18 मई 2009 को श्री लंका का गृह युद्ध समाप्त हो गया। जब थोड़ी शांति स्थापित हो गई तो श्री लंका भारतीय पर्यटकों के लिए धीरे-धीरे खुलने लगा था। मेरा रिटायरमेंट भी अगले साल ही था। LTC ले कर कहीं घूमने का अंतिम मौका। कोई नई अनोखी जगह घूमने की इच्छा हमारे मन में घुमड़ने लगी थी । हमारा (मेरा और पत्नी जी का) WANDERLUST- भ्रमण लालसा बहुत समय से परेशान भी कर रही थी। किसी पड़ोसी देश (मेरे ससुराल नेपाल को छोड़ कर) जहाँ वीसा का झंझट न हो घूम आने के विचार मेरे मन में आने लगे थे। मलेशिया, थाईलैन्ड या सिंगापुर ? अपने कई यात्राओं के साथीे रहे दीपा और कमलेश जी (मेरी छोटी बहन और बहनोई) से विचार करना उचित समझा, वे सहर्ष साथ चलने को तैय्यार और उत्साहित थे। उन्होंने हाल ही में सिंगापुर और मलेशिया की यात्रा की थी ऐसे में श्री लंका जाना ही उचित लगा। दुर्गा पुजा छठ के बाद ही कहीं जाना है यह निश्चित किया गया। सितंबर में दुर्गा पूजा और अक्टूबर में दिवाली और छठ के बाद का प्रोग्राम बनने लगा और हम श्री लंका के लिए TOUR PACKAGE ढूंढने लगे । अक्षय इन्डिया टूर्स, चैन्नै के हरिबाबू ने करीब 20000/- प्रति व्यक्ति का पैकेज का ऑफर विस्तार में भेजा। कमलेश बाबु ने फोन पर मुझसे कहा कि "मोल भाव का काम आप मुझ पर छोड़ दीजिए" । चूंकि वे चैन्नै में ही थे और हरिबाबू से तमिल में भी बात कर सकते थे उनके प्रयत्न से बात कुछ रु13750/- PP पर फाईनल हो गया। 3 रातों और 4 दिनों का प्रोग्राम था। चैन्नै कोलम्बो का वापसी का हवाई जहाज का टिकट, 3 स्टार होटल डिनर और नाश्ता INCLUDED. सिर्फ जगह जगह ENTRANCE FEE हमें देने थे। कुल चार लोग थे हम लोग इससे अच्छा 'डील' क्या मिलता ? अब तो टूर आपरेटर बहुत ज़्यादा मांगते हैं। तब उत्तरी श्री लंका पर्यटको के लिए खुला नहीं था। और श्री लंका के लिए टूरिस्ट भी कम ही थे। किफायती पैकेज टूरिस्ट्स को लुभाने के लिए थे। खैर 27 से 30 अक्टूबर का टूर बुक कर लिया गया। हम चारो वापसी के बाद के SOUTH INDIA टूर का भी प्लान बनाने लगे। लौटते में दिल्ली होते काठमांडु भी जाना था इस लिए घूमने के,लिए समय सीमित थे। मैने एलटीसी त्रिवेन्द्रम तक के लिए लिया था। अतः कोलम्बो से चैन्ने वापस पहुंच कर त्रिवेन्द्रम तो जाना ही था। कमलेश,दीपा ने कन्या कुमारी, मदुरई और रामेश्वरम भी जोड़ दिया ।
टूर एजेन्ट का श्री लंका यात्रा के लिए अंतिम ऑफर मिलने के बाद हमने पैकिंग शुरू कर दी और फिर रांची से इंटरसिटी ट्रैन से २६-१०-२००९ के सुबह ही हावड़ा के लिए निकल पड़े और कोलकता से चेन्नई की फ्लाइट लेकर रात तक चेन्नई पहुंच गए।
श्री लंका का यात्रा वृतान्त इस ब्लॉग में दे रहा हूँ। बाँकी यात्रा का वृतान्त अगले ब्लॉग में।
२७ अक्टूबर २००९
एयर इंडिया एक्सप्रेस की उड़ान से हम चेन्नई से कोलोंबो के लिए रवाना हुए और ९ बजे सुबह वहाँ पहुंच भी गए। बर्ड फ़्लु फैला था इसलिए मेडिकल चेक अप कराने के बाद ही वीसा स्टाम्प मिला। भारत के किसी मोबाइल कम्पनी का सिम यहाँ चल नहीं रहा था और पहुंच कर ट्रेवल एजेंट से बात नहीं कर पाए अत: थोड़े चिन्तित थे, पर बाहर निकलने पर अपने नाम का प्ले कार्ड लिए टैक्सी वाले को देख कर चैन आया। SUV ले कर मालिक ही आया था। चार लोगों के लिए गाड़ी बहुत आरामदायक थी । पता चला सारे समय इसी गाड़ी से घूमना है। सबसे पहले हम एक टेलीफोन बूथ पर गए। STD बूथ तब वहाँ होते थे। पहले अपने बच्चों को फ़ोन किया। फिर DIALOG कम्पनी के दो टेम्पररी सिम कार्ड ले लिया। हर INDIA कॉल ISD कॉल होता था और काफी पैसे काट जाते थे पर फिर भी टेम्पररी सिम कार्ड काफी उपयोगी था। यहाँ पता चला भारतीय रूपये की UNOFFICIAL EXCHANGE RATE ज्यादा थी और जगह जगह ऐसी UNOFFICIAL सुविधा उपलब्ध भी थी। सबसे पहले हम पिनावाला हाथी अनाथालय गए। यह अनाथालय 1975 में वन्यजीव संरक्षण के लिए श्रीलंकाई वन विभाग द्वारा स्थापित किया गया था, जो कि हाथियों के अनाथ बच्चों को खिलाने, देखभाल करने के साथ अभयारण्य प्रदान करता था। अनाथालय विल्पट्टू राष्ट्रीय उद्यान में स्थित था, फिर बेंटोटा में पर्यटक परिसर में स्थानांतरित कर दिया गया। यह बेन्टोटा नदी के किनारे स्थित था। शायद इसे अब कहीं और स्थानान्तरित कर दिया गया है। कई हाथी के बच्चे जो गृह युद्ध के समय बिछाये बारूदी सुरंगों के चपेट में आ कर अनाथ या अपाहिज हो गए थे उन्हें यहाँ रक्खा गया था। अमिताभ बच्चन की फिल्म सूर्यवंशम के कई दृश्य की शूटिंग भी यहाँ हुई है। कई अनाथ या घायल हाथी को देख कर दिल पसीज गया। एक हाथी के एक पैर ही नहीं था। दोपहर में पास के रिवर व्यू रेस्टोरेंट में खाना खाया और हाथियों के समूह को नदी में नहाते देखा, और आनंद भी लिया। लंच के बाद हम कैंडी के लिए निकल पड़े। रास्ते में एक हर्बल गार्डन भी गए और कई मसलों और अन्य हर्ब्स की खेती भी देखी। कुछ खरीदारी भी की हमने। चाय पी कर आगे के लिए चल पड़े।
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पिनावाला हाथी अनाथालय | बेन्टोटा नदी के किनारे रिवरव्यू रेस्टरान्ट |
कैंडी हम शाम तक पहुँचे। हमारे होटल का नाम था
(THE SWISS RESIDENCE) द स्विस रेजिडेंस होटल । एकदम एक पहाड़ी के उपर था। सीधी खड़ी चढ़ाई वाला DRIVEWAY से जाना था, हम डर रहे थे पर एक्सपर्ट ड्राइवर ने ठीक ठाक गाड़ी चढ़ा ली। बहुत अच्छा होटल था रूम भी अच्छा, नजारा भी अच्छा। स्विमिंग पूल भी था। कैन्डी लेक के पास के बस स्टॉप से हॉटल का ड्राइव वे था। कैंडी लेक के पास है सुइसे होटल जिसका अपना एक दिलचस्प इतिहास हैं। 1880 के दशक की शुरुआत में इस इमारत पर कैंडी क्लब का कब्जा था। 1887 में, क्लब ओरिएंट बैंक द्वारा खाली की गई एक इमारत में चला गया, बाद में यह क्वीन के होटल का हिस्सा बन गया। 1924 में इस इमारत का अधिग्रहण एक स्विस महिला, जीन लुइसा बर्ड्रॉन ने किया था, जिसने होटल बनने से पहले इसे गेस्ट हाउस के रूप में संचालित किया था। द स्विस रेजिडेंस होटल के खाना में इतनी वेराईटी थी और इतना स्वादिष्ट था, हम CHEF को बुला कर उसका धन्यवाद करना नहीं भूले।
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होटल स्विस का लेक से ड्राइव वे | स्विस रेजिडेंस होटल का स्विमिंग पूल |
कैंडी शहर एक मानव निर्मित झील के चारो तरफ़ बसा है। सबसे पहले हम एक सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने गए। बहुत श्री लंका के बहुत सारे लोक नृत्य और करतबों से सजा प्रोग्राम बहुत पसंद आया। कुछ नृत्य भरत नाट्यम जैसे लगे। बस मज़ा आ गया और हम अभिभूत हो गए।
