Tuesday, September 14, 2021

मेरी स्वाद यात्रा - विदेश का खाना भाग- ३

विदेश का खाना

स्वाद यात्रा के इस तीसरे और अंतिम भाग में मैं विदेशों में मिलने वाले खाने और भारतीयों को खासकर शाकाहारी या सनातनी भोजन करने वालों को होने वाली दिक्कतों और सहूलतों के बारे में लिखूंगा । एक भारतीय होने के कारण विदेशों में खाने की मुश्किलें आती ही हैं, कभी बेस्वाद खाना कभी भाषा की दिक्कत और उसके ऊपर हमारे दैनिक भत्ते भी लम्बे ट्रिप (पश्चिमी देशों के टूर ) में काफी कम हुआ करते थे । कई कहानियां हैं खाने के उपर पर सब एक ब्लॉग में लिख पाना संभव नहीं हैं फिर भी उन घटनाओं को शामिल करने की कोशिश कर रहा हूँ जो मुझे बार बार याद आ जाते है । कई घटनाएं छूट सकती हैं या छोड़ रहा हूँ खास कर जिनका जिक्र मैं पहले किसी ब्लॉग में कर चूका हूँ । शुरू करता हूँ नेपाल से जो मेरी पहली विदेश यात्रा का देश होने के साथ मुझे जीवन संगिनी देने वाला देश हैं ।

नेपाल का खाना

नेपाल यात्रा मेरे लिए पहली विदेश यात्रा थी जब मैं शादी के बाद ससुराल गया । नेपाल यात्रा पर लिखे मेरे ब्लॉग में भी मैंने यहाँ के खाने का जिक्र किया है । एक बात जो मुझे याद हैं वो हैं पहली बार खाया मांस और भात । मुझे उस बार स्किन के साथ पकाया मांस पसंद नहीं आया पर बाद में मेरे लिए ऐसा कभी नहीं पकाया गया । मेरी सभी सरहज बहुत अच्छा खाना बना लेती हैं । सबसे बड़ी स्व डॉली को नॉन वेज बनाना बहुत पसंद था और जब मैं वेजिटेरियन हो गया था तो उन्हें बहुत मुश्किल होता था कि क्या खिलाए ? नेपाल के मोमो के अलावा जिस पाँच खाने के चीज़ो का जिक्र मैं करना चाहूंगा वह हैं सेल रोटी (हल्का मीठा चावल के आटे का तला व्यंजन), गुदपाक (एक तरह का मिल्क केक ) और उसका सूखा रूप पुष्टकारी, लाखामरी, स्वारी - जलेबी और यमरी । पुष्टकारी और गुदपाक तो पहले ट्रिप में ही खाया था । सेल रोटी रांची के BMP ग्राउंड में लगे नेपाली मेला में सबसे पहले खाया, लाखामरी और स्वारी जलेबी २०१७-२०१८ में पहली बार खाया । यमरी चावल की रोटी में filling कर भाप में पकाया एक स्वादिष्ट व्यंजन है जिसे मैने अपने ममेरे साले मिंटू और सरहज सरिता  के यहाँ सिर्फ एक बार खाया है। कही और ये व्यंजन शायद नहीं मिलेगा। काफी स्वादिष्ट तो होता है ये सब । सब्जियों का जिक्र करू तो जो 2 सब्जी जेहन में आती है वह है आलू का अचार या तिल और साईट्रिक एसिड डाल कर बनाया अचारी आलू और तामा। आलू का यह अनूठा अचार तो कई बार खा चुका हूँ पर तामा (Fermented बांस की सब्जी) मुझे कभी पसंद नहीं आई इसके तीखे गंध के कारण और मैंने कभी नहीं खाया। पर सुना है बहुत स्वादिष्ट होता है और जिसे पसंद है उसे बहुत ही पसंद आता है। तामा राँची में भी मिलता है और इसे यहाँ कहते है करील । बाजार हाट में मैं उस तरफ जाता भी नहीं जहाँ करील और सुक्ति ( सुखाई हुयी मछली) बिकती है ।


१. सेल २. लाखामरी ३. स्वारी जलेबी

स्वारी पर एक व्यंग प्रचलित हैं । एक विदेशी को जब यह खाना परोसा गया। उसने पतले लम्बे स्वारी को नैपकिन समझ कर हाथ पोछने के लिए बचा रखा था । ।


