Thursday, March 30, 2023

केरल टूर 2013 भाग-1 #(यात्रा)

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जैसा मेरे साथ होता रहा है कहीं घूम आने को जब जब मेरी इच्छा हुई है कोई न कोई बहाना हमें मिल ही गया है और यदि प्लान पहले से बना कर रखा तो पंगा भी हो गया है। 2013 में हम अपने युरोप के 5 देश घूमने के प्लान को postpone कर रहे थे ताकि इसे ऑफिसियल पेरिस ट्रिप के साथ Club कर सके। पर हमारा tourist Visa खत्म होने को आया पर ऑफिसियल ट्रिप का दिन ही तय नही हुआ और हम फ्रांस के बिना 5 देश घूम आए। इसके बाद मैं तीन बार पेरिस ऑफिसियल ट्रिप पर अकेले हो आया था। लगभग हर महिने मे एक टूर। श्रीमती जी बोर हो चुकीं थी और उन्होंने मांग की "चलो कही घूम आते हैं" । जो वाजिब था। हम कुछ प्लान करते उसके पहले ही मेरे छोटे बहनोई कमलेश जी का फोन आया "भैया मुन्नार घूमने चलना है? दिव्या के सिंगापुर की दोस्त सरण्या की शादी गुरूवायूर में है और आप लोग भी आमंत्रित है।" अन्धे के हाथ मानो बटेर लग गई। लेकिन एक समस्या थी। मेरे साले अनिल जी के अमेरिका में रहने वाले सुपुत्र आशीष के शादी की reception पार्टी इस महीने (जुलाई) में ही थी। मै प्लान करने में जुट गया। दोनो आयोजनों के बीच 10 दिनों को gap था और केरल से ही काठमाण्डू चले जाने से समस्या हल हो जाती थी।श्रीमती जी ने कहा थोड़ा सामान जरूर बढ़ जाएगा पर मैनेज कर लेगे। हमनेे निर्णय ले कर कमलेश जी को हामी भर दी। काठमाण्डू शादी के रिसेप्सन पार्टी में जाने से पहले गुरूवायूर, मुन्नार और कोची की 7-8 दिन की यात्रा सम्भव थी । मेरी छोटी बहन दीपा, कमलेश जी, भांजी दिव्या, भांजा अनिमेष और हम दोनो। यानि 6 लोगों का Ideal size वाला ग्रुप बन गया। एकदम एक SUV के लायक। हम टूर के लिए तैयार थे। टूर पैकेज बुक कर कमलेश जी ने बताया कब चेन्नैई पहुंचना है और हम राँची से उसी अनुसार रवाना हो गए। लीजिये टूर पर लेट से ही सही ब्लॉग हाज़िर हैं। कुछ वीडियो यूट्यूब पर डाला हैं उसके लिंक दे रक्खी है ज़रूर देखें।






यात्रा का रुट

गुरवायूर : हम लोग चेन्नई से एलेप्पी Express से केरल के एक मंदिर वाले शहर (Temple town) गुरवायूर के लिए चले और सुबह त्रिसूर पहुचें। दूसरे ट्रेन से हम लोग ९ बजे तक गुरवायूर पहुंच गए। रास्ते में पड़ने वाले दृश्य बहुत मनोरम थे। थोड़ा प्रतिक्षा और एक एक कप कॉफी के बाद हमारे साथ इस टूर में पूरे समय साथ रहने वाली टैक्सी (SUV) आ गई और हमें टूर पैकेज में Included हॉटल नंदनम ले गई। यह एक आरामदायक होटल था। इसके रेस्टोरेंट में पानी में आयुर्वेदिक दवा (Rosewood bark powder) डाल कर लाल रंग का शरबत नुमा गुनगुना पानी ही पीने को देते। पूछने पर पता चला यह सर्दी और अन्य रोगो से बचाता है। केरल में हर जगह ऐसा ही पानी पीने को मिला। हम नाश्ता करके 11 बजे तक शादी में जाने को तैयार हो गए। जैसा मैने पहले बताया कि ऐसे तो हम तो घुमक्कड़ी करने निकले थे पर बहाना था भांजी दिव्या की सहपाठी सारण्या का विवाह । दक्षिण भारतीय विवाह मैंने दो बार पहले देखा था इसमें और उत्तर भारतीयों के शादी के कस्टम एक जैसे ही है। वहाँ दूल्हा कमर के चारों ओर बंधी पतली किनारे वाली एक सफेद सूती या रेशम की धोती पहनता है। वह इसे साथ एक रेशमी दुपट्टा और एक पगड़ी भी पहनता हैं। दुल्हन कांच की चूड़ियाँ, सोने के हार और मांग टीका के साथ एक रंगीन नवारी साड़ी पहनती है। यहाँ भी हल्दी कूटने लगाने का रिवाज़ हैं उसे कहते हैं Pendlikoothuru. काशी यात्रा, मंडप पूजा, वर पूजा, जयमाला, सप्तपदी, धारेधेरु (कन्यादान), विदाई और गृह प्रवेश, के बाद देव कार्य यानी नज़दीक के मदिरों में जा कर भगवान का आशिर्बाद भी लेते है। 'ओखली' में वर वधु और उनके परिवारों के बीच मजेदार खेल खिलवाया जाता है। ये सभी आप उत्तर भारतीय विवाह में भी देख सकते है। सारा समय नाद स्वरम बजता है।सारण्या की शादी का आयोजन करीब 3 कि०मी० दूर सोपनम होटल में था और शादी के बाद गुरुवायूर कृष्णा मंदिर में भी आयोजन था। होटल सोपनम एक अच्छा होटल था। एक छोटे से हाल में सारा कार्यक्रम था। होटल में हाथियों के झुंड और कथकली नर्तक की सुन्दर मूर्तियाँ बनी हैं। रात का खाना डाइनिंग हाल में था। कई व्यंजनों वाला ज़ायके़दार खाना।हमने शादी बहुत एन्जॉय किया। नाद स्वरम अच्छा लगा। यह बहुत तेज आवाज़ वाला शुभ वाद्य हैं। पुरोहित ने नए युगल को कई मजेदार खेल भी खिलवाये। रात का खाना सोपनम में खाने के बाद हम अपने होटल वापस आ गए।




