Thursday, November 26, 2020

थिरुअनंतपुरम, कन्याकुमारी, रामेश्वरम, मदुरै-२००९ ( #यात्रा)

यात्रा का पहला भाग यानि श्री लंका के ब्लॉग के लिए यहाँ क्लिक करें

श्री लंका से लौटने पर हम लोग पहले से तय प्रोग्राम के अनुसार थिरुअनंतपुरम, कन्याकुमारी, रामेश्वरम, मदुरै की यात्रा पर निकल पड़े। उसीका वर्णन नीचे दे रहा हूँ।

  • ३१ अक्टूबर २००९
  • चैन्नै में एक रात रुक कर ३१ अक्टूबर के दो बजे दिन में हम हवाई जहाज से त्रिवेन्द्रम के लिए रवाना हो गए और १६:२० तक वहाँ पहुंच भी गए । हमारा हवाई जहाज कई मिनटों तक चक्कर लगाता रहा। हम कोवालम बीच के उपर से कई बार गुजरे । यह बताना उचित होगा कि त्रिवेन्द्रम या थिरूअनन्तपुरम केरल की राजधानी होने साथ साथ कोवलम बीच के लिए भी प्रसिद्ध है। पिछली बार त्रिवेन्द्रम कॉलेज टूर में संभवतः 1969 में आया था। तब मध्य पूर्व की नौकरी मे कमाए पैसे केरल आने शुरू नहीं हुए थे। आलीशान मकानों और मॉल, होटल से केरल की जमीन पटी नहीं थी। तब केरल में हर तरफ हरियाली, साफ सुथरे गांव शहर, हर गांव में स्कूल, library ट्रेन से ही दिख जाते थे। केरल ने हमारा मन मोह लिया था तब। अब तो केरल के शहर भी कंक्रीट जंगल में बदल गए है। फिर भी केरल प्राकृतिक सौन्दर्य में अब भी किसीसे कम नहीं हैं। पश्चिमी घाट/ मुन्नार के पहाड़ झरने, चाय बगान, वन्य जीवन और अलेप्पी के हाउसबोट रिसोर्ट मन को मोहने के लिए काफी है। पिछली बार बहुत बड़े लाल केले खाए थे। इस बार कम ही दिखे।

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    हमारा रिसॉर्ट मुन्नार में २०१३ के ट्रिप में

    दो कमरो वाले , हाउस बोट, अलेप्पी

    त्रिवेन्द्रम में होटल STAY क्लियर ट्रिप (CLEAR TRIP) से कॉम्प्लिमेंटरी था। क्लियर ट्रिप से मैंने बहुत सारे टिकट काठमांडू, दिल्ली और इस ट्रिप के लिए टिकट ख़रीदे थे। टैक्सी से हॉटल पहुंचे तो होटल रूम में छोटा किचन देख कर समझ गया लम्बे समय तक रुकने वाले मुसाफिरों के लिए हॉटल या होम स्टे है। शायद कोई और टुरिस्ट अभी ठहरा हुआ भी नहीं था। कमरे अच्छे थे बड़े थे, अलग से बैठक भी थी हर रूम में, पर रेस्टॉरेन्ट नहीं था। सिर्फ चाय और टोस्ट और आमलेट मिलते थे। हॉटल की अच्छी बात यह थी की बीच से 5 मिनट के दूरी पर था और बुरी बात यह थी की ऑटो - टैक्सी मुश्किल से मिलता था।


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    हमारा त्रिवेंद्रम में होटल बेकर्स रिसोर्ट