श्री लंका का खाना

होटल स्विस रेजिडेंस , कैंडी, 2009

श्री लंका का खाने और तमिलनाडु के खाने में ज्यादा फर्क नहीं दिखा। मुख्य खाना चावल से बने होते हैं । पर हम लोग कैंडी में एक होटल में रुके थे स्विस व्यू रेजीडेंसी जो कैंडी लेक के पास था यह होटल एक हिललॉक पर था और खाना जो भी खिलाया वो गजब का था । ज्यादा बार कॉन्टिनेंटल खाना खाया । पर कुछ बार लोकल खाना भी डिनर और लंच में खाया।  दक्षिण भारत के खाने से थोड़ा ही अलग था । यहाँ हर खाने में कोकोनट मिल्क डालते है और करी या दाल इससे गाढ़ी हो जाती हैं । दो शब्द जो मेनू में बहुत बार आता था वो है "कोट्टु या कोट्टु रोटी " और "पोल या पोल रोटी " । इनके साथ चिकन या वेजिटेरियन सामग्री मिला कर डिशेस बनते है । मुझे याद नहीं ऐसा कुछ खाया पर बहुत स्वादिष्ट पुडिंग खाया था वह याद हैं ।



वेजिटेरियन कोट्टु औरअप्पम

बेटोंटा नदी के किनारे रिवर व्यू रेस्त्रां, नूवरे ऐलिया और कोलोंबो के बीच एक रेस्त्रां


यूरोप का खाना/ जर्मनी

विदेशों के रेस्त्रां में कई बार बहुत मजेदार बातें हो जाती हैं और कई बार आप जिस जगह खाना खा रहे होते हैं उसका कोई न कोई इतिहास भी होता हैं । मेरे साथ भी हुआ और मैं कुछ रस्त्रों के बारे में बताना चाहूंगा । १९८३ में मुझे पहली बार एयर इंडिया से यूरोप जाने का मौका मिला और विदेशी खाना और ड्रिंक्स हवाई जहाज में ही मिलने लगे । खाना तो भारतीय ही खाया पर वाइन और शैम्पेन पहली बार चखा । तब हवाई यात्रा में ले ओवर मिलते थे और हमें भी मिला जिनेवा में । यूरोप का पहला शहर जहां मैंने 5 सितारा पेंटा होटल में रात बिताई और वही के रेस्त्रां में खाना खाया । हम थके थे फिर भी डिनर लेने  होटल के रेस्त्रां में गए । हमारे लिए रात के एक या दो बज होंगे पर लोकल लोगों के लिए और वेटर्स के लिए  अभी शाम ही था । वहाँ लोग डिनर एन्जॉय करते हैं कई घंटे खाने में लगते है और शायद इसलिए क्योंकि वो सैटरडे नाईट था । हमारा वेटर भी आर्डर लेने के बाद ड्रिंक्स दे कर चला गया और फिर करीब ३०-४० मिनट दिखा भी नहीं । हम और और मेरे कुछ भारतीय सहयात्री धैर्य खोने लगे और जब वेटर पास से गुज़रा हमने उसे अंग्रेजी में कुछ सुना दिया और बस अगले ५ मिनट में ब्रेड बास्केट और १० मिनट में हमारा बाकी का आर्डर आ गया । सुबह स्विस नाश्ता बहुत पसंद आया पहली बार नाश्ता का बुफे लगा देखा जिसमे इतने ज्यादा चॉइस थे और हमने अपने पसंद के ब्रेड, केक, क्रोइसंट, चीज़ और फ्रूट वाली दही यानि योगहर्ट बहुत पसंद से खाया । स्विस चीज़ सच में दुनिया का सबसे स्वादिष्ट चीज़ होता हैं यह बाद में पता चलने वाला था । चाय में डालने के लिए दूध के micro पाउच यहीं देखा। जिनेवा से मैं कुछ महीनों के लिए जर्मनी के डुसेलडॉर्फ शहर गया था जो हमारा गंतव्य था ।



Our flat in Germany and party in the house !

