Wednesday, September 15, 2021

किशोर वय का लेखन -कुछ दूर तक

मैने अपने एक ब्लॉग में अपने किशोर वय में की गई साहित्य सेवा का वर्णन किया था। कुछ महिनों पहले मुझे अपने छात्र जीवन की एक कॉपी मिली जो काफी दयनीय अवस्था में है। कभी यह मोटी कॉपी काफी दुबली हो गई है। कभी गुस्से में मैने इसके 75% पन्ने फाड़ कर फेक डाले थे। सोचता हूँ जो बचे है उनमें यदि कुछ पढ़ने लायक हो तो उसे यहाँ लिख डालू। जैसा मैने अपने अपने पुराने ब्लाग "बैठेठाले" में लिखा था मेरी कुछ रचनाएं कॉलेज मैगजीन में छपी थी। मै पहल उनसे करता हूँ। कुछ बचकाना हो तो क्षमा करें सच मे एक सतरह साल के लड़के ने लिखी है यह कहानी जिसे एक सत्तर साल का senager दुहरा भर रहा है । मैं तब दो तीन स्तरीय साहित्यिक पत्रिका पढता था और सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, मोहन राकेश कृष्णा सोबती जैसे लेखक से बहुत प्रभावित था और शायद मेरे तब के लेखन में भी उनका लहजा दिख जाय।



कुछ दूर तक-एक कहानी

आज वह बहुत थक गया था। अपनी थकान पर उसे गुस्सा भी आ रहा था हसीं भी।
लेकिन वह थका कैसे ?
उसे खुद आश्चर्य था। आज उसे दफ्तर में कोई थकाने वाला काम नहीं करना पड़ा था। अलबत्ता दफ्तर के कैंटीन में बैठा चाय और समोसे के बीच बहुत वक्त गप्पों में गुजार दिए थे। घर के नीचे, गली की शोर से उसकी थकान और बढ़ रही थी।
"शायद वह आज फिर अपनी बीबी को पीट रहा था" उसने सोचा। "बीबी" वह सचेत हो गया। वह आँखे बंद कर कुछ सोचने लगा। मोड़ पर मुड़ती कार के हेडलाईट घूमा और रौशनी खिड़की से हो कर उसके कमरे में आ गई। वह चौंका । धीरे से उठने की कोशिश की फिर लेट गया । अचानक वह उठा खिड़की बंद की । शायद उसके पैर में दर्द हो रहा था । इस बार वह लेटने के बदले कुर्सी पर बैठ गया । खिड़की बंद होने से शोर कम हो गया । कमरे में अँधेरा भी छा गया । उसने बिजली जलाई फिर बुझा कर लेट गया । उसे लगा सर में दर्द है । 'फीवर' भी हो सकता है । वह बीमार है क्षण भर के लिए यह बात उसे अच्छी लगी । शायद कल देर रात घूमता रहा इसी लिए ठण्ड लग गई होगी । कल की बात याद आने से वह अचानक हंस पड़ा । वह चौंका ।
पर इसमें उसका दोष हो क्या था ? झूठ बोलना तो इतना बड़ा अपराध नहीं जितना खून करना या चोरी करना । और यदि उसके प्रोमोशन का फेयर चांस था तो ऐसी अवस्था में थोड़ा झूठ बोल ही दिया रमेश को, तो क्या बिगड़ गया देश का ?

उसकी आँखे अब भी खुली थी । हाथ बढ़ा कर उसने लैंप जला डाला । मेज़ पर रक्खी ''नावेल'' पढ़ना चाहता था वह । तीन पेज पढ़ने पर भी वह उसका एक शब्द भी ''कैच'' न कर सका । उस नावेल का एक पात्र शायद लेखक था जो शायद अपनी कविताओं का अर्थ इन तीन पृष्ठों में अपनी प्रेमिका को समझाता रहा था । उसकी आँखे नाविल की पंक्तिया पढ़ रही थी पर उसके दिमाग में कोई और प्रक्रिया चल रही थी । ''मधुलासा" वह उसीके बारे में सोच रहा था !

पहले वह जब भी उसके बारे में सोचता उत्तेजित हो जाता, या तो अपने आप बकने लगता , या कभी बैठता कभी खड़ा हो जाता कभी लेट जाता मानों उसकी धडकनों को किसीने निचोड़ लिया हो । और इसीलिए वह बैचैन हो उठा हो । लेकिन आज वह शांत था ।

पहली बार जब मधुलासा ने उसे बुलाया था तो वह घबड़ा सा गया था । जैसे जैसे उसका घर पास आता गया, उसे लगने लगा , ज़िन्दगी अचानक बहुत तेज़ हो गयी है , ऐसा लगा मानों वह बेहोश हो जाएगा । उसे याद है उसने बिना समय गवांयें एक मुर्गे की तरह उसे दबोच लिया था । नावेल उसने टेबल पर रख दी । अचानक उठा और सामने दीवाल पर लटकी अर्धनग्न औरत की तस्वीर को उल्टा कर लटकाया और लेट गया ।

'मधुलासा' वह अब उसके नाम के बारे में सोच रहा था । एकदम निरर्थक नाम हैं । मधुराशा रहता तो कोई बात थी । "कुंती" अचानक उसे अपने बीबी का नाम याद आ गया । कुंती - कितना गावारूँ नाम हैं कल्ह ही उसकी चिट्ठी आई थी । पूछा था " मकान मिला या नहीं ? यहाँ माँ के झिक झिक से ऊब सी गयी हूँ ....!"
वह कुंती को ले आएगा एक क्षण के लिए उसने सोचा ।

कल्ह मधुलासा मिली थी । उसने उससे पूछा था "मेरे प्रोमोशन से तुम्हें ईर्ष्या तो नहीं हुई ? ... हुंह मैं तुम्हारी हर शाम ख़राब कर देता हूँ ...। कितने स्वार्थी हो जाते हैं लोग " । एक अदृश्य सा संदेह तैर रहा था उसकी बातों में । मधुलासा ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और अपने लिपस्टिक पुते होंठों को थोड़ा दबा कर और आँखों को एक साथ नीचे करते हुए कहा था "न्न नहीं तो " । उसे याद आ रहा था किसी फिल्म में ऐसी "ना" देखी थी । और वह confirmed हो गया जब उसने अपनी बात दुहराई " No no , it is never so , I love to spend time with you ." उसके मन में आया था की वह जोर से चीखे " once more " और पारसी थिएटर के मंजनू की तरह वो इस सीन को फिर से दुहराए । लेकिन ऐसा कुछ न हुआ । उसके स्कार्फ़ को ठीक करते हुए उसने धमकी दी थी " मैं कुंती को लाने जा रहा हूँ ।" "कौन कुंती ? क्या वही गवारूँ औरत जो सिर्फ पढ़ने कॉलेज आती थी ? ऐसे सुना है तुम्हारी बीबी भी हैं । ऐसा कह उसने एक ठहाका लगाया था और उसने एक "हूँ " की थी ।
"हुंह I love to spend to spend evenings with you... I love the darkness... ..हुंह हुंह" वह तन्द्रा में बकता जा रहा था ।

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