    पद्मनाभ स्वामी मंदिर

    कमलेश जी ने हवाई अड्डे वाले टैक्सी ड्राईवर से अगले दिन के लिए कन्याकुमारी तक जाने आने के लिए बात पक्की कर ली थी। आज के टाईम में ओला,उबर हमारी टैक्सी की हर जरूरत पूरा कर देता है और अलग से चिंता करने की जरूरत नहीं पड़ती। कोवालम बीच नजदीक था और हम शाम को FRESH हो कर कोवलम घूमने चल दिए। बहुत सुन्दर लम्बा साफ सुथरा बीच था। पैदल चलते चलते हम थक भी गए। हम लोग एक हॉटल के बाहर लगे BEACH FACING कुर्सियों पर बैठ गए और डिनर का ऑर्डर कर प्रतिक्षा करने लगे। जब तक ऑर्डर बन कर तैय्यार होता हम और बीरू जी बगल के एक दो हॉटल देख आए। आश्चर्य जनक रूप से बीच पर ही कई अच्छे होटल में अच्छे रूम खाली मिले वे बहुत किफायति भी थे। हम क्लियर ट्रिप के FREE HOTEL STAY किसी अगले ट्रिप के लिए बचाने का सोचते तो कम पैंसे में ही अच्छे रूम/ होटल और बीच पर रुकने का आनंद ले पाते । रेस्टॉरेन्ट की कमी भी नहीं थी बीच पर। "अब पछताएँ होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत" कहावत चरितार्थ हो रही थी। 

    अटकुल भगवती मंदिर कनककुन्नू पैलेस

  • १ नवम्बर २००९
  • अगले दिन यानि १ नवंम्बर को हम कन्याकुमारी के लिए निकले। कन्या कुमारी की यात्रा पर निकलने से पहले हम त्रिवेन्द्रम में ही दो प्रसिद्ध मन्दिर देख आये। पहला मंदिर था अटकुल भगवती मंदिर। यह मंदिर महिलाओं में ज़्यादा लोकप्रिय हैं। महिलाओं का सबरीमाला भी कहते हैं इसे। ड्रेस कोड या पोशाक की कुछ समस्या हुई पर फिर दीपा अपनी भाभी के साथ अंदर चली गयी और हम पुरुष परिसर के अन्य मंदिरों में दर्शन अर्चना करने लगे। वहाँ से हम प्रसिद्ध पद्मनाभस्वामी मंदिर गए। पद्मनाभस्वामी मंदिर केरल राज्य के तिरुअनन्तपुरम में स्थित भगवान विष्णु का प्रसिद्ध मंदिर है। भारत के प्रमुख वैष्णव मंदिरों में शामिल यह ऐतिहासिक मंदिर तिरुअनंतपुरम के अनेक पर्यटन स्थलों में से एक है। पद्मनाभ स्वामी मंदिर विष्णु-भक्तों की महत्वपूर्ण आराधना-स्थली है। मंदिर की संरचना में सुधार  होते रहते हैं। उदाहरणार्थ 1733 ई. में इस मंदिर का पुनर्निर्माण त्रावनकोर के महाराजा मार्तडं वर्मा ने करवाया था। पद्मनाभ स्वामी मंदिर के साथ एक पौराणिक कथा जुडी है। मान्यता है कि सबसे पहले इस स्थान से  विष्णु की प्रतिमा प्राप्त हुई थी जिसके बाद उसी स्थान पर इस मंदिर का निर्माण किया गया है। तिरुअनन्तपुरम का नाम अनन्त पद्मनाभ स्वामी के कई नामों में से एक पर आधारित है। इस सुन्दर आकर्षक मंदिर के अंदर जाने के लिए पुरुषों के लिए ड्रेस कोड धोती (ऊपर का भाग निर्वस्त्र) और महिलाओं के लिए साड़ी था। ड्रेस कोड का पालन भी कड़ाई से हो रहा था। चूँकि धोती वैगेरह किराये पर मिल रहा था और कपडे बदलने की जगह भी थी। हम ड्रेस बदल कर दर्शन के लिए अंदर गए। दर्शन भी तुरंत ही हो गया। प्रसाद भी अच्छा स्वादिष्ट मिला। मन्दिर परिसर के अन्य मंदिरों का दर्शन कर और आँगन में बैठ कर प्रसाद खा कर हम सभी घंटे भर के भीतर बाहर आ गए और कपडे़ बदल कर कन्या कुमारी के लिए प्रस्थान कर गए ।

