शिक्षक दिवस पर विशेष
शिक्षक दिवस फिर आने वाला है और मुझे वो सभी याद आ रहे है जिनसे कभी कुछ भी सीखा है। गुरु तो ईश्वर से भी पहले पूज्य माने गए है । कुछ ऐसे ही गुरुओ के बारे दो शब्द लिखना चाहूंगा। इस बार उन दो गुरुओं के बारे लिख रहा हूँ, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं और कुछ समय पहले ही हमें छोड़ कर दूर चले गए । कुछ रोचक घटनाएं भी घटी और स्कूल के दिनों कि कुछ घटनाएं जो किसी ब्लॉग में पहले भी लिख चुका हूँ फिर से बताना चाहूंगा। छठे क्लास के मेरे पहले क्लास टीचर थे कामता बाबू । न जाने उन्होंने कितनी बार मुझसे क्लास में मुझे "सुन बेटा सुन मेरी चम्पी में बड़़े बड़े गुण" गाना सुनाने को कहा होगा। एक cute छोटे बच्चे (मै सिर्फ 8 वर्ष का था) के मुंह से यह गाना उन्हें शायद बहुत मज़ा देता था। सांतवी में पढ़ाए जाने वाले किताब "शिकार" के एक कहानी जिसमें एक जंगली सुअर और शेर लड़ते लड़ते साथ दम तोड़ देते है के सिवा कुछ याद नहीं पर आठवें क्लास के क्लास टीचर थे अनिरुद्ध बाबू जिनके पास मैं गणित पढ़ने जाता था । उन्होंने ऐसा कुछ किया कि दिसंबर में जब रिजल्ट सुनाया गया मुझे क्लास में थर्ड सुना दिया। बाद में जब मार्क्स शीट मिला तो मैने पाया गिरिधर बालोटिया थर्ड आया था और मैं वास्तव में फोर्थ था। मै इसे उनका प्यार ही मानता हूँ। फिर बात आती है नवीं की। केस्टो बाबू से 6-7 बजे शाम को इंग्लिश ट्यूशन पढ़ने जाता था, वापस आते अंधेरा हो जाता था और हम आपस में अक्सर भूत चुडैल की बात करते लौटते और ईमली पेड़ के पास एकदम से चुप हो जाते। तब हमारे दोस्त किसी छरविन्दा (6 बिन्दी वाला) कीड़े कि बात करते थे कि वह बहुत जहरीला होता हैं और मैं कई साल लेडी बर्ड से डरता रहा था। इसी समय क्रिकेट का शौक चर्राया था और अखबार से पोली उमरीगर, नारी कोन्ट्रेक्टर और टाईगर पटौदी के फोटो काट कर जमा करने लगा था। पटना के कॉलेजिएट स्कूल में शुरू शुरू में मेरे मुझे सहपाठी भांव नहीं देते थे। आखिर मैं एक गांव से आया लड़का था । पिछले बेंच पर बैठता था, आँखे खराब होने लगी थी और ब्लैक बोर्ड पर लिखे शब्द साफ नहीं दिखते। दोस्त नहीं बने इससे मुझे पढ़ने पर ध्यान देने का समय मिला । तब ट्यूशन के लिए कदम कुआँ में पार्क रोड के एक इंस्टिट्यूट "साइंटिफिक" जो वास्तव में एक घर में चल रहा था में पढ़ने जाता था और 'सिंह सर' बहुत बार मुझे अपने ही क्लास को पढ़ाने के लिए खड़ा कर देते । उन्होंने कुछ पैसे या तनख्वाह देने कि भी पेश कश कि थी । पर हमारी शांति दीदी (मेरी सबसे बड़ी मौसेरी बहन जे,मेरी माँ से थोड़ी ही छोटी थी) यह जान कर आग बबूला हो गयी और मुझे अपने पहली "नौकरी" से ज्वाइन करने से पहले ही इस्तीफा देना पड़ा । यह साइंटिफिक ट्युसन इंस्टिट्यूट अब एक हाई स्कूल हैं । खैर कुछ महिनों बाद कॉलेजिएट स्कूल में जब अर्ध वार्षिक परीक्षा हुई तब हमारे फिजिक्स के लोकप्रिय टीचर श्री शैलेन्द्र बाबू ने मुझे स्कूल लेबोरेटरी में बुला भेजा और सिर्फ यह कह कर वापस भेज दिया कि "तो तुम्ही अमिताभ हो ?" बाद में पता लगा मुझे फिजिक्स में हाईएस्ट मार्क्स से थोड़ा ही कम यानि 2nd हाईएस्ट मार्क मिले थे । इसके बाद तो मैं क्लास में अछूत न रहा । अगले बेंच पर बैठने भा लगा। कॉलेज के गुरुओ के बारे में और बोकारो स्टील के गुरुओ के बारे में मैं बाद में लिखूंगा अब मैं आता हूँ १९७८ के बाद के काल में जब मैंने मेकॉन रांची ज्वाइन किया था ।
After Gradutaion 2nd Alma Mator- MECON and my 2nd school HE School at Jamui
स्व श्री भवानी सरकार
