मैने सबसे पहले जो विवाह देखा वह था मेरी छोटी बुआ की शादी। दादा जी के मृत्यु और परिवार और मेरे पिता के struggle के बाद घर में खुशी का पहला मौका। मै 4-5 साल का रहा हूंगा। घर में हर विधि विधान के समय कोई न कोई गीत गाया जाता और दादू (मेरी दादी) का सक्रिय योगदान रहता। मै एक गीत "कच्ची कलियाँ कच्चा सूत, कच्चा है हरा.. क पूत " पूरे घर में घूम घूम कर गाता चलता था जो एक गाली गीत था । बड़े लोग एक बच्चे के मुंह से ऐसा गीत सुन कर enjoy कर रहे थे और मुझे बार बार वही गीत सुनाने को कहते। मै बड़ा होता गया और बेबी दीदी का विवाह 5 साल बाद हुआ और छोटे बाबु (मेरे सबसे छोटे चाचा जी) की शादी और गौना उसके बाद। रिश्ते के कई लोग जिनसे मैं फिर कभी मिला भी नहीं आये थे और औरतों का समय गीत गाने, सब्जी वैगेरह काटने और हंसी ठिठोली में बीतता । कुछ सालों बाद जब शादियों में गीत गाना होता तो मेरी फुफेरी बहनों को खोजा जाता खास कर झुमझुम (रश्मि), भारती और वंदना को। उनके पास एक कॉपी थी जिसमें गीतों के बोल लिखे होतो थे जिसमे हर साल कुछ नये गीत जुड़ जाते। बाद में फिल्मी गीतों के ट्यून पर भी गीत आ गए। मेरे जेहन मे कई विवाह गीत बैठते चले गए "पुरबा पछिमा से आएलै सुनर दुल्हा" हो या "स्वागत में गाली सुनाओ, सुनाओ मेरी संखियाँ" या "रसगुल्ला घुमाय के मार दिया रे" हो या " हाथों में पहने पैजामा दस्ताना समझ के" हो । मैंने गीतों के यू ट्यूब लिंक दे दिया हैं तांकि आप गीतों को सुन कर भी आनंद उठा सके । मुझे हमेशा ये लोक गीत पसंद थे, अब भी है। शादी के बाद मेरे पंसद के List में नेपाली लोक संगीत भी जुड़ गए और पहले मैं कुमार बस्नेत, मीरा राणा, अरूणा लामा और नारायण गोपाल के रिकॉर्ड हर बार के काठमांडू trip में खरीद लेता था, तब रिकॉर्ड प्लेयर का जमाना था । अब मै you tube पर उनके गए गीत और चीज गुरूंग के द्वारा गए दोहरी गीत सुनता रहता हूँ। दोहरी एक extempore गीत मुकाबला है और बहुत ही मजेदार होता है। इस ब्लॉग की विषयवस्तु मेरी इसी पंसद का नतीजा है। परिवार के बारे में बहुत अच्छे मैसेज भी होते हैं इन गीतों में । पद्मा भूषण शारदा सिन्हा द्वारा गए यह भोजपुरी लोक गीत इसका प्रमाण हैं
कोयल बिन बागिया न सोभे राजाकोयल बिन बागिया न सोभे राजा भाई भतीजा बिन , नैहरो न सोभे देवर बिन अंगना न सोभे राजा सासु ससुर बिन , ससुरा न सोभे सैया बिन , सेजिया न सोभे राजा लाल सिंदूर बिन , मागियों न सोभे बालक बिन, गोदिया न सोभे राजामिथिला के राम विवाह आधारित लोक गीत
सबसे पहले सीता के जन्म और उनके वंश के बारे में कुछ जान लेना उचित होगा ।
वाल्मीकीय रामायण तथा पुराणों में मिथिला नाम का संबंध राजा निमि के पुत्र मिथि से जोड़ा गया है। इन ग्रंथों में एक कथा सर्वत्र प्राप्त है कि निमि के मृत शरीर के मंथन से मिथि का जन्म हुआ था। मिथि के वंशज मैथिल कहलाये । कहते हैं अग्नि भी सदानीरा गण्डकी नदी को सूखा नहीं पाए और सरस्वती नदी के पास से आये मिथि के वंशज इसी नदी के पूर्व में बस गए । तब यह क्षेत्र दलदली था और उपजाऊ नहीं था क्योकि अग्नि का प्रवेश नहीं हुआ था पर इन ब्राह्मणों ने यज्ञ कर अग्नि से धरती को तपा कर उपजाऊ बना दिया । स्वतः जन्म के कारण इस वंश में जन्मे हर कोई जनक कहलाये और बिना देह (यानि बिना पिता के) के जन्मे ये लोग विदेह कहलाये । सीता के पिता जनक का वास्तविक नाम 'सिरध्वज' था। राजा जनक के अनुज 'कुशध्वज' थे। एक और वृतांत के अनुसार नदियों से भरा यह क्षेत्र नदी के तीरों से पोषित होने के कारण तिरहुत कहलाया ।
