मैने कई शहरों में अपने बेहतरीन साल और महीने बिताए है। इनमें राँची, जमुई, सेलम और डुसेलडॉर्फ के बारे में मैने कभी न कभी किसी न किसी ब्लॉग में लिखा है । पटना के बारे में थोड़ा थोड़ा बहुत सारे ब्लॉग में कुछ न कुछ लिखा है। पर कई शहर अब भी है जहाँ मै रहा हूँ, कई बार गया हूँ, जिससे मोहब्बत सी हो गई है और उस पर बारी बारी से लिखने का मै सोच रहा हूँ। इस बावत मुझे जिन शहरों की याद आ रही है वे है बोकारो, विशाखापत्तनम, सुलुरपेट (श्रीहरिकोटा),बेगुसराय, प्रीटोरिया और पेरिस। पटना के बारे में जो मैने कई पोस्ट मे लिखा उसे भी एक ब्लॉग मे लाने की ईच्छा है मेरी। बोकारो पर एक ब्लॉग लिखा भी है मैने पर शहर के बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखा है। आज मेरा यह ब्लॉग विशाखापतनम् को समर्पित है।
विशाखापतनम् जिसे हम और हमारे जैसे कई लोग प्यार से वाइज़ाग भी कहा करते है। मैंने कुछ साल और मेरे परिवार ने भी कुछ समय बिताये हैं । पूर्वी भारत से दक्षिण भारत के हर यात्रा में आने वाला एक स्टेशन सभी को याद होगा जिसे पहले वाल्टेयर (अभी भी पेदा वाल्टेयर और चिन्ना वाल्टेयर यहाँ के दो मोहल्लो का नाम है।) कहा जाता था और अब कहते हैं विशाखापत्तनम। HOWRAH से चेन्नई सेंट्रल (जिसे भी पहले मद्रास सेंट्रल कहते थे) जाने वाला हर एक ट्रेन यहाँ कम से कम आधा घंटा तो अवश्य रुकती हैं क्योंकि ट्रेन का DIRECTION यहाँ बदल जाता हैं और ट्रेन इंजन को आगे से हटा कर पीछे लगाया जाता हैं । मैंने भी इस स्टेशन को चेन्नई, सालेम, बैंगलोर या फिर दक्षिण भारत की यात्राओं में कई बार CROSS किया हैं । १९८० में तो सालेम से कार से लौटते समय अन्नावाराम, जो वाइज़ाग से १६ की मि पर है, में रात भी गुजारी । फिर १९८२-१९८३ में विशाखापतनम स्टील प्लांट, जिसका शिलान्यास १९७१ में ही हो गया, के दो मिलों के लिए मेरी कंपनी ने आर्डर लेने का प्रयास शुरू किया और मैं भी इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बन गया और फिर हुआ मेरे वाइज़ाग में आने जाने और रहने का सिलसिला । मैंने करीब ३ साल बिताये यहाँ और १९९३ तक समय बिताया । २००१ में अंतिम बार इस जगह पत्नी के साथ कुछ जगहे घूमे और पुरानी यादें ताज़ा कर आये । मैं अपने अनुभव को साँझा कर रहा हूँ यहाँ मै नए प्रोजेक्ट के काम से 2007 से 2010 के बीच भी कई बार गया पर कहीं घूमने का मौका तब नहीं मिला। ।
चेन्नई यात्रा में वाल्टेयर एक प्रमुख जंक्शन स्टेशन होता था। यहाँ ट्रेन नाश्ता या खाना का समय तक पहुँचती और हम इसका इंतज़ार कर रहे होते । ऐसे तो प्लेटफार्म पर ही सही अच्छा खाना जो अक्सर गरमा गरम भी होता था मिल जाता था फिर भी कभी कभी हमारे साथी स्टेशन के बाहर मिलने वाले बिरयानी लाने के लिए निकल जाते क्योंकि ट्रेन का स्टॉप अक्सर ४० मिनट का होता था । वाल्टेयर के बाद आने वाले जिस स्टेशनों की प्रतीक्षा रहती थी वह होती विजयवाड़ा और राजमुंद्री। इन स्टेशन पर हम खाने के लिए ही उतरते । १९८६ में वाल्टेयर स्टेशन का ही नाम बदल कर हो गया विशाखापत्तनम ।