मैं 1971 से बोकारो स्टील में कार्यरत था और 1978 में मुझे बोकारो स्टील से मेकॉन में स्थानांतरित किया गया, BSL और MECON दोनों तब स्टील की दिग्गज कंपनी सेल की सहायक कंपनियां थीं। मैंने भी मेकॉन में जाने कि इच्छा जताई थी और इसके लिए होने वाली इंटरव्यू के सदस्यों में थे मथाई (श्री PV मथाई) साहेब चीफ इंजीनियर, मेकॉन (बिजली विभाग प्रमुख), और सरकार साहेब (श्री भवानी सरकार)- 2nd in command । जहाँ मथाई साहेब ने पावर साइड से सम्बंधित सवाल पूछे जैसे ट्रांसफार्मर के नाम प्लेट में क्या लिखा रहता जिसका जवाब काफी आसान था वहीँ सरकार साहेब ने DC मोटर के कंट्रोल सिस्टम के बारे में सवाल पूछा और मैंने Laplace transform का पूरा equation ही लिख डाला । लब्बो लुवाब यह है कि दोनों को मैंने अच्छा खासा impress कर दिया था। और जब मैं मेकॉन आया तो पहले पहल पावर सिस्टम डिपार्टमेंट में मथाई साहब के अंडर पोस्टिंग हो गयी थी। पर तभी BP Sarker ने बुलाया और कहा "अमिताभो तुम रामदुराई के पास बगुरोय बिल्डिंग चले जाओ " और इस तरह मैं रामदुराई साहेब और BP Goyal साहेब के अंडर आ गया । सरकार साहेब कोलकता के एक बहुत नामी और भारत के तीसरे सबसे पुराने ईंजिनियरिंग कॉलेज शिबपुर" के 1955 बैच के रैंक होल्डर थे । टेक्निकल काबिलियत और मेहनत के कद्रदान थे । सबसे पहले उनसे प्रशंसा तब मिली , जब उनके instruction पर कैलकुलेशन कर के मैंने यह साबित कर दिया कि एक 3 वाइंडिंग ट्रांसफार्मर से दो 6 पल्स थाइरिस्टर कनवर्टर को कनेक्ट करने के परिणामस्वरूप कई हार्मोनिक्स को रद्द हो जाता है और जिसके कारण प्रभावी तौर पर 12 पल्स ऑपरेशन होता है यह । इसी तरह एक बार सिंगल फेज केबल से metallic conduit के गर्म होने पर भी कैलकुलेशन उनके ही कहने पर किया था । 1980 में जब मैं सालेम में था तब बहुत कम सीनियर्स आते थे वहां, जबकि राउरकेला, दुर्गापुर, बर्नपुर , भिलाई और बोकारो लोग जाते ही रहते थे । तभी एक दिन पता चला सरकार साहेब आने वाले हैं । उसके बाद जो हुआ उसे मैंने अपने एक ब्लॉग में लिखा था वो ही नीचे दे रहा हूँ । यह बता देना चाहूंगा कि यह वाकया 1980 का है जब सरकार साहब, बीसी मंडल साहब मेकॉन मे़ं चीफ इंजीनियर थे और उनका रूतबा आज के डायरेक्टर से कम न था
We were informed about Mr BP Sarkar's (then Chief Engineer) visit one day and I was required to bring him from the station. I went there with our taxi car and received him. His very first question was did you start rolling in the mill? Since I had improvised roll force cylinder lifting using battery box, and even rolled, I said "yes". He said "Tab hum kya karenga?" This answer remained a matter of joy to me and to my colleagues. He however was furious when he found how we rolled. He started scolding me for putting the mill to peril by rolling without load cells. Such was his fear that I could nor argue with him or inform him that we are using relief valve to limit the roll force. He made us run around to adjust speeds of all hydraulic cylinders as per design and Sri CND Nair (Then DE, Hydraulics) was sore going up and down to cellar. His next step was to fix tensiometer which had broken bearings. Since he went inside mill housing which was full of grease, we also went inside and spoiled our clothes and shoes. He tried to fix load cells and spent whole day behind the panel. When ASEA tensiometer and load cells could not be fixed with his clear offer of a good dinner to all BHEL (Electrical Supplier to Salem Steel) engineers, he agreed to witness rolling using batteries as we did earlier. However he did nor like 100 T load being employed by us, and asked us to increase it to 200 T. We doubled the system pressure as instructed. This however resulted in uncontrolled reduction of material on the two sides and thus in skew. The material will thus move to one side and fold up in the reels. Whole day we did not succeed in stable rolling. Only when Mr Sarker left site we changed back to 100 T force for successful mock rolling to be shown to the minister later on..
