Thursday, August 5, 2021

बोकारो की कुछ यादें भाग एक

बोकारो में पहला दिन

BCE(now NIT) से इंजीनियरिंग करने के बाद और उसी कॉलेज में लेक्चरॉर की अल्प अवधि की नौकरी करने के बाद 1971 नवंबर में मै बोकारो आ गया । बोकारो में अपने गॉव के रघुबीर चाचा के यहाँ कुछ महीने रहने का प्रबंध था। ADM बिल्डिंग में नौकरी ज्वाइन करना था। वहाँ पता चला मुझे टेस्टिंग कमीशनिंग डिपार्टमेन्ट में जाना हैं जो प्लांट के अंदर है। रघुबीर चाचा ने बताया टेम्पो (ऑटो रिक्शा) से माराफारी (तब बोकारो स्टील सिटी स्टेशन का नाम यही था) की तरफ़ जाना है जहाँ स्टील गेट नामक गेट मिलेगा और टेस्टिंग कमीशनिंग डिपार्टमेन्ट गेट के करीब ही हैं और गेट से पैदल ही जाना हैं। मैं साफ़ सुथरे कपडे पहन कर निकल चला। क्या पता था इतने साफ़ कपडे पहन कर प्लांट जाने का यह आखिरी दिन था। खैर छपरा मोड़ से (तब सेक्टर IIIE / सेक्टर IIID का लोकप्रिय मोड़ और मार्किट) टेम्पो पकड़ा और नया मोड़ आ गया। वहाँ टेम्पो वाले माराफरी-माराफरी चिल्ला रहे थे और मैं एक टेम्पो के थाइलैंड (ड्राइवर के बगल में लटक कर बैठने का स्थान) में बैठ गया। तब बिहार में टैक्सी, ऑटो, बस में ठूसठूस कर पैसेंजर लेते थे और मैं इसका आदी भी था। मैं CEZ (Constrction Equipment Zone) गेट पर ही उतरने को उद्यत हुआ तो ड्राइवर ने बैठे रहने का इशारा किया स्टील गेट अभी देर हैं। नया रंगरूट हैं जान कर उसके चेहरे पर आई मुस्कान मुझसे छिप न सकी।


मेरा डिपार्टमेंट टेस्टिंग और कमीशनिंग

मैं स्टील गेट पर पास दिखा कर अंदर चला गया। डिपार्टमेंट नज़दीक ही था। क्या पता था BCE (NITP) के बाद ये मेरा दूसरा एल्मा मैटर होने वाला था। थ्योरी तो अब तक खूब सीखी थी अब वक़्त था उसे अमल में लाने का। मै SP Prothia साहब जो Dy CE थे के ऑफिस मे गया। कुछ फॉर्म भरने के बाद प्रोथिया साहब के आने का इंतज़ार करने लगा । उनसे मिला तो ऊन्होंने Zonal Engineer (Sri AB Sah) के जोन में मेरी पोस्टिंग कर दी और उनसे मिलने को कहा। पर वो वहां नहीं थे । पता चला वो अब अगले दिन ही इस ऑफिस में आने वाले थे। मै वापस कॉलोनी चला गया। अगले दिन उनसे मिला और उन्होंने DE मजूमदार साहब से सिन्टर प्लान्ट में मिलने को कहा या यूं कहूं मुझे अपने जीप में बिठा वहा छोड़ आए। साहा साहब खुद मेन 132 के०वी० सबस्टेशन में बैठते थे। मै दूसरे ZE का नाम भूल गया हूँ, शायद SRI KB Gupta था।

सिंटर प्लांट १९७१-७४

सिन्टर प्लान्ट से कई खट्टी मिठ्ठी यांदे जुड़ी है। प्लान्ट का निर्माण हो ही रहा था हमारा काम बिजली के मशीनों को और पैनलों को जांचना, कुछ गड़बड़ी मिलने पर उसे ठीक करना करवाना था। हमारा कार्यालय कक्ष 3 MW Exhauster machine के पास बने ऊँचे चबूतरे पर था। एक छोटा सा बड़े बड़े स्टेप वाली सीढ़ी चढ़ कर जाना पड़ता था। जल्द ही हमारे ग्रुप बन गए और एक ग्रुप लीडर के साथ हमें कर दिया गया। एक एक टूल बैग, मल्टीमीटर और जरूरी समान आॉलाट कर दिए गए। हर ग्रुप को एक Electrician और Helper दे दिया गया जिनके जिम्मे यह टूल बैग होता था। भारी टूल जैसे करेन्ट ट्रान्सफॉरमर, टांग टेस्टर या CRO (Oscilloscope) जब जरूरत पड़े ऑफिस से ले जाना होता था। मुझे अपने पहले ग्रुप लीडर का नाम याद नहीं है।

