मेरी घुमक्कड़ी में सुल्लुरपेट का बड़ा स्थान हैं। 2000-2003 के बीच मै श्रीहरिकोटा में पोस्टेड था। श्रीहरिकोटा में family accommodation नहीं था इसलिए हम और कई सहकर्मी सुलुरपेट में किराए के मकानों में रहते थे। हम भी स्टेशन से सिर्फ 200-300 मीटर दूर एक किराए के मकान में रहता था। हमारे श्री हरिकोटा ऑफिस के हेड श्री राजेश गुप्ता जी भी नजदीक ही रहते थे। हमलोग कम्पनी कार से ही साथ साथ रोज 25 km दूर श्रीहरिकोटा स्थित प्रोजेक्ट ऑफिस जाते और कुछ ही दिनों में पारिवारिक रिश्ता बन गया उन लोगों से और हमारा 4 लोंगों का एक घुमक्कड ग्रुप बन गया। चैन्नै का तो हर रविवार को प्रोग्राम बन ही जाता था, वहाँ मेरी छोटी बहन जो रहती थी। दूसरे मैरी बेटी-दामाद हैदराबाद में थे जबकि बेटी की पोस्टिंग बैंगलोर में थी, यानि घूमने फिरने की काफी जगहें तो थी ही बहाने भी कम नहीं थे। खैर अपने श्रीहरिकोटा - सुलुरपेटा प्रवास के दौरान चेन्नै के सिवा पांडिचेरी, श्रीकालहस्ती, तिरुपति, नेल्लोर, श्रीशैलम, हैदराबाद भी घूमने गए । नज़दीक के मदिर और सिल्क साडी बनाने वाली एक गॉव भी गए थे हम लोग । धीरे धीरे सभी यात्राओं के बारे में लिखूंगा अभी सिर्फ सलुरुपेट - श्रीहरिकोटा के बारे में बताऊंगा ।
सबसे पहले सुलुरपेट (जैसा हमने तब देखा था ) के बारे में कुछ बातें । १९९८-९९ में मेरी कंपनी, जो साधारणतया स्टील प्लांट के कार्य करती हैै, - ISRO के नए उपग्रह के लॉन्च पैड के डिज़ाइन, सप्लाई से लेकर उसके सिविल कार्य, उसे स्थापित / कमिशनिंग के काम का tender भरती है और मैं पहली मीटिंग में presentation देने भेजा जाता हूं और उस टीम का हिस्सा बन जाता हूँ । सुलुरपेट स्टेशन एक्सप्रेस ट्रैन के लिए चेन्नै से एक पहले वाला स्टेशन है । दूरी 80 km ! Site के लिए लोकल purchase या ispection हो या काम से मुम्बई, पूना वैगेरह जाना हो चैन्ने ही सबसे नजदीक शहर, स्टेशन या airport था। और वहाँ का श्रावना भवन घरेलू समानो का लोकप्रिय मार्केट। सुलुरपेट से चेन्नै के लिए लोकल ट्रैन भी चलती है । सुलुरपेट एक छोटा सोया हुआ सा क़स्बा हैं जहा तब रात में रुकने के लायक सिर्फ एक लॉज था वह भी शायद ही पसंद आये किसीको। अब सुनते है कुछ ठीक ठाक हॉटल खुल गए है । सारा क़स्बा स्टेशन के आस पास के ३-४ वर्ग की मि के दायरे में बसा हैं । कोई ३ km दूर इसरो की कॉलोनियां हैं । इसरो का "SHAR केंद्र" रेलवे स्टेशन से 20-25 km दूर श्रीहरिकोटा द्वीप पर है । जब तक यहाँ पोस्टिंग नहीं हुई थी यानि डिजाईन सप्लाई के समय टूर पर ही आते थे और इसरो के SHAR केंद्र के अंदर बने गेस्ट हाउस में रुकते थे । यह बताना जरूरी है की श्रीहरिकोटा भारत के दूसरे सबसे बड़े brackish water lagoon पुलिकट झील में है और प्रवासी पक्षियों का पसंदीदा जगह है। मैं पहली बार रास्ते में इतने सारे पिंक फ्लेमिंगो देख कर आश्चर्य चकित हो गया था ।