उनसे मै बहुत प्रभवित था और मेरे कई ब्लॉग के नायक रहे है। यदि आपने उन्हे convince कर दिया तो उनका uncondotional support आपको मिलता रहेगा, वो जज्बा जो उनके मेकन छोड़ने के बाद मुझे कम boss म मिला। इन सब के बाबजूद सरकार साहेब एक स्ट्रिक्ट बॉस थे और सभी उनसे डरते बहुत थे । बहुत सारी यादें जुडी हैं उनसे। सोशल लाइफ में बहुत एक्टिव थे वे । स्पोर्ट उनका weakness था। मजलिस (बंगाली कल्चरल सोसाइटी) के कई नाटकों में भी भाग लेते रहते थे वे । दुर्गा पूजा में भी बहुत एक्टिव रहते और हर दिन पंडाल में ही मिलते । बहुत दुःख हुआ जब जाना कि कुछ विवाद के चलते उन्होंने निर्देशक पद से इस्तीफा दे दिया । उनके फेयरवेल में कई लोगों ने जब बार बार ड्रामा में उनके एक्टिव होने कि बात छेड़ी तब उन्हें शायद अच्छा नहीं लगा और उनके स्पीच में उन्होंने यह बात बतायी भी ("if I believe you I have only done drama in Mecon") । मेकॉन छोड़ने के बाद उन्होंने एक प्राइवेट कंपनी में कुछ सालों तक काम किया । जब समय मिला तब सरकार साहब ने अपने अनुभव और ज्ञान के आधार पर दो किताबे भी लिखी वो डिज़ाइन engineers के लिए एक treasure से कम नहीं हैं । अंतिम बार उनसे बात तब हुई जब उनका बेटा रांची आने वाला था और मेकॉन गेस्ट हाउस बुकिंग में वो मेरी मदद चाहते थे । टैलेंट को पहचानने कि उनकी काबिलियत के सभी कायल थे और काम के प्रति उनका डेडिकेशन का भी ।
उन्होंने मेरा उत्साह तब बढ़ाया था जब उसकी सख्त जरुरत थी। और मैं यह सब भूल नहीं सकता । सरकार साहब को हार्दिक श्रद्धांजलि। मुझे एक कविता याद आ रही है
तुमसे मिला था प्यार ,कुछ अच्छे नसीब थे ,
हम उन दिनों अमीर थे , जब तुम करीब थे।
गुलज़ार
स्व श्री बुध प्रकाश गोयल
मैं 1978 में गोयल साहेब के संपर्क में तब आया जब मुझे बोकारो स्टील से मेकॉन में स्थानांतरित किया गया, दोनों तब स्टील की दिग्गज कंपनी सेल की सहायक कंपनियां थीं। मुझे बोकारो में बड़े या बहुत बड़े AC / DC मोटरों और 132/11 केवी सबस्टेशनों को चालू करने का व्यावहारिक अनुभव था और उस समय हम अपने-आप को बेहतर अनुभव और ज्ञान वाला समझते थेे और मेकॉन (सीईडीबी) और दस्तूरको इंजीनियरों जिनका हमारा बोकारो में सामना होता ही रहता था, को कागजी । जब मैं मेकॉन आया और गोयल साहेब और उनके तरह कई लोगों के संपर्क में आया तब मैंने पाया कि कितना गलत था मै कि सारा ज्ञान, अनुभव सिर्फ हमारे पास है । क्योंकि कई मेकोनियन की जड़ें तत्कालीन एचएसएल संयंत्रों में थीं और उन्हें भी बहुत व्यावहारिक अनुभव था और थ्योरेटिकल ज्ञान तो था ही उनके पास । हमे बहुत कुछ सीखने की जरूरत थी और हम सभी प्रयत्न करने भी लगे। प्रारंभ में श्री गोयल का रुख एक सख्त अनुशासनवादी बॉस का था। पर मैं उनके कई तकनीकी निर्णयों, अनुमानों और गणनाओं पर सवाल उठाने वाला एक विद्रोही सबोर्डिनेट था। साल भर में वो शायद मुझसे तंग आ गए थे । उनके विचार में मैं ऑफिस का समय फालतू के कॅल्क्युलेशन्स में बर्बाद कर रहा था, उनके लिए मेरे किये कॅल्क्युलेशन्स अनावश्यक थे । श्री गोयल मुझसे बहुत नाराज थे और उन्होंने मुझे एक अन्य बॉस श्री एस.