मेरा पहला दिन मुझे हतप्रभ करने वाला था। सबसे पहले सिन्टर मैशीन-1 के 30 मीटर ऊँचाई पर बने कन्ट्रॉल रूम न० 13 (शायद यहीं नंबर था) में ऊँची ऊँची सीढ़िया चढ़ते चढ़ते मै थक गया (क्या इतनी सीढ़ियो रोज चढ़नी होगी?) और फिर वहाँ लगे complex बिजली के पैनेल ! (क्या मैं ऐसे पैनल commission कर पाऊंगा?)। बाद में जाना कि ये open type मोटर कंट्रोल पैनल, सिंटर मशीन का Magnetic amplifier panel और Disc feeder के थाईरिस्टर पैनल थे और तीन ग्रुप काम कर रहे थे। तीन महीने में जब नए अभियन्ताओं ने join किया मेरे साथ दो लोगों को जोड़ कर नया ग्रुप बना और मै बना अपने बैच का पहला ग्रुप लीडर।
मेरे ग्रुप में जहां धीर गम्भीर RP Sah थे वही हमेशा हसँने हसाँने वाला प्रिथपाल सिंह। कोल हैन्डलिंग और स्क्रीनिंग प्लांट हमें दिया गया। स्क्रीनिंग प्लांट का एक घटना याद आ रही है । प्लांट के एक तरफ कंट्रोल रूम और दूसरी तरफ यूनिट टाइप सब स्टेशन था । कंट्रोल पैनल में पावर देने से पहले सब स्टेशन में ब्रेकर को on करवाना था । केबल चेक कर मैं sub station में ब्रेकर on करवाने चला गया और अपने एक सहयोगी को मल्टीमीटर से वोल्टेज नापने के लिए कह गया । जब लौटा तो कंट्रोल रूम धुएं से भरा था और मल्टीमीटर जला पड़ा था । कही मल्टीमीटर करंट mode में तो सेट नहीं था जिससे शार्ट हो जाता ? मल्टीमीटर जांचने पर वह तो ठीक ही १००० वोल्टस ac के रेंज में सेट था । फिर देखा सिम्पसन मल्टीमीटर में करंट का अलग पिन था और हमारे सहयोगी जो नए नए थे मल्टीमीटर के तार उसीमे लगा रखा था । खैर कुछ झूठ बोलना पड़ा नहीं तो मल्टीमीटर जलाने का आरोप मुझ पर लगता ।

जो वाकया हमे सबसे ज्यादा याद है वो है शायद झा जी या नाम शायद ठाकुर जी था के साथ घटी एक घटना जब वो मल्टीमीटर के साथ करीब 3 मीटर के ब्लोअर प्लेटफॉर्म से गिर पड़े। हम सब साथी दौड़े उनकी सहायता करने पर हमारे बॉस की प्रतिक्रिया अचंभित कर गया "खुद तो,गिरा ही कम्पनी का मल्टीमीटर भी गिरा कर तोड़ दिया।" हाँ भई गिरने का मज़ा लेना था तो पहले मल्टीमीटर को कहीं safely रख कर गिरते!

झा जी की एक और बात जो याद रह गई वो है जब ब्लास्ट फरनेश के कमिशनिंग का समय आया तो हमें रविवार यूँ कहिए प्रत्येक रविवार को साईट जाना पड़ता था। सुबह 8 बजे के पहले जीप दरवाजे पर लग जाती और कोई बहाना नहीं चलता। कई ऐसे रविवार गुजरने के बाद जब मजुमदार साहब ने उन्हें आने वाले रविवार को भी  बुलाया तो झा जी नें झुंझला कर मना कर दिया "सब कपड़ा गंदा हो गया क्या पहन कर आएं ? कल धोना है इसलिऐ नहीं आ सकते।" मजुमदार साहब भी उनकी इस बात पर हंसे बिना न रह सके और उस रविवार झा जी को छुट्टी मिल गई। कुछ समय बाद मै रघुवीर चाचा के घर से थाना मोर के पास एक किराए के क्वार्टर में शिफ्ट हो गए थे। हम लोग तब या तो कुवांरे थे या पत्नी गांव में थी। किराए के घरों को तब 4 जन शेयर करते और मेस सरवेन्ट रखते जो बजार से रोज की सब्जी राशन लाता, साफ सफाई करता और खाना बनाता था। मेस सरवेन्ट ज्यादातर पुरूलिया जिले से आते थे और अच्छा खाना बना लेते थे। दोपहर का टिफिन भर कर टिफिन पहुंचाने वाले के हाथ यह खाना हम तक पहुंचता। ऑफिस में दोपहर का खाना खाने बाद कुछ देर सोने का समय मिलता और हम अपने कन्ट्रोल रूम में ही सो लेते। हमारे मित्र साधु को क्रशर प्लांट मिला था और उस कन्ट्रोल रूम में DBR पैनल के पीछे बहुत जगह थी छिप कर दोपहर में सोने के लिए और हमारा इलेक्ट्रिशियन और हेल्पर कर्टन के गत्तो को छिपा कर रखते और हम उसी को बिछा कर वहाँ सो लेते। साधु को काम में भी गाहे वेगाहे मदद कर देता था और वही सिलसिला मेकॉन आने पर भी चला।

