Tuesday, May 17, 2022

सुल्लूरपेट और आस पास २००३... भाग २ (#यात्रा)


पिछले भाग में मैंने लिखा था की अपने सुल्लुरपेट प्रवास के दौरान हम लोग नजदीक के कुछ और भी जगहें घूमनें गए जैसे नालपट्टू पक्षी विहार, एक गाँव जहाँ सिल्क और हैन्डलूम का काम हर घर में होता है, नैल्लोर का एक प्रमुख मंदिर । उनके बारे में प्रस्तुत हैं यह ब्लॉग ।
मेरे सहकर्मियों की पत्नियां एक छोटे गॉव के दुकान से हैंडलूम और रेशम की साड़ियां खरीदने जाया करती थी और उन्हें पता चला की नज़दीक के एक गावं में हर घर में कपड़े बुने जाते हैं । एक दिन हमने उस गावं को देखने का फैसला किया । पता चला वह बुनकरों गॉव सुल्लुरपेट से करीब १६ km दूर हैं नाम है करिपक्कम। बस क्या था एक रविवार हम चल पड़े । रास्ते में देखा (२००२ की बात हैं ) हर गांव में स्कूल थे बिजली थी । फख्र की बात थी आंध्र प्रदेश के लिए । खैर करिपक्कम पहुंचने पर वहां के मुखिया से मिले और उन्होंने सारे गॉव का सैर करवाया । शायद ही कोई ऐसा घर होगा जहां कपड़ें बुनने का करघा न हो । सूती और रेशमी दोनों तरह के कपडे बुने जाते थे वहां । एक दुकान भी थी वहां जहाँ कपड़े ख़रीदे जा सकते थे और हमने ख़रीदे भी बहुत सारे । यहाँ बुने सिल्क या कॉटन साड़ी को पतुर साड़ी कहते हैं , क्योंकि पतुर नज़दीक का एक ऐसा ही बुनकरों का एक गावं हैं ।



दूसरी जगह जिसका ज़िक्र मैं करने वाला हूँ वह हैं नालपट्टु पक्षी विहार यो तो हम रोज़ पुलिकट लेक क्रॉस कर साइट जाते और रोज़ जल पक्षी देखते पर नेलपट्टु का अलग महत्त्व था । यह हमारे मकान से करीब २० km दूर नेल्लोरे के रास्ते में था और हम वहां दो बार गए । इस अभयारण्‍य में कई प्रकार के अनोखे पक्षी देखने को मिलते है जैसे - लिटिल कोरमोरंट, पेंटेड स्‍टॉर्क, वहइट आईबिस और स्‍पॉटेड बिल्‍ड पेलीकन आदि। इस अभयारण्‍य की यात्रा का सबसे अच्‍छा समय अक्‍टूबर से मार्च के दौरान होता है। इस अवधि में कई सुंदर चिडियों को निहारा जा सकता है। टी स्पॉट-बिल पेलिकन के लिए एक महत्वपूर्ण प्रजनन स्थल है। नेलापट्टू में दो प्रमुख plant समुदाय हैं, बैरिंगटनिया दलदली वन और दक्षिणी शुष्क सदाबहार झाड़ियाँ। नेलापट्टू पक्षी अभयारण्य में लगभग 189 पक्षी प्रजातियां पाई जा सकती हैं, जिनमें से 50 प्रवासी हैं। स्पॉट-बिल्ड पेलिकन के अलावा, यह ब्लैक-हेडेड आइबिस, एशियन ओपनबिल, ब्लैक-क्राउन नाइट हेरॉन और लिटिल कॉर्मोरेंट के लिए एक महत्वपूर्ण प्रजनन स्थल है। अभयारण्य में आने वाले अन्य प्रवासी जल पक्षियों में यूरेशियन कूट, भारतीय स्पॉट-बिल्ड डक, ग्रे हेरॉन वैगेरह शामिल हैं।



तीसरी जगह जिसके बारे में मैं बताना चाहता हूँ वह नेल्लोर का एक प्रमुख मंदिर हैं । श्री रंगंथास्वामी मंदिर भगवान रंगनाथ को समर्पित है जो भगवान विष्णु के विश्राम स्वरूप हैं। यह मंदिर, जिसे तलपागिरी रंगनाथस्वामी मंदिर या रंगनायकुलु भी कहा जाता है, नेल्लोर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। यह पेन्ना नदी के तट पर स्थित है और माना जाता है कि इसका निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के ठीक पहले एक गोपुरम है, जिसे गैलीगोपुरम कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है "हवा का गोपुरम"। यह गोपुरम लगभग 70 फीट ऊंची है और इसके ऊपर 10 फीट सोने की परत चढ़ा हुआ है, जिसे कलशम कहा जाता है। गोपुरम का निर्माण येरागुडीपति वेंकटचलम पंथुलु ने करवाया था। हर साल मार्च-अप्रैल के महीने के दौरान एक भव्य त्योहार मनाया जाता है। इन्हें ब्रह्मोत्सवम कहा जाता है।