एम. गांगुली के पास स्थानांतरित कर दिया, जो सलेम परियोजना कर रहे थे और बोकारो सीआरएम के मिलों में से एक मिल भी । उनका support भी मुझे बहुत मिला मै उनको भी शिक्षक दिवस की बधाई देना चाहूंगा । गांगुली सीहब में arguements करने की महारत थी और बिना किसीका दिल दुखाए मिटिंग मे अपनी बात कह गुजरते थे। मैने और श्री बीपी गोयल ने परस्पर सम्मान और प्रशंसा विकसित करने में कई साल लगा दिए। मैं उनके बहुआयामी कौशल से चकित था। वे मिल से संबंधित इलेक्ट्रिक्स की गहरी समझ के साथ मैकेनिकल , टेक्नोलॉजी की भी अच्छी पकड़ रखते थे, उन्होंने अपने ज्ञान का इस्तेमाल हमारे सहयोगी वीन यूनाइटेड द्वारा सुझाए गए तकनीक और कैलकुलेशन से इतर तरीके से किया और कई बार मोटर की रेटिंग और cost को कम भी किया । वह अलग-अलग भाषाएं बोले लेते थे - हिंदी, अंग्रेजी सभी प्रकार की बोली यानि dialect में - उत्तर भारतीय, दक्षिण भारतीय या पूर्वी भारतीय pronunciation के साथ , यूके या यूएसए कि अंग्रेजी हो या अन्य यूरोपीय pronunciation वाली अंग्रेजी । बंगाली और पंजाबी पूरी कमांड के साथ और प्रामाणिक pronunciation और स्वर में बात कर सकते थे भोजपूरी बोलते भी सुना हूँ उनको । जैसा मैंने पहले कहा है संबंधित मैकेनिकल इंजीनियरिंग और प्रक्रिया का उनका ज्ञान और समझ उत्कृष्ट था। उनका प्रोजेक्ट के लागत का एस्टीमेट यथार्थवादी होता था और उनकी अर्थशास्त्र और वित्त की समझ उत्कृष्ट थी। हम कैलकुलेटर का इस्तेमाल करते लेकिन मैनुअल कैलकुलेशन वे हमसे जल्दी कर लेते थे । मैं उनकी क्षमताओं से चकित था। उनकी याददाश्त, उनके नेगोटिएशन में दक्षता के तो सभी कायल थे ही ।
पर उन्होंने मेरी क्षमता और ज्ञान के आकलन करने में थोड़ा अधिक समय लिया और मेरे लिए उनकी पहली मुखर प्रशंसा तब हुई जब उन्होंने मुझे अपने दोस्त श्री पीसी साधु की मदद करने के लिए कहा, मुझे डीएसपी सेक्शन मिल के हॉट सॉ की कमिशनिंग के लिए बुलाया । इस बार मैंने सिर्फ 2 काम कर उनका विशवास जीत लिया । पहला) हॉट सॉ का मोटर का ब्रेकर बार बार ट्रिप हो रहा था । पावर कन्टक्टर्स के सिर्फ दो कॉन्टेक्ट्स में पिट्टिंग थी और मैं तुरंत समझ गया कि रिवर्सिंग कॉन्टैक्टर्स एक साथ थोड़ी देर ओन होने से शार्ट सर्किट हो रहा था । मैंने बीच में एक छोटे टाइमर लगाने का सुझाव दिया, जिसके परिणामस्वरूप ब्रेकर का ट्रिपिंग बंद हो गई ,दूसरा ) तब प्रोपोरशनल वाल्वस नए नए आये थे और मैंने युकेन proportional valves के लिटरेचर को पढ़ा और पल्पीट में एक कण्ट्रोल बॉक्स fix किया जिसमे वॉल्यूम कंटोल जैसे डिवाइस लगाया, इससे सॉ के मूवमेंट के गति को कण्ट्रोल कर सकते थे बड़े सेक्शन के लिए धीमा और छोटे सेक्शन के लिए तेज़ । इस तरह मोटर करंट लिमिट में ही रहता । इसके बाद जब मैं और गोयल साहेब बांकुरा-रांची पैसेंजर ट्रैन में प्रथम श्रेणी के कूप में वापस रांची की यात्रा कर रहे थे, तब उन्होंने कहा "तुम मेकॉन में क्या कर रहे हैं?"