पुट्टपर्ती, नाशिक, त्रयम्बकेश्वर, शिर्डी, सिग्नापुर एक तीर्थयात्रा
मुझे भारत के अलग-अलग हिस्सों में यात्रा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और भारत के बाहर के कुछ देशों में भी। अपने इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में हमारे कॉलेज के दिनों के दौरान 2 वें वर्ष से 5 वें वर्ष तक मैंने भारत के लगभग सभी हिस्सों में प्राय: 6000 की. मि. की यात्रा की हैं फिर भी काफी कुछ देखना बाकी है। मुझे अपने पेशेवर जीवन के दौरान अमरीका, यूरोप, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया, नेपाल, श्रीलंका और दुबई की यात्रा करने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ हैं । मैं अब ७१ वर्ष का हो गया हूँ. दुर्गम स्थानों में शायद ही अब जा पाऊं। लेकिन मैं दूसरों के अनुभवों को पढ़ कर अभी भी आनंदित होता हूँ और नयी नयी जगहों की वर्चुअल यात्रा भी कर लेता हूँ. मैं अपनी सभी यात्राओं पर भी ब्लॉग के रूप में शेयर करना चाहता हूँ और ऐसे ब्लॉग लिखता रहता हूँ।
नाशिक मैं अपने ऑफिस के काम से पहले भी जा चुका था. अजंता तो मै 1969 के कॉलेज ट्रिप में भी आया था, पर शिरडी - नाशिक - त्रयम्बकेश्वर की पहली यात्रा हम पति-पत्नि ने 1997 में की थी। तब हम इंदौर - उज्जैन गए थे और वापसी में रांची की ट्रैन नाशिक से थी। तब हम शिरडी होते हुए नाशिक गए थे । 2012 में मैंने परिवार के साथ पुट्टपर्थी, नासिक, त्रयंबकेश्वर, शिरडी, सिग्नापुर, एलोरा,औरंगाबाद, अजंता , दौलताबाद और ग्रिशनेश्वर की यात्रा की थी। और यह इन स्थानों की सुखद आनन्ददायक यात्रा थी। मैं अपनी सभी यात्राओ के दिलचस्प बातों को इस ब्लॉग में आपके सामने रखूंगा। अजंता , दौलताबाद और ग्रिशनेश्वर का यात्रा बृतान्त मैं किसी दूसरे ब्लॉग में लिख चुका हूँ यहाँ उसका लिंक दे रहे हूँ। एलोरा , अजन्ता
2012 में मैं बैंगलोर के दौरे पर था और मेरी पत्नी मेरी छोटी बहन दीपा के साथ चैनेई में कुछ समय बिताने के लिए मेरे साथ ही आई थी। जिस समय मैं बैंगलोर में एक आधिकारिक बैठक में भाग लेने वाला था, दीपा और मेरे बहनोई कमलेश जी का उसी दौरान पुट्टपर्थी जाने का प्रोग्राम था। इस अवसर का लाभ उठाने के लिए मेरी पत्नी ने उन्ही के साथ पुट्टपर्थी जाने की योजना बना डाली। मुझे वापसी में चेन्नई होकर ही जाना था। लेकिन श्री सत्य साई बाबा शायद मुझे भी पुट्टपर्ती बुला रहे थे क्योंकि उस दिन कावेरी जल विवाद के कारण कर्नाटक बंद था और मैं बंगालुरु में बैठक जारी नहीं रख सका। इससे मुझे दूसरों के साथ पुट्टपर्थी जाने का अप्रत्याशित मौका मिल गया । मैंने उसी ट्रेन में बंगलुरु से पुट्टपर्थी के लिए ट्रेन टिकट बुक कर किए, जिसमें बाकी लोगों ने बुक किया था। और हम सब एक साथ पुट्टपर्ती पहुंचे।
पुट्टपर्ती