यहाँ ब्रेकफास्ट और डिनर तो खुद अपार्टमेंट में बनाना था और इसके लिए हम आपस में काम बाँट लिया करते । मैं रोटी / पूरी एक्सपर्ट था (बतर्ज अंधों में काना राजा) । मैं बेलन ले गया था और सबसे गोल रोटी बेल लेता था । जल्दी ही हमनें एशियाई मार्किट खोज निकाला जहाँ व्होल मेहेल (यानि आटा -मेहेल का हिंदी है मैदा ), पटना राइस या पाकिस्तान बासमती , परवल, भिंडी जैसे खाद्य और सब्जियां मिल जाती थी । हर हफ्ते हम यह सब खरीद लाते । ब्रेड , मिल्क , कॉर्नफ़्लेक्स,वाइन, बियर और ऑरेंज जूस पास के स्टोर्स में मिल जाते। सुबह ब्रेड, जैम, कॉर्नफ़्लेक्स , अंडा, फल का का नास्ता कर के ऑफिस जाते जहाँ हमारे कमरे में चाय कॉफ़ी और बिस्किट्स आ जाते । दोपहर का खाना ऑफिस के रेस्टोरेंट नुमा कैंटीन में करते । यहाँ भी बुफे लगा रहता और सिर्फ गर्म खाना जैसे चिकन के लिए क्यू में खड़ा होना पड़ता था । भारत में कई बिजली की कंपनियों (ABB , SIEMENS etc ) के कैंटीन में गया हूँ । ज्यादा जगहों में वर्कर्स और ऑफिसर्स के लिए अलग अलग कैंटीन या बैठने की जगहें होती थी । विदेशों में ऐसा नहीं दिखा ऑफिस चीफ और कॉमन वर्कर्स को भी एक ही कैंटीन में खाते देखा, यदि लंच पर ले जाना होता तो बाहर किसी रेस्त्रां में हमे ले जाते । वापस SMS डुसेलडॉर्फ कैंटीन की बात करता हूँ । हमें यहाँ पता ही नहीं चलता कौन सा खाना स्वादिष्ट होगा यानि हमारे देसी टेस्ट का या कौन नहीं ? किन खानों में बीफ नहीं होगा ? एक चीनी शेफ कैंटीन में था उसे पता था हम लोग बीफ या पोर्क नहीं खाएंगे । वह बता देता की आज चिकन या मटन कहाँ हैं और हम वही ले लेते पर एक बार पूरी मछली का एक डिश देख कर मन मचल गया और मैंने एक डिश उठा ली । उसका एक टुकड़ा मुंह में लेते ही उबकाई से आयी और मैं उसे खा नहीं पाया शायद कोई Sea फिश का अचार जैसा था वो । सभी डिश में ओलिव और सलाद पत्ता (lettuce ) अक्सर मिल जाता पर जो एक डिश पसंद आयी वह थी एप्पल पाई ।



German Dishes, Brot and Brötchen (breads)

डुसेलडॉर्फ से दो बार Hilechenbach गया । हमारे मेज़बान हमें एक रेस्त्रां में ले गए जो द्वितीय विश्व युद्ध में नष्टप्राय हो गया था। रेस्त्रां मालिकों ने उन ऐतहासिक यादों को संभाल सहेज कर रेस्त्रां को चला रहे थे और एक अजीब एहसास के साथ हम लंच के बाद अपने होटल आ गए । एक बार हम अपने एक शाकाहारी मित्र के साथ वहां गए थे और मेज़बान SMS की फैक्ट्री के कैंटीन में खाना खा रहे थे । उस कैंटीन में शायद शाकाहारी खाना बनता ही नहीं था । हमें जर्मन भाषा ज्ञान भी कम था । वेटर को बताया की यह मीट नहीं खातें तो वो वह मछली ले आया जब मछली मना किया तो अंडा ले आया बाद में किसी तरह उसे मैंने समझाया कि उबले आलू और चावल ले आओ तो किसी तरह काम बना । राइन नदी में दो बार (१९८३ और २००७ में ) नौका यात्रा की थी और बोट में रेस्तरां भी और हमने जर्मन खाना भी खाया था । २००७ की बोट यात्रा में लाइव संगीत भी था ।


Rhine River Cruise 1983Rhine River Cruise 2007

दूसरी घटना भी जर्मनी के १९८३ ट्रिप की ही है जब हम एक बोन के पास वाइन सेलर देखने गए थे । अंगूरों के बाग़ के बीच एक वाइनरी और रेस्त्रां था । सामने दूसरे विश्वयुद्ध में बर्बाद हुए एक पुल था जिसे स्मृति के लिए संभाल कर रखा गया  था बिना repair किये । हमारे सामने दो गिलास रखे  गए और एक लाल वाइन के बोतल को खोल कर गिलास में wine भी ढ़ाला गया । मेरा शाकाहारी मित्र वाइन भी पीना नहीं चाहता था, तब वाइनरी के मालिक ने तब बोतल को उठा कर सूंघा और उसे बताया यह अभी भी फ्रूट जूस ही हैं अभी वाइन नहीं बना आप आराम से पी लो । शायद वह आखिरी मौका होगा जब उसने वाइन पी होगी ।