जिस पहली वाकये का मैं जिक्र करना चाहता हूँ वह है जब मैं १९८० में सालेम मैं अपनी पहली कार खरीदी और मैं उसीसे रांची लौट रहा था । राजमुंद्री से जब पास कर रहा था तो रात में कहा रुके यही सोच रहा था । मन में सोचा था वाइज़ाग में ही रुकेंगे पर अन्नावरम पहुंचते पहुंचते अँधेरा हो गया और चूंकि मुझे रात में गाड़ी चलने में बहुत दिक्कत होती है । यहीं रात बिताने का फैसला किया।अन्नावरम में एक पहाड़ी पर श्री सत्यनारायण स्वामी का एक बहुत ख़ूबसूरत मंदिर हैं और उसीको देखा और हम वही रुक गए । रात का समय था कहां जाते ? पहाड़ी के नीचे स्थित एक धर्मशाला में मैंने चटाई पर सो कर रात गुज़ार दी ।
Annavaram photo curtsey wikipedia
सुबह सुबह नहा कर, पहाड़ी के नीचे बने मंदिर में पूजा की और फिर आगे निकल लिए। गजुवाका पहुंच कर इडली का नाश्ता कर आगे बढ़ गए भुबनेश्वर के लिए । इस तरह मै वाइज़ाग को छू कर निकल गया ।
१९८२ आते आते मेरा सालेम प्रोजेक्ट का काम पूरा हो गया और मैं विशाखापत्तनम में बनने वाले सबसे लम्बे LIGHT AND MEDIUM MERCHANT MILL प्रोजेक्ट से जुड़ गया और वाइज़ाग की कई यात्राएं की । हम लोग यह प्रोजेक्ट जर्मन लोगों के साथ कर रहे थे और उनके साथ साथ रहने के लिए हमें भी हवाई यात्रा से ही वाइज़ाग जाने का ऑर्डर आया और हम - रांची-कलकत्ता- वाइज़ाग हवाई मार्ग के यात्री बन गए । जब तक प्लांट डिज़ाइन का काम चल रहा था वहां के एक बहुत अच्छे होटल रामोजी फिल्म सिटी वालो के "डॉलफिन" में ही हम रुकते । और वहीं से प्लांट के प्रोजेक्ट ऑफिस जाते थे । हमारा एक ऑफिस बस स्टैंड के पास भी था जहाँ कभी कभी जाना पड़ता था । कई बार बस स्टैन्ड में आरकू वैली की बस देखता और जाने का प्लान बनाता पर जा न सका अभी भी मेरे bucket list मे अरकू है। डॉल्फिन होटल में तब दो रेस्टोरेंट और एक कॉफ़ी शॉप हुआ करता था पर बाद में ७ वे तल्ले पर होराइजन रेस्टोरेंट खुला और कॉफ़ी शॉप बंद हो गया । वसुंधरा जो एक शाकाहारी रेस्टोरेंट था हमारे बीच लोकप्रिय था लेकिन रविवार हम होराइजन में ही LIVE म्यूजिक के साथ रात का खाना खाते । रांची में टीवी की शुरुआत १९८३ के अंत तक शुरू हुयी थे पर इस होटल में रूम में टीवी और केबल पर प्रोग्राम चलता रहता । जब डिज़ाइन का काम ख़त्म हो गया और प्रोजेक्ट को बनाने और चलाने के लिए हमारी पोस्टिंग शायद १९८८ या ८९ में वाइज़ाग हो गयी । शुरुआत में मैंने स्कुल के छुटियों में परिवार को भी वाइज़ाग लाने का प्लान किया। हमने अपने एक दोस्त को MVP कॉलोनी में एक घर किराये पर ले देने