जानकी स्थान स्थित भव्य मंदिर,सीतामढ़ी
जैसी कथा है एक बार अकाल की स्थिति में पंडितों ने कहा की राजा जनक यदि स्वयं हल चलाये तो स्थिति बदल जायेगीं । अब के सीतामढ़ी के पुनौरा गॉव में जनक द्वारा हल चलाते वक़्त एक बच्ची जनक जी को मिली और हल का फाल यानि सीत में मिलने के कारण उन्हें सीता नाम दिया गया । जनकपुर जो नेपाल में हैं मिथिला की राजधानी हुआ करती थी । इस रिश्ते से मिथिलावासी राम जी, चारो भाईयो को मिथिला का दामाद मानते हैं । और इस नाते राम विवाह की मैथिली गीतों में राम जी और अयोध्यावासियों के लिए गाये गीतों में बारात के स्वागत, परिछन और विदाई यहाँ तक कि गालियों वाले गीत भी है । यही तो हमारे धर्म कि विशेषता है हम प्राणियों, पर्वत नदियों से तो कोई न कोई रिश्ता तो जोड़ लेते ही हैं यहाँ तक कि भगवान से भी। कई सालो पहले ये अनुभूति मुझे प्रत्यक्ष रूप में हुई। अवसर था मेरे बहन बहनोई जो मधुबनी में रहते है के घर में आयोजित रामार्चा पूजा। तब मै काठमांडू में था और मैने जनकपुर हो कर मधुबनी जाने का प्रोग्राम बनाया। तब पता न था कि यह यात्रा यादगार होने वाली है। और मैं इस पर ब्लॉग लिखने वाला हूँ (लिंक दे रहा हूँ )। राम कथा की सारे प्रसंगों पर गीत भजन और कथा होती है और इस रामार्चा पूजा में विवाह प्रसंग भी था।
अतिशयोक्ति न होगी यदि कहा जाय अपने आराध्य से अपनापन का हद तो राम और सीता के विवाह के बारे में गाए जाने वाले गीतों में उभर कर आती हैं और दूल्हे के रूप के वर्णन से लेकर शादी में गए जाने वाली गाली तक । पहुना को मिथिला में कुछ दिन और रुकने से लेकर विदाई तक के गीत हैं मैथिली में । यहाँ तक कि गीतों में कहाँ जाता है "हम सब तो आपकी साली सरहज है और हमारे मज़ाक का बुरा न मानियेगा, ये तो हमारा अधिकार है, रिवाज़ है, हमारा प्यार है " क्यों न हो सीता तो मिथिला की ही बेटी थी। कुछ बानगी पेश हैं ।
बारात को सजाने पर गीतराम लछुआन चलला बिहायन दशरथ साजु बरियातू हे सब बरियातिया जनकपुर पहुचल चेरिया कलश लेने ठाढ़ हे राम लछुआन चलला बिहायन दशरथ साजु बरियातू हे सब बरतिया के लाले लाले धोतिया सिरहुँ में लाले लाले पाग हे राम लछुआन चलला बिहायन दशरथ साजु बरियातू हे देबाउ गे चेरिया कान दुनू सोनमा गले में गिरमल हार हे राम लछुआन चलला बिहायन दशरथ साजु बरियातू हे एक वचन मोर मानि ले गे चेरिया कही दिहैं सीता के स्वरुप गे राम लछुआन चलला बिहायन दशरथ साजु बरियातू हेबारात पहुंचने पर
बारात पहुंचने पर मिथिला में लोग भव्य बारात देख कर चकित हैं ।
कओने नगरिया सौ एलै सुन्दर दुलहा
कओने नगरिया सौ एलै सुन्दर दुलहा कहाँ सौ एलै हे पचरंगिया बजनमा अवध नगर सँ एलै सुन्दर दुलहा ओत्तते एलै हे पचरंगिया बजनमा कओने नगरिया सौ एलै सुन्दर दुलहा कहाँ सौ एलै हे पचरंगिया बजनमा
बारात में आने पर दूल्हे को देख सास परिछन करती हैं और अपनी आँखे जुड़ाने लगती हैं और नगर वाले भी दूल्हे की तारीफ की पुल बांधने लगते हैं । दो गीत देखिये :