Altstadt, Dusseldorf
डुसेलडॉर्फ की बात आई और Altstadt (Old town ) का जिक्र न करूँ तो ज्यादती होगी। इसे दुनिया का सबसे लम्बा बार भी कहते हैं । क्योंकि छोटे से एरिया में ३०० बार हैं । बस जैसे एक बार का दरवाज़ा दूसरे बार में खुलता है । ३-४ बार गया हूँ यहाँ पर जब २००७ में गया था तो एक ताज महल, रेस्त्रां (शायद यही नाम था ) में गया था सोचा था इंडियन रेस्टोरेंट में ज्यादा बढ़िया सर्विस मिलेगी पर बहुत ही बद्तमीज़ था वेटर और अफ़सोस हुआ किसी जर्मन रेस्त्रां में ही क्यों नहीं बैठ गया। Altstadt अपने अल्ट्बियर के लिए भी जाना जाता हैं । ALTBIER का मतलब हैं ओल्ड बियर ।


Winery Visit near Bonn-1983Restaurant near to Mozart's birth place in Salzburg, Austria 2013

Farewell dinner at Munich and breakfast at Melk (Austria) 2013
पेरिस

पेरिस मैं और जगहों से ज्यादा बार गया । १९८३ के पहले अनुभव के बाद २००८ से २०१४ के बीच कई बार। २००८ में Lyon और जगह भी घूमने गया था । कई रेस्त्रां भी खाना खाने गए थे । इंडियन रेस्त्रां के नाम पर कई जगह खाना खाया पर कई बार यह बंगलादेशी रेस्त्रां निकला और एक बार पाकिस्तानी भी। बोर्ड पर लिखा होता restaurant indien । सिर्फ एक जगह 'आशियाना'  रेस्त्रां वास्तव में एक भारतीय रेस्त्रां निकला । हमारा एक मेजबान बार बार एक दूसरे इंडियन रेस्त्रां ले जाता । कुछ ही देर में पता चला ओनर एक बांग्लादेशी हिन्दू हैं । मैंने उनसे बंगला में बात भी की । फ्रेंच फ़ूड भी यहाँ मिलता ही था और मेरा मेजबान यहाँ अपने माशूका को ले कर आता । कंपनी के खर्च में उसका एक डेट भी निपट जाता ।


Ashiana Restaurant, Paris  l Indian Restaurant, Neuly, Paris  

पर २०११-१४ के बीच ज्यादा बार पिज़्ज़ा खाया क्योंकि वह सबसे नज़दीक जगह थी जहाँ हमलोग कुछ स्वाद लेकर खा लेते थे। पर कई बार नज़दीक के एक चायनीज़ रेस्त्रां भी गए जहा WOK किया सब्जी और चावल खा लेते थे इंडियन खाने के नज़दीक वाला taste आता था । एक बार सुशी भी खाया ठंडी चावल और मछली लेकिन पचा न सका और पेट ख़राब हो गया । इसी तरह एक बार विएना के एक कोरियाई रेस्त्रां में भी टोफू के करी के साथ चावल खाये थे और वह भी नहीं पचा था क्योंकि qty बहुत ज्यादा था और मुझे खाना बर्बाद करना नहीं आता  । बाहर के देशों में जो खाना भारतीयों को पसंद आ जाता हैं वह हैं पिज़्ज़ा और चायनीज़ खाना । मैक डोनाल्ड भी एक लोकप्रिय ऑप्शन होता हैं ।


Indian restaurant at St. Etienne, France and a food stall near French Alps and restaurant @ Siene river, Paris.

मैं लगे हाथों यूरोप में मिलने वाली कॉफी के बारे में भी बता डालूं । १९८३ में पहली बार जर्मनी में कॉफ़ी पिया और बहुत ''हार्ड'' थी वो। फिर मैं सिर्फ चाय पीने लगा। एक दिन मेरे जर्मन सीनियर श्री लिटर्स ने कॉफी ऑफर की और मेरी नापसंदगी जानने के बाद कहा "What you will do in Italy ? even spoon stands vertically in coffee cup there !" अलग अलग कॉफी जो देखा और कभी न कभी पिया वो हैं :- 1. Espresso 2. Americano 3. Macchiato 4. Cappuccino 5. Mocha 6. Cafe au Lait 7. Iced Coffee. इसमें अमेरिकन कॉफी, मोचा और कैफ़े अउ लाइट ज्यादा पसंद आया और अपने २०१३ के ट्रिप में हमने सिर्फ मोचा पिया जो दूध में बना कॉफ़ी और चॉकलेट का मिश्रण हैं ।