उसे एक बड़े SQ CAGE मोटर जो Raw Material Plant से सिंटर प्लांट के बीच के बड़े कनवेयर मे लगा चलाना था पर बार बार ट्रिप हो रहा था। एक रविवार को उसे चलाने की कार्यक्रम बनाया गया और मै मदद करने जाने वाला था। यह 250 कि०वाट का मोटर था। तब पता नहीं था कि 415 वोल्ट का यह सबसे बड़ा मोटर है, अब तो 200 कि०वाट तक का ही साधारणत: प्रयोग में लाते है। भटक गया मैं। मोटर कंट्रोल मे स्टार डेल्टा स्टार्टर लगा था और चलाने पर ट्रिप कर रहा था कारण heavy starting current था और स्कीम देख कर एक टाईमर का टाईम बढ़ा देने से काम बन गया। अगले दिन मोटर को गियर बॉक्स से कपल कर चलाना निश्चित कर हम घर चले गए। अगले दिन फिर मोटर ट्रिप होने लगा। साधु मुझे बुला कर ले गया। करीब 3 बार कोशिश की पर हर बार ट्रिप कर रहा था। मोटर से पावर ऑन हुआ और घू घू की आवाजे आती पर मोटर नहीं घूमता। हमें समझ आने लगा था कि single phasing हो रहा है। रसियन एक्सपर्ट में इलेक्ट्रिकल का कोई नहीं था और मैकेनिकल वाला अधीर हो कर रसियन में गालियॉ दे रहा था (उतना रसियन आता था हम लोंगों को)।हम एक बार सभी तार केबल टाइट करवाने लगे तभी दिखा एक पिग टेल जो तांबें का भारी कनेक्शन होता है काट कर चोरी कर लिया गया था। रात में या हमारे जाने के बाद। एक फेज का ही पावर पहुंचने से ब्रेकर ट्रिप हो रहा था। खैर इसको ठीक करने का काम दूसरे डिपार्टमेन्ट का था और एक दिन और निकल गया। कन्ट्रोल रूम लॉक कर दिया गया और अगले दिन ये सिन्टर प्लान्ट और RMP के बीच का सबसे लम्बा कनवेयर कमिशन हो गया। साधु मेरे कॉलेज के सिनियर बिस्टू दा  के साथ सिन्टर प्लान्ट के कूलिंग एरिया के कमिशनींग मे भी शामिल था।
१९७२ में दो-तीन घटनाये हुई । सिंटरप्लांट कमीशन करने में तेजी आ गयी और साइट पर आने के लिए जीप के बजाय दो रशियन ट्रक में सीट लगा कर दोनों जोनल इंजीनियर के अंडर दे दिए गए । ट्रक पेट्रोल पर चलता और ड्राइवर पेट्रोल चोरी करने लगे थे । इसके लिए वह हम इंजीनियर से किलोमीटर बढ़ा कर लिखने का आग्रह करते या जोड़ जबरदस्ती लिखवा भी लेते । हमारे एक सीनियर थे NP SINHA । दुबले पतले पर गट्स वाले । उन्होंने ड्राइवर सिंह को एक बार मना कर दिया तो उन्हें हाथ पकड़ कर ट्रक से उतारने वाला था फिर लोगों के समझाने बुझाने पर कहने लगा "आगे से मेरे ट्रक में नहीं चढ़ना" ।