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सुल्लुरपेट - मन्नार पोल्लुर मंदिर - चेंगलम्मा मंदिर MAP
२००० में इसरो के दूसरे लांच पैड को स्थापित करने का कार्य ठीक-ठाक शुरू हो गया और मेरी पोस्टिंग यहाँ हो गई । मैंने अपने एक सहकर्मी जो पहले से वहां posted था को एक घर किराए पर FIX करने अनुरोध कर, राँची से मय सर सामान सुलुरपेट ट्रेन से पहुँच गए। हमारी ट्रेन रात में पहुंची, जब कोई कुली नहीं होता है इस स्टेशन पर, 1 मिनट के स्टापेज मे 19-20 नग समान मै उतार न पाता यदि मेरे मित्र न आ गए होते। घर स्टेशन के पूर्व की तरफ था और इतना करीब था की ट्रैन के आने की सिटी सुनने के बाद भी घर से चले तो चेन्नै जाने वाली गाड़ी पकड़ सकते थे । स्टेशन के आस पास से ही हम सारे सामान खरीदते थे रेल लाइन के पश्चिम की तरफ ही मुख्या बाजार था । सुलुरपेट में सब्जी और फल बहुतायत में और कम दामों में मिल जाते थे । एक थोक भाव वाला सब्जी का मार्किट था वहाँ जहाँ हर रविवार हम हो आते । आस पास फलों के 30-40 बगीचे थे और केला, नारंगी, निम्बू, सपाटू, अनार , पपीता, आम बहुत सस्ते में मिल जाते थे । "दक्षिण के आम मीठे नहीं फीके होते है" हमारी ये धरना यहाँ ख़त्म हो गई । रसपुरी सहित अन्य आम के बगीचे आंध्र तमिल बॉर्डर TADA के पास थे । रसपुरी एक बेढंगे गोल आकर के आम था और इसके रेशा रहित मीठे गूदे और पतली आठी का क्या कहना । शायद यह मैसुर कर्नाटक का एक आम है। सपाटपल्ली या चीकू भी बहुत अच्छे और सस्ते मिल जाते थे और हम प्रायः रेलवे क्रोसिंग के पास से 5-6 रू का चिकू रोज ही ले आते । ज्यादा फल सब्जी खरीद कर रखने का साधन न था। पोस्टिंग टेम्पोरॉरी था फ्रिज लेकर नहीं आए थे हम।
ब्लॉग के इस प्रथम भाग में सुल्लुरपेट के आस पास के ही कुछ जगहों की बातें करना चाहता हूँ । सबसे पहली जगह जो हम कई बार गए वो हैं
चेंगलम्मा मंदिर जो एक देवी मंदिर हैं । यहाँ हर छुट्टी के दिन पहुंच ही जाते थे। हमारे घर से सिर्फ २ की मि दूर था ये मंदिर । चौथी शताब्दी में बने इस मंदिर में स्थापित प्रतिमा के बाएं भाग में पार्वती दाएं भाग में सरस्वती और बीच में लक्ष्मी को दर्शया गया हैं । इसलिए इसे त्रिकाल चेन्गली भी कहते हैं । हर शुक्रवार को बहुत भीड़ होती हैं यहाँ पर और दिनों में दर्शन आसानी से हो जाता था । भक्तगण मुंडन और अन्य रीति रिवाज़ों के लिए यहाँ आया करते थे ।
चेंगलम्मा मंदिर सुल्लुरपेट
दूसरी जगह जिसके बारे में बताना चाहता हूँ वह हैं
मन्नार पोल्लुर ।
मन्नारपोलुर आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में सुल्लुरपेटा के पास ’कालिंदी’ नदी के किनारे एक छोटा सा गाँव है। इस गाँव में एक बहुत प्राचीन मंदिर है, जो एक छोटे से गाँव के बीच है। कभी यह एक महत्वपूर्ण गाँव रहा होगा, निश्चित रूप से सुल्लुरपेटा जो कि काफी बाद का settlement है से कहीं अधिक महत्वपुर्ण होगा। मन्नारपोलुर के बारे में यह कहने का आधार यह है कि यह मंदिर 10 वीं शताब्दी यानि चोला साम्राज्य काल का है। इस मंदिर के अलावा चित्तूर जिले में श्रीकालहस्ती तक या नेल्लोर तक कोई अन्य महत्वपूर्ण मंदिर नहीं है।