साउथ अफ्रीका

मैं अब १९९६ की साउथ अफ्रीका की बात करना चाहूंगा मैं प्रिटोरिया के एक सर्विस अपार्टमेंट होटल में ६ महीने रुका था । रंगभेद ख़त्म हुए कुछ ही दिन हुए थे । यहाँ भी डिनर और नाश्ता तो हम खुद बनाते पर दिन का खाना का कुछ इंतेज़ाम करना था क्योंकि साइट पर कोई प्रबंध नहीं था । हमने चायनीज़ खाना ही सुबह सुबह पैक कर ले जाना उचित समझा क्योंकि हमे ८ बजे तक पहुंचना था तबतक कोई रेस्त्रां खुलता ही नहीं था पर किसी तरह एक चयनीज़ महिला अपना शॉप खोलकर साढ़े सात बजे अंडा फ्राइड राइस पैक कर देने को राजी हो गयी । दोपहर तक यह खाना ठंडा और बेस्वाद हो जाता था और सूखा सूखा खाने में दिक्कत होती थी । हमने प्रायः ३ महीने यही खाना खाया फिर एक दिन हमने एक प्लांट कैंटीन दिखा सोचा पूछ ले क्या हम यहाँ खा सकते है । पता चाला हाँ खा सकते हैं । फिर रोज हममें से एक जन जा कर सबके लिए खाना ले आता। हमारे टेस्ट का तो नहीं था पर सस्ता स्वादिष्ट होता था । एक लोकल थोड़ी उमरवाली लेडी शेफ थी जो फिश या चिकन बनने पर हमलोग के लिए छिपा कर रख देती । रविवार को हम नज़दीक के सनीपार्क मॉल में चले जाते जहाँ एक गुजरती महिला हर रविवार वेज समोसा का स्टाल लगाती । इसमें आलू के बजाय प्याज़ या कुछ और सब्जी भरी रहती पर हमें भारतीय स्वाद मिल जाता । ऐसे पिज़्ज़ा भी बहुत बार खाया यहाँ आखिर २ पर १ फ्री जो था । एक बियर फेस्टिवल भी यहाँ देखा और जगह जगह का बियर चखा भी सबसे महंगा बियर मेक्सिकन बियर था पर हमे castle , carlsberg , Amstel, Vivo और हेनकेन बियर ही ज्यादा पसंद था ।



Lunch at Mr Prasad's house, Johannesburg and Sunnypark Mall, Pretoria

हमारे कांट्रेक्टर पोर्तुगीज थे और एक दिन उन्होंने हम लोगों को खाने पर बुला लिया । क्योंकि हमारे वापस आने का वक़्त करीब था हमने उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया और एक शनिवार उनके यहाँ जा पहुंचे । एक हॉस्टल जैसा मकान में सभी वर्कर्स रहते थे और वहीँ उन्होंने खुद से खाना बनाया, पोर्तगीज़ तरीके से । व्हिस्की के बाद परोसा गया चावल के साथ खरगोश का मीट और शोरबा । मैंने कभी खरगोश का मांस खाया नहीं था और सोच ही रहा था की चावल किस चीज़ के साथ खाऊंगा । फिर मेरे दोस्तों ने मीट की तारीफ शुरू कर दी । खरगोश में एकदम हिंदुस्तानी तरीके से पके चिकन का स्वाद आ रहा था । पता नहीं कैसे पकाते हैं पर बहुत पसंद आया हम सब को ।