का पैगाम दे दिया। अपनी गाड़ी भी लानी जरूरी थी क्योंकि कार अलाउंस जो लेनी थी । मेरे पास एक स्टैण्डर्ड १० सफारी मॉडल कार थी । मैंने ड्राइवर के बजाय एक मेकानिक को ले जाना उचित समझा पर हमारा मैकेनिक गाड़ी चलाना नहीं जनता था । और पूरे १००० किलोमीटर मुझे ही गाड़ी चलानी पड़ी । अंतिम रात मैंने ट्रक ड्राइवर्स के स्टॉप पर बिताई थी और लगातार ट्रक के आने जाने के कारण रात भर जगे ही रह गए थे । अंतिम दिन करीब ४०० Km की गाड़ी चला कर आया था और शाम तक वाइज़ाग पंहुचा था थक कर चूर था मै । बिस्तर पर गिरते ही सो जाने की हालत में था । मैंने मैकेनिक को MVP बीच के पास के दुकान से डोसा ले आने को कह कर मैं बिस्तर ठीक करने लगा । इसी समय BELL बजी और वैद्यनाथन मिलने आया हुआ था कैसे कब करते करते आधा घंटा हुआ होगा की फिर एक एक कर दूसरे दोस्त आते गए और दो तीन घंटे बीत गए । हर जन के जाने के बाद मैं सोचता सो जाऊँ, पर तभी कोई और आ जाता । मेरे पागल होने के पहले लोगों का आना जाना बंद हुआ और मैं सो सका । अगले तीन बार हम कम्पनी के गेस्ट हाऊस, उक्कू नगरम हाऊस, और ऊक्कूनगरम सेक्टर 8 मे रहा। मेरे कंपनी को २००७ में एक और प्रोजेक्ट का ऑफर मिला वाइज़ाग स्टील प्लांट से और मुझे कुछ समय और वाइज़ाग में बिताने को मिला ।
कई बार मेरी टेम्पररी पोस्टिंग वाइज़ाग हुई पर सिर्फ पहली बार ही मैंने गर्मी छुट्टी में परिवार को वाइज़ाग बुलाया । हम उनके साथ कई जगह घूमने गए । जिसमे ऋषिकोंडा बीच, MVP बीच, डियर सफारी और ज़ू हम गए जो हमारी MVP कॉलोनी से उत्तर की तरफ था यानि जब मैं वाइज़ाग आ रहा था तब ही मैंने इन सब जगहों को देख लिया था और सोच भी लिया था की इन सब जगहों पर फिर आऊंगा अपने परिवार के साथ । कुछ ही दिनों में मेरा एक कलीग रांची से परिवार सहित घूमने आये और इस बीच हमारे एक कॉमन दोस्त भी मिल गया जिनके साथ हम कई जगह घूमे । हमारा स्टैण्डर्ड सफारी मॉडल कार घूमने में बहुत काम आया । रास्ते में बच्चों द्वारा कहे शब्द अच्छा लगता "पुराना मॉडल का मारुती हैं "। पर सबसे पहले मैं MVP कॉलोनी के बारे में कुछ बताना चाहूंगा । MVP का पूरा नाम हैं मुव्व वाणी पालम यानि पायल की स्वर वाला मोहल्ला । जितने चाय की दुकान नहीं हैं यहाँ उससे ज्यादा शराब की दुकाने थी । पर उनमें कोई भी रेस्ट्रा या बार नहीं था । उनके पास बार का लइसेंस था ही नहीं । पर वे शराब को अपने दुकान में लोगों को बैठा कर पिला नहीं सकते थे। उन्हें सिर्फ पूरी बोतल ही बेचना पड़ता। ज्यादातर ग्राहक पूरा बोतल नहीं खरीदना चाहते। इस problem से निपटने के लिए दुकानदार ने सैंपल बेचा करते यानि करीब ९० ml एक गिलास में ढाल के एक घूंट में खड़े खड़े पीना होता था । दूसरा था होम लाइब्रेरी जो हर ४-५ घरों में से एक में मिल ही जाता था । एक security deposit जमा करने के बाद प्रति किताब 20-25 पैसे देकर किताब इस्यू कर सकते थे। MVP सागरतट एक बढ़िया beach था पर मछुवारों के बस्ती नज़दीक थी और यह बीच उनके लिए open स्काई टॉयलेट ही तो था । यानि यह एक गन्दा सागरतट था ।
