मेहनती इंसान और ठग दोनों तरह के लोग हैं इस दुनिया में । सुनेगें आप दो कहानियाँ ?
पहले ठगों के बारे में - शुरू करता हूँ रेलवे स्टेशन पर हुई ठगी से
इस ब्लॉग की टाइटल को इज़्ज़त देते हुए पहले ठगी की कुछ कहानियाँ । ठगों के बारे में सोचते सोचते, मैने एक समाचार पढ़ा कि कैसे एक युवक दिल्ली हवाई अड्डे पर लोगों को ठग रहा था और जब उसे पकड़ा गया तबतक करीब 100 यात्रियों को ठग भी चुका था। Man held for cheating over 100 air passengers इस अपराधी का MODUS OPRANDI वही था जो बैंगलोर में मेरे साथ घटी घटना का था । उसकी कहानी थी "मेरी वाइज़ाग कि फ्लाइट छूट गयी और फ्लाइट टिकट रु १५०००/- का था पर उसके पास सिर्फ रु ६५००/- हैं । कृपया मदद करें आपका पैसा से मैं बाद में पेटम या गूगल पे पर लौटा दूंगा" एक पैसेंजर ने आखिर कर पैसे गूगल पे से उसे दे दिए और अपने घर चला गया । जब कई दिनों तक पैसा नहीं मिला तो उस ठग को फ़ोन भी किया । वह टालम टूल करता रहा और बाद में जब फोन लगना भी बंद हो गया । मै भी 2-3 बार ऐसी ठगी का शिकार हो चुका हूँ। इस बार मै अपनी उन अनुभवों के बारे में बताना चाहता हूँ जब जब मै ठगा गया। सीधा सब पर विश्वास करने वाला और दयालु आदमी कभी न कभी ठगा ही जाता है और मेरे साथ तो कई बार ऐसी घटना हुई हैं । जनता हूँ शायद मेरी बारम्बार ठगे जाने के किस्से सुन कर लोग हसेंगे मुझ पर फिर भी लिख रहा हूँ ।
पहले पहल मैं जिन घटनाओं बारे में लिखना चाहूंगा वह ऊपर दिए गए समाचार वाली घटना के जैसी है और तीन बार हुई मेरे साथ । १९८० में मुझे कई बार बैंगलोर जाना पड़ा था ऑफिस के काम से । बैंगलोर स्टेशन के प्लेटफार्म पर मैं चेन्नै की ट्रैन के आने का इंतज़ार कर रहा था । तभी एक युवक जो किसी सभ्रांत परिवार का लगता था सकुचाता सा मेरे पास आया और अपनी आपबीती बताने लगा कि कैसे वह एक इंटरव्यू के लिए आया था और उसकी जेब काट गयी । "मेरे पास टिकिट के भी पैसे नहीं बचे सर" । मैंने ख़ुशी ख़ुशी चेन्नै तक के सेकंड क्लास के टिकट के पैसे उसे दे दिए । मेरा माथा तब ठनका जब मैंने थोड़ी दूर खड़े दूसरे आदमी से उसे पैसे मांगते देखा । समझ गया मेरी दयाशीलता का वेवाज़िब फायदा उठाया । खैर कुछ दिनों या महीनो पश्चात फिर एक युवक बैंगलोर के उसी प्लेटफार्म पर फिर मिला और वैसी ही कहानी मुझे सुनायी । मेरा मन उसकी मदद करूँ या नहीं इसी उधेड़बुन में था । मैंने सोचा यदि इसे टिकट ही खरीद दूँ तो शायद ठीक रहेगा । उस प्लेटफार्म पर ही एक टिकट खिड़की थी मैंने एक टिकट खरीदा और उसके हाथ में तभी दिया जब ट्रेन खुलने वाली थी । मैं बगल वाली चेयर कार में यात्रा करने वाला था । जब ट्रैन खुली तब मैंने देखा वह चलती ट्रैन से उतर कर टिकट खिड़की कि तरफ जा रहा था । तब ट्रैन छूटने पर कार्ड टिकिट लौटा सकते थे शायद १० रुपया काट कर पैसे मिल जाते थे । यानि इस बार भी मैं ठगा गया । इसी तरह कि