गुरवायुर में विवाह समारोह होटल नन्दनम में

गुरूवायूर का बहुत धार्मिक महत्व है । पैराणिक कथाओं में कहा गया है कि जब द्वारका नगर नष्ट हो रहा था भगवान कृष्ण ने दो साधुओं को द्वारका में अपने मंदिर से मूर्ति ले जा कर केरल में स्थापित करने को कहा । भगवान कृष्ण की मूर्ति वायु देव और ब्रहस्पति द्वारा लाई गई थी और उन्हें गुरुवायुर में रखा गया था। "गुरुवायूर" नाम उनके दोनों नामों ("गुरु" ब्रहस्पति और "वायु" देव) का एक विलय है। इस मंदिर में करवाया विवाह बहुत शुभ माना जाता है और काफ़ी लोग इस कार्य के लिए यहाँ आते हैं। दूसरे दिन मंदिर दर्शन के बाद मुन्नार के लिए रवाना होने का प्रोग्राम था। पता चला काफ़ी मजेदार रास्ता है। रास्ते में कई फॉल पड़ने वाले थे। मंदिर में कैमरा और मोबाइल ले जाना मना है इससे हम मंदिर का फोटो नहीं ले पाए। मंदिर की हाथीशाला भी समयाभाव के कारण जा नहीं पाए। 59 हाथी अभी भी इस मंदिर के पास है। अगले दिन मंदिर में जाने केलिए हमे धोती-सिर्फ़ धोती पहननी थी। महिलाएँ को साड़ी ब्लाउज पहन कर ही दर्शण करना था कोई और परिधान मान्य नहीं था । हम लोग धोती में Bare chest अधनंगे होटल से ही तैयार हो कर दर्शन के लिए मंदिर गए । दर्शन में करीब एक घंटा लग गया। कमलेश जी अनिमेेेेष आपकी ऐसी तस्वीर का उपयोग करने के लिए मुझे क्षमा करें।मन्दिर से वापस आने पर हमने सबसे पहले कपड़े पहने। समय बचाने के लिए नाश्ता रूम में ही मंगा लिया। हमने जल्दी जल्दी अपने सामान पैक किया और आगे की यात्रा के लिए निकल पड़े।



गुरुवायुर मंदिर में हम लोग - गुरुवायुर में हमारा लॉज़

मुन्नार भारत के केरल राज्य में पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला में स्थित एक शहर है एक अनजाना Hill Station। यह ब्रिटिश राज के अभिजात वर्ग के लिए एक हिल स्टेशन और रिसॉर्ट था। 19 वीं शताब्दी के अंत में स्थापित चाय बागानों के साथ ऊंची पहाड़ियों से घिरा हुआ है यह। एराविकुलम नेशनल पार्क, लुप्तप्राय Mountain Goat नीलगिरी तहर का निवास स्थान, लक्कम और अन्य झरने, लंबी पैदल यात्रा के Trails और 2,695 मीटर ऊंची अनमुदी चोटी (हिमालय के दक्षिण मैं स्थित सबसे ऊंची) का क्षेत्र है यह। मुन्नार लोग ज्यादातर कोची से ही जाते है और गुरूवायूर हो कर कम ही टुरिस्ट जाते है। खैर हम लोग अपने प्रोग्राम के अनुसार गुरूवायूर से मुन्नार की यात्रा पर निकल पड़े। करीब 1 या 2 घन्टे चलने के बाद ईदुक्की जिले में एक बोर्ड पर लिखा दिखा Way to Athirapally falls, Niagra of India. हमारा कौतुहल बढ़ गया। हमे थोड़ा अपने रास्ते से हट कर जाना था ड्राईवर ने कहा 2 घन्टे लग जाएंगे। पर हम सभी जोश से भरे थे और हमने उस निर्देश पट्ट से करीब 30 कि०मी० दूर पड़ने वाले इदुक्की नदी के इस फॉल के लिए गाड़ी मोड़ दी।



अथिरापल्ली फाल्स, इड्डुक्की , केरल

जब हम ऐथिरापल्ली झरने के पास पहुँचे तो पता ही नहीं चला फॉल किधर है। टिकट भी लेना पड़ा था अतः फॉल तो अवश्य होगा। हम रास्ता ढ़ूढने लगे । जंगल ही जंगल था हमने एक हिरण को भी देखा। एक कैंटीन दिखा तो सबने काफ़ी और बिस्किट लिया । झरने की तेज आवाज़ आ रही थी। तब एक बोर्ड पर लिखा दिखा फॉल तक जाने का रास्ता (way to falls) और हमने पाया की सीढ़ियों से नीचे जाना था। मैंने जाने का निश्चय किया और हम दोने नीचे फॉल के लिए चल पड़े। मेरे बहनोई कमलेश जी और भांजा अनिमेष भी साथ हो लिए। कुछ सीढ़ियों के बाद सीढ़ियाँ गायब हो गई Sloping पगडंडी से जाना था । मुझे आगे जाना खतरे से खाली नहीं दिखा और मै वापस मुड़ गया। पर पत्नीजी चल पड़ी नीचे। मुझे भी उनके साथ जाना पड़ा। नीचे पहुँचने पर जो दृश्य दिखा वह मोहित करने वाला आश्चर्य जनक था। एकदम मिनी निआग्रा फॉल। धुन्ध था और पानी के छीटें हमें भिंगोने लगे । हम सब फोटो वीडियो शूट करने में जूट गए। यह फॉल हमेशा ऐसा नहीं रहता है। यह जुलाई था और वर्षा ठीक ठाक हो रही थी और फॉल में काफ़ी पानी था। नहीं जाते तो अफ़सोस रह जाता।
ऐथिरापल्ली से हम मुन्नार के लिए चल पड़े। रास्ते में पड़ने वाले हरे भरे पहाड़ और बहुत सारे छोटे बड़े फॉल दिखने लगे कुछ दूर थे और कुछ रोड के नज़दीक। रास्ता काफ़ी लम्बा और घुमावदार था । फिर भी लुभावने दृश्यों ने सबको जगाए रखा । मुन्नार शाम तक पहुँचे । होम स्टे (Woodpecker होलीडे होम) को ढ़ूढते फोटो खींचते हम पहुँच ही गए अपने अज्ञात वास में। मोबाइल नेटवर्क यहाँ तक नहीं पहुँच रहा था और हम बिना व्यवधान के होम स्टे का मजा ले सकते थे। होम स्टे मनोरम जगह पर था और हमारे कॉटेज बहुत आरामदायक थे। होम स्टे मुख्या सड़क से काफी नीचे था। गाड़ी भी थोड़ी दूर ही पार्क करना पड़ा और कुछ १५-२० सीढिया उतर कर ही हम अपने कॉटेज तक पहुँच सकते थे। होम स्टे दो भागों में था पहला भाग तीन तल्लो का था। इसमें ऑफिस, कमरे रसोई और डाइनिंग रूम थे। दूसरा भाग एक तल्ला था और इसमें कॉटेज थे। हमने तीन कॉटेज ले रखे थे गीज़र थे जो गैस से चलते थे, देख कर शांति मिली की ठण्ढे पानी से नहाना धोना नहीं करना पड़ेगा। काटेज के सामने और पीछे पार्क सा बना था जिसमें खुले में बैठने का मंच बना था। ऊपर बालकनी थी जहाँ खुले में बैठ कर चाय पी सकते थे और सामने के चाय बागानो, पहाड़ो को देख सकते थे। सामने के एक जलाशय और उसमे शिकार करने वाले तैरने वाले पक्षी भी दिखते थे। जलाशय तक पगडण्डी बनी थी और हम एक दो बार वह गए भी। गाने वाली छोटी चिड़ियाँ जिसे whistling thrush कहते है को देखना और फोटो लेना टेड़ी खीर थी। आवाज़ देने पर यह हु बहु नक़ल कर सुना देती जो दूर से ही सुनाई पड़ जाती थी। हमनेे मोबाइल पर वीडियो बनाया पर उसमे भी काफी गौर करने पर ही इसे देख सके। मेढ़क भी गा कर वर्षा के आगमन का स्वागत कर रहे थे। होम स्टे के मैनेजर ने बताया कि मेढ़क की एक प्रजाति भारतीय वैज्ञानिको ने इसी जगह खोज निकली थी। होम स्टे में सिर्फ़ हमारा ग्रुप ही था और हम अपने पसंद का खाना बनवा लेते। सच में मज़ा आया। चूँकि हमने एक पैकेज ले रखा था तो जगह-जगह ट्रांसपोर्ट, होटल खोजने की ज़रूरत नहीं थी।