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    विवेकानद रॉक और थिरुवलवुर प्रतिमा, कन्या कुमारी गाँधी मंडपम

    कन्या कुमारी में कार थोड़ी दूर पार्क करना पड़ा। हम विवेकानंद रॉक के स्टीमर की लाइन में लग गए। लम्बी लाईन और लाइफ जैकेट के लिए लगी होड़ के बीच भी हम सभी एक ही ट्रिप में जाने में सफल हो गए। फिर मेमोरियल रॉक में जाने के लिए लाइन लगी फिर भी हम ठीक ठाक घूम आये। मैं अंतिम बार १९६९ में कन्या कुमारी, रामेश्वरम होते हुए आया था। तब तमिल के आदि कवि थिरुवालवावूर की काफी ऊँची प्रतिमा नहीं थी यहाँ। इस रॉक से दूसरे जहाज उस प्रतिमा पर जाना पड़ा और फिर जहाज और प्रतिमा के दो लाइनों के जाल में पड़ कर प्रतिमा तक पहुचें। इस बार हम चारो एक जहाज में नही आ पाए और अलग अलग पहुंचें पर प्रतिमा की दुसरी लाइन में एक साथ लग पाए। यहाँ काफी ऊपर तक जाना था आदि कवि के पैरों तक पहुचने के लिए। खैर सब कुछ कर हम लौट पाए। एक कैंटीन मिला जिसमे खाना खा कर हम कुमारी मंदिर देखने गए। कैमरा और दूसरे सामान को जमा करना था और उसमे लाइन लगा था। लाइनों से मैं परेशान था और मंदिर के स्टाफ से बहस हो गयी। कुमारी मंदिर से निकलने पर हम सूर्यास्त देखने की जगह पर गए सभी अपनी अपनी जगह चुन रहे थे। सूर्यास्त की कुछ अच्छी फोटो खींचने में सफल हो पाया। त्रिवेंद्रम लौटने के क्रम में एक बहुत सुन्दर मंदिर (नाम अब याद नहीं रहा) देखते हुए हम होटल पहुँच गए।

  • २ नवम्बर २००९
  • दूसरे दिन हमारा मदुरै का ट्रैन था करीब चार बजे शाम का । हम १० बजे तक चेकआउट कर निकल पड़े और बाकी बचे समय में कनककुन्नू पैलेस म्युजियम देखने गए। बहुत सुन्दर कलेक्शन था इसमें जो कभी त्रावणकोरे राजघराने का एक महल था। इसे श्री मूलम थिरुनल द्वारा निर्मित बताया गया है। बाद में इसका इस्तेमाल त्रावणकोर शाही परिवार ने अपने मेहमानों के मनोरंजन के लिए और उन्हें मांसाहारी भोजन परोसने के लिए किया क्योंकि शाही परिवार शाकाहारी था। यह अब पर्यटन विभाग द्वारा संरक्षित है । महल बहुत सारे सांस्कृतिक कार्यक्रमों और कार्यक्रमों की मेजबानी करता है। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH) ने इस स्थान को एक विरासत स्मारक के रूप में सूचीबद्ध किया है। हम ११ बजे तक रात तक मदूरै पहुचें और होटल स्टार में रुके। बहुत आरामदेह होटल था। अगले दिन रामेश्वरम के लिए टैक्सी पहले ही बुक रखा था। हम खाना खा कर सो गए।

