पढ़िए मेरा पिछला ब्लॉग राजगीर नवंबर २०२३
1) नालंदा महाविहार में हमलोग 2) घोरा कटोरा लेक , राजगीर (फोटो विकिपीडिया से साभार )
हम राजगीर में दो जगहें - घोरा कटोरा और जरासंध का अखाडा इसलिए नहीं गए तांकि हमारे पास नालंदा और हो सके तो पावापुरी जाने के लिए समय बचा रहे। खैर राजगीर से हम नालंदा की और चल पड़े। रास्ते में सिलाव आया जहां के खाजा मिठाई को GI TAG मिल चुका है। वहां खाजा खरीदने के लिए रुक गए । जिस दूकान पर रुके वह था काली साह की दुकान , और गजब तो अगल बगल में कई दुकाने इसी नाम से थी। हमने एक दूकान के बोर्ड में एक तस्वीर किसी बुजुर्ग की देखी और उसे ही असली काली साह समझ आधे किलो खाजा खरीद लिया। खाजा इतना हल्का होता है कि आधे किलो में ही एक छोटा कार्टन भर गया। जब मैंने बगल वाले दुकानदार जिसके बोर्ड पर भी काली साह लिखा था से पूछा असली काली साह कि दूकान कौन है तो उसका कहना था "हम भी असली है और यह भी असली है - सभी असली है"। हमें एकदम बासुकीनाथ के रास्ते घोरमारा के पेड़ा दुकान की याद आ गई। वहां सभी पेड़ा दुकान "सुखारी मंडल पेड़ा दुकान " के नाम से मिलेंगे। वहीँ नवादा (बिहार) के नजदीक पकरीबरावां का बारा (खस्ता बालूशाही ) दुकानों में दुलीचंद का नाम जरूर दिख जायेगा। कोलकाता में भी गंगूराम , गंगूराम ब्रदर्स , गंगूराम संस , गंगूराम एंड ग्रांडसंस इत्यादि नामों से मिठाई दूकान मिल जाएगी। यह सब परिवार की परंपरा को बनाये बचाये रखने कि चेष्टा है पर लोग असली स्वाद ढूंढ ही लेते है। बिहार के प्रसिद्द मिठाइयों में मनेर के लड्डू , सिलाव का खाजा और गया का तिलकुट , अनरसा और पकरीबरावां के बारा का स्थान प्रमुख है। ।
1. रांची का एक खाजा दूकान, 2. नालंदा महाविहार की इन्ही गलियों में कभी देवानंद और हेमा मालिनी ने गाना गया था।
सिलाव से हम थोड़ी देर में ही नालंदा पहुंच गए। शाम हो चली थी पर टिकट काउंटर खुला था और हम टिकट ले कर अंदर गए। एक गाइड कर लिया जिसने हमे अच्छी तरह घुमा - दिया , इतिहास भी बताया और हमलोगों के बहुत सारे फोटो भी खींच दिया। बाद में मैंने पाया की जबकि मैं फोटो में बैक ग्राउंड को महत्त्व देता हूँ इसने तो हमारी ऐसी फोटो खींच दे जैसे हम मधुचंदा पर आये हो।
गाइड ने बहुत कुछ बातें इतिहास की बताई और मैं उसको रिकॉर्ड करता गया उसके कहे बातों पर ही आगे लिख रहा हूँ। नालंदा को नालंदा महाविहार कहा जाता था। नालंदा का पाली में अर्थ होता है ज्ञान का दान। यह वो विश्वविद्यालय है जहाँ शिक्षा मुफ्त दी जाती थी। रहना भी मुफ्त था। जबकि तक्षशिला और अन्य विश्वविद्यालयों में शिक्षा मुफ्त नहीं दी जाती थी शुल्क या donation देना पड़ता था। यह तभी संभव था जब राज्य से आर्थिक सहयोग मिले और वह मिलता था गुप्त , वर्धन और पाल राजवंशो द्वारा । प्रवेश एक परीक्षा के बाद मिलता था। यहाँ पाली और संस्कृत में पढाई होती थी। यहाँ सारे विश्व से छात्र आते थे यूरोप , चीन , जापान , इंडोनेशिया , कोरिया इत्यादि से। ASI द्वारा इसको संरक्षित करने के अथक प्रयास किया गया है। पुराना जो भी निर्माण दिखता है उसमें BINDING मटेरियल में गुड़ का उपयोग हुआ था। खुदाई से निकले हुए निर्माण में से ७० प्रतिशत ओरिजिनल है और ३०% RECONSTRUCTED है जहां नए ईंटे और RCC दिखता है वह नया है। कई मंदिर और ध्यान के लिए प्लेटफार्म भी देखे । वह classic खंडहर भी देखा जो हम नालंदा के लिए देखते आये है। प्रवेश द्वार और चलने के लिए रास्ते आधुनिक काल में बनाये गए है।
1) स्तूप की तरह लगते है यह और 2) यह गढ्ढे नहीं है विहार के छात्रावास के कमरे है।
ह्वेन्सांग जो भारत हर्षवर्धन काल (७वीं शताब्दी ) में आया था। उसके डायरी के अनुसार यह विश्वविद्यालय १० KM X ५ KM के क्षेत्रफल में था। और अभी पूरा विश्वविद्यालय खुदाई में निकला भी नहीं। सिर्फ १० प्रतिशत ही हम देख पातें है। इसमें ही ११ बौद्ध विहार है। पूरे नालंदा में कभी १०८ विहार है। २० गाँव में अभी भी अवशेष मिलते है। इसी २०२३ जनवरी में बुद्ध की दो मूर्ति गांव में मिले है। छात्रों के लिए है छात्रालय भी देखे। जहां एक छात्र एक कमरा और एक विषय एक छत्रावास थे। इस विश्वविद्यालय की स्थापना कुमारगुप्त (४वीं शताब्दी) ने की थी और इसका पोषण हर्ष वर्धन और देव पाल ने किया। १२वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी बिहार पर आक्रमण किया और उसने इस विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया। कहते है इसके पुस्तकालय में इतने किताब थी कि ६ महीने तक वे जलते रहे। चीनी यात्री और छात्र ह्वेन्सांग नालंदा से संस्कृत के करीब ६०० और उसके बाद आये ऑय तिंग ४०० संस्कृत किताबे अपने साथ चीन ले गए। ये किताबे महायान और वज्रयान बुद्धिज़्म के विकास का एक श्रोत बने।
१) काले ईंट जले हुए है और ASI द्वारा सरक्षण के डालें गए नए ईंट लाल है आरसीसी लिंटल भी ASI ने लगाए है। २) हमलोग विहार संख्या १ के आँगन में।
नालंदा में ही जॉनी मेरा नाम के एक प्रसिद्द गाने की शूटिंग हुई जिसमे देवानंद और हेमा मालिनी मुख्य कलाकार थे। हमें बहुत भूख लगी थी पर मैं रोड पकडने की ड्राइवर के ज़िद के कारण कई अच्छे रेस्टोरेंट छोड़ हम एक बेकार से ढाबे पर अंडा रोल खा कर पटना लौट आये। जितना देख लेना चाहते थे वो नहीं हुआ। कई जिज्ञासा बानी रह गयी। फिर आऊंगा के सोच के साथ हम पटना और फिर रांची लौट आये।
मेरा अगला ब्लॉग जल्द ही आएगा , आशा है अवश्य पढ़ेंगे !