मुन्नार में हमारा होमस्टे और नज़दीक का एक और होम स्टे का बोर्ड

हम दो रात और तीन दिन रुके और घूमने वाली सभी जगह गए। Echo पॉइंट में कोई Echo न आई पर अच्छी वाली भुनी मुंगफली मिल गई। एराविकुलम नेशनल पार्क भी गए जहाँ Rare नीलगिरि ताहर मिलते है। नेशनल पार्क की बस से ही यहाँ तक जा सकते थे। यहाँ हम लोग काफ़ी ऊपर तक गए पर इस दुर्लभ प्राणी को नहीं देख पाए। दक्षिण भारत के सबसे ऊँची चोटी अनिमुदी भी देख आए। टी गार्डन तो हर तरफ़ थे। टाटा टी के बगान दिख जाते थे। एक टी फैक्ट्री में भी गए पर बारिश जोरों की होने लगी और हम देख नहीं पाए।




ईरवकुलाम नेशनल पार्क (मालाबार ताहिर का घर),पुल पर से एक दृश्य , चाय बागान

कल्लारु पट्टू (Kalaripayattu, Indian Martial Art) का एक प्रोग्राम भी देखने गए। जब दर्शकों के बीच से एक बच्ची को बुलाया को हमारी सांसे अटक गई। क्या इससे ये खतरनाक स्टन्ट करवाएगें? लेकिन बच्ची ने वो सब कर लिया जो उससे करवाया गया। मेरा भांजा अनिमेष ने भी कुछ करतब दिखाया।बहुत रोमांचक और कलेजा मुंह में आ जाय वैसी कलाबाजी या युद्ध कौशल देखने को मिला। कलारी एक पुरातन युद्ध कौशल है और कम से कम 3BC का है। मान्यता है यह कौशल परशुराम ने शिव से सीखा था।
बोटैनिकल गार्डन में कई नए तरह के फूल देखे और हर्बल गार्डन में कई प्रकार के मसाले जड़ी बुटियों के पौधे, पेड़ देखने को मिला। इलायची, लौन्ग, काली मिर्च, स्टार, सुपारी के पेड़ पौधे इन हर्बल गार्डन में मिल जाती है और प्राकृतिक अवस्था में मिलती हैं-बिना किसी रासायनिक प्रक्रिया के. इन मसालों की खुशबू, स्वाद बाज़ार में मिलने वाले मसलों से अलग ही होता है। बांस का चावल भी इन्हीं हर्बल गार्डन में मिलता है। कहते है कोलेस्ट्रोल कम करता है और जोड़ो के दर्द में बहुत फायदेमंद है।
कुछ खरीदारी भी की। मुन्नार चाय के लिए मशहूर है। आप अलग-अलग तरह के मसालों, चाय के साथ यहां घर पर बनी यानी होममेड चॉकलेट भी अपने साथ ले जा सकते हैं। इनके अलावा, जड़ी बूटियां, आयुर्वेदिक दवायें, सुगन्धित तेल, रंगे हुए पारम्परिक केरल के कपड़े की भी यहाँ से ले सकते हैं



कलारिपट्टू और मुन्नार बाजार

एक जगह हम गए जहाँ से सीढियाँ उतर कर आप केरल से तमिलनाडु जा सकते है। पता चला यह जगह शराब की तस्करी के लिए प्रसिद्द हैं । मैंने तो 800-900 सीढ़ियो हो कर जाना है वह भी मिटटी काट कर बनाई सीढ़ियों देख कर सुन कर ही जाने से मना कर दिया। पर मेरी श्रीमती थोड़ा एडवेंचर पसंद करती हैं वह चल पड़ी अकेले। मैं उनको अकेले कैसे छोड़ सकता था। बारिश कभी हो सकती हैं फिर सीढिया फिसलन भरी हो जाती। रेलिंग के नाम पर एक पतली रस्सी बाँध रखी थी (मानों गिरने पर उसे पकड़ कर बच सकते हैं!) वह पतली रस्सी भी 150-200 सीढिया उतरते-उतरते ख़त्म हो गयी। खैर करीब 500 सीढिया उतरने के बाद भी जब तमिलनाडु का कोई गाँव तक न दिखा तो हम लौट आये। बारिश भी तब तक शुरू हो गयी थी।



एक झरना और एक आयुर्वेदिक गार्डन

तमिलनाडु तक जाने वाली सीढियाँ और ईको पॉइंट

मुन्नार से हम तीसरे दिन कोच्चि (कोचीन) के लिए चल पड़े। कोचीन यानि कोच्चि की कथा अगले ब्लॉग में

Wednesday, March 29, 2023

अजंता की गुफाएं, पत्थर पर उकेरा एक कैनवास (#यात्रा)

अजंता: एक विश्व धरोहर स्थल

भारत के गुफा समूह


भारत में गुफाओं के कई समूह हैं, जो ज्यादातर बौद्ध मठों और चैत्यों के रूप में उपयोग किए जाते थे। मुझे ऐसे कम से कम 5 गुफा समूह जैसे अजंता, एलोरा, कन्हेरी (महाराष्ट्र में सभी 3), खंडगिरी और उदयगिरि (उड़ीसा में) की यात्रा  करने का अवसर मिला है।अक्सर बौद्ध गुफाएं चैत्य (ध्यान / अर्चना स्थल) या विहार (निवास) में बटीं रहती है। इस आलेख में हर गुफा का प्रकार देने की कोशिश की गई है।