पुट्टपर्ती आंध्र प्रदेश कर्नाटक सीमा पर स्थित एक छोटी बस्ती है, बैंगलोर से लगभग 100 किमी दूर । यहाँ श्री सत्य साईं बाबा ट्रस्ट के सामाजिक कार्य हर जगह दिखाई देते हैं। मंदिर बड़ा है सुंदर है पर कैमरा ले जाने की अनुमति नहीं है और स्मृति स्वरुप भी कोई फोटो नहीं ले सके, मोबाइल की भी अनुमति नहीं थी । पुट्टपर्थी में हमारा प्रवास दिन भर के लिए ही था और शाम को हम बंगालुरु होते हुए चेन्नई लौटना था । पुट्टपर्ती 80000 की आबादी वाला एक छोटा शहर है। हमने दिन के लिए एक कमरा बुक किया और फ्रेश होने के बाद मंदिर गए। हमने पाया कि पूरे भारत के लोग पुट्टपर्थी में विभिन्न सेवाओं के लिए खुद को समर्पित करते है और कुछ जीवन भर यही सेवा करने का भी प्रण करके यहीं मन्दिर परिसर में ही रहते है। अच्छे और सस्ते गेस्ट हाउस और अन्य संस्थान हैं। हमने चैतन्य ज्योति संग्रहालय का भी दौरा किया जो बहुत जानकारीपूर्ण था। पुट्टपर्ती स्टेशन से मंदिर जाने के लिए हमने एक कार बुक कर लिया। ऑटो रिक्शा और अन्य साझा परिवहन भी इसके लिए उपलब्ध हैं। हमने बंगालुरु के लिए एक शाम की ट्रेन ली थी और अगले दिन शाम तक हम चेन्नई पहुचने वाले थे।पुट्टपर्ती से स्टेशन लौटते वक़्त कुछ जगहें देखते हुए लौटे. एक सुपर स्पेशलिटी अस्पताल भी देखे जहाँ पूरा इलाज मुफ़्त्त किया जाता है वो भी बिना अहसान जताये. मंदिर में किये जाने वाले सेवा कार्य, अस्पताल, शिक्षा संस्थान सत्य साई ट्रस्ट के इन कार्यों को सराहे बिना नहीं रहा जा सकता।
सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, पुट्टपर्ती | चैतन्य ज्योति म्यूजियम | पुट्टपर्ती रेलवे स्टेशन |
नासिक
2012 में हमारी नासिक - शिरडी की यात्रा की कोई योजना नहीं थी, लेकिन जैसे यहाँ भी शिर्डी साई बाबा हमें अपने पास लिए बुला रहे हो, हमारा कार्यक्रम मेरी बहन बहनोई और अन्य लोगों के साथ शिर्डी जाने का बन ही गया। मेरे बहनोई कमलेश जी, हर साल शिरडी जाते हैं। मैंने अपनी दूसरी छोटी बहन चित्रा और संतोष जी को भी साथ चलने के लिए आमंत्रित कर लिया। हमारे 2012 की यात्रा को आधार मान कर ये ब्लॉग लिख डाला हैं और पहले की यात्रा जैसे लिए 2007 में नासिक से शिरडी, 2009 में मुंबई से शिरडी 1997 में शिरडी से नासिक यात्रा के अनुभवों को भी साझा कर रहा हूँ।
नासिक वह जगह है जहाँ, जब राम- सीता - लक्ष्मण पंचवटी में अपना वनवास बिता रहे थे, रावण की बहन शूर्पनखा की नाक (नासिका) लक्ष्मण ने काटी थी। कहा जाता हैं इसी घटना के कारण इस जगह का नाम नासिक पड़ा। मैं नासिक को कई बार गया हूँ। यहाँ बिजली की वस्तुओं के निर्माण के लिए कई फॅक्टरी हैं और इस कारण मेरे कई आधिकारिक दौरे भी हुए थे। संभवतः पहली बार अस्सी के दशक के उत्तरार्ध में मैं यहाँ आया था और मेरे दिमाग में एक तस्वीर अंकित हैं - मेरे होटल के पास ऑटो स्टैंड पर एक पोल पर लगे एक सामुदायिक टीवी सेट की। बस सोच रहा था कि कैसे टीवी