। वह तब मेकॉन से आरएमएल, ऋषिकेश जाने की योजना बना रहे थे और चाहते थे कि मैं साथ आ जाऊं। मेरे बच्चे बहुत छोटे थे और स्कूल में थे इसलिए मैं एक सुरक्षित सार्वजनिक उपक्रम की नौकरी छोड़ने और निजी उद्यम में प्रयास करने के मूड में नहीं था मैं श्री गोयल जैसे सख्त बॉस के साथ काम करने से भी तब डरता था । पर उनसे इशारे में मिली प्रशंसा मेरे लिए बहुत थी।
गोयल साहब पंजाब यूनिवर्सिटी के इंजिनीरिंग ग्रेजुएट थे और १९६३ में उन्होंने दुर्गापुर स्टील प्लांट में GE के रूप में ज्वाइन किया था और १९७४ में मेकॉन में आ गए । १९९३ उन्होंने मेकॉन छोड़ कर रोड मास्टर (RMIL ) ऋषिकेश ज्वाइन किया । मेकॉन ने एक मिल RMIL को supply किया था । १९९४ में उन्होंने जिंदल ज्वाइन किया और धीरे धीरे जिंदल के स्तम्भ हो गए । उनके सुझाव को हमेशा माना गया क्योंकि वे भी एक risk taker थे एकदम स्व ओम प्रकाश जिंदल जी के तरह। २००४ में वे हिसार से दिल्ली आ गये और इधर इसी बीच मैं भी करीब ३ साल के श्रीहरिकोटा प्रवास और लांच पैड के इरेक्शन और कमीशनिंग के बाद २००३ में रांची लौटा । तभी एक दिन मुझे गोयल साहब मेकॉन में दिखे । मैंने उनसे मिला सिर्फ नमस्ते कहने के लिए पर उन्होंने फिर अकेले में बुलाया और अपना पुराना प्रश्न फिर दुहराया, तुम मेकॉन में क्या कर रहो हो ? मैंने तब कुछ नहीं कहा। पर २००४ दिसंबर में जब मेरे पुत्र के तिलक का कार्यक्रम हो रहा था तभी उनका फ़ोन आया । शोर शराबे में सिर्फ उनकी यही बात सुनायी पड़ी बेटे की शादी में मुझे क्यों नहीं बुलाया ? तब क्या पता मैं भविष्य में उनके पुत्र नवीन की शादी attend करने वाला था । इस बार वे मुझे जाजपुर, ओडिशा प्लांट के लिए बतौर एलेक्ट्रिकल हेड लेना चाहते थे। मैंने अपनी माँ के स्वस्थ्य का हवाला दिया की जाजपुर में कोई विशेषज्ञ डॉक्टर भी नहीं मिलेगा तब उन्होंने जाजपुर जा कर देख आने को कहा । मैं जाजपुर जा कर देख भी आया। अभी कुछ सोच ही रहा था की मेरी माँ हमें छोड़ गयी और तब मैंने गोयल साहब का ऑफर मान लिया । उन्होंने या जिंदल स्टेनलेस ने मुझे एक इंटरव्यू के बाद हिसार के कोल्ड मिल में वाईस प्रेसिडेंड और प्रोजेक्ट हेड के रूप में ले लिया। वे 2004 में हिसार छोड़ दिल्ली आ चुके थे और मुझे वही खाली जगह भरनी थी। थोड़ा घबराया और मेकन के कई सिनियर और तब के CMD श्री सेनापति के रोकने के बावजूद मैं चला गया गोयल साहब के नीचे काम करने एक बार फिर। मैं धीरे धीरे हिसार के कोल्ड मिल के अलग अलग यूनिट्स को समझने लगा था । और लोगों का विश्वास जीतने लगा था। ऐसे स्टील प्लांट का क्लासिक झगड़ा यहाँ भी था यानि प्रोजेक्ट वाले को ऑपरेशन वालों का इलज़ाम झेलना पड़ता था। ऐसे यहाँ कैपिटल मैंटेनैंस और डिज़ाइन वर्क भी प्रजेक्ट की ही