Saturday, August 21, 2021

काठमांडू -मधुबनी रेल छत पर #यात्रा

काठमांडू

शायद 1995 का साल था और मै अपने ससुराल काठमांडु गया हुआ था। मेरे बहनोई संतोष जी पहले ही रामार्चा पूजा के लिए मधुबनी आने का न्योता भेज चुके थे । यह निश्चित किया गया की मैं काठमांडू से जनकपर धाम होते हुए मधुबनी जाएंगे । मुझे नेपाल में तब चलने वाले एकमात्र ट्रैन में सफर करने का लोभ भी था ।उस यादगार सफर की बातें मेरे इस ब्लॉग का विषयवस्तु हैं ।

चंद्रगिरी, नेपाल काठमांडू

काठमांडू से जनकपुर जाने के दो तरीके है हवाई जहाज से या बाई रोड । आश्चर्य होगा कि दूसरा रास्ता कम समय लेने वाला था क्योंकि बसें रात में चलती थी और जहाज दोपहर में उड़ता । जहाज के उड़ने से पहले बस जनकपुर पहुंच जाती थी । तब बस कलंकी से चलती थी और पथलैया हो कर ही जनकपुर जाती थी ।मैंने भी एक बस में सीट रिज़र्व कर लिया और रात में सोते जागते सुबह जनकपुर पंहुचा । 

जनकपुरधाम से जयनगर की ट्रेन यात्रा

मैंने सोचा था जनकपुर पहुंचने पर मुख्य मंदिर के दर्शन करने के बाद आगे जाऊंगा । तब जनकपुर (नेपाल) से जयनगर (भारत) तक सबसे कम गेज वाली रेल लाइन थी और उसी ट्रेन से जाना सबसे सुविधाजनक था । मैंने एक रिक्शा मंदिर के लिए कर लिया पर रास्ते में रिक्शा वाले ने बताया कि ट्रेन एक घंटे के भीतर ही खुलने वाली हैं । मैं ट्रेन छोड़ना नहीं चाहता था इसलिए मंदिर कभी और जायेंगे का विचार कर रिक्शा वाले को जनकपुर रेलवे स्टेशन ही चलने को कहा । ज्यादा दूर नहीं था स्टेशन और जल्दी ही पहुंच गया । ट्रेन पलटफोर्म पर लगने ही वाली थी इसलिए मैंने एक टिकट खरीद लिया और ट्रेन के रुकने कि प्रतीक्षा करने लगा । लेकिन ट्रेन लगने पर सिर्फ ४ पैसेंजर बोगी दिखी । एक लगेज का डिब्बा और दो मालगाड़ी डिब्बा लगा था ट्रेन में । भीड़ का धक्कम धुक्का देख कर अगली ट्रेन से जाने का मैंने विचार किया पर पता चला अगली ट्रेन शाम को हैं । अबतक सारे पैसेंजर डब्बे भर गए थे । मेरे पास एक २४ इंच वाला VIP सूटकेस और एक झोला जिसमें कुछ खाने का सामान और एक पानी कि बोतल थी । अब मैं किसी तरह भी ट्रेन में सवार होने के लिए तैयार था । रेलवे स्टाफ लोगों तो लगेज वाले डब्बे मैं बैठा रहे थे नीचे बैठ कर या सामान पर बैठना था । मैं पेशोपेश में था और जब तक मैंने उस डब्बे में बैठने का मन बनाया वह डब्बा भी भर गया था ।

Janakpur-Jaynagar NG train

मै निराश हो चुका था। सोचने लगा था कि शायद शाम के ट्रेन से ही जा सकूंगा। लोग ट्रेन के छत पर भी बैठे थे और पर न तो मै सामान सहित चढ़ सकता था और न ही पहले का ऐसा कोई अनुभव था। बस की छत पर भी कभी नहीं चढ़ा था। तभी मैने देखा रेलवे वालों ने बोगियों पर सीढ़ी लगा दिया । मैने तब आंव न देखा तांव और तुरंत सीढ़ी की लाईन में लग गया । सामान एक हाथ में लटका कर मै छत पर चढ़ गया। पर सफर तो अभी शुरू ही हुआ था । आगे आगे देखिए फिर क्या हुआ।

हो....झुक जाऔ भैय्या !

ट्रेन खरामा खरामा चलने लगी हर २-३ किलोमीटर पर स्टेशन आ जाता पर कुछ बिल्डिंग नहीं दिखता । पर लोग मानो खेत से ही चढ़ते और खेत में ही उतरते । चारो तरफ हरियाली देख मैं मंत्रमुग्ध था । ताज़ी हवा थी और मैं सोचने लगा कि बोगी के अंदर बैठने से ज्यादा आराम दायक जगह पर मैं बैठा हूँ । तभी अचानक लोग चिल्लाये झुक जाइए । पहले मैं मैथिली में बोले इस बात को ठीक से समझ नहीं पाया, तब मेरे पास बैठे पैसेंजर ने मेरा सर पकड़ झुका दिया । मैं गुस्से में कुछ बोलता उसके पहले मैंने सर के उपर से पेड़ के झुके हुए डाल को गुजरते हुए देखा । मैं धीरे धीरे इस तरह झुकने का अभ्यस्त हो रहा था और मेरा ध्यान सामने से आने वाले झुके पेड़ कि डालियों पर ही टिक गया । कुछ देर बाद ऐसे पेड़ आने बंद हो गए और मैं फिर आस पास से दृश्य देखने में मस्त हो गया। थोड़ी देर में अचानक लोग बड़ी जोर से चिल्लाये, तब मैं पानी पी रहा था। इस बार डाल इतना ज्यादा झुका हुआ था कि एकदम सो जाना पड़ा। मेरे हाथ में पानी कि बोतल था और काफी पानी इस तरह अचानक झुकने पर गिर गया। बड़ी मुश्किल से सूटकेस हटा कर सोने लायक जगह इतने कम समय में बना पाया थे मैं । करीब घंटे भर बाद हम जयनगर पहुंचे ।

जयनगर पहुंचने पर

जब ट्रेन जयनगर पहुंची मैं सोच रहा था कि रेल वाले यहाँ भी सीढी लगाएंगे । पर सभी लोग जल्दी जल्दी उतर गए और मैं ऊपर करीब करीब अकेला ही रह गया । मेरे समझ में आ गया था यहां रेल वाले क्यों आएंगे भला ? वहां तो ज्यादा से ज्यादा पैसेंजर लेने के लिए ये सब कर रहे थे । खैर मैं दो बोगियों के बीच वाले जगह के करीब था और पकड़ पकड़ कर उतर सकता था पर सामान का क्या करूँ? एक पैसेंजर जो मेरे पीछे था मेरी दिक्कत समझ गया और बोला आप उतर जाओं मैं सामान देता हूँ । उस पर विश्वास करने के अलावा कोई चारा न था और इस तरह मैं उतर पाया । मैं सोच रहा था कहीं तो इमीग्रेशन और कस्टम का काम करते होंगे । तभी हमें इंडिया और नेपाल के ऑफिसर्स दिख गए जो छोटी लाइन के इस प्लेटफार्म और NE Railway के जयनगर के प्लेटफार्म के बीच बने एक ब्रिज पर इमीग्रेशन और कस्टम का काम कर रहे थे।
जयनगर से मधुबनी कि यात्रा मैंने बस से की और ये यात्रा किसी घटना के बिना समाप्त हो गयी । इस तरह ट्रेन की छत पर की गयी मेरी ये एकलौती यात्रा पूर्ण हुई ।

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