रात में ही बुद्ध के पवित्र दंतावशेष मंदिर देखने गए। शानदार नक्काशी और चित्रों से सजे गलियारों वाला यह मंदिर मन मोह गया। किंवदंती के अनुसार, गौतम बुद्ध के परिनिर्वाण के बाद, दांत के अवशेष को कलिंग में 800 वर्ष तक सुरक्षित रखा गया फिर जब दो पड़ोसी राज्य इस दंतावशेष के लिए युद्ध के लिए उद्यत हो गए तब अपने पिता राजा महाशिव के निर्देश पर राजकुमारी हेममाली और उनके पति, प्रिंस दंथा द्वारा इसकी तस्करी की गई थी। वे अनुराधपुरा (301-328 CE) के सिरिमेघवन के शासनकाल के दौरान लंकापट्टन में द्वीप पर उतरे और दांत अवशेष सौंप दिए। मंदिर में बुद्ध भगवान के दन्तावशेष के दर्शन 8-8:30 बजे रात तक हुए। रात में स्विस हॉटल में बहुत ही स्वादिष्ट भोजन खा कर हमनें SEMI PRECIOUS रत्नों की होटल के शॉप में ही खरीदारी की और रात में हॉटल के आसपास का नज़ारा देख कर सो गए।
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दन्तावशेष मंदिर का गलियारा | कैंडी में संस्कृतिक कार्यक्रम |
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बुद्ध की विशाल प्रतिमा | कैंडी का एक विहंगम दृश्य |
२८ अक्टूबर २००९
दूसरे दिन कैंडी के अन्य आकर्षणों जैसे विशालकाय बुद्ध प्रतिमा, शेषनाग के फ़न के नीचे बुद्ध की मूर्ति वैगेरह देख कर हम बोटैनिकल गार्डन गए और कई आश्चर्यजनक पेड़, फूल, ग्रीन हाउस देखा। कैनन बाल ट्री भी यहीं देखा। बोटैनिकल गार्डन से हम नुवारा-एलिया के लिए चल पड़े। पहला पड़ाव था रम्बोदा झरना यहाँ हम एक ही जगह से तीन झरने देख सकते थे। फिसलन वाले चिकने रास्ते से किसी तरह नीचे स्थित रेस्टारेन्ट तक उतर कर हमने लंच लिया और झरनो का आनंद उठाया। नैसर्गिक दृश्य देख सभी कैमरों में व्यस्त हो गए। श्री लंका में करीब 100-105 छोटे बड़े झरने है। बहुत सारे हमें रास्ते में ही मिल गये। और हम गाड़ी में बैठे बैठे ही या कहीं कहीं गाड़ी से उतर कर देखते फोटो लेते और आगे बढ़ जाते।
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कैनन बाल ट्री, बोटोनिकल गार्डन में | रामबोदा झरना (३५८ फ़ीट), तीन झरने एक साथ |
हम एक चाय की फैक्ट्री में भी रुके, उत्तमता के अनुसार तरह तरह के ग्रेड में छटाई देखी।पता चला की हम रोज़ाना जो महंगा वाला ग्रीन लेबल चाय पीते है या ज्यादातर होटल्स में पिलाते हैं वह ऊपर के स्तर का नहीं बल्कि एक औसत स्तर की चाय है। सबसे उत्तम स्तर वाले तो निर्यात ही होते है। हमने फ्री वाली एक एक चाय का भी यहाँ आनन्द उठाया। चाय की फैक्ट्री के बाद हम बिना रुके चलते चले गए और शाम तक नुवारे एलिया पहुँच गए। यह ६००० फीट की उचाँई पर बसा एक एक हिल स्टेशन है और चाय बागानों का इलाका हैं।
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मैकवुड्स टी एस्टेट | डावोन झरना,लंका की सबसे ऊँचा (९२५फ़ीट) |
नुवारे एलिया में बहुत पुराने होटल एंड्रयूज (ESTT. 1875) में हमारा बुकिंग था पर होटल में रूम से ज़्यादा बुकिंग थी और कोई रूम रात तक खाली नहीं होने वाला था। हम लोग जब तक प्रतीक्षा कर रहे थे, बहुत उम्दा राइस सूप होटल के तरफ़ से परोसा गया। पर जब उन्होंने रूम के लिए मना कर दिया हम निराश हो गए, तेज बारिश भी होने लगी हॉटल के फोटो भी हम खींच नहीं पाए। हमारे ड्राइवर साहब जो हमारे टूर ऑपरेटर भी थे एक दूसरे होटल में बुकिंग करवाई। नाम था गलवाय फारेस्ट लॉज। नाम सुन कर लगा बहुत साधारण सा हॉटल होगा। काफ़ी दूर भी था शहर के बाहर लेकिन जब हम होटल पहुँचे तो पाया की सिर्फ़ नाम में लॉज लगा है पर होटल 3 स्टार है। बहुत ही आरामदेह रूम थे। खाना नाश्ता भी स्वादिष्ट था। शाम को हम थोड़ा घूमने निकले। लेक और एक मार्किट तक गए। ठण्ड थी कुछ कपडे और जैकेट भी ख़रीदे। हमारा ड्राईवर बहुत मन लगा कर घुमा रहा था और उसनें घुमाने में कोई कंजूसी नहीं की ।