जैसी कीमती चीज़ एक सार्वजनिक स्थान पर बिना चोरी इत्यादी की आशंका से यूँ ही छोड़ दी जा सकती है। उस ट्रिप में मैं किसी भी मंदिर या घाट पर नहीं गया था। इस मंदिर से भरे शहर की यात्रा के लिए पर्यटक की तरह मेरी दूसरी यात्रा 1997 में हुई जब हम (मैं और पत्नी - सरोज) इंदौर से शिरडी और नासिक होते हुए वापस जा रहे थे। हमने कई मंदिरों, पंचवटी, त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, गोदावरी उद्गम स्थल और घाट - गंगा मंदिर और अन्य मंदिरों को देखा।
हम गोदावरी के किनारे एक शिव मंदिर भी गए जहां द्वार पर नंदी नहीं है। नासिक का कपालेश्वर मंदिर ! यहाँ एक प्रतिष्ठित रामकुंड है। मंदिर काफी असामान्य है क्योंकि, अन्य शिव मंदिरों की तरह, शिव के वाहन - द्वारपाल भगवान नंदी की कोई मूर्ति नहीं है। किंवदंतियों के अनुसार, मंदिर वह स्थान था, जहां भगवान शिव ने अपने ब्रह्महत्या के पाप को धोने के लिए रामकुंड में एक पवित्र स्नान करने के बाद तपस्या की थी। मंदिर में नंदी की प्रतिमा न होने का कारण यह है कि भगवान शिव नंदी को गुरु या शिक्षक मानते थे और इसलिए, कपलेश्वर मंदिर में नंदी के प्रतिमा शिव के वाहन रूप में नहीं है। नाशिक, त्र्यंबकेश्वर (30 किमी), शिरडी (90 किमी), शनि सिग्नापुर (151 किमी) के लिए एक स्टार्टिंग पॉइंट है। यह हावड़ा-मुंबई लाइन पर नागपुर के माध्यम से और मेरी जगह रांची से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
काला राम मन्दिर | कपिलेश्वर मन्दिर |
यह यात्रा पुट्टपर्थी यात्रा के कुछ महीनों बाद की गई थी। हम ट्रेन से नासिक पहुँचे, जब दीपा, कमलेश जी और उनके मित्र पाठक जी पुणे होते हुए पहुँचे। हमने सुबह त्रियम्बकेश्वर की यात्रा की योजना बनाई।
त्रयम्बक के रास्ते अंजनेरी और कच्चे पहाड़। | पहाड़ियों के प्रकृतिक थम्बस अप। |
त्रयम्बकेश्वर
सबसे पहले हम नासिक से त्र्यंबकेश्वर गये। त्र्यंबकेश्वर गोदावरी नदी के स्रोत के पास स्थित 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक है। हैरानी की बात है कि यह शक्तिशाली नदी एक छोटे से नाले की तरह है दिखती है इस जगह पर। चूंकि रविवार का दिन था, इसलिए अप्रत्याशित भीड़ थी। हमें दर्शन से पहले 3 घंटे के लिए क्यू में खड़ा होना था - 1997 में मेरे पहले के अनुभवों के विपरीत- जब कोई क्यू नहीं था, 2007, 2011 मे छोटा सी क्यू में खड़ा होना पड़ा। यहां स्थित ज्योतिर्लिंग की असाधारण विशेषता इसके तीन मुख हैं जो भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान रुद्र को धारण करते हैं। मंदिर 3 भागों में है, नंदी मंडप, उपासना मंडप और गर्भ गृह। पास स्थित एक कुंड को गोदावरी का उद्गम माना जाता है।
कुशवरत कुण्ड- गोदावरी उदगम स्थल | त्र्यंबकेश्वर मन्दिर |
शिर्डी
अगले दिन हम टैक्सी से शिरडी गए और एमटीडीसी होटल - पिलग्रिम्स-इन में रुके।