अजंता के लिए मेरा जुनून


मैं पहली बार 1969 में एक छात्र के रूप में अजंता गया था तब हम जलगांव में रुके थे। मेरे पास फ्लैश के बिना एक एग्फा क्लिक 3 कैमरा था और मैंने शायद केवल एक तस्वीर ली - अजंता का एक ओवरऑल व्यू।मुझे लगता है कि हम तब गुफा संख्या 16 से आगे नहीं बढ़े थे। हालांकि, मैं 1997 में फिर से गया जब हम दोनों अपनी बेटी के साथ भुसावल के रास्ते उसे इंदौर छोड़ने गए थे। तब हमें भुसावल में रात में रुकने की जरूरत पड़ी थी। मैंने ग्रुप को अजंता की यात्रा का सुझाव दिया, जिसे मेरी पत्नी और बेटी ने कृपा पूर्वक स्वीकार कर लिया। मेरे पास उस यात्रा की लगभग मात्रा 8 तस्वीरें हैं। बाद में 2002 में एक बार मैं ऑफिस ट्रिप पर औरंगाबाद गया था और फिर से गुफाओं का दौरा करने से खुद को रोक नहीं पाया। 2012 में नासिक और शिरडी परिवार के साथ यात्रा पर गया तब, हमने औरंगाबाद, दौलताबाद, एलोरा और अजंता की यात्रा की भी योजना बनाई। मैं अपनी पत्नी के साथ हाल ही में इस यात्रा की  तस्वीरों को फिर से देख रहा था और फिर महसूस किया कि गाइड ने पेंटिंग और मूर्तियों के बारे में जो कहानियां सुनाई थीं, वे हम दोनों के सामूहिक स्मृति से लगभग गायब हो गई थीं। अब मैं उनमें से कुछ को याद करने की कोशिश कर रहा हूं।



मेरा कॉलेज ट्रिप 1969

1997 में की गई हमारी यात्रा1997 की यात्रा में देखी गई गुफाओं में से एक

कैसे पहुंचे ?

सड़क मार्ग से। औरंगाबाद अजंता की गुफाओं से केवल 100 किमी और एलोरा की गुफाओं से 30 किमी दूर है। अजंता गुफाओं तक पहुंचने के लिए आप एक स्थानीय टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या राज्य द्वारा संचालित बसों से यात्रा कर सकते हैं। ...

अजंता में गुफा देखने के लिए डोली सेवा

रेल /वायु मार्ग द्वारा :- औरंगाबाद रेल, हवाई मार्ग द्वारा मुंबई और पुणे से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। जलगांव स्टेशन निकटतम रेलवे स्टेशन है। अजंता में विकलांग या बुजुर्गों के लिए डोली सेवा उपलब्ध है।


अजंता की गुफाओं की सरंचना
गुफा की खोज :

अजंता चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाएं लगभग 30 पूजा हॉल या चैत्य मठों या विहारों का समूह हैं, जो घोड़े के नाल (Horse shoe) के आकार की खाई के किनारे स्थापित हैं। गुफाओं का निर्माण दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से 480 ईस्वी के बीच किया गया था। 1983 से यह एक विश्व धरोहर स्थल है। गुफाओं की खोज 1819 में ब्रिटिश बॉम्बे प्रेसीडेंसी अधिकारी जॉन स्मिथ द्वारा संयोग से की गई थी, जिन्होंने शिकार अभियान के दौरान गुफा नंबर 10 का प्रवेश द्वार देखा था। हालांकि, उन्होंने एक कॉलम पर अपना नाम और तारीख लिखते समय कुछ भित्ति चित्रों को क्षतिग्रस्त कर दिया। चित्रों को संरक्षित करने के कई प्रयास किए गए। चित्रों की पहली प्रति 1844 में रॉबर्ट गिल द्वारा बनाई गई थी, जो 1866 में लंदन में आग में नष्ट हो गई थी। बाद में जॉन ग्रिफिथ्स, जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स, मुंबई में तत्कालीन प्रिंसिपल, और उनके कुछ छात्रों ने गुफाओं में 2 दशक बिताए और 300 चित्र और बनाये । उन्हें लंदन भेजा गया और इसमें से लगभग 100 फिर से नष्ट हो गए । 166 चित्र अभी भी लंदन में हैं और आखिरी बार 1955 में प्रदर्शित किए गए थे। हालांकि इनमें से 21 पेंटिंग अभी भी जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स में उपलब्ध हैं। Art work का एक फोटोग्राफिक सर्वेक्षण भी 1920 में क्षेत्र के तत्कालीन शासक निजाम द्वारा प्रायोजित किया गया था।

गुफाओं का इतिहास और निर्माण का समय :

गुफाओं को अब नम्बर दिए गए है, हालांकि ये नम्बर किसी भी कालानुक्रम के हिसाब से नहीं डाले गए। गुफाओं को 2 चरणों में बनाया गया था। जबकि सातवाहन या मौर्य काल (इतिहासकार इस पर भिन्न  मत रखते हैं) यानी 200 ईसा पूर्व से 100 ईसा पूर्व के बीच पहले चरण में सात गुफाओं का निर्माण किया गया था। ये गुफाएं बुद्ध की किसी भी मूर्ति के बिना है और हिनायन गुफाएं हैं, जो शायद सामुदायिक प्रयासों से बनाई गई हैं। गुफा संख्या 10 शायद यहां बनी सबसे पुरानी गुफा थी, इन गुफाओं में हिनायन दर्शन के आधार पर कम सजावट है। भित्ति चित्र ज्यादातर जातकों पर आधारित होते हैं। गुफा 8 के बारे में इतिहासकारों में मतभेद हैं, और यह माना जाता है कि संभवतः यह दूसरी अवधि की सबसे पुरानी महायान गुफा थी, जिसे बाद में कुछ सोच कर एक चैत्य का रूप दिया गया था, बुद्ध की मूर्ति तब मोनोलिथ पत्थर से नहीं बनाई गई थी, इसलिए ढीली पड़ गई और टूट कर अब गायब हो गयी है।


Cave-9

Cave 10

बाकी गुफाएं महायन बौद्ध धर्म पर आधारित हैं और आमतौर पर इसमें बुद्ध की मूर्तियां और पूजा के लिए एक अलग क्षेत्र या बुद्ध की प्रतिमा के साथ एक गर्भगृह होता है। ये गुफाएं पहले की गुफाओं के दोनों तरफ बनाई गई थीं और इनमें छतों की दीवारें और स्तंभ अच्छी तरह से सजाए गए हैं। दूसरी अवधि की ये गुफाएं 1–7, 11, 14-29 हैं, जो संभवतः पहले की गुफाओं के विस्तार हैं। 450 ईस्वी और 480 ईस्वी के बीच बनी , इन गुफाओं के लिए धन किसी और ने दिए थे । ऐसा माना जाता है कि वाकाका हिंदू राजा हरिसेन या उनके मंत्रियों ने अधिकांश गुफाओं को बनवाया। कुछ गुफाएं जैसे गुफा संख्या 4 को एक अमीर भक्त द्वारा बनवाया गया था। भारतीय स्वर्ण युग यानी गुप्तवंश काल के प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन 450-480 ईस्वी तक आंतरिक मतभेदों और सफेद हूणों के खिलाफ किए गए प्रयासों के कारण, उनका प्रभाव कम हो रहा था ।हून तोर्माना का बेटा मिहिरगुला ही वास्तव में मलावा क्षेत्र का शासक था।