तीसरी घटना २००३ में घटी । मेरे कंपनी के ३-४ लोगों के साथ थे और हम लोग रांची से सुलुरपेट जा रहे थे । विजयवाड़ा में जब गाड़ी रुकी हम सब नाश्ता खरीदने उतर गए । तभी एक आदमी मेरे पास आया और बताने लगा कि वह भी राँची के एक दूसरी कंपनी उषा मार्टिन में GM हैं । मेरे कंपनी के कई लोगों जैसे LR SINGH , MAJUMDAR के नाम उसने लिया और उन्हें अपना जानने वाला और मित्र बताया । मैं सोच रहा था मुझे यह सब क्यों बता रहा है यह व्यक्ति । तभी उसने अपना प्रयोजन बताया या एक कहानी सुनाई, कि कैसे वह तीन दिन पहले रामेश्वरम अपने बहन के पास जा रहा था और कैसे उसकी ट्रैन छूट गयी और उसका सारा सामान ट्रैन में ही रह गया जिसमे बहन को देने के कपडे वैगेरह थे और वह बिना गिफ्ट के वहां न जाना चाहता था और न ही कोई टिकट या बुकिंग हैं । राँची लौटना चाहता पर पैसा कम पड़ गया । तीन दिनों से पड़ा हैं वेटिंग रूम में और स्टेशन मास्टर के पते पर मनी ऑर्डर मंगा रखा हैं जिसका इंतज़ार कर रहा हैं । लव्वोलुआब यह है कि उसे टिकट के पैसे चाहिए जो वह राँची पहुँच हर लौटा देगा । मैंने उसे २०० रुपए दिए। उसने और मांगे तब मैंने रु २०० और दे दिए । पर किसी और ने कुछ नहीं दिया । खैर जब राँची लौटा तो उसके फ़ोन का इंतज़ार करते रहे महीनो तक ।
छत्रपति शिवजी टर्मिनस
अगली घटना मुंबई की हैं । ८०'s में कंपनी के काम से मुंबई गया था और खार के एक अच्छे से होटल में रुका था । रविवार को मैं बॉम्बे VT (अब छत्रपति शिवजी टर्मिनस) के तरफ घूमने गया यूँ ही और स्टेशन के पास एक टेबल लगा कर एक आदमी पैंट पीस, साड़ी और अन्य कपडे बेच रहा था । तब परेल जैसे जगहों पर कपडा मिल होते थे और यह आदमी मिल का कपडा हैं कह कर बेच रहा था । दाम काफी कम था । उसने एक रजिस्टर में मेरा नाम, पता लिखवा कर हस्ताक्षर करवा लिया । मै सिर्फ पेंट पीस खरीदना चाहता था जो क्वालिटी और दाम में अच्छा मोल था लेकिन उसने कहा की पेंट पीस के नीचे के थाक के कपडे साथ साथ हैं और मैं वह सभी कपडे जो बेकार से थे नहीं खरीदना चाहता था । मैं जाने लगा तो उसने पकड़ सा लिया और कहने लगा की मैंने रजिस्टर पैर लिख दिया हैं तो खरीदने पड़ेगा क्योंकि उसे फैक्ट्री में पैसे देने ही पड़ेगा । उसने मुझे नाम काटने भी नहीं दिया । "ओवर राइटिंग allowed नहीं हैं । मेरी नौकरी चली जाएगी" - उसने कहा । अब तक मैं समझ गया था की यह मुझे ठगने की कोशिश कर रहा हैं। मैंने बहाना बनाया इतने पैसे मैं लाया नहीं हूँ । कोई बात नहीं कहा रुके हैं बता दो मैं अगले दिन आ कर पैसे ले जाऊंगा और उसने सिर्फ पेंट पीस के पैसे ले कर सभी कपडे पैक कर दिए । मैं सारे कपडे ले कर ओरिएण्टल पैलेस होटल आ गया । सोचा यहाँ क्या आएगा और होटल सिक्योरिटी वाले उसे आने से मना कर देगा । वह अगले दिन होटल आ गया और मेरा नाम बता कर जो मैंने उसके रजिस्टर में लिख रक्खा था, मेरा रूम पता कर खबर भिजवाई की कोई पैसे लेने आया हैं । कोई लफड़ा मैं वहां करना नहीं चाहता था और मैंने उसे चुप चाप पैसे दे दिए । इस तरीके से मैं फिर कभी नहीं ठगा गया बड़ा नायब सा तरीका था ।