यह यात्रा साईं बाबा की कृपा से शिरडी की कई यात्राओं में से एक थी। 1997 में हमने पहली बार इस मंदिर शहर की यात्रा की थी। तब कस्बा और मंदिर आज की तरह भक्तिमय नहीं था। शहर में आने पर हमने अपने को स्नान कक्ष सेवा प्रदान करने वाले व्यक्तियों से घिरा पाया । ये लोग 5 रुपये के छोटे शुल्क के लिए व्यक्तिगत या अस्थायी स्नान कक्षों का उपयोग करने देते है। हम इस तरह के गन्दे और खुले खुले स्नान कक्ष के उपयोग करने के लिए तैय्यार नहीं थे इसके बजाय हमने उपलब्ध कुछ होटलों में से एक में कमरा बुक किया। मुझे 2007 में भी ऐसा ही अनुभव हुआ था, जब शनि सिगनापुर जाने के लिए आपको धोती पहनने की ज़रूरत होती है (धोती गुमटी वाले द्वारा किराए पर प्रदान की जाती है), शिरडी में ही तेल और अन्य सामानों के साथ सजे थाल ले जाने को मिलता है। थाल और धोती यात्री नाशिक वापस जाते वक्त लौटा जाते है । 1997 में समाधि मंदिर में लाइन लगाने के क्षेत्र का निर्माण नहीं किया गया था (अब 3-4 मंजिला होल्ड एरिया है) और लाईन मन्दिर के बाहर ही लगता है। हमारे लिए क्यू के शुरुआती बिंदु का पता लगाने में बहुत कठिनाई आई। क्यू गलियों में सर्प की तरह गुजर रहा था और तात्कालिक गांव / कस्बे की गलियों से 2 घंटे इंतजार के बाद जब हमारी बारी मंदिर में प्रवेश करने की आई तो गेट को डॉ पी.सी.अलेक्जेंडर के आगमन के सूचना के कारण बंद कर दिया गया था। महाराष्ट्र के तत्कालीन गवर्नर अलेक्जेंडर को हेलीकॉप्टर द्वारा दार्शनार्थ आना था। 3 घंटे के बाद जब गेट खोले गए हर एक गवर्नर साहब को कोसते हुए मन्दिर के अन्दर गए।
2012 की इस यात्रा पर वापस लौटें। हम 3 दिनों तक शिरडी में रहे और दर्शन, आरती, अभिषेक पूजा, सत्यव्रत पूजा में भाग लिया, साईं कथा आदि ३ दिनों तक भक्ति के साथ परायण कमरे में साईं-बाबा के कथे को पढ़ना आत्मा के लिए बहुत सुखद था। हमने 1 रुपये में स्वादिष्ट चाय और 10 रुपये में पूरा भोजन (प्रसादालय में) किया। 2011 की यात्रा में जब हम मुंबई में एक शादी से यहां आए थे तो हमें एक बुरा अनुभव हुआ जब हमारे सहयात्रियों में से एक (मेरे छोटे बहनोई कमलेश जी के बड़े चचेरे भाई) को अचानक मिरगी का दौरा पड़ा, जब हम द्वारिका माई के बाद चावड़ी के लिए क्यू में खड़े थे । चूंकि मंदिर में मोबाइल फोन की अनुमति नहीं है, हम में से किसी के पास मोबाईल नहीं था, लेकिन एक स्थानीय व्यक्ति ने एम्बुलेंस को कॉल करने में मदद की।
साईं बाबा का वर्तमान समाधि मंदिर द्वारका माई (खन्डहरनुमा मस्जिद जहां साई रहते थे) से सटे बुट्टी वाडा में बनाया गया है और नागपुर के एक अमीर आदमी श्री गोपालराव मुकुंद बुट्टी द्वारा बनवाया गया है। दिक्षित वाड़ा (अब एक संग्रहालय) और साठे वाडा भी सटे सटे में हैं। 1997 में हमने जो कुछ देखा था वह मंदिर का पूर्व संस्करण था क्योंकि 1998 में कुछ वाडा को तीर्थयात्रियों की बढ़ती सुविधाओं और अतिरिक्त सुविधाओं को जोड़ने के लिए ढहा दिया गया था।