एक कहानी याद आ रही है। तेलगू में एक शब्द है 'लेदू' जिसका हिन्दी मे अर्थ है 'नहीं'। एक बार मेरा टीनएज बेटा पड़ोस के दुकान से दूध लाने गया पर दूध मांगने पर दूकान वाली ने कहा लेदू, दो लेना है समझ कर मेरा बेटे ने दो पैकट उठा लिए। दुकान वाली ने जब मना किया तो झुंझला कर वापस आ गया "पहले कहती है 'ले दू' और उठाने पर मना करती है। हम हँस पड़े थे।
हम लोग अपनी अपनी कार से ऋषिकोंडा बीच गए और पिकनिक मनाई नज़दीक ही एक डियर सफारी पार्क था तब वह भी गया । दूसरा बीच जहाँ गए थे वह था गंगावरम बीच
जिसका रास्ता हमारे वाइज़ाग स्टील प्लांट के बीच हो कर जाता था वहां जाने के लिए पास लेकर जाना पड़ा । अब तो बाहर से भी रास्ता हैं । इसी जगह एक दूजे फिल्म के कुछ गानों की शूटिंग भी हुई थी । बच्चों को बड़ा मजा आया । अपने बोकारो के मित्र बिनय और उदय सिंह के परिवार साथ ही वहां गए थे ।
सिम्हाचलम मंदिर Photo Curtsey Wikipedia
उसी ट्रिप में हम नरसिंह मंदिर देखने सिम्हाचलम गए थे जो NAD कोथा रोड जक्शन से सिर्फ ६ km दूरी पर था । मंदिर एक पहाड़ी पर है। यहाँ दो बार गए थे । नीचे गाड़ी पार्क कर बस से ऊपर गए थे । पहली बार लम्बी लाइन में लगाना पड़ा जबकि दूसरी बार आसानी से दर्शन हो गया था । जब तक बच्चे साथ थे हम RK बीच भी गए थे जहाँ मरीन ड्राइव और जुहू चौपाटी का मजा एक साथ आता था ।
थोटलकोण्डा बुद्धिस्ट स्तूप Photo Curtsey Wikipedia
ऐसे तो ऑफिस के काम से कई बार वाइज़ाग गया पर एक बार पत्नी के साथ २००१ में भी वाइज़ाग गया था । उस बार एक शादी में रांची से कुछ कुक को लेकर हैदराबाद गया था और लौटते हमें वाइज़ाग में गाड़ी चेंज करना थे । काफी वक़्त मिल गया वह और हम कुछ नयी जगहे जैसे सबमरीन म्यूजियम, थोटलकोण्डा बुद्धिस्ट साइट और शिपयार्ड /पोर्ट स्थित टेम्पल वैगरह भी घूमे ।
्Submarine Museum
इन सभी जगहों में जो जगह अनोखी लगी वह था हिंदुस्तान शिपयार्ड और वाइज़ाग पोर्ट । तीन पहाड़ियों पर यहाँ तीन धर्म के पूजा स्थल हैं । जहाँ हम सबसे पहले श्रृंगमणी पहाड़ी पर स्थित वेंकटेश्वर मंदिर मे गए जहाँ प्रसाद खाने के बाद आगे सीढियाँ चढ़ी फिर जैसे जैसे समुद्र तट की ओर बढ़े दरगा कोंडा पर स्थित मदनी वाले बाबा की दरगाह दिखा और फिर दिखा रोस हिल पर स्थित चर्च ।
एक डॉल्फिन जैसी दिखने वाला पहाड़ी जिस पर लाइट हाउस भी था वह भी दिखने लगा । लोगों ने बताया जब कोई जहाज इस Natural पोर्ट की तरफ बढ़ता तब नाविकों को ये पुजा स्थल एक सीध में दिखता है और उसकी उम्मीदें बंध जाती है की मंज़िल आ गयी ।