गुफा नम्बर 1


भित्ति चित्रों से प्रेरित कपड़े के डिजाइन





गुफा नंबर -1 बन कर पूरी होने वाली अंतिम गुफा हो सकती है। इसमें अच्छी तरह से संरक्षित चित्र हैं। जिसमें प्रसिद्ध बोधिसत्व पद्म पाणि भी शामिल हैं। इन चित्रों के माध्यम से कई कहानियों को दर्शाया गया है। इस गुफा के चित्र आज भी कपड़े के डिजाइन को प्रेरित करते है ।


Cave 26

Cave-7

Cave 19

Cave-19


Cave-19- Entrance


Cave-26

Sleeping Buddha- Cave 26



Typical Vihar Layout (Later caves)

गुफा-2 गुफा-1 के समान है। इसकी दीवार चित्र संरक्षण की बेहतर स्थिति में हैं।
गुफा -3 को छोड़ दिया गया।
गुफा -4- मथुरा नाम के एक अमीर भक्त द्वारा प्रायोजित
गुफा -5- परित्यक्त
गुफा-6 डबल स्टोरी विहार जिसमें गर्भगृह और दोनों स्तरों में हॉल है।
गुफा -7 में दो बरामदा के साथ एक भव्य अग्रभाग (Facade) है
गुफा -8 एक अस्थिर खनिज परत की खोज के कारण एक और अधूरा विहार छोड़ दिया गया। आधुनिक समय में लगभग नदी के स्तर पर इस गुफा का उपयोग स्टोर और जनरेटर रूम के रूप में किया जाता है।
गुफा-9 हिनियन काल चैत्य।
गुफा -10 हिनियन काल चैत्य.
गुफा -11- 5 वीं शताब्दी विहार
गुफा -12 हिनियन काल विहार 200 ईसा पूर्व से 100 सीई
गुफा -13 हिनियन काल विहार 200 ईसा पूर्व से 100 सीई
गुफा -14- एक और अधूरा विहार है
गुफा -15- एक अधिक पूर्ण विहार है, इसमें चित्र थे, 15 ए सबसे छोटी हिनियन काल की गुफा है
गुफा -16- हरिसेना के मंत्री वराहदेव द्वारा प्रायोजित (धन इत्यादि से) विहार। इसमें बुद्ध का जीवन रेखाचित्र है।
गुफा -17 इसमें सभी गुफाओं के कुछ सबसे अच्छी तरह से संरक्षित और प्रसिद्ध चित्र हैं।
गुफा-18 छोटी गुफा, इसका उद्देश्य ज्ञात नहीं है।
गुफा -19 पांचवीं शताब्दी ईस्वी का एक महायन चैत्य गृह है, जिसमें बुद्ध की खड़ी मुर्ति हैं।
गुफा-20 पांचवीं शताब्दी का विहार।
गुफा -21-से 25: सभी पांचवीं शताब्दी के विहार हैं







गुफा -26 पांचवीं शताब्दी चैत्य गुफा 19 से बड़ी है, जिसमें पूजा हॉल में बैठे बुद्ध की मुर्तिकार के साथ विहार डिजाइन है। इस गुफा में शयन मुद्रा बुद्ध की मूर्ति भी है।
गुफा -27- इसके दो स्तर क्षतिग्रस्त हैं, ऊपरी स्तर आंशिक रूप से ढह गया है
गुफा-28 अधूरा विहार
गुफा -29 अधूरा चैत्य - उच्च स्तर पर 20-21 गुफाओं के बीच स्थित है।
गुफा-30- 1956 में एक लैंड स्लाइड ने फुटपाथ को गुफा-16 तक बंद कर दिया। मलबे की निकासी के दौरान गुफा 15 16 के बीच निचले स्तर पर एक और हिनायन काल विहार गुफा की खोज की गई थी। यह अजंता की सबसे पुरानी गुफा हो सकती है

आईये अब आधुनिक काल में लौटें चले !

Saturday, March 25, 2023

चंदेल वंश और जमुई

जमुई का इतिहास गिद्धौर राज वंश के  बिना अधूरा हैं। इनके पूर्वज मूल रूप से महोबा के शक्तिशाली चंद्रवंशी चंदेल राजपूत वंश के थे। खजुराहो इनकी  राजधानी थी और वे मध्य प्रदेश में प्रसिद्ध खजुराहो मंदिरों के निर्माता थे। बाद में मप्र के महोबा क्षेत्र और अंततः कालिंजर चंदेल शासकों की राजधानी बन गया