1) पुरबा पच्छिमवा से ऐले सुन्दर दूल्हा,
जुड़ावे लगलन हो सासु अपनी नयनवा ।
2) आजु मिथिला नगरिया निहाल संखियाँ
चारो दूल्हा में बड़का कमाल संखियाँ
विवाह हो चुका हैं । बारात मड़वे पर कच्ची (बिहार में भात खिलने को कच्ची कहते है । यह इस बात का प्रतीक होता है कि अब हम सम्बन्धी हो गए ) । अब मिथिला वासी गलियां देते हैं । अब तो लोग विवाह में गाते हैं " अरे बन्ने तू क्या जाने तेरा परिवार छोटा हैं, तेरी दादी बेचे आलू तेरे दादा ..फलनवां हैं " । पर मिथिलावासी हमेशा थोड़ा मीठा बोलते हैं चाहे गाली ही क्यों न हो और वे गाते हैं
"राम जी से पूछे जनकपुर की नारी, बता द बबुआ लोगवा कहे देत गारी
राम जी से पूछे जनकपुर की नारी, बता द बबुआ लोगवा कहे देत गारी तोहरा से पुछु मैं ओ धनुर्धारी, एक भाय गोर काहे एक भाय कारी । आगे और भी गलियां देती हैं । और सभी विधि विधान संपन्न हो जाता हैं ।
कई दिनों या महीनो तक बारात जनकपुर में रुकी रही । मिथिला वासी अपने आथित्य के लिए प्रसिद्द हैं और हर बार जब भी दशरथ जी जाने की बात करते हैं उन्हें रुकने के लिए निहोरा करते हैं और वे रुक जाते हैं । फिर वशिष्ठ जी और सतानंद जी ने जनक जी को समझा बुझा कर राजी किया और विदाई का मार्मिक क्षण आ गया । सभी सखिया, माता, अन्य नर नारी अश्रुपूरित आंखों से सीता जी को विदा कर रहे हैं । राजा जनक भी अपने आंसू छिपा नहीं पा रहे । कई विदाई गीत हैं मैं एक गीत का लिंक दे रहा हूँ ।
बड़ा रे जतन से सिया दिया पोसलों, सेहो सिया राम लिए जाय।
सीता अयोध्या चली गयी । फिर जब राम और सीता जनकपुर कुछ दिनों के लिए आये और एक बार फिर पहुना (दामाद, अतिथि) को वापस जाने का क्षण आ गया और साली सरहज सभी मिल कर उन्हें कुछ दिन और रुकने का निहोरा कर रही है और उन्हें कई प्रलोभन दे रही हैं । पहली बात तो ये कहती हैं कि जो सुख ससुराल में वो और कही नहीं । यदि रुके तो रोज़ इत्र से नहलाएंगे और करिया से गोर बना देंगे । रोज नए नए पकवान और लीजिये न का निहोरा करके खिलाएंगे । सालियों के गाली से भूख और स्वाद भी बढ जायेगा । कमला विमला और दूधमती नदियों में नौका विहार करवाएंगे और पवन देव को निवेदन करेंगे कि वो धीरे धीरे बहे । और फिर भी आप रुकना न चाहे तो हमें ही अपने साथ ले चलिए । ऐसा निवेदन कौन ठुकड़ा सकता ? यही गीत यू ट्यूब पर देखिये सुनिए।
ऐ पहुना एहि माथिले में रहु नऐ पहुना एहि माथिले में रहु न जउने सुखवा ससुरारी में ताउने सुखवा कहूना रोज सवेरे उबटन मल के इतर से नहवाईब एक महीना के भीतर करिया से गोर बनाइब झूठ कहत न बानी मौका एगो देहु न निज नविन मनभावन व्यंजन परसब कंचन थारी स्वाद भूख बढ़ जाइ सुन साली सरहोज के गारी बार बार हम करब चिरोरा औरो कुछ ही लेहु न कमला विमला दूधमती में झिंझरी रोज खेलायब सावन में कजरी गा गा के झूला रोज झुलायब पवनदेव से करब निहोरा हौले हौले बहु न हमर निहोरा रघुनन्दन सों माने या न माने पर ससुरारी के नाते परताप को आपन जाने या मिथिले में रही जइयो या संग अपने रख लेहु न ऐ पहुना ऐ ही मिथिले में रहु नबस आज इतना ही । अगले ब्लॉग में भी कुछ नया होगा पढ़ना न भूले ।
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