जिम्मेदारी थी । गोयल साहब यदा कदा डांट भी देते । सभी ठीक चल रहा था तभी २००५ सितम्बर में अचानक मेरे छोटे भाई की पत्नी का देहांत हो गया। जब उसके अंत्योष्टि में गए तो मेरी पत्नी उसके दो बच्चों के बारे में चिंतित हो गयी क्योंकि तब घर में कोई female सदस्य नहीं बची थी जो बच्चों का ख्याल रखती । वापस आने पर हमने विचार किया और दोनों बच्चों को हिसार ले आने को सोचने लगा । स्कूल, कॉलेज भी देख कर रख लिया पर भाई ने बच्चों के इतनी दूर भेजने से मना कर दिया । तब एक दिन मैंने मेकॉन को एक ईमेल भेज दिया की मैं राँची लौटना चाहता हूँ । करीब ४ महीने बाद जब मै भूल भी चुका था मेकॉन से फोन आ गया पर इधर एक misunderstanding के कारण गोयल साहब ने इस्तीफा दे दिया। मैंने अपने इस्तीफे की बात किसी को बताई नहीं थी और DMD साहब ने गोयल साहब के इस्तीफे के बात सुनकर मुझे कुछ अतिरिक्त जिम्मेदारी भी सौप भी दी थी। गोयल साहब का नोटिस पिरियड चल रहा था। लेकिन एक महीने बाद तक मैं रुका रहा क्योंकि कुछ काम (दो narrow mill का AGC ) जो मुझे गोयल साहब के guidance के बिना ही करने को कहा गया था मैं वह ख़त्म करके ही इस्तीफा देना चाहता था । खैर जिंदल में सभी खासकर गोयल साहब (जिन्हे इस्तीफा वापस लेने को मना लिया गयी था) के रोकने की कोशिश के बाबजूद मैंने इस्तीफा दे दिया और २००६ में फिर से मेकॉन उसी pay और post पर ज्वाइन कर लिया । बाद में पता चला की मुझे कॉन्टिनुइटी ऑफ़ सर्विस नहीं दी गयी हैं । उधर मेरे आने के बाद गोयल साहब एक बार फिर हिसार आ गए और २००७ तक वही रहे । २००७ में वे जाजपुर कमीशनिंग के लिए चले गए और प्लांट की समस्याओं के सुलझा कर कमीशन भी करवाया । २०११ में उन्हें रक्त का कैंसर हो गया और उनका स्वस्थ्य गिरता गया पर वे कहां घर बैठने वाले थे थोड़ा ठीक होते ही २०१७ में काम पर वापस आ गए पर काल को कोई रोक पाया हैं ? मार्च २०१८ को हम सभी को दुखी छोड़ कर वे चले गए । उनके सम्मान में जिंदल ग्रुप ने जाजपुर प्लांट के पिकलिंग लाइन का नाम रख दिया "BPG पिकलिंग लाइन" । काश उनके स्वस्थ्य के बारे में पहले से पता होता तो मै कम से कम एक बार मिल तो आता । मेरी भगवान से प्रार्थना हैं कि उन्हें अपने चरणों में स्थान दे । ॐ शांति । जिंदल के एक सहकर्मी ने कभी उनके लिए यह कविता शेयर किया था । पेश हैं :
अजीब आदमी था वो
मोहब्बतों का गीत था,
बगावतों का राग था
कभी वो सिर्फ फूल था
कभी वो सिर्फ आग था
अजीब आदमी था वो
वो मुफलिसों से कहता था
कि दिन बदल भी सकते हैं
वो जाबिरों से कहता था
तुम्हारे सर पे सोने के जो ताज हैं,
कभी पिघल भी सकते हैं
वो बंदिशों से कहता था,
मैं तुमको तोड सकता हूँ
सहूलतों से कहता था ,
मैं तुमको छोड सकता हूँ
वो आरजू से कहता था,
मैं तेरा हमसफ़र हूँ ,
तेरे साथ् ही चलूँगा मैं
तू चाहे जितनी दूर भी बना ले मंज़िलें,
कभी नही थकूंगा मैं
अजीब आदमी था वो
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