बाद में पता चला यह ड्राइवर क्रिमिनल प्रवृति का थे उसने तो कुछ भाड़े में चलने वाली पेट्रोल से चलने वाली पुरानी गाड़िया खरीद रखी थी और वह चोरी के पेट्रोल पर चलती थी । बहुत दिनों बाद जब मैं रांची आ गया तो एक बार बोकारो टूर पर गया था और चास के होटल में रुका था । वहां जिस ऑटो पर हम बैठे उसका ड्राइवर हमारा बोकारो स्टील का ड्राइवर सिंह ही था । बहुत दुबला हो गया और attitude पूरा बदला हुआ था । उसने मुझे पहचान लिया और अपनी कहानी सुना डाली की कैसे उसके किसी रिश्तेदार ने धोखा दे कर उसे जेल भेजवा दिया और पुलिस / कोर्ट के खर्च के लिए सभी गाड़ियां बिक गयी । उसकी सारी अकड़ निकल गयी थे और वह एक मृदुभाषी आदमी बन गया था ।
एक और घटना मेरे साथ हुई जब मैंने एक हेल्पर की जिसे जमीन के बदले नौकरी मिली थी उपस्थिति लेट आने पर काट दी थी । पैसे वाला था। तब मेरे या दोस्तों के पास कोई २ व्हीलर नहीं था और वो जावा मोटर साइकिल पर आता था महुदा से । वो हेल्पर जब केबल टनल में मेरे साथ अकेला था तब डराने के लिए उसने लम्बा छुरा निकल लिया । मैंने जब ध्यान नहीं दिया तब उसने उससे केबल काटने का ड्रामा करने लगा ।
बात पर बात निकली है तो एक वाकया और याद आ गया । सिंटरप्लांट में बहुत सारे ११ या ६.६ के व्ही के मोटर लगे थे । उसमे एक SYNCHRONOUS मोटर मेरा ग्रुप कमिशन कर रहा था । मोटर को कई बार Synchronize किया गया और हर बार Synchronize नहीं होता पर बड़ा मोटर था उसे रुकने में ३० मिनट लग जाते । ऐसा करते करते सुबह के ४ बज गए तब जा कर सफलता मिली । गाड़ी तबतक रुकी रही और पूरा 25 लोगों का ग्रुप रुका रहा और मन ही मन हमारे ग्रुप वालों के शायद गलियां देता रहा। क्वार्टर जा कर २-३ घंटे ही सोये पर रोज की तरह सुबह ८ बजे जीप घर के सामने साईट तक ले जाने के लिए आ गयी । काम की urgency के चलते तब मै जीप से जाता और ट्रक से लौटता था। ट्रक cum बस पकड़ने adm बिल्डिंग तक पैदल जाना पड़ता और Sri AB Sah (ZE ) साहब का instruction याद है 8 O'clock means 7:60 ! दस मिनट से ज्यादा लेट हुए तो पैदल जाओ या लिफ्ट लेकर जाओ ।


श्री राज किशोर ओझा श्री पुलिन साधु और मैं श्री सुधांशु भूषण मुखर्जी

फरवरी १९७२ में कोक ओवर की एक बैटरी, सिंटर बैंड १ और ब्लास्ट फर्नेस -१ कमिशन हो गए । पावर प्लांट के एक जनरेटर शायद ५५ MW और १३२/११ kv MSDS भी कमिसन हो गए । इंदिरा गाँधी आई थी उद्घाटन करने । अब ऑक्सीजन प्लांट और स्टील मेल्टिंग शॉप में लोग चाहिए था । लोगों को वहां भेजा जाने लगा । जो बॉस के गुड बुक्स में थे उन्हें स्लैबिंग मिल भेजा गया जिनका कोई सोर्स न था उन्हें रिपेयर शॉप । एक छोटा ग्रुप सिंटरप्लांट में रह गया बचे हुए मशीनों, कन्वेयर और щ с у कमिसन करने थे । exhauster रूम से हमारा ऑफिस कोक ओवन के करीब वाले कन्वेयर हाउस में शिफ्ट हो गया मुझे कोक ओवन के मशीन और कुछ गैस वाल्वस कमिसन करने का काम मिला । बन्दर सीढ़ी से चढ़ना और मिनिएचर लिमिट स्विच को एडजस्ट करना था । शायद इंस्ट्रूमेंटेशन डिपार्टमेंट का काम था । पर मशीन का काम मजेदार था। साधु को रॉ मटेरियल साइड का काम मिला । कोक ओवन का एक वकया याद है शायद कोक ऑवन बैट्री 3 का उद्धाटन था, मैने देखा चिमनी के नीचे जूट वाली बोरियाँ जमा की जा रही है। जब मिनिस्टर साहब मे podium पर बटन दबाया एक सायरन बजा तब उन बोरों में आग लगा दिया गया और धुआँ देख लोग खुशी से ताली बजाने लगे। दो घंटे बाद ही ओवन का असली धुआँ चिमनी से बाहर आया।
हमलोगों को शेयर में "F Road " में क्वार्टर मिल गया । मेरे पहले रूम mate थे श्री राज किशोर ओझा जो बाद में नीलांचल स्टील में गए बहुत सी किताबे लिखी और नाम कमाया । मेरे बगल के क्वार्टर में मेरे मित्र पुलिन साधु, सुधांशु मुख़र्जी, रॉय जी थे । इसी जगह साधु और सुधांशु से मेरी बॉन्डिंग पक्की हो गयी जो अभी तक बरक़रार हैं । फिर १९७३ में मेरी शादी हो गयी ।