कलिंजर का किला विकीपीडिया से साभार


कालिंजर युद्ध:—
इस किले की चंदेल सेनाओं ने कन्नौज नरेश जयपाल की सेनाओं के साथ सन् 978 ई. में गजनी के सुल्तान पर आक्रमण किया था और उसे परास्त किया था। जिसका बदला लेने के लिए महमूद गजनवी की सेना ने सन् 1023 ई. में कालिंजर पर आक्रमण किया था। उस समय यहां का नरेश नन्द था। इसके पश्चात सन् 1182 ई. में दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान ने चन्देल नरेश परमार्दि देव को पराजित किया था। इसके पश्चात सन् 1202 या 1203 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने परमार्दि देव को हराकर इस किले को अपने अधीन कर लिया था।
अल्हा और उदल राजा परमर्दि देव के दो बहादुर सेना प्रमुख थे जिन्होंने कालिंजर की रक्षा के लिए बहादुरी से लड़ाई लड़ी लेकिन हार गए। मुझे याद हैं की जमुई क्षेत्र में आल्हा (जो आल्हा उदल की बहादुरी की गाथा हैं) गाने वाले अक्सर घर आते थे. शायद इसका कनेक्शन भी चंदेल वंश से होगा. चंदेल राजपूत शासकों ने अलग-अलग दिशाओं में प्रवास किया, एक शाखा हिमाचल प्रदेश में बस गई और बिलासपुर राज्य की स्थापना की और बाद में मिर्जापुर जिले के बिजयगढ़, अघोरी-बरार में स्थापित किया। रीवा राज्य के अंतर्गत उत्तर प्रदेश और बाड़ी, मप्र।
1266 ई। में, बाड़ी के चंदेल राजा के छोटे भाई राजा बीर विक्रम सिंह ने बिहार के पाटसंडा (परसण्डा) क्षेत्र में प्रवास किया और दोसाद जनजाति के नागोरिया नामक आदिवासी प्रमुख की हत्या कर दी और राज्य की स्थापना की और कहा जाता है कि वह इस हिस्से के पहले राजपूत आक्रमणकारी थे । गिद्धौर बिहार के सबसे पुराने शाही परिवारों में से एक है और इसने छह शताब्दियों तक परसंडा (गिद्धौर) पर शासन किया है। गिद्धौर के द्वितीय राजा राजा सुखदेव सिंह ने गिद्धौर के पास काकेश्वर में भगवान शिव और एक देवी मंदिर को समर्पित 108 मंदिरों का निर्माण किया। 1596 में, राजा पूरन सिंह ने झारखंड के देवघर में बैद्यनाथ धाम के प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग शिव मंदिर का निर्माण किया। राजा पूरन आमेर के राजा मान सिंह के बहुत करीबी दोस्त थे और  पूरन मल की बेटी की शादी आमेर के राजा चंद्रभान सिंह के साथ हुई, जो आमेर के राजा मान सिंह प्रथम का छोटा भाई था। राजा पूरन मल की ख्याति दिल्ली की दरबार तक पहुंच गई और माना जाता है कि मुग़ल सम्राट, राजा पूरन मल के स्वामित्व वाले एक पारसमणि पर कब्जा करना चाहते थे और उन्होंने युवराज हरि सिंह को दिल्ली बुला लिया और उन्हें बंदी बना लिया। जिस दौरान राजा पुरण मल की मृत्यु हुई और उनके छोटे बेटे राजकुमार बिसंभर सिंह को पाटसंडा के राजा का ताज पहनाया गया। युवराज हरि सिंह ने अपने तीरंदाजी कौशल से मुगल सम्राट को प्रभावित किया और अंततः एक परगना अनुदान के सजा पर रिहा किया गया और बाद में उनकी वापसी पर, समझौते के रूप में खैरा के जागीर को मंजूरी दे दी गई, और युवराज हरि सिंह खैरा के पहले राजा बन गए। 1651 में गिद्धौर के 14 वें राजा राजा दलार सिंह ने सम्राट शाहजहाँ से एक सनद प्राप्त की। 1919 में खैरा के वंशज राजा राम नारायण सिंह ने राजा हरि सिंह के खैरा की जमींदारी को मुंगेर के राय बहादुर बैजनाथ गोयनका के नेतृत्व वाले एक सिंडिकेट को बेच दिया। शहर से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रेलवे स्टेशन के नाम से परसंडा का नाम बदलकर गिद्धौर रख दिया गया। झाझा जमींदारी के भीतर एक और महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन था से स्कूल, कॉलेज, मंदिरों की स्थापना. युवराज कुमार कलिका ने आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा भी लिया. शासकों की कुछ निर्माणों की सूचि दे रहा हूँ , गवर्नमेंट बॉयज़ मिडिल स्कूल, गवर्नमेंट गर्ल्स मिडिल स्कूल, रावणेश्वर संस्कृत महाविद्या, गिद्धौर में महाराज चंद्रचूड़ विद्या मंदिर, जमुई हाई स्कूल में रावनेश्वर हॉल का निर्माण कुमार कालिका महाविद्यालय और 1947 में एक पब्लिक लाइब्रेरी की स्थापना।

Wednesday, March 22, 2023

BCE, Patna में नौकरी और 5 कसमें

यह मेरे एक पुराने ब्लॉग से लिया एक भाग हैं। मेरे BCE, Patna के ग्रुप के सदस्यों के लिए मैंने relevant पार्ट अलग किया है। जैसा मैंने बताया था अपने 1965-1970 के कोर्स पूरा होने के बाद मैं HAL के इंटरव्यू के लिए दिल्ली गया था। अब उसके आगे

 मेरी पहली नौकरी

दिल्ली से लौटने के बाद BIT, सिन्द्री  के M.Tech कोर्स  में एडमिशन ले लिया उन दिनों पी जी में पढ़ने के लिए महिने का रू 250 स्टाईपेन्ड मिलता था जो कि नौकरी में मिलने वाले रू 400 की तनख्वाह से थोड़ा ही कम था। सिन्द्री, धनबाद के उस ट्रिप में झरिया के बिहार टॉकीज में  सिनेमा  देखा और बोकारो तक जा कर नियोजन दफ्तर में निबंधन भी कर आया। वापस आने के बाद पटना गया और HSL (हिन्दुस्तान स्टील) का written टेस्ट दे आया। बहुत आसान सा पेपर था। ईन्टरव्यु कॉल का ईतंजार कर रहा था कि पटना युनिवर्सिटी से leave vacancy के लिए लेक्चरर का एपॉईन्टमेन्ट लेटर आ गया। तीन वैकेंसी थी विद्युत् विभाग में। दो यांत्रिकी विभाग में।पटना युनिवेर्सिटी के प्रथम और द्वितीय टॉपर को लिया जाना तय था और विद्युत् विभाग में द्वितीय टॉपर होने के कारण मेरा नंबर आ गया। सत्य प्रकाश नारायण टॉपर था। हम दोनो के अलावा एक बी एच यु के टॉपर  'वर्मा' ने भी हमलोगों के साथ ज्वाईन किया। अब आगे जो लिखने जा रहा हूँ वो सारी कहानियां मैंने अपने करीबियों को कई बार बता चुका हूँ। फिर भी लिखता हूँ।
पास करने के बाद मैं कदम कुआँ अपनी बड़ी मौसी के यहाँ रहता था। स्कूल की पढाई भी मैंने यही रह कर पूरी की थी। कॉलेज कंपाउंड में स्टाफ के लिए कुछ कमरे थे. पहले सोचा था एक कमरा मिल ही जायेगा। बाद में पता चला छुट्टी पर गए टीचर्स ने कमरा खाली ही नहीं किया है। कदम कुआँ से कॉलेज करीब ४-६ किलोमीटर दूर था। पहले दिन मैने बस लेने का सोची। हम लोग कॉलेज में नए लेक्चरर लगे हैं छात्र लोग जान गए थे। वो हमें पहचानते भी थे। कॉलेज में काफी डे स्कॉलर्स  थे, और कई लड़के बस से ही जाते थे। बस में चढ़ते ही देखा कुछ लड़को ने टी स्कायर ले रखा था। ये सब मेरे कॉलेज के ही छात्र थे। वे सब काफी असहज दिखे। अचानक से मै एक चिन्ता रहित छात्र से आदरणीय शिक्षक हो गया जिसे गंभीर रहना चाहिए। बिना इधर उधर देखे मैने छोटी सी बस यात्रा तय की। बस स्टाप पर कुछ खरीदने का अभिनय करते हुए तब तक रुका रहा जब तक सभी छात्र चले नहीं गए। फिर धीरे धीरे चलते हुए कॉलेज गया। बस निश्चय कर लिया कि कल से रिक्शा से ही कॉलेज जाउंगा चाहे रोज के 4-5 रु देने ही पड़ जाय। नए लेक्चरर होने के नाते हमें 3rd year का लैब क्लास का काम मिला। महिने भर चाय के लिए टी क्लब में पैसे देने पड़े।सत्य प्रकाश चाय पीता नहीं था। मै कभी कभी पी लेता था और पैसा मै ही वसूल कर पाता था लैब में घटी दो घटनाए याद है। हमारा एक सहपाठी था कन्हैया। मोटा हँसमुख लड़का था। दो बार फेल होने के कारण वह अभी भी 3rd year में ही था। एक दिन उसे क्लास आने में देर हो गई। 75% उपस्थिति आवश्यक होती थी। लड़को के लिए उपस्थिति बनवाने के लिए प्रोक्सी भी करते थे पर लैब क्लास में यह सम्भव नहीं था। कन्हैया मेरे पास हिचकिचाते हुए उपस्थिति बनवाने आया। मै कुछ मज़ाक करने वाला था मेरा मुंह खुले उससे पहले उसके मुंह से निकला "सर"! कल तक नाम से पुकारने वाले से यह संबोधन अटपटा सा लगा। वह कुछ और कहता उसके पहले ही मैने अटैन्डेन्स दे दी। मेरा काम था घूम घूम कर लैब में छात्रों द्वारा किए जाने वाले प्रयोग की प्रगति को देखना। वर्मा जुनियर मोस्ट था, सारे कठिन प्रयोगो की जिम्मेवारी उसे सौंप ब्रिज मेगर का प्रयोग मैनें अपनी लिए रखा था। कई ग्रुप अपना मेगर का प्रयोग कर चुके थे और कॉपी में मुझसे हस्ताक्षर भी करवा लिए । सबको मैने ब्रिज बैलेन्स के लिए सुई को मेगर के बीच में रखने को कहा था। एक दिन दो लड़को के एक ग्रुप कई बार कहने पर भी मेगर के शुन्य पर ही बैलेन्स करते दिखे।मैने देखा तो डॉटने के स्वर में पूछा " ये क्या कर रहे हो?" लड़के ने डरते डरते बताया सर जीरो के पास ही Increase-0-decrease लिखा है। बैलेन्स यही पर करना है सर। मै तुरंत समझ गया मैने ध्यान नहीं दिया था और मैं गलत था । मैने उन्हें शाबाशी दी। फिर मैने उन दोनों कों कहा पहले जिसने भी इस प्रयोग को किया है उसको सुधार लेने बोल देना।