इस मंदिर (अलघु मल्लारी कृष्णा स्वामी मंदिर) की एक छोटी सी कहानी है। सत्राजित नमक व्यक्ति भगवान सूर्य का बहुत बड़ा भक्त था। उसके भक्ति से प्रसन्न हो कर सूर्य देव ने उसे स्मयन्तक मणि भेंट में दे दी । सूर्य के सामन चमक वाली मंदिर में स्थापित कर दी गया । ये मणि रोज़ आठ भर सोना दिया करती और जहाँ वह पूजित होकर रहती थी, वहाँ दुर्भिक्ष, महामारी, ग्रहपीड़ा, सर्पभय, मानसिक और शारीरिक व्यथा तथा मायावियों का उपद्रव आदि कोई भी अशुभ नहीं होता था। एक दिन कुछ प्रसंगवश श्री कृष्ण ने सत्राजित को उस मणि को राजा उग्रसेन को दे देने के लिए कहाँ पर सत्राजित ने उनका कहा लोभ वश नहीं माना। एक दिन सत्राजित का भाई प्रसेन उस मणि को गले में धारण कर शिकार खेलने चला गया जहाँ सिंह ने उसके घोड़े और उसे मार कर खा गया और उससे मणि ले लिया । सत्राजित ने कृष्णा पर दोष लगाया तब भगवान् खुद मणि खोजते वन में गया पता चला सिंह को एक ऋक्ष ने मार डाला था और अब मणि ऋक्षराज जाम्ब्वान के पास था और मणि के लिए श्रीकृष्ण और जाम्ब्वान के बीच भीषण मल्ल युद्ध हुआ और जब जाम्ब्वान ने भगवान को पहचान लिया तो मणि तो लौटाया ही अपनी कन्या का विवाह भी कृष्ण के साथ कर दिया । कहते है वह युद्ध यहीं हुआ था। उधर जब सत्राजित को अहसास हुआ की उन्होंने कृष्णा पर झूठा कलंक लगाया था तो उसने भी कलंक दूर करने के लिए अपनी कन्या सत्यभामा का विवाह कृष्णा से कर दिया । इस कारण इस मंदिर में कृष्णा के साथ जाम्ब्वती और सत्यभामा की मूर्ति की पूजा होती हैं और द्वार पाल के रूप में सुग्रीव और जांबवान है । एक अलग मंदिर रुक्मिणी (सौंदरावल्ली थायर के रूप में) । वेंकटेश्वरा की मूर्ति बायें तरफ हैं । राम दरबार भी हैं यहाँ ।
मल्लार पोल्लूर मंदिर
तीसरी जगह जिसके बारे में मै कुछ बताना चाहता हू वह है एक दरगाह। यही वो दरगाह है जहाँ A.S. दिलीप कुमार ने अपने बहन की बीमारी ठीक होने की दुआ मांगी और वो कूबूल हो गई और दिलीप कुमार ने इस्लाम कबूल किया और बन गए A.R. RAHMAN । भारत के ऑस्कर जीतने वाले संगीतकार। कहा जाता है दरगाह स्थित कब्र हर साल कुछ इंच बड़ी हो जाती है। जब हम गए थे यह 100 फीट से भी ज्यादा लंबी थी। दरगाह वेनाडू द्वीप पर है। जाने का रास्ता तब बहुत ही खराब था । सुना है ए आर रहमान ने कच्चे दरगाह को पक्का करवा दिया है। जाने का रास्ता भी उन्होंने ही बनवायााथ , शायद ठीक भी करवा दिया हो अबतक।
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हम लोग नजदीक के कुछ और भी जगहें घूमनें गए जैसे नालपट्टू पक्षी विहार, एक गाँव जहाँ सिल्क और हैन्डलूम का काम हर घर में होता है, नैल्लोर का एक प्रमुख मंदिर । उसके बारे में अगले ब्लॉग में।
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