Lemon and Tulsi Tea
चाय को चाय ही रहने दो भाग 2
चाय को चाय ही रहने दो भाग 3
कल अंतरराष्ट्रिय चाय दिवस था। भला हो सोशल मिडिया का नहीं तो इतने अंतरराष्ट्रिय दिवसों का पता ही नहीं चलता। अपन को तो सिर्फ गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस ही पता था। खैर यदि चाय दिवस आने ही वाला था तो दो तीन दिन पहले ही बता देते हम एक original यानि शुद्ध , खालिश पत्ती वाली चाय पी कर चाय दिवस मना भी लेते वर्ना हम तो रोज तुलसी अदरक चाय ही पीते है। हमारे यहाँ चाय तो कोई कोई ही पीता है, पर बुलाते सभी को चाय ही है। ईलायची चाय, जास्मीन चाय, नीली चाय, हरी चाय, फूल पंखुड़ी की चाय, हर्बल चाय और सबसे प्रसिद्ध काली नमक, चाट मसाले वाली लेमन टी। चाय, चहा, चा, टी भारत का सबसे लोकप्रिय पेय है चाहे जैसे पीऐ । पर मै कहता हू हर गरम पेय को चाय तो न बोलो । पहले ब्राउन रंग की पेय को (coke को छोड़ कर) चाय बुला लेते थे तब तक ठीक था अब तो नीली, पीली,हरी लाल सभी को चाय बुला लेते है। कोई और नाम रख लो भई, चाय को चाय ही रहने दो। खैर देर से ही सही पता लग ही गया कि कल अंतररष्ट्रीय चाय दिवस था, तो एक ब्लॉग तो बनता है चाय पर। हाजिर हैं ।
Blue Aprajita Flower Tea
सबसे पहले मै बताना चाहता हूँ कि जब 2007 में जर्मनी में आयोजित एक औद्योगिक प्रदर्शनी में भाग लेने वाली टीम के सदस्य के रूप में मुझे चुना गया तो मैं खुश था यह मेरी पहली ऑफिशियल विदेश यात्रा थी जिसमें मैं काम करने नहीं बस कुछ देखने जा रहा था। अन्य सभी विदेश यात्राओं में कमोबेश कुछ करना ही पड़ा था। ऐसे प्रदर्शनी में भाग लेने आए कई अन्य कम्पनी से बहुत से पुराने मित्र, और कुछ सिनियर से interact करने और दोस्ती renew करने का मौका मिला। कुछ नयी तकनीक देखने, सीखने का मौका भी मिला । शायद मेरी कम्पनी भी यहीं चाहती थी । प्रदर्शनी में भारतीय और चाईनीज कम्पनियों के बहुत सारे स्टॉल थे और विजिटर भी ज्यादा इन्हीं दो देशों से आए थे। हम लोग कुछ ग्राहकों के जैसे SAIL के सलाहकार थे, इसलिए विजिटिंग कॉर्ड देखते ही हर काऊंटर पर हमारी खातिर खूब होती । और चाय या कॉफी तो हर जगह जरूर पूछते ही थे लोग । मेरा चॉइस हर बार चाय ही होता। घूमते घूमते मै एक चाईनीज कंपनी के काउंटर पर पहुंच गया और चाय या कॉफी पूछने पर चाय की मांग कर डाली । पहली बार टी बैग की जगह फूल के पत्तियों वाली टी बैग मिला । एक सिप लेते ही कहीं थूक आने का मन करने लगा। Embarassed चीनी अगल बगल के स्टॉल से असली टी बैग लाने का कोशिश में लग गए, चीनी लोग कैंटीन से लाने में लगते उसके पहले हम उन्हें मना कर आगे बढ़ गए तांकि दूसरे स्टॉल पर मुंह का स्वाद दुरुस्त कर सकें।
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Tea factory and tea garden in Shri Lanka 2009, Munnar 2013
आइए अब चाय के इतिहास के बारे में कुछ जानने की कोशिश करते हैं और यह भारत में इतना लोकप्रिय कब और कैसे हुआ इस पर भी गौर करने की कोशिश करते हैं । 1820 के दशक की शुरुआत में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने असम, भारत में बड़े पैमाने पर चाय का उत्पादन शुरू किया, जो पारंपरिक रूप से बर्मा की एक किस्म थी। चीनी चाय को अलग समझा जाता था । अब असम की चाय एक मिक्स वैरिएटी की चाय हैं। चीन का चाय पर एकाधिकार करीब हज़ार वर्ष का था और इसे वे किसी तरह अपने देश के बाहर नहीं जाने देना चाहते थे पर सन १८०० के आस पास एक स्कॉटिश बॉटनिस्ट, चीनी रईस का भेष बना कर धोखे से चाय का पौधा चीन से बाहर ले आने मे सफल हो गए, और फिर यह पौधा सारी दुनिया में फ़ैल गया । इसके हज़ारों पौधों को दार्जीलिंग के ढलान पर लगाए गए और बहुत सारे बर्बाद हो गए पर कुछ बच भी गए । दार्जिलिंग की चाय मे सिर्फ चीन से लाए पौधों या उनके वंशजों का ही इस्तेमाल किया गया और यह अपनी किस्म की अकेली सुगन्धित चाय हैं ।