मेरे विवाह के बाद

मेरी शादी जून १९७३ में होने वाली थी और मैं शायद दो वीक की छुट्टी ले कर घर चला गया । बारात में चलने के लिए बोकारो के मित्रों को बुलाया तो था पर शायद दो ही आये थे । अजित सिन्हा आया था । उसने मेरे कान में कहा स्कूटर मांग लो क्योंकि साइट तक जाने के लिए गाड़ियां बंद होने वाली हैं। मैंने ऐसा कुछ नहीं किया लेकिन शादी के बाद आया तो सच में कंपनी की साइट ले जाने वाली गाड़ियां बंद हो गयी थी । कुछ दिनों तक स्टील गेट तक ऑटो से और वहां से पैदल सिंटर प्लांट जाता रहा । फिर बिहार स्टेट ट्रांसपोर्ट की प्लांट बसें चलने लगी और मैंने उसका ही पास बनवा लिया ।
मेरी शादी के कुछ ही दिनों बाद कुछ बदलाव आया । मेरे रूम मेट ओझा जी को में IIIE में क्वार्टर मिल गया । और मुझे पूरा रूम मिल गया दूसरे रूम में मेरा क्लासमेट सारंगधर और सिंटरप्लाट में मेरे ग्रुप के ऍम पी सिंह रह रहे थे । शादी के बाद मैं कुछ दिनों के लिए पत्नी को लेकर बोकारो आया । सारंगधर और MP Singh अपने परिचितों के क्वार्टर में कुछ दिनों shift कर पूरा क्वाटर मेरे हवाले कर दिया । हमारे साथ घर पर हमारे रसोई बनाने वाले दुबे जी भी आये सहायता करने के लिए । मेस सर्वेंट इन बदलाव के लिए तैयार नहीं था । अब अपने मन के अनुसार न बाजार से सामान ला सकता था न ही अपने अनुसार खाना बना सकता था । वह अगले ही दिन काम छोड़ चला गया । कोयला का चूल्हा जलाना पत्नी जी को तब नहीं आता था क्योंकि उनके मायके काठमांडू में लकड़ी पर ही खाना बनता था । यह काम दुबे जी कर देते थे । पत्नी ने बाद में बताया मेस सर्वेंट लोग टिफ़िन भेजने के बाद मिल ज़ुल कर पार्टी करते थे । जहाँ मालिक लोग सादी रोटी या पराठा भुजीयां खाना खा कर साइट चले जाते थे मेस सर्वेंट लोग पूरी, हलवा वैगेरह बना कर खाते वो भी घी में बना हुआ । एक बात जो अभी भी पहेली बनी हुई है वह है सभी के मेस के नाश्ते में सिर्फ 3 परांठे होना। पता नहीं ये नियम किसने बनाया था।

इस वाकये के कुछ महीनो बाद क्वार्टर मिला IID सेक्टर में दो कमरे के क्वार्टर में दो लोग । शायद JP Bhagat नाम था मेरे क्वार्टर मेट का । कुछ घटनाये यहाँ भी हुई कैसे मैंने अपने पहले बच्चे का जन्म की पार्टी इसी 2D क्वार्टर में दी और कैसे उस पार्टी का बचा पुलाव हमारे मेस सर्वेंट ने अगले दिन पैसे लेकर बांट दिया और फिर हमारी बोकारो के अंतिम क्वार्टर IB -1440 की कुछ यादों के साथ अगला भाग ।

क्रमशः

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