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होटल एंड्रयूज Est: 1875 | गलवाय फारेस्ट लॉज |
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ग्रेगोरी लेक, नुवारे एलिया | टी गार्डन, गलवाय फारेस्ट लॉज के नजदीक |
नुवारे एलिया के ठन्डे मौसम का मजा लेने के बाद हम लोग सुबह लजीज़ नाश्ता कर एक चाय बागान देखते हुए कोलोंबो के लिए निकल पड़े। लम्बा रास्ता था। रास्ते में एक ग्राम देवता का मंदिर और एक अय्यप्पा मंदिर, सबसे ऊँचा डावोन झरना, और सबसे चौड़ा सेंट क्लेयर्स फाल्स देखा, रास्ते में लंच खाया और शाम तक कोलोंबो पहुंच गए। सीता मन्दिर जो टूर के ईटिनियरी में था, कहीं नहीं दिखा।
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संत क्लारा फाल्स (सबसे चौड़ा झरना) | कोलोंबो के रास्ते में लंच |
यहां श्री लंका के सबसे पुराने
होटल ओरिएण्टल ग्रैंड (१८७५) में कमरा बुक किया गया था। कोलोंबो हारबर के ठीक सामने था यह होटल।हार्बर के मनोरम दृश्य को कैमरा में कैद करने को हमने अपने अपने कैमरे निकल लिए थे पर वहां खड़े गॉर्ड ने रोक दिया, हार्बर का फोटो खींचना सख्त मना था। होटल के रूम ठीक ठाक थे। आशा से थोड़ा कमतर थे क्योंकि बाहर से होटल शानदार दिख रहा था। कैंडल लाइट डिनर लेने हम जब शानदार डाइनिंग रूम में गए तो हार्बर के आश्चर्यजनक सुंदर दृश्य ग्लास के बड़ी सी दिवाल से दिखने लगे।
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ग्रैन्ड ओरियेन्टल हॉटल-1875 |
ग्रैन्ड हॉटल के प्रवेश के पास |
हमने यहां से मोबाइल से ही चुपचाप फोटो लेने की सोची। पर फिर स्टुअर्ड ने रोक दिया। शायद पेन वाला कैमरा लाते तो वीडियो चुपचाप ले लेते। दूसरे दिन चेन्नई का फ्लाइट दोपहर का था। और घूमने के लिए आधा दिन ही था। हम उस समय का उपयोग
स्वंतंत्रता स्मारक, भंडारनायके केंद्र और टाउन हॉल देखने में किया। स्वंतंत्रता स्मारक में बहुत बारीक एनग्रेविंग देखने को मिला। यह १९४८ में अंग्रेजो से श्री लंका के स्वतंत्रता को स्मरण करने के लिए बनाया गया है ।
भंडारनायके अंतर राष्ट्रीय सम्मेलन केंद्र १९७०-७३ के बीच चीन के सहयोग से बनाया गया है और इसमें ज्यादातर निर्माण सामग्री चीन से ही लाया गया था। यहां बाहुत सारे सम्मलेन, आयोजन होते हैं और प्रदर्शनी भी लगाए जाते है। कोलोंबो अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला,कोलोंबो शॉपिंग मेला यहीं आयोजित किये जाते हैं। टाउन हॉल में कोलोंबो म्युनिसिपल कौंसिल और मेयर के कार्यालय है,
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टाउन हॉल, कोलोंबो | स्वतंत्रता स्मारक, कोलोंबो | भंडारनायके केंद्र, कोलोंबो |
घूम घाम कर हम कोलोंबो हवाई अड्डे गए और चेन्नई की वापसी का फ्लाइट ले ली। एयर पोर्ट पर ड्यूटी फ्री से जॉनी वाकर ग्रीन लेबल के तीन बोतल खरीदना हम नहीं भूलें। कुछ डॉलर फिर भी बच गए।चेन्नई पहुंचने के बाद हमने अगले ही दिन आगे की यात्रा यानि थिरुअनंतपुरम, कन्याकुमारी, रामेश्वरम और मदुरै के लिए निकल पड़े। उसका वर्णन अगले ब्लॉग में दे रहा हूँ।