एक और घटना मुंबई की याद आ रही हैं पर वह ठगी से ज्यादा लूट थी और उसे मैं राँची में ३ साल पहले की घटी एक घटना के बाद लिखूंगा एक घटना के बाद लिखूंगा । २०१७ या शायद २०१८ में मेरे मोहल्ले में एक आदमी आया जो ठाकुर प्रसाद का हिंदी कैलेंडर बेच रहा था । आदमी दीन हीन गरीब सा था । तिलका लगा एक झोला लटकाये मेरे गेट पर आ कर उसने आवाज़ लगाई तो मैं तुरंत नीचे जा कर उससे मोल तोल कर ३-४ कैलेंडर खरीद लिए । मैं उसकी मदद करना चाहता था और उसने मेरी मंशा जान कर देर तक मुझसे बातें करता रहा और बिन मांगे ज्ञान और सलाह देने लगा । मैं किसी तरह उसे टाल कर ऊपर आ गया । थोड़ी देर बाद वह फिर मेरे गेट पर खड़ा था और कुछ कहना हैं बोलने लगा । मैंने उसे ऊपर बाहर वाले बैठक में उसे बुला लिया तो उसने अपनी समस्या बताई । "साहब मैं उधर आगे कैलेंडर बेचने गया था तो मेरे पास ५०० का छुट्टा नहीं था इसीसे मैं बेच नहीं पाया कृपया हो सके तो ५०० का चेंज दे दे । साधारण सी बात थे मैंने उसे १०० के पांच नोट दे दिए और उससे ५०० का नोट माँगा । उसने कहा अभी ला कर देता हूँ । मैंने उस पर पूरा विश्वास कर लिया और उसे पैसे दे दिए । उसका झोला भी नहीं रखवाया - उससे ही तो निकाल कर कैलेंडर बेचना था उसे । मैं निश्चिन्त हो कर बैठ गया। थोड़ी देर बाद पत्नी ने याद दिलाया तब मैंने उन्हें आश्वस्त किया की वह आएगा जरूर, इधर से ही तो जाएगा पर जब आधे घंटे बाद भी वह नहीं आया तो मैं भी चिंतित हो गया । खैर वह नहीं आया । अब भी इंतज़ार हैं की वह फिर कैलेंडर बेचने आये तो उससे पूछू क्यों किया उसने ऐसा । नहीं आना था वह नहीं आया । मैं उसे एक गरीब आदमी को दिया दान समझ कर भूल भी गया हूँ ।
लोकमान्य तिलक टर्मिनस
अंतिम घटना मुंबई की ही हैं । हमारा ऑफिस जो कभी मुंबई वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में था अब तक नयी मुंबई (वाशी रेलवे स्टेशन) में शिफ्ट ही चूका था और अपनी कंपनी के चार लोगों के साथ मैं वहाँ गया हुआ था । ट्रिप एक्सटेंड हो गया था और हम वापस राँची लौटने के लिए अधीर हो गया थे । जिस दिन लौटना था उस दिन की तारीख थी १५ अगस्त और मुंबई high alert पर थी । साधारणतः हम लोग लोकल ट्रैन से यात्रा करना पसंद करते थे पर भीड़ थी और हमलोगों के टैक्सी कर ली । बस यही भूल हो गयी । थाने क्रीक ब्रिज पर जोरदार चेकिंग थी। गाड़िया एकदम धीरे धीरे सरक रहीं थी। टैक्सी वाले नें उल्टी साईड से निकालने की कोशिश की पर कट बहुत दूर था। खैर कुर्ला टर्मिनस (LTT) पहुचें तब तक हमारी ट्रेन खुल चुकी थी, टैक्सी का भाड़ा देने के बाद दौड़ कर पकड़ना भी संभव नहीं था। एक टैक्सी वाला सब देख रहा था। उसने पूछा हटिया ट्रेन पकड़नी