USA का खाना

१९९३ में बॉम्बे सीरियल ब्लास्ट के दो दिन बाद ही हम लोग मुंबई में थे USA जाने के क्रम में । मुंबई दो दिन में ही नार्मल हो गया था पर ब्लास्ट का असर जगह जगह दिख रहा था । हम जब पिट्सबर्ग पहुंचे तो एयरपोर्ट के पास के ही एक मोटेल नुमा होटल में रुक गए । मॉर्निंग ब्रेकफास्ट के लिए रेस्त्रां की जगह एक काउंटर भर था यहाँ  ब्रेड, बटर, कॉर्नफ़्लेक्स और दूध के सिवा रोज़ कुछ स्पेशल होता था पास्ता, बर्गर जैसा कुछ या कुछ डेजर्ट । दिन का खाना तो साइट पर खा लेते थे रात के खाना के लिए इस बियबान सी जगह में भटकना पड़ता था । हम ने ३ खाने की जगह खोज निकाली थी । एक था K -MART जहाँ होटल का वैन ड्राप कर देते था दूसरा था एक पिज़्ज़ाहट जो करीब ४ km दूर था और हम चार लोग एक बड़े या 2 छोटे पिज़्ज़ा से ही काम चला लेते थे । तीसरा था एक छोटा शॉप जो रोड के उस पर के एक गैस स्टेशन में था। एक वाकया जो याद आ रहा हैं , वो इसी छोटे शॉप से सम्बंधित है। हमारे एक सीनियर साथी वेजीटेरियन थे। उन्होंने एक दिन जब मैं यह शॉप जा रहा था अपने लिए कुछ डोनट्स मंगवा लिए । मैं ले तो आया पर इंग्रेडिएंट्स में लिखा थे "बीफ चीज़" । पता नहीं यह होता क्या हैं पर मैं बाद में एक guilt से भर गया।
१९९७ में जब मैम सालेम, ऑहियो, USA गया था तब site से होटल पैदल आ जाता था और , रोड क्रॉस करते समय मुश्किल में पड़ जाता था क्योंकि जब भी पैर बढ़ाता एक कार आती दिखती और हम पीछे हट जाते और कार भी रुक जाती और थोड़ी देर रुक कर चली जाती । कई कारों के जाने के बाद एक कार वाले ने हमारी द्विविधा समझ ली और हमें रोड क्रॉस कर लेने का इशारा किया । बाद में पता चला की पैदल क्रॉस करने वालो को "right of way " हैं और हम बेधड़क रोड क्रॉस कर सकते हैं। अपने होटल के बिलकुल पास था एक कॉफ़ी शॉप और पहली बार जाना की ''अमेरिकन'' कॉफ़ी ज्यादा strong नहीं है और पिया जा सकता हैं । नज़दीक के एक रेस्त्रां में रोज डिनर लेने जाते थे चिकन सैंडविच, पैनकेक और हेनकेन बियर के लिए । एक बार तब मुश्किल में पड़ गए जब एक लड़की हमारे टेबल पर आ कर बैठ गयी " Will you please order a drink for me ?" हमें कुछ समझ नहीं आया और हम आपस में बंगला में बात करने लगे मेरा साथी उदयन पहले पिट्सबर्ग में साल भर रह कर गया था उसीने कुछ इधर उधर की बातें की और वो दूसरे टेबल पर चली गयी और हम जल्दी बिल पे कर चल दिए ।



Oak tree street, Edison, New Jersey, thanksgiving full Turkey !

२०१० में हम न्यू जर्सी गए थे और ओक ट्री स्ट्रीट, उर्फ़ मिनी इंडिया के एक रेस्त्रां में खाना खाने गए । एक ही जगह पूरे हिंदुस्तान का खाना - इडली, दोसा, समोसा, जलेबी, छोले, रसगुल्ला, पानी पूरी, ढोकला, बटर चिकेन - सभी कुछ था इनके मेनू में और तो और बनारसी पान भी । यह एक अनोखा अनुभव था और अपने वतन से इतने दूर इस जगह में लंच लेने में कैसा लगा बता नहीं सकता। थैंक्स गिविंग्स में एक रिश्तेदार के यहाँ गया था और पहली बार  टर्की मुसल्लम भी खाया ।

Moscow

In the end I am giving an excerpt from one of my blog ! We had an interesting incident in Aeroflot flight between Moscow and Delhi. We were not able to mention food choice during booking and usual anwers to it during check in was "we will serve you Indian Veg meals, if available". We managed. However we were sure our choice - Indian Veg meals. will be available in Delhi flight at least. It was Thursday and both of us needed only veg meals. To our dismay the air hostess had only chicken rice as Indian meals. When we refused and told her we won't have anything, She was at pains to see that we donot go hungry. She offered to serve chicken rice after removing chicken.. We smiled at her. She had her own doubt whether a vegetarian will eat chicken rice with chicken removed. She was how ever at pains to make us eat something. We were famished too having spent 16 uncomfortable hours without proper food, since hardly any vegetarian food was available at the airport. She however brought some bread, butter, fruit etc which was ok with us.

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