जब बात निकली है तो उस समय चेन्नै के साप्ताहिक ट्रिप के बारे में जरूर बताऊंगा। सबसे पहले तब की बात जब हमारे छोटे बहनोई चेन्नै शिफ्ट किए। अकेले आए थे। एक उपनगरीय मोहल्ले में एक घर किराए पर ले लिया था। एक दिन रविवार को उनके बुलावे पर हम लोकल ट्रेन पकड़ कर उनके यहाँ पहुच गए । वे हमें स्टेशन लेने आए और हम दस मिनट में मकान के दरवाजे पर खड़े थे। दरवाजा pull to lock वाला था। और अब शुरू हुआ चाभी खोजने का episode. जब सारे पॉकेट ढ़ूढ लिया तब यह कनफर्म हो गया कि चाबी घर के अंदर ही रह गया। बहनोई जी ने कहा पड़ोसी के यहा डुप्लीकेट चाभी रखा है। पर भगवान जाने क्या चाहता था। पड़ोसी के यहाँ सिर्फ बुढ़ी सास घर पर थी और उन्हें पता ही नही था कि चाबी कहाँ है। बहुत सारी चाबियाँ हमारे पास ला कर रख दी उन्होंने । उसमें कोई घर की चाभी नहीं थी। खैर जब हम घर के अंदर न जा सके तो हम लोगों ने समय बिताने के लिए फिल्म देखने और बाहर खाने का निश्चित किया और एक बेकार सी फिल्म देखी और अगली ट्रेन से सुल्लुरूपेट लौट गए। बहनोई साहब ने चिकन बना कर रखा था जो शायद बर्बाद ही हुआ होगा क्योंकि उनका फ्रिज तब तक आया नहीं था। हम लोग अपने चेन्नै ट्रिप में सर्वणा मार्केट जरूर जाते जहाँ तकरीबन सभी घरेलू चीजें बहुत कम दाम में मिल जाते थे और लूट जैसा माहौल बन जाता था। फुड कोर्ट में खाना भी सस्ता और स्वादिष्ट होता था और आईस क्रीम भी गजब का मिलता था। आग लगने की एक दुर्घटना और उससे उपजे कानूनी दिक्कत के कारण सर्वणा स्टोर तब बंद हो गया था। शायद अब खुल गया है जैसा गुगल बाबा बता रहे है।



मेरा ये ब्लॉग पूरा नहीं होगा यदि मैने पंजाबी ढ़ाबा के बारे में नहीं बताया। यह ढ़ाबा 3-4 km दूर नेल्लोर के रास्ते में था और आटा की (तवे वाली या तंदूरी रोटी) और उत्तर भारतीय स्वाद वाली veg, पनीर की सब्जी, दाल तड़का वैगेरह के लिए हमारे सहकर्मियों ने इस ढ़ाबे को खोज निकाला। हम गाहे बेगाहे रात का खाना यहाँ खाने आ जाते अक्सर एक ग्रुप में और चारपाईयो पर या कुर्सी पर बैठ कर खाते। ढ़ाबा का मालिक दाढ़ी बढ़ाए और सर पर पगड़ी बांधे पंजाबी जैसा दिखता। हम बहुत दिनों तक इसे authentic पंजाबी ढ़ाबा ही समझते रहे। लाजवाब पनीर की सब्जी, गरम गरम रोटी और दाल तड़का हमारा विश्वास मजबूत ही करता। पर एक दिन उसे किसी ने भोजपुरी में अपने नौकर को डांटते सुना तो हम उससे पूंछ बैठे। हमारा अनुमान सही निकला जब उसने बताया कि वह बिहार से है और पंजाबी ट्रक ड्राईवर को आपने ढ़ाबे पर रोकने के लिए ही उसने ढ़ाबे का नाम और अपनी हुलिया पंजाबी की भांति कर रखा है। पता नहीं यह ढ़ाबा है या नहीं क्योंकि रोड एक्सप्रेस हाई वे में तब्दील हो रहा था और एक्सप्रेस हाई वे किनारे ढ़ाबा तो नहीं रख सकते।



पंजाब ढाबा. सुलुरुपेट नेल्लोरे रोड

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