थी, कल्याण स्टेशन में पकड़ा देगे 1100/- रू लगेंगे। उसने दलील दी 40 कि मी है ट्रेन 1 घंटे लेगी और हमें भी 1 घंटे लगते है पर ट्रेन वहाँ आधे घंटे रूकेगी और आपको टिकट भी नही खरीदनी है । हमारे लिए यह एक अच्छी डील थी। सामान चढ़ा कर हम बैठ गए तो उसने एक हेल्पर जैसा आदमी बैठा लिया। हमने मना किया तो टैक्सी में समस्या होने पर मदद के लिए है। पर हमारा bad luck कि रास्ते मे भयंकर बारिश होने लगी और टैक्सी की चाल धीमी हो गई। हम रास्ते भर ड्राईवर को कहते आ रहे थे कि ट्रेन छूटने पर सारे पैसे नहीं देंगें। रास्ता खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। मुंम्बई की बारिश अचानक रूक भी गई और हमने देखा हमारी ट्रेन खुल रही है़, पर सोचा कि शायद कोई दूसरी ट्रेन हो। टैक्सी वाले की मंशा कुछ और ही थी। सीधे स्टेशन ले जाने के बजाय उसने एक सूने रास्ते पर गाड़ी रोक दी। एक place of worship के पास। ड्राईवर और हेल्पर के बात करने का लहजा ही बदल गया और वह गुंडों की तरह तू तड़ाक पर उतर आया। उसके पास हथियार भी थे, और उसने हमारे पास जितने पैसे थे सब निकलवा लिया। हमारे हाथ पांव जोड़ने पर और यह वादा लेकर कि "सीधे प्लेटफॉर्म पर जाओगें पुलिस कम्प्लेन का सोचेगे भी नहीं " एक और आदमी को साथ ले कर उसने स्टेशन छोड़ दिया और जबतक हम फुट ओवर ब्रिज पर उपर तक नहीं चढ़ गए, वह वहीं रूक कर देखता रहा। एक कान्सटेबल दिखा भी पर हम बहुत डर गए थे और कुछ कह नहीं पाए उसको। हम फिर भी आस लगाए थे कि शायद हमारी ट्रेन अभी नहीं निकली हो। लेकिन ऐसा हुआ नही। दूसरी ट्रन हावड़ा की थी। 3-4 घंटे बाद और तारीख बदल जाती और टिकट 12 बजे रात के बाद ही खरीद सकते थे। पैसे तीन चार जगह बांट कर रखने की मेरी आदत काम आई और सूटकेश में रखे एक पैंट के बैक पॉकेट में रखे कुछ रूपए बच गए थे, और सभी के पास बचे पैसे मिला कर राँची तक की साधारण 2nd class की टिकट हमनें खरीद ली। ट्रेन आने पर स्लीपर क्लास के TT से बात कर अपनी मुश्किल बताई और अपनी सरकारी कंपनी का ID card भी दिखा़या। उस भले आदमी ने हमारी पुरानी + नई टिकट के आधार पर स्लीपर में चढ़ने दिया। ईगतपुरी में जब दूसरा TT आया तो पुराने TT ने उसे भी सारा मामला समझाया और हम सभी को एक दो स्टेशन गुजरते गुजरते बर्थ भी मिल गई । राउरकेला में एल्लेपी ट्रेन मिल गई और अंततः हम राँची पहुंच पाए। हम सभी के मन में ठगे जाने का मलाल था। फिर एक साथी ने उस टैक्सी का 4 अंक का नंबर अपनी याद से बताया।मैने Internet पर खोज कर मुंबई पुलिस के एक E Mail पर सारी घटना और ये नंबर भेज दिया। कोई पावती या उत्तर तो नहीं आया पर मन को समझा लिया कि पुलिस ने की होगी कुछ न कुछ कार्यवाही।