  • ३ नवम्बर २००९
  • रामेश्वरम

    हम लोग सवेरे ही निकल पड़े रामेश्वरम मन्नार की खाड़ी में स्थित पामबान द्वीप में हैं। समुद्र में बने पाम्बन पूल पर रुक कर हमने मन भर फोटो खींचे। १९६९ में जब कॉलेज के टूर में यहाँ ट्रेन से आये थे तो बड़े बड़े कछुए को स्टेशन पर चेन्नई ले जाने के लिए रखे देखा था। आश्चर्य चकित थे कि कछुए का मांस भी खाते है,लोग। रामेश्वरम मंदिर १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक है। और मान्यता है कि जब श्री राम श्रीलंका सीता जी के खोज में श्री लंका जा रहे थे तब उन्होंने समुद्र ने रास्ता माँगा था। जब कई बार कहने पर समुद्र ने रास्ता नहीं दिया तब श्री राम अपने वाण से समुद्र को सूखा देने को उद्यत हो गए। तभी समुद्र ने प्रकट हो समुद्र की मर्यादा की याद दिला कर उनसे नल- नील के सहायता से पुल बना कर जाने की प्रार्थना की। वहां से आगे जाने के पहले बालू का शिव लिंग बना कर श्री राम ने यही उपासना की थी। इस कारण इसे रामेश्वरम महादेव कहते है। यह चार धामों में (अन्य है बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी और द्वारका) से एक है।

    इंदिरा अन्ना पम्बान सेतुहजार खम्भोंवाला गलियारा
    गन्दमादन/रामझरोखा लक्ष्मण तीर्थ

    हम लोग मंदिर के २२ कुंडो में नहाऐ। फिर दर्शन पूजा करने के बाद एक चबुतरे पर एक पंडित जी की सहायता से अभिषेक किया और बाहर आ गए । मंदिर का ४००० फ़ीट लम्बा गलियारा दुनिया का सबसे बड़ा गलियारा है । नजदीक के एक होटल में कुछ घंटे के लिए एक रूम सुविधा के ले लिया और लंच ले कर थोड़ा घूमने निकल पड़े। लक्ष्मण मंदिर, राम झरोखा देखने गए और देर शाम होने पर मदुरै के लिए चल पड़े।

  • ४ नवम्बर २००९
  • मदुरैमदुरै में मिनाक्षी मंदिर ही देखना मुख्य कार्य था। यह सुन्दर मंदिर हम दो तीन बार पहले भी आ चुके थे। पहले के ट्रिप की कई यादें है । किसी मारवाड़ी भोजनालय में पहले खाना खाया था। होटल वाले का आत्मीयता से से गरम गरम रोटियां रोटियां खिलाना हम बारबार अब भी याद करते हैं। मंदिर में ज्यादा भीड़ नहीं थी। मंदिर के चारो तरफ परिक्रमा हमने इलेक्ट्रिक रिक्शा से की। टैक्सी मन्दिर से दूर खड़ा करना पड़ा था। मंदिर का तालाब, १०० खम्भो वाला मंडपम, शिव के सात और शक्ति के आठ अवतारों के मंडप, मिनाक्षी अम्मान (पार्वती) और सुन्दरेश्वर (शिव) के लिए बने झूले भी देखे। संगीत वाले खम्भे, खम्भों पर उकेरी मुर्तियां देखते हुए कब शाम हो गयी पता नहीं चला।


    मिनाक्षी मंदिरहोटल स्टार मदुरै

  • ४- ५ नवम्बर २००९
  • हम रात ८:४५ बजे मदुरै से पांडियन एक्सप्रेस से चल कर अगले दिन ७:१० बजे सुबह चैन्ने पहुंच गए। और रात ८:१० बजे इंडिगो के फ्लाइट से दिल्ली के लिए निकल पड़े फिर वह से काठमांडु गए और कुछ दिनों बादं रांची लौटे।

    4 comments:

    1. बहुत ही खूबसूरती से वर्णन किया आपने। मुझे भी अपने साल 2001 के टूर की याद ताजा हो आईं।

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    2. वाह जी.... वाह कितना सुन्दर #रामेश्वर_यात्रा का वर्णन किया है । दिल प्रसन्न हो गया ।

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    3. बहुत सुन्दर वर्णन किया श्रीमान आपने यात्रा प्लानिंग करने में सपोर्ट मिलेगा।

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    4. अत्यंत मनोरम वर्णन

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