ? शायद कोई उसे घर ले जाय । किसी बिल्ले ने उसे घायल या मार तो नही दिया होगा । ऐसे बेचैनी लिए हम गोवा चले गए और वहां से आने के बाद मैं US चला गया । कुछ महीनो बाद US से लौटने के बाद एक बार मंदिर गया । उसी रंग की एक बिल्ली दिखी । शायद वही है सोच कर मैंने मन को मना तो लिया पर अभी भी एक अपराध बोध से ग्रसित हूँ ।