आज भारत दूसरा सबसे ज्यादा चाय उत्पादन करने वाला देश है पर अपने उत्पादन का ७०-८० % देश में ही खपत हो जाती हैं । जबकि शुरूआती दिनों में महात्मा गाँधी ने चाय की तुलना कोको और तम्बाकू से करते हुए लोगों इसे नहीं पीने की सलाह भी दी थी।
पुराने प्रचार -चाय के
लेकिन स्थानीय खपत यू ही नहीं बढ़ी । ब्रिटिश चाय कंपनी और ब्रिटिश सरकार को बहुत यत्न करने पड़े लोगों के बीच चाय की तरफ झुकाव पैदा करने में । पुराने समय में मैं जब भी नवादा (बिहार) से 70 KM दूर अपने शहर जमुई बस से आता जाता था तो बस पकड़ी-बरांवा में जरूर रूकती थी लोग वहाँ का मशहूर बाड़ा (बालूशाही) खरीदने को उतरते ही थे । वहाँ एक पुराना प्रचार बोर्ड पर लिखा था "मैं और मेरा भाई पीते है रोज़ चाई " । ऐसे कई पोस्टर जिसमे कुछ चाय के लिए दूसरा मैसेज होता था, गाहे बेगाहे दिख जाते थे महात्मा गाँधी के चाय नहीं पीने की अपील के बावजूद चाय आज भारत में सबसे लोकप्रिय पेय है ।
1920 के दशक की शुरुआत में, प्रख्यात रसायनज्ञ और उत्साही राष्ट्रवादी आचार्य प्रफुल्ल रे ने चाय की तुलना जहर से करने वाले कार्टून प्रकाशित किए। बाद में, महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तक, A key to health में एक अध्याय लिखा, जिसमें बताया गया कि चाय को कसैला बनाने वाला यौगिक टैनिन मानव उपभोग के लिए खराब क्यों था।
उन्होंने तंबाकू जैसे पदार्थों के समान वर्ग में चाय को "नशीला" कहा। जब मैं बच्चा था चाय घर में रोज रोज नहीं बनती थी । सिर्फ मेहमानों के लिए चाय बनाई जाती । अब की बात करे तो बापू की बात लोगों ने नहीं मानी और आज शायद ही कोई भारतीय होगा जो चाय नहीं पीता हो ।
चाय को आधी दुनिया चा,चाई या चाय के नाम से जानती है और बाकी आधी दुनिया टी, टा या टे। इसका कारण भी दिलचस्प है। चीन में नौवीं शताब्दी में चाय के लिए एक नया अल्फाबेट जोड़ा गया जो पहले व्यवहार में लाने वाले अक्षर (tu) के एक सोयी लाईन हटाने से बनी थी। जिसे इतने बड़े चीन के कुछ राज्यों में टा या टे पढ़ा गया और कुछ में चा पढ़ा गया। अब कुछ देशों में सड़क मार्ग से चाय भेजे गए और चीन के उन स्थानों पर इसे 'चा' कहा जाता था इसलिए इन देशों में इसे चा, चाई या चाय के नाम से जाना जाता है और उसी तरह जहाँ भी समुद्र मार्ग से भेजा गया, वहाँ नाम पड़ा टे, या टी। और हमारी दुनिया टी और चाय में बंट गई।
और अंत में चाय बनाने का तरीक़ा :
दार्जीलिंग चाय
एक छोटे, गर्म चायदानी में 1 चम्मच अच्छी गुणवत्ता वाली ढीली पत्ती वाली दार्जिलिंग चाय डालें। उसके ऊपर ताजा उबला हुआ पानी डालें जिसे एक या दो मिनट के लिए ठंडा होने दिया गया हो । 3 मिनट के लिए प्रतीक्षा करे । दूध, चीनी या नींबू के बिना पिएं, चाय के अनूठे और नाजुक स्वाद और सुगंध का असली मजा ले ।
अदरक वाली चाय - चा ,चाहा : घर पर भारतीय चाय बनाने का तरीका:
चूल्हे पर एक छोटे सॉस पैन में पानी, दूध अदरक और अन्य मसाले को उबाल लें।
गर्मी कम करें और काली चाय डालें। चाय के उबलने का इंतज़ार करें। इस मिश्रण को मग या कप में छान लें; इससे सारे मसाले और चायपत्ती छन्नी में रह जाएगी।अपनी चाय में चीनी डालकर स्वादानुसार मीठा करें।
ऐसे जाते जाते याद दिला दूँ चाय को चाय ही रहने दो नया स्वाद न दो ।