ठगों के बारे में तो सुन ली अब सुनें मेहनतकश इंसानों के बारे मेंमैं एक viral हो चुके कहानी से शुरू करता हूँ । एक व्यक्ति स्टेशन के बाहर भीख मांगता था। एक बार उसने एक सूट-बूट वाले आदमी को देखा। भिखारी ने सोचा कि आज मुझे अच्छी भीख मिल जाएगी। वह आदमी के पास गया और भींख मांगना शुरू किया। उस आदमी ने कहा कि मैं एक बिजनेसमैन हूं। मैं लेन-देन में विश्वास करता हूं। अगर मैं तुमसे भीख दूँ , तो तुम मुझे बदले में क्या दोगे? चूँकि तुम्हें केवल माँगना है और देने के लिए कुछ नहीं है, इसलिए मैं तुम्हें कुछ नहीं दे सकता। इतना कहकर वह आदमी आगे बढ़ गया। यह बात एक भिखारी के मन में घर कर गई। उसने सोचा कि मैं आज तक भीख माँगता हूँ, मैं भिखारी हूँ तो किसी को क्या दे सकता हूँ? उसकी नजर सामने एक पेड़ पर पड़ी। पेड़ पर कई फूल थे। उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गई। अब जो भी उसे भीख देता, वह उसे फूल देता। उसने देखा कि अब वह पहले से ज्यादा भीख मिलने लगा है। कुछ देर बाद वह भिखारी उस धनी व्यक्ति के व्यापार कार्यालय में पहुंचा और कहा, सर, आपकी बातों ने मेरी जिंदगी बदल दी, अब मैंने भीख मांगने के बजाय सबको फूल देना शुरू कर दिया है, अब तुम मुझसे भीख देंगे । व्यापारी मुस्कुराया और उससे फूल ले लिया और कहा, देखो भाई, तुम अब भिखारी नहीं हो, बल्कि व्यापारी बन गए हो क्योंकि अगर तुम कुछ देते हो तो तुम कुछ लेते हो। भिखारी स्तब्ध रह गया और वहाँ से सोच कर चला गया। दो-तीन साल बीत गए। तभी एक कार उस व्यापारी के दरवाजे पर रुकी। एक आदमी महंगे फूलों का एक बड़ा गुलदस्ता लेकर कार से बाहर आता है। व्यापारी को लगा कि कोई बड़ा ग्राहक आया है। वह आदमी व्यापारी के पास गया और उसे एक गुलदस्ता देकर पूछा, सर, क्या आपने मुझे पहचाना? व्यापारी ने कहा, नहीं साहब, आप कौन हैं? उस आदमी ने कहा, सर मैं वही भिखारी हूं जो कभी स्टेशन पर भीख मांगता था। आपकी बातों ने मुझे एक बड़ा फूल व्यापारी बना दिया। व्यवसायी ने उसे गले से लगा लिया।
भूसे से भरा ट्रेक्टर हरयाणा में
अब आगे- आज सुबह मैने एक औटो वैन में खाली प्लास्टिक बोतल उस तरह लदे देखा जैसा हरियाणा में भूसे से लदा ट्राक्टर ट्रॉला। रास्ते में पड़े पानी के खाली बोतल तो रोज देखता हूँ और उसे उठा - जमा कर पेट पालने वाले को भी। मै एक दिन आश्चर्य में पड़ गया जब उस आदमी ने एक हेल्पर रख लिया। वाह उसका व्यापार तो चल निकला था। नए साल पर उसे साफ सुथड़े कपड़े में पत्नी के साथ घुमने जाते देखा तो मेहनतकश इंसान की तरक्की देख कर अच्छा लगा।
प्लास्टिक चुनने वाला अपने हेल्पर के साथ, हमारे घर के पास राँची में
छोटी मोटी ठगी सबके साथ कभी न कभी हो जाती है । ठगने वाला धूर्त अपने smartness पर खुश भी होता होगा पर निर्मल हृदय वाले या सहृदय लोग कुछ समय दुखी हो कर फिर किसी की सहायता करने या ठगे जाने के लिए तैय्यार ही होते है जिसे लोग बुद्धु, मुर्ख या unsmart ही समझते है और हंसते है।ऐसे सीधे साधे लोंगों के बदौलत ही लेकिन मानवता जीवित है। किसी दूसरे अनजान की मदद करने का जज्बा जिंदा है।