मै प्रतिदिन कुछ सीख रहा था। शिक्षण कार्य आसान नहीं है यह अहसास हो चला था। दोपहर का खाना मेस में खा नहीं सकता था। टिफिन लाते थे। एक दिन टिफिन नहीं ला पाए। इसलिए मोड़ पर हरि जी के ढ़ाबानुमा नास्ते की दुकान में चले गए। ये वही दुकान थी जहाँ हम हॉस्टल से यदाकदा नास्ता करने आया करता था। छोटी सी दुकान थी। दोनो तरफ बेंच और टेबल लगे थे। हरि जी ने हमें पहचान लिया (कालेज छोड़े अभी कुछ ही दिन हुए थे) और बैठने को कहाँ और क्या खाएगें पूछने लगे। वहाँ एक दुसरे से रगड़ाते ही बेंच में बैठने के लिए घुसना पड़ता था। दुकान छात्रो से भरा था। सब खड़े हो गए और बैठने का निमन्त्रण देने लगे। कुछ धीरे से खिसक भी लिए। मैं दुकानदार के तरफ देखने लगा। मानों वह भी कह रहा हो "आप यहाँ आए किस लिए।" मैने ने एक चाय पिया और जल्दी निकल लिए। फिर पिन्टू होटल तक गए और पर्स ढ़ीले कर खाना खाया। और पिन्टू का रसगुल्ला भी छोड़ते नहीं बना। मैंने कसम खाई हरि जी के दुकान में अब कभी नहीं जाऊंगा।
रविवार आया तो एक फिल्म देखने के लिए रिजेन्ट सिनेमा चला गया ठीक ठीक याद नहीं पर फिल्म का नाम शायद 'तलाश' थी। मै आदतन रु 1.75 जो स्टुडेन्ड क्लास प्रसिद्ध था के लाईन में टिकट लेने लग गया। थोड़े देर में दो लड़के आए और उनके लिए भी दो टिकट लेने का अनुरोध करने लगे। मैने उनको लाईन में लग कर टिकट लेने दिया। लड़कों ने अक्ल लगाई और मेरा टिकट दुसरे ROW का लिया। मैंने कसम खाई कि फिल्म अब बालकनी या ड्रेस सर्कल में ही देखूंगा।
रीजेंट सिनेमा अब
देखते देखते दुर्गा पुजा की छुट्टी शुरू होने को हुआ। एकदिन  मै अपनी तनख्वाह के लिए  कालेज आफिस चला गया। उन्होनें बताया हमें यूनिवर्सिटी के नामित बैंक के चिन्हित ब्रांच में एकाऊन्ट खोलना होगा और एक पे बिल भी बनाना होगा तभी मेरे एकाउन्ट में पैसा जाएगा । मै फॉर्म ले ही रहा था कि किसीने मेरा पैैन्ट का पायचा पकड़ लिया। मै चौंक पड़ा। वो मेरा सहपाठी श्याम किशोर था। अरे अमिताभ अब ये सब नहीं चलेगा, वह मेरा दिल्ली से लाए बेल बाटम पैन्ट को पकड़ कर बोल रहा था। मै चारो तरफ देखने लगी कि कोई छात्र देख तो नहीं रहा हैं। मैने निश्चय किया कि अब बेल बाटम पहन कर कॉलेज नहीं आऊंगा। तब बेल बाटम का फैशन शुरू ही हुआ था। राज कपूर ने सिर्फ तीन ही कसम खाई थी पर यह थी मेरी पाचंवी कसम।
खैर दुर्गा पुजा के लम्बी छुट्टी शुरू हो गई। मै घर चला गया। तभी बोकारो से कॉल आ गया। एक आसान से साक्षात्कार के बाद तुरंत नौकरी ज्याईन करने का पत्र मिल गया। परसनल विभाग ने बताया यदि हम अपने लेक्चरर की नौकरी को सेवा पंजिका (Service Record) में डालना चाहते है तो अनापत्ति प्रमाण पत्र ले कर आईए। मेरी मत तब मारी गई थी और मैं पटना चला गया। इतनी लम्बी चौड़ी प्रक्रिया बताया गया कि मेरे पास बैरंग लौटने के आलावा कोई चारा नहीं बचा। लौटने के पहले मैने ऑफिस के स्टाफ को एक चिठ्ठी लिख कर दे दी कि मेरा जो भी तनख्वाह बाकी होगी वह स्टाफ फंड के लिए दान करता हूँ । बोकारो जल्द वापस आ कर मैने ज्वाईन कर लिया। एक हफ्ते जूनियर होने से कोई और दिक्कत नहीं हुई पर तीन साल बाद जब क्वार्टर मिला तो   सेक्टर 3 में नहीं मिला और मिलने में देर हुई सो अलग।  जैैसा मैनें प्रारम्भ में ही लिख चुका हूँ,  बोकारो में मेरा प्रथम कार्यस्थल था सिंटर प्लांट। कई रोचक घटनाए वहाँ भी घटी। वो फिर कभी।