मन्दिर का ले-आउट |
खान्डोबा मन्दिर 1858 | तब का समाधि मन्दिर | समाधि मन्दिर अब |
द्वारका मन्दिर | चावड़ी | प्रसादालय |
शनि शिग्नापुर
हमे पता था कि शनि शिंगनापुर मन्दिर के आलावा इस बात के लिए भी प्रसिद्ध है कि गाँव के किसी भी घर में दरवाजे नहीं हैं । इसके बावजूद, आधिकारिक तौर पर गांव में कोई चोरी नहीं हुई थी, हालांकि 2010 और 2011 में चोरी की खबरें थीं।
ऐसा माना जाता है कि मंदिर एक "जागृत देवस्थान" है। ग्रामीणों का मानना है कि भगवान शनि चोरी का प्रयास करने वाले को सजा देते हैं। यहाँ का देवता "स्वयंभू" है जो स्वयं काले रंग के पत्थर के रूप में पृथ्वी से उभरे हैं। हालांकि, कोई भी सटीक अवधि नहीं जानता है, यह माना जाता है कि स्वयंभू शनीश्वर की मूर्ति को तत्कालीन स्थानीय चरवाहों द्वारा पाया गया था। यह माना जाता है कि कलियुग के प्रारंभ से ही अस्तित्व में है। यह एक प्रसिद्ध शनि मंदिर है जहां लोग शनि देव (बिना किसी उचित आकार के एक काले पत्थर) पर तेल चढ़ाते हैं। आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार सिग्नापुर में कोई चोरी नहीं हुई है और कई इमारतें बिना दरवाजों के हैं। हालांकि मैंने मंदिर में अपनी नई चप्पल खो दी थी। मैंने पहले 2007 में उस जगह का दौरा किया था जब मुझे स्नान करने और धोती पहनने के लिए फिर से तैयार किया गया था। तब मुझे स्वयं ही शनि देवता पर तेल डालने की अनुमति थी। 2007 में महिलाओं को मुख्य मंदिर में पूजा करने या उनके द्वारा पूजा करने की अनुमति नहीं थी, हालांकि 2012 में शनि महाराज के देवता पर तेल पुजारी ने ही डाला। और महिलाओं को मंदिर परिसर में प्रवेश भी अनुमति दी गई थी।
हमने एक वैन द्वारा शिरडी से शनि सिगनापुर की यात्रा की, वहाँ बहुत सारे स्थान थे जहाँ गन्ने की ताज़े मिल से निकलने वाली रस बेची जाती थीं। हम "रसवंती" नामक जगह पर अपने को रोक नहीं पाये और नींबू और अन्य मसालों के साथ पेय का आनंद लिया । हम अंधेरे के बाद बहुत देर से सिगनापुर पहुँचे लेकिन हमारा सुखद आश्चर्य मंदिर अभी भी खुला था और हम पूजा कर सकते थे। "जूता" स्टैंड का प्रबंधन करने के लिए कोई नहीं था और मेरा चप्पल गुम हो गया। विश्वास है कोई चोरी नहीं हुई होगी। किसी ने हवाई चप्पल का इस्तेमाल करने के लिए मेरी नई चप्पलों को गलती से पहन लिया होगा।
ईख पेरने का मिल-सिग्नापुर के रास्ते में | सहयात्रियों का ग्रुप | शनि शिग्नापुर मन्दिर |
2012 में शिगनापुर के बाद हम दौलताबाद, ग्रिश्नेश्वर, एलोरा, अजंता की यात्रा के लिए औरंगाबाद गए। इस यात्रा को मैने एलोरा और अजंता पर लिखे अलग-अलग ब्लॉग में शामिल हैं। हम 2018 में भी शिरडी आए थे, और वहां से लौटते समय हमने पास ही सप्तशृंगी की यात्रा थी जो दूसरे ब्लॉग में शामिल करूंगा।