Monday, March 20, 2023

जीवन से जगं

किसी अजनबी से मिलने पर उससे दोस्ती करने और उसकी हिचक दूर करना मेरी आदत में शामिल है‌। अक्सर‌ उनके व्यवहार में तुरंत सार्थक परिवर्तन देखने को मिलता है। मैंने टैक्सी ड्राइवर के रैश चलाने की प्रवृत्ति में कमी देखी है। ड्राइवर का पेशा बहुत stressful होता हैं और किसी यात्री द्वारा मिली अपनापन की दवा उसे careful ड्राइविंग के लिए प्रेरित करती हैं। मैं अक्सर उनके परिवार या जिंदगी में की उनके struggle या तरक्की से बात शुरू करता हूं और वो अपनी कहानी या success के बारे में खुद ही बताना शुरू कर देता है और stress free होने लगता है। उसके driving और व्यवहार में आई गुणात्मक परिवर्तन आप महसूस करने लगते हैं।

भारत के हर प्रांत के लोगों के अंग्रेजी या हिंदी बोलने के अंदाज से पहचान हो जाती है वह किस प्रांत से है। बिहारी लोगो के बोली या बोलने के तरीके से मैं जान लेता हूं कि वह बिहार के किस क्षेत्र से है। बिहार में मुख्य चार बोलियां हैं। मगही (गया,पटना इत्यादि जगहों में बोली जाती है ), अंगिका (भागलपर और आस-पास), भोजपुरी (आरा, छपरा वैगेरह) और मैथिली (मिथिला क्षेत्र) । इन चारो के मिक्सचर से अन्यान्य जगहों की बोलियां बनती है। अक्सर मेहनत वाले पेशे में लगे बिहारी लोगो से मुलाकात होना आम बात है। और मैं अपने इस अनुभव का उपयोग उनसे दोस्ती गांठने में कर लेता हूं। दिल्ली क्षेत्र में हाल ही में बिल्डिंग के watchman ने किसी से फ़ोन पर कहा " कइसन छहो " और मैंने उससे पूछा बेगूसराय के छहो ? पता चला मेरी तरह उसका भी ननिहाल बेगूसराय ही है। बस एक दोस्ती की शुरुआत हो गयी। और अक्सर मेरा गेस सही होता है।

ऐसा ही कुछ कल हुआ । हम दोनों देवघर से कल रांची ट्रेन से लौटे और ट्रेन ४ बजे ही रांची पहुंच गयी। अब हम इस उम्र में चार चार सामान ले कर चलने से घबरा रहे थे और कोई बिल्लेवाला रेलवे कुली कही दिखा ही नहीं रहा था। तभी एक टीन एजर सा दिखने वाले लड़के ने हमारा सामान ले कर चलने का ऑफर किया। मै हिचकिचाया पर लड़का पहली नज़र ही एक अच्छा लड़का लगा और यह हिदायत करके कि ज्यादा तेज मत चलना हमने अपना सामान उसके हवाले कर दिया । चक्के वाले सूटकेस भी उसने सर पे रख लिया। क्योंकि हम प्लेटफार्म के दूसरे तरफ वाले लिफ्ट से जाना चाहते थे उसने १५०/- मांगे और मै ख़ुशी से तैयार हो गया। रास्ते में मैंने एक सूटकेस उससे ले लिया और उसे चक्के पर घसीटने लगा। मेरी उससे जो बातें हुई प्रस्तुत है। क्योंकि देखने से ही वह एक स्टूडेंट लग रहा था ।


मैंने पूछा : पढ़ते हो ?
थोड़ा हिचका फिर बताया टेंथ में पढता हूँ।
उम्र कितनी है तुम्हारी ?
बीस साल।
देरी क्यों हुई टेंथ तक जाने में ?
घर के हालत ठीक नहीं था इसलिए स्कूल नहीं जा पाया तीन साल।
घर में कौन कौन है ?
माँ, पापा, बड़ा भाई, बड़ी बहन।
बहन की शादी हो गई ? नहीं।
और बड़ा भाई क्या करता है ?
ऑटो चलाता है।
और पापा ?
कुछ नहीं।
हम लोग लिफ्ट के पास पहुंच गए थे इसलिए थोड़ी देर बाद मैंने उससे बातों का सिलसिला जारी रखते हुआ पूंछा
किस स्कूल में पढ़ते हो ? उसने एक गवर्नमेंट स्कूल का नाम बताया।
तो एकदम सुबह यहाँ आ जाते हो तब जब रेलवे कुली नहीं आते ?
हाँ, एक दो घंटे सामान उठाता हूँ और फिर स्कूल जाने की तैयारी।
कितना कमा लेते हो ?
जितना किस्मत में होता है।
किस जगह से हो ? उसकी बोली में शहरीपन था और बिहार के किस क्षेत्र से हैं मै नहीं पकड़ पाया।
दरभंगा, पर यही पले बढ़े।
नाम क्या है ?
मै नाम नहीं दे रहा पता नहीं मेरा ये ब्लॉग कौन पढ़े और उसका यह गैर कानूनी रोजगार ख़त्म हो जाये। लेकिन वह एक वैसी जाति का लड़का था जिसके जाति के लड़के कुली का काम नहीं करते है।
बिहारियों की 'किसी तरह आगे बढ़ने', 'कोई भी काम बिना हिचक कर लेना', 'बचत करने' और लगन से काम करने की अच्छी आदतों ने उन्हें पूरे देश का मेहनत कश कौम बना दिया है। IIT , आईएएस में तो बिहारियों की अच्छी सख्या रहती ही है। यहाँ तक कि जो राज्य उन्हें दुत्कारते है , उनके बिना रह भी नहीं सकते। कोविड काल में तो किसी किसी जगह से उन्हें वापस लाने के लिए हवाई टिकट भेजने की भी समाचार आया था। अभी हाल में भी एक दक्षिणी राज्य ने अपने मंत्रियों को कुछ गलतफहमिया दूर करने बिहार भेजा। जब मैं एक हरियाणवी कंपनी में कार्यरत था, छठ में काम पूरी तरह बंद हो जाता था और हम उनके आने का इंतजार करते थे।

जीवन हो पतंग तो उड़ लेता हूं
जीवन गर जंग तो लड़‌ लेता हूं।
न कोई कौम बुरी होती है।
न कोई काम बुरा होता है
ईमान ओ धर्म से जो जी ले 'अमित'
मेरी मानो तो वो इंसान बड़ा होता है।